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30/10/2022

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12/10/2022

¯\_(ツ)_/¯

 ानी_मेरे_नेता_जी_की *कांशीराम को संसद पहुंचाया मुलायम सिंह ने*   मुलायम सिंह  ने कांशीराम को ऐसा मुकाम हासिल कराया जिसक...
10/10/2022

ानी_मेरे_नेता_जी_की

*कांशीराम को संसद पहुंचाया मुलायम सिंह ने*

मुलायम सिंह ने कांशीराम को ऐसा मुकाम हासिल कराया जिसकी उन्हे अपने राजनीतिक जीवन में लंबे अरसे से तलाश थी. कांशीराम देश की राजनीति में काफी लंबे अरसे से सक्रिय थे. लेकिन कई बार चुनाव लड़ने के बावजूद उनका संसद पहुंचने का सपना पूरा नही हो पा रहा था.

सन् 1991 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह का अपने प्रति विशेष स्नेह देखते हुए बसपा संस्थापक कांशीराम ने इटावा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और इस चुनाव की पहली जनसभा जसवन्तनगर के तमैरी गांव में संपन्न हुई थी. जैसे ही आम जनता को मुलायम और कांशीराम की जोड़ी दिखाई दी वैसे ही भीड़ से नारा निकला, " मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़़ गए जय श्रीराम". यह वो समय था जब राम मंदिर का मुद्दा बेहद गर्म था. अपने धुर राजनैतिक विरोधी होने के बावजूद भी मुलायम सिंह ने कांशीराम को इटावा से पहली बार सांसद का चुनाव जीतवाकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचा दिया.

पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह ने कांशीराम के ठहरने, जनसभाओ की व्यवस्था और चुनावी प्रबंधन का अपनी जिम्मेदारी समझकर विशेष ख्याल रखा. कांशीराम उस समय इटावा के जिस अनुपम होटल में ठहरे थे, एक बार हमें भी वहां सन् 2000 के आस- पास जाने का मौका मिला था. तब होटल के मालिक ने किसी प्रसंगवश उस चुनाव की चर्चा की और नेताजी के दरियादिली के बारे में बताया कि उस चुनाव के प्रचार के दौरान होटल के सभी 28 कमरों को मुलायम सिंह ने कांशीराम जी के लिए बुक करा दिया था. कमरा नंबर 6 में कांशीराम रूके थे और कमरा नंबर 7 में उनका सामान रखा था. इसी होटल में कांशीराम ने अपना चुनावी कार्यालय भी बना रखा था. होटल के मालिक ने बताया वह जमाना लैंड लाइन फोन का था और नेताजी का रोज फोन आता कि कांशीराम जी को कोई दिक्कत नही होनी चाहिए वो हमारे मेहमान है. मुलायम सिंह ने कांशीराम जी कमरे में होटल मालिक से कहकर एक लैंड लाइन उनके कमरें में भी लगवा दिया था जिसपर वे दोनो लोग चुनाव संबंधी लंबी बातचीत करते थे.

मुलायम सिंह ने पूरे चुनाव के दौरान इटावा में कई जनसभाएं और रोड़ शो कांशीराम जी के समर्थन के लिए किया. अपने कार्यकर्ताओं को विशेष जिम्मेदारी सौंपकर उसका समय समय पर फीड बैक लेते रहे. जिसका परिणाम रहा कि कांशीराम जी 1991 में देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने में सफल रहे.

ऐसे थे हमारे नेताजी.

#धरतीपुत्रकीकहानी

09/10/2022

किसी भी एंड्रॉयड SAMSUNG मोबाइल पर चांदी का सिक्का फ्री.....

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08/10/2022

कितनी मोहब्बत में पला था
जागीरे हजारों साथ लाया है
चल रहा है नफरतो को हराने
अब मोहब्बत का पैगाम लाया है।

थी लथपत बाहों में दादी की लाशें
फिर भी देख खामोशी से सह गया
ज़ख्म भरे भी नहीं थे उसके
फिर पिता का साया भी ढह गया।

नफ़रतों ने छीनी सारी खुशियां
पर उसके भीतर का प्रेम न गया
माँ पिता दादा दादी के सपने
बस लेकर वो आगे बढ़ गया ।

गिराना चाहा हर कदम हुक्मरानों ने
पर वो मुस्कराके बस आगे बढ़ गया
नेकदिली उनकी नफ़रतीयों को न भायी
पर प्रेम का बीज लेकर वो आगे बढ़ रहा।

हुक्मरानी में भरी है जाहिलो की भीड़ जो
इसको बताने सड़कों पर वो चल रहा
इरादे नेक है समझना होगा अब सभी को
आओ जोड़े भारत साथ चल उसके कदम दो।

आशीष

#राहुल_गाँधी_जी
#भारत_जोड़ो_यात्रा

07/10/2022

हमने ब्रिटेन को अर्थव्यवस्था में पीछे छोड़ा है लेकिन ब्रिटेन आज भी अपने नागरिकों को मुफ्त शिक्षा देता है और अब उसपर 18% जीएसटी लगाकर बैठे हुए हैं!

07/10/2022

फिर लड़ने की खबर है आई
वंदे भारत से किसी की भैस तकराई ।

07/10/2022

बहुत साधारण सी बात है। जब आप ख़ुद को नागरिक कहते हैं, तब आपका संबंध केवल संविधान से होता है। आप धर्म के अनुयायी हो सकते हैं लेकिन नागरिक केवल संविधान की व्यवस्था के होते हैं। नागरिक होना सबसे मुश्किल काम है। इसका काम केवल मतदान करना नहीं होता है। संविधान पर नज़र रखनी होती है और उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है। यह इंटरव्यू बहुत पुराना है। द वायर के एक कार्यक्रम का है, जो दिल्ली में हुआ था।

रवीश कुमार

07/10/2022

देख लो कट्टर हिन्दुओं किसके खून में कितनी शुद्धता है।

मुख्य राजपूत-मुग़ल वैवाहिक संबंधों की सूची
जनवरी 1562, अकबर ने राजा भारमल की बेटी से शादी की (कछवाहा-अंबेर)
नवंबर 1569, महारावल हरिराज सिंह ने अपनी पुत्री राजकुमारी नाथी बाई का विवाह अकबर से किया (भाटी-जैसलमेर)[13][14][15][16]
15 नवंबर 1570, राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह अकबर से किया (राठौर-बीकानेर)
1570, मालदेव ने अपनी पुत्री रुक्मावती का अकबर से विवाह किया (राठौर-जोधपुर)
1573, नगरकोट के राजा जयचंद की पुत्री से अकबर का विवाह (नगरकोट)
मार्च 1577, डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)
1581, केशवदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया (राठौर-मोरता)
16 फरवरी, 1584, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का भगवंत दास की बेटी से विवाह (कछवाहा-आंबेर)
1587, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से विवाह (राठौर-जोधपुर)
2 अक्टूबर 1595, रायमल की बेटी से दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)
28 मई 1608, जहांगीर ने राजा जगत सिंह की बेटी से विवाह किया (कछवाहा-आंबेर)
1 फरवरी, 1609, जहांगीर ने राम चंद्र बुंदेला की बेटी से विवाह किया (बुंदेला, ओर्छा)
अप्रैल 1624, राजकुमार परवेज का विवाह राजा गज सिंह की बहन से (राठौर-जोधपुर)
1654, राजकुमार सुलेमान शिकोह से राजा अमर सिंह की बेटी का विवाह (राठौर-नागौर)
17 नवंबर 1661, मोहम्मद मुअज्जम का विवाह किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौर की बेटी से (राठौर-किशनगढ़)
5 जुलाई 1678, औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद आजाम का विवाह कीरत सिंह की बेटी से हुआ. कीरत सिंह मशहूर राजा जय सिंह के पुत्र थे (कछवाहा-आंबेर)
30 जुलाई 1681, औरंगजेब के पुत्र काम बख्श की शादी अमरचंद की बेटी से हुए (शेखावत-मनोहरपुर)।

05/10/2022

#मेला!!!!!!

एक भीड़ जिसमें विचारशून्यता,तर्कहीनता,अंधविश्वास है।इस भीड़ में उपस्थित ज्यादातर लोगों में न सिर्फ विचारों व तर्को का अभाव होता है बल्कि इस भीड़ का का बहुत बड़ा हिस्सा भारतीय संस्कृति और समाज की परिभाषा से परे अनैतिकता,संकीर्ण सोच तथा असामाजिकता लिए इधर उधर मचलते हुए नजर आते हैं।
इस भीड़ में सिर्फ एक वर्ग है जो निश्छल मन से सिर्फ अपनी आपूर्ति पर आँख गड़ाए हुए होता है वो है बालक/बालिका वर्ग।इस वर्ग को न तो किसी धार्मिक ढोंग से मतलब होता है और न ही किसी अनैतिक सोच से।
हाँ इस भीड़ का दूसरा किशोर वर्ग भी धार्मिक ढोंग से बचा होता है लेकिन वह अपनी उम्र में होने वाले परिवर्तनों के कारण इधर उधर आकर्षित होता रहता है।
इस भीड़ का युवा(पुरुष)वर्ग जिसमें 40% नशेड़ी वर्ग होता है उसमें शिष्टाचार,नैतिकता,संस्कार का पूर्ण अभाव होता है और वह इस भीड़ की आड़ लिए किसी भी उन्माद/अभद्रता/अनैतिकता को कर जाने के लिए लालायित होता है,जिसका जिम्मेदार वह अकेले भी नहीं होता है अपितु कुछ उसकी हमउम्र महिला वर्ग भी होती है।अब इसमें कोई य़ह न कहे कि मैं प्रेम पर ऊंगली उठा रहा हूँ ,यहाँ पर मैं पवित्रता/नैतिकता/सभ्यता पर सवाल कर रहा हूं।
इस भीड़ का एक वर्ग जो कि ब्राह्मणवाद आडंबर का शिकार पूरी तन्मयता से उस मिट्टी की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा होता है जो अगले दिन खुद के अस्तित्व को बचाने में असफल होने वाली होती है और न जाने किस नदी नाले पोखरे में फेंकी जाने वाली होती है।

यही वह समाज है जिसको अपने महापुरुषों की विचारधारा की कोई परवाह नहीं है और न ही अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाने का जुनून लेकिन पाखंड आडंबर से भरा हुआ काल्पनिक ढोंग ढोने का इनमे ज़ज्बा जरूर है।
यह ठगा/बहका हुआ समाज न तो अपने इतिहास को जान सका और न ही महापुरुषों के बलिदानों के लिए लड़ सका पर हाँ अपने महापुरुषों को राक्षस मानकर उनका पुतला जरूर फूंकते आ रहा है।

05/10/2022

मोदी ने बीएसएनएल का 5G क्यूँ लांच नहीं किया?
बीएसएनएल को 5G स्पेक्ट्रम आवंटन क्यूँ नहीं?
क्या मोदी देश के छुटभैये नेता है जो घूम घूमकर जहां तहां फीता काट रहे हैं?

05/10/2022

ब्राह्मण आरक्षण की मांग सरकार से कर रहा है न कि भगवान से..
क्योंकि
उसको पता है कि दुनिया में भगवान नाम की कोई चीज नहीं है⁉️

हमारा अपना महिषासुर-गौरी लंकेशएक दैत्य अथवा महान उदार द्रविड़ शासक, जिसने अपने लोगों की लुटेरे-हत्यारे आर्यो से रक्षा की...
05/10/2022

हमारा अपना महिषासुर
-गौरी लंकेश

एक दैत्य अथवा महान उदार द्रविड़ शासक, जिसने अपने लोगों की लुटेरे-हत्यारे आर्यो से रक्षा की।

महिषासुर ऐसे व्यक्तित्व का नाम है, जो सहज ही अपनी ओर लोगों को खींच लेता है।

उन्हीं के नाम पर मैसूर नाम पड़ा है।

यद्यपि हिंदू मिथक उन्हें दैत्य के रूप में चित्रित करते हैं, चामुंड़ी द्वारा उनकी हत्या को जायज ठहराते हैं, लेकिन लोकगाथाएं इसके बिल्कुल भिन्न कहानी कहती हैं।

यहां तक कि बी. आर. आंबेडकर और जोती राव फूले जैसे क्रांतिकारी चिन्तक भी महिषासुर को एक महान उदार द्रविडियन शासक के रूप में देखते हैं, जिसने लुटेरे-हत्यारे आर्यों (सुरों) से अपने लोगों की रक्षा की।

इतिहासकार विजय महेश कहते हैं कि ‘माही’ शब्द का अर्थ एक ऐसा व्यक्ति होता है, जो दुनिया में ‘शांति कायम करे।

अधिकांश देशज राजाओं की तरह महिषासुर न केवल विद्वान और शक्तिशाली राजा थे, बल्कि उनके पास 177 बुद्धिमान सलाहकार थे।

उनका राज्य प्राकृतिक संसाधनों से भरभूर था। उनके राज्य में होम या यज्ञ जैसे विध्वंसक धार्मिक अनुष्ठानों के लिए कोई जगह नहीं थी।

कोई भी अपने भोजन, आनंद या धार्मिक अनुष्ठान के लिए मनमाने तरीके से अंधाधुंध जानवरों को मार नहीं सकता था।

सबसे बड़ी बात यह थी कि उनके राज्य में किसी को भी निकम्मे तरीके से जीव काटने की इजाजत नहीं थी।

उनके राज्य में मनमाने तरीके से कोई पेड़ नहीं काट सकता था। पेडों को काटने से रोकने के लिए उन्होंने बहुत सारे लोगों को नियुक्त कर रखा था।

विजय दावा करते हैं कि महिषासुर के लोग धातु की ढलाई की तकनीक के विशेषज्ञ थे।

इसी तरह की राय एक अन्य इतिहासकार एम.एल. शेंदज प्रकट करती हैं, उनका कहना है कि “इतिहासकार विंसेन्ट ए स्मिथ अपने इतिहास ग्रंथ में कहते हैं कि भारत में ताम्र-युग और प्राग ऐतिहासिक कांस्य युग में औजारों का प्रयोग होता था।

महिषासुर के समय में पूरे देश से लोग, उनके राज्य में हथियार खरीदने आते थे। ये हथियार बहुत उच्च गुणवत्ता की धातुओं से बने होते थे।

लोककथाओं के अनुसार महिषासुर विभिन्न वनस्पतियों और पेड़ों के औषधि गुणों को जानते थे और वे व्यक्तिगत तौर पर इसका इस्तेमाल अपने लोगों की स्वास्थ्य के लिए करते थे।

क्यों और कैसे इतने अच्छे और शानदार राजा को खलनायक बना दिया गया?

इस संदर्भ में सबल्टर्न संस्कृति के लेखक और शोधकर्ता योगेश मास्टर कहते हैं कि “इस बात को समझने के लिए सुरों और असुरों की संस्कृतियों के बीच के संघर्ष को समझना पडेगा”।

वे कहते हैं कि “ जैसा कि हर कोई जानता है कि असुरों के महिषा राज्य में बहुत भारी संख्या में भैंसे थीं। आर्यों की चामुंडी का संबंध उस संस्कृति से था, जिसका मूल धन गाएं थीं। जब इन दो संस्कृतियों में संघर्ष हुआ, तो महिषासुर की पराजय हुई और उनके लोगों को इस क्षेत्र से भगा दिया गया”।

कर्नाटक में न केवल महिषासुर का शासन था, बल्कि इस राज्य में अन्य अनेक असुर शासक भी थे।

इसकी व्याख्या करते हुए विजय कहते हैं कि “1926 में मैसूर विश्वविद्यालय ने इंडियन इकोनामिक कांफ्रेंस के लिए एक पुस्तिका प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक राज्य में असुर मुखिया लोगों के बहुत सारे गढ़ थे।

उदाहरण के लिए गुहासुर अपनी राजधानी हरिहर पर राज्य करते थे।

हिडिम्बासुर चित्रदुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्रों पर शासन करते थे।

बकासुर रामानगर के राजा थे। यह तो सबको पता है कि महिषासुर मैसूर के राजा थे।

यह सारे तथ्य यह बताते हैं कि आर्यों के आगमन से पहले इस पूरे क्षेत्र पर देशज असुरों का राज था।

आर्यों ने उनके राज्य पर कब्जा कर लिया”।

मैसूर में महिषासुर दिवस पर सेमिनार, जिसमें लेखकों ने उन्हें बौद्ध राजा बताया ओर उनके अपमान का विरोध किया
आंबेडकर ने भी ब्राह्मणवादी मिथकों के इस चित्रण का पुरजोर खण्डन किया है कि असुर दैत्य थे।

आंबेडकर ने अपने एक निबंध में इस बात पर जोर देते हैं कि “महाभारत और रामायण में असुरों को इस प्रकार चित्रित करना पूरी तरह गलत है कि वे मानव-समाज के सदस्य नहीं थे।

असुर मानव समाज के ही सदस्य थे”। आंबेडकर ब्राह्मणों का इस बात के लिए उपहास उड़ाते हैं कि उन्होंने अपने देवताओं को दयनीय कायरों के एक समूह के रूप में प्रस्तुत किया है।

वे कहते हैं कि हिंदुओं के सारे मिथक यही बताते हैं कि असुरों की हत्या विष्णु या शिव द्वारा नहीं की गई है, बल्कि देवियों ने किया है।

यदि दुर्गा (या कर्नाटक के संदर्भ में चामुंडी) ने महिषासुर की हत्या की, तो काली ने नरकासुर को मारा।

जबकि शुंब और निशुंब असुर भाईयों की हत्या दुर्गा के हाथों हुई।

वाणासुर को कन्याकुमारी ने मारा। एक अन्य असुर रक्तबीज की हत्या देवी शक्ति ने की।

आंबेडकर तिरस्कार के साथ कहते हैं कि “ऐसा लगता है कि भगवान लोग असुरों के हाथों से अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकते थे, तो उन्होंने अपनी पत्नियों को, अपने आप को बचाने के लिए भेज दिया”।

आखिर क्या कारण था कि सुरों (देवताओं) ने हमेशा अपनी महिलाओं को असुरों राजाओं की हत्या करने के लिए भेजा।

इसके कारणों की व्याख्या करते हुए विजय बताते हैं कि “देवता यह अच्छी तरह जानते थे कि असुर राजा कभी भी महिलाओं के खिलाफ अपने हथियार नहीं उठायेंगे।

इनमें से अधिकांश महिलाओं ने असुर राजाओं की हत्या कपटपूर्ण तरीके से की है।

अपनी शर्म को छिपाने के लिए भगवानों की इन हत्यारी बीवियों के दस हाथों, अदभुत हथियारों इत्यादि की कहानी गढ़ी गई।

नाटक-नौटंकी के लिए अच्छी, लेकिन अंसभव सी लगने वाली इन कहानियों, से हट कर हम इस सच्चाई को देख सकते हैं कि कैसे ब्राह्मणवादी वर्ग ने देशज लोगों के इतिहास को तोड़ा मरोड़ा।

इतिहास को इस प्रकार तोड़ने मरोड़ने का उनका उद्देश्य अपने स्वार्थों की पूर्ति करना था।

महिष-दशहरा पर अयोजित मोटरसाइकिल रैली होती है

केवल बंगाल या झारखण्ड में ही नहीं, बल्कि मैसूर के आस-पास भी कुछ ऐसे समुदाय रहते हैं, जो चामुंडी को उनके महान उदार राजा की हत्या के लिए दोषी ठहराते हैं।

उनमें से कुछ दशहरे के दौरान महिषासुर की आत्मा के लिए प्रार्थना करते हैं।

जैसा कि चामुंडेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी श्रीनिवास ने मुझसे कहा कि “तमिलनाडु से कुछ लोग साल में दो बार आते हैं और महिषासुर की मूर्ति की आराधना करते हैं”।

पिछले दो वर्षों से असुर पूरे देश में आक्रोश का मुद्दा बन रहे हैं। यदि पश्चिम बंगाल के आदिवासी लोग असुर संस्कृति पर विचार-विमर्श के लिए विशाल बैठकें कर रहे हैं, तो देश के विभिन्न विश्विद्यालयों के कैम्पसों में असुर विषय-वस्तु के इर्द-गिर्द उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं।

बीते साल उस्मानिया विश्विद्यालय और काकाटिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘नरकासुर दिवस’ मनाया था। चूंकि जेएनयू के छात्रों के महिषासुर उत्सव को मानव संसाधन मंत्री (तत्कालीन) ने इतनी देशव्यापी लोकप्रियता प्रदान कर दी थी कि, मैं उसके विस्तार में नहीं जा रही हूं।

महिषासुर और अन्य असुरों के प्रति लोगों के बढ़ते आकर्षण की क्या व्याख्या की जाए?

क्या केवल इतना कह करके पिंड छुडा लिया जाए कि, मिथक इतिहास नहीं होता, लोकगाथाएं भी हमारे अतीत का दस्तावेज नहीं हो सकती हैं।

विजय इसकी सटीक व्याख्या करते हुए कहते हैं कि “मनुवादियों ने बहुजनों के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को अपने हिसाब से तोड़ा मरोड़ा।

हमें इस इतिहास पर पड़े धूल-धक्कड़ को झाड़ना पडेगा, पौराणिक झूठों का पर्दाफाश करना पड़ेगा और अपने लोगों तथा अपने बच्चों को सच्चाई बतानी पडेगी।

यही एकमात्र रास्ता है, जिस पर चल कर हम अपने सच्चे इतिहास के दावेदार बन सकते हैं।

महिषासुर और अन्य असुरों के प्रति लोगों का बढता आकर्षण बताता है कि वास्तव में यही काम हो रहा है।

(गौरी लंकेश ने यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी थी, जो वेब पोर्टल बैंगलोर मिरर में 29 फरवरी, 2016 को प्रकाशित हुई थी)

03/10/2022

आप सैकड़ों या हज़ारों साल से देवी की पूजा करती हैं। आपकी आस्था और भक्ति का सम्मान है। पर भारत में महिलाओं को -

सती होकर जलाए जाने से आज़ादी 1829 में मिली

लड़कियों का पहला स्कूल सावित्री बाई फूले और फ़ातिमा शेख ने 1848 में खोला

1856 में विधवाओं को फिर से विवाह का अधिकार मिला

बेटियों की हत्या को 1870 में अपराध माना गया

महिलाएं भी तलाक़ दे सकती हैं, ये अधिकार 1955 में मिला

हिंदू औरतों को बहुपत्नी प्रथा से छुटकारा 1955 में मिला

पैत्रिक संपत्ति में अधिकार 1956 में मिला

लड़कियों को देह व्यापार में धकेलना 1956 में अपराध घोषित हुआ

समान वेतन क़ानून 1976 में बना

आज़ादी के बाद महिलाओं को मिले ज़्यादातर अधिकार बाबा साहब के ड्राफ़्ट किए हुए हिंदू कोड बिल से निकले हैं। फिर भी मैं आपकी आस्था और भक्ति का सम्मान करता हूँ।

01/10/2022

मेरी लड़ाई किसी भी धर्म से नहीं है लेकिन जिस धर्म ने हमारे समाज को अछूत बनाया उसकी आलोचना हमेशा करेंगे।
ीम

01/10/2022

यह एक ऐसी किताब है, जिसे पढ़ कर गर्व हो रहा है कि मैंने यह किताब पढ़ी है। जंगे आज़ादी के अज़ीम सिपाही मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की तक़रीर जिस्म में झुरझुरी पैदा करती है। कोलकाता के मजिस्ट्रेट के सामने दी गई उनकी तक़रीर के एक-एक शब्द पवित्रता से भरे हैं, जिन्हें पढ़ कर आप छू लेने का फ़र्ज़ अदा करते हैं। आज़ादी का ख़्वाब कितना सच्चा था। उन पर ईमान था। मौलाना की तक़रीर को ज़रूर पढ़िएगा और हो सके तो लोगों को सुनाइयेगा। मोहम्मद नौशाद ने मौलाना आज़ाद की तक़रीर ‘क़ौल-ए-फ़ैसल’ का हिन्दी अनुवाद कर बेहद शानदार काम किया है। आज मेरा दिल इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हो रहा है कि आज़ाद साहब के एक-एक शब्द के दर्द और उत्साह से होकर गुज़रा हूँ। जब तक उनकी तक़रीर पढ़ता रहा, बीसवीं सदीं के हिन्दुस्तान के एक लाडले की आँखों से उस मोहब्बत को देखता रहा, जो केवल हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए समर्पित थी। उन आँखों में कोई दूसरा महबूब न था। बहुत शुक्रिया नौशाद । हमने कुछ समय पहले इस किताब की सूचना भर दी थी, आज इसे पढ़ लिया। सेतु प्रकाशन ने छापी है और एमेज़ान वग़ैरह पर है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 A नागरिकों में तार्किक वैज्ञानिक चेतना की बात करता है। मगर संविधान निर्माताओं को कहाँ पता ...
01/10/2022

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 A नागरिकों में तार्किक वैज्ञानिक चेतना की बात करता है। मगर संविधान निर्माताओं को कहाँ पता था कि एक दिन ऐसा आएगा, जब संविधान व तार्किक वैज्ञानिक बात करने पर आहत भावना समूह आपको नौकरी से निकाल देगा, आपको जेल भेज देगा। यही तो 'न्यू इंडिया' है।

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