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ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च का संगठनात्मक ढाँचाईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च या ऑर्थोडॉक्स चर्च का अधिकृत नाम 'ऑर्थोडॉक्स 'कैथोलिक...
12/06/2024

ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च का संगठनात्मक ढाँचा

ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च या ऑर्थोडॉक्स चर्च का अधिकृत नाम 'ऑर्थोडॉक्स 'कैथोलिक चर्च' है। उसकी यूनानी विरासत को ध्यान में रखते हुए उसे पहले 'ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च' भी कहा जाता था। सन् 1054 में हुए . विभाजन के बाद कैथोलिक (वैश्विक) चर्च से दूसरा चर्च अलग हुआ तथा मूल चर्च के हम असली उत्तराधिकारी है ऐसा रोमी कैथोलिक और ऑर्थोडॉक्स कैथोलिक चर्च दोनों का कहना है। इसलिए
दोनों ने अपने नाम में 'कैथोलिक' शब्द बनाए रखा है। साधारण पाठक उसके अधिकृत नाम में लिखे 'कैथोलिक' शब्द से भ्रमित न हो जावें, इसलिए इस पुस्तक में 'ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च' ऐसा उल्लेख किया गया है। इस नाम में 'ईस्टर्न' शब्द उसके उद्गम-स्थान को दर्शाता है, जो रोम के पूर्व में स्थित कॉन्स्टेंटिनोपोल है।

'ऑर्थोडॉक्स' (यूनानी ऑर्थोस-सीधा, सही; डॉक्सा-महिमा) यह शब्द कॉन्स्टेंटिनोपोल के 'एक्युमेनिकल पेट्रिआर्केट' (एक्युमेनिकल-अनेक ईसाई चर्च का प्रतिनिधित्व करनेवाला; दुनियावी कुलपति-पीठ) से ऐक्य दर्शाता है। 'ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च' को निम्नलिखित प्रादेशिक या राष्ट्रीय चर्चों का समूह माना जा सकता है-

1. कॉन्स्टेंटिनोपोल, अलेक्सेंड्रिया, अन्ताकिया तथा येरुसालेम ये चार प्राचीन कुलपति-पीठ ।

2. रूस, सर्बिया, रूमानिया, बुल्गारिया, जॉर्जिया, सायप्रस, ग्रीस, पोलैण्ड, अल्बेनिया तथा जेक और स्लोवाकिया में अपने-अपने प्रमुख के नेतृत्व में बड़े चर्च । ये सभी प्रमुख कुलपति समकक्ष समझे जाते हैं। इन समकक्ष कुलपतियों में कॉन्स्टेंटिनोपोल के कुलपति को प्रधान माना जाता है लेकिन उसे कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं होता ।

3. एस्टोनिया, फिनलैण्ड आदि देशों में भी छोटे-छोटे ऑर्थोडॉक्स चर्च हैं, जो
निम्न श्रेणी के स्वायत्त चर्च कहलाते हैं।

4. उत्तर और दक्षिण अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में ऑर्थोडॉक्स ईसाई किसी कुलपति पीठ से संलग्न हैं।

हर चर्च का अपना बिशप तथा पादरियों का होली सिनड (पवित्र समिति) होता है। भिन्न देशों के इन ऑर्थोडॉक्स चर्चों में आपसी ऐक्य हैं। मज़हबी शास्त्र में समाविष्ट पुस्तकें तथा अनुष्ठान-विधि समान हैं। सन् 325 से 787 इस कालखंड में हुई सात दुनियावी परिषदों (एक्युमेनिकल काउन्सिल, इक्युमिनी-बसी हुई पृथ्वी, बीजान्टिन साम्राज्य अपने प्रदेश को इसी नाम से पुकारते था) के अध्यादेश इन सभी को मान्य है। ऑर्थोडॉक्स चर्च किसी पोप या कुलपति को सर्वोच्च नहीं मानता। सात दुनियावी परिषदों द्वारा व्याख्या किया गया मज़हबी शास्त्र ही सर्वोपरि माना जाता है।

ईसाइयत
सिद्धान्त एवं स्वरूप

डॉ. श्रीरंग गोडबोले

प्रश्न: श्री चंदा भगवान का जन्म कौन से वंश में हुआ था?
09/06/2024

प्रश्न: श्री चंदा भगवान का जन्म कौन से वंश में हुआ था?

Lord’s Day“Anyone who thinks sitting in church can make you a Christian must also think that sitting in a garage can mak...
09/06/2024

Lord’s Day

“Anyone who thinks sitting in church can make you a Christian must also think that sitting in a garage can make you a car.”

― **Garrison Keillor**

\ #**GarrisonKeillor**

शरणागत जब दारा शकोह आगरा के मैदान में औरंगजेब के साथ लड़ रहा था तो उसने गुरू जी के पास सहायता के लिये आदमी भेजा, परन्तु ...
07/06/2024

शरणागत

जब दारा शकोह आगरा के मैदान में औरंगजेब के साथ लड़ रहा था तो उसने गुरू जी के पास सहायता के लिये आदमी भेजा, परन्तु गुरु हररायजी कहीं बाहर गये थे। इसलिए दारा को सहायता न मिलने के कारण हो गई और वह रणभूमि से भाग गया तथा

भागता हुए हार हुआ गुरुजी के पास खडूर साहिब में पहुंच गया और सहायता मांगी। गुरुरजी ने एकदम सहायता करने के लिए मजबूरी
जाहिर की, परन्तु उसका स्वागत तथा सत्कार बहुत किया ।

दारा के पीछे पीछे औरंगजेब का एक जरनैल कुछ सेना लेकर दारा को पकड़ने के लिए आ रहा था। उधर
जब गुरू जी को पता लगा तो शरण आये की लाज रखने के लिये गुरू जी ने 2200 योद्धाओं को उस औरंगजेब के फौजी दसते को ब्यास के पार ही रोकने के लिये भेजा। उस समय तक दारा शकोह लाहौर से आगे मुलतान की ओर पहुंच चुका था। गुरू जी ने शाही फौज को ब्यास के पास रोके रखा ।

जब इस बात का पता औरंगजेब को लगा तो उसके मन में गुरू जी के विरोध बहुत भारी विरोधता का भाव
बन गया। परन्तु अभी नया राज्य सिंहासन पर बैठा था इसलिये चुप रह गया ।

संदर्भ: जीवन दस गुरू साहिबान
लेखक त्रीलोक सिंह ज्ञानी

अल हदीस के प्रकार और स्वरूप कैसा है ?हदीस तीन प्रकार के हैं: प्रेषित की उक्तियाँ ।प्रेषित की कृतियाँ अथवा किसी सहाबी द्व...
07/06/2024

अल हदीस के प्रकार और स्वरूप कैसा है ?

हदीस तीन प्रकार के हैं:

प्रेषित की उक्तियाँ ।

प्रेषित की कृतियाँ अथवा किसी सहाबी द्वारा अपनी भाषा में की गई उनकी कृति का वर्णन |

प्रेषित की उपस्थिति में घटित किसी कृति को उनके द्वारा मौन अथवा स्पष्ट रूप से दी हुई स्वीकृति ।

विश्वसनीयता की कसौटी के आधार पर हदीस 'सहिह' (सत्य), 'हसन' (मान्यता प्राप्त) अथवा 'झैफ' (कमजोर) हो सकती है। हदीस अन्य प्रकार से भी वर्गीकृत हो सकती है।

हदीस के दो हिस्से होते हैं। हदीस के प्रारम्भ में उसका कथन करने वाले निवेदकों की श्रृंखला होती है। यह श्रृंखला प्राय: प्रेषित अथवा उनके सहाबी तक पहुँचती है। किसी हदीस को विश्वसनीयता प्रदान करने में यह श्रृंखला सहायक होती है। हदीस की निवेदक श्रृंखला का वर्णन करने वाले पूर्वार्ध को 'इस्नाद' (एकवचन-सनद) कहते हैं। उसके बाद हदीस की विषय-वस्तु आती है जिसे 'मतन' कहते हैं।

हदीस के चयन में कुछ कसौटियाँ पूरी होनी चाहिए। उनमें से कुछ कसौटियाँ निम्नांकित हैं:

1) प्रेषित की कही हुई बात अथवा कृति का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए ।

2)प्रेषित के सहाबी अथवा उनके घर परिवार के लोगों के विरोध में हदीस
में कोई आरोप नहीं होना चाहिए।

3) अरब शैली के अलावा और कोई शैली हदीस में नहीं होनी चाहिए।

4) कुरान की सीख से हदीस असंगत नही होनी चाहिए।

5) प्रेषित की सर्वमान्य उक्ति से भी हदीस असंगत नहीं होनी चाहिए।

संदर्भ: इस्लाम का अंतर दर्शन
लेखक: डॉ. श्रीरंग गोडबोले

#कुरान #अल्-हदीस

वाराणसी के निकटवर्ती गाँव में कभी एक दरिद्र ढोल बजाने वाला अपनी पत्नी और एक बच्चे के साथ रहता था।एक दिन वाराणसी शहर में ...
05/06/2024

वाराणसी के निकटवर्ती गाँव में कभी एक दरिद्र ढोल बजाने वाला अपनी पत्नी और एक बच्चे के साथ रहता था।

एक दिन वाराणसी शहर में एक मेले का आयोजन हुआ। मेले की चर्चा हर किसी की जुबान पर थी। ढोल बजाने वाले की पत्नी को जब मेले की सूचना मिली तो वह तत्काल दौड़ती हुई पति के पास पहुँची और उसे भी मेले में जाकर ढोल बजाने को कहा ताकि वह कुछ पैसे कमा लाये।

ढोल बजाने वाले को पत्नी का प्रस्ताव उचित जान पड़ा। वह अपने बेटे को लेकर शहर गया और मेले में पहुँच बड़े उत्साह से ढोल बजाने लगा। वह एक कुशल ढोल-वादक था। अत: शाम तक उसके पास पैसों के ढेर लग गये। खुशी-खुशी तब वह सारे पैसे बटोर वापिस अपने गाँव लौट पड़ा।

वाराणसी और उसके गाँव के बीच एक घना जंगल था। उसका नन्हा बेटा भी बहुत प्रसन्न था क्योंकि पिता ने रास्ते में उसे उसकी की मनपसन्द चीज़ें खरीद कर दे दी थी। अत: उमंग में वह पिता का ढोल उठाये उस पर थाप देता गया। वन में प्रवेश करते ही पिता ने बेटे को लगातार ढोल बजाते रहने के लिए मना किया। उसने उसे यह सलाह दी कि यदि उसे ढोल बजाना हो तो वह वह रुक-रुक कर ऐसे ढोल बजाये कि हर सुनने वाला यह समझ कि किसी राजपुरुष की सवारी जा रही हो। ऐसा उसने इसलिए कहा क्योंकि वह जानता था कि उस जंगल में डाकू रहते थे जो कई बार राहगीरों को लूटा करते थे।

पिता के मना करने के बाद भी बेटे ने उसकी एक न सुनी और जोर-जोर से ढोल बजाता रहा। ढोल की आवाज सुनकर डाकू आकृष्ट हुए और जब उन दोनों को अकेले देखा तो तत्काल उन्हें रोक कर उनकी पिटाई की और उनके सारे पैसे भी छीन लिये।

World Environment day
05/06/2024

World Environment day

Lord’s DaySometimes when people leave the church it can be a good thing. Said another way, there are some people who adv...
02/06/2024

Lord’s Day

Sometimes when people leave the church it can be a good thing. Said another way, there are some people who advance the cause of peace and unity by their absence!

Stephen Anderson

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पानी दिल्ली का बादशाह शाह जहान 1657 को बीमार पड़ गया उस समय उसके चारों बेटे (दारा शकोह शुजाह, मुराद तथा औरंगजेब) भारत के...
01/06/2024

पानी

दिल्ली का बादशाह शाह जहान 1657 को बीमार पड़ गया उस समय उसके चारों बेटे (दारा शकोह शुजाह, मुराद तथा औरंगजेब) भारत के चारों प्रान्तों में गर्वन7र थे। आप बाप की बीमारी पर चारों भाईयों का राज सिंहासन के लिए झगड़ा हो गया।

औरंगजेब का दावा चल गया।उसने को साथ मुराद मिला लिया और अपने बाप को कारागार में डाल कर सिंहासन पर बैठ गया। यह बड़ा जालिम तथा मतलबी बादशाह था ।

औरंगजेब इतना जालिम था कि जब उसके बाप ने कहा कि मेरे पास पीने का पानी थोड़ा होता है। देख काफर हिन्दू लोग तो मरे हुए बालदैन (पूर्वज) को भी पानी भेजते हैं। तू मुझ को जीते जी पानी नहीं दे रहा। औरंगजेब ने उत्तर दिया, जिस कलम दान में पानी डाला था। वह पी लेना था।

शाहजहान ने फिर कहा, 'बेटा! मेरा दिल उदास रहता है, कुछ लड़के कुरान के लिये भेज दिया करो।' औरंगजेब ने कहा, 'हे बाप! तू अभी हकूमत करने की ख्वाहिश रखता है।

अंत में औरंगजेबने अपने बाप को कारागार में रुला रुला कर मार दिया और भाईयों को कत्ल कर दिया ।

संदर्भ: जीवन दस गुरू साहिबान
लेखक त्रीलोक सिंह ज्ञानी

31/05/2024

।। जय जयतु अहल्यामाता ।।

देवी, पुण्यश्लोक, साध्वी, मातोश्री,
गंगाजलनिर्मलसम गंगाभागीरथी ।

पवित्रता- शुद्धता - सात्त्विक चारित्र्य ने आपको दी उपाधि ।

जीवन आपका आपत्तियों से व्याप्त दुःखभरी कह अविचल रहकर, प्रजानुरंजनसमर्पित ।

जीवन बिताती कर्तृत्वशालिनी
देवी अहल्या की कर्तव्यनिष्ठा अनुपम, सटीक उसकी वाणी ।

मंदिर-सराय-कुएं-बावडी रस्ते-घाट निर्माणी ।

दुर्गम भागों में अन्नछत्र चलाने से धर्मयात्रामें सुगम बनी ।

शत्रुद्वारा खंडविखंड मंदिर गौरवशान से फिर बनवाएं।

अपमानों के चिन्ह मिटायें स्वाभिमान के ध्वज लहराएं ।

पक्षी-प्राणी की भी चिंता, राज कानून नये बनाए ।

शिवलिंग हाथ लेकर निस्पृहता से न्याय दियें ।

शिवत्व के अनुभव से सम्मुख व्यक्ति सद्गद होता ।

'भील कौडिं' से भीलों का जीवन आलोकित किया ।

'अनंतफंदी' शृंगार रससे भक्तिमार्ग की ओर चला ।

निर्माण-लेखन कार्य से हजारो हाथों को काम दिया ।

वस्त्र बुनाई से महेश्वर का नाम दूर दूर फैलाया ।

उपभोगशून्य जीवन, परहित निज धन का व्यय किया ।

वाणी-लेखनी दुर्बल हमारी, कैसा वर्णन करें आपका?

आपके चरित्र आलोक में हम जीवन की राह चलें ।

धर्महित काम करने की नित्य प्रेरणा पायें ।

हे राजमाता अमर आपका नाम ।
हे लोकमाता अमर आपका काम ।
हे देवी, आप महेश्वर की महाश्वेता, पद्मश्वेता ।

जन्मत्रिशती आपकी
'जय जयतु अहल्यामाता'
घोष नित गूंजता ।

जानिए क्या है इस्लाम ?अल्-हदीस का विकास तब्जे ताबिईन का काल में कैसे हुआ ?4. तब्जे ताबिईन का कालखंड (717-817 ):प्रेषित क...
31/05/2024

जानिए क्या है इस्लाम ?

अल्-हदीस का विकास तब्जे ताबिईन का काल में कैसे हुआ ?

4. तब्जे ताबिईन का कालखंड (717-817 ):
प्रेषित के सहाबा के शिष्यों (ताबिईन) के अनुयायी तब्जे ताबिईन कहलाते हैं। यह अल्-हदीस के विकास का स्वर्णिम काल माना जाता है। सहिह (असली) समझी जाने वाली छह परंपराओं के संकलक भी इसी काल में हुए।

5. पाँचवा कालखंड (817-1017):

6. छठा कालखंड (1017 के बाद):
पाँचवें तथा छठे कालखंड में हदीस के स्वतंत्र संग्रह प्रसिद्ध हुए लेकिन उन्हें धर्मशास्त्र का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ। तथा इनमें हदीस बताने वालों की श्रृंखला भी नहीं दी गई। केवल हदीस की लिखित सामग्री देने वाले संकलन इस काल
में निर्मित हुए। इस तरह का सबसे लोकप्रिय संकलन 'किताबुल मसबीह' था। उसका 'मिश्कात-उल्-मसबीह' (प्रकाश की गुहिका) संस्करण बहुत
लोकप्रिय है। इमाम बुखारी, इमाम मुस्लिम तथा अन्य महत्वपूर्ण हदीस संकलन कर्ताओं के प्रचुर साहित्य का कुछ चुना हिस्सा उसमें दिया है। सभी मदरसों एवं अध्ययन केंद्रों में यह संकलन सिखाया जाता है और अरबी, फारसी, उर्दू
और अंग्रेजी भाषा में भी यह उपलब्ध है।

संदर्भ: इस्लाम का अंतर दर्शन
लेखक: डॉ. श्रीरंग गोडबोले

#कुरान #अल्-हदीस

प्रश्न   श्री धर्मनाथ भगवान का जन्म किस नगर में हुआ था?
30/05/2024

प्रश्न श्री धर्मनाथ भगवान का जन्म किस नगर में हुआ था?

हिम-वन में कभी दो वानर-बन्धु रहते थे । बड़े का नाम नंदक और छोटे का नाम चुल्लनंदक था। वे दोनों वहाँ रहने वाले अस्सी हज़ार व...
29/05/2024

हिम-वन में कभी दो वानर-बन्धु रहते थे । बड़े का नाम नंदक और छोटे का नाम चुल्लनंदक था। वे दोनों वहाँ रहने वाले अस्सी हज़ार वानरों के मुखिया थे।

एक बार वे दोनों वानर-बन्धु अपने साथियों के साथ कूदते-फाँदते किसी दूरस्थ वन में चले गये ; और अपने साथियों के साथ नये-नये के फलों का आनन्द लेते रहे । उनकी बूढ़ी माँ भी थी, जो वृद्धावस्था में कूद-फाँद नहीं कर सकती थी। इसलिए वह हिमवा के वन में ही रहा करती थी। दोनों ही वानर-बन्धु अपनी माता का भरपूर ध्यान भी रखते थे । अत: वे नये वन से भी अपने अनुचरों के हाथों अपनी माता के लिए फलादि भिजवाते रहे।

कुछ दिनों के बाद जब दोनों वानर-बन्धु हिमवा स्थित अपने घर पहुँचे तो उन्होंने अपनी माता को कंकाल के रुप में पाया ; वह बिल्कुल हड्डी की ठठरी बन चुकी थी। उसने कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया था। उनके द्वारा भेजे गये फल भी उस बूढ़ी और रुग्ण माता तक नहीं पहुँचा थे, क्योंकि साथी बंदरों ने वे फल रास्ते में ही चट कर लिए थे।

अपनी माता की दयनीय दशा को देखकर उन दोनों बन्दरों ने शेष बन्दरों से दूर रहना उचित समझा और अपनी माता के साथ एक नये स्थान पर डेरा डाला।

एक दिन उस वन में एक शिकारी आया। उसे देखते ही दोनों वानर पेड़ के घने पत्तों के पीछे छुप गये। किन्तु उनकी वृद्धा माता जिसे आँखों से भी कम दीखता था उस व्याध को नहीं देख सकी।

व्याध एक ब्राह्मण था जो कभी तक्षशिला के विश्वविख्यात गुरु परासरीय का छात्र रह चुका था ; किंतु अपने अवगुणों के कारण वहाँ से निकाला जा चुका था। जैसे ही व्याध की दृष्टि बूढ़ी बंदरिया पर पड़ी उसने उसपर तीर से मारना चाहा। अपनी माता के प्राणों की रक्षा हेतू नंदक कूदता हुआ व्याध के सामने “आ खड़ा हुआ और कहा, हे व्याध ! तुम मेरे प्राण ले लो मगर मेरी माता का संहार न करो।’ व्याध ने नंदक की बात मान ली और एक ही तीर में उसे मार डाला। दुष्ट व्याध ने नंदक को दिये गये वचन का उल्लंघन करते हुए फिर से उस बूढ़ी मर्कटी पर तीर का निशाना लगाना चाहा । इस बार छोटा भाई चुल्लनंदक कूदता हुआ उसके सामने आ खड़ा हुआ। उसने भी अपने भाई की तरह व्याध से कहा, हे व्याध ! तू मेरे प्राण ले ले, मगर मेरी माता को न मार।” व्याध ने कहा, “ठीक है ऐसा ही करुंगा” और देखते ही देखते उसने उसी तीर से चुल्लनंदक को भी मार डाला। फिर अपने वचन का पालन न करते हुए उसने अपने तरकश से एक और तीर निकाला और बूढ़ी मर्कटी को भी भेद डाला।

तीन बन्दरों का शिकार कर वह व्याध बहुत प्रसन्न था, क्योंकि उसने एक ही दिन में उनका शिकार किया था। यथाशीघ्र वह अपने घर पहुँच कर अपनी पत्नी और बच्चों को अपना पराक्रम दिखाना चाहता था। जैसे ही वह अपने घर के करीब पहुँच रहा था, उसे सूचना मिली कि एक वज्रपात से उसका घर ध्वस्त हो चुका था और उसके परिवार वाले भी मारे जा चुके थे। अपने परिजनों के वियोग को उसके मन ने नहीं स्वीकारा। फिर भी विस्मय और उन्माद में दौड़ता हुआ वह अपने तीर, शिकार व अपने कपड़ों तक छोड़ जैसे ही अपने जले हुए घर में प्रवेश किया तो एक जली हुई बौंस भरभरा कर गिर पड़ी और उसके साथ उसके घर के छत का बड़ा भाग ठीक उसके सिर पर गिरा और तत्काल उसकी मृत्यु हो गयी।

बाद में कुछ लोगों ने उपर्युक्त घटना-चक्र का आखों-खा वृतांत सुनाया। उनका कहना था कि ज्योंही ही व्याध ने अपने घर में प्रवेश किया धरती फट गयी और उसमें से आग की भयंकर लपटें उठीं जिस में वह स्वाहा हो गया। हाँ, मरते वक्त उसने तक्षशिला के गुरु की यह बात अवश्य दुहरायी थी:-

अब आती है याद मुझे
गुरुदेव की वह शिक्षा
बनो श्रम्रादी
और करो नहीं कभी ऐसा
जिससे पश्चाताप की अग्नि में
पड़े तुम्हें जलना।

Lord’s DayChange can be difficult! There is a natural resistance to change, but sometimes we (the church) struggle a lit...
26/05/2024

Lord’s Day

Change can be difficult! There is a natural resistance to change, but sometimes we (the church) struggle a little too much with change, making it harder than it needs to be. After all, things have changed a lot in the last 2,000 years and they will continue to do so until the return of Christ. Some of the most effective words that hinder a church from moving forward are “we’ve never done it that way before.”

[Stephen Anderson](https://gracequotes.org/author-quote/stephen-anderson/ "‌")
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Trinity SundayNothing could be more idiotic and absurd than the doctrine of the trinity." Robert Green Ingersoll
25/05/2024

Trinity Sunday

Nothing could be more idiotic and absurd than the doctrine of the trinity."

Robert Green Ingersoll

अल्-हदीस का विकास ताबिईन के कालखंड में कैसे हुआ ? ताबिईन का कालखंड (716-815 ):प्रेषित के सहाबा के शिष्य ताबिईन कहलाते है...
24/05/2024

अल्-हदीस का विकास ताबिईन के कालखंड में कैसे हुआ ?

ताबिईन का कालखंड (716-815 ):
प्रेषित के सहाबा के शिष्य ताबिईन कहलाते हैं। इस काल में बसरा, मक्का, कूफा, सीरिया, खुरासान, मदीना के ताबिईनों ने प्रेषित की परंपराएं एकत्र करने का परिश्रमपूर्वक प्रयास किया। लिहाजा, कुछ छोटे मोटे ग्रंथों का निर्माण भी हुआ। ये ग्रंथ स्थानीय रूप के एवं दैनिक प्रश्नों से संबंधित थे. अल्-मुवत्ता अर्थात इमाम मालिक इब्न अनस (716-797) द्वारा ढंग से लिखा हुआ तथा आज भी उपलब्ध अहादिस का आद्य संकलन है। इसमें प्रेषित की लगभग एक हजार स्मृति कथाओं, खलीफा के फतवों और उस काल के कानून की परंपरा तथा प्रथाओं का समावेश है। इसलिए इस हदीस संग्रह को 'प्रेषित का हदीस' न कहकर कानून की प्रथाओं का हदीस कहते हैं। मालिकी न्यायप्रणाली के उद्गाता के नाते इमाम मालिक प्रसिद्ध हैं। इसी कालखंड में इमाम अबू हनीफा, इमाम शाफई तथा इमाम अहमद इब्न हम्बल भी इस्लामी न्यायप्रणाली के उद्गाता हुए। उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्रकरण 4 में दी है। इसी काल में अहादिस के चार संकलन प्रसिद्ध हुए।

संदर्भ: इस्लाम का अंतर दर्शन
लेखक: डॉ. श्रीरंग गोडबोले

#कुरान #अल्-हदीस

Lord’s DayLighthouses are more helpful then churches.— Benjamin Franklin
19/05/2024

Lord’s Day

Lighthouses are more helpful then churches.

— Benjamin Franklin

जानिए क्या है इस्लाम ?अल्-हदीस का विकास प्रेषित साहब की मृत्यु से लेकर आखिरी सहाबी की मृत्यु तक कैसे हुआ ?2. प्रेषित की ...
16/05/2024

जानिए क्या है इस्लाम ?

अल्-हदीस का विकास प्रेषित साहब की मृत्यु से लेकर आखिरी सहाबी की मृत्यु तक कैसे हुआ ?

2. प्रेषित की मृत्यु से लेकर आखिरी सहाबी की मृत्यु तक (632-715 ): दस वर्ष तक प्रेषित की सेवा करने वाले अनस-बिन-मालिक नामक उनके नौकर की 103 साल की उमर में 715 में मृत्यु हुई। प्रेषित के बारे में आँखों देखी जानकारी दे सकने वाले सहाबा में इनकी मृत्यु सबसे अन्त में हुई। यह दूसरा कालखंड चार सत्पथी खलीफा तथा प्रेषित के सहाबा का है। विभिन्न स्थानों पर फैले सहाबा के पास जाकर प्रेषित के बारे में जानकारी जुटाना, मिली जानकारी की सत्यता सिद्ध करना इसी काल में हुआ ऐसा इस्लामी विशेषज्ञों का मानना है। आगे खलीफा बने अली (मृत्यु 662) एवं इब्न अब्बास (मृत्यु 683) कुछ अहादिसों की पुस्तिकाएँ प्रमाणित की ऐसा उल्लेख है। उम्मय्या खलीफा उमर बिन-अब्दुल अजीज (मृत्यु 714) ने इब्न शिहाब अल्-जुहरी तथा अबू बक्र अल्-हझम को अहादिस इकट्ठी करने का काम दिया। इस खलीफा ने लिखा, "पवित्र प्रेषित की जो उक्तियां मिलेंगी उन्हें लिखकर रखो क्योंकि ज्ञान एवं ज्ञानी को खोने का मुझे डर है और पवित्र प्रेषित की हदीस के अलावा कुछ भी स्वीकार न करें तथा लोग ज्ञान प्रकट करें।"

संदर्भ: इस्लाम का अंतर दर्शन
लेखक: डॉ. श्रीरंग गोडबोले

#कुरान #अल्-हदीस

गंगा नदी से सटा एक पोखरा था, जिसके प्राणी इच्छानुसार नदी का भ्रमण कर वापिस भी आ जाते थे । जलचर आदि अनेक प्राणियों को दुर...
15/05/2024

गंगा नदी से सटा एक पोखरा था, जिसके प्राणी इच्छानुसार नदी का भ्रमण कर वापिस भी आ जाते थे । जलचर आदि अनेक प्राणियों को दुर्भिक्ष-काल की सूचना पहले ही प्राकृतिक रुप से प्राप्य होती है । अत: जब पोखर-वासियों ने आने वाले सूखे का अन्देशा पाया वे नदी को पलायन कर गये । रह गया तो सिर्फ एक कछुआ क्योंकि उसने सोचा:

“हुआ था मैं पैदा यहाँ
हुआ हूँ मैं युवा यहाँ
रहते आये मेरे माता-पिता भी यहाँ
जाऊँगा मैं फिर यहाँ से कहाँ!”

कुछ ही दिनों में पोखर का पानी सूख गया और वह केवल गीली मिट्टी का दल-दल दिखने लगा । एक दिन एक कुम्हार और उसके मित्र चिकनी मिट्टी की तलाश में वहाँ आये और कुदाल से मिट्टी निकाल-निकाल कर अपनी टोकरियों में रखने लगे । तभी कुम्हार का कुदाल मिट्टी में सने कछुए के सिर पड़ी । तब कछुए को अपनी आसक्ति के दुष्प्रभाव का ज्ञान हुआ और दम तोड़ते उस कछुए ने कहा:-

“चला जा वहाँ
चैन मिले जहाँ
जैसी भी हो वह जगह
जमा ले वहीं धूनी
हो वह कोई
वन, गाँव या हो तेरी ही जन्म-भूमि
मिलता हो जहाँ तुझे खुशी का जीवन
समझ ले वही है तेरा घर और मधुवन”

13/05/2024

श्री लक्ष्मी नरसिंह तोरावी बीजापुर कर्नाटका

Honarable First President Dr Rajendra Prasad Inograted Somnath temple in Gujarat. Sardar Vallabhbhai Patel's idea of res...
11/05/2024

Honarable First President Dr Rajendra Prasad Inograted Somnath temple in Gujarat. Sardar Vallabhbhai Patel's idea of restoring the temple to commemorate the restoration of Indian unity.

जानिए क्या है इस्लाम ?अल्-हदीस का विकास प्रेषित साहब के  काल में  कैसे हुआ ?आज प्रमाणित समझी जाने वाली अहादिस का संग्रह ...
10/05/2024

जानिए क्या है इस्लाम ?

अल्-हदीस का विकास प्रेषित साहब के काल में कैसे हुआ ?

आज प्रमाणित समझी जाने वाली अहादिस का संग्रह प्रेषित की मृत्यु के 200-250 वर्ष बाद सिद्ध हुआ लेकिन इस्लामी विशेषज्ञों के अनुसार हदीस का विकास निम्नांकित छह कालखण्डों में हुआ:

1. प्रेषित का काल (610-632 ):
प्रेषित के जीवनकाल में उनके अनुयायी उनकी परम्परा को अपने हृदय में जतन करते थे। प्रेषित की पत्नियाँ विशेषतः प्रिय पत्नी आयेशा, मैमुना, उम्मे हबीबा, जैनब आदि उनकी यादों को सहेज कर रखती थीं। कॉप्टिक ईसाई, विधवाएं, कुमारिकाएं ऐसी कई तरह की स्त्रियों से प्रेषित का अपने बुढ़ापे में विवाह करना शायद नियति द्वारा हदीस की सुरक्षा के लिए ही बनाई घटनाएं हैं ऐसा मिश्कात-उल् मसबीह के अनुवादक ने लिखा है। प्रेषित के जीवनकाल में हदीस लिखने का रिवाज नहीं था किन्तु कुछ तो अपवाद थे शायद । ‘हमसे सुनी बातों का जस के तस प्रसारण करने वाले सेवक पर अल्लाह प्रसन्न होता है' ऐसा स्वयं प्रेषित ने कहा ऐसा हदीस (4: 44) है ।

'मेरे अनुयायियों में से जो धर्म के बारे में चालीस परंपराएँ याद करेगा उसका पुनरुत्थान के दिन अल्लाह 'मुतकल्लिमून' (अल्लाह ज्ञानी, theologian) के रूप में पुनरुत्थान करेगा और मैं उसके लिए मध्यस्थ तथा गवाह रहूंगा" ऐसा भी प्रेषित द्वारा कहने का हदीस (4:98) है। अब्दुल्ला-बिन-उमर नाम के प्रेषित के साथी ने प्रेषित का
हदीस लिखकर रखने के लिए प्रेषित से अनुमति ली थी ऐसा बुखारी ने अपने संग्रह में लिख रखा है। इस्लाम पूर्व तथा पहले के मुस्लिम अरब लोग अनपढ़ होने के बावजूद उनकी स्मरण शक्ति गजब की थी। हजारों काव्य पंक्ति तथा यादें
ध्यान में रखने की उनकी क्षमता थी ऐसा इस्लामी विशेषज्ञ दावा करते हैं। उदाहरण के लिए, अहादिस के सुप्रसिद्ध संग्रहकर्ता बुखारी को छह लाख अहादिस मुँहजबानी
थी ऐसा भी दावा किया जाता है।

संदर्भ: इस्लाम का अंतर दर्शन
लेखक: डॉ. श्रीरंग गोडबोले

#कुरान #अल्-हदीस

प्रश्न : श्री मल्लिनाथ भगवान का जन्म किस नक्षत्र में हुआ था?
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प्रश्न : श्री मल्लिनाथ भगवान का जन्म किस नक्षत्र में हुआ था?

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08/05/2024

There are two religions on earth, which have distinct enmity against all other religions. These two are Christianity and Islam. They are not just satisfied with observing their own religions but are determined to destroy all other religions. That's why the only way to make peace with them is to embrace their religions.

Rabindranath Tagore

Original works of Rabindranath Vol. 24 page 375, Vishwa Bharti; 1982.

गंगा के किनारे एक वन में एक खरगोश रहता था। उसके तीन मित्र थे - बंदर, सियार और ऊदबिलाव। चारों ही मित्र दानवीर बनना चाहते ...
08/05/2024

गंगा के किनारे एक वन में एक खरगोश रहता था। उसके तीन मित्र थे - बंदर, सियार और ऊदबिलाव। चारों ही मित्र दानवीर बनना चाहते थे। एक दिन बातचीत के क्रम में उन्होंने उपोसथ के दिन परम-दान का निर्णय लिया क्योंकि उस दिन के दान का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। ऐसी बौद्धों की अवधारणा रही है। (उपोसथ बौद्धों के धार्मिक महोत्सव का दिन होता है)

जब उपोसथ का दिन आया तो सुबह-सवेरे सारे ही मित्र भोजन की तलाश में अपने-अपने घरों से बाहर निकले। घूमते हुए ऊदबिलाव की नज़र जब गंगा तट पर रखी सात लोहित मछलियों पर पड़ी तो वह उन्हें अपने घर ले आया। उसी समय सियार भी कहीं से दही की एक हांडी और मांस का एक टुकड़ा चुरा, अपने घर को लौट आया। उछलता-कूदता बंदर भी किसी बाग से पके आम का गुच्छा तोड़, अपने घर ले आया। तीनों मित्रों ने उन्हीं वस्तुओं को दान में देने का संकल्प लिया। किन्तु उनका चौथा मित्र खरगोश तो कोई साधारण प्राणी नहीं था। उसने सोचा यदि वह अपने भोजन अर्थात् घास-पात का दान जो करे तो दान पाने वाले को शायद ही कुछ लाभ होगा। अत: उसने उपोसथ के अवसर पर याचक को परम संतुष्ट करने के उद्देश्य से स्वयं को ही दान में देने का निर्णय लिया।

उसके स्वयं के त्याग का निर्णय संपूर्ण ब्रह्माण्ड को दोलायमान करने लगा और सक्क के आसन को भी तप्त करने लगा। वैदिक परम्परा में सक्क को शक्र या इन्द्र कहते हैं। सक्क ने जब इस अति अलौकिक घटना का कारण जाना तो सन्यासी के रुप में वह उन चारों मित्रों की दान-परायणता की परीक्षा लेने स्वयं ही उनके घरों पर पहुँचे।

ऊदबिलाव, सियार और बंदर ने सक्क को अपने-अपने घरों से क्रमश: मछलियाँ; मांस और दही ; एवं पके आम के गुच्छे दान में देना चाहा। किन्तु सक्क ने उनके द्वारा दी गयी दान को वस्तुओं को ग्रहण नहीं किया। फिर वह खरगोश के पास पहुँचे और दान की याचना की। खरगोश ने दान के उपयुक्त अवसर को जान याचक को अपने संपूर्ण शरीर के मांस को अंगीठी में सेंक कर देने का प्रस्ताव रखा। जब अंगीठी जलायी गयी तो उसने तीन बार अपने रोमों को झटका ताकि उसके रोमों में बसे छोटे जीव आग में न जल जाएँ। फिर वह बड़ी शालीनता के साथ जलती आग में कूद पड़ा।

सक्क उसकी दानवीरता पर स्तब्ध हो उठे। चिरकाल तक उसने ऐसी दानवीरता न देखी थी और न ही सुनी थी।

हाँ, आश्चर्य ! आग ने खरगोश को नहीं जलाया क्योंकि वह आग जादुई थी; सक्क के द्वारा किये गये परीक्षण का एक माया-जाल था।

सम्मोहित सक्क ने तब खरगोश का प्रशस्ति गान किया और चांद के ही एक पर्वत को अपने हाथों से मसल, चांद पर खरगोश का निशान बना दिया और कहा,
"जब तक इस चांद पर खरगोश का निशान रहेगा तब तक हे खरगोश ! जगत् तुम्हारी दान-वीरता को याद रखेगा।"

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05/05/2024

ब्रिटिश पुरालेखवेत्ता और ब्रिटिश सरकार के पुरातत्व विभाग के निदेशक बी. लुईस राइस ने सबसे अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है:

उनकी मृत्यु की पूर्व संध्या पर टीपू सुल्तान के विशाल साम्राज्य में, श्रीरंगपट्टनम किले के भीतर केवल दो हिंदू मंदिर थे जिनमें दैनिक पूजा होती थी। यह केवल उन ब्राह्मण ज्योतिषियों की संतुष्टि के लिए था जो उनकी कुंडली का अध्ययन करते थे कि टीपू सुल्तान ने उन दोनों मंदिरों को छोड़ दिया था। 1790 से पहले ही प्रत्येक हिंदू मंदिर की संपूर्ण संपत्ति जब्त कर ली गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य देश में पूर्ण शराबबंदी के कारण राजस्व हानि की भरपाई करना था।

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05/05/2024

National Cartoonists Day

By Annie Dillard

Eskimo:"If I did not know about God and sin, would I go to hell?"

Priest: "No, not if you did not know."

Eskimo: "Then why did you tell me?"

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