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03/08/2025

✈️ **हवाई जहाज की लैंडिंग से जुड़े चौंकाने वाले फैक्ट्स!**
क्या आपने कभी सोचा है कि एक प्लेन जब ज़मीन पर उतरता है, तो उसके पीछे कितनी टेक्नोलॉजी और रिस्क होता है?

👇 नीचे पढ़िए कुछ जबरदस्त फैक्ट्स:

🛑 **1. लैंडिंग सबसे मुश्किल हिस्सा होता है!**
लगभग 49% हवाई हादसे लैंडिंग के दौरान होते हैं।

💨 **2. लैंडिंग के वक्त भी स्पीड 270 किमी/घंटा तक होती है!**
यानि गाड़ी से कई गुना तेज रफ्तार पर प्लेन ज़मीन छूता है।

🌧️ **3. बारिश और धुंध में भी प्लेन आराम से लैंड कर सकता है**
ऑटोमैटिक सिस्टम्स की मदद से!

🛫 **4. हर पायलट को हर साल लैंडिंग की स्पेशल ट्रेनिंग मिलती है**
ताकि वो किसी भी इमरजेंसी से निपट सके।

🛬 **5. बड़े प्लेन्स को 3 KM लंबा रनवे चाहिए होता है**
छोटी गलती की भी कोई जगह नहीं होती!

🔥 **6. ब्रेक नहीं, हवा से रोका जाता है प्लेन!**
स्पॉयलर और रिवर्स थ्रस्ट ब्रेकिंग सिस्टम का काम करते हैं।

🐦 **7. बर्ड स्ट्राइक सबसे ज्यादा लैंडिंग और टेकऑफ के वक्त होता है!**
क्योंकि प्लेन उस समय धरती के सबसे पास होता है।

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02/08/2025

✈️💨 क्या आप जानते हैं?

जब हवाई जहाज़ 35,000 फीट की ऊँचाई पर उड़ रहा होता है,
तो बाहर का तापमान -60°C से भी नीचे चला जाता है! ❄️🥶

मतलब अगर आप उस ऊँचाई पर बिना प्रोटेक्शन के हों...
तो कुछ ही मिनटों में आप बर्फ बन सकते हैं! 🧊

लेकिन शुक्र है कि हवाई जहाज़ का केबिन प्रेसराइज़ और हीटेड होता है,
तभी आप आराम से सीट पर बैठकर जूस पीते हुए फिल्म देख सकते हैं 🍹🎬

अब बताओ – अगली बार फ्लाइट में चढ़ते वक़्त आपको ये बात याद आएगी या नहीं? 😄👇

10/07/2025

Google सब कुछ जानता है, लेकिन वो सीखता कहाँ से है? | Where Does Google Learn From?

08/07/2025

बारिश से पहले बादल काले क्यों दिखते हैं? Why do clouds look dark before it rains?

😱 चीन ने कर दिखाया! ऐसा निर्माण पहले कभी नहीं देखा होगा!🏗️🌫️सोचिए अगर आपके शहर में कंस्ट्रक्शन साइट से ना धूल उड़े, ना श...
06/07/2025

😱 चीन ने कर दिखाया! ऐसा निर्माण पहले कभी नहीं देखा होगा!🏗️🌫️

सोचिए अगर आपके शहर में कंस्ट्रक्शन साइट से ना धूल उड़े, ना शोर हो... क्या ऐसा मुमकिन है?

🇨🇳 चीन ने पूरा कंस्ट्रक्शन साइट एक “गुब्बारे जैसे डोम” से ढक दिया है!
✔️ ना धूल बाहर जाती है
✔️ ना शोर लोगों तक पहुंचता है
✔️ और पर्यावरण रहता है पूरी तरह सुरक्षित!

👉 ये डोम 50 मीटर ऊँचा और 20,000 वर्ग मीटर में फैला है — और अब लोग कह रहे हैं, "ऐसा भारत में क्यों नहीं?"

🚨 क्या ये आने वाला है भारत में भी?
👇 कमेंट करो "YES" अगर आप भी चाहते हो ऐसा स्मार्ट सॉल्यूशन अपने शहर में!

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यह तस्वीर एक मज़ेदार कटाक्ष है — जैसे कोई जंगल सफारी पर गया हो और दुर्लभ जानवर की बजाय उसे एक सेलिब्रिटी दिख गई हो।इसका ...
05/07/2025

यह तस्वीर एक मज़ेदार कटाक्ष है — जैसे कोई जंगल सफारी पर गया हो और दुर्लभ जानवर की बजाय उसे एक सेलिब्रिटी दिख गई हो।
इसका मतलब यही है कि मीडिया और पब्लिक, सेलेब्रिटी को किसी "छुपे हुए जीव" जैसा मानती है, जिसे देखने भर से खबर बन जाती है।

🔍 "स्पॉटेड" का मतलब होता है —
“कहीं देखा गया! पकड़ में आया! जंगल से बाहर निकला!”
और यही भाषा दिखाती है कि सेलेब्रिटी को कैसे आम इंसानों से अलग माना जाता है।

जैसे:

> “बाघ जंगल में देखा गया”
वैसा ही: “दीपिका पादुकोण मुंबई एयरपोर्ट पर स्पॉटेड”

यह शब्द सेलेब्रिटी की प्राइवेसी और ह्यूमैनिटी दोनों पर व्यंग्य करता है।

☄️ 3I/ATLAS: अंतरतारकीय धूमकेतु जो सूरज की ओर बढ़ रहा है📅 खोजइस धूमकेतु को 1 जुलाई 2025 को खगोलविदों ने खोजा और इसका नाम...
05/07/2025

☄️ 3I/ATLAS: अंतरतारकीय धूमकेतु जो सूरज की ओर बढ़ रहा है

📅 खोज

इस धूमकेतु को 1 जुलाई 2025 को खगोलविदों ने खोजा और इसका नाम दिया गया:
3I/ATLAS
यह अब तक खोजे गए तीसरे interstellar (अंतरतारकीय) ऑब्जेक्ट्स में से एक है, जो हमारे सौर मंडल के बाहर से आया है।
पहले दो थे:

ʻOumuamua (2017)

2I/Borisov (2019)

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🧊 इसका आकार और रफ्तार

आकार: लगभग 20 किलोमीटर चौड़ा (लगभग Manhattan शहर जितना बड़ा!)

रफ्तार: लगभग 60 किलोमीटर प्रति सेकंड (यानि 2 लाख km/hr से ज़्यादा)

यह इतनी तेज़ गति से आया है कि यह सूर्य की गुरुत्वाकर्षण सीमा को पार करेगा और वापस अपने रास्ते चला जाएगा।

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🔭 अभी कहाँ है?

यह फिलहाल बृहस्पति (Jupiter) के पास से गुजर रहा है।

अक्टूबर 2025 में यह पृथ्वी के सबसे करीब आएगा — लेकिन फिर भी करीब 24 करोड़ किमी दूर रहेगा (कोई खतरा नहीं)।

छोटे टेलीस्कोप से इसे सितंबर तक देखा जा सकता है, और फिर दिसंबर में फिर से दिखेगा।

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💡 क्यों खास है?

अंतरतारकीय धूमकेतु का मतलब है — यह हमारे सौर मंडल का नहीं है। यह किसी अन्य तारे के आस-पास बना होगा।

ऐसे ऑब्जेक्ट्स हमें ब्रह्मांड के दूसरे हिस्सों की रचना, इतिहास और संभावित जीवन की संभावना के बारे में सुराग दे सकते हैं।

वैज्ञानिक इसकी संरचना (composition), रंग, गैस उत्सर्जन और कक्षा का अध्ययन करेंगे।

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🌌 एक कल्पनात्मक विचार

सोचो... यह धूमकेतु लाखों सालों से ब्रह्मांड में भटकता हुआ आया, और अब कुछ महीनों के लिए हमारे आसमान में दिखेगा।
मानो कोई संदेशवाहक किसी और सौर परिवार से मिलने आया हो!

🔥 वेल्डिंग की रोशनी: सूरज से भी ज़्यादा गर्मजब आप वेल्डिंग होते हुए देखते हैं, तो वो जो तेज़ चमकती हुई रोशनी होती है —वो...
04/07/2025

🔥 वेल्डिंग की रोशनी: सूरज से भी ज़्यादा गर्म

जब आप वेल्डिंग होते हुए देखते हैं, तो वो जो तेज़ चमकती हुई रोशनी होती है —
वो कोई मामूली बल्ब नहीं, बल्कि एक प्लाज़्मा आर्क होती है,
जो सूरज की सतह से भी ज़्यादा गर्म होती है।

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☀️ सूरज कितना गर्म है?

सूरज की सतह: लगभग 5,500°C

⚡ वेल्डिंग आर्क कितना गर्म होता है?

6,500°C से लेकर 10,000°C तक!

यानी, धरती पर बना एक छोटा "सूरज"

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यह रोशनी बनती कैसे है?

जब वेल्डर इलेक्ट्रोड को धातु से थोड़ी दूरी पर लाता है,
तब विद्युत् धारा हवा में से गुजरती है।

यह हवा इतनी गर्म हो जाती है कि प्लाज़्मा बन जाता है।

यह प्लाज़्मा ही वो तेज़ रोशनी और गर्मी पैदा करता है
जो धातु को पिघलाकर जोड़ देती है।

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इसमें क्या-क्या होता है?

1. अल्ट्रावायलेट (UV) किरणें – आँखों और त्वचा के लिए खतरनाक

2. इन्फ्रारेड (IR) किरणें – बहुत अधिक गर्मी

3. तेज़ सफ़ेद नीली रोशनी – आँखों को सीधे नुकसान

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इसीलिए सुरक्षा ज़रूरी है:

वेल्डिंग हेलमेट

गहरे रंग की स्क्रीन

मोटे दस्ताने और जैकेट

हवा की निकासी के लिए वेंटिलेशन

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निष्कर्ष:

> "वेल्डिंग सिर्फ़ एक तकनीक नहीं —
यह विज्ञान, गर्मी, रोशनी और सटीकता का संगम है

NISAR Satellite – भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष क्रांति का प्रतीक! 🚀🇮🇳🇺🇸कल्पना करो: धरती के हर कोने की हलचल, पेड़ों की हर ...
04/07/2025

NISAR Satellite – भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष क्रांति का प्रतीक! 🚀🇮🇳🇺🇸

कल्पना करो: धरती के हर कोने की हलचल, पेड़ों की हर सांस, बर्फ के हर टुकड़े की फिसलन, और समुद्र के उठते-गिरते भाव – सब कुछ एक नज़र में देख पाना!
अब ये कोई सपना नहीं, ये है NISAR Satellite की शक्ति।

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🔭 क्या है NISAR?

NISAR यानी NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar

यह पहला बड़ा अंतरिक्ष मिशन है जिसे भारत और अमेरिका ने मिलकर बनाया है।

धरती की निगरानी के लिए सबसे उन्नत रडार तकनीक से लैस है – चाहे वो जंगल हो या हिमालय, रेगिस्तान हो या समुद्र!

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🇮🇳 भारत की भूमिका – गर्व की बात:

इसका लॉन्च भारत के श्रीहरिकोटा से GSLV रॉकेट द्वारा होगा – यानी भारत बनेगा इस मिशन का लॉन्चिंग हीरो!

ISRO ने इसमें S-Band Radar, सैटेलाइट बस, और लॉन्च सेवाएं प्रदान की हैं।

ये बताता है कि भारत अब सिर्फ 'स्पेस में भागीदार' नहीं, बल्कि ग्लोबल लीडर बन रहा है!

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🌍 क्यों खास है NISAR?

हर 12 दिन में पूरी धरती को स्कैन करेगा।

भूकंप, हिमस्खलन, जंगल की कटाई, और ग्लेशियर के पिघलने जैसे बदलावों पर नज़र रखेगा।

किसानों के लिए: मिट्टी की नमी, फसल की स्थिति की सटीक जानकारी देगा।

आपदा प्रबंधन में मदद: बाढ़, भूस्खलन और तूफानों से पहले चेतावनी।

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💥 टेक्नोलॉजी का टाइगर:

दो अलग-अलग रडार – L-Band (NASA) और S-Band (ISRO)

ये तकनीक धरती के अंदरूनी बदलावों को भी पकड़ सकती है – जो सामान्य कैमरे नहीं देख सकते।

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🇮🇳 ये मिशन क्यों बनाता है भारत को गौरवशाली?

> क्योंकि अब दुनिया देखेगी – हम केवल मिशन नहीं भेजते, हम मिशन बनाते हैं।

जब NISAR अंतरिक्ष में जाएगा, वो होगा सिर्फ विज्ञान नहीं, विज्ञान और राष्ट्रभक्ति का संगम।

यह बताएगा कि भारत का विज्ञान अब अंतरिक्ष में भी नेतृत्व कर सकता है।

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🔥 अंत में...

NISAR सिर्फ एक सैटेलाइट नहीं, यह है:

> धरती की धड़कनों को सुनने वाली अंतरिक्ष की आंख
भारत की बुद्धि और तकनीक की ऊँचाई का प्रतीक
और भारत-अमेरिका की दोस्ती का आसमानी दस्तावेज 🌏🤝🚀

जय हिंद! 🇮🇳
विज्ञान भी हमारा, भविष्य भी हमारा!

03/07/2025

🌍 "Geoengineering"
क्या इंसान को मौसम को बदलने का हक है?"

वैज्ञानिक अब इस पर काम कर रहे हैं कि पृथ्वी को गर्म होने से रोकने के लिए सूरज की रोशनी को ब्लॉक किया जाए — यानी, "Solar Radiation Management (SRM)".

इसमें Sulphur जैसे कणों को वातावरण में छोड़ा जाता है ताकि वे सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में भेज दें और पृथ्वी ठंडी रहे। ये वैसा ही है जैसा ज्वालामुखी विस्फोट में होता है।

🌍 "Geoengineering" – क्या इंसान को मौसम को बदलने का हक है?"👉 मुद्दा क्या है?वैज्ञानिक अब इस पर काम कर रहे हैं कि पृथ्वी ...
03/07/2025

🌍 "Geoengineering" – क्या इंसान को मौसम को बदलने का हक है?"

👉 मुद्दा क्या है?

वैज्ञानिक अब इस पर काम कर रहे हैं कि पृथ्वी को गर्म होने से रोकने के लिए सूरज की रोशनी को ब्लॉक किया जाए — यानी, "Solar Radiation Management (SRM)".

इसमें Sulphur जैसे कणों को वातावरण में छोड़ा जाता है ताकि वे सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में भेज दें और पृथ्वी ठंडी रहे। ये वैसा ही है जैसा ज्वालामुखी विस्फोट में होता है।

🤯 क्यों विवादास्पद है?

1. प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है – बारिश के पैटर्न, मानसून, या कृषि प्रभावित हो सकती है।

2. राजनीतिक खतरे – एक देश यह तकनीक प्रयोग करे तो दूसरे देशों का मौसम भी बिगड़ सकता है। कौन जिम्मेदार होगा?

3. "हम भगवान नहीं हैं" बहस – कई लोग मानते हैं कि मौसम के साथ छेड़छाड़ करना नैतिक रूप से गलत है।

4. कार्बन उत्सर्जन रोकने की बजाय शॉर्टकट? – कुछ इसे "असली समस्या से भागना" मानते हैं।

🔬 लेकिन समर्थन भी है:

जलवायु परिवर्तन का असर इतना तेज़ है कि कई वैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं बचेगा।

अगर पिघलते ग्लेशियर और समुद्र-स्तर को रोकना है, तो ऐसे उपायों पर गंभीरता से सोचना ही पड़ेगा।

📲 मोबाइल इंटरनेट में डाउनलोड तेज़ और अपलोड धीमा क्यों होता है?सोचो तुम अपने फोन में क्या करते हो —यूट्यूब देखते हो, इंस्...
03/07/2025

📲 मोबाइल इंटरनेट में डाउनलोड तेज़ और अपलोड धीमा क्यों होता है?

सोचो तुम अपने फोन में क्या करते हो —
यूट्यूब देखते हो, इंस्टाग्राम स्क्रॉल करते हो, न्यूज़ पढ़ते हो, गेम खेलते हो।
मतलब तुम ज़्यादातर चीजें डाउनलोड कर रहे हो।
अब सोचो, फोटो या वीडियो अपलोड कितनी बार करते हो? बहुत कम!

यही वजह है कि मोबाइल कंपनियाँ सोचती हैं —
"जब लोग ज़्यादा डाउनलोड करते हैं, तो उसी को तेज़ बना दो!"
अपलोड की ज़रूरत कम है, तो वो धीमी रहती है।

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📡 टेक्नोलॉजी की चालाकी

मोबाइल नेटवर्क का डिज़ाइन ही ऐसा होता है जिसे कहते हैं Asymmetric Design।
मतलब टावर से तुम्हारे फोन की ओर ज्यादा ताकत भेजी जाती है,
और फोन से टावर की ओर कम।

मोबाइल टावर बहुत ज़ोर से बोलता है —
"लो बेटा 45 Mbps की स्पीड में Netflix देखो!"
फोन धीरे से कहता है —
"मैं 7 Mbps में वीडियो भेजने की कोशिश कर रहा हूँ..."

इसके पीछे एक और कारण है —
टावर के पास पावर भी ज्यादा होती है और बड़ी एंटीना भी।
तुम्हारा फोन छोटा है, उसकी ताकत भी लिमिट में होती है।

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🧪 खुद टेस्ट करो

"Speedtest" जैसे ऐप से टेस्ट करो।
तुम देखोगे कि डाउनलोड 40–50 Mbps तक हो सकती है,
लेकिन अपलोड सिर्फ 5–10 Mbps ही होगी।

जब तुम YouTube या Instagram देखते हो — सब कुछ स्मूद।
लेकिन जब वीडियो अपलोड करते हो — धीरे चलता है।

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🎯 सीधा समझो

वीडियो देखना → डाउनलोड → तेज़

वीडियो भेजना → अपलोड → धीमा

कॉल में सामने वाला दिखे → डाउनलोड

तुम्हारा चेहरा जाए → अपलोड
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तो अगली बार जब कोई कहे — "नेट स्लो चल रहा है",
तो पूछना: "डाउनलोड स्लो है या अपलोड?"
तभी असली बात पकड़ में आएगी 😄

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