12/09/2024
एक गांव में गोविंद नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत ही आलसी था और दिन भर सोता रहता था। गोविंद की इस आदत से उसकी बीवी काफी परेशान थी।
हर रोज की तरह गविंद सो रहा था। उसकी पत्नी आती है और कहती है,” लो… गांव के सभी लोग अपने – अपने खेतों पर काम होने के लिए निकल गए हैं लेकिन ये अभी भी सो रहे हैं। इस आदमी का मैं क्या करूं ? मेरा तो नसीब ही खराब है। “
इतने में गोविंद नींद से उठ जाता है और कहता है,” क्या करूं भाग्यवान ? मुझे काम करने का मन ही नहीं होता। कहीं भी थोड़ी देर बैठ जाऊं तो मुझे नींद आने लगती है। “
यह सुनकर उसकी पत्नी कहती है,” अपने पास 3 बीघा जमीन है। लेकिन फिर भी हम गरीबों की जिंदगी जी रहे हैं। उठो और आज पूरा खेत जोतकर आओ।
काम पूरा नहीं किया तो घर आने की हिम्मत मत करना। खाना भी तभी मिलेगा जब तुम पूरा खेत जोतकर आओगे। “
बीवी की डांट सुनकर गोविंद खड़ा होता है और फावड़ा लेकर खेत की ओर निकल जाता है। बाहर धूप बहुत तेज हो चुकी थी। वह सीधा जाकर पेड़ की छांव में बैठ जाता है।
बैठते ही उसे नींद आने लगती है लेकिन तभी बीवी की डांट फटकार याद आ जाती है और वह खड़ा होकर फावड़ा चलाने लगता है।
थोड़ी देर तक काम करने के बाद गोविंद को पसीना छूटने लगता है। पसीना पोंछते हुए कहता है,” थोड़ी देर आराम कर लेता हूं और पानी पीकर दोबारा काम पर ला दूंगा। ”
वह वापस से पेड़ के नीचे जाता है और शीतल जल पीकर थोड़ी देर आराम करता है। आराम करते करते उसे नींद आ जाती है। और कब शाम हो जाती है उसे पता ही नहीं चलता ?
जब गोविंद की नींद खुलती है तो उसके सामने एक बूढ़ी औरत खड़ी होती है। वह कहती है,” बेटा… अगर दो बूंद पानी हो तो मुझे पिला दो। मुझे बहुत तेज प्यास लगी है। “
” हां ! हां ! माजी… मेरे पास पानी है,, लो पी लो। “
गोविंद उन्हें पानी पिलाता है। पानी पीकर वह महिला कहती है,” बेटा… क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को मिलेगा,, बहुत तेज भूख भी लगी है। “
” लेकिन मां जी मेरे पास तो खाने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं खुद भी भूखा हूं। मेरी पत्नी ने मुझे खाना नहीं दिया है। उसने मुझसे कहा है कि अगर मैंने इस खेत को पूरा नहीं जोता तो मुझे खाना भी नहीं मिलेगा।
मैंने बहुत देर तक काम किया लेकिन पूरा खेत नहीं जोत पाया। मुझे काम करने का मन नहीं होता। जहां कहीं भी बैठता हूं, मुझे तुरंत नींद आ जाती है। “
तभी वह बूढ़ी महिला एक अप्सरा का रूप धारण करती है। यह देखकर गोविंद हैरान रह जाता है।
” बेटा… तुम आलसी हो, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। लेकिन शायद तुम्हें नहीं पता इस खेत में तुम बहुत सारा सोना उगा सकते हो जिससे तुम्हारा आने वाला समय काफी सुख और शांति में व्यतीत हो सकता है। “
” अच्छा,, लेकिन कैसे ? “
” देखो बेटा ! तुम इस खेत में धान की फसल करो। तुम्हारे इस पूरे खेत में 3 धान सोने के उगेंगे; जिससे तुम अपनी गरीबी को दूर कर पाओगे।
इसी तरह हर बार धान की फसल करने पर तीन सोने के धान की संख्या बढ़ जाएगी और धीरे-धीरे तुम्हारा पूरा खेत सोने का धान बनकर तैयार होगा और तुम सोने की फसल के मालिक बन जाओगे। “
ऐसी बातें सुनकर गोविंद अपनी खुशहाली के दिनों में डूब जाता है और सोचने लगता है कि फिर मुझे काम करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और जब चाहूंगा तब सो सकता हूं और अपनी नींद उठ सकता हूं, कोई मुझे परेशान नहीं करेगा।
इतने में वह अप्सरा गायब हो जाती है और गोविंद घर वापस लौट आता है। वह सारी घटना अपनी पत्नी को बताता है।
उसकी पत्नी पहले तो उसकी बात पर भरोसा नहीं करती। उसे लगता है कि शायद यह नींद में कोई सपना देख रहे होंगे। लेकिन गोविंद के जोर देने पर उसने सब कुछ मान लिया।
गोविंद की पत्नी ने गोविंद से कहा,” तो फिर चलो अभी हम दोनों मिलकर खेत को जोतकर आते हैं और उसमें धान की फसल को भी बो आते हैं। “
गोविंद उसकी बात सुनकर थोड़ा सा उदास हो जाता है। लेकिन उसकी पत्नी कहती है,” खुद लक्ष्मी माता ने हमें यह संदेश दिया है और तुम हो कि अभी भी आलस पर में डूबे हो। “
पत्नी के जोर देने पर गोविंद को खेत पर जाना पड़ा। दोनों ने मिलकर रात भर खेत जोता और सुबह तक उन्होंने धान की फसल को भी बो दिया।
कुछ दिनों बाद गोविंद के खेतों में धान की फसल उगी। फसल के कारण खेत का रंग सोने की तरह लग रहा था। उसे देखकर गोविंद की पत्नी ने कहा,” सुनो जी… तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इसमें कोई एक नहीं बल्कि पूरे के पूरे धान सोने के हैं। देखो तो खेत कितना प्यारा लग रहा है ! “
” हां ! हां ! भाग्यवान… लेकिन लक्ष्मी माता ने तो हमें बताया था कि इस पूरी फसल में केवल तीन ही धान सोने के होंगे बाकी तो सिर्फ धान ही होगा। “
इसी तरह चलता रहा। गोविंद अपनी फसल का ध्यान रखता, उन्हें समय पर पानी देता और उसकी देखभाल करता।
उसकी धान की फसल पककर तैयार हो चुकी थी। फिर गोविंद और उसकी पत्नी दोनों खेत पर आते हैं और उन सोने के धान के ऊपर चर्चा करते हैं।
गोविंद कहता है,” सुनो भाग्यवान… अब चलो मिलकर उन तीन सोने के धान को ढूंढते हैं। “
गोविंद की पत्नी कहती है,” पागल हो क्या ? अगर हम इस तरह से खेत में उन सोने के धान को ढूंढेगे तो कोई भी हमें शक की नजरों से देखेगा। और फिर हमें अपने सोने के धान पाने में मुश्किल भी हो सकती है।
एक काम करते हैं, हम इस पूरे धान की फसल को काट लेते हैं और धान निकाल लेते हैं। उसके बाद हम उन धानों में उन सोने के धान को भी ढूंढ लेंगे।
गोविंद कहता है,” अरे ! नहीं इतनी फसल में अकेले कैसे काट पाऊंगा। मुझसे इतना काम नहीं हो पाएगा। एक काम करता हूं… गांव से दो-तीन आदमी को काम पर लगा लेता हूं। इससे जल्दी भी होगा और आराम से काम भी हो जाएगा।
गोविंद की पत्नी गुस्सा होते हुए बोली,” अगर हम दूसरों से धान कटवाएंगे तो क्या पता,, वह सोने के धान वही लोग चुरा लें ? नहीं ! नहीं ! हम ऐसा नहीं कर सकते। हम दोनों मिलकर ही इस पूरे धान की फसल को काटेंगे। “
फिर गोविंद और उसकी पत्नी दोनों फसल काटना शुरू करते हैं। तभी गांव के 3 लोग उन दोनों को अकेला फसल काटते हुए देखते हैं तो कहते हैं,” अरे गोविंद भाई… अकेले-अकेले क्यों लगे हो ? फसल तो काफी है। इसके लिए दो आदमी और कर लेते।
” नहीं ! नहीं ! चाचा मैं और मेरी पत्नी दोनों मिलकर इस पूरी फसल को आज ही काट देंगे। और वैसे भी साथ काम करने के लिए कोई मिल भी नहीं रहा। “
” अरे ! नहीं मिल रहा तो चलो हम ही तुम्हारे साथ काम कर लेते हैं। “
यह सुनकर गोविंद की पत्नी बोली,” नहीं ! चाचा जी हम दोनों ही इस काम को कर लेंगे, आप परेशान मत होइए। “
यह सुनकर तीनों आदमी,” ठीक है। ” कहते हुए चले जाते हैं।
गोविंद की पत्नी कहती है,” अच्छा हुआ जो ये लोग चले गए वरना सोना हमारे हाथ नहीं लग पाता। “
गोविंद और उसकी पत्नी दोनों धान की पूरी फसल काटते हैं और घर ले जाते हैं। वे दोनों मिलकर धान और भूसे को अलग करते हैं और फिर उसमें सोना ढूंढते हैं। काफी कोशिश करने के बाद भी सोना नहीं मिलता।
इस पर गोविन्द और उसकी पत्नी उदास हो जाते हैं। गोविंद की पत्नी गोविंद से कहती है,” सुनो जी ! सोना तो नहीं है। अब क्या करें ?
” हां भाग्यवान… सोना तो है ही नहीं इसमें। “
एक काम करो तो तुम इस धान को जमींदार को बेच आओ। वैसे भी हम इस धान क्या करेंगे ?
गोविंद उस पूरे धान को जमींदार के पास लेकर जाता है। जमीदार गोविंद की फसल देखकर काफी खुश होता है। क्योंकि उसका पूरा धान सोने की तरह चमक रहा था।
इस पर जमीदार खुश होकर उस धान के बदले गोविंद को बहुत सारे पैसे देता है जिसकी गोविंद ने कभी कल्पना ही नहीं की थी।
इसके अलावा जमींदार अगली बार के फसल के पैसे गोविंद को पहले से ही दे देता है ताकि अगली फसल भी वो खरीद सके।
अब गोविंद के पास काफी पैसे थे। वह उन पैसों को लेकर घर वापस आता है और अपनी पत्नी को देता है।
गोविंद कहता है,” सुनो भाग्य… सोना नहीं मिला तो क्या ? देख रही हो ना… इतने पैसे पहले कभी नहीं थे हमारे पास। “
” हां ! हां ! सही कहा आपने। “
” मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है… इतने सारे पैसे एक साथ देख कर। “
” सुनो… जिस देवी ने आपको दर्शन दिए हैं, उन्होंने हमें सोना देने को कहा था लेकिन उस सोने से हम इतना भी पैसा नहीं कमा सकते थे जितना कि हमने अपनी फसल को बेचकर कमाया है।
अगर हम हर साल इसी तरह फसल करेंगे तो हमारे पास काफी पैसा होगा जिससे हम अपनी आने वाली जिंदगी को अच्छे से व्यतीत कर पाएंगे। “
” हम देवी की बात को समझ ही नहीं पाए। उनका असली मतलब तो यही था कि तुम्हारी फसल किसी सोने से कम नहीं है। “
” हां ! हां ! भगवान सही कहा। अब हम मिलकर हर साल अच्छी फसल उगाएंगे और उसे जमींदार को बेचेंगे, बदले में हमें ढेर सारा पैसा मिलेगा। “
अब गोविंद और गोविंद की पत्नी मन लगाकर अपनी फसल को सही से बोते, सीखते और उसे बड़ा कर फसल पकने पर उसे जमीदार को बेच आते। धीरे – धीरे गोविंद के पास काफी सारा पैसा आ गया।
और अब गोविन्द और उसकी पत्नी दोनों सुखी – सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।
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