21/09/2022
लड़खड़ाते प्लाइवुड उद्योग की हकीकत जानने के लिए सरकार करवाएगी सर्वे*
- *उप्र व बिहार राज्यों की ओर रुख कर रहे प्लाइवुड व्यापारी*,
यमुनानगर : कच्चे माल की कीमतों में उछाल से लड़खड़ा रहा प्लाइवुड उद्योग अब दूसरे प्रदेशों की ओर निहारने लगा है। काफी फैक्ट्रियां दूसरे राज्यों में शिफ्ट हो चुकी हैं। 25-30 प्रतिशत फैक्ट्रियां इन दिनों बंद बताई जा रही हैं। जिसका असर सरकार की झोली में जाने वाले राजस्व पर भी पड़ रहा है। जिससे सरकार की चिंता भी बढ़ी है। इसलिए ही अब सरकार की ओर से सरकार की ओर से सर्वे करवाया जाएगा। जिससे पता चल सकेगा कि जिले में कितनी प्लाइवुड फैक्ट्रियां इन दिनों चल रही हैं और कितनी बंद हैं। मार्केट कमेटी की ओर से यह सर्वे करवाने के लिए तैयारी कर ली गई है। दूसरा, सर्वे के माध्यम से यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि वाकई फैक्ट्रियां हैं या टैक्स से बचाव के लिए ऐसा दिखाया जा रहा है।
जिले में 400 प्लाइवुड फैक्ट्रियां
जिले में करीब 400 प्लाईवुड इकाइयां है। इसके अलावा पीलिंग और चीपर भी हैं। बहुत बड़े स्तर पर व्यवसाय हो रहा है। यहां की प्लाईवुड और प्लाईबोर्ड पूरे भारत वर्ष में अपनी पहचान बनाए हुए है। करीब एक लाख लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। यमुनानगर, पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में लकड़ी यहां पहुंचती है। लेकिन व्यवसायिों का कहना है कि सरकार प्लाईवुड उद्योग को लेकर गंभीर नहीं है। पड़ोसी राज्यों की तुलाना में टैक्स की दर भी अधिक है और बिजली भी महंगी दरों पर उपलब्ध कराई जा रही है। एक से सवा लाख क्विटल लकड़ी की हर दिन खपत है। यहां तैयार प्लाईबोर्ड देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी सप्लाई हो रहा है।
*उत्तर प्रदेश व बिहार में स्थापित हुई इंडस्ट्री*
व्यवसायियों के मुताबिक पापुलर के दामों में लगातार बढ़ोतरी है। इन दिनों की बात की जाए तो 1000 से 1200 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। जिले में प्रदेश के अलावा कच्चा माल उत्तर प्रदेश, पंजाब व उत्तराखंड से आता है। उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमाओं पर भी प्लाइवुड ईकाइयां स्थापित हो रही हैं। वहां पर गुजरात, महाराष्ट्र बैंगलोर आदि राज्यों की दूरी यमुनानगर से कम पड़ने के कारण भाड़े का खर्च कम है। जबकि हमारे यहां तैयार माल की खपत कम है और लागत अधिक है। कोरोना के बाद स्थिति और भी बिगड़ी है। व्यवसायियों का कहना है कि 400 में से केवल 300 फैक्ट्रियां ही चल रही है। वह भी सप्ताह में केवल पांच दिन चलती हैं।
*व्यवसायी उठा चुके यह मांग*
गत दिनों आयोजित प्लाइवुड कनक्लेव में उद्याेगपति विशेष राहत पैकेज की मांग उठा चुके हैं। व्यवसायियों की मांग थी कि बिना सिक्योरिटी के लोन दिया जाए। ग्लू के लिए खाद और बिजली बिल के दरों में राहत दी जाए। उद्योगपतियों के मुताबिक व्यापार के बिगड़े गणित को सही करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। वुड बेस्ड इंडस्ट्री एग्रो फोरेस्ट्री की श्रेणी में है। जिस प्रकार किसान की फसल टैक्स मुक्त है। ये सुविधाएं इस व्यापार को मिलनी चाहिए। फिलहाल व्यापारियों से 18 प्रतिशत जीएसटी के साथ दो प्रतिशत मार्केट फीस भी ली जा रही है।
*एफआरआइ बनाने की तैयारी*
एग्रोफोरेस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रतापनगर क्षेत्र में फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाने की तैयारी में है। फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट न होने के कारण एग्रो फोरेस्ट्री के क्षेत्र में नए शोध नहीं हो पा रहे हैं। न तो पापुलर जैसी फसल की नई किस्में इजाद हो पा रही हैं और न ही पुरानी किस्मों के कीटों व बीमारियों का सही उपचार हो पा रहा है। जबकि यमुना नगर में बड़े पैमाने पर पापुलर की खेती की
जाती है। प्लाइवुड उद्योग होने के कारण यहां इसकी डिमांड भी है।
*इसमें कोई संदेह नहीं कि प्लाइवुड उद्योग मंदी के दौर से गुज रहा है। इसका कारण कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण लागत मूल्य बढ़ जाना है। हालांकि अन्य राज्यों में जिले से फैक्ट्रियों के शिफ्ट होने बारे जानकारी नहीं है, लेकिन यदि कारोबार को बचाने के लिए जल्द निर्णय नहीं लिया गया तो शिफ्ट करना व्यवसायियों की मजबूरी होगी।*
*जेके, बिहानी, प्रधान।*