विश्व हिन्दु परिषद VHP

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16/09/2023
10/08/2023

गर्व से कहो हम हिंदू है।

हामी अन्तिम सनातनी यूवा पीढ़ी हौँ। हामीले जसरी भएपनि आउँदो सन्ततिहरू का लागि सनातन सँस्कार र सभ्यता जोगाएर राखौँ।
10/08/2023

हामी अन्तिम सनातनी यूवा पीढ़ी हौँ।
हामीले जसरी भएपनि आउँदो सन्ततिहरू का लागि सनातन सँस्कार र सभ्यता जोगाएर राखौँ।

you won't believe,This is a chain made of stone.This is not possible without science.What science is discovering now, Ou...
10/08/2023

you won't believe,
This is a chain made of stone.

This is not possible without science.
What science is discovering now, Our forefathers had already done that thousands of years ago,
From the ancient Sanatan civilization.

In South India -To the south of the Subramanya temple with a 24-pillared hall, a monolithic stone chain built on the roof of the temple of Sundareswarar and Mata Meenakshi (the original temple of the Chola and Pandya periods).

📸 Madhu Jagdhish - Sculpture Enthusiast

30/12/2021

राज संस्था कायम गर
हिन्दु राष्ट्र कायम गर
#विश्व_हिन्दु_परिषद_VHP
#राजेन्द्र लिङ्देन

24/12/2021

क्या आप जानते हैं .......?

08/12/2021

श्री राम जानकी विवाह ।

न्यूटन से हजारों नहीं करोड़ों वर्ष पूर्व वेद और वैदिक ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम का उल्लेख :-न्यूटन के सहस्त्राब...
08/12/2021

न्यूटन से हजारों नहीं करोड़ों वर्ष पूर्व वेद और वैदिक ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम का उल्लेख :-

न्यूटन के सहस्त्राब्दियों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों से अपनी तपश्चर्या से गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को जान लिया था,जिसके समक्ष न्यूटन कहीं नहीं ठहरते हैं।यही कारण है कि वेद और वैदिक ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम का विषद उल्लेख अंकित है और और यह भी सत्य है कि वैदिक ग्रन्थों में गुरूत्वाकर्षण के नियम को समझाने के लिये पर्याप्त सूत्र उपलब्ध हैं, परन्तु इन ग्रन्थों के अध्ययन नहीं करने के कारण पाश्चात्य शिक्षण पद्धति से शिक्षित भारतीयजन, प्रमुखतः आजकल के युवा वर्ग इस गौरवमयी भारतवर्ष की विद्वता से अनजान केवल पाश्चात्य वैज्ञानिकों के पीछे ही श्रद्धाभाव रखते हैं । जबकि यह सहस्त्राब्दियों वर्ष पूर्व से ही परमेश्वरोक्त आदिग्रन्थ वेदों में सूक्ष्म ज्ञान के रूप में वर्णित हैं , परन्तु इस बात से अनजान भारतीय सहित सम्पूर्ण संसार के लोग इसे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त के नाम से जानते हैं । ऐसे लोगों ने आँग्ल शासकों द्वारा लागू की गई मैकाले की पाश्चात्य शिक्षा पद्धति द्वारा शिक्षित और दुर्भावना से प्रेरित बुद्धिजीवियों द्वारा विकृत किये गए भारतीय इतिहास को पढ़कर अपनी उपर्युक्त धारणाएँ बना रखीं हैं, उन्हें वेद और वैदिक ग्रन्थों तथा भारतीय परम्परा के अन्तर्गत लिखी गई इतिहास , पुराण के ग्रन्थों का शोधपरक अध्ययन करना चाहिए।

वैदिक ग्रन्थों में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का उल्लेख
प्राकृतिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत (Nature’s Law Of Gravitation) के रूप में विद्यमान हैं । गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का उल्लेख ऋग्वेद , बृहत् जाबाल उपनिषद् ,प्रश्नोपनिषद, महाभारत, पतञ्जली कृत व्याकरण महाभाष्य , वराहमिहिर कृत ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका, भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व की सिद्धान्तशिरोमणि आदि अनेक वैदिक और पुरातन ग्रन्थों में अंकित मिलता है। वेदव्यासकृत महाभारत में वर्णन अनुसार गुरूतवाकर्षण के सिद्धांत का श्रेय तो हमारे पितामह भीष्म को मिलना चाहिए,जो आइंस्टीन के सिद्धांत से अधिक समीप हैं । भूत पदार्थों के गुणों का वर्णन करते हुए भीष्म पितामह ने युद्धिष्ठिर से कहा था –
भूमै: स्थैर्यं गुरुत्वं च काठिन्यं प्र्सवात्मना, गन्धो भारश्च शक्तिश्च संघातः स्थापना धृति ।
– महाभारत-शान्ति पर्व . २६१
अर्थात- हे युधिष्ठिर! स्थिरता, गुरुत्वाकर्षण, कठोरता, उत्पादकता, गंध, भार, शक्ति, संघात, स्थापना, आदि भूमि के गुण है। -भीष्म पितामह
न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण (बल) कोई शक्ति नहीं है बल्कि पार्थिव आकर्षण मात्र है । यह गुण भूमि में ही नहीं वरण संसार के सभी पदार्थो में है कि वे अपनी तरह के सभी पदार्थो को आकर्षित करते है एवं प्रभावित करते है। इसका सर्वाधिक उत्तम व अच्छा विश्लेषण हजारों वर्ष पूर्व महर्षि पतंजलि ने सादृश्य एवं आन्तर्य के सिद्धान्त से कर दिया था। गुरुत्वाकर्षण सादृश्य का ही उपखण्ड है। सामान गुण वाली वस्तुएँ परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करती है। उससे आन्तर्य पैदा होता है । पतंजलि ने कहा है

अचेतनेश्वपी, तद-यथा-लोष्ठ क्षिप्तो बाहुवेगम गत्वा नैव तिर्यग गच्छति नोर्ध्वमारोहती प्रिथिविविकारः प्रिथिविमेव गच्छति – आन्तर्यतः । तथा या एता आन्तरिक्ष्यः सूक्ष्मा आपस्तासां विकारो धूमः । स आकाश देवे निवाते नैव तिर्यग नवागवारोहती । अब्विकारोपि एव गच्छति आनार्यतः । तथा ज्योतिषो विकारो अर्चिराकाशदेशो निवाते सुप्रज्वलितो नैव तिर्यग गच्छति नावगवरोहति । ज्योतिषो विकारो ज्योतिरेव गच्छति आन्तर्यतः ।
पतंजलि महाभाष्य, सादृश्य एवं आन्तर्य- १/१/५०
अर्थात -चेतन अचेतन सबमें आन्तर्य सिद्धांत कार्य करता है। मिट्टी का ढेला आकाश में जितनी बाहुबल से फेंका जाता है, वह उतना ऊपर चला जाता है, फिर ना वह तिरछे जाता है और ना ही ऊपर जाता है, वह पृथ्वी का विकार होने के कारण पृथ्वी में ही आ गिरता है। इसी का नाम आन्तर्य है । इसी प्रकार अंतरिक्ष में सूक्ष्म आपः (hydrogen) की तरह का सुक्ष्म जल तत्व का ही उसका विकार धूम है। यदि पृथ्वी में धूम होता तो वह पृथ्वी में क्यों नहीं आता? वह आकाश में जहाँ हवा का प्रभाव नहीं, वहाँ चला जाता है- ना तिरछे जाता है ना नीचे ही आता है। इसी प्रकार ज्योति का विकार अर्चि है। वह भी ना निचे आता है ना तिरछे जाता है। फिर वह कहा जाता है? ज्योति का विकार ज्योति को ही जाता है।
इसके पूर्व के मन्त्र व्याकरण महाभाष्य स्थानेन्तरतमः -१/१/४९ में महर्षि पतंजलि ने गुरूत्वाकर्षण के सिद्धान्त का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कहा है –
लोष्ठः क्षिप्तो बाहुवेगं गत्वा नैव तिर्यक् गच्छति नोर्ध्वमारोहति ।
पृथ्वीविकारः पृथ्वीमेव गच्छति आन्तर्यतः ।
–महाभाष्य स्थानेन्तरतमः, १/१/४९ सूत्र पर
अर्थात- पृथ्वी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का ढेला ऊपर फेंका जाता है तो वह बहुवेग को पूरा करने पर, न टेढ़ा जाता है और न ऊपर चढ़ता है । वह पृथ्वी का विकार है, इसलिये पृथ्वी पर ही आ जाता है ।
उपनिषद ग्रन्थों में प्रमुख बृहत् जाबाल उपनिषद् में गुरूत्वाकर्षण सिद्धान्त का वर्णन है और वहाँ गुरुत्वाकर्षण को आधारशक्ति नाम से अंकित किया गया है।इस उपनिषद में इसके दो भाग किये गये हैं -पहला, ऊर्ध्वशक्ति या ऊर्ध्वग अर्थात ऊपर की ओर खिंचकर जाना । जैसे कि अग्नि का ऊपर की ओर जाना ।और दूसरा अधःशक्ति या निम्नग अर्थात नीचे की ओर खिंचकर जाना । जैसे जल का नीचे की ओर जाना या पत्थर आदि का नीचे आना ।

बृहत् उपनिषद् में भी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त के सूत्रांकित हैं –
अग्नीषोमात्मकं जगत् ।
– बृहत् उपनिषद् २.४
आधारशक्त्यावधृतः कालाग्निरयम् ऊर्ध्वगः । तथैव निम्नगः सोमः ।
– बृहत् उपनिषद् २.८
अर्थात- सारा संसार अग्नि और सोम का समन्वय है । अग्नि की ऊर्ध्वगति है और सोम की अधोःशक्ति । इन दोनो शक्तियों के आकर्षण से ही संसार रुका हुआ है ।
प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी भास्कराचार्य ,जिन्हें भाष्कर द्वितीय (1114 – 1185) भी कहा जाता है , के द्वारा रचित एक मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। भास्कराचार्य द्वितीय पूर्व ने अपने सिद्धान्तशिरोमणि में यह कहा है-
आकृष्टिशक्तिश्चमहि तया यत्
खस्थं गुरूं स्वाभिमुखं स्वशक्त्या ।
आकृष्यते तत् पततीव भाति
समे समन्तात् क्व पतत्वियं खे ।।
– सिद्धान्त० भुवन० १६
अर्थात – पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तु को अपनी ओर खींच लेती है । वह वस्तु पृथ्वी पर गिरती हुई सी लगती है । पृथ्वी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है,अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नहीं है और न गिरती है । वह अपनी कील पर घूमती है।
वराहमिहिर ने अपने ग्रन्थ पञ्चसिद्धान्तिका में कहा है-
पंचभमहाभूतमयस्तारा गण पंजरे महीगोलः ।
खेयस्कान्तान्तःस्थो लोह इवावस्थितो वृत्तः ।।
– पञ्चसिद्धान्तिका पृ०३१
अर्थात- तारासमूहरूपी पंजर में गोल पृथ्वी इसी प्रकार रुकी हुई है जैसे दो बड़े चुम्बकों के बीच में लोहा ।
गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के लिए ऋग्वेद के यह मन्त्र प्रसिद्ध है –
यदा ते हर्य्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे ।
आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ।।
ऋग्वेद अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ३
अर्थात – सब लोकों का सूर्य्य के साथ आकर्षण और सूर्य्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है । इन्द्र जो वायु , इसमें ईश्वर के रचे आकर्षण, प्रकाश और बल आदि बड़े गुण हैं । उनसे सब लोकों का दिन दिन और क्षण क्षण के प्रति धारण, आकर्षण और प्रकाश होता है । इस हेतु से सब लोक अपनी अपनी कक्षा में चलते रहते हैं, इधर उधर विचल भी नहीं सकते ।
ऋग्वेद के अन्य मन्त्र में कहा है-
यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः ।
आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे ।।३।। -ऋग्वेद अ० ६/ अ० १ / व० ६ / म० ५
अर्थात – हे परमेश्वर ! जब उन सूर्य्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं , इसी कारण सूर्य्य और पृथ्वी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं । इन सूर्य्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि परमेश्वर सब लोकों का आकर्षण और धारण कर रहा है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि न्यूटन से हजारों वर्ष पूर्व आर्यभट्ट ने अपने ग्रन्थ में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का उल्लेख किया है तथा ऋग्वेद में गुरुत्वाकर्षण का उल्लेख होने से यह भी प्रमाणित सत्य है कि सहस्त्राब्दियों वर्ष पूर्व भारतीय गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से भली-भान्ति परिचित थे।

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