14/04/2022
#जबरदस्त_मिसाल पढ़िएगा ज़रूर...
हम, "तरबूज" खरीदते हैं.
मसलन 5 किलो का एक नग
जब हम इसे खाते हैं
तो पहले इस का #मोटा_छिलका उतारते हैं.
5 किलो में से कम से कम 1किलो
छिलका निकलता है...!
यानी तकरीबन 20%
क्या इस तरह 20% छिलका
जाया होने का हमे #अफसोस होता है?
क्या हम परेशान होते हैं. क्या हम सोचते हैं के हम तरबूज को
ऐसे ही छिलके के साथ खालें.
नही बिलकूल नाही!
यही हाल #केले, अनार, पपीता और
दीगर फलों का है. हम खुशी से छिलका उतार कर खाते हैं, हालांके हम ने इन फलों को #छिलकों_समेत खरीदा होता है..!!
मगर छिलका फेंकते वक्त हमे,बिल्कुल तकलीफ नही होती..
इसी तरह #मुर्गा_बकरा साबुत खरीदते हैं. मगर जब खाते हैं, तो
इस के बाल,खाल वगैरे निकाल कर
फेंक देतें हैं.
क्या इस पर हमें कुछ #दुःख होता है ?
नही और हरगिज़ नहीं ...
तो फिर 40 हजार मे से 1 हजार देने पर
1लाख मे से 2500/-रूपये देने पर
क्यो हमें बहुत तकलीफ होती है ?
हालांके ये सिर्फ 2.5% बनता है यानी 100/- रूपये में से सिर्फ (ढाई) 2.50/-रूपये ।
ये तरबूज, आम, अनार वगैरे के छिलके और गुठली से कितना कम है,
इसे शरीयत मे #जकात फरमाया गया है,
इसे देने से
माल भी पाक, इमान भी पाक,
दिल और जिस्म भी पाक
और माशरा भी खुशहाल,
इतनी मामूली रकम यानी 40/-रूपये मे से सिर्फ 1 रूपया, 100 रूपये मे से सिर्फ 2.5 रूपया.
और फायदे कितने ज्यादा,
बरकत कितनी ज्यादा।
इसलिए जकात दो।
●जज़ाक़ल्लाहु खैरा●