20/06/2024
भारतीय संगीत में आध्यात्मिकता स्रोत भारतीय संगीत में आध्यात्मिकता स्रोत
Raagparichay
Thu, 20/06/2024 - 14:00
भारतीय संगीत मूल रूप में ही आध्यात्मिक संगीत है। भारतीय संगीत को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माना है तो कहीं साक्षात ईश्वर माना गया है। अध्यात्म अर्थात व्यक्ति के मन को ईश्वर में लगाना व व्यक्ति को ईश्वर का साक्षात्कार कराना अध्यात्म कहलाता है संगीत को अध्यात्मिक अभिव्यक्ति का साधन मानकर संगीत की उपासना की गई है। संगीत को ईश्वर उपासना हेतु मन को एकाग्र करने का सबसे सशक्त माध्यम माना गया है। वेदों में उपासना मार्ग अत्यंत सहज तथा ईश्वर से सीधा सम्पर्क स्थापित करने का सरल मार्ग बताया है। संगीत ने भी उपासना मार्ग को अपनाया है।
भारतीय संस्कृति सुजलाम, सुफलाम एवं शस्यश्यामलाम जैसी विशेषताओं से विश्व में प्रसिद्ध है। और आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी एवं मूल विशेषता है। भारत का इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि आज भारतीय संस्कृति जीवित है। भारतीय संस्कृति आज जीवित है वह आध्यत्मिक भावना और आस्था के कारण है। भारत पर बार-बार आक्रमण होने के कारण भारतीय संस्कृति का ह्रास होने पर भी वह पुनः प्रतिष्ठित और विकसित हुई है। यहां यह कहना आवश्यक होगा कि भारतीय संस्कृति के उत्थान में संगीत ने प्रमुख भूमिका निभाई है।
भारतीय संगीत का उदेश्य मानव की चंचल वृतियों को शांत करना, ईश्वरीय भावना को उन्नत करना, परमानन्द तथा विश्व कल्याण अर्थात सर्वे भवन्तु सुरवीना व वसुधैव कटुम्बकम् की भावना को सृदृढ़ करना है। भारत के ऋषि मुनियों ने संगीत को ईश्वर प्राप्ति का सबसे उत्तम तथा सरल साधन माना है। इसलिए कहा भी गया है :-
वीणा वादन तत्वक्षः श्रुति जाति विशारदः।
तालज्ञश्या प्रयासेन मोक्षमार्गं निगच्छतिः॥
अर्थात : वीणा वादन करने वाला, श्रुति व जाति अर्थात स्वरों को जानने वालो तथा ताल वादन के अभ्यास में प्रयत्नशील व्यक्ति मोक्षमार्ग की ओर बढ़ जाता है।
भारत में आनन्द व परमानन्द की प्राप्ति हेतु संगीत का प्रयोग दार्शनिकों, योगियों ओर भक्तों ने किया है। आम जनता ने भी संगीत को धार्मिक व सामाजिक उत्सवों तथा व्यक्तिगत मनोरंजन का साधन बनाया। लेकिन इन स्तरों में संगीत का लक्ष्य आध्यत्मिकता ही रहा। संगीत गायन वादन व नृत्य का समावेश है। गायन, वादन और नृत्य का प्रधान लक्ष्य है। आत्मसन्तोष, आत्म-आनन्द व परमानन्द की प्राप्ति कराना। संगीत इस चरम आनन्द और पूर्ण पार्थिव अवस्था का अनुभव कराता है। संगीत का ध्येय भव-बाधाओं से मुक्ति, आत्मा का परमात्मा से मिलन, परमशक्ति तथा मोक्ष प्राप्त करना ही मुख्य ध्यये माना गया है। संगीत में ईश्वर से साक्षात्मकार करने की असीम शक्ति है। जिसका अनुभव भारत के ऋषि-मुनियों व योगियों ने किया है।
संगीत मानव की चंचल मनवृतियों को नियंत्रित करता है। संगीत के स्वर व लय मन को एकाग्रत करके इतना अधिक लीन तथा स्थिर कर देते हैं कि हृदय की समस्त चंचल वृतियां शांत होकर, आत्मा को परमात्मा में लीन करा देती है। भारत के गायकों, वादकों और नर्तकों ने संगीत की आत्मा को पहचाना है। जीवन रूपी संगीत ही नाद ब्रह्म व मां सरस्वती की वीणा है। जिसके स्वरों में विश्व के आनन्द की समस्त धाराएं मूर्त रूप ग्रहण करती है। भारतीय संगीत में सात विशिष्ट स्वर हैं। सा, रे, ग, म, प, ध, नि । इन सात स्वरों के विभिन्न प्रकारके समायोजन से विभिन्न रागों के रूप बने और इन रागों के गायन वादन में उत्पन्न विभिन्न ध्वनि तरंगों का परिणाम मानव, पशु, प्रकृति सब पर पड़ता है इसका भी बहुत सूक्ष्म निरीक्षण हमारे यहां किया गया है। ऐसे ही कुछ उदाहरण यहां प्रस्तुत हैं। पहला उदाहरण-
प्रसिद्ध संगीतज्ञ पं0 ओंकार नाथ ठाकुर 1933 में फ्लोरेन्स (इटली) में आयोजित अखिल विश्व संगीत सम्मेलन में भाग लेने गए। उस समय मुसोलिनी वहां का तानाशाह था। उस समय में मुसोलिनी से मुलाकात के समय पंडित जी ने भारतीय रागों के महत्व के बारे में बताया। इस पर मुसोलिनी ने कहा, मुझे कुछ दिनों से नींद नहीं आ रही है। यदि आपके संगीत में कुछ विशेषता हो तो बताइए। इस पर पं0 ओंकार नाथ ठाकुर ने तानपुरा लिया और राग पूरिया गाने लगे। कुछ समय के अंदर मुसोलिनी को प्रगाढ़ निद्रा आ गई। बाद में उसने भारतीय संगीत की भूटि-भूटि प्रशंसा की तथा रॉयल एकेडमी ऑफ म्यूजिक के प्राचार्य को पंडित जी के स्वर एवं लिपि को रिकार्ड़ करने का आदेश दिया। दूसरा उदाहरण - पांंिडचेरी स्थित श्री अरविंद आश्रम में श्रीमां ने एक प्रयोग किया। एक मैदान में दो स्थानों पर एक ही प्रकार के बीच बोये गये तथा उनमें से एक के आगे पॉप म्यूजिक बजाया और दूसरे के आगे भारतीय संगीत।
परन्तु आश्चर्य यह था कि जहां पॉप म्यूजिक बजता था वह पौधा असंतुलित तथा उसके पते कटे फटे थे। जहां भारतीय संगीत बजता था, वह पौधा संतुलित तथा उसके पते पूर्ण आकार के विकसित थे। यह देख कर श्री माँ ने कहा, दोनों संगीतों का प्रभाव मानव के आन्तरिक व्यक्तित्व पर भी उसी प्रकार पड़ता है। जिस प्रकार इन पौधों पर दिखाई देता है। हमारे यहां विभिन्न रागों के गायन व वादन के परिणाम के अनेक उल्लेख प्राचीन काल से मिलते हैं। सुबह, शाम, हर्ष, शोक, उत्साह, करूणा व भिन्न-भिन्न प्रसंगों के भिन्न-भिन्न राग है। अलग अलग रागों का प्रभाव भी अलग-अलग है जैसे :- दीपक राग से दीपक जलना और मेघ मल्हार से वर्षा होना आदि उल्लेख मिलते हैं।
संगीत आत्मा की सात्विक खुराक है। ब्रह्म के परम पवित्र प्रणव नाद ओंकार (ऊँ) की उत्पत्ति सृष्टि के साथ मानी गई है। भारतीय संगीत के सात स्वर न केवल हमारी शारीरिक तंत्रिकाओं को प्रभावित करते हैं , बल्कि पाशविक वृतियों का दमन भी करते हैं और हमारे अन्दर अध्यात्मिक एवं सात्विक विचारों का संचार भी करते है। भारत के योगियों ने सात स्वरों की उत्पति मानव शरीर के सात यौगिक चक्रों से मानी है। जब स्वरों को गाना बजाया जाता है तो स्वरों में जो आन्दोलन अलग-अलग निश्िचत संख्या में हो…
भारतीय संगीत मूल रूप में ही आध्यात्मिक संगीत है। भारतीय संगीत को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माना है तो कहीं साक्षात ई...