07/04/2021
जीवन की गुणवत्ता के मूल्यांकन में न्यूनतम जरूरत सूचकांक हो शामिल
विनायक चटर्जी , (लेखक फीडबैक इन्फ्रा के चेयरमैन हैं)
परंपरागत तौर पर आम बजट के एक दिन पहले पेश की जाने वाली आर्थिक समीक्षा में कुछ नवीन विचार एवं सुझाव समाहित होते हैं। हालांकि बजट घोषणाओं की अपेक्षा और फिर उनके विश्लेषण की आड़ में आर्थिक समीक्षा में पेश विचारों एवं सुझावों को उतनी तवज्जो नहीं मिल पाती है। आर्थिक समीक्षा को बजट के पूरे एक महीने पहले पेश करना अच्छा विचार हो सकता है ताकि नीति-निर्माताओं और समझदार जनता को उसमें उठाए गए बिंदुओं पर सोच-विचार का पर्याप्त समय मिल सके। हाल के समय में आई आर्थिक समीक्षाओं ने कुछ नई अंतर्दृष्टि देने का काम किया है। सार्वभौम बुनियादी आय और बैड बैंक के विचार तो यादगार हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन के मार्गदर्शन में तैयार हालिया आर्थिक समीक्षा में न्यूनतम जरूरत सूचकांक (बीएनआई) के रूप में एक नया सूचकांक शुरू करने की दिलचस्प संकल्पना पेश की गई है।
भारत में संपत्ति बनाने को लेकर ऐतिहासिक तौर पर गजब की ललक देखी जाती रही है। लेकिन इन परिसंपत्तियों से वांछित सेवा लेने पर सापेक्षिक रूप से कम ध्यान दिया जाता है। बात चाहे बड़े बिजली उत्पादन संयंत्र की हो या बड़े बांध एवं राजमार्गों की हो-आम आदमी को इन बड़ी परिसंपत्तियों से होने वाले लाभ संदिग्ध तौर पर दशकों तक नदारद रहे हैं। बीएनआई सूचकांक पिरामिड के निचले सिरे पर मौजूद एक आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डालने वाले पांच क्षेत्रों का जिक्र करता है। आर्थिक समीक्षा में नागरिकों को न्यूनतम जरूरतें मुहैया कराने पर ध्यान देने के लिए सरकारों की लगातार तारीफ की जाती है, इसकी मात्रा कम-ज्यादा हो सकती है। मौजूदा पहल के संदर्भ में इन योजनाओं का उल्लेख किया गया है:
स्वच्छ भारत अभियान (शहरी एवं ग्रामीण)- खुले में शौच से 100 फीसदी मुक्ति और नगरीय ठोस अवशिष्ट का 100 फीसदी वैज्ञानिक निपटान का लक्ष्य हासिल करना।
प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई)- देश के ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सबको आवास मुहैया कराना।
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (अब जल जीवन मिशन- जेजेएम)- हरेक ग्रामीण परिवार तक पेयजल, खाना पकाने एवं अन्य घरेलू जरूरतों के लिए साफ एवं पर्याप्त पानी पहुंचाना।
सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य)- ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में सभी घरों तक बिजली कनेक्शन पहुंचाकर सार्वभौम घरेलू बिजलीकरण करना।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना- 8 करोड़ घरों तक नि:शुल्क एलपीजी कनेक्शन देने के लक्ष्य के साथ गरीब परिवारों को स्वच्छ रसोई ईंधन मुहैया कराना।
हरेक राज्य एवं समूह के लिए सूचकांक 2012 और 2018 के लिए ग्रामीण, शहरी एवं संयुक्त रूप से तैयार किया गया है। सूचकांक का मूल्य शून्य और एक के बीच है। सूचकांक का मूल्य जितना अधिक होगा, न्यूनतम जरूरतों तक पहुंच उतनी ही बेहतर मानी जाएगी। तात्कालिक तौर पर इस सूचकांक से निकलने वाले कुछ निष्कर्ष वास्तव में सारगर्भित हैं। पहला, अधिकांश राज्यों में परिवारों की न्यूनतम जरूरतों तक पहुंच 2012 की तुलना में 2018 में खासी बेहतर है। वर्ष 2018 में न्यूनतम जरूरतों तक पहुंच के मामले में सबसे अच्छी स्थिति केरल, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड, दिल्ली, गोवा, मिजोरम एवं सिक्किम की है जबकि ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा में सबसे बुरी स्थिति है। दूसरा, न्यूनतम जरूरतों तक पहुंच के मामले में राज्यों के बीच की असमताएं 2012 की तुलना में 2018 में कम हुई हैं। तीसरा, ग्रामीण भारत में वर्ष 2018 में न्यूनतम जरूरतों तक सर्वाधिक पहुंच पंजाब, केरल, सिक्किम, गोवा और दिल्ली में दर्ज की गई है जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, मणिपुर एवं त्रिपुरा में हालत खराब है। चौथा, न्यूनतम जरूरतों तक पहुंच के मामले में निर्धन परिवारों की हालत देश भर में सापेक्षिक रूप से संपन्न परिवारों की तुलना में गैर-आनुपातिक रूप से बेहतर हुई है। समानता की दिशा में बढ़ा यह कदम खास तौर पर उल्लेेखनीय है क्योंकि धनी लोग तो निजी विकल्पों को भी आजमा सकते हैं, बेहतर सेवाओं के लिए गुटबंदी कर सकते हैं या जरूरत पड़ी तो बेहतर सेवाओं वाले इलाकों का रुख कर सकते हैं। लेकिन गरीब परिवारों के पास ये तमाम विकल्प नहीं होते हैं। पांचवां, न्यूनतम जरूरतों तक पहुंच बेहतर होने से स्वास्थ्य एवं शिक्षा सूचकांकों में सुधार दर्ज किया गया है। बीएनआई को राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के दो दौर के आंकड़ों के आधार पर सभी राज्यों के लिए तैयार किया गया है। पेयजल, स्वच्छता, साफ-सफाई एवं भारत में आवास की स्थिति पर एकत्र आंकड़ों का इस्तेमाल हुआ है। उम्मीद की जाती है कि प्रति व्यक्ति आय, पोषण एवं स्वास्थ्य जैसे दूसरे स्वीकृत मानदंडों के साथ न्यूनतम जरूरत सूचकांक को भी भारत में जीवन की गुणवत्ता के सारे भावी मूल्यांकनों में वाजिब जगह मिलेगी।
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