27/05/2022
भाभी ब्याह कर आई थी तो मुश्किल से पंद्रह बरस की होगी। बढवार भी तो पूरी नहीं हुई थी। भैया की सूरत से ऐसी लरजती थी जैसे कसाई से बकरी। मगर सालभर के अंदर ही वो जैसे मुँह-बंद कली से खिलकर फूल बन गई। आँखों में हिरनों जैसी वहशत दूर होकर गरूर और शरारत भर गई।
भाभी आजाद फिजाँ में पली थी। हिरनियों की तरह कुलाँचें भरने की आदी थी, मगर ससुराल और मैका दोनों तरफ से उस पर कड़ी निगरानी थी और भैया की भी यही कोशिश थी कि अगर जल्दी से उसे पक्की गृहस्थन न बना दिया गया तो वो भी अपनी बड़ी बहन की तरह कोई गुल खिलाएगी। हालाँकि वो शादीशुदा थी। लिहाजा उसे गृहस्थन बनाने पर जुट गए।
चार-पाँच साल के अंदर भाभी को घिसघिसा कर वाकई सबने गृहस्थन बना दिया। दो-तीन बच्चों की माँ बनकर भद्दी और ठुस्स हो गई। अम्मा उसे खूब मुर्गी का शोरबा, गोंद सटूरे खिलातीं। भैया टॉनिक पिलाते और हर बच्चे के बाद वो दस-पंद्रह पौंड बढ़ जाती।
आहिस्ता-आहिस्ता उसने बनना-सँवरना छोड़ ही दिया। भैया को लिपस्टिक से नफरत थी। आँखों में मनों काजल और मस्करा देखकर वो चिढ जाते। भैया को बस गुलाबी रंग पसंद था या फिर लाल। भाभी ज्यादातर गुलाबी या सुर्ख ही कपडे पहना करती थी। गुलाबी साड़ी पर सुर्ख (लाल) ब्लाउज या कभी गुलाबी के साथ हलका गहरा गुलाबी।
शादी के वक्त उसके बाल कटे हुए थे। मगर दुल्हन बनाते वक्त ऐसे तेल चुपड़कर बाँधे गए थे कि पता ही नहीं चलता था कि वो पर-कटी मेम है। अब उसके बाल तो बढ गए थे मगर पै-दर-पै बच्चे होने की वजह से वो जरा गंजी-सी हो गई थी। वैसे भी वो बाल कसकर मैली धज्जी-सी बाँध लिया करती थी। उसके मियाँ को वो मैली-कुचैली ऐसी ही बड़ी प्यारी लगती थी और मैके-ससुराल वाले भी उसकी सादगी को देखकर उसकी तारीफों के गुन गाते थे। भाभी थी बड़ी प्यारी-सी, सुगढ नक्श, मक्खन जैसी रंगत, सुडौल हाथ-पाँव। मगर उसने इस बुरी तरह से अपने आपको ढीला छोड़ दिया था कि खमीरे आटे की तरह बह गई थी।
😃 उफ! भैया को चैन और स्कर्ट से कैसी नफरत थी। उन्हें ये नए फैशन की बदन पर चिपकी हुई कमीज से भी बड़ी घिन आती थी। तंग मोरी की शलवारों से तो वो ऐसे जलते थे कि तौबा! खैर भाभी बेचारी तो शलवार-कमीज के काबिल रह ही नहीं गई थी। वो तो बस ज्यादातर ब्लाउज और पेटीकोट पर ड्रेसिंग गाउन चढाए घूमा करती। कोई जान-पहचान वाला आ जाता तो भी बेतकल्लुफी से वही अपना नेशनल ड्रेस पहने रहती। कोई औपचारिक मेहमान आता तो अमूनन वो अंदर ही बच्चों से सर मारा करती। जो कभी बाहर जाना पड़ता तो लिथड़ी हुई सी साड़ी लपेट लेती। वो गृहस्थन थी, बहू थी और चहेती थी, उसे बन-सँवरकर किसी को लुभाने की क्या जरूरत थी! और भाभी शायद यूँ ही गौडर बनी अधेड़ और फिर बूढी हो जाती। बहुएँ ब्याह कर लाती, जो सुबह उठकर उसे झुककर सलाम करतीं, गोद में पोता खिलाने को देतीं। मगर खुदा को कुछ और ही मंजूर था।
शाम का वक्त था, हम सब लॉन में बैठे चाय पी रहे थे। भाभी पापड़ तलने बावर्चीखाने में गई थी। बावर्ची ने पापड़ लाल कर दिए, भैया को बादामी पापड़ भाते हैं। उन्होंने प्यार से भाभी की तरफ देखा और वो झट उठकर पापड़ तलने चली गई। हम लोग मजे से चाय पीते रहे।
बिखरे हुए बालों का गोल-मोल सर और बड़ी-बड़ी आँखें ऊपर से झाँकीं। एक छलाँग में भैया मुँडेर पर थे और मुजरिम के बाल उनकी गिरफ्त में।
‘ओह!’ एक चीख गूँजी और दूसरे लम्हे भैया ऐसे उछलकर अलग हो गए जैसे उन्होंने बिच्छू के डंक पर हाथ डाल दिया हो या अंगारा पकड़ लिया हो।
‘सारी…आई एम वेरी सॉरी…’ वो हकला रहे थे। हम सब दौड़ कर गए . देखा तो मुंडेर के उस तरफ़ एक दुबली नागिन-सी लड़की सफेद ड्रेन टाइप और नींबू के रंग का स्लीवलेस ब्लाउज पहने अपने बालों में पतली-पतली उँगलियाँ फेरकर खिसियानी हँसी हँस रही थी और फिर हम सब हँसने लगे।
भाभी पापडों की प्लेट लिए अंदर से निकली और बगैर कुछ पूछे ये समझकर हँसने लगी कि जरूर कोई हँसने की बात हुई होगी। उसका ढीला-ढाला पेट हँसने से फुदकने लगा और जब उसे मालूम हुआ कि भैया ने शबनम को लड़का समझकर उसके बाल पकड़ लिए तो और भी जोर-जोर से कहकहे लगाने लगी कि कई पापड़ के टुकडे घास पर बिखर गए। शबनम ने बताया कि वो उसी दिन अपने चचा खालिद जमील के यहाँ आई है। अकेले जी घबराया तो फुटबॉल ही लुढकाने लगी। जो इत्तिफाकन भैया की प्याली पर आ कूदी।
शबनम भैया को अपनी तीखी मस्कारा लगी आँखों से घूर रही थी। भैया मंत्र-मुग्ध सन्नाटे में उसे तक रहे थे। एक करंट उन दोनों के दरमियान दौड़ रहा था। भाभी इस करंट से कटी हुई जैसे कोसों दूर खड़ी थी। उसका फुदकता हुआ पेट सहमकर रुक गया। हँसी ने उसके होंठों पर लड़खड़ाकर दम तोड़ दिया। उसके हाथ ढीले हो गए। प्लेट के पापड़ घास पर गिरने लगे। फिर एकदम वो दोनों जाग पडे और ख्वाबों की दुनिया से लौट आए।
शबनम फुदककर मुंडेर पर चढ गई।
‘आइए चाय पी लीजि’, मैंने ठहरी हुई फिजाँ को धक्का देकर आगे खिसकाया।
एक लचक के साथ शबनम ने अपने पैर मुंडेर के उस पार से इस पार झुलाए। शबनम का रंग पिघले हुए सोने की तरह लौ दे रहा था। उसके बाल स्याह भौंरा थे। मगर आँखें जैसे स्याह कटोरियों में किसी ने शहद भर दिया हो। नीबू के रंग के ब्लाउज का गला बहुत गहरा था। होंठ तरबूजी रंग के और उसी रंग की नेल पॉलिश लगाए वो बिलकुल किसी अमेरिकी इश्तिहार का मॉडल मालूम हो रही रही थी। भाभी से कोई फुट भर लंबी लग रही थी, हालाँकि मुश्किल से दो इंच ऊँची होगी। उसकी हड्डी बड़ी नाजुक थी। इसलिए कमर तो ऐसी कि छल्ले में पिरो लो।
भैया कुछ गुमसुम से बैठे थे। भाभी उन्हें कुछ ऐसे ताक रही थी जैसे बिल्ली पर तौलते हुए परिंदे को घूरती है कि जैसे ही पर फड़फडाए बढकर दबोच ले। उसका चेहरा तमतमा रहा था, होंठ भिंचे हुए थे, नथुने फड़फडा रहे थे।
इतने में मुन्ना आकर उसकी पीठ पर धम्म से कूदा। वो हमेशा उसकी पीठ पर ऐसे ही कूदा करता था जैसे वो गुदगुदा-सा तकिया हो। भाभी हमेशा ही हँस दिया करती थी मगर आज उसने चटाख-चटाख दो-चार चाँटे जड़ दिए।
शबनम परेशान हो गई।
‘अरे…अरे…अरे रोकिए ना’ उसने भैया का हाथ छूकर कहा, ‘बड़ी गुस्सावर हैं आपकी मम्मी। उसने मेरी तरफ मुँह फेरकर कहा।
इंट्रोडक्शन कराना हमारी सोसायटी में बहुत कम हुआ करता है और फिर भाभी का किसी से इंट्रोडक्शन कराना अजीब-सा लगता था। वो तो सूरत से ही घर की ब लगती थी। शबनम की बात पर हम सब कहकहा मारकर हँस पडे। भाभी मुन्ने का हाथ पकड़कर घसीटती हुई अंदर चल दी।
‘अरे ये तो हमारी भाभी है’ मैंने भाभी को धम्म-धम्म जाते हुए देखकर कहा।
‘भाभी?’ शबनम हैरतज़दा होकर बोली।
‘इनकी, भैया की बीवी।’
‘ओह!’ उसने संजीदगी से अपनी नजरें झुका लीं। ‘मैं…मैं…समझी’ उसने बात अधूरी छोड़ दी।
‘भाभी की उम्र तेईस साल है।’ मैंने वजाहत (स्पष्टता) की।
‘मगर, डोंट बी सिली…।’ शबनम हँसी, भैया भी उठकर चल दिए।
‘खुदा की कसम!’
‘ओह…जहालत…।’
‘नहीं…भाभी ने मारटेज से पंद्रह साल की उम्र में सीनियर कैम्ब्रिज किया था।’
‘तुम्हारा मतलब है ये मुझसे तीन साल छोटी हैं। मैं छब्बीस साल की हूँ।’
‘तब तो कतई छोटी हैं।’
‘उफ, और मैं समझी वो तुम्हारी मम्मी हैं। दरअसल मेरी आँखें कमजोर हैं। मगर मुझे ऐनक से नफरत है। बुरा लगा होगा उन्हें?’
‘नहीं, भाभी को कुछ बुरा नहीं लगता।’
‘च:…बेचारी!’
‘कौन…कौन भाभी?’ न जाने मैंने क्यों कहा।
‘भैया अपनी बीवी पर जान देते हैं।’ सफिया ने बतौर वकील कहा।
‘बेचारी की बहुत बचपन में शादी कर दी गई होगी?’
‘पच्चीस-छब्बीस साल के थे।’
‘मगर मुझे तो मालूम भी न था कि बीसवीं सदी में बगैर देखे शादियाँ होती हैं। शबनम ने हिकारत से मुस्कराकर कहा।’
‘तुम्हारा हर अंदाजा गलत निकल रहा है…भैया ने भाभी को देखकर बेहद पसंद कर लिया था, तब शादी हुई थी। मगर जब वो कँवल के फूल जैसी नाजुक और हसीन थीं’
‘फिर ये क्या हो गया शादी के बाद?’
‘होता क्या… भाभी अपने घर की मल्लिका हैं, बच्चों की मल्लिका हैं। कोई फिल्म एक्ट्रेस तो हैं नहीं। दूसरे भैया को सूखी-मारी लड़कियों से घिन आती है। मैंने जानकर शबनम को चोट दी। वो बेवकूफ न थी।’
‘भई चाहे कोई मुझसे प्यार करे या न करे। मैं तो किसी को खुश करने के लिए हाथी का बच्चा कभी न बनूँ…और मुआफ करना, तुम्हारी भाभी कभी बहुत खूबसूरत होंगी मगर अब तो…।’
धाँय से फुटबाल आकर ऐन भैया की प्याली में पड़ी। हम सब उछल पडे। भैया मारे गुस्से के भन्ना उठे।
‘ऊँह, आपका नजरिया भैया से अलग है।’ मैंने बात टाल दी और जब वो बल खाती सीधी-सुडौल टाँगों को आगे-पीछे झुलाती, नन्हे-नन्हे कदम रखती मुँडेर की तरफ जा रही थी, भैया बरामदे में खडे थे। उनका चेहरा सफेद पड़ गया था और बार-बार अपनी गुद्दी सहला रहे थे। जैसे किसी ने वहाँ जलती हुई आग रख दी हो। चिडिया की तरह फुदककर वो मुँडेर फलाँग गई। पल भर को पलटकर उसने अपनी शरबती आँखों से भैया को तौला और छलावे की तरह कोठी में गायब हो गई।
भाभी लॉन पर झुकी हुई तकिया आदि समेट रही थी। मगर उसने एक नजर न आने वाला तार देख लिया। जो भैया और शबनम की निगाहों के दरमियान दौड़ रहा था।
एक दिन मैंने खिड़की में से देखा। शबनम फूला हुआ स्कर्ट और सफेद खुले गले का ब्लाउज पहने पप्पू के साथ सम्बा नाच रही थी। उसका नन्हा-सा पिकनीज कुत्ता टाँगों में उलझ रहा था। वो ऊँचे-ऊँचे कहकहे लगा रही थी। उसकी सुडौल साँवली टाँगें हरी-हरी घास पर थिरक रही थीं। काले-रेशमी बाल हवा में छलक रहे थे। पाँच साल का पप्पू बंदर की तरह फुदक रहा था। मगर वो नशीली नागिन की तरह लहरा रही थी। उसने नाचते-नाचते नाक पर ऍंगूठा रखकर मुझे चिडाया। मैंने भी जवाब में घूँसा दिखा दिया। मगर फौरन ही मुझे उसकी निगाहों का पीछा करके मालूम हुआ कि ये इशारा वो मेरी तरफ नहीं कर रही थी।
भैया बरामदे में अहमकों की तरह खडे गुद्दी सहला रहे थे और वो उन्हें मुँह चिडाकर जला रही थी। उसकी कमर में बल पड़ रहे थे। कूल्हे मटक रहे थे। बाँहें थरथरा रही थीं। होंठ एक-दूसरे से जुदा लरज रहे थे। उसने साँप की तरह लप से जुबान निकालकर अपने होंठों को चाटा। भैया की आँखें चमक रही थीं और वो खडे दाँत निकाल रहे थे। मेरा दिल धक से रह गया। …भाभी गोदाम में अनाज तुलवाकर बावर्ची को दे रही थी।
‘शबनम की बच्ची’ मैंने दिल में सोचा। …मगर गुस्सा मुझे भैया पर भी आया। उन्हें दाँत निकालने की क्या जरूरत थी। इन्हें तो शबनम जैसे काँटों से नफरत थी। इन्हें तो ऍंगरेजी नाचों से घिन आती थी। फिर वो क्यों खड़े उसे तक रहे थे और ऐसी भी क्या बेसुधी कि उनका जिस्म सम्बा की ताल पर लरज रहा था और उन्हें खबर न थी।
इतने में ब्वॉय चाय की ट्रे लेकर लॉन पर आ गया… भैया ने हम सबको आवाज दी और ब्वॉय से कहा भाभी को भेज दे।
रस्मन शबनम को भी बुलावा देना पडा। मेरा तो जी चाह रहा था कतई उसकी तरफ से मुँह फेरकर बैठ जाऊँ मगर जब वो मुन्ने को पद्दी पर चढाए मुँडेर फलाँगकर आई तो न जाने क्यों मुझे वो कतई मासूम लगी। मुन्ना स्कार्फ लगामों की तरह थामे हुए था और वो घोडे की चाल उछलती हुई लॉन पर दौड़ रही थी। भैया ने मुन्ने को उसकी पीठ पर से उतारना चाहा। मगर वो और चिमट गया।
‘अभी और थोडा चले आंटी।’
‘नहीं बाबा, आंटी में दम नहीं…।’ शबनम चिल्लाई। बड़ी मुश्किल से भैया ने मुन्ने को उतारा। मुँह पर एक चाँटा लगाया। एक दम तड़पकर शबनम ने उसे गोद में उठा लिया और भैया के हाथ पर जोर का थप्पड़ लगाया।
‘शर्म नहीं आती…इतने बडे ऊँट के ऊँट छोटे से बच्चे पर हाथ उठाते हैं।’ भाभी को आता देखकर उसने मुन्ने को गोद में दे दिया। उसका थप्पड़ खाकर भैया मुस्करा रहे थे।
‘देखिए तो कितनी जोर से थप्पड़ मारा है। मेरे बच्चे को कोई मारता तो हाथ तोड़कर रख देती।’ उसने शरबत की कटोरियों में जहर घोलकर भैया को देखा। और फिर हँस रहे हैं बेहया।
‘हूँ…दम भी है जो हाथ तोडोगी…।’ भैया ने उसकी कलाई मरोड़ी . वो बल खाकर इतनी जोर से चीखी कि भैया ने कांप कर उसे छोड़ दिया और वो हंसते-हंसते जमीन पर लोट गई. चाय के दरमियान भी शबनम की शरारतें चलती रहीं। वो बिलकुल कमसिन छोकरियों की तरह चुहलें कर रही थी। भाभी गुमसुम बैठी थीं। आप समझे होंगे शबनम के वजूद से डरकर उन्होंने अपनी तरफ तवज्जो देनी शुरू कर दी होगी। जी कतई नहीं। वो तो पहले से भी ज्यादा मैली रहने लगीं। पहले से भी ज्यादा खातीं।