संस्कार सबसे बड़ी पूँजी

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संस्कार सबसे बड़ी पूँजी Inspirational , Motivational,Religious and Spiritual stories And Poetries.

16/04/2024

*जो जैसा दिखता है जरूरी नहीं की वो वैसा ही हो,*
*काली दाल के सिर्फ छिलके ही काले होते हैं....!*

*बोलते वक्त आप अपने पुराने ज्ञान को दोहराते हैं परन्तु सुनते वक़्त आप नया ज्ञान अर्जित करते हैं इसलिए ….. बोलें कम और सुने ज्यादा !!!*

*ज्ञानी होने से शब्द समझ में* *आने लगते हैं,और अनुभवी होने*
*से अर्थ.*

*जिंदगी तो हर कोई जी लेता है..बात तो तब है जब जीवन उदाहरण बने ।*

*जय हो*

08/03/2024

शिव उठत, शिव चलत, शिव शाम-भोर है !
शिव बुध्दि, शिव चित, शिव मन विभोर है !!
शिव रात्रि, शिव दिवस, शिव स्वप्न शयन है !
शिव काल, शिव कला, शिव मास-अयन है !!
शिव शब्द, शिव अर्थ, शिवहि परमार्थ है !
शिव कर्म, शिव भाग्य, शिवहि पुरूषार्थ है !!
शिव स्नेह, शिव राग, शिवहि अनुराग है !
शिव कली, शिव कुसुम, शिव ही पराग है !!
शिव भोग, शिव त्याग, शिव तत्व ज्ञान है !
शिव भक्ति, शिव प्रेम, शिवहि विज्ञान है !!
शिव स्वर्ग, शिव मोक्ष, शिव परम साध्य है !
शिव जीव, शिव बह्मा, शिवहि आराध्य है !!
साक्षात् शिव देवाय नमो नमः
ॐ शिवोहम्............
" हर हर महादेव "
भगवान् शिव आपकी हर मनोकामना पूरी करें।

हर हर महादेव

17/01/2024

क्या आपको पता है?
कि किवाड़ की जो जोड़ी होती है,
उसका एक पल्ला पुरुष और,
दूसरा पल्ला स्त्री होती है।
ये घर की चौखट से जुड़े-जड़े रहते हैं।
हर आगत के स्वागत में खड़े रहते हैं।।
खुद को ये घर का सदस्य मानते हैं।
भीतर बाहर के हर रहस्य जानते हैं।।
एक रात उनके बीच था संवाद।
चोरों को लाख-लाख धन्यवाद।।
वर्ना घर के लोग हमारी,
एक भी चलने नहीं देते।
हम रात को आपस में मिल तो जाते हैं,
हमें ये मिलने भी नहीं देते।।
घर की चौखट से साथ हम जुड़े हैं,
अगर जुड़े जड़े नहीं होते।
तो किसी दिन तेज आंधी-तूफान आता,
तो तुम कहीं पड़ी होतीं,
हम कहीं और पड़े होते।।
चौखट से जो भी एकबार उखड़ा है।
वो वापस कभी भी नहीं जुड़ा है।।
इस घर में यह जो झरोखे,
और खिड़कियाँ हैं।
यह सब हमारे लड़के,
और लड़कियाँ हैं।।
तब ही तो,
इन्हें बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं।
पूरे घर में जीवन रचा बसा रहे,
इसलिये ये आती जाती हवा को,
खेल ही खेल में,
घर की तरफ मोड़ देते हैं।।
हम घर की सच्चाई छिपाते हैं।
घर की शोभा को बढ़ाते हैं।।
रहे भले कुछ भी खास नहीं,
पर उससे ज्यादा बतलाते हैं।
इसीलिये घर में जब भी,
कोई शुभ काम होता है।
सब से पहले हमीं को,
रँगवाते पुतवाते हैं।।
पहले नहीं थी,
डोर बेल बजाने की प्रवृति।
हमने जीवित रखा था जीवन मूल्य,
संस्कार और अपनी संस्कृति।।
बड़े बाबू जी जब भी आते थे,
कुछ अलग सी साँकल बजाते थे।
आ गये हैं बाबूजी,
सब के सब घर के जान जाते थे ।।
बहुयें अपने हाथ का,
हर काम छोड़ देती थी।
उनके आने की आहट पा,
आदर में घूँघट ओढ़ लेती थी।।
अब तो कॉलोनी के किसी भी घर में,
किवाड़ रहे ही नहीं दो पल्ले के।
घर नहीं अब फ्लैट हैं,
गेट हैं इक पल्ले के।।
खुलते हैं सिर्फ एक झटके से।
पूरा घर दिखता बेखटके से।।
दो पल्ले के किवाड़ में,
एक पल्ले की आड़ में,
घर की बेटी या नव वधु,
किसी भी आगन्तुक को,
जो वो पूछता बता देती थीं।
अपना चेहरा व शरीर छिपा लेती थीं।।
अब तो धड़ल्ले से खुलता है,
एक पल्ले का किवाड़।
न कोई पर्दा न कोई आड़।।
गंदी नजर ,बुरी नीयत, बुरे संस्कार,
सब एक साथ भीतर आते हैं ।
फिर कभी बाहर नहीं जाते हैं।।
कितना बड़ा आ गया है बदलाव?
अच्छे भाव का अभाव।
स्पष्ट दिखता है कुप्रभाव।।
सब हुआ चुपचाप,
बिन किसी हल्ले गुल्ले के।
बदल किये किवाड़,
हर घर के मुहल्ले के।।
अब घरों में दो पल्ले के,
किवाड़ कोई नहीं लगवाता।
एक पल्ली ही अब,
हर घर की शोभा है बढ़ाता।।
अपनों में नहीं रहा वो अपनापन।
एकाकी सोच हर एक की है,
एकाकी मन है व स्वार्थी जन।।
अपने आप में हर कोई,
रहना चाहता है मस्त,
बिल्कुल ही इकलल्ला।
इसलिये ही हर घर के किवाड़ में,
दिखता है सिर्फ़ एक ही पल्ला!!

*जीवन को इतनी निष्ठा, दिव्यता एवं उच्चता के साथ जिया जाना चाहिए कि हमारा प्रत्येक कर्म ही धर्म बन जाए। धर्म को अलग से कर...
16/01/2024

*जीवन को इतनी निष्ठा, दिव्यता एवं उच्चता के साथ जिया जाना चाहिए कि हमारा प्रत्येक कर्म ही धर्म बन जाए। धर्म को अलग से करने के वजाय प्रत्येक कर्म को धर्ममय बनाना आना चाहिए।*

*जीवन बीमा के इस युग में आज हमने धर्म को भी इस दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है। साल में एक धार्मिक आयोजन या अनुष्ठान रुपी किस्त जमा कर, साल या छ: महीने के लिए निश्चिन्त हो जाते हैं।*
*हमारा व्यवहार, आचरण, हमारा बोलना, सुनना, देखना, सोचना सब इतना लयबद्ध और ज्ञानमय हो कि ये सब अनुष्ठान जैसे लगने लग जाएँ। धर्म के लिए अलग से कर्म करने की आवश्यकता नहीं है।*
*!!!...सज्जनों की संगत ही जीवन में सुख भर देती है, जैसे फूलों से गुजरती हवा भी हर जगह खूशबू भर देती है ...!!!*

जय श्री राम
जय सिया राम
जय हनुमान

जय श्री रामइतिहास रचने की ओर आगाज हो गया।ये दीपावली नहीं बल्कि दीपोत्सव की सुनामी होगी।हम सभी परम सौभाग्य शाली हैं जो इस...
13/01/2024

जय श्री राम
इतिहास रचने की ओर आगाज हो गया।
ये दीपावली नहीं बल्कि दीपोत्सव की सुनामी होगी।
हम सभी परम सौभाग्य शाली हैं जो इस पल के साक्षी बनेंगे।
लेकिन साथ ही सभी को यह भी ध्यान रखना होगा कि
राम के चरित्र को पूजना है और उसका अनुसरण करना है या सिर्फ श्री राम के चित्र या मूर्ति को ही पूजना है, ये हमारे ऊपर निर्भर करता है.
वैसे भी
ईश्वर चित्र में नहीं
चरित्र में बसता है
अपनी आत्मा को मंदिर बनाइये.
जय श्री राम.

09/01/2024

खिलाफ कितने है,
फ़र्क़ नहीं पड़ता,
साथ जितने है,
वो लाज़वाब है

05/01/2024

Sensational....Inspirational

05/01/2024

*बोलना और प्रतिक्रिया*
*करना जरूरी है,लेकिन*
*संयम और सभ्यता का*
*दामन नहीं छूटना चाहिये...!!*
*आजाद रहिये विचारों से...*
*परन्तु*
*बंधे रहिये संस्कारों से...!!*

05/01/2024
02/01/2024

मेरे परिवार की तरफ से आपको परिवार सहित नव वर्ष 2024 की हार्दिक शुभंकामनाऐ।

*"व्यवहार" अगर अच्छा है तो.....*
*"मन" ही मन्दिर है।*
*"आहार" अगर अच्छा है तो........*
*"तन" ही मंदिर है।*
*"विचार" अगर अच्छे हैं तो.........*
*"मष्तिष्क" ही मंदिर है।*
*यह तीनों अगर अच्छे हैं तो.......*
*"जीवन" ही "मंदिर" है।*
*"जीवन" अमूल्य है इसको सुरक्षित रखने के लिए स्वक्षता का विशेष ध्यान रखें, खुद को औरों को सुरक्षित रखें*
_*"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया "*_
*की प्रार्थना करते रहें*
*अच्छा सोचें*
*अच्छा कार्य करें*
*सब अच्छा ही अच्छा होगा*
*सबका जीवन मङ्गलमय हो!* आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए नव वर्ष 2024 आपके लिए शुभ मगंलमय हो।

नया वर्ष 2024 मेरे से जुडे हुए आप सभी को  ढेरों शुभकामनाओं के साथ मुबारक हो  ।  मुबारक सफल  फलदाई तब होता है जब आपसी प्र...
31/12/2023

नया वर्ष 2024 मेरे से जुडे हुए आप सभी को ढेरों शुभकामनाओं के साथ मुबारक हो ।
मुबारक सफल फलदाई तब होता है जब आपसी प्रेम भाईचारा त्याग समर्पण विश्वास शील दया क्षमा सहयोग संतोष भरपूर हो
किसी भी इंसान के प्रति उपरोक्त मानवीय संवेदना के बिना आपकी किसी को दी गई जबानी मुबारक बाद शुभंकर नहीं हो सकती । मानव मानव के बीच मनुष्यता एवं अन्य जीवों के प्रति दया भाव के गुणों को अपनाने से वर्ष ही नहीं हर क्षण हर पल सुखद फलदाई और सकारात्मक शुभकामनाओं से लबरेज होगा ।
द्रष्टि शुभ होगी तो मन विचार भी शुभ होंगे और किसी के प्रति किया गया कर्म भी शुभ होगा
जबानी शुभकामनाएं देने के साथ नये साल से ह्रदय स्पर्शी ताल्लुकात त्याग,सहयोग समर्पण संतोष भी अपनाने पर विचार कर नव वर्ष को सही मायने में शुभंकर बनाएं

13/11/2023

*राम को तो आना ही पड़ेगा*

मेरी झोपड़ी के भाग आज जाग जायेंगे .....राम आयेंगे ...।

सुबह से यही भजन सुन रहा। एक दो चार आठ बार।हर बार वही मधुरता। राम आयेंगे...राम आयेंगे। एक एक पंक्ति को सुनते हुए एहसास होता है राम का आना क्या है...? यह विश्वास है। यह उम्मीद है। यह आशा है। राम आयेंगे एक सत्य है। राम आयेंगे एक चेतावनी है। राम आयेंगे एक प्रारब्ध है।

संतान के सुख से वंचित मां कौशल्या कितने दिन ये सोच सोच कर विचलित हुई होंगी कि राम आयेंगे। राम आयेंगे तो भरेगी मेरी सुनी कोख। नारी को ईश्वर को जन्म देने का सौभाग्य मिलेगा। वह जननी बनेगी। राजा दशरथ श्रवण के माता पिता का श्राप सुनकर घबराने से ज्यादा अभिभूत हुए होंगे कि हां पुत्र वियोग होगा। यानी पुत्र होगा। यानी राम आयेंगे। ऋषि ब्राह्मण ऐसा ही करते हैं, उनके दंड, उनके श्राप भी ईश्वर कृपा के साक्षी बनते हैं।

यज्ञ करते ऋषि मुनियों को भी प्रतीक्षा रही होगी कभी इन यज्ञों का फल मिलेगा। कभी राम आयेंगे। यज्ञ में अस्थि डालने वाले दैत्य भी सोचते होंगे कभी मुक्ति मिलेगी हमें, कभी राम आयेंगे। इस दृष्टि से देखता हूं तो दोनो के कर्म एक दूसरे के पूरक लगते हैं। दोनो के संयुक्त प्रयास से विधाता आते हैं। राम आए तो ऋषियों को यज्ञ का फल मिला। परमात्मा का दर्शन। लेकिन राम आए राक्षसों को दंड देने, उन्हें मुक्ति देने।

पाषाण बनी अहिल्या को भी उम्मीद थी राम आयेंगे। अरे गौतम के आशीर्वाद से बड़ा निकला उनका श्राप। राम आए। अहिल्या को दर्शन देने। क्या पता गौतम श्राप न देते तो राम आते ही न। केवट को पता था राम आयेंगे। उसके नाव की सवारी करने। गंगा को पता था आयेंगे। सबको पवित्र करने का सामर्थ्य बिना परम पवित्र राम से मिले कहां आता। सुतीक्ष्ण, अगस्त्य सबको ज्ञात था। मेरी कुटिया के भाग्य कभी खुलेंगे।

गुरुदेव के कहने पर गलियां बुहारती मां शबरी रटती रहीं राम आयेंगे। फूलों को चुनती। उन्हें बिछाती। एक आश। एक विश्वास। राम आयेंगे। उन्हें बेर खिलाऊंगी। कांटे वाले बेर को ही यह सुख मिलना था। प्रभु ने भोग लगाया तो भोलेनाथ ने सर पर धारण कर लिया। जलाभिषेक में बेर चढ़ने लगा।

सुग्रीव ने जैसे कष्ट सहे। उन्हें भी आशा थी। अब आयेंगे परमात्मा। उद्धार करने। बालि का जैसे अभिमान बढ़ा। उसे भी पता लग ही गया होगा। चल पड़े हैं मद चूर करने वाले। समुद्र को जितना दंभ था। उसे भी पता था राम उसे बांधने आ रहे हैं। असंभव को संभव तो परमात्मा ही करते हैं।

पक्षीराज जटायु इसीलिए तो लड़ गए। दे दिया प्राण। राम आयेंगे। गोद मिलेगी। जो सुख दशरथ को न मिला वह जटायु को मिल गया। जटायु की प्रतीक्षा बड़ी रही होगी। दसरथ ने जगदम्बा को जाने को कहा था। जटायु ने जगदम्बा को रोकने की कोशिश की।

अत्याचारी रावण को भी लगता रहा होगा कि राम आयेंगे। मुझे मुक्ति देंगे। अशोक वाटिका में बैठी मां जानकी को हमेशा पता था कि प्रभु आयेंगे और हर क्षण वहां पहरेदारी कर रही राक्षसियो को भी ज्ञात था की राम आयेंगे।

लात पड़ते ही विभीषण को पता लग गया। राम आयेंगे।
नंदीग्राम में बैठे महात्मा भरत जी को पता था करूणानिधान 14 साल बाद आयेंगे। अवध के हर नर नारी पशु पक्षी को पता था प्रभु आयेंगे।

प्रभु प्रतीक्षा का फल हैं। हर प्रतीक्षा के परिणाम के रूप में प्रभु आते हैं। अयोध्या में जले हर दीप की प्रतिक्षा पूर्ण हुई तो प्रभु आए। हर गीत, हर संगीत, हर लय, हर धुन है कि राम आयेंगे।

राम दुख को सहते हुए की गई प्रतीक्षाओ का फल हैं। सहने वालों, झेल रहे लोगों!

एक दिन तुम्हारे संघर्ष बड़े खूबसूरत ढंग से तुमसे टकरायेंगे ...... राम आयेंगे।

पाप करने वाले खुद सबक सीख जायेंगे.....राम आयेंगे।

भारत में जल रहे हर दीप की प्रतीक्षा पूर्ण होगी...राम आयेंगे।

*शुभ दीपोत्सव*

11/08/2023

एक उड़ते हुए गुब्बारे पे क्या खूब
लिखा था...
वो जो बाहर है वह नहीं,
वह जो भीतर है वही आपको ऊपर
ले जाता है।

14/05/2023

शहर के एक अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये बिना, बड़ी लग्न से पेड़ - पौधों की काट छाँट में लगा था कि तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज़ सुनाई दी, "गंगादास! तुझे प्रधानाचार्या जी तुरंत बुला रही हैं।"
शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और चल दिया, तेजी से प्रधानाचार्या के कार्यालय की ओर।
सोच रहा था कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज उसको प्रधानाचार्या महोदया ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।
वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या ग़लती हो गयी। वह इसी चिंता के साथ प्रधानाचार्या के कार्यालय पहुँचा......
"मैडम, क्या मैं अंदर आ जाऊँ? आपने मुझे बुलाया था।
"हाँ। आओ और यह देखो" प्रधानाचार्या महोदया की आवाज़ में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी*
"पढ़ो इसे" प्रधानाचार्या ने आदेश दिया।
"मैं, मैं, मैडम! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता मैडम!" गंगादास ने घबरा कर उत्तर दिया।
"मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ मैडम यदि कोई गलती हो गयी हो तो। मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ। क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इज़ाज़त दी। मुझे कृपया एक और मौक़ा दें मेरी कोई ग़लती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूंँगा।" गंगादास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था।

वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधानाचार्या के कार्यालय में पहुँची बहुत ही लंबे हो गए थे गंगादास के लिए। सोच रहा था कि क्या उसकी बिटिया से कोई ग़लती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रहीं। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी।
कक्षा-अध्यापिका के पहुँचते ही प्रधानाचार्या महोदया ने कहा, "हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब ये मैडम इस पेपर में जो लिखा है उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएँगी, ग़ौर से सुनो।"
कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया,
"आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा। तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।"
उसके बाद कक्षा- अध्यापिका ने पेपर पढ़ना शुरू किया।
मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसीं। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे मेरे परिवार के जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूँ तो मेरे परिवार के वे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा - दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी
एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा - दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।"
"आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।"
"मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख - सुविधाओं का ध्यान रखा और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।""
"यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।"
"यदि दयाभाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं।"
यदि त्याग,माँ को परिभाषित करता है तो मेरे* **पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।"
"यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।"
*आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएँ दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली हैं, मेरे पिता हैं।"
मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया।
धन्यवाद
आख़िरी शब्द पढ़ते - पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्या के कार्यालय में शांति छा गयी थी।
इस शांति में केवल गंगादास के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बग़ीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला न कर सकी पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज़ को पिता के आँसुओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था।
उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा।
प्रधानाचार्या ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा,//"गंगादास तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 10/10 नम्बर दिए गए है। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है। हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में बड़े ज़ोर - शोर से मना रहे हैं। इस दिवस पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है। यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है। यह सिद्ध करता है कि आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए। साथ ही यह अनुशंषा करता है उस विश्वाश का जो विश्वास आपकी बेटी ने आप पर दिखाया। हमें गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा पिता हमारे विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची का पिता है जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। गंगादास हमें गर्व है कि आप एक माली हैं और सच्चे अर्थों में माली की तरह न केवल विद्यालय के बग़ीचे के फूलों की देखभाल की बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा ख़ुशबूदार बनाकर रखा जिसकी ख़ुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे?"*
रो पड़ा गंगादास और दौड़ कर बिटिया की कक्षा के बाहर से आँसू भरी आँखों से निहारता रहा , अपनी प्यारी बिटिया को।

14/10/2022

दौलत के कम ज्यादा होने से
फर्क नहीं पड़ता इंसान अपने
किरदार से बादशाह होना चाहिए!

05/08/2022

🙇‍♂️!! आस्था की कमी !!🙇‍♀️

एक दिन कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर ने विद्यर्थियों से पूछा, कि इस संसार में जो कुछ भी है उसे भगवान ने ही बनाया है न ? सभी ने कहा, हां भगवान ने ही बनाया है.

प्रोफेसर ने कहा, कि इसका अर्थ ये हुआ कि बुराई भी भगवान की बनाई हुई वस्तु ही है.

प्रोफेसर ने इतना कहा तो एक विद्यार्थी उठ खड़ा हुआ और उसने कहा, कि इतनी शीध्रता से इस निष्कर्ष पर मत पहुंचिये सर.

प्रोफेसर ने कहा, क्यों? अभी तो सबने कहा है कि सबकुछ भगवान का ही बनाया हुआ है फिर तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ?

विद्यार्थी ने कहा कि सर, मैं आपसे छोटे-छोटे दो प्रश्न पूछूंगा. उसके पश्चात् आपकी बात भी मान लूंगा. प्रोफेसर ने कहा, पूछिये.

विद्यार्थी ने पूछा, सर क्या संसार में ठंड का कोई अस्तित्व है ? प्रोफेसर ने कहा, बिल्कुल है. हम ठंड को महसूस करते हैं.

विद्यार्थी ने कहा, नहीं सर, ठंड कुछ है ही नहीं. ये वास्तव में गर्मी की अनुपस्थिति का आभास भर है. जहां गर्मी नहीं होती, वहां हम ठंड का आभास करते हैं. प्रोफेसर चुप रहे.

विद्यार्थी ने फिर पूछा, सर क्या अंधकार का कोई अस्तित्व है ? प्रोफेसर ने कहा, बिल्कुल है. रात को अंधकार होता है.

विद्यार्थी ने कहा, नहीं सर, अंधेरा कुछ होता ही नहीं. ये तो जहां रोशनी नहीं होती वहां अंधेरा होता है. प्रोफेसर ने कहा, तुम अपनी बात आगे बढ़ाओ.

विद्यार्थी ने फिर कहा, सर आप हमें केवल लाइट एंड हीट (प्रकाश और ताप) ही पढ़ाते हैं. आप हमें कभी डार्क एंड कोल्ड (अंधेरा और ठंड) नहीं पढ़ाते. फिजिक्स में ऐसा कोई विषय है ही नहीं. सर, ठीक इसी तरह परमात्मा ने केवल अच्छा-अच्छा बनाया है. अब जहां अच्छा नहीं होता, वहां हमें बुराई दिखाई पड़ती है. पर बुराई को ईश्वर ने नहीं बनाया. ये केवल अच्छाई की अनुपस्थिति भर है.
*शिक्षा:-*
वास्तव में सृष्टि में कहीं बुराई है ही नहीं. ये तो केवल प्यार, विश्वास और ईश्वर में हमारी आस्था की कमी का नाम है. इसलिए जब और जहां अवसर मिले अच्छाई बांटिए.

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