Xplorer

Xplorer We explore the Universe.

Most of us are using social media in the same way. We are wasting our time and money here... But some of them are smart ...
08/05/2020

Most of us are using social media in the same way. We are wasting our time and money here... But some of them are smart enough to reach on the top by using it..

आइये आपको अपने बारे में कुछ बताते हैं| हम हैं एक्स्प्लोरर यानि खोजी, हमारी खोज अनंत है| हम ऐसे कुछ जिज्ञासु लोगों का एक ...
05/05/2020

आइये आपको अपने बारे में कुछ बताते हैं| हम हैं एक्स्प्लोरर यानि खोजी, हमारी खोज अनंत है|

हम ऐसे कुछ जिज्ञासु लोगों का एक समूह हैं जो विभिन्न विषयों में रूचि रखता है| हमारे विषय हैं यूनिवर्स, टेक्नोलोजी, साहित्य, योग, विज्ञान, आयुर्वेद, नेटवर्किंग, भारतीय पाक कला, इतिहास, राजनीती, पुस्तकें... हमारी खोज के विषय बहुत हैं|

प्रयास रहेगा कि आप तक अधिक से अधिक परिशुद्ध और शोध की हुई तथ्यों पर आधारित जानकारी पहुंचाएं| हमारे इस सफर में हमारे साथ चलिए| रोमांचक सफ़र रहेगा इसकी हम जिम्मेदारी लेते हैं|

चलिए बताते हैं कि हम कौन हैं: हम ग्रुप ऑफ़ यूट्यूब चैनल्स हैं, साथ ही ग्रुप ऑफ़ ब्लॉग्स भी!

"Xplorer" हमारे ग्रुप का नाम है तथा इस एक नाम के अंतर्गत हमारे विभिन्न विषयों पर आधारित चैनल्स और ब्लॉग्स, जिनमे से कुछ विषय इस प्रकार हैं:

Literature Xplorer
Divine Xplorer
Cosmos Xplorer
Yog and Health Xplorer
Recipe Xplorer

ऐसे ही कई अन्य विषय हम में से अलग अलग टीम के सदस्य आपके सामने रखेंगे| अगली कुछ पोस्ट में हम इन सभी टीम मेम्बर्स का परिचय और उनके मुख्य और अन्य विषयों कि जानकारी आपको देंगे| तब तक आपसे यही अनुरोध रहेगा कि हमारे साथ बने रहिये, हौंसला बढ़ाइए और आशीर्वाद बनाये रखिये...

धन्यवाद सहित
टीम

Watch new video on our Youtube Channel...https://youtu.be/usXv1vBvvE8
01/05/2020

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https://youtu.be/usXv1vBvvE8

The step by step method of making lists for your business prospects. To whom you should focus on and where to look.

Happy Labour Day...😊🥰❤️
01/05/2020

Happy Labour Day...😊🥰❤️

Watch our YouTube channel's new vedio  https://youtu.be/G0IKPeYJ-M8
29/04/2020

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We are sharing herewith a most wonderful business opportunity for 21st Century

17/12/2019

"आपका हर फॉलोवर आपका प्रशंसक नहीं होता: पुरानी कोटेशन"

मैं इससे भी आगे की बात कहना चाहूंगी।

आपका हर प्रशंसक आपका मित्र नहीं होता। आपका हर मित्र आपका शुभचिंतक नहीं होता।
शुभचिंतक होने का दिखावा करने वाला हर व्यक्ति ज़रूरी नहीं कि सच में शुभचिंतक हो भी!
सच्चे शुभचिंतक जो भी होते हैं उनमें से आप कुल आठ दस लोगों के साथ कम्फर्टेबल और क्लोज हो पाते हो।

इन आठ दस में से भी सभी सदा के लिए आपके जीवन में नहीं रह सकते या आपको हर समय उपलब्ध नहीं हो सकते।
कुल 2-3 लोग होते हैं जो लंबे समय तक जीवन में बने भी रहते हैं और उपलब्ध भी रहते हैं।

ये 2-3 लोग आपके जीवन की पूंजी हैं। इनको संभालकर रखिये, इनकी कद्र कीजिये।

😊😊

गीतू

Just listen to your heart.. ❤
18/05/2019

Just listen to your heart.. ❤

16/05/2019
It's definitely me, boys have crushes on girl, girls have crushes on dresses and me!I have crushes on book...😂😂
16/05/2019

It's definitely me, boys have crushes on girl, girls have crushes on dresses and me!

I have crushes on book...😂😂

Books are like best friends, they know what you want from them, give their best to you and do not judge you for what you...
14/05/2019

Books are like best friends, they know what you want from them, give their best to you and do not judge you for what you are asking from them...❤



वक्त भर देता है हर ज़ख़्म को,हर दर्द का इलाज होता है वक्त के पास।
14/05/2019

वक्त भर देता है हर ज़ख़्म को,हर दर्द का इलाज होता है वक्त के पास।

माँ एक औरत के रूप में हर रिश्ता इतनी ख़ूबसूरती से निभाती है कि कोई विश्वास ही नहीं कर पाता कि उसे कोई दुख भी हो सकता है। ...
12/05/2019

माँ एक औरत के रूप में हर रिश्ता इतनी ख़ूबसूरती से निभाती है कि कोई विश्वास ही नहीं कर पाता कि उसे कोई दुख भी हो सकता है।
पति, बच्चे, सास-ससुर, मायका, रिश्तेदार, प्रेमी, ऑफ़िस, दुनिया क्या उसे इनसे कोई शिकायत नहीं?
आज माँ की ओर से कुछ पंक्तियाँ लिखें।
#माँकेदुख
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ये गीत ज़िन्दगी का गाना पड़ेगा सबको  #ज़िन्दगी     Collaborating with YourQuote Didi       Read my thoughts on             ...
10/05/2019

ये गीत ज़िन्दगी का
गाना पड़ेगा सबको
#ज़िन्दगी
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मैंने दुनिया के रंग पहचान लिए हैं। यहाँ कैसे जीते हैं सीख लिया है। मुझे हर दर्द सहना आ गया है। हवा के साथ बहना आ गया है।...
08/05/2019

मैंने दुनिया के रंग पहचान लिए हैं। यहाँ कैसे जीते हैं सीख लिया है। मुझे हर दर्द सहना आ गया है। हवा के साथ बहना आ गया है।
#बहनाआगयाहै
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आपकी सफलता या असफलता इस बात पर निर्भर है कि आप प्रेरणा किससे लेते हैं! आप किन लोगों के उदाहरण को अपने सामने रखते हैं!यदि...
08/05/2019

आपकी सफलता या असफलता इस बात पर निर्भर है कि आप प्रेरणा किससे लेते हैं! आप किन लोगों के उदाहरण को अपने सामने रखते हैं!

यदि आप सफल लोगों का उदाहरण देखेंगे, उनके किये हुए कामों को अपनी प्रेरणा बनाएंगे तब आप भी एक दिन सफल लोगों की श्रेणी में खड़े रहेंगे।

यदि असफल लोगों को अपनी प्रेरणा बनाएंगे तो आप सफलता की तरफ बढ़ने की सोचेंगे भी नही, सफल होना तो बहुत दूर की बात!

कोई भी प्रेरणास्रोत बनाने से पहले ये देखें कि आप क्या चाहते हैं? सफलता या असफलता!!
#सफलता #असफलता

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04/05/2019

#इंटरनेट_की_अजब_गजब_दुनिया

जब भी हम कोई वेबसाइट खोलते हैं हमें एक वैल ऑर्गेनाइज पेज दिखता है. जिस पर हर टैक्स्ट, पिक, लिंक्स, वीडियोज और एड्स आदि बड़े करीने से लगे रहते हैं. आप किसी सोशल मीडिया वेबसाइट को देखिये! यहाँ सब कुछ समान रूप से ऑर्गनाइज होता है. कायदे में हम सबके अकाउंट अलग-अलग हैं. हमारा डाटा अलग-अलग है पर हम जिस भी पेज को एक्सेस कर रहे हैं वो सब क्लोनिंग है.

जैसे हमारा होम पेज, सबकी न्यूज़ फीड में अलग अलग पोस्ट्स आती हैं, क्योकि हम सबके पेयर ऑफ़ फ्रेंड्स अलग अलग हैं, हम सब की फ़ॉलो लिस्ट अलग अलग है, पर हमारा होम पेज कोडिंग(1)(लिंक1) के मामले में एक दूसरे की क्लोनिंग है. मतलब जो कोडिंग आपके होम पेज को डिज़ाइन करने में की गयी है मेरा होम पेज जस्ट उसकी ही क्लोनिंग है. शायद क्लोनिंग(लिंक2) का अर्थ मुझे नही समझाना पड़ेगा!

ऐसे ही अगर मैं कोई ग्रुप बनाती हूँ या कोई पेज, और आप भी! तो उसपर शेयर की जाने वाली सूचनाएं अलग अलग हो सकती हैं पर कोडिंग के लेवल पर आपका और मेरा पेज एक दूसरे के क्लोन ही हैं. इसी तरह हमारा प्रोफाइल पेज या इनबॉक्स इंटरफेज़ या कोई भी अन्य पेज.

ये जो दिखने वाले पेजेज़ हैं एक्चुअली कितने ऑर्गेनाइज दिखते हैं. जैसे किसी होटल के बाहर लगा एल इ डी लाईट वाला होर्डिंग(पिक2). सोचिये कहीं किसी ब्लॉग पर जाते हैं, उसका लैंडिंग पेज या होम पेज ओपन करते हैं, क्या देखते हैं? एक साइड में सबसे बड़े फील्ड में ब्लॉग पोस्ट है. हैडर इमेज है, उस इमेज पर कोई टैक्स्ट लिखा है. साइड बार है उसमे एक एनिमेटेड बैनर है, किसी चीज़ या सर्विस का एड है, एक सर्च बॉक्स है, फ़ॉलो मी का टैब है, सोशल लिंक्स के चमचमाते टैब्स हैं.... एंड सो ऑन...........

कितना सुंदर वेब पेज है? है ना?

सोचिये कितनी कोडिंग की गयी होगी! क्योंकि एवरीथिंग इज कोडिंग हेयर. यदि आपको एक वीडियो भी मिलता है तो वो भी कोडिंग का कमाल है.

आइये चलिए थोड़ा डीप चलते हैं. आपने कभी किसी भी महिला को कढ़ाई करते देखा है? कितना सुन्दर डिज़ाइन बनाती हैं ना! चलिए इस कपड़े को पलट दीजिये... क्या देखा? धागों का जाल?(पिक3)

चलिए होटल के बाहर लगे एल इ डी लाइट वाले होर्डिंग को पलटकर देखते हैं.. क्या दिखा? तारों का बेतरतीब जाल?
चलिए कोई सर्किट बोर्ड उठाते हैं.. उस पर बहुत सारे छोटे छोटे पार्ट्स लगे हैं. पलट देते हैं.. वहां पर भी वही हाल. सोल्डरिंग आयरन के टांके और बेतरतीब सा तारों का जाल!(पिक4)

आइये कल्पना करते हैं कि हमने एक वेब पेज पलटकर देखा! कल्पना कीजिये कैसा दिखेगा.. रफ़ एंड अनमैनेज्ड! बिल्कुल ऊपर के उदाहरणों की तरह! बहुत सारी इंटर कनेक्टेड कोडिंग का जाल. दैट इज व्हाट इट विल लुक लाइक. हालाँकि इसको करना शायद अभी इम्पोसिबल ही हो, या अगर हम एक इमेजनरी चित्र बनाएं तो भी हमें बहुत सारी कोडिंग करनी पड़ेगी, क्योंकि वो सिर्फ इमेजनरी होगी, हकीकत नही.

चलिए और जानते हैं. जब हम कोई वेबपेज क्रियेट करते हैं तब हम बहुत सारा डाटा अपलोड करते हैं. वो सारा डाटा जाता कहाँ है? वो पूरी दुनिया में अलग अलग क्लाउड मेमोरी(पिक5) में सेव होता है. जो हम अपने वेबपेज पर देखते हैं वो ज्यादातर उसी तरह होता है जैसे किसी शोरुम का शोकेस. वहां पर सिर्फ थोड़ा सा डाटा इकठ्ठा होता है. बाकि का अपलोडेड डाटा कहीं दुनिया के किसी कोने में किसी कम्प्यूटर में सेव्ड पड़ा रहता है. जब हम पेज पर मौजूद कोई लिंक क्लिक करते हैं तो जैसे सैम्पल दिखाकर माल का ऑर्डर लेकर फिर गोदाम से असली डिलीवरी वाला माल उठाया जाता है, सेम वैसे ही आपका डाटा किसी सर्वर से होता हुआ आपके पास पहुँचता है, उससे पहले वो सुप्तावस्था में कहीं पड़ा रहता है, क्लाउड कम्प्यूटिंग की एक खासियत ये भी है कि आप कभी पता नही कर सकते कि आपका कौनसा डेटा किस देश में किस जगह, किस सर्वर में सेव पड़ा है.

अच्छा ये जो डेटा आता है ये भी सिर्फ क्लोनिंग ही होती है लगातार. जैसे आप किसी वेबसाइट से कोई ईबुक डाउनलोड करते हैं, एट द सेम टाइम कोई और भी कर रहा है.. उससे पहले और उसके बाद भी बहुत लोग करेंगे... जबकि ईबुक एक ही अपलोड हुई थी वेबसाइट पर.. लाखों, करोड़ों, अरबों प्रतियाँ कहाँ से आयीं? वही क्लोनिंग से!

बड़ी अमेजिंग है ये इंटरनेट की दुनिया.. जितना अंदर डूबती जाती हूँ मेरा आश्चर्य बढ़ता जाता है..

चलिए आपका बड़ा भेजा फ्राई किया, कुछ चित्र अपलोड कर रही हूँ नम्बर्स के साथ, विषय समझने में आसानी हो जिससे.. क्लोनिंग क्या होती है ये समझने के लिए एक लिंक भी कमेन्ट बॉक्स में दे रही हूँ और कोडिंग क्या होती है ये समझने के लिए भी! हालाँकि मुझे पता है कि ज्यादातर कोई उन लिंक्स पर नही जायेगा, पर फिर भी.. कोई समझना ही चाहे तो लिंक देने में क्या बुराई भला!

#पथिक

गीतू....😊

19/03/2019

कहने को था बहुत कुछ,
लेकिन बस कह ना पाए
बैठे थे रहगुज़र में,
बड़ी देर मेरे साये

#पथिक

गीतू.....😊

Read my thoughts on  https://yq.app.link/EaLElFQVmS  #शायरी  ी_बात  #रिश्ते  #रिश्ते_ऩाते
04/12/2018

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#शायरी ी_बात #रिश्ते #रिश्ते_ऩाते

Read my thoughts on  at https://yq.app.link/5O7JcofeaS  #दिल_की_बात  ी_बात समय इंसान को क्या कुछ बना जाता है। हम सब को ब...
26/11/2018

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#दिल_की_बात ी_बात

समय इंसान को क्या कुछ बना जाता है। हम सब को बदल देता है।

 #दीपावली_स्पेशल #कहानी: खुशियाँपापा.. पापा...बोल बिटिया...पापा आज दीवाली है ना?हाँ बिटिया, है!पापा वो मेरी सहेली है ना ...
07/11/2018

#दीपावली_स्पेशल

#कहानी: खुशियाँ

पापा.. पापा...

बोल बिटिया...

पापा आज दीवाली है ना?

हाँ बिटिया, है!

पापा वो मेरी सहेली है ना रीना, उसके पापा बहुत सारे पटाखे लाये हैं, मिठाई लाये हैं. तुम भी लाओगे ना?

हाँ बेटी लाऊंगा!

रामलाल ने लाचारी से अपनी पत्नी की तरफ देखा! पत्नी ने आँखों से इशारा किया, “सच जो बोल दो”
उसने आँखों ही आँखों में इंकार किया, “नही, मैं उसका दिल अभी से कैसे तोड़ दूँ?”

गुड़िया भी पापा के मिठाई और पटाखे लाने की बात सुनकर सारे घर में चहकती घूम रही थी. वो उसे देख कुछ मुस्कुराता हुआ और कुछ चिंता में घर से रिक्शा लेकर निकल गया.

वो मन ही मन सोच रहा था, “कह तो आया हूँ. करूँगा कैसे. हे भगवान् अब तू ही कुछ कर सकता है. अगर शाम को खाली हाथ लौटा तो गुड़िया कितनी उदास होगी?”
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रानी और राजीव में ललक थी दूसरों के चेहरों पर मुस्कुराहट देखने की. हर त्यौहार वो कुछ न कुछ ऐसा करते कि कुछ लोगों के हिस्से मुस्कुराहट आ सके. इस दीवाली भी उन्होंने बहुत सारे गिफ्ट, पटाखे और मिठाइयाँ खरीदीं थीं. वो दोनों ज्यादातर गरीब बस्तियों, अनाथालयों को ढूंढते कि कुछ जरुरत मंद लोगों तक ही सब कुछ पहुंचे.

उनके समाज के लोग एक दूसरे को महंगे महंगे गिफ्ट देते. कुछ अपने व्यापारों को चमकाने को तो कुछ लोग औपचारिक रिश्ते निभाने को. पर ये दोनों पति पत्नी इस सबमे ख़ुशी नही पाते, उल्टे उनको ये सब दिखावा लगता था. हालाँकि समाज में रहने को ये दिखावे भी ज़रूरी हैं पर वो हमेशा कहते, “भरे पेट वालों को जो चीज़ ख़ुश नही कर सकती वही चीज़ ज़रूरतमंद तक पहुंचे तो उसको सच्ची ख़ुशी दे सकती है.”

इस बार उन्होंने एक अनाथालय ढूंढ निकाला था. दीपावली की दोपहर दोनों अनाथालय चले गये. दोनों ने ख़रीदे हुए गिफ्ट, मिठाइयाँ और पटाखे बाँट दिए.
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शाम के चार बज गये थे. रामलाल अब तक सिर्फ २०० रूपये कमा पाया था. इलेक्ट्रोनिक रिक्शा के इस समय में उसकी रिक्शा में कम ही लोग बैठते हैं. उसपर उसकी पहुँच से बाहर थी खुद की रिक्शा खरीदना! ये रिक्शा भी वो सेठ की चलाता था दिहाड़ी पर.

वो हिसाब लगा रहा था “शाम तक ज्यादा से ज्यादा ५०-१०० रूपये और कमा पाउँगा. सेठ के ही २०० रोज़ के बनते हैं. १००-५० में क्या ले पाउँगा मैं? घर जाऊंगा ख़ाली हाथ तो गुड़िया रोएगी. सुबह कितनी खुश थी वो.”

बहुत उदास सा वो किसी सवारी की तलाश में एक गली की और बढ़ा.
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“अरे! राजीव, ये एक मिठाई का डिब्बा और ये पटाखे तो रह ही गये. ये सीट के नीचे गिर गये थे यार! अब इन्हें किसको दें?”

“आगे उठा लाओ. अब तो अनाथाश्रम से भी दूर आ गये हैं. वहीं देख लेते तो वहीँ दे देते!”

अनाथालय से निकलकर वो कुछ दूर जाकर घर का कुछ जरूरी सामान लेने रुके थे. सामान रखने जब रानी ने गाड़ी की पिछली सीट का गेट खोला तभी उसे ये सारा सामान गिरा दिखा था. उसने सब सामान इकठ्ठा किया और लेकर अगली सीट पर आ बैठी. राजीव ने गाड़ी ड्राइव करनी शुरू की. अपनी कॉलोनी तक आ गये. इत्तेफाक की बात कोई ऐसा नही दिखा जिसे ये सामान दिया जा सके. अपनी कॉलोनी में पहुंचे तो उनकी गाड़ी के आगे एक रिक्शा दिखी. राजीव ने उसे हॉर्न दिया, वो एक साइड हो गया. राजीव रिक्शा से आगे निकला ही था तभी रानी बोली, “रुको ये सामान इस रिक्शा वाले को दे देती हूँ.” राजीव ने हाँ में सर हिलाया और गाड़ी रोक ली. वो दोनों गाड़ी से उतरे और रिक्शावाले को रोका.

रिक्शा वाला रुक गया, “जी बाबु जी”

रानी ने उसे अपने हाथ का पैकेट पकड़ाया और बोली, “भैया अगर बुरा ना लगे तो ये दीपावली की मिठाई रख लो! और कुछ पटाखे हैं, हम अनाथाश्रम में बाँट कर आये हैं. ये बच गयी.”

रानी की बात सुनकर रामलाल को लगा कि मन मांगी मुराद पूरी हो गयी. वो खुश होते हुए बोला, “क्यों नही बहन जी, भगवान् आपको खुश रखे.”

उस समय उसके चेहरे की मुस्कान इस दुनिया की सबसे प्यारी मुस्कान लगी रानी और राजीव को! जो मुस्कान उन्हें अनाथाश्रम में भी किसी के चेहरे पर नही दिखी थी वो इस रिक्शावाले के चेहरे पर दिख रही थी. शायद इतने सालों में पहली बार ऐसी मुस्कान उन्होंने देखी थी. वो दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुराये. उधर रामलाल उन्हें धन्यवाद देता हुआ, दुआएं देता हुआ चला गया. इधर ये दोनों उसे जाते हुए देखते रहे काफी देर.
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रामलाल ख़ुशी ख़ुशी घर पहुंचा. वो उपहार मिलने के बाद ख़ुशी छुपा नही पा रहा था. गुड़िया की ख़ुशी के बारे में सोचकर उसकी आँखे नम हुई जा रही थीं. पापा के आने का पता लगते ही गुड़िया दौड़ती हुई आई. वो दिन भर से पटाखों और मिठाइयों के इंतजार में बैठी थी. दिन में वो जिस भी सहेली से मिलती सबको बताती, “शाम को मेरे पापा भी मेरे लिए मिठाई लायेंगे, पटाखे लायेंगे, फिर हम सब साथ मिलकर मिठाई खायेंगे और पटाखे छोड़ेंगे. तू भी आना मेरे घर.”

“पापा!” कूदकर पापा की गोद में चढ़ गयी गुड़िया. रामलाल ने भी उसे गले लगा लिया. दोनों की ही ख़ुशी का ठिकाना न था.
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आप सभी को मेरे और मेरे परिवार की और से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये. ईश्वर आप सभी के जीवन को, खुशियों और उजाले से भर दे.

#पथिक

गीतू.....😊

31/10/2018

#कहानी: #नुकसान

सुनो, मेरी तबियत सही नही है. ऐसा लग रहा है जैसे दम घुट रहा हो!

अच्छा, तुम एक काम करो! आराम करो, लेटी रहो, बच्चों को मैं स्कूल भेज देता हूँ.

रुक्मी उठने की कोशिश करती है पर नाकाम होने पर पति की सलाह मानकर वापस लेट जाती है. उधर अमित उठकर बच्चो को तैयार करने में लग जाता है और उनको भेजकर वापस रुक्मी के पास आता है.

अब कैसा लग रहा है रुक्मी?

सही नही लग रहा. तुम एक काम करो नीता भाभी को बुला दो.

क्यों? वो क्या करेंगी? चलो तुमको होस्पिटल लेकर चलता हूँ.

हाँ चलो, बहुत अजीब लग रहा है.

वो उसे उठाकर गाड़ी में लेकर जाता है, तब तक पड़ोस की एक दो औरतें भी इकट्ठी हो जाती हैं. उधर रुक्मी की घुटन बढती जा रही है. जल्दी से वो लोग हॉस्पिटल पहुँचते हैं वहां जाकर डॉक्टर स्थिति की गम्भीरता को देखकर उसे जल्दी से आईसीयू में एडमिट कर लेते हैं. पर उसे बचा नही पाते, हृदय गति रुकने से उसकी मृत्यु हो जाती है.
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वो लेटी हुई है, बीच आंगन में, कभी न उठने वाली नींद में सोई. रिश्तेदार चारों और बैठे है. सभी गमगीन हैं. उसके दो छोटे बेटे उसके पैरों की और बैठे हैं. बड़ा बेटा जो १३-१४ साल का है वो समझ रहा है की मृत्यु क्या है? मम्मी अब कभी लौटकर नही आएगी वो बुरी तरह रो रहा है, उसकी बड़ी बुआ उसको सम्भाल रही हैं.

“मेरे बच्चे चुप हो जा, ऐसे मत रो बेटे!” और वो है की चुप नही हो रहा. “बुआ! मेरी मम्मी क्यों चली गयीं हमे छोड़कर?” ये सवाल सबके ऊपर बिजली की तरह गिरा और पत्थर दिल भी उसके इस सवाल पर आंसू बहा उठे.

छोटा बेटा जो ८ साल का है उसे ज्यादा कुछ समझ नही आ रहा है. वो शायद जानता ही नही कि मौत क्या है और उससे कैसे उसका काफी कुछ छिन गया है? उसकी माँ के न रहने से भविष्य में उसको कैसे संघर्ष करना होगा? वो समझता ही नही. वो सबको देखकर कभी रोता है और कभी दूसरे बच्चो के साथ खेल में लग जाता है. वो बाकि सब समझ पाए या नही पर बड़े भाई का रोना उसको सच में परेशान कर रहा है. वो जाकर उसको सम्भालने की कोशिश करता है, “भैया! चुप हो जा! मत रो!” बड़ा भाई तो नही चुपता पर उसकी मासूम सी बात घर के दूसरे सदस्यों को रुला देती हैं.

तभी रुक्मी की माँ, बहन, छोटा भाई और पापा घर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते हैं. माँ दौड़कर आती है और रुक्मी को सीने से लगाकर विलाप करने लगती है, “हाय मेरी बच्ची! कहाँ चली गयी तू? तू मुझे छोड़कर कैसे जा सकती है? तेरी माँ बैठी है और तू चली गयी? अरे भगवान! कैसा है तू? तुझे जरूरत थी तो मुझे बुला लेता पर मेरी आँखों के आगे मेरे शरीर के टुकड़े को उठा लिया?” पीछे से फूट-फूट कर रोती बहन माँ को सम्भालने की कोशिश करती है. उधर अपने जिगर के टुकड़े को अपनी अंतिम शैया पर लेटा देख पिता जैसे बिना भौतिक मृत्यु को प्राप्त हुए मृत्यु के भागी हो गये हों. वो बेटी के पैरों की तरफ बैठे ऐसे रो रहे हैं कि ना किसी को दिखाई दे ना सुनाई! छोटा भाई उनको सम्भाल रहा है और खुद भी रो रहा है. उनके आ जाने से पूरे वातावरण में और ज्यादा उदासी छा गयी है. जो लोग रो रो कर चुप हो गये थे वो भी अब दहाड़े मार कर रोने लगे हैं.

अपनी सास को रोता देख अमित आता है और उनको गले से लगाता है. उसका भी सुबह से हाल खराब है. हालाँकि पुरुष होने का बोझ कंधे पर लिए वो ना खुलकर रो पा रहा है और ना ही किसी को अपना दर्द खुलकर बता पा रहा है. वो आकर अपनी सास को गले लगा लेता है.

वो फिर से जोर से रोने लगती है, “कहाँ भेज दिया तुमने मेरी बेटी को अमित?”

ये बात सुनकर वो मुंह नीचे करता है और कहता है, “मैंने कोशिश की पर बचा नही पाया उसे.”

“अब क्या करोगे? क्या होगा इन बच्चों का?” उसके स्वर में चिंता दिख रही थी.

“मैं हूँ ना मैं करूँगा”

वो ये कह ही रहा है कि उसे लगता है कि रुक्मी की माँ अचेत हो गयी है. वो जल्दी से पानी लाने को कहता है. अमित की छोटी बहन पानी लाने दौड़ती है.
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रुक्मी को कुशा की अर्थी पर लिटाया जा चुका है. परिवार के लोग कंधे देने को तैयार खड़े हैं. बड़ा बेटा आगे आगे आग लेकर तैयार है.

कोई कहता है, “चलो जल्दी उठाओ. समय बीता जा रहा है”.

कंधे देने वाले उसे उठाने लगते हैं. उसकी अर्थी जैसे ही ऊपर उठने लगती है उसकी माँ जोर से चीखती है, “नही! कोई नही ले जायेगा मेरी बच्ची को! उसे आग से डर लगता है. मुझे ले जाओ! मैं रह गयी यहीं! मेरी बिटिया चली गयी हे ईश्वर तेरा कैसा न्याय?” वो अर्थी को पकड़ने की कोशिश करती है पर भीड़ में खड़ी औरतें उसे पीछे खींच लेती हैं. रुक्मी चार कंधो पर सवार होकर चल देती है अंतिम यात्रा पर.

“राम नाम सत्य है, सत्य बोलो सत्य है”

पीछे उसका पिता दौड़ रहा है बेसुध होकर, “अरे मेरी बिटिया! मैंने कन्धों पर इस दिन देखने को थोड़े ही बिठाया था?” वो बदहवास है. उसने जब से इस मनहूस खबर को सुना है तब से वो पहली बार कुछ बोला है. भाई अर्थी के साथ साथ है, बुरी तरह रो रहा है पर खुद को सम्भाले हुए है किसी तरह. उधर अमित पहले की ही तरह पुरुष होने के बोझ से दबा अपने आंसू रोक रहा है. बड़ा बेटा आगे है. वो रो रहा है. छोटा बेटा मम्मी की अर्थी के साथ दौड़ रहा है, “मैं भी जाऊंगा मम्मी के साथ” उसकी बुआयें उसे पकड़ने को दौड़ रही हैं, “नही बेटा तू मत जा” वो उसको पकड़कर वापस लाती है. पुरुष ज्यादातर अर्थी के साथ हो गये हैं पर औरते पीछे ही रह गयी हैं. गोत्र परिवार की कुछ औरतें पीछे पीछे कुछ दूर तक चल रही हैं. वे रो रही हैं पर उनका रोना, रोना कम दिखावा ज्यादा लग रहा है. वो रोती हुई गाने जैसे स्वर में कुछ विलाप कर रही हैं.

पीछे छूट गयी महिलाएं वहीँ से अपने अपने घर को लौट रही हैं, सबको जाकर नहाना है अब. घर परिवार की और रिश्तेदारों की महिलाएं वापस घर के अंदर जा रही हैं.

बीच बीच में वो कुछ कुछ फुसफुसा रही हैं, “बड़ी अच्छी बऊ थी!” “कितनी सुंदर थी?” “बिचारी बड़ी सफाई रखे थी” “किसी से गलत ना बोली कभी” “कोई पहुँच जावे था तो कभी भूखा ना लौटा होगा” “आँखे कितनी सुंदर थीं” “ऐसी बऊ तो पूरी रिश्तेदारी में ना” “भगवान भी भलो को ही बुलाता है पहले, अच्छे लोगों की तो उसे भी जरूरत है”

उधर माँ वहीँ बैठ गयी है जाकर जहाँ वो आखिरी समय में रखी गयी थी वो कभी रो रही है कभी चुप हो रही है.

इतने में रुक्मी का छोटा बेटा जो बुरी तरह से रो रहा है अब, उल्टी कर देता है. दोनों बुआयें उसकी और दौड़ती हैं, “क्या हो गया बेटे?” बड़ी बुआ उसे गोद में उठा लेती है छोटी बुआ पानी लाती है. वो रो रहा है “मेरी मम्मी को बुला दो! मुझे मम्मी के पास जाना है. जब मुझे उल्टी होती है तो मम्मी मुझे एक दवाई देती है. उन्ही को पता है. उन्हें बुला दो.” दोनों बुआयें जोर से रोने लगती हैं और वो रोते हुए बड़ी बुआ के कंधे से लग जाता है. वो उसे कमरे में लेकर जाने लगती है. कोई पीछे से कहता है, “ओर सबके नुकसान की भरपाई हो जाएगी! माँ-बाप को अपनी बेटी और इन बच्चो को अपनी माँ कभी नही मिलेगी! नुकसान तो बस इन्ही का हुआ है!”

#पथिक

गीतू........

 #बुढ़िया_के_बाल #कुछ_यूँ_ही_मन_कीबाहर से वो आवाज़ आ रही थी, वही जानी पहचानी! घंटी की टनटन! उसे लगा कि वही होना चाहिए. उसन...
23/10/2018

#बुढ़िया_के_बाल

#कुछ_यूँ_ही_मन_की

बाहर से वो आवाज़ आ रही थी, वही जानी पहचानी! घंटी की टनटन! उसे लगा कि वही होना चाहिए. उसने झांक कर देखा! हाँ वही था. वही जो जादू सा लिए फिरता है अपनी साईकिल पर, रंग बिरंगा जादू. मुंह में जाते ही घुल कर मिठास घोल देने वाला जादू. खिड़की में से झांकते हुए फिर से वही अहसास जाग गया जो तब जाग जाता था जब वो ७-८ साल की बच्ची थी. उसका मन हुआ कि इन जादुई फाहों को ले आये, और सहेज के रख ले कहीं अलमारी में जहाँ से कभी भी निकालकर वो जी सके फिर से अपने बचपन को! वो खरीद ले उस घंटी को मुंह मांगे दाम में और रख ले अपने पास. आखिर बिना उस घंटी की आवाज़ के वो रंग बिरंगे फ़ाहे कहाँ वो अहसास जगा पाते हैं जो बचपन को जिया जा सके!
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जैसे ही वो टन टन की आवाज़ सुनती घर में बनी बैठक में भागती और उसकी खिड़की में चढ़ जाती.

फ्रॉक पहने अपने छोटे छोटे हाथों से खिड़की में लगी लोहे की छड़ों को पकड़कर ऊपर चढ़कर देखती और वहीं बैठ जाती, उस पास आती टन टन को देखने के लिए कि उसका लगाया अनुमान सही है या नही! वो पुराने घरों की पुरानी ऐसी दीवारों में फंसी खिड़कियाँ, जो इतनी मोटी होती थीं की खिड़की के पीछे बैठने की अच्छी खासी जगह बच जाती थी. उसी जगह में बैठकर वो इतज़ार करती और तब तक बैठी रहती जब तक वो जादुई साईकिल वाला पास न आ जाता.

जैसे वो आंखो के सामने आता, वो वहीं से चीखती, “भैया! रुक जाओ, मैं आ रही हूँ अभी.”

फिर खिड़की में से धम्म से कूदकर भागती और सीधे अम्मा के पास जाती, “अम्मा जी बाहर बुढ़िया के बाल वाला है! मैं लूंगी!”

अम्मा कभी ना कर देतीं और कभी २५ पैसे उसकी छोटी हथेलियों में रख देतीं. वो दौड़ के जाती और उस बुढ़िया के बालों वाले को २५ पैसे दे देती और वो उसे ५ डंडियाँ थमा देता जिनमे वो बारीक़, रेशमी, फूले हुए और मीठे, बुढ़िया के बाल होते. कभी कभी जब उसे रंग पसंद न आता तो वो बदल लेती अपने मनपसन्द रंग से. उसे पीला रंग पसंद न था पर गुलाबी रंग की जैसे दीवानी थी. उन्ही में से लाल रंग भी उसे मोह लेता तो कभी कभी हरे रंग पर फ़िदा हो जाती वो.

वो घर आती, छोटी बहन को दो थमाती, दो खुद लेती और एक अम्मा को दे देती और फिर सेकेंडों में ही वो जादू की तरह मुंह में घुलकर गायब हो जाते. उसे हमेशा लगता था कि इनको खाना किसी रहस्य को सुलझाना ही है. कैसे ये इतने बड़े होकर भी यूँ गायब हो जाते हैं? रंग जाती है जीभ उसके रंग से, और वो दो हाथ जीभ बाहर निकाल कर सखियों को दिखाती, “देख मेरी जीभ लाल हो गयी!” उसे वो जीभ का रंग बदलना बड़ा अच्छा लगता था.

वो सोचा करती क्यों इनको कोई बुढ़िया के बाल कहता होगा? बुढ़िया के बाल तो सफ़ेद होते हैं? ये रंग बिरंगे हैं! और बुढ़िया के बाल ऐसे कहाँ मुंह में गायब हो जाते होंगे? ना ही वो ऐसे स्वाद होते होंगे? क्या सच में ऐसी कोई बुढ़िया होगी जिसके रोज़ इतने बाल होते होंगे कि जिनसे ये मीठे जादू बनते होंगे? कहाँ रहती होगी वो? ये बालों वाले भैया उसे पैसे देते होंगे ना? बाल काटकर वो देखने में कैसी लगती होगी? ऐसे ही ना जाने कितने बाल सुलभ प्रश्न उसके मन को मथते. एक दिन ये रहस्य तब सुलझ गया जब उसने अम्मा के सामने ये सवाल खड़े कर दिए और अम्माजी ने उसको बताया, “बेटे ये बुढ़िया के बाल सचमुच में किसी के बाल नही होते. ये इतने रेशमी होते हैं और बारीक़, कि इनको बुढ़िया के बाल कह देते हैं.” उस दिन जादू का एक भाग ढह गया था.
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आज यूँ खिड़की में से झांकते हुए उसे लग रहा है की जादू शायद इस बुढ़िया के बाल में नही, जादू तो बचपन में था. छोटी छोटी बातों का कौतुहल! बुढ़िया के बाल जैसी चीज़ भी जिसमे जादुई लगे, वो उम्र जादू नही तो क्या है? और देखो ना तब बड़े होना भी जादुई था. तब सोचते कि बड़े हो जाना कितना बड़ा काम है. बड़े होकर कैसा लगता होगा. तब लगता कि जो काम आज पहुँच में नही वो सभी काम पहुँच में हो सकते हैं बड़े होकर. सच तब बड़ा हो जाना कितना जादुई लगता था. आज लगता है कि जादू तो बचपन में ही था. वो जादू जो हर चीज़ को कौतुहल से देखना सिखाता था.
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और वो रंग बिरंगे बुढ़िया के बाल वाला गुज़र गया आँखों के सामने से, जैसे एक युग गुज़रा हो अहसासों का! जैसे कोई पुराने गानों की कैसिट पुराने से ट्रांजिस्टर में बजा गया हो. वो खोई हुई यादों में यूँ ही खड़ी रही कुछ देर अपने घर की खिड़की पर और वो घंटी की आवाज़ दूर होती गयी.

#पथिक

गीतू......😊

तस्वीर गूगल से साभार

 #कुछ_यूँ_ही_मन_की #मोरपंखमोर पंख कृष्णा के माथे का श्रृंगार! रंगबिरंगा होता है मोर पंख और रंगबिरंगा है श्री कृष्ण का व्...
19/10/2018

#कुछ_यूँ_ही_मन_की

#मोरपंख

मोर पंख कृष्णा के माथे का श्रृंगार! रंगबिरंगा होता है मोर पंख और रंगबिरंगा है श्री कृष्ण का व्यक्तित्व! यदि उनके माथे का श्रृंगार कुछ हो सकता था तो वो यही है... रंगीला, स्निग्ध, मुलायम, चमकीला मोर पंख.

मैंने कभी नही रखा कोई मोर पंख किताबों में. यदि मैं किताबों में मोर पंख रखती भी तो भी शायद कोई चमत्कार न होता. पर कुछ होता तो वो होतीं उससे जुड़ी थोड़ी सी और कहानियां. शायद मैं यूँ ही खुश होकर कभी अपने सपनों के प्रेमी को उपहार में वो मोर पंख दे देती या शायद मेरी किताब में रखा मोर पंख उसी का उपहार होता? हो सकता था कि मेरी किताब के पन्नो से निकलकर वो मोर पंख जमीन पर गिर गया होता और उसी के हाथों में आ जाता और वो दौड़कर उस मोर पंख को मेरे पास पहुँचाता और जिंदगी में एक नई कहानी जन्म ले लेती. हाँ मैंने नही रखा कभी मोर पंख मेरी किताब में इसलिए शायद कुछ कहानियां कम हैं मेरी जिंदगी में. हो सकता था कि कभी वो मेरा प्रिय मोर पंख मुझे चिढ़ाने को कहीं यूँ ही छुपा देता और मैं उसको खोजती अपनी स्कूल बैंच के आसपास और वो वहीँ दूसरी बैंच पर बैठकर शरारत से मुस्कुराता और जब मैं अचानक से उसे देखती तो वो ओढ़ लेता एक झूठी गंभीरता, पर मैं समझ जाती, फिर होती हम में एक तीखी नोक झोंक! सोचती हूँ कि उस नोकझोंक की कितनी मीठी यादें आज मुझे गुदगुदा रही होतीं. मैं शायद भाव विभोर होती उसको याद करके! काश कि मैंने किताबों में रखा होता मोर पंख!

यदि मैं वास्तु शास्त्री होती तो आज आप लोगो को बता रही होती की किस तरह घर के एक विशिष्ट कोने में मोर पंख लगाने से घर की नकारात्मक उर्जा समाप्त होती है या फिर बताती की किस तरह द्वार पर गणेश प्रतिमा के मस्तक पर मोर पंख लगाने से होते हैं दूर सारे वास्तु दोष. या फिर बताती की एक मोर का पंख घर के मन्दिर में रखने भर से आपके कष्ट कैसे दूर होते हैं.

यदि मैं ओझा होती तो फिर आपको बताती की मोर पंखो का झाड़ा कैसे दूर कर देता प्रेत बाधाएँ!

या फिर मैं आयुर्वेदाचार्य होती तो शायद कहती की मोर पंख की भस्म कौनसे रोगों में अचूक औषधि है. या फिर किस तरह यह पुत्र प्राप्ति की कामना में प्रयुक्त की जाती है.

काश की मैं होती भिन्न भिन्न संस्कृतियों का अध्ययन करने वाली, तो आपको बताती की कैसे हमारे देश का राष्ट्रिय पक्षी मोर है और इसके पंख विशिष्ट होने भर का इसमें क्या योगदान है? या फिर इतना ही कहती कि पुरात्त्न मान्यताओ में मोर क्यों विशिष्ट है या पश्चिमी सभ्यता जो कभी मोर को दुर्भाग्य का प्रतीक समझती थी वो आज इसकी उपयोगिता के बारे में क्या सोचती है? या फिर ये लक्ष्मी जी को क्यों प्रिय है, या फिर मोर ही क्यों है वाहन शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का!

पर अफ़सोस मैं उपरोक्त में से कुछ भी नही. मैं तो बस एक साधारण सी लेखिका हूँ जो अचानक से मोर पंख सामने आने भर से अपने विचारों पर नियन्त्रण न रख सकी. याद है मुझे मेरे घर पर दर्जन भर से ज्यादा मोर पंख हुआ करते थे, जिनको हम तरह तरह से घर को सजाने में उपयोग किया करते थे. मुझे वो मोर पंख बहुत प्रिय थे. मैं चकित हो जाती थी उनके रंगो को देखकर! ऐसे चमकीले! ऐसे विशिष्ट! कोई रंग नही था उनमे जिसे मैं नही देख सकती थी. सूरज की रौशनी में चमकते हुए से रंग. बीचों बीच हतप्रभ करने वाला नीला रंग और फिर बाहर की तरफ को जाते हुए रंगों का इन्द्रधनुष सा. मुझे याद है इनकी ये संरचना मेरे बचपन का एक कौतुहल थी. मैंने एक ही वस्तु में इतने सारे रंग कहीं और नही देखे.

मैं उनको अपने चेहरे से लगाती. पूरे चेहरे पर घुमाती किसी कूची की तरह! अहा वो उनकी मुलायमियत! कितनी मासूम? कितनी अपनी? माँ के स्पर्श जैसी मुलायम! प्रेमी के स्पर्श जैसी रूमानी. क्या आपने कभी उन मोर पंखो की गंध को महसूस किया है? जैसे ही उस चित्र को देखा मेरी स्मृतियों से निकलकर वो गन्ध मेरे अन्तस् पर छा गयी जैसे!

उस मोर पंख को देखकर जग उठे वो हजारों अहसास जो मैंने कभी जिए हैं कभी.

कृष्ण के माथे का श्रृंगार मेरे मन को भी उल्लासित करता रहा. कल अचानक से वो उल्लास जैसे जाग गया. बहुत दिन बाद अचानक से कुछ अहसास जाग गये और मैं भर उठी अजीब से रोमांच से.

ना जाने क्यों कल से ही सोच रही हूँ कि काश मैंने रखे होते मोर पंख अपनी किताबों में भी. तो शायद कल उस मोर पंख को देखना और रूमानी होता!

@पथिक

गीतू....

संलग्न चित्र मित्र की वाल से साभार!

 #कुछ_यूँ_ही_मन_की #कुछ_रातें_जो_गुज़र_जाती_हैं_जागते_जागतेरात के इस प्रहर जब घड़ी बता रही हो कि अब रात के १:२० हो चुके है...
15/10/2018

#कुछ_यूँ_ही_मन_की

#कुछ_रातें_जो_गुज़र_जाती_हैं_जागते_जागते

रात के इस प्रहर जब घड़ी बता रही हो कि अब रात के १:२० हो चुके हैं ओर आप अभी भी अपने बिस्तर पर लेटकर अपनी चादर में मुंह छुपाये इंतज़ार कर रहे हों नींद का! और नींद! जैसे की अस्तित्व ही ना हो नींद का! जैसे नींद किसी परीकथा का परीलोक हो जिसका अस्तित्व ही ना हो इस संसार में. जैसे संसार में सब कुछ नश्वर होने से आपकी नींद भी नष्ट हो गयी हो. आप एक पल आँखें बंद करते हैं और ऐसी स्थिति में पहुंचना चाहते हैं जहाँ आपका शरीर और मन दोनों ही आरामदायक अवस्था में पहुँच जाएँ और आप अपने विचारो से क्लांत ‘मन’ और दिन भर के कार्यों से क्लांत ‘शरीर’ को आराम दे सकें!

आप दो पल टिककर लेटते हैं और अगले ही पल आपका बेचैन मन आपको टिकने नही देता. आप बायीं करवट लेते हैं और फिर एक मिनट बाद ही बेचैन होकर सीधे हो जाते हैं, फिर दाहिनी करवट लेकर कुछ देर शांत होकर सोने की चेष्टा करते हैं लेकिन फिर से आप खुद को उतना ही अस्थिर पाकर फिर से सीधे, फिर दाहिने, बाएं... आपके शरीर की गति आपके मन की गति के जैसी ही हो जाती है. इसी क्रम में लगातार आप बेचैन होते रहते हैं.

विचारों की श्रंखलायें अक्सर रात में आकर आपके मन पर काबिज़ हो जाती हैं. एक के बाद एक.. कभी अतीत तो कभी वर्तमान और कभी भविष्य. आपकी चिन्ताओ के अनेक कारण. जब नींद नही आती और आप अपने अंतःकरण का बारीक़ निरिक्षण करते हैं. आप कोशिश करते हैं कि आखिर क्या वजह है कि नींद नही आती? आखिर ये कौनसी बेचैनी है जो यूँ जगाये रखे है अबतक? अपने दिल को झिंझोड़ने हैं, तब जाकर पता लगता है कि बीती हुई बातों की गहरी छाप हैं जो आपके मन पर लगी हैं अभी भी. पहले भी जिन बातों ने महीनों नही सोने दिया था, जिन बातों को आप आज भी गाहे बगाहे याद कर ही लेते हो! वही बातें तो अभी भी सर उठाये आपके सामने खड़ी हैं. कई बार होता है, जब आप दिन के समय में वही सब कुछ सोच रहे होते हैं, तब आपको लगता है कि आप कुछ बातों को दिल से निकाल चुके. पर रात के इस प्रहर वही बातें आपको बेचैन कर जाती हैं! आपको समझ आता है कि बीते हुए जीवन की भी आपके वर्तमान में उतनी ही जगह है जितनी पहले थी. उन बातों को याद कर आपकी आँखों के कोर गीले हो जाते हैं.

जब आप आज अचानक से होने वाली इस बेचैनी के पीछे के कारण को जानने की और गहरे से कशिश करते हैं तो आप समझ पाते हैं कि ये बेचैनी अचानक नही है, इसका कारण है वर्तमान में हो रही कुछ दूसरी घटनाएँ. जो कैसे ना कैसे आपके अतीत से जुड़ी हैं. कुछ ऐसे लोग जो आपको पुराने दिनों की याद दिलाते हैं. कुछ ऐसे पल जो किसी भी तरह बीते लम्हों की ज़ेरोक्स कॉपी से हैं. फिर एक एक कर आपको याद आती हैं पिछले कुछ समय की घटनाएँ. आपको याद आता है कल, आज सुबह, दोपहर, शाम और रात तक के बीते हुए पल, आपको नजर आती है वो समानता जो आपको किसी भी तरह विचलित कर देने के लिए काफी है. आपको याद आता है पिछला महीना जिसने आपके ज़ख्मों पर मरहम रखा था और याद आता है बीता हुआ कुछ ओर समय जिसने फिर से उन्ही ज़ख्मों को नये सिरे से उधेड़ भी दिया! वो खालीपन, वो मायूसी जिससे आप बहुत कोशिश के बाद बाहर निकल पाए थे, अचानक से आपके ऊपर जैसे फिर से हावी हो रही हो. जैसे जिस टूटन को जोड़ने में आपने जो कीमती लम्हे लगाये थे अचानक से उनका खर्च करना व्यर्थ हो गया हो.

विचारों की इस लम्बी श्रंखला में ना आप आराम पाते हैं ना आप चैन पाते हैं. बस देखते रहते हैं सबकुछ अपने हाथ से फिसलते हुए. ऐसा नही है कि आप इस बार भी पिछली बार की तरह लापरवाह थे. आपको परवाह थी खुद की! आप नही चाहते थे इस टूटन को फिर से अपने जीवन में लाना. आपने किये थे सारे प्रयास इससे दूर भागने के... आखिर दूध का जला छाछ को भी फूंक मार कर जो पीता है. आप दिन रात भागे थे खुद की कमजोरियों से दूर. आपने जी भर कशिशे की थीं अपना दामन छुड़ाने की! पर आपकी एक कमज़ोरी आपकी सभी कोशिशों पर भारी थी. और आप फिर से फंसे थे मोहजाल में. और आपका ये मोहजाल आपको फिर से उसी बेचैनी और उदासी में छोड़ गया.

अब रात के इस प्रहर यदि आपको आपका वर्तमान, अतीत में लेजाकर छोड़ दे तो फिर मुलायम बिस्तर भी काँटों की शैया सा लगता है. आपकी अतीत की कड़ियाँ जुड़ती हैं वर्तमान की कड़ियों से और आपको करवटें बदलने को मजबूर करती हैं. ना जाने कितना ज़रूरी होता होगा अपनी कमजोरियों पर विजय पाना जीवन जीने के लिए! पर एक सुख से भरी रात और सुकुनदायक नींद के लिए ये बहुत ही ज़रूरी है!

#पथिक
गीतू.......😊

तस्वीर गूगल से साभार

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