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22/01/2024
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विधानसभा भिंड के लोकप्रिय विधायक श्री संजीव सिंह (संजू) जी को जन्मदिवस की अशेष शुभकामनाएं एवं बधाई!भगवान से प्रार्थना है...
09/01/2023

विधानसभा भिंड के लोकप्रिय विधायक श्री संजीव सिंह (संजू) जी को जन्मदिवस की अशेष शुभकामनाएं एवं बधाई!

भगवान से प्रार्थना है कि वे आपके सामर्थ्य में और वृद्धि करें, आपको यशस्वी व आयुष्मान करें।

पिप्पलाद उपनिषद्‍कालीन एक महान ऋषि एवं अथर्ववेद का सर्व प्रथम संकलकर्ता थे। पिप्पलाद का शब्दार्थ, 'पीपल के फल खाकर जीनेव...
25/12/2022

पिप्पलाद उपनिषद्‍कालीन एक महान ऋषि एवं अथर्ववेद का सर्व प्रथम संकलकर्ता थे। पिप्पलाद का शब्दार्थ, 'पीपल के फल खाकर जीनेवाला' (पिप्पल+अद्‍) होता है। अथर्ववेद की पिप्पलाद नामक एक शाखा उपलब्ध है। इस शाखा के प्रवर्तक सम्भवतः यही हैं। प्रश्नोपनिषद में एक तत्त्वज्ञानी के रूप में इनका निर्देश प्राप्त है। मोक्षशास्त्र को 'पैप्पलाद' कहने की प्रथा थी (गर्भोपनिषद्‍) । अथर्ववेद के एक उपनिषद् (प्रश्नोपनिषद्) में प्रारम्भ में ही कथा आती है कि सुकेशा, भारद्वाज आदि छह ऋषि मुनिवर पिप्पलाद के पास गए और उनसे दर्शन संबंधी प्रश्न पूछे जिनका उन्होंने पाण्डित्यपूर्ण उत्तर दिया। वे परम विद्वान् और ब्रह्मज्ञानी थे। महाभारत के शांतिपर्व में भी यह उल्लेख मिलता है कि जब भीष्म शरशय्या पर पड़े हुए थे तो उनके पास पिप्पलाद उपस्थित थे। पुराणों में इन्हें भगवान शिव का अवतार बताया गया है।

इनके माता-पिता के नाम के बारे में भिन्न-भिन्न स्रोतों से भिन्न-भिन्न जानकारी प्राप्त है। कुछ स्रोतों के अनुसार दधीचि ऋषि को प्रातिथेयी (वडवा अथवा गभस्तिनी) नामक पत्नी से यह उत्पन्न हुए। किन्तु कई ग्रथों में इसके माता का नाम सुवर्चा अथवा सुभद्रा दिया गया है। इनमें से सुभद्रा, दधीचि ऋषि की दासी थी। स्कन्दपुराण तथा अन्य कई ग्रंथों में, इन्हें याज्ञवल्क्य एवं उसकी बहन का पुत्र कहा गया है। फिर भी यह दधीचि ऋषि के पुत्र के रुप यें विख्यात है। दधीचि की मृत्यु के समय, उसकी पत्नी प्रातिथेयी गर्भवती थी । अपने पति की मृत्यु का समाचार सुनकर उसने उदरविदारण कर अपना गर्भ बाहर निकाला तथा उसे पीपल वृक्ष के नीचे रखकर, दधीचि के शव के साथ सती हो गयी । उस गर्भ का रक्षा पीपल वृक्ष ने की । इस कारण इस बालक को पिप्पलाद नाम प्राप्त हुआ । पशु-पक्षियों ने इसकी रक्षा की, तथा सोम ने इसे सारी विद्याओं में पारंगत कराया।

बाल्यकाल में मिले हुए कष्टों का कारण, शनि को मानकर, इन्होंने उसे नीचे गिराया । त्रस्त होकर शनि इनकी शरण में आए। इन्होंने शनिग्रह को इस शर्त पर छोड़ा कि वह बारह वर्ष से कम आयु वाले बालकों को कष्ट ने दे। कई ग्रन्थों में बारह वर्ष के स्थान पर सोलह वर्ष का निर्देश भी प्राप्त है । इसीलिये आज भी शनि की पीडा से छुटकारा पाने के लिए पिप्पलाद, गाधि एवं कौशिक ऋषियों का स्मरण किया जाता है [शिव. शत. २४-२५] ।

एक बार अपने पिता पर क्रोधित होकर इन्होंने एक कृत्या निर्माण कर, उसे याज्ञवल्क्य पर छोड़ा । याज्ञवल्क्य शिव की शरण में गये जिन्होने इस कृत्या का नाश किया तथा याज्ञवल्क्य एवं पिप्पलाद में मित्रता स्थापित करायी [स्कंद. ५.३.४२] । यही कथा ब्रह्मपुराण में कुछ अलग ढंग से दी गयी है। अपनी माता-पिता की मृत्यु का कारण देवताओं को मानकर, उनसे बदला लेने के लिए इन्होंने शिव की आराधना की, तथा एक कृत्या का निर्माण करके इसे देवों पर छोड़ा। यह देखकर शंकर ने मध्यस्थ होकर देवों तथा इसके वीच मित्रता स्थापित करायी । बाद में, अपनी माता-पिता को देखने की इच्छा उत्पन्न होने के कारण, देवों ने स्वर्ग में इन्हें दधीचि के पास पहुँचाया। दधीचि इन्हें देखकर प्रसन्न हुए तथा इससे विवाह करने के लिए आग्रह किया । स्वर्ग से वापस आकर इसने गौतम की कन्या से विवाह किया [ब्रह्म.११०.२२५] ।

एकबार, जब यह पुष्पभद्रा नदी में स्नान करने जा रहे थे तब वहाँ अनरण्य राजा की कन्या पद्मा को देखकर इन्होंने उसकी मांग की । शापभय से अनरण्य राजा ने अपनी कन्या इसे प्रदान की। पद्मा से इनके दस पुत्र हुये [शिव.शत. २४-२५] ।

एकबार जब यह अपनी तपस्या में निमग्न थे तब वहाँ कोलासुर आकर इनका ध्यानभंग करने के हेतु इन्हें पीड़ित करने लगा । तत्काल, इनके पुत्र कहोड ने एक कृत्या का निर्माण करके उससे कोलासुर का वध कराया । इसी से इस स्थान को ‘पिप्पलादतीर्थ’ नाम प्राप्त हुआ [पद्म. उ.१५५, १५७] । ] ।

प्रमुख भारतीय महाकाव्यों ( रामायण और महाभारत ) और पुराणों में पाए जाने वाले खातों को छोड़कर, जीवन या शताब्दी के बारे में...
25/12/2022

प्रमुख भारतीय महाकाव्यों ( रामायण और महाभारत ) और पुराणों में पाए जाने वाले खातों को छोड़कर, जीवन या शताब्दी के बारे में बहुत कम जानकारी है जिसमें अष्टावक्र वास्तव में रहते थे । किंवदंतियों में कहा गया है कि छांदोग्य उपनिषद में वर्णित ऋषि अरुणी वेदों को पढ़ाने वाला एक स्कूल ( आश्रम ) चलाते थे । अरुणी की बेटी सुजाता के साथ कहोड़ा उनके छात्रों में से एक थे। आरुणि की पुत्री कहोड़ से विवाह किया। वह गर्भवती हुई, और उसकी गर्भावस्था के दौरान, विकासशील बच्चे ने वेदों का जाप सुना और सही पाठ सीखा। [3]अष्टावक्र के आसपास की किंवदंतियों के एक संस्करण के अनुसार, उनके पिता एक बार वेदों का पाठ कर रहे थे, लेकिन सही उच्चारण में गलती हो गई। भ्रूण ने गर्भ से ही बात की और अपने पिता को वैदिक पुस्तकों से सीमित ज्ञान के बारे में बताया, इन पुस्तकों के अलावा और भी बहुत कुछ जानने को है। पिता ने क्रोधित होकर उसे आठ विकृतियों के साथ जन्म लेने का श्राप दिया, इसलिए इसका नाम 'अष्टावक्र' पड़ा। [1]

उनके पिता कहोड़ा एक बार विदेह के प्राचीन राजा जनक के पास धन मांगने गए, क्योंकि उसका परिवार गरीब था। वहां, वे वंदिन द्वारा विज्ञान की बहस में हार गए, और परिणामस्वरूप पानी में डूब गए। अपने पति के डूबने की बात सुनकर उसने यह बात अपने बच्चे से छुपाई। जब अष्टावक्र बड़े हुए, तो उन्हें अपने श्राप और अपने पिता के बारे में सब कुछ पता चला। तब उन्होंने अपनी मां को राजा जनक के महान बलिदान को देखने के लिए उनके साथ आने के लिए कहा। उसे राजा के यज्ञ में प्रवेश करने से रोक दिया गया क्योंकि केवल विद्वान ब्राह्मणों और राजाओं को ही प्रवेश करने की अनुमति थी, और वह अभी दसवें वर्ष में था। बोलने की प्रवीणता से, उसने अपने ज्ञान से राजा को चकित कर दिया; इसलिए, उन्हें प्रवेश करने दिया गया। वहां, उन्होंने वंदिन को विवाद के लिए चुनौती दी। एक गरमागरम बहस के बाद, उन्होंने वंदिन को शब्दों से ज्ञान में हरा दिया। और राजा से पूछा, जैसे वंदिन ब्राह्मणों को पानी में फेंक देता था, उसे उसी भाग्य से मिलने दो। वंदिन ने तब खुलासा किया कि वह वरुण का पुत्र है, और समझाया कि जिस कारण उसने उन ब्राह्मणों को डुबोया वह एक अनुष्ठान था जो उसके पिता बारह साल से कर रहे थे और बड़ी संख्या में ब्राह्मणों की आवश्यकता थी। तब तक, अनुष्ठान हो चुका था और इस प्रकार उसने डूबे हुए सभी ब्राह्मणों को मुक्त कर दिया था। उनके पिता अपने बेटे से बहुत प्रभावित हुए और घर वापस जाते समय उन्हें 'समंगा' नदी में डुबकी लगाने के लिए कहा। जैसे ही अष्टावक्र नदी से बाहर आए, ऐसा देखा गया कि उनकी सारी विकृति ठीक हो गई थी। उसे 'समंगा' नदी में डुबकी लगाने को कहा। जैसे ही अष्टावक्र नदी से बाहर आए, ऐसा देखा गया कि उनकी सारी विकृति ठीक हो गई थी। उसे 'समंगा' नदी में डुबकी लगाने को कहा। जैसे ही अष्टावक्र नदी से बाहर आए, ऐसा देखा गया कि उनकी सारी विकृति ठीक हो गई थी।[4]

25/12/2022

बटवारे कि आज मैं आपको एक कहानी बताता हूं
भगवान ना करे कि कभी यह किसी के साथ हो फिर भी अगर यह मुसीबत किसी के सामने आती है तो यह् कहानी जरूर याद रखना!

एक गांव में एक 'सुखीराम' नाम का एक आदमी रहता था उसको दो लड़के थे
सुखीराम् के पास दो घर थे सुखमय जीवन व्यतीत हो रहा था
दोनों लड़के जवान हो गए, और दोनों की शादी करा दी
शादी के बाद कुछ् समय बीत गए और फिर आपस में दोनों की तनातनी होने लगी जिसकी वजह से घर में रोज क्लेश रहता था
इस वजह से दोनों लड़कों ने फैसला किया कि हम अलग-अलग न्यारे होंगे लड़कों ने पंचायत बुलाई और पंचायत में अपनी बात रखीं पंचों ने बात को सुना और यह निर्णय किया की सुखीराम् के पास दो घर हैं एक घर बड़े बेटे को और एक घर छोटे बेटे को दे देते हैं पंच सहमत हो गए
तो इस बात पर सब सहमत हो गए कि एक घर छोटे के नाम और एक घर बड़े बेटे के नाम और 'सुखीराम' 6 महीना बड़े बेटे के साथ 6 महीने छोटे बेटे के पास रहेंगे| पंचों ने बेटों से पूछा क्या तुम् इस फैसले से सहमत हो?
सुखीराम के बेटे बोले ठीक है हम सहमत फिर पंचों ने सुखीराम से पुछा ठीक है सुखीराम
सुखीराम जी कुछ बोलेहीं नही फिर कुछ देर बाद सुखीराम अपनी पत्नी से कहा चलो
अपने घर चलो पंचों ने सुखीराम से पूछा क्या बात है।
सुखीराम बोले मेहनत मेरी घर मेरा अगर इनको मेरे पास रहना है तो इनसे कहो यह 6 महीना मेरे पास रहें 6 महीना अपना कहीं बंदोबस्त करें अगर मुझे अच्छे लगते हैं तो ठीक है नहीं तो यह अपना-अपना देख ले मेरे घर का मालिक मैं हूं मैंने अपनी मेहनत से कमाया है खून पसीना एक करके और आज मैं दर दर की ठोकर खाऊं नहीं सरपंच साहब ऐसा नहीं होगा
यह बात कह कर सुखीराम चलने लगे दोनो बेटों ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने किए पर माफी मांग ली और कहा कि आब् दोबारा ऐसा नहीं होगा

फिर क्या सुखीराम और सुखीराम के दोनों बेटे सुख में जीवन बिताने लगे।।
बात बस इतनी सी है

Kejriwal sahab ki Daya se yah log jite ji Swarg mein
20/12/2022

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