02/02/2020
ट्राईबल म्यूजियम के तोहफे का अर्थ
हेमंत सोरेन ने प्रधान मंत्री से मिल कर द्राईबल विवि की मांग की थी, उन्होंने दिया ट्राईबल म्यूजियम, यानि अजायब घर जिसमें सामान्यतः इतिहास बन चुके जीवों, जन्तुओं व वस्तुओं को रखा जाता है ताकि उनका संरक्षण, उन पर शोध व लोगों के मनोरंजन के लिए उनका प्रदर्शन हो सके.
क्या आदिवासी और उसकी संस्कृति इतिहास की वस्तु बन चुका है या ऐसी मिटती प्रजाति जिसे म्यूजियम में ररवा जाय? भाजपा और संघ परिवार को शायद ऐसा ही लगता है. सिर्फ भाजपा या संघ परिवार को नहीं, बहुत सारे बुद्धिजीवियों को भी जो समझते हैं कि आदिवासी आदिम सभ्यता के अवशेष भर हैं. आदिवासी म्यूजियम उनकी भावना के अनुरूप है.
लेकिन हमारे लिए नहीं. आदिवासी जीवन शैली, संस्कृति और जीवन दृष्टि ही मानव जाति के वर्तमान संकट को बचाने का एकमात्र विकल्प है. वह इतिहास की वस्तु नहीं, इतिहास को गढ़ रहा है. अभी अभी उसने अपराजेय समझे जाने वाले मोदी और उनके कुनबे को झाररवंड, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में धूल चटाया है. असम में वह पूरी ताकत से लड़ रहा है.
म्यूजियम तो दरअसल उनके लिए बनना चाहिए जो आज के वैज्ञानिक युग में भी धर्म की राजनीति करते हैं, धर्म और जाति के नाम पर मनुष्य मनुष्य में भेदभाव करते हैं. जो स्त्री को आज भी भोग की वस्तु समझते हैं. म्यूजियम में तो भरसक मनुवादियों के लिए बताया जाना चाहिए और उन्हें और उनकी संस्कृति से जुड़ी वस्तुओं को वहां रखा जाना चाहिए ताकि उन पर शोध हो सके और दर्शनार्थियों को बताया जा सके कि ये वो लोग है जो मानते है कि कुछ मनुष्यों की उत्पत्ति सर से, कुछ की बजुओं से, कुछ की उदर से और कुछ की पैर से हुई है.
आदिवासी तो अपने पूरे वजूद के साथ वर्तमान में मौजूद है और भविष्य को गढ़ने की दिशा में है, खासकर झाररवंड में..उसके लिए म्यूजियम की दरकार नहीं..
― विनोद कुमार