Kumar Shyam

Kumar Shyam Official page of Kumar Shyam. Freelance Journalist and YouTuber. Kumar Shyam is a Freelance Journalist, Analyst and a YouTuber.
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On his Youtube channel, he tries to present an in-depth relational analysis of political, economic, social issues. He started his Youtube channel on 7th August 2017 and at present. He has 375K subscribers on his channel. Kumar Shyam remains in controversies on social media due to his views. Articles written against non-veg remain the target of critics. Kumar Shyam was born and brought up in Rajast

han, India on 15 July 1998. Kumar’s education took place in his village and nearby city. He is MA in Hindi and NET qualified. Apart from this, a book has also been published.

आरक्षण ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं। एक सामाजिक प्रतिनिधित्व का प्रयास है। दूसरे शब्दों में- ऐतिहासिक न्याय का उपकरण है...
23/12/2023

आरक्षण ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं। एक सामाजिक प्रतिनिधित्व का प्रयास है। दूसरे शब्दों में- ऐतिहासिक न्याय का उपकरण है।

इसी दृष्टि से- हिंदू भी ऐतिहासिक न्याय की उम्मीद क्यों न करें? वो 1947 की यथास्थिति को कैसे स्वीकार सकें जब सांस्कृतिक घाव दिन के उजाले की मानिंद सदैव ऑंखों के सामने रीसते रहते हैं?

इस कारण से- पूजा स्थल अधिनियम (Worship Act) को निरस्त किया जाना और जिन हिन्दू मन्दिरों पर मस्ज़िदों के "टोप" रखे हैं या जिनको तोड़कर मस्ज़िदें बनाई गईं- उनको पुनः मंदिर के रूप में बहाल करना- क्या यह ऐतिहासिक न्याय और सामाजिक समरसता का ही एक प्रयास नहीं होगा?

यदि 1947 में यथास्थिति बनाए रखने का क़ानून बनाकर यदि समानता और समरसता स्थापित हो सकती हैं तो फिर आर्टिकल 15 जैसे प्रावधानों से समानता और समान‌ अवसर जैसे क़ानून बनने के उपरांत सामाजिक-न्याय क्यों नहीं हो जाता? आरक्षण जैसे अतिरिक्त उपकरण की आवश्यकता क्यों पड़ी? वो इसलिए पड़ी क्योंकि एक तारीख़ से कोई राष्ट्र आरंभ नहीं होता। उसकी जड़ें पुरानी होती हैं।

तो क्या 1947 से पहले भारत में हिंदुओं के साथ हुए अन्याय को क़ानून बनाकर यथास्थिति में बदला जा सकता है? यह प्रश्न है।

[तस्वीर- ज्ञानवापी मंदिर का गर्भगृह।]

दरभंगा के श्यामा माई मंदिर में बलि प्रथा पर रोक स्थानीय विरोध के बाद हट गई है। प्रथा, परंपरा और संस्कृति के नाम पर सदियो...
21/12/2023

दरभंगा के श्यामा माई मंदिर में बलि प्रथा पर रोक स्थानीय विरोध के बाद हट गई है। प्रथा, परंपरा और संस्कृति के नाम पर सदियों से निरीह जीवों की गर्दनों पर छुरी चलती आ रही है किंतु आज तलक वह सनक मिटी नहीं। कम से कम एक स्थान पर तो इस पाप कर्म से हम मनुष्य मुक्त हो सकते थे किन्तु प्रकृतिपूजक और दयालु जाति ने इसका विरोध किया और प्रशासन ने अपना निर्णय वापस ले लिया।

"उनके यहॉं भी होती है!" वाला तर्क ही आगे-पीछे रह गया है। वो नीच तो मैं महानीच! वो गड्डे में पड़ेगा तो मैं खाई में गिरूंगा। यही कुलजमा चिंतन रह गया है। तुम भी दिन-ब-दिन उनके जितने ही छिछले होते जा रहे हो जिनसे तुम्हारा बुनियादी संघर्ष था।

उन मासूम जीवों का कोई प्रतिनिधिमंडल नहीं है। न राजनीति पार्टी न आईडी सेल कि अपने पक्ष में ट्रेंड करवा सकें। और न ही उनका वोट बैंक। सभी प्रथाऍं, संस्कृतियॉं और खाने-पीने के अधिकार हम सब मनुष्यों का आपसी मामला है। इसमें जिसका जीवन छिनता है, उसकी चेतना का कोई महत्व नहीं। क्या वह अपनी मृत्यु के लिए उपस्थित है? क्या उसमें जीवेषणा नहीं?

संसार की सामुहिक चेतना को विद्रूप कर देने वाले बकरीद के अभागे दिन की मैंने पूरी शक्ति के साथ आलोचना की है।‌ लेकिन सत्य यही है कि हिंदू-मुस्लिम इस प्रश्न पर एकमत हैं- कि मनुष्यों के अलावा अन्य प्राणियों को जीने का अधिकार नहीं है।‌ जब अवसर लगे- उन्हें कभी जिह्वा के स्वाद के लिए या किसी परंपरा के नाम पर किसी धारदार इस्पात से- उनका गला रेत दो!

सार्वजनिक रूप से न काटो, क्योंकि हम महाहिंदुओं का जी मचलता है। हॉं, भीतर कहीं उनको विधिवत मारो, हमें कोई परहेज़ नहीं। क्योंकि स्वयं मॉंसाहारी हैं, तो उसके विरोध का साहस कहॉं से लावें?

जीवहत्या कलंक है। पाप है। अपराध‌ है। अगर तुम हर क्षण कत्लखानों में कटते जीवों की चित्कार सुन पाओ तो यह संसार एक कत्लख़ाने सरीखा मालूम पड़ेगा। मेरा दम घुटता है जब मनुष्य सब भेद भूलकर इस प्रश्न पर एक हो जाते हैं। मैं फूटकर रोता हूॅं। वो आरी जैसे मेरे बच्चों पर चलती हो!

आह! यह दुःख, यह बेबसी। 🥲

हिंदू राष्ट्र : हिंदुओं की राम कहानीश्री आनंद रंगनाथन द्वारा लिखित इस छोटी किंतु महत्वपूर्ण किताब को पढ़कर इधर संपन्न कि...
19/12/2023

हिंदू राष्ट्र : हिंदुओं की राम कहानी

श्री आनंद रंगनाथन द्वारा लिखित इस छोटी किंतु महत्वपूर्ण किताब को पढ़कर इधर संपन्न किया। भारत में अहर्निश ठेले जा रहे नैरेटिव कि— भारत हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है और सत्ता में फ़ासिस्ट कब्ज़ा किए बैठे हैं— यह किताब इन धारणाओं का प्रबल तरीक़े से खंडन करती है। और यह किताब बताती है कि कैसे हिंदुओं के साथ भेदभाव केवल इस आधार पर किया गया कि वह बहुसंख्यक हैं। और अनेक संवैधानिक एवं संस्थानिक ढ़ंग से हिंदुओं को हाशिए पर धकेला गया।

बकौल श्री विक्रम संपथ, ऑंखें खोल देने वाला लेखन है। इस महत्वपूर्ण किताब के लिए श्री आनंद रंगनाथन प्रशंसा के पात्र हैं।

लेकिन उनको एक आलोचना भी स्वीकार करनी होगी। इस किताब का हिंदी अनुवाद बहुत ही ख़राब किया गया है, जैसे अंग्रेजी टेक्स्ट को गूगल ट्रांसलेटर में डालकर ज्यों का त्यों पन्नों पर छाप दिया गया हो। यह दरअसल हिंदी पाठकों के साथ अन्याय है! इतनी महत्वपूर्ण किताब का हिंदी अनुवाद इतना ख़राब होना? मैं समझता हूॅं कि यह लेखक और प्रकाशक की दोहरी जिम्मेदारी है कि वे हिंदी पाठकों के समक्ष अनुवाद का कार्य सुंदर, सुग्राह्य और अच्छी हिंदी के साथ पहुॅंचा पाऍं। ताकि इस किताब का मनोरथ सार्थक हो पाता।

पुनश्च— इस किताब को खासकर युवाओं द्वारा पढ़ा जाना चाहिए।

Introspection.
16/12/2023

Introspection.

15/12/2023

मेरा सदैव मानना रहा है कि हिन्दुओं को अपने शत्रु से लड़ते-लड़ते उसके जैसा ही होने से बचना चाहिए। उसके जैसा दुराग्रही, आक्रमक और हिंसक होना हिन्दुत्व नहीं है। और मुझे इस बात का संतोष है कि संसद में घुसे बदमाशों के "हिंदू" होने के बावजूद सभी हिन्दुओं ने कठोर स्वर में आलोचना की। किंतु-परंतु की दुविधा नहीं रखी।

अब जो लॉबी उनके पक्ष में है, वो उन आतंकियों के वैचारिक-अनुषंगी ही है। और यह‌ लोग सदैव ही आतंकियों के पक्ष में ही खड़े नज़र आए हैं। आश्चर्य ज़रा भी नहीं। तथाकथित काव्यात्मक शैली का उपयोग कर कभी छंद पढ़ेंगे, कभी व्यंग्य। लेकिन उनका मंतव्य होगा उनके पक्ष में खड़े होना। कसाब, अफ़ज़ल और याकूब मेमन के मामलों में देश ने इनकी इस निकृष्टता को जुगुप्सा से देखा है।

11/12/2023

कपिल सिब्बल ने लिखा है कि — "कुछ लड़ाईयॉं हारने के लिए लड़ी जाती हैं।"

सिब्बल साहब की लड़ाईयाॅं—
१. राममंदिर के विरुद्ध
२. अवैध मस्ज़िद हटाने के विरुद्ध
३. तीन तलाक़ पर प्रतिबंध के विरुद्ध
४. अनुच्छेद 370 हटाने के विरुद्ध

और ये सब "लड़ाईयॉं" कपिल सिब्बल हार गए।

पिता। 💙
09/12/2023

पिता। 💙

04/12/2023

कांग्रेस के लिए सबक —

१. भाजपा वोटर को धर्मांध अथवा सांप्रदायिक समझना बंद करें। क्योंकि ये वही लोग हैं जिन्होंने आपको साठ साल सत्ता में रखा। अब भक्त कैसे हो गए?

२. कुछ पत्रकारों की अनवरत निशानदेही, उनका बहिष्कार एवं अपमान करने से बचें। मुठ्ठीभर यूट्यूबर्स और इस्लामिस्ट फैक्टचैकरों द्वारा सोशल मीडिया पर बनाए माहौल पर फिदा न हों। ये लोग ज़मीन से बेइंतहा कटे हुए और नागरिकबोध को धत्ता बताते हैं। हिंदू जीवन-शैली पर अहर्निश आक्रमण इनका शगल है। जब कांग्रेस इनसे कदमताल करती है तो जनता कुछ कहती नहीं लेकिन मतदान के समय अपनी ताक़त दिखाती है।

३. कोरोनाकाल में जब सरकारों ने ज़रूरतमंदों को राशन-पानी मुहैया करवाया तो आजकल इस्लामिस्ट इस बात के लिए हिंदुओं का मज़ाक उड़ाते हैं कि ये लोग दो किलो राशन पर पलते हैं! जबकि वह राशन सबको ही मिला, न केवल हिन्दुओं को। लेकिन छवि बनी की हिंदू भूख मर रहे हैं लेकिन वोट देंगे मोदी को? इन यूट्यूबर्स ने भी ज़मीन पर जाकर लोगों को इस बात के लिए झिंझोड़ा और सोशल मीडिया पर वह क्लिप्स डालकर मज़े लिए। दरअसल वोट का कारण बदल चुका है। जनता अपने सम्मान को वोट देती है।

४. राहुल गांधी अच्छे व्यक्ति हैं। जैसे भारत के करोड़ों लोग अच्छे और शालीन हैं। तो सब अच्छे राजनेता भी हैं? यक़ीनन नहीं। मुझे लगता है कि राहुल गांधी स्वयं को कठोर निर्णय लेना चाहिए। जैसे उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर न रहने का किया था। अब जाकर समझ जाना चाहिए कि देश की जनता में उनकी वह छवि, पैठ और प्रभाव नहीं बन पाया है कि वो अपने दम पर चुनाव जीता सकें। किसी और के लिए आगे लाकर स्वयं को पीछे कर लेना चाहिए।

५. कुछ प्रवक्ताओं में तब्दीली आवश्यक है। हर वक्त चीखना, जनता को ही गुमराह समझना जबकि वो कह रहे हैं, उसे ही सही माना जाए वरना सब गोदी मीडिया। यह पूर्वाग्रह, अहंकार और खीझ सीधे करोड़ों घरों में पहुॅंचती है।

६. कमलनाथ जैसे नेता धीरेंद्र शास्त्री से मिले तो उस पूरी लॉबी ने उन बाबा का जबरदस्त मज़ाक उड़ाया। ढोंगी और पाखंडी कहा। इस खीझ के पीछे यह अनवरत चली आ रही मनोवृत्ति है जब हिन्दू धर्म से संबंधित किसी भी व्यक्ति का मज़ाक बनाया जाता है। वैसा अन्यत्र नहीं देखा जाता। चुनावों के बाद भी वे लोग रुके नहीं है।

ख़ैर, ये सबक मालूम नहीं कितने महत्वपूर्ण है लेकिन आत्मचिंतन का विषय ज़रूर है।

श्री अशोक गहलोत अच्छे मुख्यमंत्री रहे। राज्य में उनके प्रति कोई रोष नहीं था। उनकी योजनाऍं जनता तक पहुॅंची। जनता को महसूस...
03/12/2023

श्री अशोक गहलोत अच्छे मुख्यमंत्री रहे। राज्य में उनके प्रति कोई रोष नहीं था। उनकी योजनाऍं जनता तक पहुॅंची। जनता को महसूस भी करवाया‌। किंतु यह हार खटकेगी। रणनीतिक भूलें हुईं होंगी। आपसी अंदरूनी कलह इत्यादि। मैं कांग्रेस की सरकार तय मान रहा था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में अद्भुत कार्य किया। राजस्थान की जनता सदैव आभारी रहेगी।

ख़ैर, शुक्रिया मुख्यमंत्री जी।

02/12/2023

पाकिस्तान के चक्कर में फंसा दलित समाज हर उपलब्ध मार्ग और साधन से भारत आ जाए। मैं कहना चाहता हूॅं कि पाकिस्तान और हैदराबाद रियासत के मुसलमान पर भरोसा करने से दलित समाज का विनाश होगा। दलित वर्ग हिंदू समाज से नफ़रत करता है, इसलिए मुसलमान हमारे मित्र हैं, यह मानने की बुरी आदत दलितों को लग गई है, जो बहुत ग़लत है। मुसलमान तो अपने लिए दलितों का साथ चाहते हैं लेकिन बदले में वह कभी दलितों का साथ नहीं देते हैं।

— डॉ. भीमराव आंबेडकर, 27 नवंबर 1947

01/12/2023

Bhagwa Terror Conspiracy EXPOSED.

  पर अगले माह आ रहे हैं, श्री गौतम खट्टर। गौतम अपनी मुखर राय एवं सनातन धर्म के प्रचारक के रूप में जाने जाते हैं। तेज-तर्...
26/11/2023

पर अगले माह आ रहे हैं, श्री गौतम खट्टर। गौतम अपनी मुखर राय एवं सनातन धर्म के प्रचारक के रूप में जाने जाते हैं। तेज-तर्रार वक्ता हैं। सोशल मीडिया पर इनकी उपस्थिति उल्लेखनीय है। आप-हम सबके साथ गौतम जी रूबरू होंगे, जहाॅं हम इनसे उनकी जीवन-अध्यात्मिक-यात्रा एवं सामयिक मुद्दों पर चर्चा करेंगे। साथ ही आप भी गौतम जी से प्रश्न पूछ पाऍंगे। इसके लिए आपको अपना प्रश्न पूछते हुए 15-20 सेकंड का वीडियो बनाकर मुझे डीएम करना होगा। चयनित प्रश्नों के वीडियो शो में शामिल किए जाऍंगे। इसलिए DM करिए (कुमार श्याम को) अपने वीडियो और हमारी इस चर्चा का हिस्सा बनिए।

फाइनल मैच को हुए दो दिन हो गए लेकिन मैदान से बाहर जाते भावुक रोहित शर्मा का वह चेहरा चित्त से नहीं उतरा है। केएल राहुल क...
23/11/2023

फाइनल मैच को हुए दो दिन हो गए लेकिन मैदान से बाहर जाते भावुक रोहित शर्मा का वह चेहरा चित्त से नहीं उतरा है। केएल राहुल की वह घुटनों के बल हताश मुद्रा और सिराज के असहाय ऑंसू।

इन खिलाड़ियों से भावनाऍं जुड़ी हैं। इसलिए हार अपनी-सी ही लगती है। पिछली बार धोनी का रुदन, इस बार रोहित।

Life in screenshots.
21/11/2023

Life in screenshots.

झुके कंधे, मायूस चेहरे और टूटे स्वप्न। पूरे विश्वकप में एकतरफ़ा विजयी रही भारतीय टीम का यूॅं फाइनल में हारना पीड़ादायी ह...
20/11/2023

झुके कंधे, मायूस चेहरे और टूटे स्वप्न। पूरे विश्वकप में एकतरफ़ा विजयी रही भारतीय टीम का यूॅं फाइनल में हारना पीड़ादायी है। दुर्भाग्य यह है कि जो एक दिन ख़राब होना था उसने फ़ाइनल चुना। इस मैच में क्या कमियॉं रहीं यह तो सबको दिखेंगी। जीत में सब साथ हैं, पराजय में एकांत। यही दुनिया की रीत है।

रोहित शर्मा ने पूरे विश्वकप में जितनी निर्भय बैटिंग की और उतनी ही सचेत कप्तानी की। विराट कोहली ने नियमितता के साथ रन बनाए। राहुल ने हर बार आकर धैर्यपूर्वक बल्लेबाजी की और विकेट के पीछे भरपूर जान लगाई। अय्यर, शामी, बुमराह और जडेजा ने अविजित आत्मविश्वास के साथ पूरा विश्वकप खेला। लेकिन आख़िरी मैच हार गए। एक को तो हारना ही था। नियति ने पराजय का मुकुट रोहित के शीश धरा। यह हम सबको विनम्रता से स्वीकार करना चाहिए।

इन तमाम ख़ूबसूरत यादों के लिए, जश्न के अनगिनत क्षणों के लिए,‌ आभार टीम इंडिया!

17/11/2023

राहुल गांधी की रैली फ्लाॅप या सुपर? देखिए मेरी रिपोर्ट!

ये मोह-मोह के धागे!
17/11/2023

ये मोह-मोह के धागे!

कांग्रेस नेता राहुल गांधी आज एक जनसभा को संबोधित करने विधानसभा क्षेत्र नोहर आए। साथ थे, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहल...
16/11/2023

कांग्रेस नेता राहुल गांधी आज एक जनसभा को संबोधित करने विधानसभा क्षेत्र नोहर आए। साथ थे, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट। जनसभा में पहुॅंचे क्षेत्र के लोगों से मैंने भी बात की। और इस जनसभा को कवर किया।

कैसा रहा मेरा अनुभव? कल शाम तक वीडियो आ जाएगा।

जो पीढ़ी रेडियो पर कॉमेंट्री सुनकर बड़ी हुई हो, उसे टीवी पर होने वाली कॉमेंट्री आसानी से रास आएगी नहीं। रेडियो पर सुने ज...
15/11/2023

जो पीढ़ी रेडियो पर कॉमेंट्री सुनकर बड़ी हुई हो, उसे टीवी पर होने वाली कॉमेंट्री आसानी से रास आएगी नहीं। रेडियो पर सुने जाने वाला ऑंखों देखा हाल जो रस घोलता था, वह विरल था। सुशील दोषी, विनीत गर्ग, सुरेश सुरैया और संजय बैनर्जी जैसे दिग्गजों की कॉमेंट्री का अपना वैभव था। वो दिन लद गए। वह सुख अब कहाॅं?

इस रिक्तता को एक शख़्स भर रहा है। नाम, जतिन स्प्रु। हॉटस्टार और स्टार स्पोर्ट्स पर जतिन की हिंदी कॉमेंट्री सुनकर मन खुश हो जाता है। काव्यात्मकता, प्रवाह और स्पष्ट उच्चारण। कितनी सुंदर वाणी है। अपनी विरल उपमाओं और सारगर्भित कॉमेंट्री के कारण जतिन इन दिनों मेरे हृदय का हार बने हुए हैं। उन्होंने जो अपनी वाणी से छंद रचा है, वह क्रिकेट देखने को और सुंदर और सुखमय बना रहा है।

जो छात्रा कह रही हैं कि उसके अंक अधिक थे फिर भी चयन नहीं हुआ जबकि आरक्षण-प्राप्त सहेली के अंक कम थे, उसके बावजूद उसका चय...
15/11/2023

जो छात्रा कह रही हैं कि उसके अंक अधिक थे फिर भी चयन नहीं हुआ जबकि आरक्षण-प्राप्त सहेली के अंक कम थे, उसके बावजूद उसका चयन हो गया।

ऐसी कहानियाॅं बहुत हैं।

किंतु वैसी कहानियाॅं संभवतः इनसे दस गुना अधिक होंगी जहाॅं योग्यता होने के बावजूद जातीय आधार पर अवसर नहीं मिला। पानी के मटके अलग रखे गए होंगे। कक्षा में अलग दरी बिछी होगी। बाहर तैयारी करने गए अभ्यर्थियों को जाति पूछकर कमरा नहीं मिला होगा। कितनी ही ऐसी छात्राऍं होंगी जो इस मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पिछड़ गई होंगी और वह परीक्षा तक में नहीं बैठ पाई होंगी?

यह सच है कि समाज सुधरा है और अनवरत गति से सुधार हो रहा है। आरक्षण एक इलाज के रूप में सुंदर व्यवस्था प्रतीत होती है। समानता के बिना शांति संभव नहीं। किंतु जब कोई व्यवस्था राजनीतिक टूल बन जाए और उससे वोटबैंक साधा जाने लगे तो फिर इलाज भी अपने-आप में रोग बन जाता है।

आरक्षण किसे मिल रहा है और वास्तव में जो हकदार है, क्या उस तक इसका लाभ पहुॅंच रहा है, इसके लिए पुनर्मूल्यांकन करना कोई बुरी बात नहीं। बरसों पहले की गई व्यवस्थाऍं आज भी उतनी ही सम्यक हो, यह आवश्यक तो नहीं।

भावुक वीडियो एक पक्ष रखता है। और ऐसी भावुक अपील हर मामले में की जा सकती है। दुनिया की हर एक व्यवस्था से किसी न किसी को कष्ट है और उनको लगता है कि उनके साथ अन्याय किया जा रहा है। लेकिन सामाजिक दृष्टि ज़रूरी है। यह संभव नहीं कि मेरे साथ हर कीमत पर अच्छा हो, किसी और से मुझे कोई मतलब नहीं या मैं क्यों किसी और से प्रभावित होऊॅं? फिर यह तर्क घूमकर वापस आएगा तो परेशानी होगी।

15/11/2023

जिनकी चमड़ी मोटी है, घाघ हैं, उनके अतिरिक्त दीवाली पर ज्ञान देने वालों की संख्या में भारी गिरावट आई है। हालाॅंकि अब भी इस तरह की मनोवृत्ति से लड़ना आवश्यक है।

होली के रंगों में रसायन, पटाखों से प्रदुषण और कुत्तों में भय, अन्य हिंदू पर्वों में भी भिन्न तरह की दिक्कतें बताने वाले ये लोग जब दुसरे मतावलंबियों से जुड़े त्योहार आते हैं तब केवल उत्सव ही मनाते हैं, किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती। भले ही शहरों की नालियॉं रक्त से भर जाऍं या निरह जीवों की करुण चीत्कार से आकाश फट जाए लेकिन ये लोग मौन रहेंगे। समूचा ज्ञान हिंदू त्योहारों पर ही बरसता है।

सच यह है कि प्रदुषण, स्वास्थ्य या जीव-दया इनकी चिंताओं में नहीं है। इनकी नीयत में खोट है। इनका विरोध स्वास्थ्य नहीं, विशुद्ध एजेंडा है। एक पोस्ट रवायती तौर पर शुभकामना की करेंगे जबकि दसियों पोस्टें कमियाॅं निकालते हुए व्यय करेंगे। यह एक पैटर्न है। हिंदू पर्वों को निष्प्रभ, अप्रासंगिक करने की यह सुनियोजित कुत्सित चेष्टा है। और इसका युवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वो केवल पटाखा ही नहीं छोड़ते, वो दीवाली से जुड़ी अन्य खुशियाॅं भी छोड़ते जाते हैं। यद्यपि सोशल मीडिया ने तमाम त्योहारों को स्टेटस, स्टोरी और रील तक सीमित कर ही दिया है। कहाॅं बचे हैं त्योहार?

तो यह समझिए कि जो एक पटाखे की जगह दो पटाखे बजा रहा है, वो उस नीयत के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज़ करवा रहा है जो हर बार केवल उसे ही निशाना बनाती है। यह प्रतिरोध के धमाके हैं। सत्याग्रह ही कह लें, भले ही शत्रु बेहद छंटा हुआ धूर्त है।

स्वयं.
14/11/2023

स्वयं.

एक दीया!मैं बचपन में बड़ा पूजापाठी हुआ करता था। उस दौर के टीवी सीरियल्स का विशेष प्रभाव तो था ही। महाभारत, रामायण, श्रीक...
12/11/2023

एक दीया!

मैं बचपन में बड़ा पूजापाठी हुआ करता था। उस दौर के टीवी सीरियल्स का विशेष प्रभाव तो था ही। महाभारत, रामायण, श्रीकृष्णा और साईं बाबा जैसे धारावाहिकों का नियमित दर्शक था। उनकी मेरे बालमन पर गहरी छाप पड़ी थी। साईंबाबा का तो घोषित भक्त था। साईंबाबा के व्रत किए थे। अंतिम व्रत के दिन सात कन्याओं को भोज करवाया था। इसके अतिरिक्त कार्टून के गत्ते से मुकुट बनाता था। धनुष-बाण भी। मेरा उस समय का यही खेल था। इन सब में बहुत मन रमता और इन्हीं सब में रत रहता था।

फिर चीज़ें बदलीं। वह वक़्त आया जब "तर्कशील" होने का कीड़ा काटा। और बड़ा जबरदस्त काटा। मैं पूजा-अर्चना और अन्य धार्मिक गतिविधियों के प्रति काफ़ी कठोर गया था। भीतर नकार प्रभावी हो गया था। प्रश्नदेही सघन थी। वही जीवन-दृष्टि बन गई थी। धूप-ध्यान जैसे पिछले जन्म का किस्सा हो गया था। सब छूट गया था।

अब कुछ समय से इस मामले में नरम हुआ हूॅं। जबकि अब जीवन-दृष्टि भिन्न है। स्वीकार का भाव बढ़ा है।

आज दीवाली के दिन अपने कक्ष में एक दीप जलाया। धूप खेया। उसकी सुगंध और कोमल धूॅंए से परिवेश जैसे पावन हो गया। बचपन जीवंत हो उठा। ऐसा करने की प्रेरणा देने वाले को बहुत स्नेह। यांत्रिक हो चुके इस जीवन में यह एक दीप, उजाला है, प्रेम है। यही मेरी दीवाली।

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मुझ जैसे कितने ऐसे हैं जिन्हें पटाखों का अधिक शौक़ नहीं मगर देखने में मज़ा आता है? दूसरों को पटाखे चलाते देखने का सुख अल...
12/11/2023

मुझ जैसे कितने ऐसे हैं जिन्हें पटाखों का अधिक शौक़ नहीं मगर देखने में मज़ा आता है? दूसरों को पटाखे चलाते देखने का सुख अलग ही है. दूर खड़े-खडे़ आनंद लो, न कोई ख़तरा, न कोई खर्चा. लेकिन मज़ा भरपूर.

वैसे अति अग्निक्रिड़ा ठीक नहीं. संयमित उत्सवधर्मिता और त्योहार के महत्व को साकार करना ही जरूरी है. अनावश्यक उद्दंडता और शरारत रंग में भंग डाल देती है अमूमन. इससे बचना चाहिए.

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई. प्रकाश का संकल्प और निराशा का त्याग, यही मनोरथ.

हमास पहले 900+ लोगों को मारेगा। उन मृत्युओं पर मुसलमानों और लिबरल्स में दुःख अव्वल तो होगा ही नहीं, होगा भी तो सिर्फ़ औप...
15/10/2023

हमास पहले 900+ लोगों को मारेगा। उन मृत्युओं पर मुसलमानों और लिबरल्स में दुःख अव्वल तो होगा ही नहीं, होगा भी तो सिर्फ़ औपचारिकता। लेकिन इसके पलटवार में जब इज़राइल कार्यवाही करता है तो सामुहिक रुदन आरंभ। यह इनकी आज़माई हुई युक्ति है। जब उत्प्रेरित किया जाएगा तब मौन रहेंगे। जब प्रतिक्रिया होगी तो संयम, शालीनता, संस्कार और अनुशासन आदि समस्त मूल्य इन्हें याद हो आऍंगे।

रिज़वान शतक या अर्धशतक लगाए तो वह नमाज़ अदा करने से कभी नहीं चूकते। चलो यहाॅं तक ठीक। वकार यूनुस कहते हैं कि यह हिंदुओं के सामने पढ़ी तो और ही बड़ी बात थी! इस बयान का न रिज़वान ने कभी खंडन किया और न ही पीसीबी ने। आख़िर क्यों नहीं?

धर्म और क्रिकेट को इन्होंने कभी अलग नहीं रखा। हर उस मंच का लाभ उठाया जहाॅं अपने मज़हब को प्रसारित किया जा सकता था। बाबरी मस्ज़िद से लेकर फ़लीस्तीन की आज़ादी के नारे मैदान से ही बुलंद हुए हैं। अभी रिज़वान ने अपने शतक को गाज़ा को समर्पित किया। जबकि इन्हें मालूम था कि हमास ने आतंकी हमला किया था, और वहाॅं हज़ारों लोग मरे थे। रिज़वान का वह ट्वीट सिर्फ़ मुसलमान होने के नाते ही था।

हैदराबाद के स्टेडियम में लगे पाकिस्तान विजय के नारे और रिज़वान का बारंबार ऐसा रवैया देश देख रहा था। अब तक हुई हर हरक़त पर लिबरल समाज मौन था।

तो कल अहमदाबाद में हुआ वह स्वयंभावी था। क्या हुआ कल? वंदेमातरम् का उद्घोष, जन गण मन अधिनायक के गायन में विद्युत-सी लय और इस राष्ट्र की आस्था के शिखर-पुरुष श्री राम के आकाशभेदी नारे और उनके नाम का सामुहिक-स्मरण। भारत के आम-दर्शक के भीतर बेचैनी थी जो इन्होंने अनेक मौकों पर देखी थी। कल की ऊर्जा स्वत:स्फूर्त थी। नियोजित नहीं। ऐसे में हमें भारत के जनमानस की आस्था का सम्मान करना चाहिए। यह सबकुछ उन्होंने अपनी जगह ही खड़े रहकर किया। न पाक खिलाड़ियों को पत्थर मारे, न बोतलें फेंकी और न मैदान में घुसकर खिलाड़ियों पर‌ हमला किया जैसाकि हमारे खिलाड़ियों के साथ हो चुका है।

भारत के लिबरल्स, इस्लामिस्ट और वामियों के कानों में श्री राम के नारे गूॅंज रहे हैं। रुदन जारी है। उन्हें संभवतः पहली बार अनुभव हुआ होगा कि वो भारतभूमि पर रहते हैं। उन्हें यह सब पचाना चाहिए। अश्रुधारा को बचाए रखिए, अभी तो विश्वकप शुरू हुआ है।

भारत और पाक में यही तो अंतर है कि हम मुश्किल घड़ी में भी सहज शिष्टाचार नहीं छोड़ते। उन्होंने हमें "दुश्मन मुल्क़" कहा, ह...
14/10/2023

भारत और पाक में यही तो अंतर है कि हम मुश्किल घड़ी में भी सहज शिष्टाचार नहीं छोड़ते। उन्होंने हमें "दुश्मन मुल्क़" कहा, हमने उनका स्वागत किया।

बीसीसीआई को भी वहीं तक शोभा देता है जो अनिवार्य हो या वह जो अन्य टीमों के साथ किया जा रहा हो। इसके उलट पाक टीम के आगे बिछने की कहाॅं नौबत आ गई?

हम सामान्य शिष्टाचार निर्वाह करते रहें। आईसीसी इवेंट है, मेज़बान हैं हम, तो यह हमारी विवशता है और धर्म भी। लेकिन इससे आगे जाकर मैच से पहले म्यूज़िक कंसर्ट और यूॅं बलिहारी होने का क्या तुक है?

पाकिस्तान क्रिकेट के बड़े नाम टीवी पर बैठकर हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं। वहाॅं भी वो अपने क़ौमी मक़सद से उतर रहे हैं। रिज़वान ने अपने शतक को गाज़ा को समर्पित किया है। भारत का नहीं "हैदराबाद" का धन्यवाद किया चूॅंकि पाकिस्तान टेलीविजन पर एक बंधु ने पहले ही कह दिया था कि हैदराबाद में इसलिए पाक टीम का जबरदस्त स्वागत हुआ क्योंकि वहाॅं बहुसंख्यक मुस्लिम हैं।

हर ज़गह, हर आयाम, हर भाव उनका अपनी पहचान को लेकर समर्पित है। तोला माशा भी इधर-उधर नहीं। इसलिए बीसीसीआई एक परिपक्व व्यवस्थापक का परिचय दे, "चीयरलीडर" न बनें।

09/10/2023

मेरा एक यूट्यूबर दोस्त था। दुर्योग से मुसलमान था। मेरे काम का प्रशंसक। उसने इस भाव से मुझे कुछ सहयोग राशि भी भेजी थी। बातचीत होती थी। मैंने उसका चैनल देखा, उसके तमाम वीडियो मुस्लिम-केंद्रित। बस यही कि किसने मुसलमानों का दिल जीता, किसने नहीं। लेकिन मुझे लगा कि यह आदमी सरलमना‌ है। भावुकता में बोलता है, कोई बात नहीं।

इधर तालिबान का मसला हुआ। मैंने यूॅं ही देखा तो पाया कि उसके चैनल पर तालिबान को लेकर कोई वीडियो नहीं आया था। जबकि इस बात पर बोला गया था कि भारत में किस तरह तालिबान की आड़ में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है!

मैं उससे बेहद सहज प्रश्न पूछा। कि तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान पर टैक ओवर सही है या ग़लत? क्या सोचते हैं आप? उन्होंने कहा कि अभी तक पूरी सूचना नहीं, फिर बनाऊंगा तालिबान पर वीडियो। मैंने कहा, जी, बनाइएगा। मुझे आपकी तालिबान को लेकर राय जाननी है।

भाई बिफर गए। मुझे नफ़रती और न जाने क्या क्या कहने लगे। जो सहयोग राशि दी थी वह मॉंगकर वापस ले ली। और ब्लॉक करके भाग गए। वर्षों की दोस्ती एक क्षण में हवा।

वो तालिबान के समर्थन में था। कह नहीं पा रहा था। और मैं उसकी रग भाॅंप गया था। मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं थी कि तालिबान के पक्ष में है! मेरा बस यह कहना था कि अगर वहाॅं तालिबान अच्छा लगता है तो भारत में तालिबानी व्यवहार के लिए तैयार रहना चाहिए। यहाॅं लोकतन्त्र की आवाज़ बुलंद करना तुम्हारी निकृष्ट बौद्धिक बेईमानी है।

इसलिए हमास के हमले के बाद चैक कीजिए आपके सेकुलर मुस्लिम पत्रकारों के अकाउंट? ज़रा पूछकर दिखाइए!

08/10/2023

वैसे पूरी दुनिया के मुसलमानों को यह समझ लेना चाहिए कि इज़रायल किसी भी तरह के "गिल्ट-ट्रिप" या मनोवैज्ञानिक दबाव से पसीजने वाला नहीं है। वैसा भारत में ही संभव‌ है। जहॉं स्वयं को आसानी से विक्टिम दिखाया जा सकता है और यहाॅं का बहुसंख्यक सहज ही क्षमा की मुद्रा में आ जाता है!

पूरी दुनिया में मुसलमान कहीं भी हों। वो नैरेटिव की लड़ाई जीत जाते हैं।

हमास ने इज़रायल पर आतंकी हमला किया। दुनियाभर की लिबरल-लाॅबी मौन थी। भारत में भी। इज़रायल ने पलटवार किया है। अब बहुत संभव है कि रुदन आरंभ हो और सुचिंतित एंगल से खींची तस्वीरें और भावुक वीडियो यहाॅं छा जाऍं!

त्रासद विभाजन, मालाबार, डायरेक्ट एक्शन-डे और अनवरत सांस्कृतिक हमलों के बाद भी भारत के बहुसंख्यक शोषक हैं, साम्प्रदायिक हैं और वो पीड़ित। और आत्मग्लानि में डूबा बहुसंख्यक "किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है" पर आहें भरता है और ताली पीटता है। हम सबने यही किया है।

यही तो नैरेटिव है मेरे सेकुलर भाई!

07/10/2023

Yogendra Yadav on Rahul Gandhi, Caste census, Bharat Jodo Yatra and many more. Now streaming on YouTube.

श्री योगेन्द्र यादव से जब भी मिला उन्हें इतना ही शांत, धीर और विनम्र पाया। राजधानी की भागदौड़ हो भले राजनीतिक कशमकश। वो ...
06/10/2023

श्री योगेन्द्र यादव से जब भी मिला उन्हें इतना ही शांत, धीर और विनम्र पाया। राजधानी की भागदौड़ हो भले राजनीतिक कशमकश। वो सदैव आत्मीयता से मिले। मेरी संभवतः यह उनसे तीसरी या चौथी भेंट होगी। योगेन्द्र जी के सानिध्य में ठहराव है। अनुभव की ऑंच पर पकी गुरबत है। और शोर से दूर शांति है।

अपने शो योगेन्द्र जी आए। क़रीब 50 मिनट अनेक विषयों पर बातचीत हुई। यह एपिसोड आज शाम 7 बजे अपने यूट्यूब पर अपलोड हो जाएगा। योगेन्द्र जी जब बोलते हैं तो कमरे का तापमान माइनस में चला जाता है।‌ कभी-कभी अचरज होता है कि इस ज़माने में इतनी मधुरता कैसे बचाए रख पाते होंगे? कभी तो सब्र का बाॅंध टूटता होगा? नहीं मालूम।

टीवी, अख़बार या सोशल मीडिया पर जिन लोगों को हम फॉलो करते हैं, हमारे ज़ेहन में उनकी एक विशिष्ट छवि निर्मित हो जाती है। और जब हम उनसे साक्षात् मिलते हैं तो बहुत संभव है कि हमारी बनाई वह छवि बिखर जाए, मिट्टी में मिल जाए। किंतु योगेन्द्र जी को जब टीवी पर सुना, सोशल मीडिया पर फॉलो किया और जैसा मैंने उनको अपने चित्त में बसाया, यक़ीन मानिए जब मैं उनसे मिला तो वो मेरी कल्पना से भी कहीं बड़े थे। और उनसे मिलने की इच्छा सदैव बनी रही। वो अपनी विद्वत्ता से डराते नहीं हैं। उनके पास बैठकर बतियाने में सुकून है। कितने ऐसे नेता होंगे जो ऐसे होंगे?

मैं उनकी राजनीति से इतर उनसे प्रेम करता हूॅं। बहुत संभव है कि मैं उनसे कहीं असहमत हो जाऊॅं। लेकिन यह स्पेस भी योगेन्द्र जी देते हैं। मुझे नहीं मालूम कि उनको इतिहास किस तरह याद करेगा। लेकिन इतना अवश्य हो, इतिहास का वह पन्ना उनकी मानिंद कोमल हो। सुंदर हो। सदाशय हो।

[कुमार श्याम]

सनातन, हिंदू धर्म, वेद एवं उपनिषद् आदि का निरंतर अध्ययन एवं उससे निर्मित गहन समझ के धनी आचार्य श्री अंकुर आर्य से इधर तस...
05/10/2023

सनातन, हिंदू धर्म, वेद एवं उपनिषद् आदि का निरंतर अध्ययन एवं उससे निर्मित गहन समझ के धनी आचार्य श्री अंकुर आर्य से इधर तसल्लीबख़्श चर्चा हुई। यह बातचीत आपके लिए भी रिकॉर्ड कर लाया हूॅं। शीघ्र ही आप इसे में सुन पाऍंगे।

एक लाख की ख़ुशी, आपके संग, आपके लिए। महज़ दस दिनों में इंस्टाग्राम पर हम एक लाख हो गए। आपके इस अथाह स्नेह और आकाशभर आशीष...
24/09/2023

एक लाख की ख़ुशी, आपके संग, आपके लिए। महज़ दस दिनों में इंस्टाग्राम पर हम एक लाख हो गए। आपके इस अथाह स्नेह और आकाशभर आशीष के समक्ष भावविह्वल हूॅं। इनबॉक्स में आए सैंकड़ों संदेश और हजारों कमेंट्स से होकर गुजरा तो एहसास हुआ कि आप किस शिद्दत से चाह रहे हैं। इतना ही कह सकता हूॅं, यह अपूर्व आशीष बनाए रखिएगा। मैं अपना मूल स्वर सदैव जीवित रखूॅंगा। बहुत आभार।

/आपका श्याम

Yogendra Yadav on The Kumar Shyam Show. Ask your questions!!
21/09/2023

Yogendra Yadav on The Kumar Shyam Show. Ask your questions!!

Thank you for your support and love.
18/09/2023

Thank you for your support and love.

15/09/2023

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति से दोस्ती कैसे हुई?

इंस्टाग्राम पर भी आ जाओ दोस्तो! वहाॅं मैं बिहाइंड द सीन, रील और कुछ तस्वीरें साझा करता हूॅं। आपका भी जुड़ने का मन है तो ...
14/09/2023

इंस्टाग्राम पर भी आ जाओ दोस्तो! वहाॅं मैं बिहाइंड द सीन, रील और कुछ तस्वीरें साझा करता हूॅं। आपका भी जुड़ने का मन है तो इस लिंक पर क्लिक करके फ़ॉलो कर लो-

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