13/03/2024
प्राप्तं धर्मफलं तावत् भवता नायत्र संशय: ।
फलमस्याप्य धर्मस्य क्षिप्रमेव प्रपत्स्य से ।।
ब्रह्मा स्वयंभूच्श्रतुराननॊ वा। रुद्रस्त्रिनेत्रस्त्रिपुरांतको वा।।
इन्द्रो महेंद्र: सुरनायकॊ वा।स्थातुं ना शक्ता युद्धि राघवस्य।।
रावण तुमने जो पुन्य किया था उसका पूरा पूरा फल तो यहां पा लिया । अब सीताहरण रूपी अधर्म का फ़ल भी तुम्हें शीघ्र ही मिलेगा। चार मुखों वाले स्वयंभु ब्रह्मा ,, तीन नेत्रों वाले त्रिपुरनाशक रुद्र शिव अथवा देवताओं के स्वामी महान ऐश्वर्य शाली इंद्र भी समरागण में श्री रघुनाथ मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के सामने नहीं ठहर सकते।
अर्थात... रावण जिनके तुम भक्त हो, वे त्रिनेत्रधारी त्रिशुलपाणी भगवान शंकर अथवा चार मुखवाले ब्रह्मा और समस्त देवताओं के स्वामी इंद्र ... सभी मिलकर भी श्रीराम के वध्य शत्रु की रक्षा नही कर सकते ।
इसी प्रकार हनुमान जी ने रावण के समक्ष तर्कों से युक्तियों में... श्रीराम को परम ब्रह्म परमात्मा और परम ब्रह्म सिद्ध किया व।
हनुमान जी कहते हैं –_–_
सत्यं राक्षसराजेंद्र श्रृणुष्व वचनम् मम।
रामदासस्य दूतस्य वानरस्य विशेषतः।।
सर्वानलोकान सुसंहृत्य सभूतान् सचराचरान्।
पुनरेव तथा स्रष्टुं शक्तॊ रामो महाशयशा:।।
है राक्षसराज रावण! मेरी सच्ची बात सुनो! महायशस्वी श्रीरामचन्द्र चराचर प्राणियों सहित सम्पूर्ण लोकों का संहार करके ,, फिर उन्हें नए सिरे से निर्माण करने का सामर्थ्य रखते हैं।
विभीषण को वेद का तत्वज्ञान था । उन्होंने रावण को वेद के आधारपर रावण को परमर्श दिया,, पर रावण ने उसकी एक नहीं सुनी। इसलिए रावण वेद को जानते हुए भी वेद के विरुद्ध चल रहा था।
विभीषण सच्चे वेदज्ञ थे। इसलिए वे वेद तत्व अर्थात् रामतत्व को पहचाना पाए ।
श्रीराम जी के जन्म पर वशिष्ठ जी ने एक बात बताई है।
धरे नाम गुर हृदय विचारी , वेदतत्व नृप तव सूत चारी ।
मुनि धन जन सरबस सिव प्राणा बाल केलि रस तेहि माना।।
श्रीराम भरत लक्षमण और शत्रुघ्न के जन्म पर वशिष्ठ जी दशरथ जी महाराज से कहते हैं कि.. महाराज ये! आनंदकंद रघुनंदन साक्षात "वेदपुरुष " वेद्तत्व हैं। जो अपनी लेशमात्र शक्ति से सारे संसार को प्रकाशित करते हैं।
समस्त मन बुद्धि और हृदय इन्द्रिय और जीवात्मा को भी प्रकाशित करने वाले हैं...!!
कथा सार अच्छी लगे तो शेयर करें...!!
सादर प्रणाम जय सियाराम..!!