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अंकिता!    एक सामान्य सपने ले कर जीने वाली लड़की। झारखंड के एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी, जिसने अभी जीना शुरू भी नहीं कि...
30/08/2022

अंकिता!
एक सामान्य सपने ले कर जीने वाली लड़की। झारखंड के एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी, जिसने अभी जीना शुरू भी नहीं किया था कि जला कर मार दी गयी। क्यों? क्योंकि किसी शाहरुख का दिल आ गया था उसपर! उसे बीवी बना कर अपनी झोपड़ी में ले जाना चाहता था। एक पढ़ी लिखी लड़की किसी जाहिल से विवाह का प्रस्ताव क्यों स्वीकार करती? सो मना कर दिया।
शाहरुख को चुभ गयी बात। वही बर्बर मुगलिया सोच! जो पसन्द आ गयी वह मेरी है। खिलजी से लेकर अकबर तक सबने यही तो सिखाया है। किसी अंकिता की इतनी औकात कि वह किसी शाहरुख की बात काट दे? शाहरुख घर में घुसे, पेट्रोल गिराया और जला दिया...
लड़की खुद दौड़ कर आंगन में आई, बाल्टी से पानी लेकर अपने ऊपर उड़ेला... अठारह वर्ष की बच्ची की जीने की लालसा! इस छोटी आयु में मरना कौन चाहता है? अस्पताल में वह हर मिलने वाले से एक ही बात पूछती थी- "मैं बच तो जाऊंगी न?"
पर नहीं बची। नब्बे फीसदी जल गई थी, कैसे बचती? जीवित जला दी गयी लड़की की पीड़ा कोई नहीं समझ सकता। कितना तड़पी होगी... और उसके तड़पने से कितना खुश हुआ होगा शाहरुख न! इसी लिए तो जलाया था। कहता था- मेरी न हुई तो तड़पा कर मारूंगा!
कोई नेता, पत्रकार उससे मिलने अस्पताल नहीं गया। क्यों जाता? राजनीति लायक मुद्दा नहीं था न! मर गयी तो मर गयी... यह राजनीति और पत्रकारिता की संवेदना का स्तर है।
आप सोच कर देखिये, शाहरुख भी तो जानता होगा कि इसके बाद पकड़ा जाएगा और जिंदगी जेल में सड़ते हुए कट जाएगी। पर नहीं! वह जानता है कि उसके जैसे दस शाहरुखों ने यदि दस अंकिताओं को जला दिया, तो ग्यारहवीं अंकिता किसी शाहरुख को मना नहीं कर पायेगी। वह अपने मिशन में सफल है। यही उसकी विजय है। पूरा खेल खौफ फैलाने का है...
वह यह भी जानता है कि उसके मुद्दे पर न कोई नेता विरोध करेगा, न किसी टीवी चैनल पर डिबेट होगा। उसको बचाने के लिए फंडिंग होगी और सम्भव है कि कुछ वर्षों में वह जेल से बाहर आ कर सुखी जीवन जीने लगे। इस देश में ऐसा होता रहा है।
शाहरुख अंकिता के पीछे बहुत दिनों से पड़ा था। वह कई बार उसके घर जा कर धमका चुका था। हर बार अंकिता के पिता उसे समझाने का प्रयास करते और छोड़ देते। यकीन कीजिये, उसके पिता की इसी अति-सहिष्णुता ने अंकिता की जान ली। यदि वह पिता उसी समय पुलिस के पास जाता, राजनैतिक संगठनों के पास जाता, तो सम्भव था कि आज लड़की जी रही होती। पर किसी भी तरह चुपचाप मामले को सुलटा लेने के भाव ने अंकिता को मार दिया। यह कठोर सच है कि हमारे देश में बेटियों से जुड़े मामले में इस तरह की निर्लज्ज चुप्पी आम है।
आप देखियेगा, केस चलेगा तब शाहरुख की माँ मीडिया में आ कर कहेगी- "हम बहुत गरीब हैं। मेरा बेटा ही कमाने वाला है। उसे छोड़ दिया जाय!" देश की बौद्धिकता उछलने लगेगी, आधी रात को कोर्ट खुलने लगेंगे। सब उसकी ओर खड़े हो जाएंगे। अंकिता की पीड़ा किसी को याद नहीं रहेगी।
जिस देश में कभी एक महारानी की प्रतिष्ठा पर पूरा राज्य बलिदान दे जाता था, वह देश अब बेटियों की सुरक्षा करना तक भूल गया है। इस देश का इससे अधिक दुर्भाग्य कुछ भी नहीं।

एवरी बेड थिंग कम्स टू एन एन्ड20 अगस्त को रॉय दंपत्ति निश्चिंत होकर सो गए और जब 21 अगस्त को ऑफिस पहुँचे तो अखबार से पता च...
28/08/2022

एवरी बेड थिंग कम्स टू एन एन्ड

20 अगस्त को रॉय दंपत्ति निश्चिंत होकर सो गए और जब 21 अगस्त को ऑफिस पहुँचे तो अखबार से पता चला कि उनकी कंपनी NDTV के 29% शेयर उनके सबसे बड़े दुश्मन गौतम अडानी को चले गए।

ये साम्यवाद पर पूंजीवाद की बहुत बड़ी विजय है जिसे हमें सेलिब्रेट करना चाहिए। NDTV का बिकना राष्ट्रहित में परम आवश्यक हो गया था क्योकि यही एक मात्र चैनल बचा था जो चीन के इन्फॉर्मेशन वॉर को आगे बढ़ा रहा था, लेनिन की साम्यवादी विचारधारा भारत मे घुसाने को प्रयासरत था और अरविंद केजरीवाल की फ्रीबीज की अनीति का समर्थन कर रहा था।

लेकिन गौतम अडानी ने इतनी बड़ी इन्वेजन कैसे कर दी? दरसल रॉय दंपत्ति ने NDTV की स्थापना करने के लिये एक कंपनी RRPR का गठन किया, इसमे 32% पैसा दोनो ने मिलकर लगाया शेष 68% मार्केट में शेयर बेचकर उठाया।

इस 68 मे से 29% शेयर VCPL नाम की कंपनी के पास थे, दरसल रॉय दंपत्ति ने ये 29% शेयर गिरवी रखकर 403 करोड़ रुपये का लोन लिया था। जिसे वे आजतक नही चुका सके और बाद में VCPL भी बिक गयी और उसे गौतम अडानी ने खरीद लिया। अब ये 29% शेयर भी अडानी के हो गए।

कानून के अनुसार यदि शेयर होल्डिंग 25% से ज्यादा हो जाती है तो आप अन्य शेयर होल्डर्स को 26% और खरीदने का ऑफर दे सकते है। NDTV की भागीदारी में अब रॉय दम्पत्ति और अडानी के अलावा 177 कंपनियां और है। अडानी ने इन कंपनियों को NDTV के 26% शेयर और खरीदने का ऑफर रख दिया है वो भी 282 रुपये में। जबकि शेयर की बाजार में कीमत 370 के आसपास है।

अडानी 100 रुपये कम में बेचने को ऑफर कर रहे है क्योकि इन 177 मे से कुछ कंपनियों की अडानी ग्रुप में भी हिस्सेदारी है। रॉय दम्पत्ति के पास बस यही एक विकल्प है कि वे अडानी से अच्छा ऑफर देकर खुद ही 26% शेयर खरीद ले और मैनेजमेंट पॉवर बचा ले लेकिन ये डील उन्हें 500 करोड़ से कम में नही बैठेगी और इतना पैसा उनके पास नही है।

कुल मिलाकर वे अपनी ही कंपनी को अडानी के हाथों में जाते हुए देखेंगे और कुछ नही कर सकते। जो कि अच्छा ही हुआ क्योकि यही एक अंतिम वामपंथी चैनल बचा था, अब बाहरी शक्तियों के लिये इन्फॉर्मेशन वॉर का अंतिम रास्ता बंद हो चुका होगा। आप देखेंगे कि बीजेपी को 2024 के चुनावों में इसका बड़ा फायदा मिलेगा और कोई बड़ी बात नही है कि इस बार जीत पहले से भी भव्य हो।

बहुत से लोग मानते है कि NDTV अच्छा आलोचक था सही पत्रकारिता करता था। ये बात सही भी है इस चैनल ने कभी कांग्रेस की निंदा भी की थी लेकिन विपक्षी पार्टी बीजेपी को भी घेरा था। सुप्रीम कोर्ट मोदीजी को 2002 के लिये निर्दोष कह चुका है लेकिन NDTV की अदालत में कुछ और है। 370 हटने पर एक NDTV ही था जो रो रहा था।

NDTV पूर्ण रूप से एक कम्युनिस्ट चैनल था और जनता को शासन के विरुद्ध भड़काकर वही कर रहा था जो 100 पहले रूस में लेनिन ने किया था। लेकिन भारत रूस नही है कोई बड़ा अनिष्ट होता उससे पहले पूंजीवाद का जहाज उसे रोकने आ गया। ग्रेट वर्क अडानी।
साभार :

04/03/2022
जो बोया सो पायाक्या जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के छात्रों को पोलेंड बिना वीजा के क्यो आने दे रहा अपने देशमे??1989...
04/03/2022

जो बोया सो पाया

क्या जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के छात्रों को पोलेंड बिना वीजा के क्यो आने दे रहा अपने देशमे??

1989 में जब पोलैंड रूस से अलग हुआ तो यहां के लोगों ने आभार जताने के लिए पोलैंड की राजधानी में जाम साहेब के नाम पर एक चौक का नाम रखा.

पिछले कुछ दिनों से आपने पोलैंड का नाम खूब सुना होगा. कुछ लोगों ने इस देश की यात्रा भी की होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पोलैंड की राजधानी वॉरसॉ में जामनगर के महाराजा दिग्विजय सिंह के नाम पर एक चौक क्यों समर्पित किया गया है? ये कहानी भारत के वसुधैव कुटुंबकम की फिलॉस्फी से जुड़ी है. बात दूसरे विश्वयुद्ध की है, जब 1939 में जर्मनी और रूस की सेना ने पोलैंड पर कब्जा कर लिया. इस युद्ध में अपने देश को बचाने के लिए पोलैंड के हजारों सैनिक मारे गए और उनके बच्चे अनाथ हो गए.

1941 तक ये बच्चे पोलैंड के शिविरों में रहते रहे, लेकिन इसके बाद रूस ने बच्चों को वहां से भगाना शुरू कर दिया. तब 600 से ज्यादा बच्चे अकेले या अपनी मां के साथ एक नाव पर सवार होकर जान बचाने के लिए निकले थे, लेकिन दर्जनों देशों ने उन्हें शरण देने से इनकार कर दिया. जब उनकी नाव मुंबई पहुंची तो जामनगर के महाराजा दिग्विजय सिंह ने दरियादिली दिखाते हुए उन्हें शरण दी. तब भारत गुलाम था और अंग्रेजों ने भी बच्चों को आश्रय देने से इनकार कर दिया था.

दूसरे विश्व युद्ध के समय , पोलेंड पूरी तरह तबाह हो गया था , सिर्फ महिलाएं और बच्चे बचे थे बाकी सब वहां के पुरुष युद्ध मे मारे गए थे , पोलेंड की स्त्रियों ने पोलेंड छोड़ दिया क्योंकि वहां उनकी इज्जत को खतरा था , तो बचे खुचे लोग और बाकी सब महिलाए व बच्चे से भरा जहाज लेकर निकल गए , लेकिन किसी भी देश ने उनको शरण नहीं दी , फिर यह जहाज भारत की तरफ आया वहां गुजरात के जामनगर के तट पर जहाज़ रुका , तब वहां के राजा जाम दिग्विजयसिंह जाडेजा ने उनकी दिन-हीन हालत देखकर उन्हे आश्रय दिया ।।

जानते हो ये पोलेंड वाले जाम नगर के महाराजा दिग्विजयसिंह जाडेजा के नामपर क्यों शपथ ले रहे है ?

न केवल आश्रय दिया अपितु उनके बच्चों को आर्मी की ट्रेनिग दी , उनको पढ़ाया लिखाया ,बाद मे उन्हें हथियार देकर पोलेंड भेजा जहाँ उन्होंने जामनगर में मिली आर्मी की ट्रेनिग से देश को पुनः स्थापित किया , आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है , उनके संविधान के अनुसार जाम दिग्विजयसिंह उनके लिए ईश्वर के समान हे इसीलिए उनको साक्षी मानकर आज भी वहां के नेता संसद में शपथ लेते है , यदि भारत मे दिग्विजयसिंहजी का अपमान किया जाए तो यहां की कानून व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान नही लेकिन यही भूल पोलेंड में करने पर तोप के मुँह पर बांधकर उड़ा दिया जाता है ।।

आज भी पोलेंड जाम साहब के उस कर्म को नहीं भूला,इसलिए आज भारत के लोगो को बिना वीजा के आने दे रहा है उनकी सभी प्रकार से मदद कर रहा है ।।

क्या भारत के इतिहास की पुस्तकों में कभी पढ़ाया गया दिग्वजसिंहजी को ?? यदि कोई पोलेंड का नागरिक भारतीय को पूछ भी ले कि क्या आप जामनगर के महाराजा दिग्वजसिंहजी को जानते हो तो हमारे युक्रेन में डॉक्टर की पढ़ाई करने गए भारतीय छात्र कहेगे नो एक्च्युलिना No , we don't know who they were?
हाय रे अभागों...तुम्हें सहेजना भी नहीं आता.....इन वामियों और कामियों ने वो सब पढ़ाया जिससे हमारा मनोबल टूटे,हीनता महसूस करें। अच्छा है कि सोशल मीडिया है व्हाट्सएप यूनिवरसिटी और फेसबुक कॉलेज की पढ़ाई है ......

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