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" गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः ,गुरुः साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः "गुरु पुर्णिमा के पावन...
13/07/2022

" गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः ,
गुरुः साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः "

गुरु पुर्णिमा के पावन पर्व की सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
#गुरू_पूर्णिमा

02/07/2022

आत्मविश्वास !!

एक बार की बात है कि किसी तालाब में दो मेंढक रहते थे जिनमें से एक बहुत मोटा था और दूसरा पतला।

सुबह सवेरे जब वे दोनों खाने की तलाश में निकले थे, अचानक वे दोनों एक दूध के बड़े बर्तन में गिर गये, जिनके किनारे बहुत चिकने थे और इसी वजह से वो उसमें से बाहर नहीं निकल पा रहे थे।

दोनों काफी देर तक दूध में तैरते रहे उन्हें लगा कि कोई इंसान आएगा और उनको वहाँ से निकाल देगा लेकिन घंटों तक वहाँ कोई नहीं आया अब तो उनकी जान निकली जा रही थी।

मोटा मेंढक जो अब पैर चलाते-चलाते थक गया था, बोला कि मेरे से अब तैरा नहीं जा रहा और कोई बचाने भी नहीं आ रहा है। अब तो डूबने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा है।

पतले वाले ने उसे थोड़ा ढाँढस बंधाते हुए कहा कि मित्र कुछ देर और मेहनत से तैरते रहो जरूर कुछ देर बाद कोई ना कोई हल निकलेगा।

इसी तरह फिर से कुछ घंटे बीत गये, मोटे मेंढक ने अब बिल्कुल उम्मीद छोड़ दी और बोला.... मित्र मैं अब पूरी तरह थक चुका हूँ अब और नहीं तैर सकता मैं तो डूबने जा रहा हूँ।

दूसरे मेंढक ने उसे बहुत रोका लेकिन वह जिंदगी से हार मान चुका था और खुद ही तैरना छोड़ दिया और डूब कर मर गया। पतले मेंढक ने अभी तक हार नहीं मानी थी और वो पैर चलाता रहा।

कुछ देर बाद उसने महसूस किया कि ज्यादा देर तक दूध मथे जाने से उसका मक्खन बन चुका है और अब उसके पैरों के नीचे ठोस जगह हो चुकी थी। उसी का सहारा लेकर मेंढक ने छलाँग मारी और बाहर आ गया और अंत में उसकी जान बच गयी।

अपने मित्र की मौत का उसे बड़ा दुख था, काश कुछ देर और संघर्ष करता तो वे दोनों बच सकते थे।

तो मित्रों, परेशानियाँ हर इंसान की जिंदगी में आती है और कई बार तो हमारे सामने इतनी कठिन परिस्थितियां होती हैं।

जिनसे बाहर निकलना असंभव सा प्रतीत होता है, लेकिन यकीन मानिये हालात कितने भी बुरे क्यों ना हो, अगर आप हिम्मत ना हारें तो कोई ना कोई हल जरूर निकल सकता है।

इसलिए कभी उम्मीद ना छोड़े और समस्या कितनी भी बड़ी हो कभी उससे हारना नहीं चाहिए, प्रयास करते रहिए आप जरुर सफल होंगे ..!!

सनातन धर्म में मंगलवार का दिन हनुमान जी की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं इस दिन बजरंगबली की पूजा-उपासना ...
14/06/2022

सनातन धर्म में मंगलवार का दिन हनुमान जी की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं इस दिन बजरंगबली की पूजा-उपासना से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं। जो भक्त मंगलवार कि दिन हनुमान जी की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करते हैं हनुमान जी उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
पवनपुत्र हनुमान जी को मारुति नंदन, बजरंगबली, संकट मोचन आदि नामों से भी जाना जाता है।

धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि सिर्फ हनुमान जी का नाम जपने मात्र से ही व्यक्ति के सभी संकट और दुख दूर हो जाते हैं। मंगलवार के दिन हनुमान जी की अराधना करने से व्यक्ति का सूर्य भी मजबूत होता है और साथ ही करियर, कारोबार में तरक्की के रास्ते खुलते जाते हैं। वहीं अगर किसी की कुंडली में मंगल कमजोर है तो जातक पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कहते है कि जीवन में समस्त दुखों, संकटों और समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा के बाद इन मंत्रों का जाप अवश्य करें...

1. ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमंते
टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा
शत्रुओं का नाश करने के लिए इस मंत्र का उच्चारण करें। इससे शत्रुओं का दमन होता है। नियमित रूप से स्नान-ध्यान और हनुमान चालीसा पाठ के बाद इस मंत्र का 11 बार जाप जरूर करें।

2. ऊँ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिमुखाय गरुडानना
मं मं मं मं मं सकल विषहराय स्वाहा।।
इस मंत्र का जाप करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कहते है कि आर्थिक तंगी से गुजर रहे लोगों को नियमित रूप से स्नान-ध्यान के बाद कम से कम 11 बार इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे जीवन में आ रही आर्थिक समस्याएं दूर हो सकती हैं।

3. ॐ हं हनुमंते रुद्रात्मकाय हुं फट्
हनुमान जी की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करें। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करने से बजरंगबली जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।

4. श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार |
बरनौ रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि |
बुद्धिहीन तनु जानि के, सुमिरौ पवन कुमार |
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहुं कलेश विकार ||

मान्यता है कि जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए नियमित रूप से सुबह-शाम हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें। हनुमान चालीसा के इस दोहे में ही सकल दुःख दूर कर बल, बुद्धि और विद्या देने की आराधना है।

वैवाहिक जीवन में खुश रहने के लिए भगवान विष्णु की पूजा में इस मंत्र का करें जापहिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु...
19/05/2022

वैवाहिक जीवन में खुश रहने के लिए भगवान विष्णु की पूजा में इस मंत्र का करें जाप

हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए बेहद खास माना जाता है। कहते हैं सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं भगवान विष्णु जरूर पूरा करते हैं। हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार गुरुवार को भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से जीवन के सभी संकटों से छुटकारा मिलता है। भगवान विष्णु जगत के पालनहार कहलाते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गुरुवार के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के कष्ट मिटते हैं। गुरुवार का व्रत करने और कथा सुनने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। गुरुवार व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उन्हें गुड़ और चने का प्रसाद अर्पित किया जाता है। आइए जानते हैं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कैसे करें भगवान विष्णु की पूजा

हिंदू मान्यता के अनुसार बृहस्पति केवल एक ग्रह नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने वाले देवता हैं। पूरे विधि-विधान से बृहस्पति देवता की पूजा करने पर मनवांछित जीवनसाथी मिलता है। वैवाहिक संबंध सफल रहते हैं और करियर में भी सफलता मिलती है। जिन लोगों का बृहस्पति कमजोर हो, उन्हें ये पूजा फल देती है। माता-पिता से अच्छे संबंधों के लिए भी इस दिन पूजा की मान्यता है।

पूजन विधि
गुरुवार के दिन बृहस्पति देव और भगवान विष्णु की पूजा इस मंत्र के जाप से करें- ऊं नमो नारायणा। यह मंत्रजाप 108 बार करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और करियर में भी सफलता मिलती है। पूजा में दूध, दही और घी से बने पीले व्यंजनों का भोग लगाएं।

इन बातों का रखें ध्यान
-गुरुवार की पूजा करते हुए कुछ बातों का ध्यान रखने से पूजा का पूरा फल मिलता है।
-गुरुवार के रोज केले के पेड़ की पूजा का महत्व है क्योंकि इसे भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
-इस दिन पीले वस्त्र पहनकर पूजा करें, पीली वस्तुओं का दान करें. इससे दान का सौ गुना पुण्य मिलता है।
-बृहस्पति ग्रह को शक्तिशाली बनाने के लिए पूजा के दौरान भगवान बृहस्पति की कथा पढ़ें और दूसरों को भी सुनाएं।

11/04/2022

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

जो जागृत रहते है वो सदैव निर्भय रहते है,  उन्हें किसी का भय नहीं होता है।
10/04/2022

जो जागृत रहते है वो सदैव निर्भय रहते है,
उन्हें किसी का भय नहीं होता है।

सत्य की तलाश नहीं की जाती, सत्य को अपनाया जाता है।
09/04/2022

सत्य की तलाश नहीं की जाती,
सत्य को अपनाया जाता है।

🌼🌸चरित्र पर भरोसा🌸🌼लक्ष्मण जी के द्वारा मारे गये मेघनाद की दाहिनी भुजा सती सुलोचना के समीप जा गिरी।सुलोचना ने कहाः 'अगर ...
06/04/2022

🌼🌸चरित्र पर भरोसा🌸🌼

लक्ष्मण जी के द्वारा मारे गये मेघनाद की दाहिनी भुजा सती सुलोचना के समीप जा गिरी।

सुलोचना ने कहाः 'अगर यह मेरे पति की भुजा है तो हस्ताक्षर करके इस बात को प्रमाणित कर दे।'

कटी भुजा ने हस्ताक्षर करके सच्चाई स्पष्ट कर दी। सुलोचना ने निश्चय किया कि 'मुझे अब सती हो जाना चाहिए।' किंतु पति का शव तो राम-दल में पड़ा हुआ था। फिर वह कैसे सती होती !

जब अपने ससुर रावण से उसने अपना अभिप्राय कहकर अपने पति का शव मँगवाने के लिए कहा, तब रावण ने उत्तर दिया

देवी ! तुम स्वयं ही राम-दल में जाकर अपने पति का शव प्राप्त करो।

जिस समाज में बालब्रह्मचारी श्रीहनुमान, परम जितेन्द्रिय श्री लक्ष्मण तथा एक पत्नीव्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए।

मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।

जब रावण सुलोचना से ये बातें कह रहा था, उस समय कुछ मंत्री भी उसके पास बैठे थे।

उन लोगों ने कहाः जिनकी पत्नी को आपने बंदिनी बनाकर अशोक वाटिका में रख छोड़ा है, उनके पास आपकी बहू का जाना कहाँ तक उचित है ? यदि यह गयी तो क्या सुरक्षित वापस लौट सकेगी ?

यह सुनकर रावण बोलाः "मंत्रियो ! लगता है तुम्हारी बुद्धि विनष्ट हो गयी है। अरे ! यह तो रावण का काम है जो दूसरे की स्त्री को अपने घर में बंदिनी बनाकर रख सकता है, राम का नहीं।"

धन्य है श्रीराम का दिव्य चरित्र ! !! जिसका विश्वास शत्रु भी करता है और प्रशंसा करते थकता नहीं !

प्रभु श्रीराम का पावन चरित्र दिव्य होते हुए भी इतना सहज सरल है कि मनुष्य चाहे तो अपने जीवन में भी उसका अनुसरण कर सकता है !

🌸श्री राम दरबार की जय🌸

यदि आप ये सोचते रहे कि लोग क्या कहेंगे तोआप अपने जीवन की पहली परीक्षा में ही हार गये हैं।
06/04/2022

यदि आप ये सोचते रहे कि लोग क्या कहेंगे तो
आप अपने जीवन की पहली परीक्षा में ही हार गये हैं।

किरण चाहे सूर्य की हो या फिर आशा की,जीवन के सभी अंधकार मिटा ही देती है।
05/04/2022

किरण चाहे सूर्य की हो या फिर आशा की,
जीवन के सभी अंधकार मिटा ही देती है।

जीवन मे प्रयास सदैव कीजिये "लक्ष्य" मिले या "अनुभव"दोनों ही अमूल्य है...
04/04/2022

जीवन मे प्रयास सदैव कीजिये
"लक्ष्य" मिले या "अनुभव"
दोनों ही अमूल्य है...

09/03/2022

#भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला।

ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव भगवान शिव के गण और माता पार्वती के #अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है।

उल्लेख है कि शिव के रूधिर से #भैरव_की_उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव।

मुख्यतः दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है।

भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ संप्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।

भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है।

उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़ कर दंड के लिए प्रस्तुत करना। जैसे कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है।

🙏🔱जय बाबा काल भैरव जी🔱

https://youtu.be/4d3zSUIsMNs
04/03/2022

https://youtu.be/4d3zSUIsMNs

Manikarnika मणिकर्णिका घाट वाराणसी में गंगानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध घाट है। एक मान्यता के अनुसार माता पार्वती जी का ...

दो बाते अपने अंदर पैदा कर लो एक चुप रहना दूसरा माफ करना
04/03/2022

दो बाते अपने अंदर पैदा कर लो एक चुप रहना दूसरा माफ करना

प्राचीन काल की बात है। एक बुढ़िया थी जो नियमित तौर पर रविवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर अ...
27/02/2022

प्राचीन काल की बात है। एक बुढ़िया थी जो नियमित तौर पर रविवार के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर अपने आंगन को गोबर से लीपती थी जिससे वो स्वच्छ हो सके। इसके बाद वो सूर्य देव की पूजा-अर्चना करती थी। साथ ही रविवार की व्रत कथा भी सुनती थी। इस दिन वो एक समय भोजन करती थी और उससे पहले सूर्य देव को भोग भी लगाती थी। सूर्य देव उस बुढ़िया से बेहद प्रसन्न थे। यही कारण था कि उसे किसी भी तरह का कष्ट नहीं था और वो धन-धान्य से परिपूर्ण थी।

जब उसकी पड़ोसन ने देखा की वो बहुत सुखी है तो वो उससे जलने लगी। बढ़िया के घर में गाय नहीं थी इसलिए वो अपनी पड़ोसन के आंगन गोबर लाती थी। क्योंकि उसके यहां गाय बंधी रहती थी। पड़ोसन ने बुढ़िया को परेशान करने के लिए कुछ सोचकर गाय को घर के अंदर बांध दिया। अगले रविवार बुढ़िया को आंगन लीपने के लिए बुढ़िया को गोबर नहीं मिला। इसी के चलते उसने सूर्य देवता को भोग भी नहीं लगाया। साथ ही खुद भी भोजन नहीं किया और पूरे दिन भूखी-प्यासी रही और फिर सो गई।

अगले दिन जब वो सोकर उठी को उसने देखा की उसके आंगन में एक सुंदर गाय और एक बछड़ा बंधा था। बुढ़िया गाय को देखकर हैरान रह गई। उसने गाय को चारा खिलाया। वहीं, उसकी पड़ोसन बुढ़िया के आंगन में बंधी सुंदर गाय और बछड़े को देखकर और ज्यादा जलने की। तो वह उससे और अधिक जलने लगी। पड़ोसन ने उसकी गायब के पास सोने का गोबर पड़ा देखा तो उसने गोबर को वहां से उठाकर अपनी गाय के गोबर के पास रख दिया।

सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही दिन में धनवान हो गई। ये कई दिन तक चलता रहा। कई दिनों तक बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता नहीं था। ऐसे में बुढ़िया पहले की ही तरह सूर्यदेव का व्रत करती रही। साथ ही कथा भी सुनती रही। इसके बाद जिस दिन सूर्यदेव को पड़ोसन की चालाकी का पता चला। तब उन्होंने तेज आंधी चला दी। तेज आंधी को देखकर बुढ़िया ने अपनी गाय को अंदर बांध दिया। अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसने सोने का गोबर देखा। तब उसे बेहद आश्चर्य हुआ।

तब से लेकर आगे तक उसने गाय को घर के अंदर ही बांधा। कुछ दिन में ही बुढ़िया बहुत धनी हो गई। बुढ़िया की सुखी और धनी स्थिति देख पड़ोसन और जलने लगी। पड़ोसने उसने अपने पति को समझा-बुझाकर उसे नगर के राजा के पास भेजा। जब राजा ने उस सुंदर गाय को देखा तो वो बहुत खुश हुआ। सोने के गोबर को देखकर तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहउसे नगर के राजा के पास भेज दिया। सुंदर गाय को देखकर राजा बहुत खुश हुआ। सुबह जब राजा ने सोने का गोबर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

वहीं, बुढ़िया भूखी-प्यासी रहकर सूर्य भगवान से प्रार्थना कर रही थी। सूर्यदेव को उस पर करुणा आई। उसी रात सूर्यदेव राजा के सपने में आए और उससे कहा कि हे राजन, बुढ़िया की गाय व बछड़ा तुरंत वापस कर दो। अगर ऐसा नहीं किया तो तुम पर परेशानियों का पहाड़ टूट पड़ेगा। सूर्यदेव के सपने ने राजा को बुरी तरह डरा दिया। इसके बाद राजा ने बुढ़िया को गाय और बछड़ा लौटा दिया।

राजा ने बुढ़िया को ढेर सारा धन दिया और क्षमा मांगी। वहीं, राजा ने पड़ोसन और उसके पति को सजा भी दी। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में घोषणा कराई की रविवार को हर कोई व्रत किया करे। सूर्यदेव का व्रत करने से व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। साथ ही घर में खुशहाली भी आती है।

भक्ति  दिखावे की नही श्रद्धा की होनी चाहिए।जब भक्ति श्रद्धा की होती है तो भक्त मान-अपमान, वस्तुओ का संग्रह,और रिश्ते नात...
23/02/2022

भक्ति दिखावे की नही श्रद्धा की होनी चाहिए।
जब भक्ति श्रद्धा की होती है तो भक्त मान-अपमान, वस्तुओ का संग्रह,और रिश्ते नातो के बंधन से मुक्त हो जाता है, फिर उसके लिए धन दौलत कोई अर्थ नही रखती।। भक्ति में बहुत शक्ति होती है। भक्ति का तात्पर्य है-स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना। जुडऩे की प्रवृत्ति ही भक्ति है। दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है। भक्ति का मतलब है पूर्ण समर्पण। सरल शब्दों में हम कहते हैं कि
जो दूसरों की खुशी में सुख खोजता है, वास्तव में वही सच्चा भक्त है। जो दूसरों को सुख बांटता है, ऐसा व्यक्ति भगवान को बहुत प्रिय होता है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि निष्कपट व्यवहार करने वाले और प्राणी मात्र से प्रेम करने वाले ही सच्चे भक्त कहलाने के अधिकारी हैं।
पढिये कथा।
एक पर्वत पर एक संत रहते थे। एक दिन एक भक्त आया और बोला-महात्मा जी, मुझे तीर्थयात्रा के लिए जाना है। मेरी यह स्वर्ण मुद्राओं की थैली अपने पास रख लीजिए। संत ने कहा- भाई, हमें इस धन-दौलत से क्या मतलब! भक्त बोला- महाराज, आपके सिवाय मुझे और कोई सुरक्षित एवं विश्वसनीय स्थान नहीं दिखता। कृपया इसे यहीं कहीं रख लीजिए। यह सुनकर संत बोले-ठीक है, यहीं इसे गड्ढा खोदकर रख दो। भक्त ने वैसा ही किया और तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़ा। लौटकर आया तो महात्मा जी से अपनी थैली मांगी। महात्मा जी ने कहा-जहां तुमने रखी थी, वहीं खोदकर निकाल लो। भक्त ने थैली निकाल ली। प्रसन्न होकर भक्त ने संत का खूब गुणगान किया लेकिन संत पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भक्त घर पहुंचा। उसने पत्नी को थैली दी और नहाने चला गया।

पत्नी ने पति के लौटने की खुशी में लड्डू बनाने का फैसला किया। उसने थैली में से एक स्वर्णमुद्रा निकाली और लड्डू के लिए जरूरी चीजें बाजार से मंगवा लीं। भक्त जब स्नान करके लौटा तो उसने स्वर्ण मुद्राएं गिनीं। एक स्वर्ण मुद्रा कम पाकर वह सन्न रह गया। उसे लगा कि जरूर उसी संत ने एक मुद्रा निकाल ली है। वह तेजी से संत की ओर भागा। वहां पहुंचकर उसने संत को भला-बुरा कहना शुरू किया-अबे ओ पाखंडी! मैं तो तुम्हें पहुंचा हुआ संत समझता था पर स्वर्ण मुद्रा देखकर तेरी भी नीयत खराब हो गई। संत ने कोई जवाब नहीं दिया। तभी उसकी पत्नी वहां पहुंची। उसने बताया कि एक मुद्रा उसने निकाल ली थी। यह सुनकर भक्त लज्जित होकर संत के चरणों पर गिर गया। उसने रोते हुए कहा- मुझे क्षमा कर दें। मैंने आपको क्या-क्या कह दिया।
संत ने दोनों मुट्ठियों में धूल लेकर कहा-ये है प्रशंसा और ये है निंदा। दोनों मेरे लिए धूल के बराबर है। जा तुम्हें क्षमा करता हूं।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।
श्री हरि आपका कल्याण करें।

प्राचीन भारत में ऐसे कई मंदिरों का निर्माण हुआ है जो आज भी लाखों भक्तों के लिए किसी रहस्यमयी धार्मिक स्थल से कम नहीं हैं...
23/02/2022

प्राचीन भारत में ऐसे कई मंदिरों का निर्माण हुआ है जो आज भी लाखों भक्तों के लिए किसी रहस्यमयी धार्मिक स्थल से कम नहीं हैं। देश में ऐसे कई मंदिर आज भी मौजूद हैं, जो भविष्य से लेकर अतीत तक के पन्नों के बारे में बताते हैं। यहां तक कि देश में कब मानसून दस्तक देगा और कब नहीं। उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कहे जाने वाले शहर कानपुर में एक ऐसा मंदिर है, जो यह बताता है कि देश और उत्तर प्रदेश में कब बारिश होगी और कब नहीं। इस मंदिर की छत से यहां के पुजारी अनुमान लगाते हैं कि इस साल कितनी बारिश होगी । आइए जानें इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में...

-7 से 8 दिन पहले मिल जाती है बारिश की सूचना
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से लगभग तीस से चालीस किलो मीटर की दूरी पर मौजूद एक प्राचीन मंदिर, जिसका नाम है जगन्नाथ मंदिर। इस मंदिर के बारे में बोला जाता है कि इस मंदिर की छत से टपकने वाले पानी की बूंदों से यह पता लगाया जाता है कि देश में कब और किस स्तर पर बारिश होगी। बारिश आने से 7 दिन पहले ही इस मंदिर की छत से अपने आप पानी टपकने लगता है। यहां के लोगों का कहना है कि अगर बूंदें अधिक गिर रही हों तो बारिश अच्छी होगी और अगर बूंदें आराम-आराम से गिरें तो बारिश कम होगी।

अति प्राचीन मंदिर में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की प्राचीन प्रमिमाएं स्थापित हैं। भगवान जगन्नाथ की ऐसी प्रतिमाएं पूरे उत्तर भारत में और कहीं मौजूद नहीं हैं। भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के ठीक ऊपर एक ऐसा चमत्कारी पत्थर लगा है जो साल के 11 महीने और 15 दिन सूखा रहता है। इस चमत्कारी पत्थर पर पानी की बूंदे हीरे-मोतियों की तरह उस समय छलकती हैं, जब भीषण गर्मी से पशु , पक्षी और इंसान बेहाल होते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस पत्थर से पानी की बूंदे उस समय टपकती हैं जब मानसून आने वाला होता है। चमत्कारी पत्थर से पानी की बूंदे तब तक टपकती हैं, जब तक मानसून नहीं आ जाता है ।

-मानसून मंदिर के निर्माण में ग्रामीणों की धारणाएं
भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया और यह मंदिर कैसे बन कर तैयार हुआ, इसकी सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण राजा दधीची ने करवाया था। भगवान राम जब लंका से लौटे थे तो मंदिर परिसर में बने सरोवर में राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इसके बाद से यह सरोवर रामकुंड कहलाने लगा। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण देवी-देवताओं ने किया था। देवों पर संकट के समय इस मंदिर को बनवाया गया था, जब 6 माह की रात हुई थी। आज भी इस मंदिर में पूजा-पाठ करने के लिए हर दिन हज़ारों भक्त आते हैं।

-जब पानी की बूंदे नहीं टपकती हैं तो प्रदेश में सूखे का ख़तरा मंडराता है
ग्रामीणों का मानना है कि यदि इस चमत्कारी पत्थर से पानी की बूंदे नहीं टपकती हैं तो इसे अशुभ माना जाता है। यह इस बात का संकेत है कि प्रदेश में सूखा पड़ने वाला है। साथ ही लोगों का यह भी कहना है कि भगवान जगन्नाथ के आदेश से ही पत्थर से पानी की बूंदे छलकती हैं। मंदिर के आस-पास के सैकड़ों गाँवों के ग्रामीण अपनी फसलों की बुआई की तैयारी मंदिर के चमत्कारी पत्थर पर पानी की बूंदो को देखकर करते हैं। आस-पास के गाँवों के किसान आज भी मौसम वैज्ञानिकों से ज़्यादा, मानसून मंदिर की भविष्यवाणी पर भरोसा करते हैं।

■ पहली बात महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी...मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया,क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा ...
18/02/2022

■ पहली बात महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी...

मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया,
क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म
एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?

■ दूसरी बात महाभारत में कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछी...

दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना
कर दिया था क्योंकि वो मुझे क्षत्रिय
नहीं मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था?

■ तीसरी बात महाभारत में कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी...

द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित
किया गया, क्योंकि मुझे किसी
राजघराने का कुलीन व्यक्ति नहीं
समझा गया?

★ श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए कर्ण को बोले, सुनो..

हे कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था।

मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु
मेरा इंतज़ार कर रही थी।

जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात
मुझे माता-पिता से अलग होना पड़ा।

मैने गायों को चराया और गायों के
गोबर को अपने हाथों से उठाया।

जब मैं चल भी नहीं पाता था, तब
मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए।

मेरे पास कोई सेना नहीं थी,
कोई शिक्षा नहीं थी,
कोई गुरुकुल नहीं था,
कोई महल नहीं था,
फिर भी मेरे मामा ने मुझे अपना
सबसे बड़ा शत्रु समझा।

बड़ा होने पर मुझे ऋषि
सांदीपनि के आश्रम में
जाने का अवसर मिला।

मुझे बहुत से विवाह, राजनैतिक
कारणों से या उन स्त्रियों से करने
पड़े, जिन्हें मैंने राक्षसों से छुड़ाया था।

जरासंध के प्रकोप के कारण, मुझे अपने
परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त,
समुद्र के किनारे द्वारका में बसना पड़ा।

हे कर्ण...

किसी का भी जीवन चुनौतियों से
रहित नहीं है. सबके जीवन में
सब कुछ ठीक नहीं होता।

सत्य क्या है और उचित क्या है?
ये हम अपनी आत्मा की आवाज़
से स्वयं निर्धारित करते हैं।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता,
कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता,
कितनी बार हमारा अपमान होता है।

इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता,
कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन
होता है।

फर्क तो सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हम उन सबका सामना किस प्रकार ज्ञान के साथ करते हैं।

ज्ञान है तो ज़िन्दगी हर पल मौज़ है,
वरना समस्या तो सभी के साथ रोज है।

17/02/2022

Bhajan

कष्टों और संकटों से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने मनुष्य के कर्मों को ही महत्ता दी है। उनके अनुसार आपके कर्म ही आपके भ...
17/02/2022

कष्टों और संकटों से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने मनुष्य के कर्मों को ही महत्ता दी है। उनके अनुसार आपके कर्म ही आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले लोगों का उद्धार होना संभव नहीं है। भाग्य और कर्म को अच्छे से समझने के लिए पुराणों में एक कहानी का उल्लेख मिलता है।
एक बार देवर्षि नारद जी बैकुंठ धाम गए।

वहां नारद जी ने श्रीहरि से कहा, "प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं प्राप्त हो रहा, जो पाप कर रहे हैं उनका ही भला हो रहा है।” तब विष्णु जी ने कहा, "ऐसा नहीं है देवर्षि, जो भी हो रहा है सब नियति के अनुसार ही हो रहा है। वही उचित है।”
नारद जी बोले, "मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा है प्रभु, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।” विष्णु जी ने कहा, “किसी ऐसी एक घटना का उल्लेख करो।” नारद जी ने कहा, “अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं।

वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने नहीं आ रहा था। तभी एक चोर वहाँ से गुज़रा। गाय को फंसा हुआ देखकर उसने गाय को बचाया नहीं, बल्कि उस पर पैर रख कर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली। थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुज़रा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की, पूरे शरीर का ज़ोर लगाकर अत्यन्त कठिनाई से उसने गाय की जान बचाई। लेकिन गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया प्रभु! बताइए यह कौन सा न्याय है?”

नारद जी की बात सुनने के बाद प्रभु बोले, “जो चोर, गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी क़िस्मत में तो एक ख़ज़ाना था, लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं। वहीं, उस साधु के भाग्य में मृत्यु लिखी थी। लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी-सी चोट में बदल गई। इसलिए वह गड्ढे में गिर गया।"

श्रीहरि ने आगे कहा, “इंसान के कर्मों से ही उसका भाग्य तय होता है। सत्कर्मों के प्रभाव से हर प्रकार के दुख और संकट से मनुष्य का उद्धार हो सकता है। इंसान का सत्कर्म करते रहना आवश्यक है क्योंकि कर्म से भाग्य को बदला जा सकता है।” विष्णु जी की बात से नारद जी को मानव जाति के उद्धार का मार्ग पता लग गया।

16/02/2022

छाप तिलक सब मधुर संगीत

हिंदू धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन विधि- विधान से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश प...
16/02/2022

हिंदू धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन विधि- विधान से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश प्रथम पूजनीय देव और विघ्नहर्ता हैं। भगवान गणेश की कृपा से कार्यों में किसी भी प्रकार का कोई विघ्न नहीं आता, साथ ही कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। गणेश जी के आशीर्वाद से भक्तों को ग्रहों के अशुभ प्रभावों से भी मुक्ति मिल जाती है।

अगर आपके बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं तो बुधवार के दिन विधि- विधान से भगवान गणेश की पूजा करें। गणेश जी में आस्था रखने वाले लोग इस दिन बड़ी ही श्रद्धा के साथ उनकी पूजा-अर्चना और व्रत भी करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन व्रत करने से कई लाभ होते हैं। भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए करें ये उपाय:-

भगवान गणेश को दूर्वा घास अर्पित करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश को दूर्वा घास अति प्रिय है। बुधवार के दिन भगवान गणेश को दूर्वा घास अवश्य अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं। आप रोज़ाना भी भगवान गणेश को दूर्वा घास अर्पित कर सकते हैं।

सिंदूर लगाएं
भगवान गणेश को सिंदूर भी लगाएं। भगवान गणेश को सिंदूर लगाने के बाद अपने माथे पर भी सिंदूर लगाएं। ऐसा करने से प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है।

भोग लगाएं
भगवान गणेश को भोग ज़रूर लगाएं। भगवान गणेश को मोदक और लड्डू पसंद हैं। आप भगवान गणेश को इच्छानुसार सात्विक चीज़ों का भोग भी लगा सकते हैं।

मंत्र जाप
भगवान गणेश को भोग लगाने के बाद मन ही मन भगवान का ध्यान करते हुए 108 बार इस मंत्र का जाप करें: ‘ॐ गं गणपतये नमः’।

आज के दिन पढ़िए मंगलवार व्रत कथा, होगी हनुमान जी की कृपाऋषिनगर में केशवदत्त ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहता था। के...
15/02/2022

आज के दिन पढ़िए मंगलवार व्रत कथा, होगी हनुमान जी की कृपा

ऋषिनगर में केशवदत्त ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहता था। केशवदत्त के घर में धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। नगर में सभी केशवदत्त का सम्मान करते थे, लेकिन केशवदत्त संतान नहीं होने से बहुत चिंतित रहता था।

दोनों पति-पत्नी प्रति मंगलवार को मंदिर में जाकर हनुमान जी की पूजा करते थे। विधिवत मंगलवार का व्रत करते हुए कई वर्ष बीत गए। ब्राह्मण बहुत निराश हो गया, लेकिन उसने व्रत करना नहीं छोड़ा।
कुछ दिनों के बाद केशवदत्त हनुमान जी की पूजा करने के लिए जंगल में चला गया। उसकी पत्नी अंजलि घर में रहकर मंगलवार का व्रत करने लगी। दोनों पति-पत्नी पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार का विधिवत व्रत करने लगे। कुछ दिनों बाद अंजलि ने अगले मंगलवार को व्रत किया लेकिन किसी कारणवश उस दिन अंजलि हनुमान जी को भोग नहीं लगा सकी और उस दिन वह सूर्यास्त के बाद भूखी ही सो गई।

अगले मंगलवार को हनुमानजी को भोग लगाए बिना उसने भोजन नहीं करने का प्रण कर लिया। छः दिन तक अंजलि भूखी-प्यासी रही। सातवें दिन मंगलवार को अंजलि ने हनुमान जी की पूजा करी, लेकिन तभी भूख-प्यास के कारण अंजलि बेहोश हो गई।

हनुमान जी ने उसे स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा- ‘उठो पुत्री! मैं तुम्हारी पूजा-पाठ से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम्हें सुंदर और सुयोग्य पुत्र होने का वर देता हूँ।’ यह कह कर हनुमान जी अंतर्धान हो गए। तत्काल अंजलि ने उठकर हनुमान जी को भोग लगाया और स्वयं भोजन किया।

हनुमान जी की अनुकम्पा से अंजलि ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया। मंगलवार को जन्म लेने के कारण उस बच्चे का नाम मंगलप्रसाद रखा गया। कुछ दिनों बाद अंजलि का पति केशवदत्त भी घर लौट आया। उसने मंगल को देखा तो अंजलि से पूछा- ‘यह सुंदर बच्चा किसका है?’ अंजलि ने खुश होते हुए हनुमान जी के दर्शन देने और पुत्र प्राप्त होने का वरदान देने की सारी कथा सुना दी। लेकिन केशवदत्त को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसके मन में पता नहीं कैसे यह कलुषित विचार आ गया कि अंजलि ने उसके साथ विश्वासघात किया है। अपने पापों को छिपाने के लिए अंजलि झूठ बोल रही है।

केशवदत्त ने उस बच्चे को मार डालने की योजना बनाई। एक दिन केशवदत स्नान के लिए कुएँ पर गया। मंगल भी उसके साथ था। केशवदत्त ने मौका देखकर मंगल को कुएँ में फेंक दिया और घर आकर बहाना बना दिया कि मंगल तो कुएँ पर उसके पास पहुँचा ही नहीं। केशवदत्त के इतने कहने के ठीक बाद मंगल दौड़ता हुआ घर लौट आया।

केशवदत्त मंगल को देखकर बुरी तरह हैरान हो उठा। उसी रात हनुमान जी ने केशवदत्त को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा- ‘तुम दोनों के मंगलवार के व्रत करने से प्रसन्न होकर, पुत्र जन्म का वर मैंने दिया था। फिर तुम अपनी पत्नी को कुलटा क्यों समझते हो?!’

उसी समय केशवदत्त ने अंजलि को जगाकर उससे क्षमा माँगते हुए स्वप्न में हनुमान जी के दर्शन देने की सारी कहानी सुनाई। केशवदत्त ने अपने बेटे को हृदय से लगाकर बहुत प्यार किया। उस दिन के बाद सभी आनंदपूर्वक रहने लगे।

मंगलवार का विधिवत व्रत करने से केशवदत्त और उनके सभी कष्ट दूर हो गए। इस तरह जो स्त्री-पुरुष विधिवत मंगलवार का व्रत करके व्रत कथा सुनते हैं, हनुमान जी उनके सभी कष्ट दूर करके घर में धन-संपत्ति का भंडार भर देते हैं। साथ ही हनुमान जी की कृपा से शरीर के सभी रक्त विकार के रोग भी नष्ट हो जाते हैं।

देवों के देव महादेव ही एक मात्र ऐसे भगवान हैं, जिनकी भक्ति हर कोई करता है। वो सृष्टि के संहारक भी हैं और रक्षक भी। क्रोध...
14/02/2022

देवों के देव महादेव ही एक मात्र ऐसे भगवान हैं, जिनकी भक्ति हर कोई करता है।
वो सृष्टि के संहारक भी हैं और रक्षक भी। क्रोध में वे तांडव करते हैं, तो संसार की रक्षा के लिए समुद्र मंथन से निकला विष भी पी जाते हैं। भक्तों की पीड़ा उन्हें द्रवित करती है और उनकी आराधना प्रसन्न करती है।
सप्ताह के सात दिनों में से सोमवार, भगवान शिव का दिन माना गया है। इस दिन भगवान शिव की पूजा व दर्शन का विशेष महत्व है। यूं तो भगवान शिव श्रृद्धा मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन उनकी पूजा नियमानुसार की जाए तो अधिक फलदायी होती है।

भगवान शिव की पूजा विधि:-
-जलाभिषेक
जलाभिषेक करते समय ध्यान रहे कि सबसे पहले भगवान गणेश को, फिर मां पार्वती और उसके बाद भगवान कार्तिकेय को, फिर नंदी और फिर अंत में शिव प्रतीक शिवलिंग का जलाभिषेक करें। साथ ही “ऊं नम: शिवाय” मंत्र जाप मन में करते रहें।

-पंचामृत अभिषेक
दूध, दही, शहद, शुद्ध घी और चीनी को एक साथ मिला कर पंचामृत तैयार कर लें। और फिर तैयार किये गए पंचामृत से जलाभिषेक करें। जलाभिषेक की शुरुआत गणेश जी से करें। उसके बाद मां पार्वती, कार्तिकेय जी, नंदी और फिर शिवलिंग पर चढ़ाएं। जलाभिषेक करने के बाद केसर के जल से स्नान कराएं। फिर इत्र अर्पित करें और वस्त्र पहनाएं। चंदन लगाकर फिर 11 या 21 चावल के दाने चढ़ाएं।

-भगवान शिव को मीठा चढ़ाएं
शिव जी को मीठा बहुत पसंद है, इसलिए उन्हें मिष्ठान अवश्य चढ़ाएं। मीठे में गुड़ या चीनी भी अर्पित कर सकते हैं। उसके बाद फूल, बेल पत्र, भांग और धतूरा चढ़ाएं। श्रद्धानुसार शुद्ध घी या फिर तिल के तेल का दीपक जलाएं।

-शिव चालीसा का करें पाठ
अभिषेक के बाद शिव चालीसा या फिर श्री रुद्राष्टकम् का पाठ करें और उसके बाद भगवान शिव की आरती करें।

सोमवार के दिन जो भक्त व्रत रख कर विधि-विधान से पूजा करते हैं उनसे भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं और राह में आने वाली हर बाधा को दूर करते हैं।

 #प्रेरणादायक_प्रसंगश्रीमद् भागवत में वर्णित राजा ययाति की कथा वर्णित है।ययाति चक्रवर्ती सम्राट थे,पर अपने ससुर शुक्राचा...
03/02/2022

#प्रेरणादायक_प्रसंग
श्रीमद् भागवत में वर्णित राजा ययाति की कथा वर्णित है।
ययाति चक्रवर्ती सम्राट थे,पर अपने ससुर शुक्राचार्य के शाप के कारण जल्दी बूढ़े हो गए।
मृत्यु ने आकर उसे कहा अब आप चलें।

ययाति ने कहा अभी तो मैं कुछ भोग ही नहीं पाया। थोड़े दिन और मुझे दे दो। कई बातें अधूरी रह गयी हैं।
मृत्यु ने कहा - वो कभी पूरी नही होती,हर कोई इसी बात के लिए रोता है।
लेकिन ययाति ने ज़िद की ,एक अवसर दो, मैं जल्दी ही कर लूंगा। सौ वर्ष मुझे और दे दो।
मृत्यु ने कहा- तेरे इतने पुत्र हैं, इनमें से कोई अपनी युवावस्था तुझे दे दे तो कुछ हो सकता है।

ययाति ने अपने पुत्रों को बुलाया। उसमें कोई अस्सी साल का था, कोई पचहत्तर साल का, कोई सत्तर साल का। वे भी बूढ़े हो गए थे, एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।

अंतत: सब से छोटा पुत्र उठकर खड़ा हुआ। उसकी उम्र तो कोई बीस वर्ष से ज्यादा नही थी।
मृत्यु ने उसके पुत्र को कहा --बेवकूफ, तेरे बड़े भाई कोई जाने को राजी नहीं हैं, तू क्यों फंस रहा है?

उस पुत्र ने कहा -बड़े भाइयों की बड़े भाई जानें।
बड़े भाइयों ने कहा- हम क्यों जाएं? जब पिता का सौ साल में जीवन का रस पूरा नहीं हुआ, तो हम तो अभी सत्तर साल ही जिये हैं, कोई साठ ही साल जीया, हमारा रस कैसे पूरा हो जाए? और जब पिता जाने को तैयार नहीं हैं, तो हम क्यों जाने को तैयार हों? अगर जीवन से उनका मोह है तो हमारा भी है। हमारा तो और भी अधूरा रह गया है अभी। यह तो हम से कम से कम तीस साल, बीस साल ज्यादा जी लिए हैं। हम क्यों छोड़ें? हम भी पूरा भोगना चाहते हैं।

छोटे पुत्र का नाम पुरु था। उसने कहा - "पिता सौ साल में नहीं भोग पाए, तो मैं भी क्या ही कर लूंगा! अस्सी साल और धक्के खाने से क्या मतलब है! जाना तो पड़ेगा। तुम सौ साल बाद आओगे। और पिता तो सौ साल में भी नहीं भोग पाए और ज्यादा के लिए रो रहे हैं, आंसू बहा रहे है?"

एक ही बात को देखने के तरीके हैं-

वह यह कहता है कि जब सौ साल में इनका काम पूरा नहीं हुआ, तो अब मैं ही आगे और अस्सी साल धक्के क्यों खाऊं? यह काम तो कभी पूरा होने वाला नहीं है, मेरी समझ में आ गया, मेरी युवावस्था ले लो।

ऐसे करते करते ययाति को पुनः युवावस्था मिल गयी। वर्षों बाद मृत्यु आई तो ययाति फिर रोने लगा, तो मृत्यु ने कहा- अब तो समझो! तुम जिन वासनाओं को पूरा करना चाहते हो, वो किसी की कभी पूरी नही होती। तुम्हारी समझ में कब आएगा? तुम बूढ़े होकर भी बचकाने ही बने हुए हो! जिसे तुम पूरा करने चले हो, वह पूरा होता ही नहीं,अधूरा रहना ही उनका स्वभाव है।
ययाति को समझ आई, उसने पुरु की युवावस्था वापस दिला दी और उसको राजपाट देकर मृत्यु के साथ चल दिये। कालांतर में इसी पुरु के नाम से कुरुवंश चला जिसमे कौरव-पांडव हुए।

दुर्योधन ने अपने पूर्वज ययाति से कुछ नही सीखा, पांडवों का राज्य हड़प कर सोचा कि अनन्त काल तक इसका उपभोग करूँगा। मृत्यु उसको भी लेने आई।

हम भी ययाति,दुर्योधन से सीख पाते हैं क्या ? पुरु से ही सीख लें।

हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल यह त्यौहार...
03/02/2022

हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल यह त्यौहार 05 फ़रवरी के दिन पड़ रहा है। इस दिन से ऋतुराज बसंत की शुरुआत हो जाती है। बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था।
हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल यह त्यौहार 05 फ़रवरी के दिन पड़ रहा है। इस दिन से ऋतुराज बसंत की शुरुआत हो जाती है। बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था।हिंदू पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस साल यह त्यौहार 05 फ़रवरी के दिन पड़ रहा है। इस दिन से ऋतुराज बसंत की शुरुआत हो जाती है। बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था।

बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन, देवी सती और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने से हर व्यक्ति को शुभ समाचार एवं फल की प्राप्ति होती है। इसलिए बसंत पंचमी के दिन, षोडशोपचार पूजा करना विशेष रूप से वैवाहिक जीवन के लिए सुखदायक माना गया है।

शुभ मुहूर्त
बसंत पंचमी 05 फ़रवरी 2022 के दिन है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा के लिए 5 घंटे 16 मिनट का शुभ मुहूर्त रहेगा। इस दिन सुबह 07 बजकर 19 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक मां सरस्वती की पूजा करना शुभ रहेगा।

पूजा विधि -
इस दिन सुबह उठकर शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करें और पीले वस्त्र पहनें।
अग्र भाग में गणेश जी और पीछे वसंत स्थापित करें।
नए धान्य से जौ, गेहूं आदि की बाली की पुंज को भरे कलश में डंठल सहित रख कर, अबीर और पीले फूलों से वसंत बनाएं।
जल से भरे हुए तांबे के पात्र में रखे दूर्वा से घर या मंदिर में चारों तरफ़ जल छिड़कें और यह मंत्र पढ़ें-
प्रकर्तत्याः वसंतोज्ज्वलभूषणा नृत्यमाना शुभा देवी समस्ताभरणैर्युता, वीणा वादनशीला च यदकर्पूरचार्चिता।
प्रणे देवीसरस्वती वाजोभिर्वजिनीवती श्रीनामणित्रयवतु।
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर बैठकर मां को पीले पुष्पों की माला पहनाकर पूजन करें।
इस दिन गणेश जी, सूर्य देव, भगवान विष्णु, रति-कामदेव और भगवान शिव की पूजा का विधान भी है।

बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा का महत्व है। हिंदू परंपरा के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को, बसंत पंचमी पर्व मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती का सृजन किया था। यही वजह है कि इस दिन सभी सनातन अनुयायी, मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से शुभ फल तो मिलते ही हैं, साथ ही उस व्यक्ति को मां सरस्वती की असीम कृपा भी प्राप्त होती है।

बसंत पंचमी को लेकर एक और भी पौराणिक मान्यता सुनने को मिलता है, जिसके अनुसार इस दिन यदि कोई भी व्यक्ति सच्चे दिल से धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी और भगवान श्री विष्णु की पूजा करता है, तो उसे हर प्रकार की आर्थिक तंगी से छुटकारा मिल जाता है। हालांकि देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की यह पूजा भी मुख्य रूप से, पंचोपचार एवं षोडशोपचार विधि से ही होनी अनिवार्य होती है!

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