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15/06/2024
ताज होटल (Taj Hotel) को बनने में करीब 14 साल लगे थे और साल 1903 में गेस्ट के लिए खोला गया था। ताज होटल साल 1903 में खुला...
23/05/2024

ताज होटल (Taj Hotel) को बनने में करीब 14 साल लगे थे और साल 1903 में गेस्ट के लिए खोला गया था। ताज होटल साल 1903 में खुला था। इसकी नींव जमशेदजी टाटा ने डाली थी। साल 1889 में टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) ने अचानक ऐलान किया कि वे बॉम्बे (अब मुंबई) में एक भव्य होटल बनाने जा रहे हैं

जमशेदजी टाटा ने जब ताज होटल (Taj Hotel Mumbai) बनाने का ऐलान किया तो उनके परिवार में ही फूट पड़ गई। टाटा की बहनें उनका विरोध करने लगीं। लेखक हरीश भट पेंगुइन (हिंद पॉकेट बुक्स) से प्रकाशित अपनी किताब ‘टाटा स्टोरीज’ में लिखते हैं कि जमशेदजी टाटा की एक बहन ने गुजराती में कहा, ‘आप बैंगलोर में साइंस इंस्टिट्यूट बना रहे हैं, लोहे का कारखाना लगा रहे हैं और अब कह रहे हैं कि भतारखाना (होटल) खोलने जा रहे हैं’?

हरीश भट लिखते हैं कि जमशेदजी टाटा के दिमाग में बॉम्बे में भव्य होटल बनाने का आइडिया यूं ही नहीं आया था, बल्कि इसके पीछे एक कहानी और बदले की आग थी। उन दिनों में बॉम्बे के काला घोड़ा इलाके में स्थित वाटसन्स होटल (Watson’s Hotel ) सबसे नामी हुआ करता था, लेकिन वहां सिर्फ यूरोप के लोगों को प्रवेश मिलता था। एक बार जमशेदजी टाटा वहां पहुंचे तो उन्हें यूरोपियन न होने के चलते एंट्री नहीं मिली। यह बात उनके दिल में बैठ गई थी।

इसके अलावा उन दिनों बॉम्बे में एक भी ऐसा होटल नहीं था जो यूरोप या पश्चिमी देशों का मुकाबला कर सके। भट लिखते हैं कि जमशेदजी टाटा अक्सर अमेरिका, यूरोप और पश्चिमी देशों की यात्रा किया करते थे और वहां होटल और दूसरी सुविधाओं को देखा था। साल 1865 में ‘सैटरडे रिव्यू’ में एक लेख छपा, जिसमें लिखा गया था कि बॉम्बे को अपने नाम के अनुरूप अच्छा होटल कब मिलेगा? यह बात भी टाटा के दिल को लग गई थी।

जमशेदजी टाटा, ताज होटल के लिए सामान खरीदने दुनिया के कोने-कोने तक गए। लंदन से लेकर बर्लिन तक के बाजार खंगाल डाले। ताज होटल भारत का ऐसा पहला होटल था जहां कमरों को ठंडा रखने के कार्बन डाइऑक्साइड बर्फ निर्माण संयंत्र लगाया गया था। होटल के लिए लिफ्ट जर्मनी से मंगवाई गई थी, तो पंखे अमेरिका से आए थे। हॉल के बाल रूम में लगाने के लिए खंभे पेरिस से आए थे।

उन दिनों ताज होटल की कुल लागत 26 लाख रुपये तक पहुंच गई थी। आखिरकार साल 1903 में जब ताज होटल खोला गया तब इसके कमरों का किराया 6 रुपये प्रति दिन रखा गया। यह लगभग और होटलों के बराबर ही था। लेकिन पहले दिन होटल में महज 17 गेस्ट पहुंचे। आने वाले कुछ दिनों तक स्थिति लगभग ऐसी ही रही। ताज होटल के खर्चों ने जमशेदजी के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया। कुछ लोग इसे जमशेदजी का ”सफेद हाथी” तक कहने लगे।

#अज्ञात

*यही जीवन है....कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पुर्ण कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती, ...
05/10/2023

*यही जीवन है....

कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पुर्ण कर लेते हैं मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती,

कुछ लोग 25 साल की उम्र में किसी कंपनी के सीईओ बन जाते हैं और 50 साल की उम्र में हमें पता चलता है वह नहीं रहे,

जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सीईओ बनते हैं और 90 साल तक आनंदित रहते हैं,

बेहतरीन रोज़गार होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक ग़ैर शादीशुदा है और कुछ लोग बग़ैर रोज़गार के भी शादी कर चुके हैं और रोज़गार वालों से ज़्यादा खुश हैं,

बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये... जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है,

कुछ लोग परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर भी रो देते हैं,

किसी को बग़ैर कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कुछ सारी ज़िंदगी बस एड़ियां ही रगड़ते रहे,

इस दुनिया में हर शख़्स अपने टाइम ज़ोन की बुनियाद पर काम कर रहा है,

ज़ाहिरी तौर पर हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं,
और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं,

लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपने अपने वक़्त के मुताबिक़....!!

किसी से भी अपनी तुलना मत कीजिए..

अपने टाइम ज़ोन में रहें
इंतज़ार कीजिए और
इत्मीनान रखिए...

ना ही आपको देर हुई है और ना ही जल्दी,

परमपिता परमेश्वर ने हम सबको अपने हिसाब से डिजा़इन किया है वह जानता है कौन कितना बोझ उठा सकता है किस को किस वक़्त क्या देना है,

विश्वास रखिए भगवान की ओर से हमारे लिए जो फैसला किया गया है वह सर्वोत्तम ही है।.....💐💐

एक बहुत ही विद्वान साधु थे जो दुनियादारी से बिलकुल दूर रहते थे। वह अपनी ईमानदारी,सेवा तथा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। एक ब...
03/10/2023

एक बहुत ही विद्वान साधु थे जो दुनियादारी से बिलकुल दूर रहते थे। वह अपनी ईमानदारी,सेवा तथा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे।

एक बार वह पानी के जहाज से लंबी यात्रा पर निकले।

उन्होंने यात्रा में खर्च के लिए पर्याप्त धन तथा एक हीरा संभाल के रख लिया । ये हीरा किसी राजा ने उन्हें उनकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर भेंट किया था सो वे उसे अपने पास न रखकर किसी अन्य राजा को देने जाने के लिए ही ये यात्रा कर रहे थे।

यात्रा के दौरान साधु की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। वे उन्हें ज्ञान की बातें बताते गए। एक कपटी यात्री ने उन्हें नीचा दिखाने की मंशा से नजदीकियां बढ़ ली।

एक दिन बातों-बातों में साधु ने उस कपटी आदमी को विश्वासपात्र बन्दा समझकर हीरे की झलक भी दिखा दी। उस आदमी को और लालच आ गया।

उसने उस हीरे को चुराने की योजना बनाई। रात को जब साधु सो गया तो उसने उसके झोले तथा उसके वस्त्रों में हीरा ढूंढा पर उसे नही मिला।

अगले दिन उसने दोपहर की भोजन के समय साधु से कहा कि इतना कीमती हीरा है,आपने संभाल के रक्खा है न।

साधु ने अपने झोले से निकलकर दिखाया कि देखो ये इसमे रखा है।

हीरा देखकर उस कपटी को बड़ी हैरानी हुई कि ये उसे कल रात को क्यों नही मिला।

आज रात फिर प्रयास करूंगा ये सोचकर उसने पूरा दिन काटा और सांझ होते ही तुंरन्त अपने कपड़े टांगकर, समान रखकर, स्वास्थ्य ठीक नही है कहकर जल्दी सोने का नाटक किया।

निश्चित समय पर सन्ध्या पूजा अर्चना के पश्चात जब साधु कमरे में आये तो उन्होंने उस कपटी को सोता हुआ पाया । सोचा आज स्वास्थ ठीक नही है इसलिए ये आदमी जल्दी सो गया होगा। उन्होंने भी अपने कपड़े तथा झोला उतारकर टांग दिया और सो गए।

आधी रात को वह आदमी उठकर फिर साधु के कपड़े तथा झोला झाड़कर देखा। लेकिन उसे हीरा फिर नही मिला।

अगले दिन उदास मन से उस आदमी ने साधु से पूछा -
"इतना कीमती हीरा संभाल कर तो रखा है ना साधुबाबा,यहां बहुत से चोर है"।

साधु ने फिर अपनी पोटली खोल कर उसे हीरा दिखा दिया।

अब हैरान परेशान उस दुष्ट के मन में जो प्रश्न था उसने साधु से खुलकर कह दिया... उसने साधु से पूछा कि-
" मैं पिछली दो रातों से आपकी कपड़े तथा झोले में इस हीरे को ढूंढता हूं मगर मुझे नहीं मिलता, ऐसा क्यों , रात को यह हीरा कहां चला जाता है

साधु ने बताया- *" मुझे पता है कि तुम कपटी,लालची औऱ धूर्त हो, तुम्हारी नीयत इस हीरे पर खराब थी और तुम इसे हर रात अंधेरे में चोरी करने का प्रयास करते थे इसलिए पिछले दो रातों से मैं अपना यह हीरा तुम्हारे ही कपड़ों में छुपा कर सो जाता था और प्रातः उठते ही तुम्हारे उठने से पहले इसे वापस निकाल लेता था"*

मेरा ज्ञान यह कहता है कि *व्यक्ति अपने भीतर क़भी नहीं झांकता, नहीं ढूंढता। दूसरे में ही सब अवगुण तथा दोष देखता है। तुम भी कभी अपने कपड़े नही टटोलते थे।"*

उस कपटी के मन में यह बात सुनकर और ज्यादा ईर्ष्या और द्वेष उत्पन्न हो गया । वह मन ही मन साधु से बदला लेने की सोचने लगा। उसने सारी रात जागकर एक योजना बनाई।

सुबह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, 'हाय मैं मर गया। मेरा एक कीमती हीरा चोरी हो गया।' वह रोने लगा।

जहाज के कर्मचारियों ने कहा, 'तुम घबराते क्यों हो। जिसने चोरी की होगी, वह यहीं होगा। हम एक-एक की तलाशी लेते हैं। वह पकड़ा जाएगा।'

यात्रियों की तलाशी शुरू हुई। जब साधु बाबा की बारी आई तो जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों ने उनसे कहा, 'आपकी क्या तलाशी ली जाए। आप पर तो अविश्वास करना ही अधर्म है।’

यह सुन कर साधु बोले, 'नहीं, जिसका हीरा चोरी हुआ है उसके मन में शंका बनी रहेगी इसलिए मेरी भी तलाशी ली जाए।’

बाबा की तलाशी ली गई। उनके पास से कुछ नहीं मिला।

दो दिनों के बाद जब यात्रा खत्म हुई तो उसी कपटी ने उदास मन से साधु से फ़िर पूछा, ‘बाबा इस बार तो मैंने अपने कपड़े भी टटोले थे, हीरा तो आपके पास था, वो कहां गया?'

साधु ने मुस्करा कर कहा, 'उसे मैंने बाहर पानी में फेंक दिया।

साधु ने पूछा - तुम जानना चाहते हो क्यों? क्योंकि मैंने जीवन में दो ही पुण्य कमाए थे - एक ईमानदारी और दूसरा लोगों का विश्वास। अगर मेरे पास से हीरा मिलता और मैं लोगों से कहता कि ये मेरा ही हैं तो शायद सभी लोग साधु के पास हीरा होगा इस बात पर विश्वास नही करते औऱ यदि मेरे भूतकाल के सत्कर्मो के कारण विश्वास कर भी लेते तो भी मेरी ईमानदारी और सत्यता पर कुछ लोगों का संशय सदा के लिए बना रहता।

*"मैं धन तथा हीरा तो गंवा सकता हूं लेकिन ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को खोना नहीं चाहता, यही मेरे पुण्यकर्म है जो मेरे साथ जाएंगे।"* उस कपटी आदमी ने साधु से माफी मांगी और उनके पैर पकड़ कर रोने लगा।

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