12/06/2024
ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च का संगठनात्मक ढाँचा
ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च या ऑर्थोडॉक्स चर्च का अधिकृत नाम 'ऑर्थोडॉक्स 'कैथोलिक चर्च' है। उसकी यूनानी विरासत को ध्यान में रखते हुए उसे पहले 'ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च' भी कहा जाता था। सन् 1054 में हुए . विभाजन के बाद कैथोलिक (वैश्विक) चर्च से दूसरा चर्च अलग हुआ तथा मूल चर्च के हम असली उत्तराधिकारी है ऐसा रोमी कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स कैथोलिक चर्च दोनों का कहना है। इसलिए
दोनों ने अपने नाम में 'कैथोलिक' शब्द बनाए रखा है। साधारण पाठक उसके अधिकृत नाम में लिखे 'कैथोलिक' शब्द से भ्रमित न हो जावें, इसलिए इस पुस्तक में 'ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च' ऐसा उल्लेख किया गया है। इस नाम में 'ईस्टर्न' शब्द उसके उद्गम-स्थान को दर्शाता है, जो रोम के पूर्व में स्थित कॉन्स्टेंटिनोपोल है।
'ऑर्थोडॉक्स' (यूनानी ऑर्थोस-सीधा, सही; डॉक्सा-महिमा) यह शब्द कॉन्स्टेंटिनोपोल के 'एक्युमेनिकल पेट्रिआर्केट' (एक्युमेनिकल-अनेक ईसाई चर्च का प्रतिनिधित्व करनेवाला; दुनियावी कुलपति-पीठ) से ऐक्य दर्शाता है। 'ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च' को निम्नलिखित प्रादेशिक या राष्ट्रीय चर्चों का समूह माना जा सकता है-
1. कॉन्स्टेंटिनोपोल, अलेक्सेंड्रिया, अन्ताकिया तथा येरुसालेम ये चार प्राचीन कुलपति-पीठ ।
2. रूस, सर्बिया, रूमानिया, बुल्गारिया, जॉर्जिया, सायप्रस, ग्रीस, पोलैण्ड, अल्बेनिया तथा जेक और स्लोवाकिया में अपने-अपने प्रमुख के नेतृत्व में बड़े चर्च । ये सभी प्रमुख कुलपति समकक्ष समझे जाते हैं। इन समकक्ष कुलपतियों में कॉन्स्टेंटिनोपोल के कुलपति को प्रधान माना जाता है लेकिन उसे कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं होता ।
3. एस्टोनिया, फिनलैण्ड आदि देशों में भी छोटे-छोटे ऑर्थोडॉक्स चर्च हैं, जो
निम्न श्रेणी के स्वायत्त चर्च कहलाते हैं।
4. उत्तर और दक्षिण अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में ऑर्थोडॉक्स ईसाई किसी कुलपति पीठ से संलग्न हैं।
हर चर्च का अपना बिशप तथा पादरियों का होली सिनड (पवित्र समिति) होता है। भिन्न देशों के इन ऑर्थोडॉक्स चर्चों में आपसी ऐक्य हैं। मज़हबी शास्त्र में समाविष्ट पुस्तकें तथा अनुष्ठान-विधि समान हैं। सन् 325 से 787 इस कालखंड में हुई सात दुनियावी परिषदों (एक्युमेनिकल काउन्सिल, इक्युमिनी-बसी हुई पृथ्वी, बीजान्टिन साम्राज्य अपने प्रदेश को इसी नाम से पुकारते था) के अध्यादेश इन सभी को मान्य है। ऑर्थोडॉक्स चर्च किसी पोप या कुलपति को सर्वोच्च नहीं मानता। सात दुनियावी परिषदों द्वारा व्याख्या किया गया मज़हबी शास्त्र ही सर्वोपरि माना जाता है।
ईसाइयत
सिद्धान्त एवं स्वरूप
डॉ. श्रीरंग गोडबोले