03/08/2024
निधि अग्रवाल की कविता "नींव" एक औरत के दो रूपों की खूबसूरती को बयां करती है—एक ओर वह भावुक और प्यार से भरी हुई है, तो दूसरी ओर वह मज़बूत और विचारशील है।
🤍 प्रेम की आधारशिला 🤍
कविता में वह बताती हैं कि कैसे एक औरत अपनी भावनाओं को छिपा कर भी अपने परिवार के लिए खड़ी रहती है। वह कहती हैं,
"चाहती हूँ सर रख के कंधे पे रोना मगर मैं कभी रो पाती नहीं हूँ।"
यह पंक्ति हम सभी को यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमारे जीवन में ऐसी कितनी महिलाएं हैं, जो हमें अपने मजबूत रूप में दिखती हैं, लेकिन अंदर से वे भी उतनी ही भावुक होती हैं।
हमारे जीवन की नींव यानी हमारी माँ, बहन, पत्नी, दोस्त, जिनके बिना हमारा जीवन अधूरा है। तो आइए, हम इस नींव को कभी कमजोर न होने दें और इन्हें हर पल यह महसूस कराएँ कि वे हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।
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Nidhi Jain