10/02/2024
मुंगेर गंगा पुल निर्माण हेतु समर्पित संस्था जागृति के नायक-सांसद ब्रह्मानंद मंडल की आदमकद प्रतिमा तेलिया तालाब तीनबटिया पर स्थापित करने की कृपा बिहार सरकार को करनी चाहिए.
Nitish Kumar
सम्पादक, वैश्य क्रांति (मासिक पत्रिका)
मुंगेर गंगा पुल निर्माण हेतु समर्पित संस्था जागृति के नायक-सांसद ब्रह्मानंद मंडल की आदमकद प्रतिमा तेलिया तालाब तीनबटिया पर स्थापित करने की कृपा बिहार सरकार को करनी चाहिए.
Nitish Kumar
Nitish Kumar Tejashwi Yadav
#मुंगेर #बिहार
क्या मुंगेर विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह छात्र छात्राओं के 20 करोड़ रूपये से सम्पन्न होगा?
मुंगेर विश्वविद्यालय ने दीक्षांत समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया है। विश्वविद्यालय ने इसके लिए आयोजन समिति का गठन किया है। आयोजन समिति ने निर्णय लिया है कि प्रमाण पत्र, पगड़ी और अंग वस्त्र देने के लिए है ₹2500 रुपया प्रति छात्र लिया जाएगा।
बिहार जातीय गणना, सामाजिक व आर्थिक सर्वे से स्पष्ट हुआ है कि ₹6000 महीना आय वाले 34.13%, ₹6000 से ₹10000 तक कमाने वाले 29.61% और ₹10000 से 20000 कमाने वाले 18.06% है अर्थात् ₹6000 से ₹10000 आय वाले 63.74% है, अर्थात् ₹2500 में किसी परिवार के 12-13 दिन का, तो किसी परिवार के 7–8 दिन का खाना-पीना यानी भोजनआदि की आवश्यकता पूरी होती है।
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह कमेटी में जो सदस्य हैं वह ₹50000 से अधिक आय वाले हैं जिनकी संख्या 3.90% है यह लोग ₹10000 मासिक आय वालों का क्या दर्द समझ सकेंगे?
इन्होंने राशि निर्धारित करने के पूर्व अन्याय विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह कैसे आयोजित किया जाता है, उसका अध्ययन नहीं किया है। इन्होंने प्रति छात्र-छात्राएं और ₹2500 निर्धारित किया है। 2020-23 में स्नातक के तीनों संकाय (कला, विज्ञान और वाणिज्य) में प्रथम और द्वितीय श्रेणी से पास होने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या 26,142 है और 2020-22 में पीजी के तीनों संकाय के छात्र-छात्राओं की संख्या 567 है यानी कुल 26,709 छात्र-छात्राएं।
26709 x 2500 = ₹6, 67, 72, 500 यानी 6 करोड़ 67 लाख 72 हजार 500.
2018-21, 2019-22, 2020-23 इन तीन सत्रों के छात्रों को प्रमाण पत्र दिया जाना है। लगभग 70-75 हजार छात्र-छात्राओं को और कुल राशि लगभग 20 करोड रुपए के करीब होती है।
सोचने वाली बात है कि अंक पत्र से छात्रों ने अपना काम चला लिया वह क्यों ₹2500 खर्च करेंगे?
अन्याय विश्वविद्यालय की तरह चयनित छात्र-छात्राओं को आमंत्रित किया जाना चाहिए था. यानी जो छात्र-छात्राएं 1 से 5 रैंक तक विश्वविद्यालय में स्थान पाएं हैं। 2020-22 की ही केवल बात करें तो स्नातक के विभिन्न प्रतिष्ठा के 50-60 छात्र-छात्राएं हो तो तीन सत्रों में 150 से 300 के बीच छात्र-छात्रा होते। इसी तरह पीजी में प्रथम, द्वितीय स्थान पाने वाले प्रत्येक विषय से दो-तीन छात्र-छात्राएं हो तो 50-60 छात्र-छात्राएं होते। मिलाजुला कर 300-350 छात्राएं होते। प्रत्येक छात्र-छात्राओं को प्रमाण पत्र देने में 1 मिनट लगता तो 6 घंटा का समय इसमें लगता, दो-ढाई घंटा कार्यक्रम में लगता तो लगभग 8 घंटे का आयोजन संभव था।
दीक्षांत समारोह में 75000 विद्यार्थियों के बैठने की व्यवस्था ये कहां करेंगे? बिहार का सबसे बड़ा सभागार पटना में है बापू सभागार, जिसमें 5000 लोगों के बैठने की क्षमता है।
मुंगेर विश्वविद्यालय के छात्र और छात्र नेताओं ने अन्य विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में लिए जाने वाले शुल्क का हवाला देकर इस राशि का विरोध किया है।
दीक्षांत समारोह आयोजन कमेटी के सदस्यों ने अव्यावहारिक निर्णय लिया है। कार्यक्रम होने पर संदेह के बादल मंडरा रहे हैं। या कार्यक्रम नहीं करने का सोची-समझी रणनीति भी हो सकती है। यह दीक्षांत समारोह मुंगेर विश्वविद्यालय के साथ-साथ मुंगेर जिला में पहला आयोजन होता, अतएव इसे व्यावहारिक धरातल पर कैसे उतारा जाए, उसके लिए सोच-समझकर निर्णय लिया जाना चाहिए था। करोड़ों का बजट मुंह में पानी ला दिया, इसलिए व्यावहारिक पृष्ठभूमि से दूर हटने को मजबूर किया हो?
#मुंगेर
जयंती पर
सादर नमन
🙏🏻
भारत बना अमीर देश लेकिन जनता गरीब
उच्च शिक्षा सहित सभी प्रकार की व्यावसायिक शिक्ष-प्रशिक्षण, खेल-प्रशिक्षण और बेरोजगारों के लिए प्रतियोगिता फॉर्म शुल्क बिल्कुल नि:शुल्क करने की मांग वैसे क्रांति पत्रिका के संपादक दीपक कुमार पोद्दार, भारत सरकार और प्रदेश के सभी सरकार से करते हैं। केंद्र सरकार का शिक्षा बजट 1.12लाख करोड़ है। यदि पेट्रोल और डीजल 50 पैसे रुपए प्रति लीटर शिक्षा अधिकार लगा दिया जाए तो यह बजट 8 लाख करोड़ का हो जाता है। इस बजट में भारत की शिक्षा-व्यवस्था नि:शुल्क होगी बल्कि दुनिया में बेहतरीन भी होगी और प्रतिभागियों का विदेश पलायन भी बंद होगा और विश्व के संभावित और प्रतिभाओं का लाभ भारत को मिलेगा।
आपको जानकर बेहद खुशी होगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपना देश भारत को अमीर देश के श्रेणी में ला खड़ा किया है। भारत विश्व की 5वीं अर्थशक्ति बन चुकी है। अंतरिक्ष के मामले में विश्व का चौथा देश बन गया है और चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन चुका है। सुरक्षा खर्च के मामले में अमेरिका और चीन के बाद तीसरा देश बन गया है। हमारा देश 16 हजार करोड़ का हथियार विश्व के विभिन्न देशों से बेचा है। हमें अपने देश के इस विकास पर गर्व है। इसके लिए मोदी सरकार के प्रति बहुत-बहुत आभार व्यक्त करते हैं, धन्यवाद देते हैं।
देश हमारा अमीर बना है लेकिन देश की जनता बहुत गरीब है। हमारा देश विश्व का सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है। इसकी आबादी 140 करोड़ हो चुकी है।
विपक्ष ने बीते लोकसभा सत्र में सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसका विरोध करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीयों के गरीबी का नंगा तस्वीर को रखते हुए गरीबों के हित में किए गए कार्यों को बताया जो इस प्रकार है-
(1). 3 करोड़ परिवार को आवास दिया गया जिससे 15 करोड़ लोग लाभान्वित हुए।
(2). 9.5 करोड़ परिवार को उज्ज्वला योजना के तहत 45.5 करोड़ लाभान्वित हुए। लोगों को गैस इंजन की सुविधा मिली।
(3). एक 11.42 करोड़ परिवार का शौचालय बनवाया गया जिससे 59 करोड़ लोग लाभान्वित हुए। शौचालय जन जीवन में शौचालय जीवन के लिए कितना आवश्यक है, सभी लोग जानते हैं।
(4). 12.67 करोड़ परिवार को जल-नल योजना का लाभ दिया गया। इसके 63-64 करोड़ लोग लाभान्वित हुए।
(5). 10 करोड़ परिवार को ₹5 लाख का स्वास्थ्य सुरक्षा आयुष्मान भारत के तहत दिया गया। इससे 50 करोड़ लोग लाभान्वित हुए।
(6). 80 करोड़ लोगों को महीना में 10 दिन का अनाज देती है। प्रत्येक व्यक्ति 5 किलो।
(7). जनधन खाता 50 करोड़ लोगों ने खुलवाया है जिसमें 2 लाख 3 हजार रुपए जमा है। यह राशि 9 वर्षों में जमा हुई है, खाता में औसतन राशि ₹4060। 1 वर्ष में औसत जमा ₹451 अर्थात ₹37.60 पैसा महीना यानी 1.25 रूपया प्रतिदिन।
अब सरकार से एक सवाल है कि सरकार की नई शिक्षा नीति में स्नातक (ग्रेजुएशन) 4 वर्ष का यानी 8 सेमेस्टर का हो गया है, जिसमें कुल खर्च ₹25690 का आता है। जो परिवार साल में चाहे ₹400 जमा कर पाता है वह यह राशि कैसे चुकाएगा? अर्थात गरीब लोग जिसकी संख्या 57% है उसके बच्चे स्नातक / ग्रेजुएशन होने का क्या सपना देख सकते हैं?
हाल ही में बिहार में उच्च माध्यमिक वर्गों के लिए बिहार सरकार ने डोमिसाइल नीति त्याग कर 57,602 पदों के लिए नियुक्ति निकाली जिसमें मात्र 39,680 अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा और 30,909 लोग परीक्षा में शामिल हुए। मात्र 0.64% उच्च माध्यमिक शिक्षक परीक्षा में शामिल होने की योग्यता मास्टर डिग्री के साथ बीएड है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, 5.8 + युवक उच्च शिक्षा लेते हैं, जबकि युवती की संख्या 6.4% है और औसत 6.1% होता है। उच्च शिक्षा में हमारी स्थिति काफी दयनीय है।
भारत में उच्च शिक्षा पाना गरीब लोगों के औकाद के बाहर है। यह सपना भी नहीं देख सकते हैं। नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक्स स्टडी के अनुसार शॉप आईआईटियन में 60% विदेश चले जाते हैं। 1-10 रैंकिंग में 9; 100 रैंकिंग में 62 और 1000 रैंकिंग तक में 360 छात्र विदेश जाते हैं। उच्च शिक्षा पाने के लिए।
आपको बताते चलें कि विश्व के 10 देश - जर्मनी, नॉर्वे, स्वीडन, आसस्ट्रिया, फिनलैंड, फ्रांस, चेक रिपब्लिक, ग्रीस, इटली, और स्पेन। ये देश केवल अपने देश के नागरिकों को बल्कि विश्व के किसी भी देश के नागरिकों को उच्च शिक्षा देने के लिए शिक्षण शुल्क नहीं लेती है, छात्रवृत्ति भी देती है।
मेधा और प्रतिभा गरीबों के पास भी होती है लेकिन संसाधन के अभाव में वे उच्च शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। सरकार गरीब की नंगी तस्वीर पेश कर चुकी है। इसलिए भारत सरकार और राज्य सरकार से करबद्ध निवेदन है। प्रार्थना है कि देश की सभी परीक्षा समिति और देश के सभी सरकारी विश्वविद्यालय में शिक्षा शुल्क समाप्त करें। उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए नि:शुल्क छात्रावास और भोजन की व्यवस्था करें। बेरोजगारों के लिए प्रतियोगिता परीक्षा के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाए। भारत का शिक्षा बजट ₹1,12,000 का है।
भारत में प्रतिदिन पेट्रोल की खपत वाला अलग मीटर है और डीजल की खपत 27 अरब मीटर है। यदि पेट्रोल और डीजल पर प्रति लीटर 50 पैसा शिक्षा अधिकार लगा दिया जाए तो प्रतिदिन सरकार को 1950 अरब रुपया अर्थात 1950 सौ करोड़ रुपिया प्रतिदिन आमद होगी जो साल भर में 7 लाख 10 हजार करोड़ रुपया होगा। अर्थात शिक्षा का बजट सवा आठ लाख करोड़ रुपया हो जाएगा।
केंद्र सरकार मेडिकल, इंजीनियरिंग, एल. एल. बी, चार्टर्ड अकाउंटेंट, बीसीए, बीबीए, एमबीए, B.Ed, M.Ed जैसी सभी शिक्षा नि:शुल्क करें। व्यावसायिक शिक्षा प्रशिक्षण और खेल प्रशिक्षण नि:शुल्क करें।
- दीपक कुमार पोद्दार,
संपादक, वैश्य क्रांति
चंद्रयान 3 के सफलता पर सभी वैज्ञानिकों के कठिन परिश्रम को नमन, बधाई एवं देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं...
*टांग नहीं खींचे, जो जहां हैं उसे बल प्रदान करें : राजनीतिक-सामाजिक स्थिति मजबूत करें*
वैश्य समाज अनेक जातियों का समूह है तेली जाति के प्रदेश अध्यक्ष रणविजय साहू को राजद ने मोरवा से टिकट दिया वे निर्वाचित हुए और विधायक बन गये। तेली समाज में वार्षिक चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी। इसी बीच बिहार प्रदेश राष्ट्रीय जनता दल ने रणविजय साहू को प्रदेश का प्रधान महासचिव बनाकर तेली और वैश्य जाति को मान सम्मान दिया। ऐसी परिस्थिति में तेली जाति को चाहिए था कि रणविजय साहू को निर्विरोध अध्यक्ष चुनकर समाज की एकता का महत्व सभी राजनीतिक दल को देता, लेकिन रणविजय साहू को अध्यक्ष पद के चुनाव में हराने के लिए जो लोग कमर कसे हैं, वे समाज को अच्छा संदेश नहीं दे रहे हैं।
तेली समाज के लोग पूरी गंभीरता से सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए।
वैश्य समाज के अन्य घटकों को इससे सीख लेनी चाहिए और आगामी ऐसे परिस्थिति में विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वैश्य डॉक्टर संजय जयसवाल थे उनके हटने के बाद कोई अन्य वैश्य को अध्यक्ष बनाया गया? भाजपा में वैश्य नेता की कमी है? जो जहां है उसे बल प्रदान करें टांग नहीं खींचे।
-दीपक कुमार पोद्दार, मुंगेर
सम्पादक, वैश्य क्रांति ( मासिक पत्रिका )
Mob : 8809806760
#वैश्य #वैश्य_समाज #वैश्य_क्रांति_मासिक_पत्रिका
सेंगोल का महिमामंडन, लोकतंत्र का अपमान
कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना लगाने में भाजपा के नेतागण चतुर और प्रवीण है। संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री के कर कमलों से कराने की बात कहकर विपक्ष को विक्षुब्ध और उत्तेजित कर दिया, विपक्ष महामहिम राष्ट्रपति कि कर कमलों से नये संसद भवन के उद्घाटन की बात कर रहे हैं।
इसी दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने राजतंत्र का प्रतीक सेंगोल का महिमामंडन कर रहे हैं और उसे लोकसभा के अध्यक्ष के कुर्सी के पीछे रखने की बात मनुवादियों का पीठ थपथपाना जैसा है। भारत के आजादी के समय भारत के वायसराय लॉर्ड माउंट वेंटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री भारत को सेंगोल देने की प्रक्रिया की थी। सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक चिन्ह है। आजादी के दीवानों ने भारत में धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्र समाजवादी गणराज्य की स्थापना की। इसलिए सेंगेल को प्रयागराज के संग्रहालय का शोभा बना दिया गया था। विदित हो कि उस समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे महान लोग थे, जिन्होंने सेंगोल को संग्रहालय का वस्तु बनने दिया था।
आजादी के बाद जन्म लेने वाले नेता इस राजतंत्रीय प्रतीक चिन्ह को संसद में स्थापित कर राजतंत्र व्यवस्था पर मुहर लगाकर उन सभी लोकतंत्र वादियों और प्रेमियों का अपमान किया है जो विश्व में लोकतंत्र की स्थापना के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया था।
राजनीतिक संकेतिक सेंगोल का गुणगान लोकतंत्र के लिए घातक है। यह कहीं न कहीं मनुवाद के सिद्धांत पर मोहर लगाने जैसा है। यह देश के लिए दुख:द है।
नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को इसे नजरअंदाज किया जा सकता है, लेकिन सेंगोल को संसद में रखना स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
सेंगोल को संसद में रखना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. भीमराव अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि महान नेताओं के पावन भावना को समझने की भूल के साथ-साथ कहीं-न-कहीं उनके प्रति उपेक्षा के भाव का भी संकेत देता है।
#सेंगोल
कीमत चुकानी होगी
भाजपा अपने वफादार कार्यकर्ताओं और साथियों को दर किनार कर रही है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपने तत्कालीन लाभ के लिए अपने सिद्धान्तों और नीतियों को ताखा पर रख दिया है। जब शीर्ष नेतृत्व स्वार्थी बन जाए और अपने पुराने व समर्पित कार्यकर्ता की उपेक्षा करे तो उसका परिणाम सुखद नहीं, होगा। शीर्ष नेतृत्व का अनुसरण करने के लिए उसके कार्यकर्ता बाध्य होंगे जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना ही होगा। बिहार में नये अध्यक्ष की नियुक्ति ने भाजपा के पुराने और समर्पित कार्यकर्ता को शीर्ष नेतृत्व का फैसला किंकर्त्तव्यविमूढ़ कर दिया है., उनके संस्कार में आर एस एस है। वे विरोध नहीं, करेंगे लेकिन उदासीन हो जाएगे। स्वार्थी कार्यकर्ता अपने स्वार्थ पूर्ति की राह तलाश करेंगे।परिणाम वही होगा जो पश्चिम बंगाल में हुआ है।भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को इस बात का बहुत अफसोस है कि शीर्ष नेतृत्व पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम से कोई सबक नहीं सीखी। सुशील मोदी को उप मुख्यमंत्री पद से हटाने के दुष्परिणाम की समीक्षा नहीं की। भाजपा नेतृत्व भी कॉग्रेस के इन्दिरा गाँधी नेतृत्व पैटर्न को अपना ली है लेकिन किस तरह इन्दिरा गाँधी 1977 में सत्ता से हटा दी गयी, वह भूल रही है.। इंदिरा गांधी ने विरोधी दल के नेता को जेल में इकट्ठा कर दिया था।धूर विरोधी भी एक मंच पर आ गये थे। जनता पार्टी के शासन काल में जनसंध ने सत्ता का स्वाद चखा था। राहुल गांधी की लोकसभा की आनन फानन में सदस्यता से हटाकर और मकान खाली की नोटिश जारी कर बिना इमरजेंसी , बिना सारे विपक्ष को जेल भेजे , मोदी सरकार ने विपक्ष को एकजट कर दिया साथ ही अपने विरोधी नीतीश कुमार को पीएम प्रत्याशी बनने का मार्ग प्रशस्त किया है।
बिहार के एक राजनीतिक दल के प्रदेश अध्यक्ष के पद मुक्त होने पर विदाई गीत
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तेरे आने से हुई थी खुशी
जाने का कोई गम है नहीं,
तुम्हारे आने से
आशा का दीप जला था,
प्रेम, सद्भाव, और सम्मान
मिलने का पथ दिखा था,
मनोबल, आत्मबल बढने का
योग बना था,
लेकिन तुम अपने को जाना नहीं,
उसे पहचाना नहीं,
पद के मद में भूल गये
अपने समाज के प्रति दायित्व।
तुम्हारे मुँह फेरने से
बुझे आशा के दीप
तेरे आने से हुई थी खुशी
जाने का कोई गम है नहीं।
#बिहारी
#मुंगेर #मेडिकल_कॉलेज #मुंगेर_मेडिकल_कॉलेज
जाति जनगणना और वैश्य
वैश्य समाज के घटकीय नेता यानि विभिन्न जाति के तथाकथित नेता अपना होशो - हवाश खोकर "खुद तो डुबेंगे सनम तुम्हें भी ले डुबेंगे" कहावत को चरितार्थ करने के लिए कसम खाये हैं. वैश्य समाज के लोग जो विभिन्न जाति के हैं यदि जाति के नाम पर वैश्य लिखाते हैं और उप जाति में जिस जाति के हैं उसका नाम लिखाते हैं तो बिहार में सर्वाधिक आबादी वाला जाति के रूप में वैश्य उभर कर सामने आएगा इसका राजनीतिक लाभ वैश्य के सभी जाति को मिलेगा. यदि जाति के नाम को प्राथमिकता देंगे और उपजाति की चर्चा करेंगे तो निश्चय है ताँती, तेली, कानू व कुम्हार ईकाई अंक प्रतिशत में आएँगे और अन्य जाति दशमलव शून्य या दो शून्य में दिखेंगे. परिणाम होगा " धोबी का गदहा न घर के ना घाट का " के मुहावरे को चरितार्थ करेंगे.
फैसला आपके हाथ है, क्या करना उचित है?
वैश्य के राजनीतिक भविष्य के साथ ही आर्थिक और सामाजिक हैसियत की बात है. यदि आप तत्काल सावधानी नहीं बरते तो नौनिहाल को कीमत चुकानी होगी.
अंग्रेज के समय जाति आरक्षण में हरिजन में ताँती और तेली को शामिल किया गया था. ताँती समाज के तत्कालीन गणमान्य के जबरदस्त विरोध के कारण हरिजन में शामिल नहीं किया गया. अभी कुछ वर्ष पूर्व इसे अनुसूचित जाति में शामिल किया गया. तेली समाज के लोग लंदन में प्रिवी कौंसिल में मामला लाया था और तेली को हरिजन बनाने से रोका था. एक युग तक तेली जाति के लोग प्रखंड से राजधानी के सड़कों पर अनवरत संघर्ष किया तब इन्हे अति पिछड़ा का दर्जा मिला, इस संघर्ष में वैश्य के नाते मैं पोद्दार भी शामिल रहा था.
यदि आने वाले पीढ़ी को संघर्ष के रास्ते पर धकेलना है , वैश्य समाज को तबाह और बर्बाद ही करना है तो कौन रोक सकेगा. जो लोग मेरे विचार से सहमत है कृपाकर इस संदेश को जल्द से जल्द अधिक से अधिक लोगों को शेयर करे और वैश्य प्रहरी बनने के गर्व से गौरवान्वित हों.
-दीपक कुमार पोद्दार
स्मपादक, वैश्य क्रांति
मुंगेर (बिहार)
#वैश्य_समाज #वैश्य_क्रांति_मासिक_पत्रिका #वैश्य
भोज खौवका विधायक की जय- जय
अपने नगर के माननीय विधायक जी भोज खौवका विधायक के नाम से प्रसिद्धी पा रहे हैं. नगर निकाय चुनाव में अपने दलीय साथियों को आन्तरिक सहयोग का वचन देकर चुनावी दंगल में कुदवा दिये और आपस में लड़ाकर उनका पॉकेट हल्का करा दिये साथ ही उनकी औकात बता दी. राजनीति क्या होती है, आसानी से व्यवहारिक रूप से सीखा दी .बदले दल के नाक पर आंतरिक छुरी चली, नाक कटी तो कटी, दल हीन चुनाव था.
विधायक जी को ठंडी में चौक - चौराहे पर अलाव जले इससे क्या मतलब? अस्पताल की व्यवस्था, विधान सभा क्षेत्र के स्कूल- कॉलेज की दशा- दिशा का न कोई चिंता, न गाँव- शहर के विकास की चर्चा. न तो अपनी ओर से किसी गोष्टी, कवि सम्मेलन, खेल , सांस्कृतिक आयोजन. आम आदमी के लिए केन्द्र- राज्य सरकार की योजना का नुक्कड़ सभा के माध्यम से आम लोगों को जानकारी देना, लाभान्वित होने के लिए प्रेरित करना. अभी तो कार्यकाल का मात्र दो वर्ष बीता है. देखा जाएगा.
न तू से कोई शिकवा - शिकायत.
आम जन के किस्मत में यही लिखायत
चुनाव के समय सब कुछ भूलायत
तोहर चिंता सब दूर भगायत
भोज खौवका नाम से चर्चित विधायक.
लोकतंत्र प्रहरी और लोकतंत्र योद्धाओं को सलाम
नगर निकाय के दो चरणों का चुनाव सम्पन्न हो चुका है. इस चुनाव में भाग लेने वाले मतदाताओं, प्रत्याशी के समर्थकों, चुनाव में भाग लेने वाले सरकारी पदाधिकारियों - कर्मचारियों, प्रेस रिपोटरों, सोशल मीडिया कर्मियों, छपाई वाले सहित अन्यान्य सभी लोग जो इस चुनाव में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान दिया है. ये सभी के सभी लोकतंत्र के प्रहरी बने हैं, इनको सलाम है.
लोकतंत्र के योद्धा के सभी प्रत्याशीगण हैं जो यह जानते हैं कि इस समर में कोई एक ही विजेता होगा, फिर भी तन - मन - धन से सारी शक्ति झोंका, मंदिर मस्जिद में दान दिया, डेंगू के समय शहर में फॉगिंग करायी, छठ में वृतियों को साड़ी वगैरह दिया और जनहित में काम को अंजाम दिया और जनता के सामने विकल्प रखा. ये सब लोकतंत्र के योद्धा हुए. इनमें कई ने अपने जीवन की जमा पूँजी भी दॉव पर लगा दी. इनमें बहुत ने अर्थ तंत्र को मजबूती दिया. कुछ दिनों के लिए , कुछ बेरोजगारों को रोजगार दिया या उनके रोजगार को बल दिया. लोकतंत्र के इन सभी योद्धाओं को सलाम और विजेता का अभिनंदन और स्वागत.
समाजसेवी व राजनीतिक कार्यकर्ता आहत क्यों ?
आपको समाजसेवी या राजनीतिक कार्यकर्ता बनने के लिए किसी ने कहा नहीं आप स्वेच्छा से समाजसेवी या राजनीतिक कार्यकर्ता बने या किसी ने आपको प्रेरित किया, दबाव नहीं डाला. स्वविवेक से आप समाजसेवी या राजनीतिक कार्यकर्ता बने हैं.
यदि आप व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा के पूर्ति हेतु एक सोची- समझी रणनीति के तहत समाजसेवी या राजनीतिक कार्यकर्ता बने हैं तो इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि दुनिया को आप दो आँखों से देखते हैं संसार की हजारों निगाह आप पर है. ज्यादा चालाक बनना भारी पड़ जा सकता है, जवानी की दौलत लूट जाएँगी आपको कुछ हाथ नहीं लगेगा.
समाजसेवा ईश्वरीय कार्य है. " नेकी कर दरिया में डाल " कहावत चरितार्थ करना होगा. आत्म संतुष्टि के लिए ही काम हो तो स्वर्गीय आन्नद की प्राप्ति होती है. पूँजीनिवेश के रूप में समाज सेवा करने से हाथ खाली ही रहता है.
समाजसेवी को जीते जी दुनिया अपनी ओर से कुछ नहीं देती है. उपहास उड़ाती है. जो देता, भगवान देता है और छप्पर फाँड़ कर देता है, समझना थोड़ा जटिल है.
समाजसेवी या राजनीतिक कार्यकर्ता का मूल्यांकन समाज उसके मरने केे बाद करता है. केवल और केवल श्रद्धांजलि देता है. बहुत को तो यह श्रद्धांजलि भी नसीब नहीं होती है.
सामाजिक व राजनीतिक कार्य नि: स्वार्थ करने से, न तो दु:ख होता है, न ही किसी से शिकायत होती है. ऐसा करने से मन आहत नहीं होता है तो राहत की जरूरत नहीं पड़ती.
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