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16/02/2021
विद्या या ज्ञान की देवी ,                विदेशी वैदिक संस्कृति के ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती                             ...
16/02/2021

विद्या या ज्ञान की देवी ,
विदेशी वैदिक संस्कृति के ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती
या
भारत की मूल संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता /बहुजन
संस्कृति के माता सावित्रीबाई फुले ........?
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P. K. Azad Bhartiya,
Editor, DNM NEWS channel
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1) भारत के मूल संस्कृति बहुजन संस्कृति के माता
सावित्रीबाई फुले के संबंध में...?
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1) सावित्रीबाई फुले • का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था।इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था।

2) सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।सावित्रीबाई ने अपने जीवन का उद्देश्य विधवा विवाह करवाना, छुआछात मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना बनाया। कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा फुले देश की पहली महिला अध्यापक-नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं

3)18 स्कूलों की प्रथम संचालिका थी आज से लगभग 168 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई.उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं.

4)आज भारत में जो शिक्षा की सुधरी हुई स्थिति है, वह सरस्वती नहीं माता सावित्री बाई फूले की देन है । आम लोगो की शिक्षा के जनक और जननी तो महामना ज्योतिबा फूले और माता सावित्री बाई फुले हैं । अंग्रेज मैकाले की शिक्षा प्रसार नीति की जड़ में फूले दम्पत्ती थे । उनका पूरा समर्थन और सहारा लेकर लार्ड मैकाले ने भारत में शिक्षा प्रसार किया ।

2) विदेशी आर्य वैदिक संस्कृति के ब्रह्मा की पुत्री
सरस्वती के संबंध में.....?
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1) दूसरी तरफ विदेशी और वैदिक संस्कृति के प्रतीक हिंदू संस्कृति संस्कृति के सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है।

2)देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की स्त्री हैं। उनके एक मुख, चार हाथ हैं। इनका वाहन हंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेद और माला होती है। भारत में कोई भी शैक्षणिक कार्य के पहले इनकी पूजा की जाती हैं।क्या सरस्वती ज्ञान की देवी है ?
अगर है तो इन शंकाओं का समाधान करें-

1-इसके बिना ईसाई,मुसलमान,प्रकृतिपूजक(आदिवासी)नास्तिक आदि कैसे ज्ञान प्राप्त कर पा रहे है?

2 --सरस्वती कितनी भाषाएँ जानती है ?

3 --हड़प्पा सभ्यता की लिपि अब तक नहीं पढ़ी गई। इस संबंध में सरस्वती का क्या प्लान है ?

4 --सरस्वती के होते हुए स्कूलों में शिक्षकों की जरूरत क्यों पड़ती है ?

5--- अंग्रेजों के पहले भारत मेँ अंग्रेजी क्योँ नहीँ थी. क्या सरस्वती पहले अंग्रेजी नहीँ जानती थी ?

6---- कई देश शतप्रतिशत साक्षर हो गए, जबकी भारत सरस्वती के होते हुए भी साक्षरता मेँ पीछे है, क्योँ ?

7----- मनु ने मनुस्मृति मेँ शूद्रोँ का पढ़ना दंडनीय माना है। आज तक इस मामले मेँ सरस्वती ने कोई एक्शन क्योँ नहीँ लिया ? क्या सरस्वती भी इस षडयंत्र मेँ शामिल थी? ज्ञान तो सरस्वती देती है. क्या यह ज्ञान मनु को सरस्वती ने ही दिया था ?

8------ कई भाषाएँ लुप्त हो गई और कई लुप्त हो रही हैँ। सरस्वती उन्हेँ क्योँ नहीँ बचा पा रही हैँ? क्या इतनी सारी भाषाओँ को याद रखना उनके लिए मुश्किल हैँ ?

9------ कुछ बच्चे मेहनत करने पर भी पढ़ाई मेँ कमजोर होते हैँ. क्योँ ? क्या वह भेदभाव करती हैँ अगर आप इस निष्कर्ष पर पहुचते की की विद्या की वास्तविक देवी सावत्री बाई है तो उनके जन्म दिन पर हार्दिक नमन !!

10-- उपरोक्त बातों से स्पष्ट होता है कि शिक्षा की देवी विदेशी आर्य संस्कृति के ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती नहीं बल्कि भारत की मूल संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता या बहुजन संस्कृति के माता सावित्रीबाई फुले जी हैं इसलिए हम सभी भारत वासियों को या यूं कहें हम सभी विश्व वासी सभी मिलकर शिक्षा की देवी माता सावित्रीबाई फुले को ही माने और बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा के जगह माता सावित्रीबाई फुले को शिक्षा के देवी के रूप में याद करें
जय भीम ! जय भारत !! जय भारतीय संविधान !!!
जय बहुजन समाज ! जय भारतीय समाज !!

.आंबेडकर ने श्रम मंत्रालय संभाला?  # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # #1) भारत में श्रम विभाग नवंबर 1937 में स्था...
17/05/2020

.आंबेडकर ने श्रम मंत्रालय संभाला?
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1) भारत में श्रम विभाग नवंबर 1937 में स्थापित किया गया था और डॉ़ भीमराव आंबेडकर ने जुलाई, 1942 में श्रम मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। उस वक्त सिंचाई और विद्युत विकास के लिए नीति निर्माण और योजनाएं बनाना पहला काम था। श्रम विभाग ने डॉ. आंबेडकर के मार्गदर्शन में विद्युत प्रणाली के विकास, जल विद्युत केन्द्र स्थलों, पनविद्युत सर्वेक्षण, विद्युत उत्पादन की समस्याओं का विश्लेषण और थर्मल पावर स्टेशनों की समस्याओं की जांच-पड़ताल के लिए केंद्रीय तकनीकी विद्युत बोर्ड (सीटीपीबी) स्थापित करने का फैसला किया।

2) चाहे भारतीय रिजर्व बैंक के संस्थापक के दिशानिर्देश हों या अर्थव्यवस्था के किसी अन्य पहलू को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत, भारत को जो भी सबसे अच्छा मिल सकता था, डॉ. आंबेडकर ने दिया। यह डॉ. आंबेडकर ही थे, जिन्होंने भारत में 14 घंटे से घटाकर 8 घंटे के कार्य दिवस की शुरुआत की। उन्होंने यह कार्य नई दिल्ली में भारतीय श्रम सम्मेलन के 7वें सत्र में 27 नवंबर, 1942 को किया था।

3) डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत में महिला श्रमिकों के लिए कई कानूनों का निर्माण किया, जैसे कि ‘खदान मातृत्व लाभ अधिनियम’, ‘महिला श्रमिक कल्याण निधि’, ‘महिला एवं बाल श्रमिक संरक्षण अधिनियम’, ‘महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ’ और ‘कोयला खदानों में भूमिगत काम पर महिलाओं को रोजगार देने पर प्रतिबंध’ की बहाली। कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) श्रमिकों को चिकित्सा देखभाल में, चिकित्सा छुट्टी, काम के दौरान घायल होने की वजह से शारीरिक विकलांगता में, कामगारों को क्षतिपूर्ति और विभिन्न सुविधाओं के प्रावधान के लिए मददगार होता है। पूर्वी एशियाई देशों में भारत ऐसा पहला राष्ट्र था, जिसने कर्मचारियों की भलाई के लिए बीमा अधिनियम बनाया था। ‘महंगाई भत्ता’ (डीए), ‘अवकाश लाभ’, ‘वेतनमान का पुनरीक्षण’ जैसे प्रावधान डॉ. आंबेडकर के कारण ही हैं।

4)‘कोयला और माइका (अभ्रक) खान भविष्य निधि’ की दिशा में भी डॉ़ आंबेडकर का महत्वपूर्ण योगदान था। उस काल में कोयला उद्योग हमारे देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

5) 31 जनवरी, 1944 को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने श्रमिकों के लाभ के लिए कोयला खान सुरक्षा संशोधन विधेयक अधिनियम बनाया। 8 अप्रैल, 1946 को उन्होंने अभ्रक खान श्रमिक कल्याण कोष का गठन किया, जो श्रमिकों के लिए आवास, जलापूर्ति, शिक्षा, मनोरंजन, सहकारी व्यवस्थाओं में मददगार रहा। इसके अलावा डॉ़ आंबेडकर ने बी़ पी़ अगरकर के मार्गदर्शन में श्रमिक कल्याण कोष से उत्पन्न होने वाले महत्वपूर्ण मामलों पर सलाह देने के लिए एक सलाहकार समिति का गठन किया। बाद में जनवरी, 1944 को उन्होंने इसे विधिवत तौर पर प्रस्थापित
कर दिया।

6) वायसराय की परिषद के श्रम सदस्य के तौर पर डॉ़ आंबेडकर ने श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने, उन्हें शिक्षा और कार्य में बेहतर प्रदर्शन, आवश्यक कौशल उपलब्ध कराने, उनके स्वास्थ्य की देखभाल और महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व प्रावधान उपलब्ध कराने के लिए कार्यक्रम शुरू किए। 1942 में डॉ़ आंबेडकर ने श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों की रक्षा की खातिर, श्रम नीति के निर्धारण में भागीदारी के लिए श्रमिकों और नियोक्ताओं को समान अवसर देने और ट्रेड यूनियनों की तथा श्रमिक संगठनों को अनिवार्य मान्यता शुरू करके श्रमिक आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए त्रिपक्षीय श्रम परिषद की स्थापना की। डॉ़ आंबेडकर ने ऊर्जा क्षेत्र में ग्रिड प्रणाली के महत्व और आवश्यकता पर बल दिया, जो आज भी सफलतापूर्वक काम कर रही है। यदि आज विद्युत इंजीनियर प्रशिक्षण के लिए विदेश जाते हैं, तो इसका श्रेय भी डॉ़ आंबेडकर को ही जाता है, जिन्होंने श्रम विभाग के प्रमुख के तौर पर सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरों को विदेशों में प्रशिक्षित करने के लिए नीति तैयार की थी।

7) श्रम को संविधान की समवर्ती सूची में रखने, मुख्य और श्रम आयुक्तों को नियुक्त करने, श्रम जांच समिति का गठन करने आदि का श्रेय भी डॉ़ आंबेडकर को ही जाता है। न्यूनतम मजदूरी अधिनियम भी डॉ़ आंबेडकर के योगदान की वजह से बना था, और यही स्थिति महिला श्रमिकों को सशक्त बनाने वाले मातृत्व लाभ विधेयक की है। अगर आज भारत में रोजगार कार्यालय दिखाई देते हैं, तो ऐसा डॉ़ आंबेडकर की दूरदृष्टि के कारण है। यदि श्रमिक अपने अधिकारों के लिए हड़ताल पर जा सकते हैं, तो ऐसा बाबासाहेब आंबेडकर की वजह से है। उन्होंने श्रमिकों के हड़ताल करने के अधिकार को स्पष्ट रूप से मान्यता प्रदान की थी। 8 नवंबर, 1943 को डॉ़ आंबेडकर ने ट्रेड यूनियनों की अनिवार्य मान्यता के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) विधेयक पेश किया। डॉ़ आंबेडकर का बराबर मानना रहा कि दलित वगोंर् को इस देश के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। यह बात निर्विवाद रूप से कही जा सकती है कि अगर भारत में मजदूरों के पास अधिकार हैं, तो ऐसा डॉ़ आंबेडकर की मेहनत और समर्पित श्रमिकों की ओर से उसके लिए लड़ी गई लड़ाई की वजह से है।

8) भारत के श्रम मंत्री के नाते डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा दिया गया योगदान

फैक्टरी में काम के घंटों में कटौती (8 घंटों की ड्यूटी)
(आज भारत में प्रतिदिन काम की अवधि लगभग 8 घंटे होती है। कितने भारतीयों को यह बात पता है कि डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर भारत में मजदूरों के उद्धारकर्ता थे। उन्होंने भारत में काम के 8 घंटे तय करवाए। कामकाज का समय 14 से घटाकर 8 घंटे किया जाना भारत के श्रमिकों के लिए प्रकाशपुंज जैसा था। उन्होंने यह प्रस्ताव 27 नवंबर, 1942 को नई दल्लिी में भारतीय श्रम सम्मेलन के 7वें सत्र में प्रस्तुत किया।)

9) बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत में महिला मजदूरों के लिए कई कानूनों का नर्मिाण किया-

खान मातृत्व लाभ अधिनियम,
महिला श्रमिक कल्याण कोष,
महिला एवं बाल श्रम संरक्षण अधिनियम,
महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व लाभ
कोयला खदानों में भूमिगत काम पर महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध की बहाली
भारतीय फैक्टरी अधिनियम

10) राष्ट्रीय रोजगार एजेंसी (रोजगार कार्यालय) का गठन:

(रोजगार कार्यालयों को स्थापित करने में डॉ़ बाबासाहेब आंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दूसरे वश्वि युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश इंडिया में बनी तात्कालिक सरकार में श्रम सदस्य के रूप में उन्होंने रोजगार कार्यालयों को गठित किया। इसी प्रकार ट्रेड यूनियनों, मजदूरों और सरकार के प्रतिनिधियों के माध्यम से श्रम मुद्दों को निबटाने के लिए त्रिपक्षीय पद्धति लागू की और सरकारी क्षेत्र में कौशल विकास पहल शुरू की। )
ल्ल कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई)
ईएसआई श्रमिकों को चिकत्सिा देखभाल में, चिकत्सिा अवकाश, काम के दौरान घायल होने की वजह से शारीरिक विकलांगता में, कामगारों को क्षतिपूर्ति और विभन्नि सुविधाओं के प्रावधान में मददगार होता है। डॉ. आंबेडकर ने इसे श्रमिकों के लाभ के लिए प्रस्तुत और अधिनियमित किया था। वास्तव में पूर्वी एशियाई देशों में ‘बीमा अधिनियम’ लाने वाला भारत सबसे पहला राष्ट्र था। इसका श्रेय डॉ. आंबेडकर को ही जाता है।
वत्ति आयोग की सभी रिपोटोंर् के लिए मूल संदर्भ स्रोत एक तरह से डॉ. आंबेडकर की पीएचडी थीसिस, ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वत्ति विकास पर आधारित हैं, जो उन्होंने 1923 में लिखी थी।

11) भारत की जल नीति और वद्यिुत योजना
सिंचाई और वद्यिुत के विकास के लिए नीति नर्मिाण और योजना बनाना उनकी चिंता का प्रमुख विषय था।

11/05/2020

अखंड भारत की राजधानी
और अखंड भारत का इतिहास को जाने और समझें ?
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पी.के.आजाद भारतीय
प्रधान संपादक
दैनिक न्याय मार्ग दैनिक हिंदी समाचार पत्र
एवं डीएनएम न्यूज़ चैनल
Mob. 9801107580/9431053109
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1) ◼ मौर्य साम्राज्य के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट बृहद्रथ मौर्य की साजिश के तहत धोखे से हत्या करने वाला हत्यारा ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग...

2)◼ अखण्ड भारत में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में अखण्ड भारत के निर्माता चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक महान के वंशज मौर्य वंश के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य की हत्या उन्हीं के सेनापति ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से की थी और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।

3)◼ उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा हजारों की संख्या मे बौद्ध भिक्षुओ का खुलेआम कत्लेआम किया था। पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों व यहाँ की जनता पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण ब्राह्मण धर्म कबूल करवाता था ।

4) ◼ उत्तर -पश्चिम क्षेत्र पर यूनानी राजा मिलिंद का अधिकार था। राजा मिलिंद बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जैसे ही राजा मिलिंद को पता चला कि पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर अत्याचार कर रहा है तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। पाटलिपुत्र की जनता ने भी पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया, इसके बाद पुष्यमित्र शुंग जान बचाकर भागा और उज्जैनी में जैन धर्म के अनुयायियों की शरण ली ।

5) ◼ जैसे ही इस घटना के बारे में कलिंग के राजा खारवेल को पता चला तो उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित करके पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया ,पाटलिपुत्र से यूनानी राजा मिलिंद को उत्तर पश्चिम की ओर धकेल दिया ।

6) ◼ इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग (राम) ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया। पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी....।

7) ◼ राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग (राम) ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, बौद्ध भिक्षुओं का सिर काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी। इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ। राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सिर आने लगे । इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था

8) ◼ राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात वर्तमान में अपभ्रंश "सरयू" हो गया..।

9) ◼ इसी "सरयू" नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने "रामायण" लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और "रावण" के रूप में मौर्य सम्राटों का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में "सरयू" नदी के किनारे हुई ।

10) ◼ बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए। तब ब्राह्मणों ने इन बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रों, देवी देवताओं को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी...।

11) ◼ ध्यान रहे उक्त बृहद्रथ मौर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था, ना ही इस तरह की संस्क्रति थी। वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है...।

12) ◼ पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी " सच्ची रामायण" पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर (412/1970 )में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बीच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला ।

13) ◼ जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य सही है।

सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि "रामायण" नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातात्विक कोई आधार नही है...।
जय भीम जय भारत
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डॉ. आंबेडकर ने इस्लाम, ईसाई या सिख धर्म                       की जगह बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया ?  # # # # # # # # # # #...
11/05/2020

डॉ. आंबेडकर ने इस्लाम, ईसाई या सिख धर्म
की जगह बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया ?
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1) आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1936 में ही अपने भाषण जातिभेद का उच्छेद यानी एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में कर दी थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन 1956 में जाकर किया. इस बीच उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया.

2) यह प्रश्न अक्सर लोगों की जिज्ञासा का विषय होता है कि आखिर हिंदू धर्म छोड़ने के बाद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया? इसके बारे में कई तरह के भ्रम हैं. इस संदर्भ में अक्सर यह प्रश्न भी पूछा जाता है कि आखिर उन्होंने हिंदू धर्म क्यों छोड़ा और ईसाई या इस्लाम या सिख धर्म क्यों नहीं अपनाया?

3) इन प्रश्नों का मुकम्मल जवाब डॉ. आंबेडकर के लेख ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ में मिलता है. इस लेख में उन्होंने बताया है कि क्यों बौद्ध धम्म उनकी नजरों में श्रेष्ठ है और क्यों यह संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी है. मूलरूप में यह लेख अंग्रेजी में बुद्धा एंड दि फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन (Buddha and the Future of his Religion) नाम से यह कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में 1950 में प्रकाशित हुआ था. यह लेख डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर राटिंग्स एंड स्पीचेज के खंड 17 के भाग- 2 में संकलित है.

4) इस लेख में उन्होंने विश्व में सर्वाधिक प्रचलित चार धर्मों बौद्ध धम्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम की तुलना की है. वे इन चारों धर्मों को अपनी विभिन्न कसौटियों पर कसते हैं.

5) बुद्ध का मानवीय रूप बाबा साहेब को पसंद आया:

सबसे पहले वे इन चारों धर्मों के संस्थापकों, पैगंबरों और अवतारों की तुलना करते हैं. वे लिखते हैं कि ‘ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह खुद को ईश्वर का बेटा घोषित करते हैं और अनुयायियों से कहते हैं कि जो लोग ईश्वर के दरबार में प्रवेश करना चाहते हैं उन्हें उनको ईश्वर का बेटा स्वीकार करना होगा. इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद खुद को खुदा का पैगम्बर (संदेशवाहक) घोषित करते हुए घोषणा करते हैं कि मुक्ति चाहने वालों को न केवल उन्हें खुदा का पैगम्बर मानना होगा, बल्कि यह भी स्वीकार करना होगा कि वह अन्तिम पैगम्बर हैं.’ इसके बाद डॉ. आंबेडकर हिंदू धर्म की बात करते हैं. हिंदू धर्म के बारे में वे कहते हैं कि ‘इसके अवतारी पुरुष ने तो ईसा मसीह और मुहम्मद से भी आगे बढ़कर खुद को ईश्वर का अवतार यानी परमपिता परमेश्वर घोषित किया है.’

6) बुद्ध ने कभी नहीं किया मुक्तिदाता होने का दावा :

इन तीनों की तुलना गौतम बुद्ध से करते हुए डॉ. आंबेडकर लिखते हैं कि ‘उन्होंने ( बुद्ध) एक मानव के ही बेटे के तौर पर जन्म लिया, एक साधारण पुरुष बने रहने पर संतुष्ट रहे और वह एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपने धर्म का प्रचार करते रहे. उन्होंने कभी किसी अलौकिक शक्ति का दावा नहीं किया और न ही अपनी किसी अलौकिक शक्ति को सिद्ध करने के लिए चमत्कार दिखाए. बुद्ध ने मार्ग-दाता और मुक्ति-दाता में स्पष्ट भेद किया.’

ईसा, पैगंबर मुहम्मद और कृष्ण ने अपने को मोक्ष-दाता होने का दावा किया, जबकि बुद्ध केवल मार्ग-दाता होने पर ही संतुष्ट थे. डॉ. आंबेडकर ऐसा कोई भी धर्म स्वीकार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे, जिसमें ईश्वर या ईश्वर के बेटे, पैगम्बर या खुद ईश्वर के अवतार के लिए कोई जगह हो. उनके गौतम बुद्ध एक मानव हैं और बौद्ध धर्म एक मानव धर्म, जिसमें ईश्वर के लिए कोई जगह नहीं है.

7) बौद्ध धर्म विश्वास नहीं, तर्क और अनुभव पर आधारित :

इन चारों धर्मों की तुलना डॉ. आंबेडकर ईश्वरीय वाणी के संदर्भ में करते हैं. वे लिखते हैं कि ‘इन चार धर्म प्रवर्तकों के बीच एक और भेद भी है. ईसा और मुहम्मद दोनों ने दावा किया कि उनकी शिक्षा ईश्वर या अल्लाह की वाणी है और ईश्वर वाणी होने के कारण इसमें कोई त्रुटि नहीं हो सकती और यह संदेह से परे है. कृष्ण अपनी स्वयं की ही धारण की हुई उपाधि के अनुसार विराट रूप परमेश्वर थे और उनकी शिक्षा चूंकि परमेश्वर के मुंह से निकली हुई ईश्वर वाणी थी, इसलिए इसमें किसी प्रकार की कोई गलती होने का प्रश्न ही नहीं उठता.’

इन तीनों की तुलना बुद्ध से करते हुए आंबेडकर लिखते हैं कि ‘बुद्ध ने अपनी शिक्षा में इस तरह के अंतिम सत्य होने का दावा नहीं किया. ‘महापरिनिर्वाण-सूत्र’ में उन्होंने आनन्द को बताया कि उनका धर्म तर्क और अनुभव पर आधारित है.’ बुद्ध ने यह भी कहा है कि उनके अनुयायियों को उनकी शिक्षा को केवल इसीलिए सही और जरूरी नहीं मान लेना चाहिए कि यह उनकी (बुद्ध की) दी हुई है. यदि किसी विशेष समय और विशेष स्थिति में इस शिक्षा में से कोई बात सटीक न मालूम होती हो तो इसमें उनके अनुयायी सुधार कर सकते हैं और कुछ चीजों का त्याग कर सकते हैं.

8) बौद्ध धर्म में सुधार, संशोधन और विकास की संभावना:

आंबेडकर लिखते हैं कि ‘वे (बुद्ध) चाहते थे कि उनके धर्म पर भूतकाल के मुर्दा बोझ न लादे जायें. उनका धर्म सदाबहार रहे और सभी वक्त के लिए उपयोगी भी हो.’ यही कारण था कि उन्होंने अपने अनुयायियों को जरूरत पड़ने पर धर्म को संवारने-सुधारने की स्वतंत्रता दी. वे लिखते हैं कि ‘किसी भी अन्य धर्म-उपदेशक ने ऐसा करने का साहस नहीं दिखाया.’

9) ‘बुद्ध एंड फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन’ शीर्षक के अपने इसी लेख में डॉ. आंबेडकर का कहना है कि धर्म को विज्ञान और तर्क की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए. वे लिखते हैं कि ‘धर्म को यदि वास्तव में कार्य करना है तो उसे बुद्धि या तर्क पर आधारित होना चाहिए, जिसका दूसरा नाम विज्ञान है.’ फिर वे धर्म को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की कसौटी पर कसते हुए लिखते हैं कि ‘किसी धर्म के लिए इतना पर्याप्त नहीं है कि उसमें नैतिकता हो. उस नैतिकता को जीवन के मूलभूत सिद्धान्तों- स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व को मानना चाहिए.’

10) इन तुलनाओं के बाद डॉ. आंबेडकर बुद्ध की उन अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हैं, जिनके चलते उन्हें बौद्ध धम्म अन्य धर्मों से श्रेष्ठ लगा. वे लिखते हैं कि ‘यह तमाम बातें शायद बहुत आश्चर्यजनक प्रतीत हों. यह इसलिए कि जिन लोगों ने बुद्ध के सम्बन्ध में लिखा है, उनमें से एक बड़ी संख्या ने यह सिद्ध करने पर जोर लगाया कि बुद्ध ने केवल एक ही बात की शिक्षा दी और वह है अहिंसा.’

11) वे लिखते हैं कि ऐसा मानना बहुत बड़ी गलती थी. वे आगे लिखते हैं कि ‘यह सच है कि बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा दी. मैं इसके महत्व को कम नहीं करना चाहता, क्योंकि यह एक ऐसा महान सिद्धान्त है कि यदि संसार इस पर आचरण नहीं करता तो उसे बचाया नहीं जा सकेगा. मैं जिस बात पर बल देना चाहता हूं, वह यह है कि बुद्ध ने अहिंसा के साथ ही समानता की शिक्षा दी. न केवल पुरुष और पुरुष के बीच समानता, बल्कि पुरुष और स्त्री के बीच समानता की भी.’

12) समानता को आंबेडकर किसी धर्म का सबसे मूलभूत सिद्धांत मानते थे. वे लिखते हैं कि ‘हिन्दू धर्म का असली सिद्धान्त असमानता है. चातुर्वण्य का सिद्धान्त इस असमानता के सिद्धान्त का ठोस और जीता-जागता साकार रूप है.’ बुद्ध चातुर्वण्य के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने न केवल इसके विरुद्ध प्रचार किया और इसके विरुद्ध लड़ाई लड़ी, बल्कि इसको जड़ से उखाड़ने के लिए सब कुछ किया.

13) हिन्दू धर्म के अनुसार न शूद्र और न नारी धर्म के उपदेशक हो सकते थे. न ही वह संन्यास ले सकते थे और न ईश्वर तक पहुंच सकते थे. दूसरी ओर बुद्ध ने शूद्रों को भिक्षु संघ में प्रविष्ट किया. उन्होंने नारी के भिक्षुणी बनने के अधिकार को स्वीकार किया (बुद्धा एंड दी फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन).

14) आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1936 में ही अपने भाषण जातिभेद का उच्छेद यानी एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में कर दी थी लेकिन उन्होंने धर्म परिवर्तन 1956 में जाकर किया.

15) इस बीच उन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और फिर अपने हिसाब से श्रेष्ठ धर्म का चयन किया. अच्छे और कल्याणकारी धर्म की उनकी खोज उन्हें बौद्ध धम्म तक ले गई. इसलिए उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म ग्रहण किया.
जय भीम जय भारत

आरक्षण पर SC के फैसले पर बिहार में सियासत,                            दलित विधायकों ने केंद्र को भेजा पत्र?  # # # # # #...
09/05/2020

आरक्षण पर SC के फैसले पर बिहार में सियासत,
दलित विधायकों ने केंद्र को भेजा पत्र?
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पी.के.आजाद भारतीय
प्रधान संपादक
दैनिक न्याय मार्ग दैनिक हिंदी समाचार पत्र
एवं डीएनएम न्यूज़ चैनल
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1) हाल में ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्य सरकार पर्याप्त प्रतिनिधित्व जांचे बगैर प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरिष्ठता नहीं दे सकती

2) बिहार में अब से लगभग चार महीने बाद विधानसभा चुनाव (Assembly elections) प्रस्तावित है. इसको देखते हुए प्रवासी मजदूर, कोटा के छात्र और राशन कार्ड जैसे कई मुद्दों ने काफी तूल पकड़ा और सरकार को इन मामलों में बैकफुट पर आना पड़ा. सियासत के इसी शोर में एक और मुद्दा उछला है आरक्षण का. इस बार ये सड़क पर नहीं बल्कि बिहार विधानसभा की लॉबी में काफी जोर-शोर से उठा.

3) दरअसल विधानसभा की लॉबी में शुक्रवार को बिहार सरकार के उद्योग मंत्री व जेडीयू के विधायक श्याम रजक (Shyam Rajak) की पहल पर प्रदेश के 22 दलित विधायकों की सर्वदलीय बैठक (All party meeting) हुई जिसमें सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के हालिया फैसले पर सवाल उठाए गए और तुरंत केंद्र सरकार से दखल देने की अपील की गई.

4) सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था फैसला:

बता दें कि हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण और परिणामी वरिष्ठता पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्य सरकार पर्याप्त प्रतिनिधित्व जांचे बगैर प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरिष्ठता नहीं दे सकती. सुप्रीम कोर्ट ने एम नागराज और जनरैल सिंह के मामले में संविधान पीठ के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण के साथ परिणामी वरिष्ठता देने से पहले पर्याप्त प्रतिनिधित्व जांचना होगा. इसके बाद से ही बिहार में इस मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई है.

5) पीएम-प्रेसिडेंट को भेजा पत्र:

विधानसभा लॉबी में बैठक के बाद विधायकों ने विधानसभा परिसर में प्रदर्शन किया और सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के खिलाफ नारेबाजी भी की. इसके बाद श्याम रजक के अलावा पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, ललन पासवान और रामप्रीत पासवान समेत 22 विधायकों ने एससी एसटी आरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को पत्र भेजा.

6) विधायकों ने कही ये बात:

चार पन्नों में लिखे गए इस पत्र में विधायकों ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट भारतीय संविधान का संरक्षक और अंतिम व्याख्याकार है. किंतु दुख के साथ कहना है कि 2017 से बारी-बारी से सुप्रीम कोर्ट का अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को वर्ग को प्राप्त प्रतिनिधि एवं प्रमोशन के के विरोध में निर्णय आया है.

7) आरक्षण के प्रावधान को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग:
इसमें अनुसूचित जाति जनजाति को पत्र प्राप्त संवैधानिक संरक्षण एवं सामाजिक न्याय के अधिकारों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगातार दिए गए निर्देशों को निरस्त करते हुए प्रतिनिधित्व आरक्षण के प्रावधान को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है.

8) ऑनलाइन अधिसूचना लाने की मांग:

सारे विधायकों ने राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से पूर्व से जारी आरक्षण और प्रमोशन में आरक्षण को फिर से लागू करने और न्यायपालिका में प्रतिनिधि आरक्षण का प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन करने की अधिसूचना ऑनलाइन लाने और कानून बनाने की मांग की है.

9) केंद्र सरकार से वक्तव्य जारी करने की मांग:

विधायकों ने कहा है कि कोरोना की वजह से लॉकडाउन लागू है और संसद सत्र के बिना आरक्षण में प्रमोशन को नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सकता. इस विषय पर इस वर्ग में काफी आक्रोश है इसलिए प्रधानमंत्री अथवा केंद्र सरकार की ओर से तत्काल एक वक्तव्य जारी किया जाए ताकि हमें विश्वास हो सके कि आने वाले संसद सत्र में इसका निराकरण हो.
जय भीम जय भारत

वैदिक संस्कृति का प्राचीन का इतिहास को जानें  ?  # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # पी.के.आ...
09/05/2020

वैदिक संस्कृति का प्राचीन का इतिहास को जानें ?
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पी.के.आजाद भारतीय
प्रधान संपादक
दैनिक न्याय मार्ग दैनिक हिंदी समाचार पत्र
एवं डीएनएम न्यूज़ चैनल
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1) ● ‘आर्य’ शब्द का अर्थ क्या है— श्रेष्ठ या कुलीन

2) ● आर्यों की भाषा क्या थी— संस्कृत

3) ● आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था— पशुपालन एवं कृषि

4) ● आर्यों ने सबसे पहले किस धातु की खोज की— लोहा

5) ● उत्तर वैदिक काल के वेद विरोधी व ब्राह्मण विरोधी धार्मिक अध्यापकों को क्या कहा जाता था— श्रमण

6) ● वैदिक गणित का महत्वपूर्ण अंग क्या है— शुल्व सूत्र

7) ● वेदों की संख्या कितनी है— 4

8) ● सबसे प्राचीन वेद कौन-सा है— ऋग्वेद

9) ● किस वेद द्वारा वैदिक संस्कृति के बारे में ज्ञान होता है— ऋग्वेद द्वारा

10) ● भारत के राजचिन्ह में लिखा ‘सत्य-मेव-जयते' किस उपनिषद् से लिया गया है— मुंडक उपनिषद्

11) ● भारतीय संगीत का आदि ग्रंथ किस वेद को कहा जाता है— सामवेद

12) ● प्रथम विधि निर्माता कौन है— मनु

13) ● ‘मनुस्मृति’ की रचना किसने की— मनु ने

● कृष्ण भक्ति का प्रथम एवं प्रधान ग्रंथ कौन-सा है— श्रीमद्भागवत गीता

14) ● ऋग्वेद में संपत्ति का मुख्य रूप क्या है— गो धन

15) ● किस मंडल में शुद्रों का उल्लेख ऋग्वेद में पहली बार मिलता है—10वें

16) ● पुराणों की संख्या कितनी है— 18

17) ● वैदिक धर्म का मुख्य लक्षण किसकी उपासना था— प्रकृति

18) ● किस देवता के लिए ऋग्वेद में पुरंदर शब्द का प्रयोग हुआ है— इंद्र के लिए

19) ● ‘शुल्व सूत्र’ किस विषय से संबंधित है— ज्यामिति से

20) ● ‘असतो मा सद्गमय’ कहाँ से लिया गया है— ऋग्वेद से

21) ● आर्य बाहर से आकार सर्वप्रथम कहाँ बसे थे— पंजाब में

22) ● ऋग्वेद का कौन-सा मंडल पूर्णतः सोम को समर्पित है— नौवाँ मंडल

23) ● ‘दस राजाओं का प्रसिद्ध युद्ध’ दसराज युद्ध किस नदी पर हुआ था—परुणी नदी पर

24) ● धर्म शास्त्रों में भू-राजस्व की दर क्या है— 1/6

25) ● 800 ई. पू. में 600 ई. पू. का युग कौन-सा युग कहा जाता है—ब्राह्मण युग

26) ● प्रसिद्ध गायत्री मंत्र किस पुस्तक में है— ऋग्वेद में

27) ● न्याय दर्शन को किसने प्रचारित किया था— गौतम ने

28) ● प्राचीन भारत में ‘निंक’ के नाम से किसे जाना जाता
है— स्वर्ण आभूषणों को

29) ● योग दर्शन का प्रतिपादन किसने किया— पंतजलि

30) ● उपनिषद् किस पर आधारित हैं— दर्शनपर

31) ● आरंभिक वैदिक सभ्यता में सबसे बड़ी नदी कौनसी
थी— सिंधु नदी

32) ● कौन-सा वेद गद्य और पद्य दोनों में रचित है— यजुर्वेद

33) ● विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य कौन-सा है— महाभारत

34) ● महाभारत का दूसरा नाम क्या है— जयसंहिता

35) ● महाभारत के रचियता कौन हैं— देवव्यास

36) ● रामायण किसके द्वारा रचित है— वाल्मीकि

37) ● उपनिषद काल के राजा अश्वपति किस स्थान के शासक थे— केकैय

38) ● अध्यात्मक ज्ञान के संबंध में नचिकेता और यम का संवाद किस उपनिषद से प्राप्त होता है— कठोपनिषद्

39) ● वैदिक नदी ‘कुभा’ का स्थान कहाँ हैं
— अफगानिस्तान में

40) ● कपिल मुनि द्वारा प्रतिपातिद की गई दार्शनिक प्रणाली कौन-सी है—सांख्य दर्शन

41) ● भारत के किस स्थल की खुदाई में लौहधातु के प्रचलन के प्रमाण मिले— अतरंजीखेड़ा

42) ● किस वेद का संकलन ऋग्वेद पर आधारित है— सामवेद

43) ● कर्म का सिद्धांत किससे संबंधित है— मीमांसा से

44) ● ‘चरक संहिता’ किससे संबंधित है— चिकित्सा से

45) ● यज्ञ संबंधी विधि-विधानों का पता किस वेद से चलता
है— यजुर्वेद से

46) ● वैदिक युग की सभा क्या कहलाती थी— मंत्री परिषद

47) ● कौन-सी दस्तकारी आर्यों के द्वारा व्यवहार में नहीं
लाई गई थी—लुहारगिरी

48) ● किस देव में जादुई माया और वशीकरण का
वर्णन किया गया है—अथर्ववेद

49) ● प्राचीन व्याकरण ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी’ किसके द्वारा
रचित है— पाणिनी

50) ● मनुस्मृति किससे संबंधित है— समाज व्यवस्था से

51) ● गायत्री मंत्र की रचना किसने की— विश्वामित्र ने

52) ● अवेस्ता किस क्षेत्र से संबंधित है— ईरान से

53) ● आर्य भारत में कहाँ से आए— मध्य एशिया से

54) ● सैंधववासी मिठास के लिए किस वस्तु का प्रयोग
करते थें— शहद का

55) ● सैंधव सभ्यता में कौन-सी प्रथा प्रचलित
थी— पर्दाप्रथा व वेश्यावृत्ति

56) ● वैदिक काल की दो प्रसिद्ध विदुषी महिलाएं कौन
थीं— अपाला व घोषा

57) ● ऋग्वेद में ‘अघन्य’ शब्द किस पशु के लिए प्रयोग
किया गया है— गाय

बाबासाहेब काजरोल्कर और नानक_चंद_रत्तू....?  # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # #₹₹₹₹₹ पी.के.आजाद भारत...
06/05/2020

बाबासाहेब काजरोल्कर और नानक_चंद_रत्तू....?
# # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # # #₹₹₹₹₹
पी.के.आजाद भारतीय
प्रधान संपादक
दैनिक न्याय मार्ग दैनिक हिंदी समाचार पत्र
एवं डीएनएम न्यूज़
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1) जब 1952 में प्रथम चुनाव के दौरान बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी चुनाव हार गए और उनके सामने खड़ा हुआ व्यक्ति अछूत काजरोल्कर चुनाव जीत गया, तब काजरोल्कर बाबासाहेब अम्बेडकर से मिलने गया, तो उसने बाबासाहेब अम्बेडकर जी से मुस्कुराते हुए कहा कि साहब ,
आज मैं चुनाव जीता हूँ मुझे वास्तव में बहुत ही खुशी हो रही है!

2) तब बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने कहा ,कि तुम जीत तो गये...तो अब क्या करोगे ,और तुम्हारा कार्य क्या होगा ?
तब काजरोल्कर ने कहा कि मैं क्या करुंगा....जो मेरी पार्टी कहेगी वो करुँगा।

3) तब बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने पूछा ,कि तुम सामान्य सीट से चुनाव जीते हो? तो काजरोल्कर ने कहा कि....नहीं ,मैं सुरक्षित सीट से चुनाव जीता हूँ ,जो आपकी मेहरबानी से संविधान में दिये गये, आपके अधिकार के तहत ही जीता हूँ।

4) बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने काजरोल्कर को चाय पिलायी !
काजरोल्कर के जाने के बाद बाबासाहेब हंस रहे थे ,तब नानकचन्द रत्तू ने पूछा कि साहब आप क्यों हंस रहे हो?

5) तब बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा कि काजरोल्कर अपने समाज का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टी के हरिजन बन गये हैं।

6) आज कल हमारे समाज के सांसद, विधायक अपने समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों के हरिजन नेता बन कर ही रह गये हैं। यह बात बाबासाहेब अम्बेडकर ने 1952 में ही कही थी जो आज तक सार्थक सिद्ध हो रही है
जय भीम जय भारत

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