04/12/2019
*बुधवार, ४ जून, २०१४*
*जननायक टंट्या मामा* *भील .....!!!*
*खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में 1842 में भाऊसिंह के यहाँ एक बालक ने जन्म लिया, जो अन्य बच्चो से दुबला-पतला था | निमाड में ज्वार के पौधे को सूखने के बाद लंबा, ऊँचा, पतला होने पर ‘तंटा’ कहते है इसीलिए ‘टंट्या’ कहकर पुकारा जाने लगा |*
*टंट्या की माँ बचपन में उसे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गई | भाऊसिंह ने बच्चे के लालन-पालन के लिए दूसरी शादी भी नहीं की | पिता ने टंट्या को लाठी-गोफन व तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया | टंट्या ने धर्नुविद्या में दक्षता हासिल कर ली, लाठी चलाने और गोफन कला में भी महारत प्राप्त कर ली | युवावस्था में उसे पारिवारिक बंधनों में बांध दिया गया | कागजबाई से उनका विवाह कराकर पिता ने खेती-बाड़ी की जिम्मेदारी उसे सौप दी | टंट्या की आयु तीस बरस की हो चली थी, वह गाँव में सबका दुलारा था, युवाओ का अघोषित नायक था | उसका व्यवहार कुशलता और विन्रमता ने उसे लोकप्रिय बना दिया |*
*बंजर भूमि में फसल वर्षा पर निर्भर होती है | प्राकृतिक प्रकोप, अवर्षा से बुरे दिन भी देखना पड़ते है | अन्नदाता किसान भी भूखा रहने को मजबूर हो जाता है | टंट्या को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा | पिता भी ऐसे समय नहीं रहे, भूमि का चार वर्ष का लगान भी बकाया हो गया | मालगुजार ने उसे भूमि से बेदखल कर दिया | आपके सम्मुख खाने की दिक्कत हो गयी | ऐसे वक्त उसे ‘पोखर’ की याद आई जहा उनके पिता भऊसिंह के मित्र शिवा पाटिल रहते थे और जिन्होंने सम्मिलित रूप से जमीन खरीदी थी, जिसकी देखरेख शिवा पाटिल करते थे | शिवा पाटिल ने टंट्या का आदर-सत्कार तो किया परन्तु भूमि पर उसके अधिकार को मंजूर नहीं किया | शिवा के मुकरने के बाद टंट्या बडदा पंहुचा | मकान, बेलगाडी बेचकर कुछ नकद राशि जुटाई | खंडवा न्यायालय में शिवा की धोखाधड़ी के खिलाफ कार्यवाही की, इसमें भी आपको पराजित होना पड़ा | झूठे साक्ष्यो के आधार पर शिवा की विजय हुई |*
*टंट्या ने रोद्र रूप धारण कर लिया | लाठी से शिवा के नौकरों की पिटाई करके खेत पर कब्ज़ा कर लिया | उसने पुलिस में टंट्या के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई | पुलिस ने गिरफ्तार करके मुकदमा कायम किया, जिसमे उसे एक *वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गयी | जेल में बंदियों के साथ अमानुषिक व्यवहार होता देख टंट्या विक्षुब्ध हो गया, उसके मन में विद्रोह की भावना बलवती होने लगी| जेल से छूटने के बाद पोखर में मजदूरी करके जीवन निर्वाह करने लगा, किन्तु वहा भी उसे चैन से जीने नहीं दिया गया | *कोई भी घटना घटती तो टंट्या को उसमे फसा देने षड्यंत्र रचा जाता | पोखर के बजाय उसने हीरापुर में अपना डेरा जमाया, वहा चोरी *के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया | बिजानिया भील और टंट्या ने तलवार से कई सिपाहियों को घायल कर दिया, इस प्रकरण में उसे तीन माह की सजा हुई | *बडदा-पोखर के बाद झिरन्या गाँव (खरगोन) में टंट्या रहने लगा | एक अपराधी ने चोरी के मामले *में उसका नाम ले लिया, फिर से पुलिस उसे खोजने लगी | टंट्या ने बदला लेने का संकल्प लिया, उसने साहुकारो-मालगुजारो से *पीड़ित लोगो का गिरोह बनाया जो लूटपाट और डाका डालता था | 30 जून, 1876 को हिम्मतसिंह *जमीदार के यहाँ धावा बोला गया, हिम्मतसिंह को गोली मार दी गई | टंट्या को षडयंत्र में फसाकर **उसके विश्वासपात्र साथियों के **साथ गिरफ्तार करवा दिया गया| **20 नवम्बर, 1878 को खंडवा **की अदालत में दौलिया और **बिजौनिया के साथ पेश किया गया |*
*जय टांटिया भील*
है मेरे पूर्वज , हमारे समाज को सही राह दिखा ,,
जो आपने किया , वो खून नही इनमे,,
ये लोग तो गुलामी , की मिशाल बन गए ,,
*Kanhaiya Vasuniya*
*9340984190*
*गाँव-बांडीनाल*