सृजन फिर से

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सृजन फिर से हर तपिश को मुस्कराकर आलिंगन दीजिए.....🌼🌻

28/01/2025

आइए वर्चुअल प्रतियोगिता के महाकुंभ का हिस्सा बनिए!
प्रस्तुत है, भारत वाणी 3.O ✨

गूगल फॉर्म का लिंक ये रहा 👇🏼

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28/01/2025

साहित्य जगत के पथ पर गीतमालाओं,रचनाओं के साथ आपके इस पटल पर कैसी चल रही है आपकी यात्रा...🌻🌻

मैंरथ का टूटा हुआ पहिया हूँलेकिन मुझे फ़ेंको मत!क्या जाने कबइस दुरूह चक्रव्यूह मेंअक्षौहिणी सैनाओं को चुनौती देता हुआकोई...
28/01/2025

मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
लेकिन मुझे फ़ेंको मत!

क्या जाने कब
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सैनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय!

~धर्मवीर भारती

तस्वीर~ vipin Upadhyay

बेटी है या बहू, ये तो नहीं मालूम पर दोनों के ही चेहरे के भाव मन को आह्लादित कर रहे है....पवित्र कुम्भ ,महाकुम्भनमामि हर🕉...
28/01/2025

बेटी है या बहू, ये तो नहीं मालूम पर दोनों के ही चेहरे के भाव मन को आह्लादित कर रहे है....

पवित्र कुम्भ ,महाकुम्भ

नमामि हर🕉️🙏🚩

सरोवर   तट   सिमटते   जा  रहे  हैं।कई   मेढक   उछलते    जा  रहे  हैं।ये बिन पेंदी के लोटों की थी फितरत,लुढ़कना  था   लुढ़क...
28/01/2025

सरोवर तट सिमटते जा रहे हैं।
कई मेढक उछलते जा रहे हैं।

ये बिन पेंदी के लोटों की थी फितरत,
लुढ़कना था लुढ़कते जा रहे हैं।

भटकना है उन्हें ताउम्र यूँ ही,
ये जो रस्ते बदलते जा रहे हैं।

जो लड़ते थे विचारों की लड़ाई,
विचारों को कुचलते जा रहे हैं।

सियासत में ये कैसा दौर आया,
कि अच्छे लोग घटते जा रहे हैं।

उसूलों पर अगर मरते तो क्या था,
ये क्या बेमौत मरते जा रहे हैं।

बदल कर आसतीं विष कम न होगा,
वो डंसते थे वो डंसते जा रहे हैं।

ये कैसा खेल है 'नाचीज़' जिसमें,
जड़ों से लोग कटते जा रहे हैं।

~जे0 पी0 'नाचीज़'
#सृजन_फिर_से #हिंदीहमारीशान

ख़ुद को उदास पाइये इस ओर आइयेख़ुशियों में डूब जाइये इस ओर आइयेग़म काटने हमें ही हैं ख़ुशियों के बाद मेंयह बात  मान  जाइये  इ...
28/01/2025

ख़ुद को उदास पाइये इस ओर आइये
ख़ुशियों में डूब जाइये इस ओर आइये

ग़म काटने हमें ही हैं ख़ुशियों के बाद में
यह बात मान जाइये इस ओर आइये

वादे किये गए थे जो यादों में रह गए
कसमें सभी भुलाइये इस ओर आइये

जन्मों कि बात छोड़िए कुछ साल ना चला
रिश्ते पे मुस्कुराइये इस ओर आइये

~अमरजीत यादव
#सृजन_फिर_से

28/01/2025

"दोस्त वो लोग होते हैं जो दुर्लभ होते हैं, हमारा हालचाल पूछते हैं और जवाब सुनने के लिए इंतज़ार भी करते हैं।"
~एड कनिंघम

मृत्यु   जब   मुझको   वरेगी,  है  मुझे  यह  ज्ञात,प्रिय! तुम रो पडोगी। प्रेम   के   घट   में  भरी  कितनी  हुई  हैं  वंचन...
28/01/2025

मृत्यु जब मुझको वरेगी, है मुझे यह ज्ञात,
प्रिय! तुम रो पडोगी।

प्रेम के घट में भरी कितनी हुई हैं वंचनायें।
या कि प्रतिफल में मिलीं कितनी विषैली यातनाएँ।
बैर है, प्रतिशोध है, प्रतिकार या कुछ और ही है,
और कितनी सत्य या मिथ्या तुम्हारी अर्चनायें?

जिस घड़ी तुमको पता होंगे सभी अनुपात,
प्रिय.! तुम रो पडोगी। ....1

जब न ढूँढ़ें से मिलेगा वक्ष का तुमको सहारा।
जब पुकारेगा न कोई नाम ले-ले कर तुम्हारा।
जब तुम्हारे पीर की औषधि न कोई मिल सकेगी,
रूठ जायेगा भँवर सी जिंदगी का हर किनारा।

बह पड़ोगी तोड़ कर तटबंध सब, अर्थात
प्रिय..! तुम रो पडोगी। .....2

चाहता हूँ जिंदगी तुमसे न ऐसे खेल खेले।
बैठ कर चुपचाप बस सबको निहारो तुम अकेले।
जब तुम्हारे कान तरसें और फिर कह दो तड़पकर,
बोलकर मीठे वचन कोई हमारे प्राण ले ले।

दिन भले कट जाएंगे होगी मगर जब रात,
प्रिय तुम रो पडोगी। .....3

जिस तरह संसार सारा छल रहा है, ठग रहा है।
चंद दिन मुझको ठहरने हैं, यही बस लग रहा है।
सोच लो, थोड़ा समझ लो, बाद मेरे वह सहारा,
रह न पायेगा तुम्हारे साथ, जो पग-पग रहा है।

सह न पाओगी अगर तब काल के आघात,
प्रिय...! तुम रो पडोगी।.......4
~राकेश भैया🙏

#हिंदीसाहित्य #हिंदीहमारीशान #हिंदीकामहत्व #हिन्दीसाहित्य #हिंदी #हिन्दी #हिन्द #कविता #सृजन #सृजन_फिर_से

सबकी अपनी भाषाएँ हैं सबकी निश्चित सीमाएँ हैंजिनकी न सीमा है कोईवे  हिन्दी की  रचनाएँ हैंईश्वर  से  आशीष  रुप  में  देखो ...
28/01/2025

सबकी अपनी भाषाएँ हैं
सबकी निश्चित सीमाएँ हैं
जिनकी न सीमा है कोई
वे हिन्दी की रचनाएँ हैं
ईश्वर से आशीष रुप में देखो हमने पाई हिन्दी
हम कवियों ने मुक्त कंठ से रात रात भर गाई हिन्दी

तुलसी की चौपाई इसमें
कबिरा की कविताई इसमें
प्रेमचंद्र के "हीरा मोती"
दोहा, छन्द, रूबाई इसमें
खुसरो के आगंन में पलकर परसाई तक आई हिन्दी
हम कवियों ने मुक्त कंठ से रात रात भर गाई हिन्दी

है नीरज के गीत इसी में
है प्रसाद की प्रीत इसी में
कालिदास का अजि बन रोना,
रामायण सी जीत इसी में
सारी भिन्न भिन्न भाषाओं की करती तुरपाई हिन्दी
हम कवियों ने मुक्त कंठ से रात रात भर गाई हिन्दी

स्वामी का संबोधन इसमें
है कवियों का रोदन इसमें
पंच प्रयागों का मिश्रण ये
गौ माता का गोधन इसमें
लेकिन अपने आगंन से क्यों होने लगी पराई हिन्दी
हम कवियों ने मुक्त कंठ से रात रात भर गाई हिन्दी

~ शिवांश शुक्ला 'सरस'

#सृजन_फिर_से #हिंदीसाहित्य #सच #हिंदीहमारीशान #कविताप्रेमी

धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा वो लम्स मेरे बदन को गुलाब कर देगा क़बा-ए-जिस्म के हर तार से गुज़रता हुआ किरन का प्य...
27/01/2025

धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
वो लम्स मेरे बदन को गुलाब कर देगा

क़बा-ए-जिस्म के हर तार से गुज़रता हुआ
किरन का प्यार मुझे आफ़्ताब कर देगा

जुनूँ-पसंद है दिल और तुझ तक आने में
बदन को नाव लहू को चनाब कर देगा

मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा

अना-परस्त है इतना कि बात से पहले
वो उठ के बंद मिरी हर किताब कर देगा

सुकूत-ए-शहर-ए-सुख़न में वो फूल सा लहजा
समाअ'तों की फ़ज़ा ख़्वाब ख़्वाब कर देगा

इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
सुख़न-वरी में मुझे इंतिख़ाब कर देगा

मिरी तरह से कोई है जो ज़िंदगी अपनी
तुम्हारी याद के नाम इंतिसाब कर देगा

~परवीन शाकिर🌼

पहली बार का अहसास.....🌼 #सृजन_फिर_से  #हिंदीसाहित्य
27/01/2025

पहली बार का अहसास.....🌼
#सृजन_फिर_से #हिंदीसाहित्य

नहाने  कुम्भ  आए थे, नहाया  लोग  आँखों  में,भरी जो भावना भीतर, दिखाया लोग  आँखों में।जहां  पर  पाप मुद्दत के,  नहाने  से...
27/01/2025

नहाने कुम्भ आए थे, नहाया लोग आँखों में,
भरी जो भावना भीतर, दिखाया लोग आँखों में।

जहां पर पाप मुद्दत के, नहाने से निखर जाते,
वहां डुबकी शरारत की, लगाया लोग आँखों में।

करोड़ों देवता आकर, जहां पर जाप करते हैं,
वहां ज्योती मुहब्बत की,जलाया लोग आंखों में।

लगे जन्नत से भी ज्यादा,जहां मोहक त्रिवेणी जी,
हसीना की अदाओं को, समाया लोग आँखों में।

सितारे चाँद झुक जाते, खुदा तेरी इबादत से,
गगन को स्वार्थ में आकर,झुकाया लोग आँखों में।

मिली हैं तीन नदियां तब, बहे संगम सुधा रस भर,
अमर जीवन बनाने को, भुलाया लोग आँखों में।

चलाया हुस्न का जादू ,परी जन्नत की "जीवन" पर,
सुहाने ख्वाब जीने के, सजाया लोग आँखों में।।

~ जीवन जिद्दी🌼
जनपद फतेहपुर उत्तर प्रदेश

ज़िंदगी में एक ऐसा दोस्त ज़रुर होना चाहिए, जिससे आप जब चाहें कॉल कर सकें, मैसेज कर सकें, सलाह-मशवरा ले सकें, सुख-दुःख बाँट...
27/01/2025

ज़िंदगी में एक ऐसा दोस्त ज़रुर होना चाहिए,
जिससे आप जब चाहें कॉल कर सकें,
मैसेज कर सकें, सलाह-मशवरा ले सकें,
सुख-दुःख बाँट सकें, डांट सकें, लड़ सकें,
कंधे पर सिर रख कर रो सकें, खुलकर हँस सकें,
घूम सकें, जब चाहें मिल सकें, बेझिझक होकर
निःसंकोच सब कुछ उसे बता सकें
बिना इस बात की परवाह किये
कि सामने वाला व्यक्ति क्या सोचेगा...?
अगर ऐसा दोस्त आपके पास है तो
वाकई आप दुनिया के सबसे खुशनसीब इंसान हैं..

हो सके तो किसी के अच्छे दोस्त बनिए,
किसी को सुनने का प्रयास करिए,
क्योंकि अधिकांश लोग अकेलेपन के
अवसाद से ग्रसित हैं,
आये दिन आत्महत्याएँ होती हैं,
कभी सोचा है क्यों??
क्योंकि इनके पास सुनाने वाले तो बहुत हैं
पर सुनने वाला कोई नहीं...!

#अज्ञात #सच #सृजन_फिर_से #हिंदीसाहित्य

"दोस्त वो लोग होते हैं जो दुर्लभ होते हैं, हमारा हालचाल पूछते हैं और जवाब सुनने के लिए इंतज़ार भी करते हैं।"~एड कनिंघमतस...
27/01/2025

"दोस्त वो लोग होते हैं जो दुर्लभ होते हैं, हमारा हालचाल पूछते हैं और जवाब सुनने के लिए इंतज़ार भी करते हैं।"
~एड कनिंघम
तस्वीर~ Vipul Mishra

रोजी , रोटी और लाचारी धन्य विधातावादें  हैं  सारे   सरकारी , धन्य  विधाता मेहनत हाथ  कटोरा लेकर टहल रही है जीती है केवल ...
27/01/2025

रोजी , रोटी और लाचारी धन्य विधाता
वादें हैं सारे सरकारी , धन्य विधाता

मेहनत हाथ कटोरा लेकर टहल रही है
जीती है केवल मक्कारी , धन्य विधाता

दुनिया वालों ,मुझको फिर से समझाओ
समझ न पाया दुनियादारी धन्य विधाता

बातें सारी झूठ हैं इनके वादे सारे धूल में
लेकिन बातें प्यारी- प्यारी, धन्य विधाता

यह गरीब की बस्ती इसमें आग लगा दो
ये गरीब बन गये बिमारी , धन्य विधाता

प्यार बांटने वालों , चुप हो जाओ तुम
दुनियाभर में नफरत जारी धन्य विधाता

हैं गरीब की चमड़ी मोटी इन्हे क्या लेना
संसद भीतर चर्चा भारी, धन्य विधाता

हम तो केवल अपना हक ही मांग रहे हैं
कहां गई सबकी खुद्दारी, धन्य विधाता

चोरों के ही हाथ में चौकीदारी दे दी
यही देश की है लाचारी, धन्य विधाता

~हरिशंकर यादव

#जीवनदर्शन #जीवनकीसच्चाई #साहित्यआजतक #साहित्यरत्न #कविताप्रेमी #राजनीति #गरीब #चाटुकारिता #देश #सृजन_फिर_से #हिंदीसाहित्य #हिंदीहमारीशान #सृजन #कविता #साहित्यप्रेमी

पौरुष बल पर जिसके हर दम बनकर रहती दासी हैएक शराबी की पत्नी भी करवा चौथ उपासी हैपति ने अब तक उसके मुंह से छीने कई निबाले ...
27/01/2025

पौरुष बल पर जिसके हर दम बनकर रहती दासी है
एक शराबी की पत्नी भी करवा चौथ उपासी है

पति ने अब तक उसके मुंह से छीने कई निबाले हैं
जिसकी मार से तन में उसके पड़ जाते कई छाले हैं
आज कह रहा है वो बोतल को न हाथ लगाएगा
अपने कर से पात्र उठाकर उसकी प्यास बुझाएगा

इसी प्यार की आस में पगली अब तक भूखी प्यासी है
एक शराबी की पत्नी भी करवा चौथ उपासी है

जिसे कभी जुड़ पाई न अब तक दो पहिया की गाड़ी है
जिसने अब तक पहनी केवल ही उतरन की साड़ी है
वही शराबी उसको लाल नई साड़ी दिलवाएगा
करवा चौथ की सामग्री भी दो पहिया से लाएगा

इतना सुनकर साल भरे की भूली सभी उदासी है
एक शराबी की पत्नी भी करवा चौथ उपासी है

एक वही है सच्ची केवल सारी दुनिया झूठी है
वो है प्यारी लेकिन उसकी किस्मत उससे रूठी है
आज दिया मिष्ठान्न उसे कल से ही खार करेगा फिर
आज दिया है प्यार मगर कल दुर्व्यवहार करेगा फिर

दुर्व्यवहारी के संग रहने की पूरी अभ्यासी है
एक शराबी की पत्नी भी करवा चौथ उपासी है

- नम्रता जैन🌼

#कविता #सृजन #सृजन_फिर_से #हिंदीसाहित्य #साहित्यप्रेमी

इस तस्वीर को देख सुखद अनुभूति हुई। एक बाबा अपने पोते को संगम में डुबकी लगाकर ले जा रहे हैं। इस एक तस्वीर में न जाने कितन...
27/01/2025

इस तस्वीर को देख सुखद अनुभूति हुई। एक बाबा अपने पोते को संगम में डुबकी लगाकर ले जा रहे हैं। इस एक तस्वीर में न जाने कितने भाव हैं।

संस्कारों को निर्मित करना, उन्हें पोषित करना और उन्हें आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करने का यह सबसे सुंदर उदाहरण है।

एक भाव 'मूल से ब्याज प्यारा' की अवधारणा का सुंदर स्वरूप!

दूसरा भाव 'धर्म, संस्कार और प्रेम का हस्तांतरण'

तीसरा भाव ' सुरक्षा और प्रेम ' के हाथ आशीष बनकर थामे हुए हैं...जो मैं सदैव तुम्हारे पास रहूँगा का आशीर्वाद भी है।

चौथा भाव...सूखे पत्ते झरते जाएंगे...नई कोंपलों से यह सनातन हरा भरा रहेगा। मेरे जाने के बाद भी मेरे बच्चे इस धर्म को मजबूती से थामे रहना, और सदैव मन मे श्रद्धा और विश्वास को बनाए रखना।

सबसे अंत मे सबसे जरूरी भाव...निश्चल और अनन्त असीम प्रेम...बस प्रेम! यह वही प्रेम है जो हर बच्चा चाहता है, और डिजर्व करता है।

सनातन ऐसे ही कंधों से मजबूत बना रहेगा...जब तक वर्तमान भूत होने से पहले, अपने साथ भविष्य को थामे रहेगा!

बाकी तो...आल इज वेल!

#प्रयागराजसंगम
#महाकुंभ

______
~टीशा अग्रवाल🌼

कहाँ फसें हैं इन अल्फ़ाज़ और मआनी में।ये देखिए कि ग़ज़ल कितनी है रवानी में।बहार आई है लेकिन कोई कली न खिली,कहीं कमी तो नहीं ...
27/01/2025

कहाँ फसें हैं इन अल्फ़ाज़ और मआनी में।
ये देखिए कि ग़ज़ल कितनी है रवानी में।

बहार आई है लेकिन कोई कली न खिली,
कहीं कमी तो नहीं मेरी बाग़-बानी में।

तेरा चराग़-ए-वुजूद उसके दम रौशन है,
वो जिसको भूल गया है तू बद-गुमानी में।

यक़ीन मान के मुश्किल लगा था मुझको भी,
जहाँ बनाना है आसाँ जहान-ए-फ़ानी में।

कुछ आप मैंने बढ़ाया है रोग मेरे तबीब,
कुछ आपने भी संवारा है मेहरबानी में ।

ये और बात कहानी से हम निकाले गए,
ये और बात के बस हम ही थे कहानी में,

फिर उसके बाद का क़िस्सा जहाँ सुनाएगा,
तुम अपने आप को बस फेंक आना पानी में।

ये शेर आख़िरी "ग़ाफ़िल" का,आख़िरी ऊला,
नज़र न आएंगे वो इसके बाद सानी में।
*******

~अंश प्रताप सिंह

#सृजन_फिर_से #हिंदीहमारीशान #हिंदीसाहित्य

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