03/10/2020
Hello Freinds,
Presenting you my 2 new poem on BETI (Daughters)
BETI HUYI HAI...(बेटी हुयी हे)
HA MEIN BETI HU...(हां में बेटी हु)
Dedicated to all the Womens...🙏
(If you like it please share)
बेटी हुयी हे..
बेटी हुयी हे..
सुन कर दिल ज़ोरों से घबराया,
बेटा नहीं बेटी हुयी हे,
सोच कर मन थोड़ा मुरझाया.
लक्ष्मी आयी हे हमारे घर,
सोच कर मन को थोड़ा बेहलाया.
कुदरत से क्या कोई ना इंसाफ़ी हुयी हे?
बेटी हुयी हे..
गोदी में जब जब उसे उठाया,
उसके भाग्य का सोच मन घबराया.
कब तक तुझे सम्भाल कर रखूँगा,
एक ना एक दिन पराये घर छोड़ आऊँगा.
सोच कर के ये,
दिल में मेरे हल चल सी हुयी हे,
बेटी हुयी हे..
पढ़ाई लिखाई में परचम उसने लेहराया,
गर्व से चौड़ी हुयी छाती, सर मेरा उठ आया.
कभी उसने कोई फ़रमाइस नहीं की,
जो मिला, जितना मिला, अपने आप को संतुष्ट बताया.
मेरा दिल, मेरे सम्मान, मेरे जीवन की आस हे,
बेटी हुयी हे...
वक्त का पहिया कुछ जल्द पलटाया,
आज जो परोसा खाना,
बिटिया ने अपने हाथों से पकाया.
कल जो गोदी में खेलती, इतनी बड़ी हो गयी,
दिन ये इतने जल्दी कैसे आया?
सोच कर कुछ बंद आँखो में आंसू से छाये हे,
बेटी हुयी हे..
नाम रोशन तुम करोगी हमारा,
जिस घर भी जाओगी,
अपने नये रिस्ते तुम ख़ूब निभाओगी.
जहां रहोगी खुशिया फैलाओगी,
हर घर को एक मंदिर सा बनाओगी.
दिल में रहोगी मेरे हर दम बसी, नाज़ों से पली हे,
बेटी हुयी हे..
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
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हा में बेटी हु....
ख़ुशियों से तुम्हारा दामन भर ने आयी हु,
सारे जग की खुशिया तुम्हारे लिये लायी हु.
तुम्हें मेरी कद्र हो ना हो,
में तो अपना सब कुछ तुम पर अर्पण करने आयी हु,
हा में बेटी हु...
रिसते मुझे यहा कयी निभाने हे,
कुछ मिले मुझे, कुछ नये मुझे बनाने हे,
हर रिश्तो को मुझे निभाना हे, आगे ले जाना हे.
हर परिवार के दिलों में बसी में एक आस हु.
हा में बेटी हु...
डर कर जीना मेने सिखा हे,
हर डर से लड़ना भी मेने सिखा हे.
उँगली उठती है मुझ पर हर बार,
कदम कोई बढ़ाऊँ और हो जाये कोई गलती जो एक बार.
उम्मीद मुझ से सारे लगाते हे,
पर कोई मुझे समझ नहीं पाते हे.
ऐसी भी ना मे कोई पहेली हु.
हा में बेटी हु...
क़यी बार मेने देखा हे,
वोह जो जबरन मुझे मुझसे चुराना चाहते हे,
मेरी उदासीनता को मेरी कमजोरी,
और अपनी ताक़त समझ जाते हे,
शत विशत कर मुझे ये जो बड़ा आनंद पाते हे.
इस श्रिस्टी में उन्हें लाने वाली में ही वोह ममता की मूरत हु.
हा में बेटी हु.
बेटा बेटी में कर मतभेद,
कब तक दुनिया ऐसे चलती रहेगी?
कब तक ये दीवार यूही खड़ी रहेगी?
अब सोच बदल ने की बारी आयी हे,
राह हमने भी अपनी पायी हे,
जीवन के हर दौड़ में अब हमें भी रेस लगानी हे,
हर मंज़िल अब हमें पानी हे.
हिम्मत हे, ताक़त हे, फिर भी में कोमल हु,
हा में बेटी हु.
हर घर में बसे दिलों के अरमानो को पिरोती,
में माँ, बेहन, बीवी जैसे ही एक ज्योति हु.
हा में बेटी हु....
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.