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डॉ. मनमोहन सिंहक निधन पर शोक:भारतक पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंहक निधनक खबर सुनि हृदय अत्यन्त दुःखी भ' गेल। ओ भारतक...
27/12/2024

डॉ. मनमोहन सिंहक निधन पर शोक:

भारतक पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंहक निधनक खबर सुनि हृदय अत्यन्त दुःखी भ' गेल। ओ भारतक राजनीति आ अर्थव्यवस्थाक मार्गदर्शक छलाह। अपन शांत स्वभाव, सादगी आ उच्च ज्ञानक कारण देश-विदेश मे मान्यता प्राप्त केने छलाह। देशक आर्थिक सुधारक नींव रखब' मे हुनक योगदान अविस्मरणीय अछि।

ओ हमर सभक लेल एक आदर्श पुरुष आ प्रेरणाक स्रोत छलाह। हुनकर निधन सँ देशक अपूरणीय क्षति भेल अछि। अपन मिथिला सहित सम्पूर्ण देश हिनका स्मरण करैत शोक मना रहल अछि।

हम ईश्वर सँ प्रार्थना करैत छी जे हुनक आत्मा केँ शांति प्रदान करू आ परिवार केँ ई दुख सहन करबाक शक्ति दिअ। डॉ. मनमोहन सिंहक विरासत सदा जीवित रहत।

ओम शांति!

जँ माँ गंगा, जमुना आ सरस्वती सभ स्त्री नदी सभ छथि,तऽ एहन कोन नदी अछि, जे पुरुष नदी अछि?🙄Ashok Kumar Sahani अपन मिथिला
27/12/2024

जँ माँ गंगा, जमुना आ सरस्वती सभ स्त्री नदी सभ छथि,
तऽ एहन कोन नदी अछि, जे पुरुष नदी अछि?
🙄
Ashok Kumar Sahani अपन मिथिला

आहा सब अयी फूल के की कहैय छियायी बताऊ❤️🙏मैथिली टिकटोक अपन मिथिला
27/12/2024

आहा सब अयी फूल के की कहैय छियायी बताऊ❤️🙏
मैथिली टिकटोक अपन मिथिला

 ादेव*जो अमृत पीते हैं उन्हें देव कहते हैं,**और जो विष पीते हैं उन्हें देवों के देव "महादेव" कहते हैं ... !!!**♨ ॐ नमः श...
27/12/2024

ादेव
*जो अमृत पीते हैं उन्हें देव कहते हैं,*
*और जो विष पीते हैं उन्हें देवों के देव "महादेव" कहते हैं ... !!!*

*♨ ॐ नमः शिवाय ♨*

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हनुमानजी के 10 रहस्य जानकर आप रह जाएंगे  हैरान हो जाएंगेहोई है वही जो राम रची राखा।।को करी तर्क बढ़ावहि शाखा।।हनुमानजी इस...
26/12/2024

हनुमानजी के 10 रहस्य जानकर आप रह जाएंगे हैरान हो जाएंगे
होई है वही जो राम रची राखा।।
को करी तर्क बढ़ावहि शाखा।।

हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं। वे कहां रहते हैं, कब-कब व कहां-कहां प्रकट होते हैं और उनके दर्शन कैसे और किस तरह किए जा सकते हैं, हम यह आपको बताएंगे अगले पन्नों पर। और हां, अंतिम दो पन्नों पर जानेंगे आप एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप सचमुच ही चौंक जाएंगे...

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है। हनुमान को छोड़कर और किसी देवी-देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है। द्वंद्व में रहने वाले का हनुमानजी सहयोग नहीं करते हैं। हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं। किसी भी व्यक्ति को जीवन में श्रीराम की कृपा के बिना कोई भी सुख-सुविधा प्राप्त नहीं हो सकती है। श्रीराम की कृपा प्राप्ति के लिए हमें हनुमानजी को प्रसन्न करना चाहिए। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी श्रीराम तक पहुंच नहीं सकता। हनुमानजी की शरण में जाने से सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही जब हनुमानजी हमारे रक्षक हैं तो हमें किसी भी अन्य देवी, देवता, बाबा, साधु, ज्योतिष आदि की बातों में भटकने की जरूरत नहीं।

हनुमान इस कलियुग में सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात हैं। कलियुग में हनुमानजी की भक्ति ही लोगों को दुख और संकट से बचाने में सक्षम है। बहुत से लोग किसी बाबा, देवी-देवता, ज्योतिष और तांत्रिकों के चक्कर में भटकते रहते हैं और अंतत: वे अपना जीवन नष्ट ही कर लेते हैं... क्योंकि वे हनुमान की भक्ति-शक्ति को नहीं पहचानते। ऐसे भटके हुए लोगों का राम ही भला करे।

क्यों प्रमुख देव हैं हनुमान : हनुमानजी 4 कारणों से सभी देवताओं में श्रेष्ठ हैं। पहला यह कि वे रीयल सुपरमैन हैं, दूसरा यह कि वे पॉवरफुल होने के बावजूद ईश्वर के प्रति समर्पित हैं, तीसरा यह कि वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और चौथा यह कि वे आज भी सशरीर हैं। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।

अगले पन्ने पर पहला, सबसे बड़ा रहस्य..

क्या हनुमानजी बंदर थे? : हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज (फरवरी 2015) से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम कपि था।

हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?' इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह ‍भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।

दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है।

अगले पन्ने पर, इससे भी बड़ा दूसरा रहस्य...

पहला जन्म स्थान : हनुमानजी की माता का नाम अंजना है, जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। हनुमानजी के पिता का नाम केसरी है, जो वानर जाति के थे। माता-पिता के कारण हनुमानजी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है। केसरीजी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे। केसरीजी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ लोग मानते हैं कि यही हनुमानजी का जन्म स्थान है।

हनुमानजी का जन्म स्‍थान कहां है, जानिए

दूसरा जन्म स्थान : गुजरात के डांग जिले के आदिवासियों की मान्यता अनुसार डांग जिले के अंजना पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था।

तीसरा स्थान : कुछ लोग मानते हैं कि हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के उग्रवाद प्रभावित क्षे‍त्र गुमला जिला मुख्‍यालय से 20 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था।

अंत में आखिर कहां जन्म लिया? : 'पंपासरोवर' अथवा 'पंपासर' होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर 'शबरी गुफा' कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था। हंपी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। मतंग नाम की आदिवासी जाति से हनुमानजी का गहरा संबंध रहा है जिसका खुलासा होगा अगले पन्नों पर...

इससे भी बड़ा तीसरा रहस्य...

क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी? : हनुमानजी इस कलयुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं। हनुमानजी को धर्म की रक्षा के लिए अमरता का वरदान मिला था। इस वरदान के कारण आज भी हनुमानजी जीवित हैं और वे भगवान के भक्तों तथा धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं। जब कल्कि रूप में भगवान विष्णु अवतार लेंगे तब हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि सार्वजनिक रूप से प्रकट हो जाएंगे।

क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी?

कलयुग में श्रीराम का नाम लेने वाले और हनुमानजी की भक्ति करने वाले ही सुरक्षित रह सकते हैं। हनुमानजी अपार बलशाली और वीर हैं और उनका कोई सानी नहीं है। धर्म की स्थापना और रक्षा का कार्य 4 लोगों के हाथों में है- दुर्गा, भैरव, हनुमान और कृष्ण।

अगले पन्ने पर, इससे भी बड़ा चौथा रहस्य...

चारों जुग परताप तुम्हारा : लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञतास्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं- यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।

अर्थात : 'हे वीर श्रीराम! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें।' इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं- 'एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा।'

अर्थात् : 'हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी।'

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।।

1. त्रेतायुग में हनुमान : त्रेतायुग में तो पवनपुत्र हनुमान ने केसरीनंदन के रूप में जन्म लिया और वे राम के भक्त बनकर उनके साथ छाया की तरह रहे। वाल्मीकि 'रामायण' में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का उल्लेख मिलता है।

2. द्वापर में हनुमान : द्वापर युग में हनुमानजी भीम की परीक्षा लेते हैं। इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है। महाभारत में प्रसंग है कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाते हैं। इस तरह एक बार हनुमानजी के माध्यम से श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ की शक्ति के अभिमान का मान-मर्दन करते हैं।

हनुमान की मदद से कृष्ण ने तोड़ा इनका अभिमान...

3. कलयुग में हनुमान : यदि मनुष्य पूर्ण श्रद्घा और विश्वास से हनुमानजी का आश्रय ग्रहण कर लें तो फिर तुलसीदासजी की भांति उसे भी हनुमान और राम-दर्शन होने में देर नहीं लगेगी। कलियुग में हनुमानजी ने अपने भ‍क्तों को उनके होने का आभास कराया है।

ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे- 'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर। तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा पांचवां रहस्य...

कहां रहते हैं हनुमानजी? : हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।

''यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकान्जलि।
वाष्प वारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तक॥''

अर्थात : कलियुग में जहां-जहां भगवान श्रीराम की कथा-कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां हनुमानजी गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं। सीताजी के वचनों के अनुसार- 'अजर-अमर गुन निधि सुत होऊ।। करहु बहुत रघुनायक छोऊ।।'

गंधमादन पर्वत क्षेत्र और वन : गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथों में हुआ है। महाभारत की पुरा-कथाओं में भी गंधमादन पर्वत का वर्णन प्रमुखता से आता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यहां के विशालकाय पर्वतमाला और वन क्षेत्र में देवता रमण करते हैं। पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ऋषि ने भी तपस्या की थी। गंधमादन पर्वत के शिखर पर किसी भी वाहन से नहीं पहुंचा जा सकता। गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहां निर्भीक विचरण करते हैं।

वर्तमान में कहां है गंधमादन पर्वत? : इसी नाम से एक और पर्वत रामेश्वरम के पास भी स्थित है, जहां से हनुमानजी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी, लेकिन हम उस पर्वत की नहीं बात कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है।

पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

कैसे पहुंचे गंधमादन : पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था। इस क्षेत्र में दो रास्तों से जाया जा सकता है। पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए। संभवत महाभारत काल में अर्जुन ने असम के एक तीर्थ में जब हनुमानजी से भेंट की थी, तो हनुमानजी भूटान या अरुणाचल के रास्ते ही असम तीर्थ में आए होंगे। गौरतलब है कि एक गंधमादन पर्वत उड़िसा में भी बताया जाता है लेकिन हम उस पर्वत की बात नहीं कर रहे हैं।

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा छठा रहस्य...

मकरध्वज था हनुमानजी का पुत्र : अहिरावण के सेवक मकरध्वज थे। मकरध्वज को अहिरावण ने पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया था।

पवनपुत्र हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे तब कैसे कोई उनका पुत्र हो सकता है? वाल्मीकि रामायण के अनुसार उनके पुत्र की कथा हनुमानजी के लंकादहन से जुड़ी है। कथा जानने के लिए आगे क्लिक करे...कौन था हनुमानजी का पुत्र, जानिए:

हनुमानजी की ही तरह मकरध्वज भी वीर, प्रतापी, पराक्रमी और महाबली थे। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी थी।

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा सातवां रहस्य...

क्यों सिन्दूर चढ़ता है हनुमानजी को? : हनुमानजी को सिन्दूर बहुत ही प्रिय है। इसके पीछे ये कारण बताया जाता है कि एक दिन भगवान हनुमानजी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा माता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही है। हनुमानजी ने जब माता से पूछा, तब माता ने कहा कि इसे लगाने से प्रभु राम की आयु बढ़ती है और प्रभु का स्नेह प्राप्त होता है।

तब हनुमानजी ने सोचा जब माता इतना-सा सिन्दूर लगाकर प्रभु का इतना स्नेह प्राप्त कर रही है तो अगर मैं इनसे ज्यादा लगाऊं तो मुझे प्रभु का स्नेह, प्यार और ज्यादा प्राप्त होगा और प्रभु की आयु भी लंबी होगी। ये सोचकर उन्होंने अपने सारे शरीर में सिन्दूर का लेप लगा लिया। इसलिए कहा जाता है कि भगवान हनुमानजी को सिन्दूर लगाना बहुत पसंद है।

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा आठवां रहस्य...

पहली हनुमान स्तुति : हनुमानजी की प्रार्थना में तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक आदि अनेक स्तोत्र लिखे, लेकिन हनुमानजी की पहली स्तुति किसने की थी? तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है। लेकिन क्या आप जानते हैं सबसे पहले हनुमानजी की स्तुति किसने की थी?

जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया, क्योंकि विभीषण के भवन के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा था। भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा भी बना हुआ था। सबसे सुखद तो यह कि उनके घर के ऊपर 'राम' नाम अंकित था। यह देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया।

विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका प्रकट की और उसे पकड़कर दंड देने का सुझाव दिया। हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने की वकालत की। इस पर श्रीरामजी ने विभीषण को शरणागति न देने के सुग्रीव के प्रस्ताव को अनुचित बताया और हनुमानजी से कहा कि आपका विभीषण को शरण देना तो ठीक है किंतु उसे शिष्ट समझना ठीक नहीं है।

इस पर श्री हनुमानजी ने कहा कि तुम लोग विभीषण को ही देखकर अपना विचार प्रकट कर रहे हो मेरी ओर से भी तो देखो, मैं क्यों और क्या चाहता हूं...। फिर कुछ देर हनुमानजी ने रुककर कहा- जो एक बार विनीत भाव से मेरी शरण की याचना करता है और कहता है- 'मैं तेरा हूं, उसे मैं अभयदान प्रदान कर देता हूं। यह मेरा व्रत है इसलिए विभीषण को अवश्य शरण दी जानी चाहिए।'

इंद्रा‍दि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम विभीषण ने ही हनुमानजी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। वे भी आज सशरीर जीवित हैं। विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना की है। विभीषण द्वारा रचित इस स्तोत्र को 'हनुमान वडवानल स्तोत्र कहते हैं।

सब सुख लहे तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।

हनुमान की शरण में भयमुक्त जीवन : हनुमानजी ने सबसे पहले सुग्रीव को बाली से बचाया और सुग्रीव को श्रीराम से मिलाया। फिर उन्होंने विभीषण को रावण से बचाया और उनको राम से मिलाया। हनुमानजी की कृपा से ही दोनों को ही भयमुक्त जीवन और राजपद मिला। इसी तरह हनुमानजी ने अपने जीवन में कई राक्षसों और साधु-संतों को भयमुक्त और जीवनमुक्त किया है।

अगले पन्ने पर इससे भी बड़ा नौवां रहस्य...

हनुमानजी की पत्नी का नाम : क्या अपने कभी सुना है कि हनुमानजी का विवाह भी हुआ था? आज तक यह बात लोगों से छिपी रही, क्योंकि लोग हिन्दू शास्त्र नहीं पढ़ते और जो पंडित या आचार्य शास्त्र पढ़ते हैं वे ऐसी बातों का जिक्र नहीं करते हैं लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं हनुमानजी का एक ऐसा सच जिसको जानकर आप रह जाएंगे हैरान...

आंध्रप्रदेश के खम्मम जिले में एक मंदिर ऐसा विद्यमान है, जो प्रमाण है हनुमानजी के विवाह का। इस मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा के साथ उनकी पत्नी की प्रतिमा भी विराजमान है। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। माना जाता है कि हनुमानजी के उनकी पत्नी के साथ दर्शन करने के बाद पति-पत्नी के बीच चल रहे सारे विवाद समाप्त हो जाते हैं। उनके दर्शन के बाद जो भी विवाद की शुरुआत करता है, उसका बुरा होता है।

हनुमानजी की पत्नी का नाम सुवर्चला था। वैसे तो हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और आज भी वे ब्रह्मचर्य के व्रत में ही हैं, विवाह करने का मतलब यह नहीं कि वे ब्रह्मचारी नहीं रहे। कहा जाता है कि पराशर संहिता में हनुमानजी का किसी खास परिस्थिति में विवाह होने का जिक्र है। कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण ही बजरंगबली को सुवर्चला के साथ विवाह बंधन में बंधना पड़ा।

इस संबंध में एक कथा है कि हनुमानजी ने भगवान सूर्य को अपना गुरु बनाया था। हनुमानजी भगवान सूर्य से अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। सूर्य कहीं रुक नहीं सकते थे इसलिए हनुमानजी को सारा दिन भगवान सूर्य के रथ के साथ-साथ उड़ना पड़ता था और भगवान सूर्य उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का ज्ञान देते। लेकिन हनुमानजी को ज्ञान देते समय सूर्य के सामने एक दिन धर्मसंकट खड़ा हो गया।

कुल 9 तरह की विद्याओं में से हनुमानजी को उनके गुरु ने 5 तरह की विद्याएं तो सिखा दीं, लेकिन बची 4 तरह की विद्याएं और ज्ञान ऐसे थे, जो केवल किसी विवाहित को ही सिखाए जा सकते थे। हनुमानजी पूरी शिक्षा लेने का प्रण कर चुके थे और इससे कम पर वे मानने को राजी नहीं थे। इधर भगवान सूर्य के सामने संकट था कि वे धर्म के अनुशासन के कारण किसी अविवाहित को कुछ विशेष विद्याएं नहीं सिखा सकते थे। ऐसी स्थिति में सूर्यदेव ने हनुमानजी को विवाह की सलाह दी।

अपने प्रण को पूरा करने के लिए हनुमानजी ने विवाह करने की सोची। लेकिन हनुमानजी के लिए वधू कौन हो और कहां से वह मिलेगी? इसे लेकर सभी सोच में पड़ गए। ऐसे में सूर्यदेव ने अपनी परम तपस्वी और तेजस्वी पुत्री सुवर्चला को हनुमानजी के साथ शादी के लिए तैयार कर लिया। इसके बाद हनुमानजी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला सदा के लिए अपनी तपस्या में रत हो गई। इस तरह हनुमानजी भले ही शादी के बंधन में बंध गए हो, लेकिन शारीरिक रूप से वे आज भी एक ब्रह्मचारी ही हैं।

अगले पन्ने पर सबसे बड़ा रहस्य 10वां रहस्य...

एक वेबसाइट का दावा है कि प्रत्येक 41 साल बाद हनुमानजी श्रीलंका के जंगलों में प्राचीनकाल से रह रहे आदिवासियों से मिलने के लिए आते हैं। वेबसाइट के मुताबिक श्रीलंका के जंगलों में कुछ ऐसे कबीलाई लोगों का पता चला है जिनसे मिलने हनुमानजी आते हैं।

इन कबीलाई लोगों पर अध्ययन करने वाले आध्यात्मिक संगठन 'सेतु' के अनुसार पिछले साल ही हनुमानजी इन कबीलाई लोगों से मिलने आए थे। अब हनुमानजी 41 साल बाद आएंगे। इन कबीलाई या आदिवासी समूह के लोगों को 'मातंग' नाम दिया गया है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मातंग ऋषि का आश्रम है, जहां हनुमानजी का जन्म हुआ था।

वेबसाइट सेतु एशिया ने दावा किया है कि 27 मई 2014 को हनुमानजी श्रीलंका में मातंग के साथ थे। सेतु के अनुसार कबीले का इतिहास रामायणकाल से जुड़ा है। कहा जाता है कि भगवान राम के स्वर्ग चले जाने के बाद हनुमानजी दक्षिण भारत के जंगलों में लौट आए थे और फिर समुद्र पार कर श्रीलंका के जंगलों में रहने लगे। जब तक पवनपुत्र हनुमान श्रीलंका के जंगलों में रहे, वहां के कबीलाई लोगों ने उनकी बहुत सेवा की।

जब हनुमानजी वहां से जाने लगे तब उन्होंने वादा किया कि वे हर 41 साल बाद आकर वहां के कबीले की पीढ़ियों को ब्रह्मज्ञान देंगे। कबीले का मुखिया हनुमानजी के साथ की बातचीत को एक लॉग बुक में दर्ज कराता है। 'सेतु' नामक संगठन इस लॉग बुक का अध्ययन कर उसका खुलासा करने का दावा करता है।

जाते जाते, कैसे प्राप्त करें हनुमानजी की कृपा जानिए अगले पन्ने पर...

हनुमान दर्शन और कृपा : हनुमानजी बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। उनकी कृपा आप पर निरंतर बनी रहे इसके लिए पहली शर्त यह है कि आप मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें अर्थात कभी भी झूठ न बोलें, किसी भी प्रकार का नशा न करें, मांस न खाएं और अपने परिवार के सदस्यों से प्रेमपूर्ण संबंध बनाए रखें। इसके अलावा प्रतिदिन श्रीहनुमान चालीसा या श्रीहनुमान वडवानल स्तोत्र का पाठ करें। मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमानजी को चोला चढ़ाएं। इस तरह ये कार्य करते हुए नीचे लिखे उपाय करें...

हनुमान जयंती या महीने के किसी भी मंगलवार के दिन सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। 1 लोटा जल लेकर हनुमानजी के मंदिर में जाएं और उस जल से हनुमानजी की मूर्ति को स्नान कराएं।

पहले दिन एक दाना साबुत उड़द का हनुमानजी के सिर पर रखकर 11 परिक्रमा करें और मन ही मन अपनी मनोकामना हनुमानजी को कहें, फिर वह उड़द का दाना लेकर घर लौट आएं तथा उसे अलग रख दें।

दूसरे दिन से 1-1 उड़द का दाना रोज बढ़ाते रहें तथा लगातार यही प्रक्रिया करते रहें। 41 दिन 41 दाने रखने के बाद 42वें दिन से 1-1 दाना कम करते रहें। जैसे 42वें दिन 40, 43वें दिन 39 और 81वें दिन 1 दाना। 81वें दिन का यह अनुष्ठान पूर्ण होने पर उसी दिन, रात में श्रीहनुमानजी स्वप्न में दर्शन देकर साधक को मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। इस पूरी विधि के दौरान जितने भी उड़द के दाने आपने हनुमानजी को चढ़ाए हैं, उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।

बथुवा के सगा भात आलू के चोखा और पियाज सँ मिर्ची  किनका सब के निक लागेया बताबू अपन मिथिला  वासी 🙏🙏🙏
25/12/2024

बथुवा के सगा भात आलू के चोखा और पियाज सँ मिर्ची किनका सब के निक लागेया बताबू अपन मिथिला वासी 🙏🙏🙏

तुलसी पूजा:सनातन धर्ममे तुलसीक महत्वसनातन धर्ममे तुलसीक पौधा केँ अत्यन्त पवित्र आ शुभ मानल जाएछ। एना मानल जाएछ जे जे घरम...
25/12/2024

तुलसी पूजा:

सनातन धर्ममे तुलसीक महत्व
सनातन धर्ममे तुलसीक पौधा केँ अत्यन्त पवित्र आ शुभ मानल जाएछ। एना मानल जाएछ जे जे घरमे तुलसीक पौधा होइत छै, ओहि घरमे भगवान विष्णु, ब्रह्मा, शिव आ लक्ष्मीजीक वास होइत छै। ओहि घरमे सदा सुख-शांति आ समृद्धि बनल रहैत छै आ ओहि ठामक वातावरण शुद्ध आ सकारात्मक रहैत छै। तुलसीक दू प्रकारक पौधा अधिकतर घर सभमे देखल जाएछ—पहिल "रामा तुलसी", जे हरा पात वाला होइत छै आ दोसर "श्यामा तुलसी", जे कारी पात वाला होइत छै। विशेष रूपे श्यामा तुलसीक पूजा बहुत शुभ मानल जाइत छै। मान्यता अछि जे जे घरमे तुलसी होइत छै, ओहि ठाम वास्तुदोष नहि रहैत छै आ ई पर्यावरणक रक्षा सेहो करैत अछि।

तुलसीक वैज्ञानिक महत्व
तुलसीक पौधा आयुर्वेदमे सेहो अत्यन्त महत्वपूर्ण मानल जाएछ। आयुर्वेदक अनुसार, तुलसीक प्रत्येक भाग—जड़, तना, पात आ फूल—औषधीय गुण सँ भरल होइत अछि। तुलसीक उपयोग रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाबए आ शरीर केँ स्वस्थ राखए लेल बहुत फायदेमंद मानल जाइत अछि। आयुर्वेद तुलसी केँ "संजीवनी बूटी" आ "महाऔषधि" मानैत अछि। तुलसीक पातक नियमित सेवन सँ सर्दी-जुकाम, खाँसी, श्वास-संबंधी समस्या, दाँतक रोग, मलेरिया, जोड़क दर्द, रक्तचाप, सिरदर्द आ हाइपरटेंशन जेकाँ बीमारिसभसँ बचाव होइत छै। तुलसी एलोपैथी, होम्योपैथी आ यूनानी दवाईसभमे सेहो उपयोगी साबित होइत अछि। वेदमे सेहो तुलसीक उपयोगिता आ गुणसभक वर्णन भेल अछि।

तुलसीक धार्मिक महत्व
तुलसीसँ जुड़ल प्रसिद्ध कथा शंखचूड़ नामक दैत्य आ ओकर पत्नी तुलसीसँ संबंधित अछि। शंखचूड़ तीनों लोकमे उत्पात मचौने छल, आ ओकर पत्नी तुलसीक सतीत्वक कारण देवता ओकरा पराजित नहि क' सकलाह। देवसभक निवेदन पर भगवान श्रीकृष्ण छलपूर्वक शंखचूड़ केँ वध कयलनि आ तुलसीसँ विवाह कयलनि। एहि कारण तुलसीकेँ भगवानक समान स्थान देल गेल आ ओहि पौधाक पूजा आजुक दिन धरि होइत अछि। देवउठानी एकादशीक दिन तुलसीक विवाह भगवान कृष्ण सँ मनायल जाइत अछि।

पुराणसभमे कहल गेल अछि जे भगवान विष्णु तुलसीक बिना भोग स्वीकार नहि करैत छथि। देवपूजा आ श्राद्धमे तुलसीक पात अनिवार्य मानल जाइत अछि। तुलसीसँ यज्ञ, हवन, आ व्रतसँ पुण्य प्राप्त होइत अछि।

Ashok Kumar Sahani ( अपन मिथिला )

मैथिली गजल– वंदना झाअहाँक सितमअहाँक सितम के की हम बात करू,अहाँक संगीत के की हम बात करू।ई जिनगी कटि रहल छई जहिना,अहाँक गी...
24/12/2024

मैथिली गजल

– वंदना झा

अहाँक सितम
अहाँक सितम के की हम बात करू,
अहाँक संगीत के की हम बात करू।

ई जिनगी कटि रहल छई जहिना,
अहाँक गीत के की हम बात करू।

मानैत छी अपना के खुशनसीब कोनो,
अहाँक रीत के की हम बात करू।

करू नहि बात आब अहाँ अहिना,
अहाँक प्रीत के की हम बात करू।

नैन के भऽ गेल जेना करार कोनो,
अहाँक जीत के की हम बात करू।

हमर मोन मे बसल छी अहाँ एना,
अपन मीत के की हम बात करू।

✍️© Vandana Jha

मैथिली जन्म 25 जुलाई 2000 केँ बिहारक मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी नामक गाममे भेल छल। हुनकर पिता रमेश ठाकुर, जे अपने क्षेत्रक प...
24/12/2024

मैथिली जन्म 25 जुलाई 2000 केँ बिहारक मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी नामक गाममे भेल छल। हुनकर पिता रमेश ठाकुर, जे अपने क्षेत्रक प्रसिद्ध संगीतकार छलाह, आ माँ भारती ठाकुर, गृहिणी छथि। हुनकर नाम हुनक माय केर नाम पर रखल गेल छल। हुनकर दूटा छोट भाई अछि, रिशव आ अयाची, जे अपन दीदीक संगीत यात्रा केँ आगू बढ़बैत हुनका संग तबला बजबैत आ गायकक रूपमे हुनकर सहयोग करैत छथि। मैथिली अपन पिता सँ संगीतक प्रशिक्षण लेने छथि।

हुनकर क्षमता केँ पहिचानैत, आ अवसरक खोजमे, रमेश ठाकुर अपन परिवारक संग दिल्लीक नजदीक द्वारका में बसि गेला। मैथिली आ हुनकर भाइ-बहिनक पढ़ाई बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल, दिल्ली सँ भेल। पढ़ाईक संग-संग, तीनू भाई-बहिन अपन पिता सँ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, हारमोनियम आ तबला (रिशवक मामला मे) सिखैत छलाह।

मैथिली केर संगीत यात्रा 2011 में शुरू भेल, जखन ओ ज़ी टीवी पर प्रसारित होइत रियलिटी शो "लिटिल चैंप्स" में भाग लेलनि। स्थानीय स्तर पर पहिने सँ हुनक प्रस्तुतिक प्रशंसा होइत रहल छल, मुदा एहि शो हुनका राष्ट्रीय स्तर पर पहिचान दिलेलक। 2015 में ओ "इंडियन आइडल जूनियर" नामक रियलिटी शो में सेहो भाग लेने छलीह। मुदा ओ "राइजिंग स्टार" शो सँ राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पओलनि, जतय ओ फाइनल तक पहुँचलीह आ रनर-अप रहल छलाह।

2017 में "राइजिंग स्टार" केर पहिल सीजनक दौरान मैथिली 'ओम नमः शिवाय' प्रस्तुत कएलनि, जे हुनका फाइनलमे पहुँचेलक। ओ केवल दूटा वोटक अंतर सँ हार गेलीह, मुदा एहि शो सँ हुनकर लोकप्रियता बहुत बढ़ि गेल। इंटरनेट पर हुनकर वीडियो 70,000 सँ लऽ कऽ 7 मिलियन तक देखल जाइत अछि।

मैथिली अपन भाइ रिशव (तबला वादक) आ अयाची (गायक) संग विभिन्न मंच पर देखल जाइत छथि। 2019 में, हुनका आ हुनकर भाइ सब केँ भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मधुबनीक ब्रांड एम्बेसडर बनाओल गेल छल।

मैथिली 2015 में "आई जीनियस यंग सिंगिंग स्टार" प्रतियोगिता जीतलीह आ "हां रब्बा" नामक एल्बम सेहो लॉन्च कएलनि। हुनकर फेसबुक पेज पर 1करोड़ 44 लाख सँ बेसी फॉलोअर, यूट्यूब पर 2.5 मिलियन सँ बेसी सब्सक्राइबर आ इंस्टाग्राम पर 2 मिलियन सँ बेसी फॉलोअर छथि।

#मैथिली #मैथिलीठाकुर #फोटो #सौंदर्य #आयकेफोटो #वायरल #ट्रेंडिंग
अपन मिथिला

श्री राम नाम से मिले सुख,श्री राम नाम से मिले आराम,श्री राम नाम से मिले शान्ति,श्री राम नाम से मिटे संताप|श्री राम का ह्...
24/12/2024

श्री राम नाम से मिले सुख,
श्री राम नाम से मिले आराम,
श्री राम नाम से मिले शान्ति,
श्री राम नाम से मिटे संताप|

श्री राम का ह्र्दय शीतल,
श्री राम का ह्र्दय वीशाल,
श्री राम का ह्र्दय सागर,
श्री राम का ह्र्दय आकाश|

श्री राम का ह्र्दय संवेदन,
श्री राम का ह्र्दय करूणा,
श्री राम का ह्र्दय कोमल.
श्री राम का ह्र्दय अनुराग|

श्री राम का ह्र्दय सुंदर,
श्री राम का ह्र्दय उपकार,
श्री राम का ह्र्दय मर्यादा,
श्री राम का ह्र्दय सतकार|

श्री राम का ह्र्दय मधुर,
श्री राम का ह्र्दय प्यार,
श्री राम का ह्र्दय साह्स,
श्री राम का ह्र्दय संग्राम|

……………. जय श्री राम
मैथिली टिकटोक अपन मिथिला Ashok Kumar Sahani

एकर नाम कि???अपन मिथिला
23/12/2024

एकर नाम कि???

अपन मिथिला

 #सीता  #वनवास  #रहस्यएक बेर सीता अपन सखीसँग महलक बगैचा मे मनोरंजन लेल गेलीह। ओहि ठाम ओहेन एक पेड़ पर बैसल तोता जोड़ी दे...
23/12/2024

#सीता #वनवास #रहस्य

एक बेर सीता अपन सखीसँग महलक बगैचा मे मनोरंजन लेल गेलीह। ओहि ठाम ओहेन एक पेड़ पर बैसल तोता जोड़ी देखलनि।

दुनू तोता आपस मे सीता केँ बारे मे गप-सप कऽ रहल छल। एक तोता कहलक - "अयोध्या मे एक सुंदर आ प्रतापी कुमार छथि जिनकर नाम श्रीराम अछि। हुनकर विवाह जानकी सँ होयत।

श्रीराम एगारह हजार वर्ष तक एहि धरती पर शासन करताह। सीता-राम एहि धरती पर सुखपूर्वक अपन जीवन बितायताह।"

सीता अपन नाम सुनि दुनू तोता केर गप ध्यान सँ सुनऽ लगलीह। हुनका अपन जीवनक बारे मे आर सेहो सुनबाक इच्छा भेलनि।

सखीसँ कहि दुनू तोता पकड़वा लेलनि। सीता हुनका स्नेहपूर्वक पुचकारि कऽ कहलनि - "डरू नहि। अहाँ सब बड्ड नीक बात कहैत छी। हमरा ई ज्ञान कोना भेटल अहाँ सब केँ से कहू। हमरासँ भयभीत होयबाक किछु आवश्यकता नहि अछि।"

तोता-दूयोर डर समाप्त भऽ गेल। ओ बुझि गेल कि ई स्वयं सीता छथि। ओ दुनू जनौलनि जे वाल्मीकि नामक एक महर्षि छथि। ओ हुनक आश्रम मे रहैत छथि। वाल्मीकि प्रतिदिन राम-सीता केर जीवनक चर्चा करैत छथि। हम सब से सुनैत छी आ सब कंठस्थ भऽ गेल अछि।

सीता आर पुछलनि तऽ शुक कहलक- "दशरथपुत्र राम शिवक धनुष भंग करताह आ सीता हुनका पति रूप मे स्वीकार करैत छथि। तीनू लोक मे ई अद्भुत जोड़ी बनत।"

सीता प्रश्न करैत रहलि आ शुक उत्तर दैत रहल। अंततः दुनू थाकि गेल। ओ कहलक- "ई कथा बहुत विस्तृत अछि। एहि केँ सुनबाक लेल बहुत समय लगत। हम अहाँक कथा बाद मे सुनाएब।"

सीता कहलीह- "तुँ हमरा भविष्यक बारे मे कहैत छह। हमरा जिज्ञासा भऽ रहल अछि। श्रीराम द्वारा हमर वरण नहि होइत ताबत अहाँ महल मे रहू।"

शुकी कहलक- "देवी, हम वनक प्राणी छी। हम अपन घोंसामे जाइबाक चाही। हम गर्भवती छी। हमरा बच्चा होयबाक अछि।"

सीता नहि मानलि। शुक कहलक- "हम फेर आएब आ शेष कथा सुनाएब।" मुदा सीता शुकी केँ छोड़बाक लेल तैयार नहि भेलीह।

शुकी कहलक- "हमरा पति सँ अलग कऽ देब तऽ हम अहाँ केँ शाप देब।"

सीता हँसलि आ कहलीह- "शाप देब तऽ दियऽ। राजकुमारी केँ तोता केर शाप सँ की नुक्सान होयत।"

शुकी शाप देलक- "जकरा जेकाँ अहाँ एक गर्भवती केँ ओकर पति सँ दूर कऽ रहल छी, ओहि जेकाँ अहूँ गर्भवती रहबाक समयमे अपन पति सँ वियोग सहन करतहुँ।" ई कहि शुकी प्राण त्याग कऽ देलक।

पत्नी केँ मरैत देख शुक क्रोधमे कहलक- "हम अपन पत्नी केँ वचन सत्य करबाक लेल ईश्वर केँ प्रसन्न कऽ श्रीरामक नगरमे जन्म लेब आ एहि शाप केँ सत्य बनेबाक माध्यम बनब।"

ओहि शुक (तोता) अयोध्याक धोबी बनल, जकर झूठा लांछन सीता पर लगाओल गेल आ श्रीराम केँ विवश कएल गेल जे ओ सीता केँ महल सँ निकास कऽ दऽ।

#जयश्रीसीताराम

Ashok Kumar Sahani ( अपन मिथिला )

कुटाइ खाए पछि, धोती मर्सिया शिसीबोतल गाली पाए पछि मात्रै याद आउँछ राज्यको नश्लवाद र रंगभेद?नेपालका शासक र राज्य कति नश्ल...
22/12/2024

कुटाइ खाए पछि, धोती मर्सिया शिसीबोतल गाली पाए पछि मात्रै याद आउँछ राज्यको नश्लवाद र रंगभेद?

नेपालका शासक र राज्य कति नश्लीय छ, कति रंगभेदी छ भनेर हामीले विगत दशकमा बुझाउँदै आएका छौं र त्यसको विरूद्ध संघर्ष पनि गर्दै आएका छौं। मंसीर १० गते राष्ट्रव्यापी रूपमा मनाउने गरिएको 'रंगभेदविरूद्धको एकता दिवस' होस् कि संसद्मा रंगभेदी विभेद गर्ने विरूद्ध कानून ल्याउन दर्ता गरिएको संकल्प प्रस्ताव होस्, जनमत पार्टीले हरेक मोर्चामा संघर्ष गर्दै आएको छ। जहाँ संसद्, सरकार, अदालत, सेना, प्रहरी, कर्मचारी र शासकवर्ग सबै नश्लीय छ, त्यहाँ संघर्ष एउटा पार्टीले गर्दैमा पुग्दैन।

अधिकार र आत्मसम्मान कसैले दिएर पाइने होइन, आफैंले संघर्ष गरेर विजय हासिल गरेरै लिने हो जसरी जनकपुर बोल्ट्सले विजय हासिल गर्दै एनपिएल जितेको छ। त्यसको लागि राजनैतिक चेतना चाहिन्छ, राजनैतिक अग्रसरता चाहिन्छ, एकता चाहिन्छ, आन्दोलन चाहिन्छ।

तर अचेलका युवा पिढीमा जानेरै शासकले के भरिदिएको छ 'तिम्रो नेता खराब/राजनीति खराब/आफू कमाएर खाने अरूलाई किन मान्ने ?' आदि। र युवाहरू पनि टिकटिक र रिल बनाउँदै, खेलमा भूल्दै, र अन्तिममा फ्री भिजा खोज्दै विदेश जान्छन्। जूवेनलले रोमन साम्राज्यको बारेमा करीब २००० वर्ष अगाडि नै भनेका थिए - Give them bread and circuses, and they will never revolt (जनतालाई खाना र मनोरञ्जनमा लठ्ठ पारिदेऊ, कहिल्यै राज्यको विद्रोह गर्ने छैनन्।) अहिले पनि हामीसँग त्यही भइरहेको छ: राज्यले खाना र रोजगारीकै लागि धौ-धौ बनाइदिएको छ र विदेशिन बाध्य बनाइदिएको छ, र बचेका युवाहरू टिकटक र खेलको मनोरञ्जनमा लठ्ठ। राजनीति र अधिकारप्रति वितृष्णा।

त्यही भएर त अक्षरा सिंहको कार्यक्रम राख्यो भने लाखौं युवा ओर्लिन्छन्, क्रिकेटको खेल हेर्न पैसा तिरेर लाखौं आउँछन्, तर राजनैतिक अधिकारको लागि यही काठमाडौंमा नै कार्यक्रम राख्यो भने २०-३० जना आउने गर्छन्। अनि भन्छन् रंगभेद भयो, सम्मान भएन, अधिकार पाइएन।

अधिकार र आत्मसम्मान पाउनु छ भने लड्नु पर्छ, संघर्ष गर्नु पर्छ, शासकसँग खोसेर विजय हासिल गर्नु पर्छ। नभएर हजुरबाले पनि त्यही गाली र कुटाइ खाए, र हाम्रा नाती-नातिनीहरूले पनि त्यही मधिसे, धोती, शिसीबोतल भनेर काठमाडौंमा गाली र कुटाइ खाइराख्छन्।

साभार - Dr. CK Raut - सचिवालय

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जनकपुर बोल्ट्सका खेलाडी प्रति लक्षित गरी अपमानजनक शब्द प्रयोग गर्नेहरु माथि मधेशी आयोगले गर्यो कारवाहीको सिफारिस :
22/12/2024

जनकपुर बोल्ट्सका खेलाडी प्रति लक्षित गरी अपमानजनक शब्द प्रयोग गर्नेहरु माथि मधेशी आयोगले गर्यो कारवाहीको सिफारिस :

जय श्री राम 🙏🏻
22/12/2024

जय श्री राम 🙏🏻

" विश्वका धेरै ठुला क्रिकेटिङ राष्ट्रका लिगहरु IPL, BPL, Big Bash League खेले, नेपाल र नेपालीको जस्तो क्रिकेट माहोल र क्...
21/12/2024

" विश्वका धेरै ठुला क्रिकेटिङ राष्ट्रका लिगहरु IPL, BPL, Big Bash League खेले, नेपाल र नेपालीको जस्तो क्रिकेट माहोल र क्रेज कतै देखिन ।" - न्यूजीलैण्डका स्टार अलराउन्डर जेम्स निशम

🔴🔵 Cricfoot Nepal25 with Nepal Premier League Janakpur Bolts & Cricket Association of Nepal-CAN

जनकपुर के जीत कप अप्पन भेलै कोई बोलतें रे बधाई 💐💐💐💐💐
21/12/2024

जनकपुर के जीत
कप अप्पन भेलै कोई बोलतें रे
बधाई 💐💐💐💐💐

🙏🙏🙏भगवान् श्री रामजी की चालीसा हिंदी अनुवाद के साथ🙏🙏🙏         🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈भगवान श्री रामजी भगवान् विष्णु जी के अवतार हैं...
21/12/2024

🙏🙏🙏भगवान् श्री रामजी की चालीसा हिंदी अनुवाद के साथ🙏🙏🙏



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भगवान श्री रामजी भगवान् विष्णु जी के अवतार हैं। इन्हें भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। भगवान रामजी को मर्यादाश्री पुरुषोत्तम जी भी कहा जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार विष्णु जी ने राम जी का अवतार अन्यायी एवं दुष्ट राक्षस राजा रावण को खत्म करने के लिए लिया था। भगवान् विष्णु जी के अवतारों में से सबसे प्रमुख है भगवान् श्री रामजी अवतार। रावण को मारने और धर्म की स्थापना के लिए विष्णु जी का यह सातवां अवतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान राम के नाम का जाप करने मात्र से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामजी के नाम को ही मंत्र माना जाता है। “राम” नाम का जाप करने मात्र से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। रामायण नामक धार्मिक ग्रंथ के मुख्य पात्र श्री राम ही हैं। विष्णु जी का अवतार होने के कारण भगवान श्री राम को बेहद पूजनिए माना जाता है।

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🙏🙏🙏भगवान श्री रामजी की चालीसा🙏🙏🙏

🙏॥चौपाई॥🙏

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श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई॥
ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥
जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥

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हे रघुबीर, भक्तों का कल्याण करने वाले हे भगवान श्री राम हमारी प्रार्थना सुन लिजिये। हे प्रभु जो दिन रात केवल आपका ध्यान धरता है अर्थात हर समय आपका स्मरण करता है, उसके समान दूसरा भक्त कोई नहीं है। भगवान शिव भी मन ही मन आपका ध्यान करते हैं, ब्रह्मा, इंद्र आदि भी आपकी लीला को पूरी तरह नहीं जान सके। आपके दूत वीर हनुमान हैं तीनों लोकों में जिनके प्रभाव को सब जानते हैं। हे कृपालु रघुनाथ सदा संतो का प्रतिपालक श्री राम आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

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तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ बेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहिं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहीं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥

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हे प्रभु आपकी भुजाओं में अपार शक्ति है लेकिन इनसे हमेशा कल्याण हुआ है, अर्थात आपने हमेशा अपनी कृपा बरसाई है। हे देवताओं के प्रतिपालक भगवान श्री राम आपने ही रावण जैसे दुष्ट को मारा।
हे प्रभु हे स्वामी जिसका कोई नहीं हैं उसका दामन आप ही थामते हैं, अर्थात आप ही उसके स्वामी हैं, आपने हमेशा दीन-दुखियों का कल्याण किया है। ब्रह्मा आदि भी आपका पार नहीं पा सके, स्वयं ईश्वर भी आपकी कीर्ति का गुणगान करते हैं। आपने हमेशा अपने भक्तों का मान रखा है प्रभु, चारों वेद भी इसके साक्षी हैं। हे प्रभु शारदे मां भी मन ही मन आपका स्मरण करती हैं। देवराज इंद्र भी आपकी महिमा का पार न पा सके। जो भी आपका नाम लेता है, उसके समान धन्य और कोई भी नहीं है। हे श्री राम आपका नाम अपरम्पार है, चारों वेदों ने पुकार-पुकार कर इसका ही बखान किया है। अर्थात चारों वेद आपकी महिमा को अपम्पार मानते हैं।

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गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा। पावत कोऊ न तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहूं न रण में हारो॥
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥

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भगवान श्री गणेश ने भी आपके नाम का स्मरण किया, सबसे पहले उन्हें पूजनीय आपने ही बनाया। शेषनाग भी हमेशा आपके नाम का जाप करते हैं जिससे वे पृथ्वी के भार को अपने सिर पर धारण करने में सक्षम हुए हैं। आपके स्मरण से बड़े से बड़ा भार भी फूल के समान लगता है। हे प्रभु आपका पार कोई नहीं पा सकता अर्थात आपकी महिमा को कोई नहीं जान सकता। भरत ने आपका नाम अपने हृद्य में धारण किया इसलिए उसे युद्ध में कोई हरा नहीं सका। शत्रुहन के हृद्य में भी आपके नाम का प्रकाश था इसलिए तो आपका स्मरण करते ही वे शत्रुओं का नाश कर देते थे। लक्ष्मण आपके आज्ञाकारी थे जिन्होंनें हमेशा संतों की रखवाली की सुरक्षा की। उनसे भी कोई युद्ध नहीं जीत सकता था चाहे युद्ध में स्वयं यमराज क्यों न लड़ रहे हों।

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महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
जो तुम्हरे नित पांव पलोटत। नवो निद्धि चरणन में लोटत॥
सिद्धि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥

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आपके साथ-साथ मां महालक्ष्मी ने भी अवतार रुप लेकर हर विधि से पाप का नाश किया। इसीलिए सीता राम का पवित्र नाम गाया जाता है। मां भुवनेश्वरी अपना प्रभाव दिखाती हैं। माता सीता ने जब अवतार लिया तो वे घट यानि घड़े से प्रकट हुई इनका रुप इतना सुंदर था कि जिन्हें देखकर चंद्रमा भी शरमा जाए। हे प्रभु जो नित्य आपके चरणों को धोता है नौ निधियां उसके चरणों में लौट लगाती हैं। उसके लिए अठारह सिद्धियां ( मार्कंडेय पुराण के अनुसार सिद्धियां आठ होती हैं जबकि ब्रह्मवैवर्त पुराण में अठारह बताई गई हैं) मंगलकारी होती हैं जो आप पर न्यौछावर हैं।

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औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हरे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥

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हे सीता पति भगवान श्री राम, अन्य जितने देवी-देवता हैं, सब आपने ही बनाए हैं। आपकी इच्छा हो तो आपको करोड़ों संसारों की रचना करने में भी पल भर की देरी न लगे। जो आपके चरणों में ध्यान लगाता है उसकी मुक्ति अवश्य हो जाती है। हे श्री राम सुन लिजिये आप ही हमारे पिता हैं, आप ही भारतवर्ष में पूज्य हैं। हे देव आप ही हमारे कुलदेव हैं, हे गुरु देव आप हमें प्राणों से प्यारे हैं।

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जो कुछ हो सो तुमहिं राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय जय दशरथ के प्यारे॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा। नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब सिधि दीन्हीं॥

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हे प्रभु श्री राम हमारे जो कुछ भी हैं, सब आप ही हैं, हमारी लाज रखिये, आपकी जय हो प्रभु। हे हमारी आत्मा का पोषण करने वाले दशरथ प्यारे भगवान श्री राम, आपकी जय हो। हे ज्योति स्वरुप प्रभु, आपकी जय हो। आप ही निर्गुण ईश्वर हैं, जो अद्वितीय है, अखंडित है। हे सत्य रुप, सत्य के पालक आप ही सत्य हैं, आपकी जय हो। अनादिकाल से ही आप सत्य हैं, अंतर्यामी हैं। सच्चे हृद्य से जो आपका भजन करता है, उसे चारों फल प्राप्त होते हैं। इसी सत्य की शपथ भगवान शंकर ने की जिससे आपने उन्हें भक्ति के साथ-साथ सब सिद्धियां भी दी।

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ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन-मन धन॥

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हे ज्ञान स्वरुप, हमारे हृद्य को भी ज्ञान दो, हे जगपति, हे ब्रह्माण्ड के राजा, आपकी जय हो, हम आपको नमन करते हैं। आपका प्रताप धन्य है, आप भी धन्य हैं, प्रभु आपका नाम सारे संतापों अर्थात सारे कष्टों का हरण कर लेता है। आप ही शुद्ध सत्य हैं, जिसे देवताओं ने अपने मुख से गाया था, जिसके बाद शंख की दुंदुभी बजी थी। अनादिकाल से आप ही सत्य हैं, हे प्रभु आप ही हमारा तन-मन-धन हैं।

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याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिव मेरा॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्धता पावै॥
अन्त समय रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥

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जो कोई भी इसका पाठ करता है, उसके हृद्य में ज्ञान का प्रकाश होता है, अर्थात उसे सत्य का ज्ञान होता है। उसका आवागमन मिट जाता है, भगवान शिव भी मेरे इस वचन को सत्य मानते हैं। यदि और कोई इच्छा उसके मन में होती हैं तो इच्छानुसार फल प्राप्त होते हैं। जो कोई भी तीनों काल प्रभु का ध्यान लगाता है। प्रभु को तुलसी दल व फूल अर्पण करता है। साग पत्र से भोग लगाता है, उसे सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। अंतिम समय में वह रघुबर पुर अर्थात स्वर्गलोक में गमन करता हैं, जहां पर जन्म लेने से ही जीव हरिभक्त कहलाता है। श्री हरिदास भी गाते हुए कहते हैं वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

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🙏॥दोहा॥🙏

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सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय॥

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यदि कोई भी सात दिनों तक नियम पूर्वक ध्यान लगाकर पाठ करता है, तो हरिदास जी कहते हैं कि भगवान विष्णु की कृपा से वह अवश्य ही भक्ति को पा लेता है। राम के चरणों में ध्यान लगाकर जो कोई भी, इस राम चालीसा को पढ़ता है, वह जो भी मन में इच्छा करता है, वह पूरी होती है।

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