Prerna ni Vaato

  • Home
  • Prerna ni Vaato

Prerna ni Vaato Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from Prerna ni Vaato, Video Creator, .

25/10/2024

. *तांबे का सिक्का*

एक राजा का जन्मदिन था। सुबह जब वह घूमने निकला,तो उसने तय किया कि वह रास्ते मे मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा।

उसे एक भिखारी मिला। भिखारी ने राजा से भीख मांगी,तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।

सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा। भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा।राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का दिया।

भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा को लगा की भिखारी बहुत गरीब है,उसने भिखारी को चांदी का एक सिक्का दिया।

भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा।राजा ने अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया।

भिखारी खुशी से झूम उठा और वापिस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा। राजा को बहुत खराब लगा। उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है।

उसने भिखारी को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूं,अब तो खुश व संतुष्ट हो ? भिखारी बोला- मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा।

हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा ही है। हमें भगवान ने आध्यात्मिकता रूपी अनमोल खजाना दिया हैं और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है।

आओ हम आज से बल्कि अभी से प्रभु की सच्ची भक्ति में लगें और आध्यात्मिकता रूपी अनमोल खजाना प्राप्त करें ।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

24/10/2024

. *ईश्वर की लीला*

बूढ़ी भिखारन आज फिर बीमार है। कल किसी ने बासी पूरियां खाने को दीं तो उसने जिह्वा के अधीन हो, चारों पूरियां गटक लीं।

आज सुबह से बार बार पेट की पीड़ा उसे व्याकुल कर रही है। काश कहीं से बस दो केले मिल जाते तो उसका पेट और पीड़ा दोनों झट से हलके हो जाएँ।
पर यहाँ झुग्गी -झोंपड़ी में उसे कौन दो केले देगा ? बाहर निकल बाजार में भीख मांगे बिना दो केले मिलना नामुमकिन और इतनी पीड़ा में बाजार जाना असंभव।

"हे भगवान ! मुक्ति दे दो। अब सहा नहीं जाता। केले तो मिल नहीं सकते लेकिन परमेश्वर अपने पास बुला कर इस पीड़ा से मुक्ति तो दे दो। "

यहाँ वो बेचारी दो केले के लिए तरस रही और वहाँ मंदिर में एक श्रद्धालू गौ -ग्रास की पांच सौ की पर्ची कटा रहा। उस को पता होता बूढ़ी भिखारिन के बारे में तो वो क्या दो केले न दे देता उस बेचारी को !

लेकिन उस बेचारे को क्या पता ? सब ईश्वर की माया है !

श्रद्धालू का बेटा भी साथ था। वो भी पिता की तरह ही दयावान। मंदिर से बाहर निकला तो पिता से हठ करने लगा कि बाहर रेहड़ी लगा कर खड़े केलेवाले से केले ले लें।

केले काले और कुछ ज्यादा पके हुए

- बस इसलिए खरीद लिए कि बेचारा रेहड़ी वाला कुछ पैसे तो कमा ले।

घर पहुंचे तो गृह-स्वामिनी केले देखते ही चौंक गयीं :

"अरे कैसे केले ले आये हो ?"

"क्या करता ? तुम्हारे लाडले को उस केले वाले की बोहनी कराने का मन हो आया। " पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"उफ़ तुम पिता -पुत्र तो कारूं का खजाना भी बस यूँ ही दान -पुण्य में लुटा सकते हो " गृहस्वामिनी के ताने में भी गर्व बोल रहा था।

संयोग से घर में झाड़ू -पोंछे काम करने वाली कमला काम ख़त्म कर बाहर निकल ही रही थी ।

"ये केले अपने घर ले जाओ । थोड़े काले हैं, पर अभी खरीदे हैं !" गृहस्वामिनी ने केले कमला को पकड़ाए ।

कमला ने खुशी -खुशी केले ले लिए और अपनी झोंपड़ी की तरफ चल पडी।

चलते -चलते एक केला खाया तो देखा, दो केले कुछ ज्यादा ही पके हुए हैं।

कमला की नजर पके केलों पर और बूढ़ी भिखारिन की नजर बाई के हाथ में पकडे केलों पर साथ -साथ ही पडी।

"भगवान के नाम पर दो केले दे दे। भगवान खुशियों से तेरी झोली भर देंगे। " भिखारिन ने टेर लगाई।

कमला को भी दाता बनने का अवसर मिल गया ।

"ये ले अम्मा " कह कर कमला ने दोनों पके केले बूढ़ी भिखारिन की झोली में डाल दिए।

ईश्वर की लीला ने एक बार फिर नामुमकिन को मुमकिन बना डाला।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

23/10/2024

. *जहाँ त्याग, वहीं होता है प्रेम*

शादी की वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर पति-पत्नी साथ में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे।

संसार की दृष्टि में वो एक आदर्श युगल था।

प्रेम भी बहुत था, दोनों में। लेकिन कुछ समय से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि संबंधों पर समय की धूल जम रही है। शिकायतें धीरे-धीरे बढ़ रही थीं।

बातें करते-करते अचानक पत्नी ने एक प्रस्ताव रखा कि मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना होता है लेकिन हमारे पास समय ही नहीं होता एक-दूसरे के लिए।

इसलिए मैं दो डायरियाँ ले आती हूँ और हमारी जो भी शिकायत हो हम पूरा साल अपनी-अपनी डायरी में लिखेंगे।

अगले साल इसी दिन हम एक-दूसरे की डायरी पढ़ेंगे ताकि हमें पता चल सके कि हममें कौन सी कमियां हैं जिससे कि उसका पुनरावर्तन ना हो सके।

पति भी सहमत हो गया कि विचार तो अच्छा है।

डायरियाँ आ गईं और देखते ही देखते साल बीत गया।

अगले साल फिर विवाह की वर्षगांठ की पूर्वसंध्या पर दोनों साथ बैठे।

एक-दूसरे की डायरियाँ लीं। पहले आप, पहले आप की मनुहार हुई।

आखिर में महिला प्रथम की परिपाटी के आधार पर पत्नी की लिखी डायरी पति ने पढ़नी शुरू की।

पहला पन्ना...... दूसरा पन्ना........ तीसरा पन्ना
.... आज शादी की वर्षगांठ पर मुझे ढंग का तोहफा नहीं दिया।
......आज होटल में खाना खिलाने का वादा करके भी नहीं ले गए।
......आज मेरे फेवरेट हीरो की पिक्चर दिखाने के लिए कहा तो जवाब मिला बहुत थक गया हूँ।
....... आज मेरे मायके वाले आए तो उनसे ढंग से बात नहीं की
......... आज बरसों बाद मेरे लिए साड़ी लाए भी तो पुराने डिजाइन की।

ऐसी अनेक रोज़ की छोटी-छोटी फरियादें लिखी हुई थीं।

पढ़कर पति की आँखों में आँसू आ गए।

पूरा पढ़कर पति ने कहा कि मुझे पता ही नहीं था मेरी गल्तियों का। मैं ध्यान रखूँगा कि आगे से इनकी पुनरावृत्ति ना हो।

अब पत्नी ने पति की डायरी खोली ... ये क्या !
पहला पन्ना……… कोरा
दूसरा पन्ना……… कोरा
तीसरा पन्ना ……… कोरा

अब दो-चार पन्ने साथ में पलटे वो भी कोरे।

फिर 50-100 पन्ने साथ में पलटे तो वो भी कोरे।

पत्नी ने कहा कि मुझे पता था कि तुम मेरी इतनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकोगे।

मैंने पूरा साल इतनी मेहनत से तुम्हारी सारी कमियां लिखीं ताकि तुम उन्हें सुधार सको और तुमसे इतना भी नहीं हुआ।

पति मुस्कुराया और कहा मैंने सब कुछ अंतिम पृष्ठ पर लिख दिया है।

पत्नी ने उत्सुकता से अंतिम पृष्ठ खोला। उसमें लिखा था :-

मैं तुम्हारे मुँह पर तुम्हारी जितनी भी शिकायत कर लूँ लेकिन तुमने जो मेरे और मेरे परिवार के लिए त्याग किए हैं और इतने वर्षों में जो असीमित प्रेम दिया है उसके सामने मैं इस डायरी में लिख सकूँ ऐसी कोई कमी मुझे तुममें दिखाई ही नहीं दी।

ऐसा नहीं है कि तुममें कोई कमी नहीं है लेकिन तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा समर्पण, तुम्हारा त्याग उन सब कमियों से ऊपर है।

मेरी अनगिनत अक्षम्य भूलों के बाद भी तुमने जीवन के प्रत्येक चरण में छाया बनकर मेरा साथ निभाया है। अब अपनी ही छाया में कोई दोष कैसे दिखाई दे मुझे।

अब रोने की बारी पत्नी की थी।

उसने पति के हाथ से अपनी डायरी लेकर दोनों डायरियाँ अग्नि में स्वाहा कर दीं और साथ में सारे गिले-शिकवे भी।

फिर से उनका जीवन एक नवपरिणीत युगल की भाँति प्रेम से महक उठा ।

जब जवानी का सूर्य अस्ताचल की ओर प्रयाण शुरू कर दे तब हम एक-दूसरे की कमियां या गल्तियां ढूँढने की बजाए अगर ये याद करें हमारे साथी ने हमारे लिए कितना त्याग किया है, उसने हमें कितना प्रेम दिया है, कैसे पग-पग पर हमारा साथ दिया है तो निश्चित ही जीवन में प्रेम फिर से पल्लवित हो जाएगा।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

22/10/2024

. *अच्छे कर्म करे*

*एक बार एक प्रतापी राजा को कोई गंभीर रोग हो गया जिसे जानकर वह उदास रहने लगा। राजवैद्य ने कहा कि आपकी कुछ दिनों बाद मौत हो जाएगी।*

*राजा को पता चला जंगल में एक तपस्वी रहता है, उसके पास हर समस्या का समाधान होता है।*

*राजा तपस्वी के पास चले गए और उनको सारी बात बता दी। तपस्वी ने राजा को आश्वासन देकर कहा मैं एक कहानी सुनाता हूं क्योंकि इस कहानी में तुम्हें तुम्हारी समस्या का समाधान मिल जाएगा।*

*तपस्वी ने कहा एक राजा एक बार जंगल में शिकार करने गया और रास्ता भटक गया।*

*अचानक ही तेज बारिश शुरू हो गई। राजा भी जानवरों की आवाज सुनकर डरने लगा। उसे सामने एक झोपड़ी दिखाई दे गई।*

*जब वो झोपड़ी के पास गया तो उसने देखा कि उसमें शिकारी रहता है, जो चल नहीं सकता। इसी कारण शिकारी झोपड़ी में ही मल मूत्र का त्याग करता है। उसकी झोपड़ी में बहुत सारा मांस* *इकट्‌ठा है। छोटी-सी झोपड़ी में बहुत ही गंदी दुर्गंध आती थी जिसमें अंधेरा था। राजा ने शिकारी को पूरी बात बताई और रहने के लिए प्रार्थना की।*

*शिकारी ने कहा कि इस झोपड़ी में कई सारे लोग लालच में आते हैं। उनको झोपड़ी की गंध बहुत अच्छी लगने लगती है कि झोपड़ी को छोड़कर जाना नहीं चाहते। मैं इसी कारण आपको यहां नहीं रहने दूंगा।*

*राजा ने कहा कि मैं सुबह झोपड़ी को छोड़ कर चला जाऊंगा। शिकारी ने राजा को झोपड़ी में रहने की इजाजत दे दी।*

*लेकिन जब राजा सुबह उठा तो उसको झोपड़ी की दुर्गंध बहुत अच्छी लगने लगी। अब राजा भी झोपड़ी में रहने की सोचने लगा। यह देखकर शिकारी भड़क गया और राजा को भला बुरा कहने लगा।*

*अब तपस्वी ने प्रतापी राजा से कहा कि क्या झोपड़ी में हमेशा के लिए रहने के लिए झंझट करना सही था। राजा ने बताया वह मूर्ख राजा था जो ऐसी गंदी झोपड़ी में रहना चाहता था।*

*तपस्वी ने कहा वह मूर्ख कोई और नहीं बल्कि आप स्वयं ही हैं क्योंकि मल-मूल की गठरी में जितने समय आपकी आत्मा का निवास करना आवश्यक था वह समय बीतने वाला है। आप क्यों झंझट पाल रहे हैं और दुनिया को छोड़कर जाना नहीं चाहते। आप यह मूर्खता क्यों कर रहे हैं।*

*तपस्वी की बात राजा को अच्छी तरह समझ आई और उसने शेष जीवन में गरीबों की मदद करने का निश्चय किया !*

*कहानी से सीखने को मिलता है कि भगवान ने हर चीज के लिए एक समय निर्धारित किया है। सभी की मौत होनी है। कोई भी दुनिया में हमेशा नहीं रह सकता। इसीलिए हर किसी को अच्छे कर्म करने चाहिए।*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️

20/10/2024

. *सरस्वती के भाई*

अयोध्या के बहुत निकट ही पौराणिक नदी कुटिला है । जिसे आज टेढ़ी कहते है। उसके तट के निकट ही एक भक्त परिवार रहता था । उनके घर एक सरस्वती नाम की बालिका थी । वे लोग नित्य श्री कनक बिहारिणी बिहारी जी का दर्शन करने अयोध्या आते थे ।

सरस्वती जी का कोई सगा भाई नही था , केवल एक मौसेरा भाई ही था । वह जब भी श्री रधुनाथ जी का दर्शन करने आती, उसमे मन मे यही भाव आता की सरकार मेरे अपने भाई ही है ।

उसकी आयु उस समय मात्र पाँच वर्ष की थी । रक्षाबंधन से कुछ समय पूर्व उसने सरकार से कहा की मै आपको राखी बांधने आऊंगी । उसने सुंदर राखी बनाई और रक्षाबंधन पूर्णिमा पर मंदिर लेकर गयी ।

पुजारी जी से कहा कि हमने भैया के लिए राखी लायी है । पुजारी जी ने छोटी सी सरस्वती को गोद मे उठा लिया और उससे कहा कि मै तुम्हे राखी सहित सरकार को स्पर्श कर देता हूं और राखी मै बांध दूंगा। पुजारी जी ने राखी बांध दी और उसको प्रसाद दिया । अब हर वर्ष राखी बांधने का उसका नियम बन गया ।

समय के साथ वह बड़ी हो गयी और उसका विवाह निश्चित हो गया । वह पत्रिका लेकर मंदिर में आयी और कहा की मेरा विवाह निश्चित हो गया है, मै आपको न्योता देने आए हूं । चारो भाइयो को विवाह में आना ही है । पुजारी जी को पत्रिका देकर कहा कि मैन चारो भाइयों से कह दिया है , आप पत्रिका सरकार के पास रख दो और आप भी कह दो की चारो भाइयों को विवाह में आना ही है । ऐसा कहकर वह अपने घर चली गयी ।

विवाह का दिन आया । अवध में एक रस्म होती है कि विवाह के बाद भाई आकर उसको चादर ओढ़ाता है । और कुछ भेट वस्तुएं देता है ।

उसकी मौसी ने अपने लड़के को कुछ सामान और ११ रुपये दिए और मंडप में पहुंचने को कहकर वह चली गयी । उसका मौसेरा भाई उपहार, वस्त्र और ११ रुपये लेकर रिक्शा पर बांध कर विवाह मंडप की ओर निकल पड़ा ।

रास्ते मे ही रिक्शा उलट गया और वह गिर गया । थोड़ी सी चोट आयी और लोगो ने उसको दवाखाने ले जाकर मलम पट्टी कराई । यहां सरस्वती जी घूंघट से बार बार मंडप के दरवाजे पर देख रही है। और सोच रही है। कि सरकार अभी तक क्यो नही आये । उसको पूरा विश्वास है कि चारो भाई आएंगे।

माँ से भी कह दिया कि ध्यान रखना अयोध्या जी से मेरे भाई आएंगे – माँ ने उसको भोला समझकर हँस दिया ।

जब बहुत देर हो गयी तब व्याकुल होकर वह दरवाजे पर जाकर रोने लगी । दूर दूर के रिश्तेदार आ गए पर मेरे अपने भाई क्यो नही आये? क्या मैं उनकी बहन नही हूं ? उसी समय ४ बड़ी मोटर गाड़िया और एक बड़ा ट्रक आते हुए उसने देखा ।

पहली गाड़ी से उसकी मौसी का लड़का और उसकी पत्नी उतरे । बाकी गाडियों से और ३ जोड़िया उतरी । मौसी के लड़के के रूप में सरकार ही आये है । रत्न जटित पगड़ियां , वस्त्र , हीरो के हार पहन रखे है । श्री हनुमान जी पीछे ट्रक में समान भरकर लाये है , हनुमान जी पहलवान के रूप में आये थे । उन्होंने ट्रक से सारा सामान उतारना शुरू किया – स्वर्ण, चांदी, पीतल, तांबे के बहुत से बर्तन ।

बिस्तर, सोफे, ओढ़ने बिछाने के वस्त्र, साड़ियां , अल्मारियाँ, कान, नाक, गले ,कमर, हाथ ,पैर के आभूषण । मौसी देखकर आश्चर्य में पड़ गयी कि इतना कीमती सामान मेरा लड़का कहां से लेकर आया ? चारो का तेज और सुंदरता देखकर सरस्वती समझ गयी कि यह मेरे चारो भाई है ।

सरस्वती जी के आनंद का ठिकाना न रहा, उसका रोना बंद हो गया । सरकार ने इशारे से कहा कि किसी को अभी भेद बताना नही, गुप्त ही रखना । इनका रूप इतना मनोहर था कि सब उन्हें देखते ही रह गए ,कोई पूछ न पाया कि यह गाड़ियां कैसे आयी, ये अन्य ३ लोग कौन है ?

लोग हैरान हो कर देख रहे थे कि अभी तक रो रही थी , और अभी इतना हँस रही है और आनंद में नाच रही है । किसी को कुछ समझ नही आ रहा था । जब तक उसकी विदाई नही हुई तब तक चारो भाई उसके साथ ही रहे । सभी गले मिले और आशीर्वाद दिया ।

सरस्वती ने कहा – जैसे आज शादी में सब संभाल लिया वैसे जीवन भर मुझे संभालना । जब वह गाड़ी में बैठकर पति के साथ जाने लगी तब चारों भाई अन्तर्धान हो गए । उसी समय असली मौसेरा भाई किसी तरह लंगड़ाते हुए पट्टी लगाए हुए वहां आया । उसने वस्त्र ओढाया उपहार और ११ रुपये दिया ।

मौसी ने पूछा कि अभी अभी तो तू बड़े कीमती वस्त्र पहने गाड़ि और ट्रक लेकर आया था ? ये पट्टी कैसे बंध गयी और कपड़े कैसे फट गए ? उसको तो कुछ समझ ही नही आ रहा था । अंत मे सरस्वती से उसकी माता ने एकांत मे पूछा की बेटी सच सच बता की क्या बात है ? ये चारों कौन थे ?

तब उसने कहा की माँ ! मैने आपसे कहा था कि ध्यान रखना ,मेरे भाई अयोध्या से आएंगे । माँ समझ गयी की इसके तो ४ ही भाई है और वो श्रीरघुनाथ जी और अन्य तीन भैया ही है । माँ जान गई कि श्री अयोध्या नाथ सरकार ही अपनी बहन के प्रेम में बंध कर आये थे और अपनी बहन को इतने उपहार , आभूषण और वस्तुएं दे गए।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️

17/10/2024

एक राजा ने कबीर साहिब जी से प्रार्थना की किः
"आप दया करके मुझे साँसारिक बन्धनों से छुड़ा दो।"

तो कबीर जी ने कहाः
"आप तो हर रोज पंडित जी से कथा करवाते हो, सुनते भी हो...?"

"हाँ जी महाराज जी ! कथा तो पंडित जी रोज़ सुनाते हैं,
विधि विधान भी बतलाते हैं,
लेकिन अभी तक मुझे भगवान के दर्शन नहीं हुए , आप ही कृपा करें।"

कबीर साहिब जी बोले
"अच्छा मैं कल कथा के वक्त आ जाऊँगा।"

अगले दिन कबीर जी वहाँ पहुँच गये, जहाँ राजा पंडित जी से कथा सुन रहा था।
राजा उठकर श्रद्धा से खड़ा हो गया, तो कबीर जी बोले--

"राजन ! अगर आपको प्रभु का दर्शन करना है तो आपको मेरी हर आज्ञा का पालन करना पड़ेगा।"

"जी महाराज मैं आपका हर हुक्म मानने को तैयार हूँ जी !

राजन अपने वजीर को हुक्म दो कि वो मेरी हर आज्ञा का पालन करे।"

राजा ने वजीर को हुक्म दिया कि कबीर साहिब जी जैसा भी कहें, वैसा ही करना।

कबीर जी ने वज़ीर को कहा कि एक खम्भे के साथ राजा को बाँध दो और दूसरे खम्भे के साथ पंडित जी को बाँध दो। राजा ने तुरंत वजीर को इशारा किया कि आज्ञा का पालन हो। दोनों को दो खम्भों से बाँध दिया गया।

कबीर जी ने पंडित को कहा-
"देखो, राजा साहब बँधे हुए हैं, उन्हें तुम खोल दो।"

पंडित हैरान हो कर बोला-
महाराज ! मैं तो खुद ही बँधा हुआ हूँ। उन्हें कैसे खोल सकता हूँ भला ?"

फिर कबीर जी ने राजा से कहाः
"ये पंडित जी ,तुम्हारे पुरोहित हैं। वे बँधे हुए हैं। उन्हें खोल दो।"

राजा ने बड़ी दीनता से कहा
"महाराज ! मैं भी बँधा हुआ हूँ, भला उन्हें कैसे खोलूँ ?"

तब कबीर साहिब जी ने सबको समझायाः

*बँधे को बँधा मिले छूटे कौन उपाय*
*सेवा कर निर्बन्ध की, जो पल में लेत छुड़ाय*

'जो पंडित खुद ही कर्मों के बन्धन में फँसा है,
जन्म-मरण के बन्धन से छूटा नहीं,
भला वो तुम्हें कैसे छुड़ा सकता है ।

अगर तुम सारे बंधनों से छूटना चाहते हो तो
किसी ऐसे प्रभु के भक्त के पास जाओ ,
जो जन्म-मरण के बंधनों से छूट चुका हो
केवल एक सन्त सदगुरु ही सारे बन्धनों से
आज़ाद होते हैं। वही हमें इस चौरासी के
जेलखाने से आज़ाद होने की चाबी देते हैं ।

परमात्मा के महल पर लगा ताला कैसे खुलेगा,
इसकी युक्ति भी समझाते हैं ।
जो उनका हुक्म मान कर हर रोज़ प्रेम से बन्दग़ी करता है
वो सहज ही परमधाम में पँहुच जाता है जी ।
〰️〰️〰️〰️〰️

16/10/2024

. विद्वान और विद्यावान में बहुत अन्तर है

रावण विद्वान था जबकि हनुमान जी, विद्यावान थे।

एक रोचक कथा-

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
एक होता है विद्वान और एक विद्यावान।

दोनों में आपस में बहुत अन्तर है। इसे
हम ऐसे समझ सकते हैं, रावण विद्वान है और हनुमान जी विद्यावान हैं।

रावण के दस सिर हैं। चार वेद और छह: शास्त्र दोनों मिलाकर दस हैं। इन्हीं को दस सिर कहा गया है। जिसके सिर में ये दसों भरे हों, वही दस शीश हैं।

रावण वास्तव में विद्वान है लेकिन विडम्बना क्या है ?
सीता जी का हरण करके ले आया। कईं बार विद्वान लोग अपनी विद्वता के कारण दूसरों को शान्ति से नहीं रहने देते। उनका अभिमान दूसरों की सीता रुपी शान्ति का हरण कर लेता है और हनुमान जी उन्हीं खोई हुई सीता रुपी शान्ति को वापिस भगवान से मिला देते हैं।

हनुमान जी ने कहा
विनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं विनती करता हूँ, तो क्या हनुमान जी में बल नहीं है ?
नहीं, ऐसी बात नहीं है। विनती दोनों करते हैं।
जो भय से भरा हो या भाव से भरा हो।

रावण ने कहा कि तुम क्या, यहाँ देखो कितने लोग हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़े हैं।
कर जोरे सुर दिसिप विनीता। भृकुटी विलोकत सकल सभीता॥
यही विद्वान और विद्यावान में अन्तर है।

हनुमान जी गये, रावण को समझाने। यही विद्वान और विद्यावान का मिलन है।

रावण के दरबार में देवता और दिग्पाल भय से हाथ जोड़े खड़े हैं और भृकुटी की ओर देख रहे हैं।
परन्तु हनुमान जी भय से हाथ जोड़कर नहीं खड़े हैं। रावण ने कहा भी -
कीधौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥

रावण ने कहा - “तुमने मेरे बारे में सुना नहीं है ? तू बहुत निडर दिखता है !”

हनुमान जी बोले – “क्या यह जरुरी है कि तुम्हारे सामने जो आये, वह डरता हुआ आये ?”
रावण बोला – “देख लो, यहाँ जितने देवता और अन्य खड़े हैं, वे सब डरकर ही खड़े हैं।”
हनुमान जी बोले - “उनके डर का कारण है, वे तुम्हारी भृकुटी की ओर देख रहे हैं।”
भृकुटी विलोकत सकल सभीता।
परन्तु मैं भगवान राम की भृकुटी की ओर देखता हूँ।
उनकी भृकुटी कैसी है ? बोले,

भृकुटी विलास सृष्टि लय होई। सपनेहु संकट परै कि सोई॥

जिनकी भृकुटी टेढ़ी हो जाये तो प्रलय हो जाए और उनकी ओर देखने वाले पर स्वप्न में भी संकट नहीं आए।
मैं उन श्रीराम जी की भृकुटी की ओर देखता हूँ।
रावण बोला - “यह विचित्र बात है। जब राम जी की भृकुटी की ओर देखते हो तो हाथ हमारे आगे क्यों जोड़ रहे हो ?

विनती करउँ जोरि कर रावन।
हनुमान जी बोले – “यह तुम्हारा भ्रम है। हाथ तो मैं उन्हीं को जोड़ रहा हूँ।”

रावण बोला - “वह यहाँ कहाँ हैं ?”

हनुमान जी ने कहा कि “यही समझाने आया हूँ।"
मेरे प्रभु राम जी ने कहा था -
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमन्त।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामी भगवन्त॥
भगवान ने कहा है कि सबमें मुझको देखना। इसीलिए मैं तुम्हें नहीं, तुझ में भी भगवान को ही देख रहा हूँ ।” इसलिए हनुमान जी कहते हैं -
खायउँ फल प्रभु लागी भूखा।
और सबके देह परम प्रिय स्वामी॥

हनुमान जी रावण को प्रभु और स्वामी कहते हैं और रावण -
मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥

रावण खल और अधम कहकर हनुमान जी को सम्बोधित करता है।
यही विद्यावान का लक्षण है कि अपने को गाली देने वाले में भी जिसे भगवान दिखाई दे, वही विद्यावान है।

विद्यावान का लक्षण है -
विद्या ददाति विनयं। विनयाति याति पात्रताम्॥

पढ़ लिखकर जो विनम्र हो जाये,
वह विद्यावान और जो पढ़ लिखकर
अकड़ जाये, वह विद्वान ।

तुलसी दास जी कहते हैं -
बरसहिं जलद भूमि नियराये। जथा नवहिं वुध विद्या पाये॥

जैसे बादल जल से भरने पर नीचे आ जाते हैं, वैसे विचारवान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं।
इसी प्रकार हनुमान जी हैं - विनम्र और रावण है - विद्वान ।

यहाँ प्रश्न उठता है कि विद्वान कौन है ?

इसके उत्तर में कहा गया है कि जिसकी दिमागी क्षमता तो बढ़ गयी, परन्तु दिल खराब हो, हृदय में अभिमान हो, वही विद्वान है और अब प्रश्न है कि

विद्यावान कौन है ?

उत्तर में कहा गया है कि जिसके हृदय
में भगवान हो और जो दूसरों के हृदय
में भी भगवान को बिठाने की बात करे, वही विद्यावान है।

हनुमान जी ने कहा – “रावण ! और तो ठीक है, पर तुम्हारा दिल ठीक नहीं है। कैसे ठीक होगा ? कहा कि
राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम करहू॥

अपने हृदय में राम जी को बिठा लो और फिर मजे से लंका में राज करो।
यहाँ हनुमान जी रावण के हृदय में भगवान को बिठाने की बात करते हैं, इसलिए वे विद्यावान हैं।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

15/10/2024

. शरद पूर्णिमा की खीर का विशेष महत्व

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा "शरद पूर्णिमा"..
शरद पूर्णिमा पर क्यों खुले आसमान के नीचे रखी जाती है खीर, क्या है इसका महत्व ? आओ जानते हैं...

मान्यता है कि रात भर चांद की रोशनी में शरद पूर्णिमा पर खीर रखने से उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं. फिर अगले दिन सुबह-सुबह इस खीर का सेवन करने पर सेहत अच्छी रहती है.

हिंदू धर्म में सभी पूर्णिमा तिथियों में अश्विन माह की शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. शारदीय नवरात्रि के खत्म होने के बाद अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा या कोजागर पूर्णिमा मनाई जाती है. इस वर्ष शरद पूर्णिमा सोलह अक्टूबर को है.

शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस रात को सुख और समृद्धि प्रदान करने वाली रात माना जाता है, क्योंकि कोजागरी पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर भ्रमण करती हैं। शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है और इस दिन घर की साफ-सफाई करते हुए मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप किया जाता है. मान्यता है कि जिन घरों में सजावट और साफ-सफाई रहती है और रातभर जागते हुए मां लक्ष्मी की आराधना होती है वहां पर देवी लक्ष्मी जरूर वास करती हैं और व्यक्ति को सुख, धन-दौलत और ऐशोआराम का आशीर्वाद प्रदान करती हैं. इसके अलावा शरद पूर्णिमा पर रातभर खुले आसमान के नीचे खीर रखी जाती है. मान्यता है कि रात भर चांद की रोशनी में शरद पूर्णिमा पर खीर रखने से उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं. फिर अगले दिन सुबह-सुबह इस खीर का सेवन करने पर सेहत अच्छी रहती है. आइए विस्तार से जानते हैं आखिरकार शरद पूर्णिमा की रात्रि पर खीर रहने और खाने के कौन-कौन से फायदे हैं.

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार चन्द्रमा को मन और औषधि का देवता माना जाता है. शरद पूर्णिमा की रात को चांद अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है. इस दिन चांदनी रात में दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए. चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इससे विषाणु दूर रहते हैं. शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है. खीर में मौजूद सभी सामग्री जैसे दूध,चीनी और चावल के कारक भी चन्द्रमा ही है, अतः इनमें चन्द्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है. शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है. प्राकृतिक चिकित्सालयों में तो इस खीर का सेवन कुछ औषधियां मिलाकर दमा के रोगियों को भी कराया जाता है. यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है. इससे चित्त को शांति मिलती है.

शरद पूर्णिमा पर क्या करें ?
शरद पूर्णिमा पर रात भर जागते हुए मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए.

व्यक्ति को शरद पूर्णिमा की रात को कम से कम कुछ घंटों के लिए चंद्रमा की शीतल चांदनी में बैठना चाहिए.

इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है.

शास्त्रों के अनुसार लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था. मान्यता है कि इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी.

चांदनी रात में कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है,जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है.

शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की तरफ एकटक निहारने से या सुई में धागा पिरोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है.

शरद पूर्णिमा की रात को 10 से 12 बजे का समय जब चंद्रमा की रोशनी अपने चरम पर होती हैं, इसलिए इस दौरान चंद्रमा के दर्शन करने का भी लाभ है 👍🏻
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

14/10/2024

. अन्दर कौन है ??

एक भगवान का भक्त साधु जब ध्यान पर बैठता तो उस समय कोई भी उससे मिलने नहीं जाता था।

एक बार की बात है उनकी कुटिया में उनके ध्यान के समय एक अतिथि आ गया उसको मालूम नहीं था कि यह उनके ध्यान का समय है....

वह लगा बाहर से जोर-जोर से आवाज लगाने और दरवाज़ा खटखटाने पर वो भगवान की भक्ति में इतना रमें थे कि उन्हें कुछ पता ही नहीं चला कि बाहर कोई दरवाजे को खटखटा रहा है।

वह अतिथि जब दरवाजा खटखटाते हुए परेशान हो गया तो चिल्लाकर बोला अंदर कौन हैं..?"

पर कोई उत्तर नहीं आया तो वह चुपचाप वहीं पर बैठ कर प्रतीक्षा करने लग गया।

शाम के समय जब साधु बाहर निकले तो अतिथि ने उनके ध्यान की बहुत सराहना की और बाद में उलाहना भी दिया कि हमने आपको कितनी आवाजें दी पर आप ने हमारी एक भी आवाज का उत्तर नहीं दिया।

इस पर साधु ने मुस्कुराते हुए जबाव दिया कि ---"मैं तो कुटिया के भीतर ही था।"

उस व्यक्ति ने कहा ---" क्या आपको हमारी आवाज सुनाई नहीं दी।"

साधु ने कहा ---"सुनाई दी थी...तुम्हारा सवाल था अंदर कौन हैं ?"

यह सुन वह व्यक्ति रुआंसा होकर बोला ---"आपने मेरी आवाज सुनकर भी दरवाजा खोलना उचित नहीं समझा ऐसा क्यों..?"

भगवान के भक्त ने कहा ---" तुम्हारे प्रश्न "अंदर कौन है" ..? का उत्तर जानने के लिए मुझे अंदर जाना पड़ा....सो उसी में देर हो गयी..!!"

तब तक वहाँ कई लोग जमा हो गए और वह साधु भगवान की बातों में इतना मस्त हो गया कि उसे समय का पता ही नहीं चला लेकिन थोड़ी देर में आंधी-तूफान आ गया। सब अपनी अपनी जान बचाने इधर-उधर भागने लगे वह अतिथि भी भागा...पर साधु को देख वह वापिस वहीं पर लौट आया।

उसने साधु से प्रश्न किया ---"इस तूफान में सब भागे पर आप नहीं... ऐसा क्यों..?"

साधु ने कहा ---" जब सब बाहर की ओर भागे तब मैं भीतर की ओर (ध्यान की ओर) भागा, अपने ध्यान में, वहाँ तूफान नहीं था परम शान्ति थी...अतिथि ने खुश होकर कहा ---" मुझे ध्यान करने का तरीका मिल गया।

कहने का भाव है जो मालिक के ध्यान अर्थात् भजन सिमरन में दिन-रात रहते हैं उन्हें धूप-छाँव, सर्दी-गर्मी, आँधी-तूफान, सुख-दुःख,आदि थपेडों की कोई परवाह नहीं होती। वह हर हाल में खुश रहते हैं।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️

09/10/2024

. *प्रभु की अलौकिक सुंदरता*

महापुरुषों की दृष्टि पड़ते ही क्षण भर में जीवन सुंदर हो सकता है।

दक्षिण में एक भक्त हुए उनका नाम धनुदास था। प्रारम्भ में वे हेमाम्बा नाम की वेश्या के रूप पर मुग्ध थे। भगवान में भक्ति बिल्कुल नहीं थी।

शरीर हट्टा-कट्टा था उनका। लोग उन्हें पहलवान कहते थे। दिन बीत रहे थे। वृंदावन रंगजी के मंदिर में प्रतिवर्ष उत्सव हुआ करता था और वैष्णवचार्य श्री रामानुज जी महाराज मंदिर में आया करते थे। लाखों की भीड़ होती थी।

पहलवान और वेश्या के मन में भी उत्सव देखने की इच्छा हुई। कीर्तन में लोग मस्त थे, भगवान की सवारी सजाई गई।

हजारों व्यक्ति आंनद में पागल होकर नाच रहे थे। पर पहलवानजी उस वेश्या के मुख की शोभा निहारने में मग्न थे। तभी, श्री रामानुजाचार्यजी की दृष्टि उन पर पड़ गई। भाग्य खुल गया, श्री रामानुजाचार्यजी बोले यह कौन है ?

उनको दया आ गई, लोगों में यह बात प्रसिद्ध थी ही। सबने सारा हाल सुनाया।

श्री रामानुजाचार्यजी ने पूछा- “भैया ! लाखों व्यक्ति भगवान के आंनद में डूब रहे है, पर तुम्हारी दृष्टि भटक रही है, ऐसा क्यों ?

पहलवान ने बोला, “महाराज जी, मुझे सुंदरता प्रिय है। हेम्मबा जैसी सुंदरता मैंने कहीं और नहीं देखी ! इसी लिए मेरा मन दिन-रात उसी में फंसा रहता है।
आचार्यजी बोले, “यदि इससे भी सुंदर छवि तुम्हें दिखने को मिले तो इसे छोड़ दोगे ?”

पहलवान बोला, “महाराजजी, इससे भी अधिक सुंदर कोई छवि है, यह मेरी समझ में नहीं आता।”

आचार्यजी बोले- अच्छा संध्या को मंदिर की आरती समाप्त होने के बाद आ जाना केवल मैं रहूंगा। पहलवान भी जी, अच्छा ! कहकर चले गए।

श्री रामानुजाचार्यजी मंदिर में गए और भगवान से प्रार्थना की, “प्रभु ! आज एक अधम का उद्घार करो। एक बार के लिए उसे अपने त्रिभुवन मोहन रूप की एक हल्की सी झांकी तो दिखा दो।”

प्रभु अपने भक्त को कभी निराश नहीं करते। संध्या के समय जब पहलवान आए, तब श्री रामानुजाचार्यजी पकड़कर भीतर ले गए और श्री विग्रह की ओर दिखा कर बोले- देखो, ऐसा सौंदर्य तुमने कभी देखा है।

पहलवान ने दृष्टि डाली एक क्षण के लिए जन साधारण की दृष्टि में दिखने वाली मूर्ति, मूर्ति न रही स्वयं भगवान ही प्रकट हो गए और पहलवान उस अलौकिक सुंदरता को देखते ही बेहोश हो गया।

बहुत देर के बाद होश आया। होश आने पर श्री रामानुजाचार्यजी के चरण पकड़ लिए और बोला,“प्रभु ! अब वह रूप निरंतर देखता रहूं, ऐसी कृपा कीजिए।

फिर श्री रामानुजाचार्यजी ने उन्हें मंत्र दीक्षा दी। आगे चलकर वह उनके बहुत प्यारे शिष्य तथा एक पहुंचे हुए महात्मा हुए। तुलसीदास जी ने सच ही कहा है -

*‘बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥’*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

07/10/2024

. घड़ी की सुइयां

रामु अपने छोटे से कमरे में गहरी नींद में सोया हुआ था। कमरे के शांत वातावरण में केवल घडी की टिक-टिक की आवाज गूंज रही थी।

टेबल पर रखी घड़ी की बड़ी सुई जैसे ही छोटी सुई से आकर मिली, उसने पूछा-“अरी कैसी हो छोटी सुई?”

“ठीक हूँ बहन, तुम कैसी हो?” अंगड़ाई लेकर छोटी सुई बोली।

“मैं तो चलते-चलते तंग आ गयी हैं। एक पल के लिये भी मुझे आराम नहीं मिलता। एक ही दायरे में घूमते-घूमते में तो अब ऊब गई हु। रामू का कुत्ता कालू तक सो रहा है, मगर हमें आराम नहीं ।”

“तुम ठीक कहती हो बहन। रामू को देखो, वह भी कैसे घोड़े बेचकर सो रहा है। खुद को सुबह उठाने का काम तक हमें सौंप रखा है। सुबह पाँच बजे जब हम अलार्म बजायेंगी, तब कहीं जाकर उठेगा क्या फायदा ऐसी जिन्दगी से ?”

“हाँ बहन.क्यों न हम भी चलना बन्द कर दें?” बड़ी सुई ने अपना सुझाव दिया।

छोटी सुई को भी बड़ी सुई का यह सुझाव पसन्द आ गया और दोनों चुपचाप जहां की तहाँ ठहर गयीं।

सुबह जब रामू की आंख खुलीं तो कमरे में धूप देखकर वह चौंक उठा। टेबल पर रखी घड़ी की ओर देखा तो उसमें अभी तक दो ही बज रहे थे।

रामू घबराकर बोला-“ओह आज तो इस घड़ी ने मुझे धोखा दे दिया। कितनी देर हो गयी उठने में? अब कैसे पढ़ाई पूरी होगी?” घड़ी को कोसता हुआ रामू कुछ ही देर में कमरे से चला गया ।

उसे इस तरह बड़बड़ाता और गुस्से क कारण कमरे से बाहर जाता देख छोटी सुई हँसकर बोली-“आज पता चलेगा बच्चू को हमारा महत्व क्या है?”

रामू के पिता ने जब घड़ी को बन्द देखा तो वे उसे उठाकर घड़ीसाज़ के पास ले गये।

घड़ीसाज़ ने उसे खोलकर अन्दर बारीकी से निरीक्षण किया। लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया ।

और कुछ देर तक घड़ी को सही करने के प्रयास के बाद वह रामू के पिता से बोला-“श्रीमान जी, इस घड़ी में खराबी तो कोई नज़र नहीं आ रही। शायद यह बहुत पुरानी हो गयी है। अब आप इसे आराम करने दीजिये।”

रामू के पिता उसे वापस ले आये और उन्होंने उसे कबाड़े के बक्से में डाल दिया।

फिर उन्होंने बक्से को बन्द कर दिया और बाहर आ गये। बक्से में अन्य टूटी-फूटी वस्तुएं पड़ी थीं।

बक्सा बन्द होते ही छोटी सुई घबरा गयी। वह बोली-“बहन! यह हम कहाँ आ गये हैं? यहाँ तो बहत अंधेरा है ।”

अरी मेरा तो दम ही घुट रहा है।”. बड़ी सुई कराहती हुई बोली-“ये किस कैद खाने में बन्द हो गये हम? कोई हमें खुली हवा में ले जाये ।”

किन्तु उनकी बात को सुनने वाला कोई नहीं था।

अब दोनों को वह समय याद आ रहा था जब वे राजू के खुले हवादार कमरे में टेबल पर बिछे मेजपोश के ऊपर शान से इतराया करती थीं।

पास ही गुलदस्ते में ताजे फूल सजे होते थे। चलते रहने के कारण उनके शरीर में चुस्ती फुर्ती बनी रहा करती थी। कितनी कद्र थी उनकी आते जाते सब उनकी ओर देखते थे।

रामू बड़े प्यार से अपने रूमाल से घड़ी साफ किया करता था। अब दोनों सुइयाँ टिक-टिक करके चलने लगी थीं। क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि कुछ ना करने से बेहतर है, कुछ करते रहना।

निकम्मों और आलसियों को दुनिया में कोई काम नहीं।

अब दोनों अपने किये पर पछता रही थीं और इस आशा में चल रही थीं कि शायद कोई इधर आये हमारी टिक-टिक की आवाज सुने और हमें इस कैद से निकालकर फिर मेज पर सजा दे।

मित्रों चलना ही जिन्दगी है।” यानी जब तक आप क्रियाशील हैं तभी तक आपकी उपयोगिता बनी हुई है। तभी आपका जीवन सफल माना जायेगा और स्वयं भी आपको उस जीवन का आनन्द आयेगा। जिस प्रकार घड़ी की सुइयाँ बन्द हो गयीं तो उनके मालिक ने उन्हें व्यर्थ समझकर बॉक्स में बन्द कर दिया और फिर वे अपनी करनी पर कितनी पछताईं। अतः किसी को भी अपने जीवन को स्थिर नहीं रखना चाहिए।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️

07/10/2024

06/10/2024

*!! मृतक का उम्र !!*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

एक बार एक आदमी किसी गाँव के पास से गुजर रहा था। उस रास्ते में श्मशान भूमि थी, उसने श्मशान भूमि में पत्थरों के ऊपर मरने वाले की उम्र लिखी हुई देखी 5 वर्ष, 8 वर्ष, 10 वर्ष और 20 वर्ष।

उस आदमी ने सोचा कि इस गांव में सभी की मृत्यु अल्प आयु में ही हो जाती है। वह आदमी गांव में गया तो गांव वालों ने उस आदमी की बहुत सेवा सत्कार किया। वह आदमी कुछ दिन उस गांव में ठहरने के बाद वहां से जाने के लिए तैयार हुआ और गांव वालों को बताया कि मैं कल जा रहा हूँ।

उसकी बात सुनकर गांव वाले बहुत दुखी हुए और कहने लगे हमारे से कोई गलती हुई है तो बताओ लेकिन आप यहाँ से न जाओ, आप इसी गाँव में रुक जाओ। वह आदमी कहने लगा कि इस गांव में, मैं और अधिक नहीं रह सकता, क्योंकि इस गांव में इंसान की अल्प आयु में ही मृत्यु हो जाती है।

उसकी बात सुनकर गांव वाले हँसने लगे और बोले देखो- हमारे बीच में भी कोई 60 वर्ष, 70 वर्ष औऱ 85 वर्ष का भी है। तो उस आदमी ने पूछा कि श्मशान भूमि के पत्थरों पर लिखी मृतक की आयु का क्या कारण है ?

गांव वाले कहने लगे कि हमारे गांव में रिवाज़ है कि आदमी सारा दिन काम काज करके, फिर भगवान का भजन कीर्तन, जीव की सेवा करके, रात को भोजन करने के बाद, जब वह सोने जाता है, तब वो अपनी डायरी के अंदर यह बात लिखता है कि आज कितना समय भगवान का सत्संग, भजन - सुमिरन किया।
जब उस आदमी की मृत्यु होती है, तब उसकी लिखी हुई डायरी लेकर उसके किये हुए भजन सिमरन के समय को जोड़ कर हम उसे महीने और साल बनाकर उसे पत्थरों पर लिख देते हैं। क्योंकि इंसान की असली आयु तो वही है जो उसने भगवान के भजन - सुमिरन में बिताई है।

इंसान का बाकी जीवन तो दुनियाँ में ही व्यर्थ चला गया..!!

Address


Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Prerna ni Vaato posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Videos

Shortcuts

  • Address
  • Alerts
  • Videos
  • Claim ownership or report listing
  • Want your business to be the top-listed Media Company?

Share