03/02/2022
#प्रेरणादायक_प्रसंग
श्रीमद् भागवत में वर्णित राजा ययाति की कथा वर्णित है।
ययाति चक्रवर्ती सम्राट थे,पर अपने ससुर शुक्राचार्य के शाप के कारण जल्दी बूढ़े हो गए।
मृत्यु ने आकर उसे कहा अब आप चलें।
ययाति ने कहा अभी तो मैं कुछ भोग ही नहीं पाया। थोड़े दिन और मुझे दे दो। कई बातें अधूरी रह गयी हैं।
मृत्यु ने कहा - वो कभी पूरी नही होती,हर कोई इसी बात के लिए रोता है।
लेकिन ययाति ने ज़िद की ,एक अवसर दो, मैं जल्दी ही कर लूंगा। सौ वर्ष मुझे और दे दो।
मृत्यु ने कहा- तेरे इतने पुत्र हैं, इनमें से कोई अपनी युवावस्था तुझे दे दे तो कुछ हो सकता है।
ययाति ने अपने पुत्रों को बुलाया। उसमें कोई अस्सी साल का था, कोई पचहत्तर साल का, कोई सत्तर साल का। वे भी बूढ़े हो गए थे, एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
अंतत: सब से छोटा पुत्र उठकर खड़ा हुआ। उसकी उम्र तो कोई बीस वर्ष से ज्यादा नही थी।
मृत्यु ने उसके पुत्र को कहा --बेवकूफ, तेरे बड़े भाई कोई जाने को राजी नहीं हैं, तू क्यों फंस रहा है?
उस पुत्र ने कहा -बड़े भाइयों की बड़े भाई जानें।
बड़े भाइयों ने कहा- हम क्यों जाएं? जब पिता का सौ साल में जीवन का रस पूरा नहीं हुआ, तो हम तो अभी सत्तर साल ही जिये हैं, कोई साठ ही साल जीया, हमारा रस कैसे पूरा हो जाए? और जब पिता जाने को तैयार नहीं हैं, तो हम क्यों जाने को तैयार हों? अगर जीवन से उनका मोह है तो हमारा भी है। हमारा तो और भी अधूरा रह गया है अभी। यह तो हम से कम से कम तीस साल, बीस साल ज्यादा जी लिए हैं। हम क्यों छोड़ें? हम भी पूरा भोगना चाहते हैं।
छोटे पुत्र का नाम पुरु था। उसने कहा - "पिता सौ साल में नहीं भोग पाए, तो मैं भी क्या ही कर लूंगा! अस्सी साल और धक्के खाने से क्या मतलब है! जाना तो पड़ेगा। तुम सौ साल बाद आओगे। और पिता तो सौ साल में भी नहीं भोग पाए और ज्यादा के लिए रो रहे हैं, आंसू बहा रहे है?"
एक ही बात को देखने के तरीके हैं-
वह यह कहता है कि जब सौ साल में इनका काम पूरा नहीं हुआ, तो अब मैं ही आगे और अस्सी साल धक्के क्यों खाऊं? यह काम तो कभी पूरा होने वाला नहीं है, मेरी समझ में आ गया, मेरी युवावस्था ले लो।
ऐसे करते करते ययाति को पुनः युवावस्था मिल गयी। वर्षों बाद मृत्यु आई तो ययाति फिर रोने लगा, तो मृत्यु ने कहा- अब तो समझो! तुम जिन वासनाओं को पूरा करना चाहते हो, वो किसी की कभी पूरी नही होती। तुम्हारी समझ में कब आएगा? तुम बूढ़े होकर भी बचकाने ही बने हुए हो! जिसे तुम पूरा करने चले हो, वह पूरा होता ही नहीं,अधूरा रहना ही उनका स्वभाव है।
ययाति को समझ आई, उसने पुरु की युवावस्था वापस दिला दी और उसको राजपाट देकर मृत्यु के साथ चल दिये। कालांतर में इसी पुरु के नाम से कुरुवंश चला जिसमे कौरव-पांडव हुए।
दुर्योधन ने अपने पूर्वज ययाति से कुछ नही सीखा, पांडवों का राज्य हड़प कर सोचा कि अनन्त काल तक इसका उपभोग करूँगा। मृत्यु उसको भी लेने आई।
हम भी ययाति,दुर्योधन से सीख पाते हैं क्या ? पुरु से ही सीख लें।