25/12/2023
अपने फेसबुक वाल पर प्रकाशित एक मित्र के एक पोस्ट से गुजरते हुए उसपर किये जा रहे प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियों को पढ़कर अचानक ठहर गया; जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति अनुभाग द्वारा जनवरी १४, २०२४ से जनवरी १४, २०२४ तक अयोध्या में रामलला मंदिर में इस दौरान होनेवाले कार्यक्रम से जुड़े दिशानिर्देशों का उल्लेख है। प्रेषित-पत्र के हवाले भारत के धर्म-निरपेक्ष राज्य होने पर सवाल उठाया गया है।
इस सन्दर्भ में आप सभी भारतीय सनातन संस्कृति को जानने, समझने और अनुकरण करने वाले मित्रगणों से विनम्र निवेदन के साथ प्रार्थना पूर्वक कहना है कि जी हाँ, हम सभी भारतीयों के लिए निसंदेह यह बहुप्रतीक्षित पल अपार हर्ष का विषय तो है ही बल्कि सनातनी संस्कृति के एक महान गौरवशाली काल-खण्ड की प्रतीति के रूप में अति-अनिवार्य सांस्कृतिक महोत्सव भी है।; किन्तु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित मूल्यों, आदर्शों, के परिप्रेक्ष्य में हमें भी प्रतिक्रियावश टिपण्णी में अपना संयम और कथ्य एवं वाक्य की मर्यादा बनाये रखनी होगी। 'मर्यादा' अमूल्य संस्कार-मथित महान भारतीय संस्कृति की आत्मा है। मर्यादा में रहकर सुसंस्कृत संस्कारों को धारण करना अर्वाचीन-कर्त्तव्य एवं इसका वरण कर ऊँच्चतर मूल्यों के साथ जीना हमारी पहचान है। हम राम, कृष्ण और शिव की इस पावन धरती की धूल हैं। हम परमपिता से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें शिव का मस्तिष्क दें, कृष्ण का हृदय और भगवान् श्रीराम का कर्म और वचन।
भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ एवं अनुकरणीय कोई मार्गदर्शक नहीं, उनके जीवन से उत्तम कोई व्रत नहीं, उनसे बड़ा कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। निश्चित ही उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं।
अपनी लीला के माध्यम से उन्होंने हमें बताया है कि असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति होने के बावजूद संयमित होना ही राम है। अपनी लीला में वे सामाजिक हैं, लोकतांत्रिक हैं। वे मानवीय करुणा जानते हैं। वे मानते हैं - परहित सरिस धर्म नहीं भाई।
राम का चरित्र व्यापक है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने एकपत्नी व्रत का पालन कर समाज में स्त्री की सत्ता और महत्ता को स्थापित किया, परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े और पति-पत्नी के बिच के संबंध तथा प्रेम को नई परिभाषा दी। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
सामर्थ्य-सुता इस धरती पर पथिक धीरज नहीं खोता है ,
हितकारी आदर्श-पथ पर चलकर कब कौन कहाँ रोता है।
राम जाति वर्ग से परे हैं। नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी के लिए समदर्शी और करुणामय। अगड़े पिछड़े सब उनके हैं। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित निःस्वार्थ भाव से जीवन जीता है, उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है।
और अंततः राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कालजयी निम्न - पंक्तियों के साथ अपनी बातों को विराम देना चाहूंगा-
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
निवेदक
आप सबों का सेवक
डॉ प्रसन्न कुमार ठाकुर
[DR. PRASHAN KUMAR THAKUR]