मथुरा_wale

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14/02/2022
24/01/2022

दोहे का अलग-अलग अर्थ
एक पुरानी कथा जो आज भी बिल्कुल प्रसांगिक है..
एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था।
बाल भी सफ़ेद होने लगे थे।
एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने गुरुदेव को भी बुलाया।
उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें।
सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे।
तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा..
घणी गई थोड़ी रही, या में पल पल जाय।
एक पलक के कारणे, युं ना कलंक लगाय।
अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला।
तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा।
जब यह दोहा गुरु जी ने सुना, तो गुरुजी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी।
दोहा सुनते ही राजकुमारी ने भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।
दोहा सुनते ही राजा के युवराज ने भी अपना मुकुट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया।
राजा बहुत ही अचम्भित हो गया।
सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है पर यह क्या !
अचानक एक दोहे से सब अपनी मूल्यवान वस्तु बहुत ही ख़ुश हो कर नर्तकी को समर्पित कर रहें हैं ?
राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला एक दोहे द्वारा एक नीच या सामान्य नर्तकी होकर तुमने सबको लूट लिया।
जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरुजी कहने लगे..
राजा ! इसको नीच नर्तकी मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है, क्योंकि इसके दोहे ने मेरी आँखें खोल दी हैं।
दोहे से यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ...
भाई ! मैं तो चला। यह कहकर गुरुजी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।
राजा की लड़की ने कहा, पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ। आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरा विवाह नहीं कर रहे थे।
आज रात मैं आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद करने वाली थी।
लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी, कि जल्दबाज़ी न कर, हो सकता है तेरा विवाह कल हो जाए, क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?
युवराज ने कहा... महाराज ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे। मैं आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपको मारने वाला था।
लेकिन इस दोहे ने समझाया कि पगले.. आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है! थोड़ा धैर्य रख।
जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया।
राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैंसला लिया.. क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ।
फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा..
पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं। तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो।
राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया।
यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा, मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?
उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया। उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना नृत्य बन्द करती हूँ..
हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी।
साभार :- unknown

13/11/2021

जब छोड़ चलू मैं इस जग को श्री कृष्ण नाम की स्वास रहे फिर स्वर्ग मिले या नरक मिले पर दिल में हरि का वास रहे कान्हासंध्या राधेराधे

13/11/2021

सुबह सुबह की पहली
राधे राधे आप सभी प्यारे मित्रों के साथ आप सभी
का दिन मंगलमय हो
सुप्रभात राधे राधे जी

12/11/2021

जब शरीर अस्वस्थ और मन दुर्बल होता है
तो अपनों का सानिध्य और प्रेम भरा स्पर्श औषधि का काम करता है !
कान्हासंध्या राधे राधे
🙏🏻🙏🏻🌹🌹

10/11/2021

याद है ना सोने से पहले क्या बोलना होता है..
तो फिर देर किस बात की बोलिये जल्दी राधे राधे
कान्हारात्रि राधे राधे
🙏🙏🌹🌹

09/11/2021

Radhey Radhey

14/10/2021
आज का संदेश           हमारा स्वभाव है। जवानी संसार को देते हैं। और बुढ़ापा भगवान को देते हैं। हमारे देने से पता चलता है क...
11/10/2021

आज का संदेश

हमारा स्वभाव है। जवानी संसार को देते हैं। और बुढ़ापा भगवान को देते हैं। हमारे देने से पता चलता है कि हमारी नज़रो में मूल्य किसका ज्यादा है। जब तक बुद्धि चलती है तब तक तर्क बुद्धि से खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं।

जवानी नश्वर परिवर्तनशील संसार को देते हैं। और बुढ़ापा भगवान को जब शक्ति होती है। तब गलत करते हैं। और जब शक्ति नहीं होती तब कहते हैं। कि अच्छा करेंगे। जब करने को ही कुछ नहीं बचता तब कहते हैं कि अच्छा करेंगे। जब मरने लगते हैं तब कहते हैं समर्पण करना है।

जब तक संसार को पकड़ सकते थे तब तक हमने कभी समर्पण की बात नही सोची सिर्फ दुनिया को भोगने में अपना बनाने में लगे रहे। संसार को भोगते भोगते हम बूढ़े हो गए लेकिन हमारी कामना बूढी नही हुई। अब बुढापे में कमजोर हो के संसार को भोगने में असमर्थ हो गये तब भगवान को चाहते हैं। हम किसे धोखा दे रहे हैं।

23/09/2021

आलस्य छोड़कर आनन्दमयी बेला मे उठे हो तो ठाकुरजी के चरणो मे प्रेम से राधे राधे बोलिए,आपका दिन मंगलमय हो,शुभ हो राधे राधे 🙏🙏🌹🌹

22/09/2021

प्रातः कालीन बेला में जग गए हो तो पीतांबर धारी मोर पंख धारी श्री बाँके बिहारी जी के चरणों में राधे राधे नाम की हाजिरी लगाते जाए

20/09/2021

ब्रह्ममुहूर्त में जग गए हो तो चंचल चितवन नंदकिशोर बृजनंदन वृंदावन श्रीबाँकेबिहारीजी के चरणों में राधेराधे नाम की हाजिरी लगाते जाये

20/09/2021

बुध्दि के हम आदी हो गए हैं इसलिये प्रेम से परिचय बनाना मुश्किल होता है। प्रेम अंर्तमन को जानने की कला है
सुप्रभात राधे राधे
🙏🙏🌹🌹

(((( ईश्वर की सच्ची भक्ति ))))शहर में एक अमीर सेठ रहता था। उसके पास बहुत पैसा था। वह बहुत फैक्ट्रियों का मालिक था।एक शाम...
18/09/2021

(((( ईश्वर की सच्ची भक्ति ))))
शहर में एक अमीर सेठ रहता था। उसके पास बहुत पैसा था। वह बहुत फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम अचानक उसे बहुत बैचेनी होने लगी। डॉक्टर को बुलाया गया सारी जाँच करवा ली गयी। पर कुछ भी नहीं निकला। लेकिन उसकी बैचेनी बढ़ती गयी।

उसके समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। रात हुई, नींद की गोलियां भी खा ली पर न नींद आने को तैयार और ना ही बैचेनी कम होने का नाम ले।
वो रात को उठकर तीन बजे घर के बगीचे में घूमने लगा। घुमते-घुमते उसे लगा कि बाहर थोड़ा सा सुकून है तो वह बाहर सड़क पर पैदल निकल पड़ा।
चलते- चलते हजारों विचार मन में चल रहे थे। अब वो घर से बहुत दूर निकल आया था। और थकान की वजह से वो एक चबूतरे पर बैठ गया।
उसे थोड़ी शान्ति मिली तो वह आराम से बैठ गया।
इतने में एक कुत्ता वहाँ आया और उसकी चप्पल उठाकर ले गया।
सेठ ने देखा तो वह दूसरी चप्पल उठाकर उस कुत्ते के पीछे भागा। कुत्ता पास ही बनी जुग्गी-झोपड़ीयों में घुस गया।
सेठ भी उसके पीछे था, सेठ को करीब आता देखकर कुत्ते ने चप्पल वहीं छोड़ दी और चला गया।
सेठ ने राहत की सांस ली और अपनी चप्पल पहनने लगा। इतने में उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी।
वह और करीब गया तो एक झोपड़ी में से आवाज आ रहीं थीं।
उसने झोपड़ी के फटे हुए बोरे में झाँक कर देखा तो वहाँ एक औरत फटेहाल मैली सी चादर पर दीवार से सटकर रो रही हैं। और ये बोल रही है -- हे भगवान मेरी मदद कर ओर रोती जा रहीं है।
सेठ के मन में आया कि यहाँ से चले जाओ, कहीं कोई गलत ना सोच लें।
वो थोड़ा आगे बढ़ा तो उसके दिल में ख़्याल आया कि आखिर वो औरत क्यों रो रहीं हैं, उसको तकलीफ क्या है? और उसने अपने दिल की सुनी और वहाँ जाकर दरवाजा खटखटाया।
उस औरत ने दरवाजा खोला और सेठ को देखकर घबरा गयी।
सेठ ने हाथ जोड़कर कहा तुम घबराओं मत, मुझे तो बस इतना जानना है कि तुम रो क्यों रही हो।
वह औरत के आखों में से आँसू टपकने लगें। और उसने पास ही गीदड़ी में लिपटी हुई उसकी 7-8 साल की बच्ची की ओर इशारा किया।
और रोते -रोते कहने लगी कि मेरी बच्ची बहुत बीमार है उसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा। और में तो घरों में जाकर झाड़ू-पोछा करके जैसे-तैसे हमारा पेट पालती हूँ। में कैसे इलाज कराउ इसका?
सेठ ने कहा--- तो किसी से माँग लो।
इसपर औरत बोली मैने सबसे माँग कर देख लिया खर्चा बहुत है कोई भी देने को तैयार नहीं।
सेठ ने कहा तो ऐसे रात को रोने से मिल जायेगा क्या?
औरत ने कहा कल एक संत यहाँ से गुजर रहे थे तो मैने उनको मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा बेटा-- तुम सुबह 4 बजे उठकर अपने ईश्वर से माँगो।
बोरी बिछाकर बैठ जाओ और रो रो टर -गिड़गिगिड़ाके उससे मदद माँगो वो सबकी सुनता है तो तुम्हारी भी सुनेगा।
मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। इसलिए में उससे माँग रही थीं और वो बहुत जोर से रोने लगी।
ये सब सुनकर सेठ का दिल पिघल गया और उसने तुरन्त फोन लगाकर एम्बुलेंस बुलवायी और उस लड़की को एडमिट करवा दिया।
डॉक्टर ने डेढ़ लाख का खर्चा बताया तो सेठ ने उसकी जवाबदारी अपने ऊपर ले ली, और उसका इलाज कराया।
उस औरत को अपने यहाँ नौकरी देकर अपने बंगले के सर्वेन्ट क्वाटर में जगह दी। और उस लड़की की पढ़ाई का जिम्मा भी ले लिया।
वो सेठ कर्म प्रधान तो था पर नास्तिक था। अब उसके मन में सैकड़ो सवाल चल रहे थे।
क्योंकि उसकी बैचेनी तो उस वक्त ही खत्म हो गयी थी जब उसने एम्बुलेंस को बुलवाया था। वह यह सोच रहा था कि आखिर कौन सी ताकत है जो मुझे वहाँ तक खींच ले गयीं?
क्या यहीं ईश्वर हैं? और यदि ये ईश्वर है तो सारा संसार आपस में धर्म, जात -पात के लिये क्यों लड़ रहा है।
क्योंकि ना मैने उस औरत की जात पूछी और ना ही ईश्वर ने जात -पात देखी। बस ईश्वर ने तो उसका दर्द देखा और मुझे इतना घुमाकर उस तक पहुंचा दिया।
अब सेठ समझ चुका था कि कर्म के साथ सेवा भी कितनी जरूरी है क्योंकि इतना सुकून उसे जीवन में कभी भी नहीं मिला था।
दोस्तों.. मानव और प्राणी सेवा का धर्म ही असली इबादत या भक्ति हैं।
यदि ईश्वर की कृपा या रहमत पाना चाहते हो तो इंसानियत अपना लो और समय-समय पर उन सबकी मदद करो जो लाचार या बेबस है। क्योंकि ईश्वर इन्हीं के आस -पास रहता हैं।
साभार :- All World Gayatri pariwar

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