24/03/2023
छोड़ कर यूँ अचानक चली गई तुम अपने राजकुमार को रंक कर गई माँ, मैं अनमोल था तुम्हारे लिए मुझको शून्य का अंक कर गई माँ। आ जा कहीं से लौट कर आँचल की छाँव और अपना दुलार दे ना माँ, आता नहीं है आज भी मुझको ढंग से बाल बनाना आकर फिरसे मेरे बिखरे बाल संवार दे ना माँ। मैंने कभी तेरे बिना चलना सीखा ही नहीं माँ तुझ बिन अब चलूँगा कैसे, धूँप है चारों तरफ़ दिखती तेरे आँचल की छाँव के बिना सहूँगा कैसे। आवाज़ ही नहीं जिस में माँ तुम वो शंख कर गई, छोड़कर अपने राजकुमार को अकेला शून्य का अंक कर गई अंक कर गई।