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(5)

23/11/2024

●कवि पाब्लो नेरूदा की प्रेम कविताएं पढ़ते हुए ये लिखा गया~
ये जग सुंदर लागै जे इश्क़ हो,
जग सारा जरि जावै जे न इश्क़ हो
*नवेन्दु (बकलमखुद) / यहाँ संलग्न वीडियो में लंबा सृजन है प्रेम का। वो प्रेम जो हमारी मुहब्बत, हमारी वैचारिकी और हमारे जीवन संघर्ष का फ़लसफ़ा है।...आपके दुआओं की दरकार होगी।

🔥👩‍🦰  #स्त्री_और_आग 【 कविता में स्त्री विमर्श 】...मैं जब भी आग देखता हूँ तब मुझे स्‍त्रियों के हाथ याद आ जाते हैं— लपट क...
17/11/2024

🔥👩‍🦰 #स्त्री_और_आग 【 कविता में स्त्री विमर्श 】...मैं जब भी आग देखता हूँ
तब मुझे स्‍त्रियों के हाथ याद आ जाते हैं—
लपट की तरह झिलमिलाते हुए
उनकी आँखों के नीचे इकट्ठा हो चुकी कालिख से पता चला
कितने सालों से चूल्‍हे जला रही हैं स्‍त्रियाँ
स्त्री दुनिया की भट्टी के लिए कोयला है

वह घर भर के लिए बदल गई दाल-चावल और रोटी के गर्म फुलकों में
वह मन के लिए बन गई हरा धनिया
देह के लिए बन गई नमक
और रातों के लिए उसने एकत्र कर लिया—
बहुत सारा सुख और आराम

लंबी यात्राओं में वह अचार की तरह साथ रही
जितनी रोटियाँ उसने बेलीं
उससे समझ आया कि यह दुनिया—
कितनी भूखी थी स्‍त्रियों की
जितने छौंक कढ़ाइयों में मारे स्त्रियों ने
उससे पता चला कितना नमक चाहिए था पुरुषों को

सूख चुके कुओं से पता चला
कितनी ठंडक है स्त्री की गर्म हथेलियों में
उसने दुनिया की भूख मिटाई और प्यास भी
उसने दुनिया को गर्म रखा और ठंडा भी किया
इसके ठीक उल्टा जो आग और पानी स्‍त्रियों को मिला अब तक
उसे फूल की तरह स्‍त्री ने उगाया अपने पेट में
और बेहद वात्सल्य से लौटा दिया दुनिया को!

[ #नवीन_रांगियाल की कविता "स्त्री और आग" के कुछ अंश ]
(स्त्रोत: प्रकाशन : #हिन्दवी से साभार)

#अग्नि #स्त्री #औरत #स्त्रीत्व

●क्या छोड़ गईं शारदा? शारदा सिन्हा होने के मायने... ★एक विवेचना ~ खुद से ही खुद में समा गईं आप शारदा सिन्हा... कोई और आपक...
06/11/2024

●क्या छोड़ गईं शारदा? शारदा सिन्हा होने के मायने...
★एक विवेचना ~ खुद से ही खुद में समा गईं आप शारदा सिन्हा... कोई और आपकी जगह ले भी नहीं सकता। आप बनातीं भी कोई तो वो आपके जैसा या आपके गला-कंठ की तरहा हो भी नहीं सकता था। लोक संगीत गायकी के सगरे जगत में आप अकेली थीं तो खुद को ही खुद में समा कर चल दीं। फ़िल्म "मोहब्बतें" के उस लिरिक्स की तरह कि..."हमको हमीं से चुरा लो!"
o 1978 में जब आपके गाये छठ गीत "उग हो सूरुज देव" की पहली बार कोई रिकार्डिंग सामने आई तो लगा कि बिहार समेत पूर्वांचल के वन-प्रांतर में कोई कोकिला गा उठी हो। लोक आस्था के महापर्व छठ में घर-घर और हर नदी-घाट में व्रती स्त्रियों के विराट लोक को आपने सुर दे दिया, आवाज़ दे दी। बड़ी बात तो ये कि माथे पर "दउरा" उठाये पिछड़े और श्रेष्ठ-दबंग सोच का पुरुष समाज भी आपके गीतों को दोहराने लगा। गाने-गुनगुनाने लगा।
o ऐसा और ये सब बिहार, यूपी और हिंदी प्रदेशों के साथ पूरे पूरबी समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक आबोहवा में बड़ा और क्रांतिकारी बदलाव था। आपके गाये छठ गीत ने तुलसी के मानस के राम की तरह आम जन मन को, सौरमंडल के केंद्रीय ताराग्रह सूर्य को "सुरुजमल" में बदल दिया।
o छठी मइया के कथागीतों में आपकी गायकी का किरदार कुछ इस कदर चस्पां हुआ कि आपही उनके लिए जैसे "छठी मइया" हो गईं। आपके रूप, आपका पहनावा, आपके सज श्रृंगार में ललाट की वो बड़ी बिंदी...ये सब रूप भी आपके गाने सुनते या गाते हुए मन-मस्तिष्क में तारी हो जाता।
o शारदा सिन्हा, आपने उस सामंती समाज की बंदिशों और रवायतों में कैद बेटियों को भी जाने-अनजाने बाहर निकाला। गायकी और अपनी सांस्कृतिक प्रतिभा को सिर्फ घर-आंगन, बमुश्किल रेडियो स्टूडियो तक ही प्रतिभावान बेटियों को प्रदर्शन की इजाज़त थीं। आपकी सफलता, लोकप्रियता,संगीत साधना ने वैसे स्त्री समाज की गुमनाम प्रतिभाओं के पंख लगा दिए। आज बिहार, यूपी के गांव-समाज से निकलकर जाने कितनी गायिकाओं की फ़ौज खड़ी हो गई है।
o मराठी, बंगाली सांस्कृतिक समाज के कल्चर से जुदा पूरबी समाज के बंद मन को भी आपकी गायकी ने खोला। आपके गायकी के शील, संस्कार, परिधान और कंटेन्ट (विषय) ने भी बेटियों पर लगे ताले खोलने में अभिभावकों को उत्साहित किया। आपकी पूर्ववर्ती और लोकगायिकी की मनीषी पद्मश्री विन्ध्यवासिनी देवी जी के दौर में उस हद तक नहीं हो पाया था। आप चलीं गई इस जगत को छोड़ कर लेकिन साथ में छोड़ गईं एक बहुत बड़ी लोक विरासत जिस पर इतराता और दंभ भरता रहेगा भारत से लेकर, फिजी, सूरीनाम, मॉरीशस से लेकर एशिया, यूरोप, अमेरिका का पूरबी समाज।
o शारदा सिन्हा ने पूरबी, मैथिल, मगही के समाज के लोक संस्कारों को भी बड़े फ़लक पर अपनी खनकती आवाज़ दी। ज़िश कारण उनके गाये संस्कारगीत, हिंदी लोक साहित्य- संस्कृति के जैसे "इनसाइक्लोपीडिया" बन गये हों। जन्म, जनेऊ, मुंडन, शादी -विवाह, क्या और किस अवसर, नेग, विध-व्यवहार के उन्होंने गीत नहीं गाये।
o यही वज़ह है कि घर-परिवार में कोई सुमंगल का अवसर शारदा सिन्हा बज उठती हैं...उनके कोकिलकंठी स्वरलहरी गूंजने लगती है। परदेस हो या देश या हो विदेश, मॉर्डन सिंगिंग के इयरफोन कान में लगाये झूमते नौजवान बच्चे भी शारदा जी के गाने पर झूम उठते और मगन हो जाते हैं। उनका गांव-घर, शहर, देश, माता-पिता याद आने लगते हैं और छठगीत तो उन्हें भाव-विह्वल कर देता है कि- चलो गांव की ओर!
o शारदा जी, अच्छा नहीं लगा आपका जाना। 72 की उम्र कोई वैसी भी उम्र नहीं थी पर एम्स दिल्ली के मेडिकल बुलेटिन ने बताया कि आपकी बीमारी बड़ी और ख़ास थी। वैसे आप अपने पीछे सदियां गढ़ और छोड़ गई हैं। वे सदियां जिन पर आपकी छाप रहेगी। कहें तो अपने फ़न, अपने अंदाज, खुद के संगीत को लेकर, आज सदियों में समाहित हो गई हैं कोकिला शारदा सिन्हा या यूं कहें तो लोक संगीत की आनेवाली सदियां समाहित रहेंगी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित शारदा में।
◆आप शारदा ही थीं- लोक संस्कृति समाज और सुरप्रेमियों की शारदा-महासरस्वती...छठी मइया!!✒️ 🙏

#छठ #पूर्वी #बिहारकोकिला #लोकगायिका #अलविदा

●ये बच्ची बिहार की है। बुद्ध का बिहार। जहां कहीं भी ये बुद्ध की मूर्ति या प्रतिमा देखती है, बुध्द हस्त-भाव मुद्रा बना कर...
27/10/2024

●ये बच्ची बिहार की है। बुद्ध का बिहार। जहां कहीं भी ये बुद्ध की मूर्ति या प्रतिमा देखती है, बुध्द हस्त-भाव मुद्रा बना कर ध्यान में लीन हो जाती है। नाम है रीत प्रिता। उम्र 7 वर्ष। KG- 2 में पढ़ती है। पटना में रहती है।
रीत प्रिता के मां-बाप बताते है कि जब वह छः-सात महीने की थी, तब से ही घर में रखी बुद्ध की गोल्डन स्टैच्यू के पास चली जाती और उस स्टैच्यू को अपने आलिंगन में ले लेती। स्टैच्यू की आंखें छूती, चुंबन लेती।...
ये बच्ची रीत कहीं घूमने- खेलने भी निकलती है तो कहीं कोई बुध्द प्रतिमा दिख जाए तो वो ठहर जाती है- और बुद्ध में लीन हो जाती है। जब तक उसके मां-पिता उसका ध्यान न तोड़ें। इस तस्वीर को zoom करके बच्ची की भाव मुद्रा और बुद्ध प्रतिमा की ध्यान मुद्रा से मिलाइए, तो आपको पता चलेगा इसकी बुद्ध में तल्लीनता।
क्या कहेंगे इस बच्ची के इस बुद्ध प्रेम पर?

#बुद्धकाबिहार

✒️ बहराइच में धार्मिक झंडे ने प्रेम सदभाव को खून और हिंसा में बदल दिया। क्यों ऐसा होता है कि जिन धर्म और उसके अनुशासन को...
21/10/2024

✒️ बहराइच में धार्मिक झंडे ने प्रेम सदभाव को खून और हिंसा में बदल दिया। क्यों ऐसा होता है कि जिन धर्म और उसके अनुशासन को प्रेम, करुणा और कल्याणकारी कहा जाता है, वही प्रेम-मोहब्बत, भाईचारे के खिलाफ जाल बुनता हुआ सामने आ जाता है। तो क्या धर्म की सत्ता प्रेम की दुश्मन होती आई है। ऐसा है तो क्यों है?
देखने में तो यही आता रहा है कि प्रेम और विज्ञान दो ऐसे सत्य हैं जिनके अंतस्थ में है अंग्रेजी के दो शब्द-- Do It !! हिंदी में ये दो शब्द मिल कर एक हो जाते हैं- करो! एक धर्म और उसकी अपनी सत्ता ऐसी है जो हर दौर में, हर युग में प्रेम और विज्ञान, दोनों का निषेध कर रहा होता है।
धर्मसत्ता का यह निषेध अंततः इंसानी समाज को नफ़रत और अज्ञानता के अंधकूप और आग में झोंक देता है। अपने जाल में समाज को, वह एक प्रेमविहीन भीड़ में बदल देता है। ज्ञान का विज्ञान रूप उसे मंजूर नहीं। वह गैलीलियो तक को निशाने पर ले लेता है। देश में धर्म की राजनीति की ऐसी ही बयार बहायी जा रही। ये सिलसिला रुक नहीं रहा।
चिंता और चिंतन का विषय ये है कि लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की कोशिशों को हमने नहीं रोका तो हम न अपने परिवार से प्रेम करने लायक रहेंगे, न अपने बच्चों से, न पड़ोसी से, न स्त्री से, न समाज से...और होते-होते इस हाल में पहुंच जाएंगे कि अपने देश अथवा राष्ट्र से भी हमारा प्रेम मर जाएगा। नफ़रत को फटकने या धर्म को जाल बुनने से रोकिये-
प्रेम करिये एक-दूजे से-- Do It उस एक गाने के पैग़ाम को भूलिये मत-- इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैग़ाम हमारा !! 💖💞💚
#भीड़तंत्र #लोकतंत्र #लोकतंत्रबनामभीड़तंत्र #सियासत

25/09/2024

बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश में अपनी संतान के स्वस्थ सुखी और दीर्घायु होने की कामना के साथ माँ द्वारा मनाया जाने वाला लोक पर्व और व्रत अनुष्ठान है 'जियुतिया"। इसे बाकी हिंदी प्रदेशों में 'जितिया' के नाम से भी जाना जाता है। पूरबी #लोकसंस्कृति का ये जितिया पर्व एक अहम हिस्सा है। ऐसा पर्व दूसरे देश-समाज में देखने को नहीं मिलता।

#लोकपर्व #जितिया

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