08/01/2018
यकीन मानिए, यह किताब आपको नकारात्मक विचारों से दूर निकाल कर सकारात्मक सोच की ओर ले जाएगी।
आज के तनाव भरे जीवन में आपके पास अपनी अच्छाइयों और अपने गुणों की तरफ़ ध्यान देने का समय ही नहीं है। आपको यह ज्ञात भी नहीं होगा कि आपकी कमज़ोरियाँ क्या हैं और आपकी क्षमतांए क्या हैं। आप को केवल अपनी कमियाँ दिखाई देती हैं अपने गुण तो दिखाई ही नहीं देते और न ही आप के पास अपने गुणों को देखने का समय है। क्या आपने कभी अपनी प्रशंसा की है? अपनी सफ़लता पर प्रसन्न हुए हैं?
आपको यह याद भी नहीं होगा कि कब आप अपने कार्य पर या अपनी कार्यप्रणाली पर ख़ुश हुए थे? कब आप अपनी सफलता पर प्रसन्न हुए थे? आजकल की जीवनचर्या में ऐसे पलों की, प्रयास करने पर भी, याद नहीं आती। इसके विपरीत अगर आप यह सोचने लगें कि आपने कब और कहाँ ग़लती की थी, कब किसी कार्य को करने में सफल नहीं हुए थे, तो आपके ज़हन में अनेक ऐसी घटनाएँ उभर आती हैं और आप अपने आप को असमर्थ व लाचार महसूस करने लगते हैं। आपको अपने गुण नज़र नहीं आते, बल्कि कमियाँ ज़रूर नज़र आने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है?
जब आप अपने चारों ओर दृष्टि घुमाकर आस-पास के लोगों को देखते हैं, तो आपको क्या महसूस होता है? आपको लगता होगा, कि अन्य लोग आप से ज़्यादा अच्छा काम कर सकते हैं। आपसे ज़्यादा सफल हैं। यदि आपको ऐसा लगता हो कि दूसरे लोग ज़्यादा ख़ुश रहते हैं, ज़्यादा प्रसन्न रहते हैं और अपने सपने पूरे कर लेते हैं, तो आपको क्या महसूस होता है? दूसरो की सफलता देख कर जलन होती है या फिर आप उनकी सफलता पर ख़ुश होते हैं? स्वभाविक है अधिकतर लोगों को जलन ही होगी, दूसरो की सफलता पर ख़ुश होना हर एक के बस की बात नहीं। यदि आप दूसरो की ख़ुशी में ख़ुश होना सीख लेते हैं तो यह आपकी एक बहुत बड़ी उपलब्धी होगी। दूसरो की सफलता पर वही प्रसन्न हो सकता है जो अपनी सफलता को महत्व देता हो और अपनी ख़ुशी में दूसरो को सम्मिलित करता हो। लेकिन ऐसा करना आसान नहीं है क्योंकि हम समाज की परम्पराओं और रुढ़िवादी विचारधारा में जकड़े रहते हैं और स्वतंत्र रूप से नहीं सोच पाते। आज भी हमारे समाज में प्रतिद्वंदी को प्रतिद्वंदी ही समझा जाता है उसकी प्रशंसा नहीं की जाती।
इसका मुख्य कारण है वह समाज, जो आज भी युवकों को कभी-कभी ज़रूरत से अधिक संरक्षण देता है। हम में से अधिकांश अपना जीवन ऐसे साए में गुज़ारते हैं जहाँ हमें स्वतंत्र निर्णय लेने अथवा बड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के अवसर प्राप्त नहीं होते। यह कार्य घर के बड़े बुज़ुर्ग ही करते हैं। बड़े बुज़ुर्गों का साया जीवन पर्यन्त रहता है भले ही हम विद्यालय जाएँ, नौकरी करना आरम्भ कर दें या फिर हमारे ख़ुद के बाल बच्चे ही क्यों न हो जाएँ। हर पग पर हमें बताया जाता है क्या करना ठीक है और क्या करना ग़लत है। जीवन में सफलता और असफलता के नियम भी समाज ही तय करता है। यदि कोई युवक कुछ नया या फिर कुछ बड़ा काम करना चाहे तो समाज के नियम उसके मार्ग का रोड़ा बन जाते हैं। सामाजिक नियमों को निभाते-निभाते हम सब अपनी ज़िंदगी बिता देते हैं परंतु कुछ नया या बड़ा कार्य नहीं कर पाते।
हम आयु में तो बड़े हो जाते हैं परंतु हम में बड़प्पन नहीं आ पाता। जीवन एक ऐसी पाठशाला है जो बहुत मूल्यवान पाठ पढ़ाती है। परंतु हम ऐसे मूल्यवान पाठ पढ़ने की न तो कभी कोशिश करते हैं और न ही इस बारे में कुछ सोचते हैं। हम यह जानने की कोशिश ही नहीं करते कि हमारी वास्तविक क्षमता क्या है और हम अपने जीवन में क्या कुछ कर सकते हैं। सपने तो हम बहुत बड़े बड़े देखते हैं लेकिन उन्हें पूरा करने से डरते हैं क्योंकि हमें स्वयं पर भरोसा नहीं होता। ऐसा इसलिए होता है कि हमने कभी अपनी क्षमता और अपने सामर्थ को जाँचने की कोशिश ही नहीं की और न ही कभी इस बारे में सोचने का प्रयास किया। हम अपने सारे सपने पूरे कर सकते हैं लेकिन उसकी पहली शर्त यह कि हमें अपनी क्षमता, अपने साहस, अपनी सोच और अपनी हिम्मत पर पूरा भरोसा करना होगा। हमें अपने गुणों या अपनी योग्यता की तलाश करने के लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं। ये सभी गुण पहले से ही हमारे अंदर मौजूद हैं। हम जानते हैं कि दुनिया में असंख्य ऐसे लोग हैं जो अपने सपनों को मात्र इसलिए पूरा नहीं कर पाते क्योंकि वे सफलता के रास्ते में आने वाली पहली रुकावट से ही डर जाते हैं और अपने सपनों को बीच मझधार में त्याग देते हैं। इसके विपरीत कुछ ऐसे भी सफल लोग हैं जिन्होंने अपना काम शून्य से आरम्भ किया था और आज वो सफलता के शिखर पर पहुँच गए हैं। ये लोग सफल इसलिए हुए क्योंकि रास्ते में आने वाली रुकावटों से घबरा कर इन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी वह रुकावटों से डर कर अपने सपनों को साकार करने से पीछे नहीं हटे। अपने साहस और विश्वास के बल पर इन लोगों ने न केवल अपने सपने साकार किए बल्कि अरबो खरबो के आलिशान साम्राज्य भी स्थापित कर लिए। ऐसा करने के पश्चात् भी ये लोग रुके नहीं और निरंतर अपनी सफलता के साम्राज्य में वृद्धि करते चले गए। रुकावटें तो उनके रास्ते में भी आई होंगी लेकिन उन्होंने रुकावटों को पार किया और आगे बढ़ते चले गए। रुकावटों के डर से वे रुके नहीं बल्कि अपनी सूझ-बूझ से सभी रुकावटों को पार करके अपने सपने पूरे करते रहे। उन्होंने किसी जादू का सहारा नहीं लिया बल्कि अपने आप पर विश्वास किया। उन्हें अपने आप पर पूरा विश्वास था। उन्होंने अपने दम पर चमत्कार करके दिखाए हैं।
और एक हम हैं जो कोई चमत्कार करके दिखाने के बजाए किसी चमत्कार के होने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। कोई चमत्कार होगा और हमारी क़िस्मत खुल जाएगी। जीवन कोई फूलों की सेज नहीं जहाँ सब कुछ आसानी से मिल जाता है। कुछ पाने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है और पूरी लगन से करना पड़ता है। यदि हम अपनी इच्छा से मेहनत नहीं करेंगे तो जीवन संघर्ष हमें यह सब करने के लिए मजबूर कर देता है। थक हार कर हमें अपने क़दम आगे बढ़ाने ही पड़ते हैं। बेमन से किए गए काम कभी सफल होते हैं कभी नहीं होते। यदि समय रहते हम अपने गुणों और क्षमताओं को पहचान लें तो हम भी चमत्कार करके दिखा सकते हैं। प्रश्न यह है कि हम अपनी क्षमताओं को पहचाने कैसे?
इसके लिए हमने इस पुस्तक में कुछ ऐसे विषयों पर चर्चा की है जो आपको अपनी शक्तियों व क्षमताओं को पहचानने में सहायक होंगे।
यह पुस्तक आपको अपनी क्षमता, अपनी शक्तियाँ और अपने विश्वास को पहचानने में न केवल सहायक होगी बल्कि सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने में आप की गति को भी तेज़ करेगी ताकि आप अपने वो सभी सपने पूरे कर सकें जिनके बारे में आपने अपने आप को अब तक सक्षम न समझा हो।
इस पुस्तक को लिखने में हमें अनेकों अनेक अनुभवों से गुज़रना पड़ा जिन से हमने भी बहुत कुछ सीखा है। आशा है हम जीवन के इन अनुभवों को इस पुस्तक के माध्यम से आप तक पहुँचा पाऐंगें। हम यह भी आशा करते हैं की इस पुस्तक को पढ़ने में आपको न केवल आनंद की अनुभूति होगी बल्कि आपके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी। इस पुस्तक में हमने कुछ महापुरुषों के प्रसंग, कुछ वास्तविक जीवन के प्रसंग तथा कुछ ग्रन्थों के उद्धरणों का उल्लेख भी किया है जो आज के युग में भी बहुत सटीक हैं।
आओ अब इस पुस्तक के सहारे अपने सपनों को पूरा करेंI
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