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ड्रग्स के धंधे में साली की एंट्री. https://prishthabhoomi.com/nawab-maliks-new-attack-on-sameer-wankhede/
08/11/2021

ड्रग्स के धंधे में साली की एंट्री.

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13/10/2021

लखीमपुर खीरी की लड़ाई पहुंची राष्ट्रपति भवन, कांग्रेस का विरोध जारी.

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08/10/2021

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले (Lakhimpur Kheri Violence Case) पर दाखिल जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए

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15/09/2021

बिहार: नग्नता पर उतरी पंचायत...


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17/08/2021

अफगानिस्तान से भारत में इलाज के लिए आई आसरा, एक अफगानी परिवार, ये हमारी पहली एक छोटी सी (5 मिनट ) डॉक्यूमेंट्री आप से निवेदन है की आप इसे जरुर देखे. और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूले .

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कमाई का बंपर मौका: आने वाली है   की बाढ़,   ने किया ये बदलाव.... पढ़िए पूरी खबर ..https://prishthabhoomi.com/bumper-oppo...
17/08/2021

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बाजार नियामक सेबी (SEBI) ने प्रवर्तकों के निवेश के लिए प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) के बाद न्यूनतम लॉक-इन अवधि को कुछ श...

इतिहास के पन्नों में दिल्ली की लंबी और दिलचस्प ऐतिहासिक यात्रा का बयान है इंतिज़ार हुसैन की किताब ‘दिल्ली था जिसका नाम’।...
17/08/2021

इतिहास के पन्नों में दिल्ली की लंबी और दिलचस्प ऐतिहासिक यात्रा का बयान है इंतिज़ार हुसैन की किताब ‘दिल्ली था जिसका नाम’।

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 : 24 अक्टूबर को होगा भारत-पाकिस्तान का महामुकाबला, देखें पूरा शेड्यूलhttps://prishthabhoomi.com/t20-world-cup-india-pak...
17/08/2021

: 24 अक्टूबर को होगा भारत-पाकिस्तान का महामुकाबला, देखें पूरा शेड्यूल

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जो बाइडेन की तालिबान को धमकी, कहा - विनाशकारी नतीजे भुगतने पड़ेंगे.       https://prishthabhoomi.com/joe-bidens-threat-t...
17/08/2021

जो बाइडेन की तालिबान को धमकी, कहा - विनाशकारी नतीजे भुगतने पड़ेंगे.

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 : दिल्ली कैपिटल्स के बिना ही दुबई पहुंचे श्रेयश अय्यर, जानें क्या है वजह...https://prishthabhoomi.com/ipl-2021-shreyas-...
15/08/2021

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IPL 2021: इंडियन प्रीमियर लीग सीजन 14 का दूसरा हिस्सा 19 सितंबर से शुरू होने जा रहा है. आईपीएल 14 के दूसरे हिस्से के लिए दिल्ल.....

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15/08/2021

'छोटे किसान से लेकर जवाहर लाल नेहरू तक, पढ़िए- पीएम मोदी के भाषण की 10 बड़ी बातें...

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर पर लगातार आठवीं बार तिरंगा फहराया. इसके .....

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14/08/2021

पिछली बार के लॉक डाउन में अर्थव्यवस्था को थामने वाला कृषि क्षेत्र इस बार बेदम है। इस बार खेती-किसानी में भी लॉक डाउन के हालात बन गए हैं। किसानों पर चौतरफा वार हो रहा है और ....

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उत्‍तर प्रदेश (UP) के कानपुर में एक 45 वर्षीय मुस्लिम रिक्‍शेवाले (45-year-old Muslim man) को पीट-पीटकर 'जय श्रीराम' बुल...
13/08/2021

उत्‍तर प्रदेश (UP) के कानपुर में एक 45 वर्षीय मुस्लिम रिक्‍शेवाले (45-year-old Muslim man) को पीट-पीटकर 'जय श्रीराम' बुलवाने के आरोप में अरेस्‍ट किए गए तीन आरोपियों को थाने से ही जमानत मिल गई है. पुलिस का कहना है कि ....



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13/08/2021
13/08/2021

लोहिया : एक आख्यान
(Distinguished People talking about Lohia)
रामकिशोर शास्त्री लिखते हैं-30- सोशलिस्ट पार्टी के प्रति मेरा रुझान विद्यार्थी जीवन से ही था। हमारा गांव समाजवादी विचारधारा का केंद्रीय क्षेत्र रहा। सन 1957 में मैंने हाई स्कूल परीक्षा उतीर्ण की । उसी वर्ष उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी ने 10 मई से निमांकित प्रमुख मांगों को लेकर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का भी फैसला किया-
1. बिना मुनाफे की खेती से लगान उठा लिया जाय ।
2. निःशुल्क अनिवार्य और एक तरह की शिक्षा जूनियर हाई स्कूल तक दिया जाय।
3. बेकारों को काम मिले या बेरोजगारी भत्ता।
4. न्यूनतम और अधिकतम आमदनी और खर्च में 1:10 का अनुपात हो।
5. अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग बंद किया जाय।
जब मैंने सोशलिस्ट पार्टी का माँग-पत्र देखा तो मन में सत्याग्रह कर जेल जाने की प्रबल इच्छा हुई। लेकिन यह मेरा दुर्भाग्य कि 10 मई को सत्याग्रह न कर सका। सत्याग्रह करने का इरादा कुछ दिन के लिए टल गया। अगस्त के मध्य में जिला सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री की ओर से एक पत्र प्रकाशित किया गया जिसमें कहा गया था कि उन्नाव जिले से सत्याग्रहियों का एक जत्था नौ सिंतबर को लखनऊ रवाना होगा।
नौ सिंतबर को प्रातः काल हम सत्याग्रही साथी लखनऊ के लिए रवाना हुए। हम लोग 'सोशलिस्ट पार्टी-जिंदाबाद', 'डॉ. लोहिया-जिंदाबाद' आदि नारे लगाते हुए विधानसभा पहुंच गए। हमारे साथ-ही-साथ पुलिस भी चल रही थी। विधानसभा भवन के समक्ष हम लोग गिरफ्तार किए गए और जिला जेल लखनऊ भेज दिए गए।
जेल के फाटक पर पहुंचते ही बड़ी उत्सुकता थी कि जेल देखूं। आखिर जेल के अंदर हम घुसने लगे- मन में कुछ उदासी छा गयी। हमारे अन्य साथी पहले से ही हमारे स्वागत में नारे लगा रहे थे। हम लोग परस्पर गले मिले। सबका परिचय एक-दूसरे से किया गया। दूसरे दिन से ही हमारा कार्यक्रम शुरू हो गया। प्रातःकाल उठकर पढ़ना-पढ़ाना और सत्याग्रह के बारे में जानकारी प्राप्त करना। पता चला कि हम लोग 'क्रिमिनल ला एमेंडमेंट एक्ट 7' के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए हैं और हमारी पेशी 23 सिंतबर को है।
इसी बीच डॉक्टर लोहिया का बयान निकला- 'सोशलिस्ट पार्टी ने उत्तर-प्रदेश से सत्याग्रह वापस ले लिया है। यदि सरकार सत्याग्रहियों को एक महीने के अंदर नहीं छोड़ती तो वे व्यक्तिगत सत्याग्रह करके अपने-आप को गिरफ्तार कराएंगे।' इसका प्रभाव सरकार पर नहीं पड़ा। अन्ततः हम लोगों का मुकदमा 23 तारीख को न हिकर 28 सिंतबर को हुआ और मुझे 4 माह की सजा हुई। अब जेल में मुझे अच्छा लगने लगा। जेल के अंदर मैंने समाजवादी साहित्य और संस्कृत साहित्य का अध्ययन शुरू किया। वहां पर श्रद्धेय राम सागर मिश्र, अश्वनी कुमार शुक्ल, कृष्णनाथ शर्मा, करुणा शंकर दीक्षित के संपर्क में रहकर मैंने बहुत कुछ सीखा। मेरा अपना अनुभव है कि राजनीतिक बंदी यदि जेल में अपने जीवन में सुधार नहीं ला सकता है तो अन्यत्र रहकर सुधार असंभव नहीं तो दुरूह अवश्य है। इस तरह जेल में लगभग दो माह बीत गए। इसी बीच डॉ. लोहिया का एक व्यक्तव्य निकला कि वे दो नवंबर को व्यक्तिगत सत्याग्रह करेंगे।
दो नवंबर को किसी ने सूचना दी, 'आप लोगों के कोई बड़े नेता जेल में आ रहे हैं।' देखा, डॉ. लोहिया चले आ रहे हैं। सब लोग चिल्ला उठे- 'डॉ. लोहिया-जिंदाबाद', 'सोशलिस्ट पार्टी-जिंदाबाद।' डॉ. साहब को सबने प्रणाम किया। मैंने अपने को धन्य समझा। आज मेरे समक्ष वह व्यक्तित्व है जिसने अपने वंश को नष्ट करने वाले ब्रह्मराक्षस को मात दिया है। डॉ. साहब बैठ गए। सबका कुशलक्षेम पूछा और स्नान कर खाने का आदेश दिया। अपराह्न डॉ. साहब का बिस्तर आदि भी आ गया। दूसरे दिन शीघ्रातिशीघ्र नित्य-कर्म से निवृत हुआ। दिन-भर डॉ. साहब के पास ही रहा। सायं काल सभा का आयोजन हुआ। डॉ. साहब ने बताया -सत्याग्रह कोई खेल नहीं है। यह जालिम के सुधार की औषधि है। सत्याग्रही को सदैव यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उसके कार्यों से जनमानस में कैसा असर पड़ता हैं। पहले दिन का विषय सत्याग्रह तक ही सीमित रहा। इसी तरह नित्य सायंकाल सभा होती थी। डॉ. लोहिया कुछ न कुछ अवश्य बताते। कभी-कभी व्यक्तिगत बातें भी बता देते थे। 12 तारीख को डॉ. साहब के दांत में भीषण दर्द हुआ। हम लोग बेचैन थे। डॉ. लोहिया कार में बैठकर मेडिकल कॉलेज गए। ईश्वर की कृपा से ठीक हो गए। इसके पूर्व आचार्य कृपलानी डॉ. लोहिया से मिलने आए। किन्तु अधिकारियों के हठ के कारण मुलाकात न हो सकी। कारण यह था कि डॉ. साहब की मुलाकात उनके बैरक में ही होती थी। किन्तु उस समय ऐसा नहीं किया गया। आचार्य कृपलानी को अनुमति नहीं मिली कि वे डॉ. साहब से उनके कमरे में मिल सकें। 16 दिसंबर को जेल के भीतर ही हम लोगों ने 'लोहिया दिवस' मनाया। 17 नवंबर को श्री रामनारायण त्रिपाठी भी उनसे मिलने आये। किन्तु उस समय उनके कार्य पार्टी-हित में न होने के कारण डॉ. साहब ने बात नहीं की। त्रिपाठी जी पार्टी के आदेश न होने पर भी अमरीका चले गए थे।
जारी.......

#रामकिशोर_शास्त्री

#लोहिया_एक_आख्यान

#डॉ_लोहिया

13/08/2021

लोहिया : एक आख्यान
(Distinguished People talking about Lohia)
राजनारायण जी लिखते हैं-29- शरद ऋतु की रात थी। बनारस में मणिकर्णिका घाट के सामने दूर गंगा में दशाश्वमेध घाट से चलकर बजड़ा रुक गया। रात को 11 बजे से 3 बजे तक बजड़े की छत पर खुली चांदनी में दरी पर बिछी चादर पर दो-चार मसनद थे।

तारों का वर्णन था। सप्तऋषि मंडल कहाँ है, शुक्र कहाँ है, कुम्भ स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, विषयों की चर्चा थी। देश-विदेश की राजनीति, धर्म, समाजशास्त्र और दार्शनिक मुद्दों पर गंभीर विचार-विनिमय था किंतु लोहिया की दृष्टि मणिकर्णिका घाट पर गड़ी रहती थी। बीच-बीच में गांधी, राम, कृष्ण की चर्चा विचारों को उलझाये रहती थी। सन 52 के सार्वजनिक निर्वाचन में राम के प्रभाव-क्षेत्र में समाजवादी दल, कृष्ण के प्रभाव क्षेत्र में धर्म-सम्प्रदाय प्रधान पार्टियां, शंकर के प्रभाव-क्षेत्र में कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के बाद आयी, ऐसा क्यों? प्रश्न का उत्तर ढूंढा ही जा रहा था कि बीच ही में डॉ. लोहिया बोल उठे- 'देखो, देखो, चिता पर घी छोड़ा जा रहा है। मालूम होता है, यह धनी घर का मुर्दा है। पहले जी चिता थी, उसमें ऊंची लहर नहीं उठी थी, इतनी देर तक लाश जली भी नहीं थी, बेचारा किसी गरीब घर का था। अधजले शरीर को ही नदी में फेंक दिया गया। तुम्हारे घर का मुर्दा कहाँ जलाया जाता है राजनारायण?'
'डॉ. साहब ! हमारे यहां के लोग तो हरिश्चन्द्र घाट पर जलाए जाते हैं। काशीराज के पारिवारिक लोग। सामने मंच बना है, उसी बगल में मालवीय जी की भी चिता लगी थी डॉ. साहब।'
'क्या तुम लोगों ने मालवीय जी को जलते देखा था?'
'हां, मैंने काशी विश्वविद्यालय से मालवीय जी के शव को ले चलने वाली टिकटी के बांस से कंधा हटाया ही नहीं। सड़कों पर बहुत भीड़ थी। फूल और माला का बोझ बढ़ता जाता था, उसे उतार-उतारकर हल्का किया जाता था। चंदन की लकड़ी पर मालवीय जी का शव रखा गया था। कनस्तर का कनस्तर घी डाला गया था। लोहबान, धूप और अन्य सुगंधित वस्तुएं डाली गयी थीं। मालवीय जी के शव को जलाने में बहुत देर न लगी'
'भारत ऐसे गरीब देश में लाश जलाया जाना भी एक समस्या बन जाता है। गरीब घर के मुर्दे अच्छी तरह से जलते भी नहीं। बेचारों के पास मुर्दों को जलाने के लिए लकड़ी भी नहीं । घी और चंदन की बात कहां!'
'आज हमारा देश इतना गरीब हो गया है, दोनों में धन और विचार से अकिंचन हैं, न तो समृद्धि बढ़ रही है और न विचारों की सड़ान दूर हो रही है। देश कैसे बनेगा? प्रधानमंत्री पर 30 हजार रुपये रोज खर्च हों, लोग तीन आना-चार आना प्रति व्यक्ति पर गुजर करें। इस स्थिति को फौरन बदलना है। कैसे बदलें? मन-मस्तिष्क की दरिद्रता और धन-दौलत की दरिद्रता जब तक दोनों दूर नहीं होंगे तब तक पिछड़े रहोगे। क्या तुम्हारी पार्टी यह काम करेगी? करेगी कहते हो। कहाँ हैं तुम्हारे लोग? कितने लोग हैं, जो अपने को मिटाकर दूसरों के हित की रक्षा करें ? क्यों नहीं तुम्हारे लोग इस बात का आंदोलन करते कि गरीबों के मुर्दों को बिजली से जलाये जाने का हर जगह सरकारी स्तर पर प्रबंध हो, जिससे गरीब लोग आसानी से बिना किसी चिंता के पूरी तरह जलाए जा सकें और नदियों का पानी भी स्वच्छ रहे। हाँ, ठीक है, क्या ठीक है? तुम इसका आंदोलन करोगे। याद रखो, मेरा शव वैज्ञानिक ढंग से बिजली से जलाया जाए। मैं चाहता हूँ कि मेरे मरने के बाद भी मेरे शव से गरीबों को प्रेरणा मिले। और धनी और गरीब के शव को जलाने का वह फर्क मीट जाए कि एक घी और चंदन से जले और दूसरे का शव अधजला ही पानी में बहा दिया जाए। मैं मरकर भी अमीर और गरीब का फर्क मिटाऊं इसलिए चाहूंगा कि तुम लोग साधारण आदमी की तरह मेरी लाश जलाना जिससे गरीबों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की भावना जागे और विज्ञान की नवीन मान्यताओं को अपनाकर पुरानी रूढ़ियों और कुसंस्कारो के बंधन से समाज मुक्त होकर समता और समृद्धि की ओर बढ़े। इस प्रकार बिजली से शव जलाए जाने पर ब्राह्मणवाद और जातिवाद के मिटने की प्रक्रिया शुरू होगी और कर्मकांड के व्यामोह से हिन्दू समाज मुक्त होगा।'
'तीन बज रहे हैं डॉ. साहब । ठंडक भी बढ़ रही है। अब यहां से चलिए, निवासस्थान पर आराम कीजिए।' मैंने कहा।
'ठीक कहते हो।' कहकर सदरी उठाए, कंधे पर रखे और चल दिए। पीछे हम लोग भी चल दिए।
#राजनारायण

#लोहिया_एक_आख्यान

#डॉ_लोहिया

अपमानित किया गया है और राज्‍यसभा में कल शारीरिक रूप से पीटा गया ;- Rahul Gandhi      https://prishthabhoomi.com/rahul-ga...
12/08/2021

अपमानित किया गया है और राज्‍यसभा में कल शारीरिक रूप से पीटा गया ;- Rahul Gandhi


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11/08/2021

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10/08/2021

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10/08/2021

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09/08/2021

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09/08/2021

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Climate Change Report : धरती का तापमान बढ़ने यानी ग्लोबल वार्मिंग का खतरा (Global Warming) हमारी आशंकाओं से भी कहीं ज्यादा गहरा है. संयुक्त....

कल से खुलेंगे दिल्ली के साप्ताहिक बाजार, स्ट्रीट वेंडर्स को बड़ी राहत   https://prishthabhoomi.com/delhis-weekly-markets...
08/08/2021

कल से खुलेंगे दिल्ली के साप्ताहिक बाजार, स्ट्रीट वेंडर्स को बड़ी राहत

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अब मुझे उम्मीद है कि वे नरेंद्र मोदी स्टेडियम और जेटली स्टेडियम का भी नाम बदल सकते हैं. सभी राजनेताओं के नाम हटा दें.......
07/08/2021

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भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम के प्रदर्शन के बाद नरेंद्र मोदी ने देश के सर्वोच्‍च खेल पुरस्‍कार 'खेल रत्‍न' को हॉक....

Bihar Coronavirus Update: आज से अनलॉक-5...खुले स्कूल-कोचिंग संस्थान  https://prishthabhoomi.com/bihar-coronavirus-update...
07/08/2021

Bihar Coronavirus Update: आज से अनलॉक-5...खुले स्कूल-कोचिंग संस्थान


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बिहार में कोरोना संक्रमण (Bihar Coronavirus Update) के मामलों में गिरावट का दौर जारी है. इसी के मद्देनजर नीतीश कुमार सरकार (Nitish Kumar)....

Rahul Gandhi Poetry On Farmers: ताखेत-खलिहान ‘हमारे दो' के.. फिर किसान का क्‍या?   https://prishthabhoomi.com/rahul-gand...
06/08/2021

Rahul Gandhi Poetry On Farmers: ताखेत-खलिहान ‘हमारे दो' के.. फिर किसान का क्‍या?

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किसानों का प्रदर्शनकारी इन दिनों दिल्ली के जंतर मंतर पर सांकेतिक 'किसान संसद' चला रहे हैं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्...

02/08/2021

लोहिया : एक आख्यान
(Distinguished People talking about Lohia)
राजनारायण जी लिखते हैं-28- लोहिया जी एक दिन करीब ग्यारह बजे आ गए। 'निकलो और बाहर घूमों।' दो घंटे तक घूमे। 'तुम्हारे मुल्क में जात-पात की दीवार जब तक रहेगी समाजवाद क्या जनतंत्र का बचना भी मुश्किल है। तुम्हारे दल में भी चितपावन ब्राह्मणों का गट है। आपस में लड़ते हैं। मगर अंत में दूसरे के मुकाबिल एक हो जाते हैं। वशिष्ट परंपरा को कैसे काटोगे। पिछडो को जब तक ठोस ढंग से विशेष अवसर देकर नहीं बढ़ाओगे तब तक सब विकास की बातें व्यर्थ हैं। नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा आ गई। अगर देश में गिरावट का क्रम यही जारी रहा तो इंदिरा का कोई बेटा भी इंदिरा के बाद आ सकता है। राजनीति में वंशवाद नेहरू ने चला दिया है। इसे रोकना है। लोकशाही बिना लोकभाषा कैसे चलेगी? 'अंग्रेजी हटाओ' आंदोलन को तेज करना है। अंग्रेजी के रहते पिछड़ो के हाथ में सच्ची ताकत नहीं जा सकती। यह पेट भी मारता है। दिमाग भी मारता है। चरण सिंह क्या करेगा? क्या आने वचन को चबा जाएगा? दो रूपया तक लगान देने वाले किसानों का सम्पूर्ण लगान माफ नहीं करेगा? चाहे जो हो, यदि चरण सिंह वचन तोड़ते हैं तो अपने लोगों को सरकार से हटाना होगा। तुम्हारे यहां भी तो लोग अजीब हैं। एकबार कुर्सी पकड़ लेते हैं तो छोड़ते नहीं। देखो, बिहार में गोलीकांड की न्यायिक जांच तिवारी ने नहीं कराई । विन्देश्वरी मंडल हमारी बात मान गए होते तो वह चमक जाते। देखो, आज हमारे लोगों में हिम्मत की कमी है। हिम्मत के साथ आदमी को धीरज लेकर आगे बढ़ना चाहिए। पथ ठीक है तो पथिक को राह के संकट से घबराकर पथ नहीं छोड़ना चाहिए। अकेले भी रहो तो भी चलो । देखो ! अपने लोगों को समझाओ । यह सरकार न तो गरीबी हटा सकती है, न बेकरी दूर कर सकती हैं। इसकी योजना मुट्ठी भर लोगों के लिए है। इसने खपत की आधुनिकता बढ़ाई है, उपज की नहीं। चंद लोगों को योरोपियकरण हुआ है, जैसे वाईस चांसलर, सचिव, कलक्टर इत्यादि , मगर खेत मजूर, सामान्य कामगार, चतुर्थ श्रेणी व तृतीय श्रेणी के सरकारी कर्मचारी, इन सबके लिए सरकार के पास योजना नहीं हैं। इसने नीचे के तल्ले उठाने की जगह ऊपर का तल्ला उठाया है। यही कारण है कि धनी और गरीब की खाई चौड़ी हो गयी है। तुम्हारा ही एक मुल्क है जिसकी सीमा घटी है। 15 अगस्त 1947 के बाद से तुम्हारा मुल्क सिकुड़ा है। सरकार की अपनी कोई विदेश नीति नहीं है। वह पारी-पारी से अमरीका-रूस की ओर देखती, भूकती और उनके दबाव में काम करती है। इस समय कोई ऐसा दल हो जो सभी असंतोषों को बटोरे और सभी हरिजनों, पिछड़ों, गरीब मुसलमानों और गरीब ठाकुर, ब्राह्मण-बनियों को एक खेमे में लाकर मौजूदा सरकार को धराशायी करे।
#राजनारायण

#लोहिया_एक_आख्यान

#डॉ_लोहिया

01/08/2021

लोहिया : एक आख्यान
(Distinguished People talking about Lohia)
राजनारायण जी लिखते हैं-27- डॉक्टर लोहिया की प्रतिभा चतुर्दिक थी। अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शन, भाषाविज्ञान, राजनीतिशास्त्र सभी के पंडित थे। जब वे अध्यात्मवादियों से बात करते थे तो अध्यात्मवादी उन्हें भौतिकवादी मानता था और जब भौतिकवादियों से तर्क करते थे तो भौतिकवादी उन्हें अध्यात्मवादी मानता था। लोहिया जी जड़ और चेतन, दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते थे। लोगों का चेतन प्रथम, जड़ बाद में, या जड़ प्रथम, चेतन बाद में, इस विवाद में पड़ना अनावश्यक तथा निरर्थक है। वे ऐसा समझते थे। यही कारण है कि लोहिया शुद्ध मानववादी थे। वे मानव से प्रेम करते थे। इसलिए मानव से मानव की दूरी समाप्त कर समता तथा समृद्धि का समाज बनाने के लिए निरंतर व्यग्र रहते थे।

कश्मीर में हिन्दू-मुश्लिम तनाव हो गया था। तनाव का सिलसिला एक कश्मीरी ब्राह्मण की लड़की और मुसलमान का लड़का दोनों के बीच हुई शादी से शुरू हुआ था। लड़की बालिग थी, लड़का भी बालिग था। दोनों का परस्पर प्रेम, विवाह-संबंध में परिणत हो गया। कश्मीर में कश्मीरी ब्राह्मण की लड़की और मुसलमान लड़का में एक नहीं अनेकों शादियां पहले हो चुकी थी।

मगर इस शादी का भयंकर बवंडर खड़ा किया गया। वास्तविकता तो यह थी कि कश्मीरी ब्राह्मण ने इस शादी का बहाना बनाकर साम्प्रदायिक झगड़ा खड़ा किया था। इसके पीछे शुद्ध आर्थिक संघर्ष था। अभी तक कश्मीर में सभी बड़े-बड़े सरकारी ओहदों पर तथा सरकारी नौकरियों में कश्मीरी ब्राह्मण भरे थे। अब मुसलमानों में भी आबादी के अनुपात में पढ़े-लिखे लोगों को नौकरी में जगह मिले, इस मांग को लेकर नव-चेतना आयी। इस चेतना का सीधा असर कश्मीरी ब्राह्मणों पर पड़ा और उसने आर्थिक संघर्ष को साम्प्रदायिकता का रूप दे दिया। लोहिया जी ने मुझे कश्मीर जाने और सच्ची घटना का पता लगाने का आदेश दिया था। मैं कश्मीर से लौटकर दिल्ली आया था । रपट लिखकर लोहिया जी को देने के लिए तैयार किया था। उसी अवसर पर वे 95, साउथ एवेन्यू में आ गए, बोले - 'चलो आज तुमको बाहर खाना खिलाएंगे।' मैंने कहा- 'डॉ. साहब 11 बजे हैं। तेज धूप है। खाना जल्दी ही घर बन जाएगा। होटल में क्यों चलते हैं।' वे रूक गए। करीब 3 घंटे रुके। कश्मीर से लेकर देश-विदेश और पार्टी की आंतरिक स्थिति पर व्यापक चर्चा हुई। देश और समाज के लिए वो हमेशा चिंतित रहते थे।
#राजनारायण

#लोहिया_एक_आख्यान

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01/08/2021

लोहिया : एक आख्यान
(Distinguished People talking about Lohia)
रेवती कांत सिंह लिखते हैं-26- डॉक्टर साहब अपने व्यवहार से किसी को भी मोह लेते थे। और, वह भी इस प्रकार से कि वहआदमी हमेशा के लिए उनका श्रद्धालु हो जाए। इसका बहुत बड़ा प्रमाण मिला था अक्टूबर, 1967 में, डॉक्टर साहब की बीमारी के समय। रीवां की वह पानवाली तथा दिल्ली का वह टैक्सी ड्राइवर। डॉक्टर साहब को कम-से-कम मैंने कभी पान खाते नहीं देखा था। फिर भी आदमी तो मौजवाले थे न। मौज में आ गये और कभी रीवां में एक बूढ़ी पानवाली से पान खा लिया। लेकिन वह पान खाना भी ऐसा जैसे विदुर के घर कृष्ण ने साग खा लिया। वह पानवाली हो गई डॉक्टर साहब की भक्त। जब डॉक्टर साहब की बीमारी की खबर उसने सुनी तो एकमात्र अपनी रोटी का सहारा - दुकान बंद करके चल पड़ी दिल्ली की ओर । दिल्ली के उस मनहूस विलिंग्डन अस्पताल के हाते में, आंगन में, वह बूढ़ी पानवाली बैठी रहती थी और बराबर हाथ जोड़कर डॉक्टर साहब की जिंदगी के लिए भगवान से प्रार्थना करती रहती थी। जब कोई कह देता कि डॉक्टर साहब को अभी कुछ आराम है तो खुशी से उसका चेहरा चमक उठता, और यदि कोई बीमारी बढ़ जाने की खबर देता तो उसका चेहरा उत्तर जाता था । डॉक्टर साहब ने अपने को आम जनता में बिल्कुल एकाकार कर लिया था।

यद्यपि इस प्रकार के हजारों उदाहरण उनकी जिंदगी में मिलते हैं, जो यों तो अपने-आप में अत्यंत ही महत्वहीन लगते हैं, मगर उन छोटी-छोटी बातों से ही आदमी का व्यक्तित्व निखरता है। 1965 में 10 अगस्त को गिरफ्तार होकर हम लोग हजारीबाग केंद्रीय कारावास में पहुंचे थे। चूंकि डॉक्टर साहब की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सर्वोच्च न्यायालय में विचारार्थ स्वीकृत हो चुकी थी, इसलिए 20 अगस्त को डॉक्टर साहब को हजारीबाग से दिल्ली ले जाया गया। जब वे वार्ड से विदा होने लगे तो हम राजनीतिक कैदियों से मिलने से पहले, जिन्हें जेल की भाषा में 'बाबू कैदी' कहा जाता है, उन्होंने परिचारकों से, जो बाबू कैदियों की सेवा के लिए साधारण कैदियों में से ही नियुक्त होते हैं, मिलना पसंद किया। सबसे पहले वे उस सेल में गए, जिसमें वार्ड का सफैया - योगी हरि रहता था। डॉक्टर साहब को देखकर जैसे ही योगी अपने सेल से बाहर आया, डॉक्टर साहब ने उसे पकड़कर अपनी छाती से लगा लिया और कहने लगे - 'जा रहा हूँ, पता नहीं फिर हम लोगों की भेंट होगी कि नहीं।' योगी डॉक्टर साहब के आलिंगन में खड़ा अविरल रो रहा था और डॉक्टर साहब उसकी पीठ थपथपा रहे थे। लगता था जैसे परिवार के दो सदस्य आपस में बिछुड़ रहे हों। उसके बाद डॉक्टर साहब ने सभी परिचरों - पनिहा, रसोइया, पहरा, मेट- को गले लगाया और बाद में हम लोगों की बारी आई, जिनमें किसी की पीठ थपथपाई, किसी को प्यार की चपत लगाई तो किसी से सिर्फ नमस्कार ही किया।

#रेवती_कांत_सिंह

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