FNI News

FNI News Freelancer News International (FNI) is an effort shared among the world-wide journalists to promote young talent in the field of journalism. from time to time.

Infact, it is a news agency with a difference which caters to the needs of both small and big media establishments by providing news stories on a regular basis. FNI is trying to bring in its fold freelance journalists who can contribute as news agents, stringers, reporters or correspondents from various fields. A journalist is widely respected and enjoys an authority for he/she has the power to ex

pose. So, if you are a responsible citizen and want to have the power to make a difference to the society, you can do so becoming a Citizen Journalist. FNI, is collaboration with MIC, has brought the concept of Citizen Journalist in India after succeeding in UK and US. This attempt is first of it’s kind in our country, as a citizen of India can now become a journalist. These would-be journalists get an identity card, which not only provides them recognition but also enables them to have a say in matters concerning themselves and others. Other benefits include issuing of a Press Card along with a Press sticker for their vehicle for their first-hand identity. Apart from this, the person gets a chance to meet and interact with high profile people and celebrities. Term it a “vision sharing experience”. We would also conduct workshops and classes for a citizen journalist in creative writing, camera facing and handling etc. These could be availed of at no extra cost. We would also try and assist them to coordinate as well as provide solutions to various day-to-day issues and problems. Another important aspect of the FNI and BMS collaboration is that the member would later become part of the club called Freelancers Press Club initiated by the FNI. It would be an exclusive club meant for its Citizen Journalists. The member individuals would represent his/her area and may even be promoted as area chief depending on their involvement and performance. As a member journalist one may also get the opportunity to cover various events and press conferences assigned to them from time to time. So, have a check over the environment you live in. Now you are ready to Be The Change To Make A Difference.

08/02/2024

भारतीय गणना का क्रम राम, दो, तीन... है।
राम आचार, विचार, व्यवहार, व्यापार-सर्वत्र हैं:
अनाम जो है पंक्ति में प्रथम
प्रथम है धैर्य धर्म का,
है शौर्य का अनन्त, अन्त क्रोध का;
प्रचंड युद्ध का निलय,
प्रलय का जो विराम है।
वो एक नाम राम है।

चित्रबोध - अब हमें जगना ही होगा !!!
26/01/2024

चित्रबोध - अब हमें जगना ही होगा !!!

बेचैन सूचनाओं के अतृप्त संसार में तथाकथित ज्ञान गंगा के झूठे वैकुण्ठ में जीनेवाली आज की उदिग्न पीढ़ी के लिए हजारों वर्ष प...
06/01/2024

बेचैन सूचनाओं के अतृप्त संसार में तथाकथित ज्ञान गंगा के झूठे वैकुण्ठ में जीनेवाली आज की उदिग्न पीढ़ी के लिए हजारों वर्ष पूर्व जैन वैज्ञानिकों (महर्षियों) द्वारा अन्वेषित ''कायोत्सर्ग पद्धति'' वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में यह एक वरदान से भी बढ़कर है जिसके माध्यम से यह पीढ़ी जागृति की उच्चतम अवस्था में जाकर स्वयं में स्वभाव परिवर्तन की क्रांति लाकर ना केवल जीवन का वास्तविक आनंद प्राप्त कर सकती है वरन अपने जाग्रत ऊर्जा द्वारा नित नई ऊंचाइयों को छूने में भी सक्षम हो सकेगी।

बाकई में यह एक बरदान से भी बढ़कर है - स्वयं के तृप्त-अतृप्त अहंकार को खंडित करने के लिए, स्वयं के आत्म-मुग्ध उदात्त रूप को विखंडित करने के लिए, प्रायश्चित करने के लिए, विशोधि करने के लिए, मन को निर्मल बनाने के लिए, जो व्यसन का घाव हो गया है, उस घाव को भरने के लिए, उस शल्य को मिटाने के लिए, उन बुरी आदतों के द्वारा जो मूर्छा और कुकर्म के परमाणु, चारों ओर शरीर और मन पर व्याप्त हो गए हैं, उन दमनकारी परमाणुओं का उन्मूलन करने के लिए, कायोत्सर्ग एक श्रेठत्तर प्रक्रिया है।

इस पद्धति का पहला सूत्र है-'ऑटो रिलेक्सेशन।' इसका अर्थ है-स्व-शिथिलीकरण। यह कायोत्सर्ग की ही प्रक्रिया है। कायोत्सर्ग किए बिना स्वभाव-परिवर्तन की प्रक्रिया फलित नहीं हो सकती। चाहे स्वभाव को बदलना हो, चाहे किसी बीमारी की चिकित्सा करनी हो तो सबसे पहले कायोत्सर्ग करना होगा। यह पहला सूत्र है।

इस पद्धति का दूसरा सूत्र है-सेल्फ एनेलिसिस-अनुप्रेक्षा। जिसे हम बदलना चाहते हैं, जिन आदतों में परिवर्तन लाना चाहते हैं, उसका विश्लेषण करना, उसकी अनुप्रेक्षा करनी होगी। यहाँ पूर्ण आत्म-निरीक्षण और आत्म-विश्लेषण करना होगा।

इस पद्धति का तीसरा सूत्र है - पूर्ण संज्ञान (जानना)। यदि मैं क्रोध को छोड़ना चाहता हूं तो मुझे सबसे पहले अपना आत्म-विश्लेषण करना होगा जैसेकि क्रोध क्यों बुरा है ? क्यों छोड़ना चाहता हूं ? यदि वह बुरा नहीं है तो छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। क्या क्रोध बुरा है-इसका मैं विश्लेषण करूं। इसका विश्लेषण करूंगा, अनुप्रेक्षा करूंगा, गहरे में उतरूंगा, जानूँगा।

इस पद्धति का चौथा सूत्र है-अपाय विचय ध्यान की स्थिति तक पहुंचना। इस अवस्था में हमें यथार्थः ज्ञात होगा जैसेकि क्रोध एक प्रकार का ज्वर है। वह जब शरीर में उतरता है तब शरीर को तोड़ देता है और शक्तियों को क्षीण कर देता है। क्रोध मस्तिष्क का ज्वर है, हृदय का भी ज्वर है और एड्रीनल जब क्रोध करता है तब सबसे पहला प्रहार मस्तिष्क पर होता है। मस्तिष्क ज्वर-पीड़ित हो जाता है। उस समय इतनी उत्तेजना और इतनी अतिरिक्त ऊर्जा खपती है कि बड़ी बेचैनी छा जाती है और सारा अंग-प्रत्यंग प्रतप्त जैसा हो जाता है। क्रोध का दूसरा प्रहार होता है-हृदय पर। क्रोध आते ही हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। उसकी गति तेज हो जाती है और व्यक्ति अस्वाभाविक ढंग से काम करने लगता है। यथार्थ-दर्शन कि क्रिया से व्यक्ति इस अवस्था से निर्मुक्त हो जाता है।

रचना एवं निवेदन
. Prashan Kumar Thakur
#डॉ प्रशान कुमार ठाकुर
इ जी ए एन, स्वास्थ्य विहार, दिल्ली

Sending my warmest wishes for the Christmas holiday season and a new year full of achievements and good luck. May the ma...
25/12/2023

Sending my warmest wishes for the Christmas holiday season and a new year full of achievements and good luck. May the magic spell of Christmas surround us in the upcoming year!

अपने फेसबुक वाल पर प्रकाशित एक मित्र के एक पोस्ट से गुजरते हुए उसपर किये जा रहे प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियों को पढ़कर अचानक...
25/12/2023

अपने फेसबुक वाल पर प्रकाशित एक मित्र के एक पोस्ट से गुजरते हुए उसपर किये जा रहे प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियों को पढ़कर अचानक ठहर गया; जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति अनुभाग द्वारा जनवरी १४, २०२४ से जनवरी १४, २०२४ तक अयोध्या में रामलला मंदिर में इस दौरान होनेवाले कार्यक्रम से जुड़े दिशानिर्देशों का उल्लेख है। प्रेषित-पत्र के हवाले भारत के धर्म-निरपेक्ष राज्य होने पर सवाल उठाया गया है।

इस सन्दर्भ में आप सभी भारतीय सनातन संस्कृति को जानने, समझने और अनुकरण करने वाले मित्रगणों से विनम्र निवेदन के साथ प्रार्थना पूर्वक कहना है कि जी हाँ, हम सभी भारतीयों के लिए निसंदेह यह बहुप्रतीक्षित पल अपार हर्ष का विषय तो है ही बल्कि सनातनी संस्कृति के एक महान गौरवशाली काल-खण्ड की प्रतीति के रूप में अति-अनिवार्य सांस्कृतिक महोत्सव भी है।; किन्तु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित मूल्यों, आदर्शों, के परिप्रेक्ष्य में हमें भी प्रतिक्रियावश टिपण्णी में अपना संयम और कथ्य एवं वाक्य की मर्यादा बनाये रखनी होगी। 'मर्यादा' अमूल्य संस्कार-मथित महान भारतीय संस्कृति की आत्मा है। मर्यादा में रहकर सुसंस्कृत संस्कारों को धारण करना अर्वाचीन-कर्त्तव्य एवं इसका वरण कर ऊँच्चतर मूल्यों के साथ जीना हमारी पहचान है। हम राम, कृष्ण और शिव की इस पावन धरती की धूल हैं। हम परमपिता से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें शिव का मस्तिष्क दें, कृष्ण का हृदय और भगवान् श्रीराम का कर्म और वचन।

भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ एवं अनुकरणीय कोई मार्गदर्शक नहीं, उनके जीवन से उत्तम कोई व्रत नहीं, उनसे बड़ा कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। निश्चित ही उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं।

अपनी लीला के माध्यम से उन्होंने हमें बताया है कि असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति होने के बावजूद संयमित होना ही राम है। अपनी लीला में वे सामाजिक हैं, लोकतांत्रिक हैं। वे मानवीय करुणा जानते हैं। वे मानते हैं - परहित सरिस धर्म नहीं भाई।

राम का चरित्र व्यापक है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने एकपत्नी व्रत का पालन कर समाज में स्त्री की सत्ता और महत्ता को स्थापित किया, परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े और पति-पत्नी के बिच के संबंध तथा प्रेम को नई परिभाषा दी। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।

सामर्थ्य-सुता इस धरती पर पथिक धीरज नहीं खोता है ,
हितकारी आदर्श-पथ पर चलकर कब कौन कहाँ रोता है।

राम जाति वर्ग से परे हैं। नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी के लिए समदर्शी और करुणामय। अगड़े पिछड़े सब उनके हैं। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित निःस्वार्थ भाव से जीवन जीता है, उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है।

और अंततः राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी निम्न - पंक्तियों के साथ अपनी बातों को विराम देना चाहूंगा-

ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।

तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।

निवेदक
आप सबों का सेवक
डॉ प्रसन्न कुमार ठाकुर
[DR. PRASHAN KUMAR THAKUR]

20/12/2023
जब तक हम विघटनकारी और विरोधाभासी सूचना के संसार में डूबे मनोविकृत लोगों को प्रसिद्ध बनाने की कवायत करते रहेंगे, तब तक हम...
20/12/2023

जब तक हम विघटनकारी और विरोधाभासी सूचना के संसार में डूबे मनोविकृत लोगों को प्रसिद्ध बनाने की कवायत करते रहेंगे, तब तक हम एक व्यक्ति-विशेष को केंद्र में रखकर न केवल राष्ट्रीय स्तर पर अशांति और सामाजिक स्तर पर वर्गभेद/जातिभेद पैदा करने की जमीं तैयार करते रहेंगे बल्कि वर्त्तमान और आने वाली पीढ़ी के बीच एक ना मिटने बाली खाई भी बना रहे होते हैं। सामाजिक समुदायों के विरुद्ध किसी भी गैरकानूनी कार्य या राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को किसी भी विचार या दर्शन के द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता है। लंबे समय से चली आ रही सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनैतिक चरमपंथ ने ही अबतक के सभी नरसंहार और हिंसा को जन्म दिया है और यदि सामाजिक रूप से सुसभ्य नहीं हुए तो आगे भी यही होता रहेगा।

हमारे मीडिया को चरमपंथियों और समाज को परेशान करने वाले भेड़ियों के कार्यों को उसी अनादर के साथ देखना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। अगर हम इस बात पर गहरे में औचक नहीं होते तो फिर से कोई विक्षिप्त उठ खरा हो आधुनिक जटिल डिजिटल दुनिया की सहायता से हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक एवं राजनैतिक चेतना पर हमला कर साफ़ बचकर निकल जाता है और एक किनारे खड़ा हो हमारी मूर्खता पर कहकहे लगाता हुआ हमें चिढ़ा रहा होता है। और हम केवल उस चीज़ को प्रोत्साहित करने का जोखिम उठाते हैं जिसकी हम निंदा करते हैं।

हमारी मीडिया को चाहिए कि वह केवल कृत्य की रिपोर्ट करें, लेकिन इसे वह व्यक्तिनिष्ठ ना होने दे। बेसक इंगित करें कि उपयुक्त कार्रवाई की जा रही है। इसे सकारात्मक तरीके से निष्पक्ष होकर आम जनता के सामने रखा जाये। कृपया ऐसे लोगों और घटनाओं का महिमामंडन करना बंद करें।'

जीवन मूल्य, मानवता और नैतिकता ही समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। और यही आवश्यक है।

पंचतंत्र से पाँच पाठभगवद गीता के बाद दुनिया भर में दूसरा सबसे अधिक अनुवादित हिंदू साहित्य; पंचतंत्र (पंचतंत्र) प्राचीन भ...
07/12/2023

पंचतंत्र से पाँच पाठ

भगवद गीता के बाद दुनिया भर में दूसरा सबसे अधिक अनुवादित हिंदू साहित्य; पंचतंत्र (पंचतंत्र) प्राचीन भारतीय नैतिक कहानियों का एक संग्रह है।

पंचतंत्र शब्द का अर्थ है पांच सिद्धांत।

(1) एकता और सहयोग 'मित्रभेद' (दोस्तों के बीच मनमुटाव और अलगाव)
सर्पस्य मित्रता जनैः सञ्जाता, विनश्यति च यथा तद्गृहे।
वृद्धोपि न भूयो विचार्यमाणा, सर्पस्य वृक्षेऽपि न भूयो जनैः॥

एकता और सहयोग का महत्व, इस बात पर प्रकाश डालता है कि असंभावित प्रतीत होने वाली मित्रता भी मूल्यवान हो सकती है।

(2) बुद्धि और धैर्य 'मित्रलाभ या मित्रसम्प्राप्ति' मित्रलाभ या मित्रसम्प्राप्ति (मित्र प्राप्ति और उसके लाभ मित्र प्राप्ति एवं उसका लाभ)

अन्ते वसानस्य तृषार्तस्य, पुष्करस्यापि दृढविक्रमस्य।
तुलायां चलयन्ति चापलाः, सर्पाः सर्पवधूनि नैके॥

ज्ञान और धैर्य का महत्व, इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि कुछ विघटनकारी तत्व भी अराजकता पैदा कर सकते हैं और प्रगति में बाधा.

(3) जल्दबाजी के परिणाम 'काकोलुकीयम्' (कौवे और उल्लुओं की कहानी कौवे एवं उल्लुओं की कथा)

यात्रायां वासवीं प्राप्य, भर्ता शूरः प्रियवादी।
न क्वापि वर्षत्यल्पात्मा, सुखं चिन्तापरायणः॥

अधीरता और जल्दबाजी के परिणाम, सचेत रहने और महत्वपूर्ण मामलों में जल्दबाजी न करने के महत्व पर जोर देते हैं।

(4) रणनीति की शक्ति 'लब्धप्रणाश' (हाथ में आई चीज का लाभ/हाथ से निकल जाना सर्वनाश की स्थिति आ जाने पर)

उद्योगं बध्यते वृक्षः, पातनं चैव शाखिनः।
अविद्याया अविद्यानां च, समागमे तु तत्त्ववित्॥

यह हमें रणनीति और समझ की शक्ति सिखाती है, इस बात पर जोर देती है कि ज्ञान और कौशल चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकते हैं।

(5) अनुकूलनशीलता का महत्व 'अपरीक्षित कारक' अपरीक्षित कारक (जो कार्य परीक्षण न किया गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; जल्दबाजी में कार्य न करें) जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)

विचारयेत् पथः पूर्वं, चरितं च विचार्य तत्।
धृतिमान् विचरेत्पश्चात्, कार्ये कार्यार्थमादरात्॥

पहले मार्ग के बारे में सोचना चाहिए, फिर उसके परिणामों पर विचार करना चाहिए। इसके बाद बुद्धिमान व्यक्ति को कार्य की आवश्यकता के अनुसार कार्य करना चाहिए। यह श्लोक हमें अनुकूलनशीलता और विचारशील निर्णय लेने का महत्व सिखाता है और इस बात पर प्रकाश डालता है कि कार्रवाई करने से पहले विभिन्न पहलुओं पर विचार करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।

व्यवसाय में प्रत्येक क्षण केवल एक बार ही घटित होता है। अगला बिल गेट्स कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं बनाएगा। अगला लैरी पेज या ...
05/12/2023

व्यवसाय में प्रत्येक क्षण केवल एक बार ही घटित होता है। अगला बिल गेट्स कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं बनाएगा। अगला लैरी पेज या सर्गेई ब्रिन कोई खोज इंजन नहीं बनाएगा। और अगला मार्क जुकरबर्ग कोई सोशल नेटवर्क नहीं बनाएगा। यदि आप इन लोगों की नकल कर रहे हैं, तो आप उनसे नहीं सीख रहे हैं।
बेशक, कुछ नया बनाने की तुलना में किसी मॉडल की नकल करना आसान है। वह करना जो हम पहले से ही जानते हैं कि कैसे करना है, दुनिया को 1 से एन तक ले जाता है, और कुछ परिचित चीजों को जोड़ता है। लेकिन हर बार जब हम कुछ नया बनाते हैं, तो हम 0 से 1 पर चले जाते हैं। सृजन का कार्य विलक्षण है, जैसा कि सृजन का क्षण है, और परिणाम कुछ नया और अजीब है।

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