20/07/2023
रेखा 68 साल की हो गई हैं तो अमिताभ 80 साल के. दोनों ने अंतिम बार 1981 में फ़िल्म 'सिलसिला' में साथ काम किया था. लेकिन 42 बरस बाद भी अमिताभ-रेखा की जोड़ी उतनी ही मशहूर है जितनी 1976 से 1981 के बीच थी.
अमिताभ-रेखा की जोड़ी की लोकप्रियता को आज की युवा पीढ़ी भी अच्छे से महसूस करती है, जिनका तब जन्म भी नहीं हुआ था, जब इन दोनों की फ़िल्में धूम मचाती थीं. आज 40 साल के युवा ही नहीं, 20 साल के युवा और 14 साल के किशोर भी जानते हैं कि अमिताभ-रेखा के मायने क्या हैं.
इन दोनों को परदे की एक बेहद शानदार जोड़ी के रूप में तो जाना ही जाता है. दोनों ने कई यादगार और सफल फ़िल्में साथ कीं, लेकिन इनकी जोड़ी रियल लाइफ़ की अपनी प्रेम कहानी के लिए भी जानी जाती है.
एक ऐसी प्रेम कहानी जो चाहे पूरी तरह खुलकर सामने नहीं आई, लेकिन अमिताभ-रेखा की यह एक ऐसी प्रेम गाथा है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. यह प्रेम कहानी 40-45 साल पहले भी सुर्खियों में थी और आज भी है. तब भी इसकी चर्चा दबे सुरों में होती थी और आज भी. अपने लंबे ख़ामोश सफ़र के बाद आज भी उसकी गूंज बरक़रार है.
ऐसी अमर प्रेम कहानियों में जहाँ पहले राज कपूर और नरगिस की प्रेम कहानी थी. वहाँ उसी कड़ी में फिर अमिताभ-रेखा की कहानी आ गई. आज राज कपूर-नरगिस इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन दोनों की प्रेम कहानी आज भी अमर है. ऐसे ही अमिताभ-रेखा की प्रेम कहानी को भी वक्त की परतें बरसों-बरसों तक धुंधला न पाई।
यूँ तो अमिताभ की रेखा से पहली मुलाक़ात उनकी जया भादुड़ी से शादी से पहले 1972 में ही हो गई थी. दरअसल, तब एक निर्माता जीएम रोशन और निर्देशक कुंदन कुमार ने अमिताभ-रेखा को लेकर एक फ़िल्म शुरू की थी 'अपने-पराये', लेकिन कुछ दिन की शूटिंग के बाद यह फ़िल्म बंद हो गई ,बाद में अमिताभ बच्चन की जगह संजय ख़ान को रेखा के साथ लेकर यह फ़िल्म 'दुनिया का मेला' नाम से बनकर 1974 में प्रदर्शित होकर फ़्लॉप हो गई.
रेखा और अमिताभ का 1973 में एक बार फिर फ़िल्म 'नमक हराम' के कारण साथ बना, लेकिन इस फ़िल्म में रेखा, अमिताभ की नहीं, राजेश खन्ना की नायिका थीं, इसलिए अमिताभ-रेखा के बीच कोई ख़ास बातचीत नहीं हो पाई. इस तरह तब तक अमिताभ-रेखा एक दूसरे के लिए अनजान से रहे।
अमिताभ बच्चन और रेखा की ज़िंदगी में बड़ा मोड़ तब आया जब सन 1976 में निर्माता टीटू और निर्देशक दुलाल गुहा ने इन दोनों को अपनी फिल्म 'दो अनजाने' में लिया. यहाँ दिलचस्प यह था कि फिल्म में इनके चरित्रों के नाम भी मूलतः अमित और रेखा ही थे. इस फिल्म में रेखा नायिका जरूर थीं, लेकिन उनका रोल नेगेटिव टच वाला था.
रेखा इससे पहले अपनी फिल्मों के प्रति ज्यादा गंभीर नहीं रहती थीं. हँसते-खेलते और हंसी-मज़ाक के मूड में ही वह काम करती थीं. हालाँकि फिल्मों में काम करने के लिए, दोनों 1969 में ही मुंबई पहुंचे थे, पर रेखा इससे पहले बाल कलाकार के रूप में भी फिल्में कर चुकी थीं. दूसरा 1970 में आई अपनी पहली हिन्दी फिल्म 'सावन भादो' से रेखा हिट हो चुकी थीं.
'सावन भादो' के बाद और 'दो अनजाने' से पहले रेखा अपनी 'एक बेचारा', 'रामपुर का लक्ष्मण', 'कहानी किस्मत की', 'अनोखी अदा', 'धर्मा', 'धर्मात्मा', 'धर्म कर्म', 'कहते हैं मुझको राजा', 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' और 'संतान' जैसी फिल्मों से मशहूर हो चुकी थीं.
'दो अनजाने' में अमिताभ के साथ लिए जाने पर रेखा ने सिमी गरेवाल के टीवी शो 'रॉनदेवू' में बताया था, "जब मुझे पता लगा कि अमित जी ने 'दो अनजाने' साइन की है तो मैं थोड़ा डर गई थी. हालाँकि कुछ मामलों में, मैं उनसे सीनियर थी. लेकिन तब वह अपनी फिल्म 'दीवार' से काफी सफल हो गए थे. तब तक मैं उनके बारे में कुछ खास नहीं जानती थी. क्योंकि हमें कभी बैठकर बात करने का मौका नहीं मिला था. जब 'दो अनजाने' के सेट पर मैंने उनके साथ काम करना शुरू किया तो मैं नर्वस थी. पर मैंने उस दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा. सेट पर होने की अपनी धारणा को बदला. सेट मेरे लिए फिर कभी खेल का मैदान नहीं रहा."
रेखा तब अमिताभ से किस तरह प्रभावित होती हैं, इस पर उन्होंने कहा था, "मैं पहले किसी आम इंसान से कभी प्रभावित नहीं होती थी, लेकिन अमिताभ मेरे लिए कुछ ऐसे इनसान थे, जैसा मैंने पहले कभी नहीं देखा. मैं यह सोचकर हमेशा उलझी रहती थी कि कैसे एक इंसान में इतनी सारी ख़ूबियाँ हो सकती हैं.
मुझे ऐसा लगता है जब कोई आपको अच्छा लगता है तो उसकी हर बात अच्छी लगती है. जब मैं उनसे मिली तो मुझे लगा कि मैं ऐसे किसी इनसान से पहले नहीं मिली. हम दोनों की तुला राशि है पर कैसे एक इंसान के पास इतनी सारी अच्छाइयाँ हो सकती हैं."
'दो अनजाने' की शूटिंग में अमिताभ का काम करने का अंदाज़ देख रेखा यकायक कैसे बदल गईं. इस पर रेखा का कहना था, "मैं तब अपने संवाद भूल जाती थी. तब उन्होंने मुझसे कहा- सुनिए कम से कम अपने डायलॉग्स तो याद कर लीजिए. मैं उन्हें देखती थी कि कैसे वो बहुत ध्यान और सम्मान के साथ निर्देशक की बात सुनते हैं. मैंने ये भी उनसे सीखा.
मुझे लगा यही वह इंसान है जिससे मुझे बहुत कुछ सीखना है, प्रेरणा लेनी है, वो एक लम्हा मेरी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट रहा. मैं मानती हूँ कि मैं भाग्यशाली रही और बुद्धिमान भी कि मैंने उन्हें अपनी प्रेरणा के लिए चुना. वह एक ऐसे शिखर अभिनेता हैं, जिनके सामने खड़ा होना आसान नहीं."
रेखा की बातों से साफ लगता है कि अमिताभ के अभिनय कौशल, अनुशासन, विनम्र व्यवहार और अपने कार्य के प्रति समर्पण भावना देख ही वह उनसे प्रभावित हो गईं. इतनी प्रभावित कि अमिताभ के प्रति उनकी भावनाएँ प्यार में बदल गईं.
असल में 1976 में जब रेखा,अमिताभ से प्रभावित हुईं तब वह 22 साल की थीं और अमिताभ 34 साल के. इस उम्र में, इन परिस्थितियों में, इन भावनाओं में कोई और भी होता तो ऐसा होना संभव था.
एक बार अपने दौर के नामी हीरो प्रदीप कुमार ने कहा था, "आखिर हम इन्सान ही हैं. फिल्म की शूटिंग के दौरान अगर नायक-नायिका एक-दूसरे को पसंद करते हैं. एक-दूसरे की इज्ज़त करते हैं तो अंतरंग दृश्यों में दोनों भावुक हो ही जाते हैं. बाद में यही सब प्यार में भी बदल सकता है."
इधर, अमिताभ-रेखा की यह प्रेम कहानी भी कुछ ऐसे संकेत देती है कि इसकी शुरुआत चाहे रेखा से हुई, लेकिन अमिताभ भी अपनी युवा अवस्था में उनके मोहपाश से बच नहीं सके.
यह भी एक संयोग है कि मेरी अमिताभ बच्चन से पहली मुलाक़ात 1976 में 'दो अनजाने' के प्रदर्शित होने के बाद, दिल्ली में उनके घर पर हुई थी. मैंने इस फिल्म को पहले नहीं देखा था. लेकिन जब मैं डॉ. हरिवंश राय बच्चन से उनके विलिंग्डन क्रीसेंट स्थित घर में मिलने गया तो उन्होंने मुझसे कहा, "अमित की नई फिल्म 'दो अनजाने' बहुत अच्छी फिल्म है. मौका लगे तो इसे ज़रूर देखना."
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इधर, जिन दिनों उनका फिल्म करियर तेजी से शिखर की ओर बढ़ रहा था, उन्हीं दिनों फिल्म पत्रिकाओं में आए दिन ये खबरें सुर्खियों में रहती थीं कि अमिताभ-रेखा के बीच रोमांस चल रहा है. ये दोनों शूटिंग के बाद रेखा की एक दोस्त के घर में अलग से चुपचाप मिलते हैं.
एक दिन मैंने हिम्मत करके बच्चन जी से पूछ ही लिया कि ये अमित जी के बारे में जो खबरें छपती रहती हैं, उनके बारे में उनकी क्या राय है, इस पर वे बोले, "शुरू में हम भी ऐसी खबरों से विचलित हो जाते थे. लेकिन अब हम ऐसी खबरों पर ध्यान नहीं देते. अब हम समझ गए हैं कि कुछ फिल्म पत्रिकाएँ ऐसी ही बेसिर पैर की मसालेदार खबरों, गॉसिप पर चलती हैं."
हालाँकि अमिताभ-रेखा के रोमांस की ख़बरों का बाज़ार 1980 तक तो काफी गरम रहा. जया बच्चन भी इस सबसे काफी परेशान रहीं, यह भी छपता रहा. इसी दौरान जनवरी 1981 में फिल्म 'सिलसिला' की शूटिंग के दौरान दिल्ली के एक फ़ाइव स्टार होटल में, मेरी अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और रेखा तीनों से मुलाक़ात हुई.
उधर, कुछ देर बाद जब इनकी टीम 'सिलसिला' की आउटडोर शूटिंग के लिए किसी फार्म हाउस के लिए निकल रही थी, तब रेखा और जया बच्चन को भी बहुत ही सहज भाव से बात करते सुना.
रेखा ने जया से मुखातिब होते हुए जब उन्हें 'दीदी भाई' कहा तो मैं चौंका कि ये क्या कहा. वहाँ किसी से पूछने पर पता चला कि रेखा शुरू से जया को 'दीदी भाई' कहकर बुलाती रही हैं. बाद में शूटिंग यूनिट में से किसी ने बताया रेखा जी, जया जी को उनकी शादी के पहले से जानती हैं.
अमिताभ-रेखा के प्रेम सम्बन्धों की खबरों के तूफान का सिलसिला फिल्म 'सिलसिला' की रिलीज के बाद धीरे-धीरे थमता गया. कुछ बरस बाद रेखा ने दिल्ली के एक उद्योगपति मुकेश गुप्ता से मार्च 1990 में शादी कर ली. लेकिन शादी के बाद मुकेश ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली तो रेखा पर कई तरह के आरोप लगे. उधर रेखा, मुकेश के निधन के बाद जब अपनी माँग में फिर से सिंदूर के साथ प्रकट हुईं तो अमिताभ-रेखा के प्रेम प्रसंगों को फिर हवा मिल गई.
फिल्म 'सिलसिला' की बात करें तो यह फिल्म 14 अगस्त 1981 को प्रदर्शित हुई थी. उम्मीद थी यह फिल्म टिकट खिड़की पर धमाल कर देगी, लेकिन फ़िल्म को दर्शकों ने पसंद नहीं किया जबकि फिल्म का संगीत काफी लोकप्रिय होता गया.
असल में 'सिलसिला' फिल्म में पहले अमिताभ के साथ परवीन बॉबी और स्मिता पाटिल को लिया गया था, लेकिन उन दिनों अमिताभ-रेखा के प्रेम सम्बन्धों के चर्चे हर जुबां पर देखते हुए फ़िल्मकार यश चोपड़ा ने अंतिम क्षणों में अपना निर्णय बदल दिया क्योंकि यह फिल्म भी पति-पत्नी और प्रेयसी की कहानी पर आधारित थी.
बताते हैं कि यश चोपड़ा की यह बात सुन अमिताभ बच्चन चौंक गए. वह बोले-क्या कह रहे हैं आप. आप क्या समझते हैं कि जया इसके लिए तैयार हो जाएँगी? यश जी ने कहा, 'सब कुछ मुमकिन है. रेखा से मैं बात करता हूँ. जया से पहले तुम बात करो. फिर मैं भी करता हूँ.'
फिर सच में वह हो गया जिसकी उम्मीद नहीं थी. यश चोपड़ा का जादू कुछ ऐसा चला कि कश्मीर में परवीन और स्मिता की जगह रेखा और जया 'सिलसिला' की शूटिंग कर रही थीं.
हालांकि फिल्म से जुड़े एक बेहद खास व्यक्ति ने मुझे तब बताया था कि "जया जी 'सिलसिला' में काम करने के लिए इसी शर्त पर तैयार हुईं हैं कि अमित जी इसके बाद रेखा के साथ कभी कोई फिल्म नहीं करेंगे."
उस बात पर तब तो सहसा विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन सच में ऐसा हुआ कि 'सिलसिला' दोनों की एक साथ अंतिम फिल्म साबित हुई. 'सिलसिला' के बाद जहां रेखा लगभग 80 फिल्में कर चुकी हैं. वहाँ अमिताभ 'सिलसिला' के बाद करीब 150 फिल्में कर चुके हैं लेकिन इन दोनों की साथ में तब से अब तक कोई और फिल्म नहीं आई, यानी 'सिलसिला' से सिलसिला टूट गया.
अमिताभ और रेखा यूँ तो कुल 14 फिल्मों में साथ रहे. 'नमक हराम' में रेखा के नायक राजेश खन्ना थे.
फिल्म 'ईमान धर्म' में भी अमिताभ, शशि कपूर, रेखा और संजीव कुमार थे. लेकिन रेखा के हीरो यहाँ शशि थे, अमिताभ नहीं. अमिताभ की फिल्म 'कसमें वादे' में तो रेखा सिर्फ मेहमान कलाकार थीं.
हास्य कलाकार जगदीप की 'सूरमा भोपाली' में भी अमिताभ और रेखा दोनों मेहमान कलाकार थे.
यूँ 'सिलसिला' के बाद सन 2015 में आई आर बाल्कि की फिल्म 'शमिताभ' में जहाँ अमिताभ मुख्य भूमिका में थे. वहाँ रेखा एक छोटी-सी भूमिका में थीं. अमिताभ-रेखा का साथ में कोई एक दृश्य भी नहीं था.
लेकिन इन फिल्मों के अलावा अमिताभ-रेखा की दस प्रमुख फिल्में हैं. जिनमें 'दो अनजाने' और 'सिलसिला' के अलावा 'खून पसीना', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'मिस्टर नटवारलाल', 'सुहाग' और 'राम बलराम' ऐसी फिल्में हैं जो सफल रहीं, दर्शकों ने पसंद कीं, जिनमें 'मुकद्दर का सिकंदर' तो दोनों के करियर में मील का पत्थर साबित हुई लेकिन इन दोनों की 'आलाप' और 'गंगा की सौगंध' फिल्में सफल नहीं हो सकीं.
👉 सौ :प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फ़िल्म समीक्षक बीबीसी
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