26/04/2024
EVERY LIFE HAS A STORY…
Now available at https://www.amazon.in/dp/9358476311?ref=myi_title_dp
Do buy your copies & Support our charity.
Tumhari hasi se roshan hai har Mehfil. Tum jo saath chalo to door nahin koi Manzil...
EVERY LIFE HAS A STORY…
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Happy Diwali 🪔
Sacchi baat..
Hello Friends,
This time presenting my new romantic creation.
तुम जो साथ हो...
आँखो में आंसू नहीं,
होटों पे मुस्कान हो.
रिश्तों में तकरार नहीं,
दिलो में प्यार हो.
कुछ यूही चलती रहे ये ज़िन्दगी,
जब तुम दूर नहीं,
यूही मेरे पास हो.
तुम जो साथ हो…..
दूर रहे गम,
खुशिया हमारे पास हो.
जब भी मिले तुमसे,
और फिर मिलने की आस हो.
यूही चलता रहे ये प्यार का दौर,
तुम रहो ख़ूबसूरत हमेशा,
और हम पर जवानी मेहेरबान हो.
तुम जो साथ हो…..
इशारों के मौसम में,
तेज दिलो की धड़कन हो.
साँस हो जरा रुकी रुकी,
जब भी उनका दीदार हो.
प्यार दिलो में यूही मचलता रहे,
हर बार मिलने को उनसे,
क़यामत तक इंतेज़ार हो.
तुम जो साथ हो…
तुम से हम,
हम से तुम हो.
दिलो में जब तक धड़कन हे,
हर धड़कन में बस तुम हो.
बस तुम, बस तुम, बस तुम….
और तुमसे प्यार हो…
तुम जो साथ हो…..
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
पैसों की भूक.
कैसी लगी हे ये भूक,
मिटे ना मिटाये,
मिले जितना भी ये, कम ही पड जाये.
किसी भी तरह पाने इसे मन ललचाए.
एक बार जो लग जाये,
ना रुके किसी से ये रूक.
कैसी हे ये पैसों की भूक??
पाना चाहे हर वक्त हर कोई.
सही ग़लत कुछ समझ ना पाये.
आँखें मूँद बस इसे लूटना चाहे.
मानवता को रोन्द कर, दानव जैसे लाल टपकाये.
हो रही हर किसी से ये कैसी चूक.
कैसी हे ये पैसों की भूक??
घोटाले पे घोटाला.
बन गया रक्षक चोरी करने वाला.
ना कोई मझहब, ना कोई रिसता,
इसके सामने कभी टिक पाये.
इंसानियत को चूर चूर कर,
लालच रुके ना किसी से ये रूक.
कैसी हे ये पैसों की भूक??
भूक ये ऐसी जो सबको पागल कर जाये,
ज़्यादा से ज़्यादा पाने इसे मन ललचाये.
जाल में फ़से बिना इसके, कोई ना बच पाये.
भूक ये ऐसी कभी मिट ना पाये.
भूक लगा कर ऐसी,
हे इश्वर तूने कर दी ये कैसी चूक.
ऐसी हे ये पैसों की भूक.
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
PRESENTING MY NEW POEM.
ON CURRENT SITUATIONS.
*महामारी का मौसम*
महामारी का ये मौसम,
मचाये हाहा कार.
कही पे फूलतीं ये सांसे,
कही हो रहा ऑक्सिजन का काला बाज़ार.
महामारी का ये मौसम, मचाये हाहा कार....
इंसानियत के रूप में, दानव कर रहे व्यापार,
दवाई का भी कर दिया, मिलावट से बँट्टाधार.
कही अस्पताल में पड़ी लाशें.
हो रहा बिल भरने का इंतेज़ार.
महामारी का ये मौसम, मचाये हाहा कार....
सरकार अब कुछ नींद से जागी हे,
पर अब हाथ में कुछ नहीं बाक़ी हे.
एक दूसरे पर अब इल्ज़ाम लगेंगे,
करेंगे सब तकरार.
महामारी का ये मौसम, मचाये हाहा कार....
बंध हुयी पाठशाला, हो गये बंध दफ़्तर.
बच्चे बढ़े ऊब गए सब घर पर क़ैद रहकर.
काम धन्धे पड गये रस्ते,
हालात हो गये बत्तर.
पता नहीं चलेगा कब तक,
ये सब अब की बार,
महामारी का ये मौसम, मचाये हाहा कार....
मौत का तांडव हो रहा हर तरफ़,
क़ब्रिस्तान और समसान में लगा लाशों का बाज़ार.
किसी को मिली यहा मुक्ती,
तो किसी को है अभी करना इंतेज़ार.
जीतें जी ना सुकून मिला यहा.
मरने पर भी ना मिले यहा आराम.
बिना कोई क्रिया करम,
हो गया सबका बेड़ा पार.
महामारी का ये मौसम,
मचाये हाहा कार....
मचाये हाहा कार....
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
Let’s celebrate the Republic Day.
Presenting my Poem, “AB HUM AAZAD HAI.”
Like, share, comments as you wish.
Tum mujhe khoon do, Mein Tumhe aazaadi dunga.
:- Subhash Chandra Bose.
Referring to above, Presenting my poem.
*Socho, Kya hum Azaad hai?*🤔
सोचो, क्या हम आज़ाद हे?
जहां देखो वहा,
ग़ुलामों की जैसे फ़ौज खड़ी हे,
किसी राजनेता के सम्मान में,
जिस तरह से ये भीड़ जुड़ी हे.
कहते सब हे,
नेताजी तुम संघर्ष करो,
हम तुम्हारे साथ हे.
सोचो, क्या हम आज़ाद हे???
हर तरफ़ मचा राजनीति का खेल,
किसी ने पकड़ी खुरची,
तो किसिको भेज दिया जेल.
बट गये धर्म और जाती,
हो रहा अत्याचार हे,
फ़िर भी खुश हे लोग सारे,
कर रहे नेताजी का जय जय कार हे.
जनता ज़नरदन, नेताजी महान हे.
सोचो, क्या हम आज़ाद हे???
जान गवा दी जिन वीरों ने,
रूह उनकी पूछे ये सवाल हे.
ये वंश और परिवार वाद से कब आज़ादी पायेंगे?
कब तक किसी के कहने पर हिंसा और आगज़नी फैलायेंगे?
कब तक हिंदू, मुस्लिम, स्वर्ण, दलित बन वोटों में बट ज़ायेगे?
कब हम मुक्ति पायेंगे?
कब हम आज़ाद कहलायेंगे?
१०० साल के ग़ुलामी पे हूवा,
ये आज़ाद हिंद का सवाल हे?
क्या हम आज़ाद हे??
🤔सोचो.................
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
Starting 2021 on musical notes.
Presenting my latest poem “Khushboo”
ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु
ये आसमान ये हवा ओ में.
तेरे साथ रहु, तेरे साथ चलु,
इन वादियाँ ये घटाओ में.
जब याद तुम्हें मेरी आयेगी.
एक नज़र ज़रा देख लेना आसमान में.
छूना मुझे जब चाहो तुम,
छू लेना इन हवा ओ से.
ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु
ये आसमान ये हवा ओ में.
मिलने को जो कभी दिल चाहे.
आ जाना मिलने घटाओ से.
कहीं दूर नहीं,
यही पास हु में.
तेरे दिल में,
और दुवा ओ में.
ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु
ये आसमान ये हवा ओ में.
तेरे सांसो की, हर धड़कन में,
तेरे पास हु में, तेरी बाहों में.
ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु
ये आसमान ये हवा ओ में.
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
*My latest creation*
*यादों के परिंदे.* (Yadon Ke Parinde)
यादों के परिंदे, कही रुकते नहीं.
बस उड़ते जाते हे.
अपनी सुनेहरी यादें, सभी के दिलो में छोड़ जाते हे.
जब भी आँखों से आँसू बहे उनकी यादों में,
लगे ऐसे जैसे, हमारे परिंदे ने एक उड़ान और लगायी हे.
ख़ुशियों की बारिश कही ना कही,
उसने गिरायी हे.
यादों के परिंदे.
दिलो के रिश्तों में दर्द पिरोये,
दूर कही निकल गये.
धुंधली हुयी अब यादें,
आँखों से आँसू भी अब ओझल हो गये.
यादों के परिंदे.
दिलो में रहेगे हमारे, हर दम बसे.
दूर कभी ना होगे, रहेंगे हर वक्त.
ख़ुशियों में हमारे होटों पे, आँखों के पलकों पे बसे.
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
Wise words....
*रहीमदास*
रहिमन घर से जब चलो, रखियो मास्क लगाए
ना जाने किस वेश में मिलने कोरोना आए
*कबीरदास*
कबीरा काढा पीजिए, काली मिरिच मिलाय।
रात दूध हल्दी पियो, सुबह पीजिए चाय।।
*तुलसीदास*
छोटा सेनिटाइजर तुलसी, राखिए अपनी जेब,।
न काहूँ सो मागिहो, न काहूँ को देब,।।
*सूरदास*
सूरदास घर मे रहो, ये है सबसे बेस्ट,।
जर, जुकाम, सर्दी लगे, तुरंत करालो टेस्ट ।।
*मलूकदास*
बिस्तर पर लेटे रहो सुबह शाम दिन रात,।
एक तो रोग भयंकरा, ऊपर से बरसात।।
रहिमन वैक्सीन ढूंढिए,
बिन वैक्सीन सब सून,
वैक्सीन बिना ही बीत गए,
जुलाई अगस्त और जून
कबीर वैक्सीन ढूंढ लिया
धीरज धरो तनिक तुम !
ट्रायल फायनल चल रहा ,
वैक्सीन कमिंग सून !!
🤣🤣🤣🤣👍👌
Hello Freinds,
Presenting you my latest poem.
Do let me know your comments.
***सोचो, क्या हम आज़ाद हे?***
जहां देखो वहा,
ग़ुलामों की जैसे फ़ौज खड़ी हे,
किसी राजनेता के सम्मान में,
जिस तरह से ये भीड़ जुड़ी हे.
कहते सब हे,
नेताजी तुम संघर्ष करो,
हम तुम्हारे साथ हे.
सोचो, क्या हम आज़ाद हे???
हर तरफ़ मचा राजनीति का खेल,
किसी ने पकड़ी खुरची,
तो किसिको भेज दिया जेल.
बट गये धर्म और जाती,
हो रहा अत्याचार हे,
फ़िर भी खुश हे लोग सारे,
कर रहे नेताजी का जय जय कार हे.
जनता ज़नरदन, नेताजी महान हे.
सोचो, क्या हम आज़ाद हे???
जान गवा दी जिन वीरों ने,
रूह उनकी पूछे ये सवाल हे.
ये वंश और परिवार वाद से कब आज़ादी पायेंगे?
कब तक किसी के कहने पर हिंसा और आगज़नी फैलायेंगे?
कब तक हिंदू, मुस्लिम, स्वर्ण, दलित बन वोटों में बट ज़ायेगे?
कब हम मुक्ति पायेंगे?
कब हम आज़ाद कहलायेंगे?
१०० साल के ग़ुलामी पे हूवा,
ये आज़ाद हिंद का सवाल हे?
क्या हम आज़ाद हे??
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
Hello Freinds,
Presenting you my 2 new poem on BETI (Daughters)
BETI HUYI HAI...(बेटी हुयी हे)
HA MEIN BETI HU...(हां में बेटी हु)
Dedicated to all the Womens...🙏
(If you like it please share)
बेटी हुयी हे..
बेटी हुयी हे..
सुन कर दिल ज़ोरों से घबराया,
बेटा नहीं बेटी हुयी हे,
सोच कर मन थोड़ा मुरझाया.
लक्ष्मी आयी हे हमारे घर,
सोच कर मन को थोड़ा बेहलाया.
कुदरत से क्या कोई ना इंसाफ़ी हुयी हे?
बेटी हुयी हे..
गोदी में जब जब उसे उठाया,
उसके भाग्य का सोच मन घबराया.
कब तक तुझे सम्भाल कर रखूँगा,
एक ना एक दिन पराये घर छोड़ आऊँगा.
सोच कर के ये,
दिल में मेरे हल चल सी हुयी हे,
बेटी हुयी हे..
पढ़ाई लिखाई में परचम उसने लेहराया,
गर्व से चौड़ी हुयी छाती, सर मेरा उठ आया.
कभी उसने कोई फ़रमाइस नहीं की,
जो मिला, जितना मिला, अपने आप को संतुष्ट बताया.
मेरा दिल, मेरे सम्मान, मेरे जीवन की आस हे,
बेटी हुयी हे...
वक्त का पहिया कुछ जल्द पलटाया,
आज जो परोसा खाना,
बिटिया ने अपने हाथों से पकाया.
कल जो गोदी में खेलती, इतनी बड़ी हो गयी,
दिन ये इतने जल्दी कैसे आया?
सोच कर कुछ बंद आँखो में आंसू से छाये हे,
बेटी हुयी हे..
नाम रोशन तुम करोगी हमारा,
जिस घर भी जाओगी,
अपने नये रिस्ते तुम ख़ूब निभाओगी.
जहां रहोगी खुशिया फैलाओगी,
हर घर को एक मंदिर सा बनाओगी.
दिल में रहोगी मेरे हर दम बसी, नाज़ों से पली हे,
बेटी हुयी हे..
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
——————————
हा में बेटी हु....
ख़ुशियों से तुम्हारा दामन भर ने आयी हु,
सारे जग की खुशिया तुम्हारे लिये लायी हु.
तुम्हें मेरी कद्र हो ना हो,
में तो अपना सब कुछ तुम पर अर्पण करने आयी हु,
हा में बेटी हु...
रिसते मुझे यहा कयी निभाने हे,
कुछ मिले मुझे, कुछ नये मुझे बनाने हे,
हर रिश्तो को मुझे निभाना हे, आगे ले जाना हे.
हर परिवार के दिलों में बसी में एक आस हु.
हा में बेटी हु...
डर कर जीना मेने सिखा हे,
हर डर से लड़ना भी मेने सिखा हे.
उँगली उठती है मुझ पर हर बार,
कदम कोई बढ़ाऊँ और हो जाये कोई गलती जो एक बार.
उम्मीद मुझ से सारे लगाते हे,
पर कोई मुझे समझ नहीं पाते हे.
ऐसी भी ना मे कोई पहेली हु.
हा में बेटी हु...
क़यी बार मेने देखा हे,
वोह जो जबरन मुझे मुझसे चुराना चाहते हे,
मेरी उदासीनता को मेरी कमजोरी,
और अपनी ताक़त समझ जाते हे,
शत विशत कर मुझे ये जो बड़ा आनंद पाते हे.
इस श्रिस्टी में उन्हें लाने वाली में ही वोह ममता की मूरत हु.
हा में बेटी हु.
बेटा बेटी में कर मतभेद,
कब तक दुनिया ऐसे चलती रहेगी?
कब तक ये दीवार यूही खड़ी रहेगी?
अब सोच बदल ने की बारी आयी हे,
राह हमने भी अपनी पायी हे,
जीवन के हर दौड़ में अब हमें भी रेस लगानी हे,
हर मंज़िल अब हमें पानी हे.
हिम्मत हे, ताक़त हे, फिर भी में कोमल हु,
हा में बेटी हु.
हर घर में बसे दिलों के अरमानो को पिरोती,
में माँ, बेहन, बीवी जैसे ही एक ज्योति हु.
हा में बेटी हु....
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
B+
Thought for the day.
THINK THINK THINK....
Due to Corona economic condition is badly effected, many businesses are suffering & on the verge of shutting down.
The question here is :
who runs economy???
My answer to this is simple, We the people of the country who runs economy.
How?
When we shop beyond our limits, beyond our requirements & beyond our capabilities. We add fuel to our economy.
Why is there issue now?
The answer to this question is within all of us, In last 6 Months, most of the people have not made any unnecessary expenses, we are limiting our requirements, people are conscious for spending.
Those who don’t have capability or funds we can understand, however those who has mussels have also restricted themself.
How do we improve economy?
In the interest of all, it’s important that those who can, should get out from there Comfart zones, shop there regular & extra things they did before, try to get there lifestyle back to normal, think positive & spread positivity.
Generally we Indians save Money for future & for bad times for ourself.
It’s time to use our saved money for our economy.
If you agree.....
Please support & forward the message.🙏👍
Together we can fight Corona & also get our business & happiness back on track.
🙏
Thought for the day....
वोह जो कभी साथ चलते थे,
आज तस्वीर में बैठें हे,
हमारे दिल में रेहते हे,
यही कही हे,
दिखते कहीं नहीं,
पर हर वक्त हमारे यादों में बस्ते हे.
🙏
Tumhari hasi se roshan hai har Mehfil.
Tum jo saath chalo to door nahin koi Manzil...
Presenting my latest poem.
My inspiration for today’s poem **BADAL**
बादल
आसमान में घटा सी छायी हे,
दिल मे कितने से अरमान भर लायी है.
सहमे सहमे से हे ये सारे,
उतारे अपनी घटाओ से नज़ारे प्यारे प्यारे.
किसी चित्रकार की जैसे करते हो ये नक़ल.
आसमान में छाये घने गहरे ये बादल.
धुंद सी उड़ा जाये.
पल में इतर बितर हो जाये.
चुरा ले आसमान के नज़ारे.
छुपा ले आँचल में अपने चाँद सूरज और तारे.
बिना कोई करे हल चल.
आसमान में छाये घने गहरे ये बादल.
ताक ताक कर नज़र थक जाये,
जब कहीं ये खो जाये.
आने में हो अगर इसकी देरी,
होश उड़ा दे ये जहां की सारी.
थोड़ा नटखट थोड़ा हे ये पागल,
आसमान में छाये घने गहरे ये बादल.
इन सबकी भी एक कहानी हे,
बूँद बन कर अपने आप को मिटा जाना,
धरती पे छा कर खूसियो को लेहराना हे.
करना हे प्रकृति के लिये अपने को ओझल,
आसमान में छाये घने गहरे ये बादल.
फिर से बनेंगे, छा जायेंगे.
फिर गरजे गे, बरस जायेंगे.
दिन हो या रात, आज हो या कल.
आसमान में हर वक्त रहेंगे.......
ये बादल....ये बादल....
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
Just me....
My latest creation...
DEDICATED TO ALL PARENTS OF GROWING OR GROWN UP KIDS...
Bachche Bade Ho gaye.
वोह जो कभी बाहों के झूलो में झूल जाते थे,
आज कंधो से कंधा मिलाकर खड़े हो गये.
बच्चे बड़े हो गये.
जिनको उँगली पकड़ कर चलना सिखाया था,
आज ज़िंदगी की दौड़ में आगे निकल गये.
बच्चे बड़े हो गये.
हाथों से कभी खिलाये थे निवाले जिसे,
आज वोह पिज़्ज़ा बर्गर की चाह में बेगाने से हो गये.
बच्चे बड़े हो गये.
हाथ पकड़ कर ABCD सिखायीं,
स्कूल से कभी उनके लिये फटकार भी खायीं.
आज वोह हमें कुछ नहीं आता, क़ेह कर खुश हो गये.
बच्चे बड़े हो गये.
पॉकेट मनी के लिए जो कभी जान खा जाते थे,
अब अपने पैरो पर वो खड़े हो गये.
बच्चे बड़े हो गये.
अब हम बड़े भी कुछ बच्चों से हो गये,
Generation gap में उनकी समझ से दूर हो गये.
जिनको कभी समझा देते थे हम,
अब उनकी समझदारी के आगे मजबूर हो गये.
बच्चे बड़े हो गये.
वक्त की यही नज़ाकत हे,
कभी हम आगे, और वो पीछे.
कभी देखे हम उपर तो वोह करले आँख नीचे.
आँखों से मिलाकर अब आँख उनके,
खूसियो से हम अपने आप में समा गये.
बच्चे बड़े हो गये.
अभी कुछ हम पुराने,
और वोह नये से हो गये.
बच्चे बड़े हो गये.
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
My Most liked Poem.
Dedicated to our Armed Forces.
Soldier on Duty.
लौट के जल्दी आऊँगा.
(Letter from Soldier to his family)
तुमसे दूर हु, पर तुम सब मेरे पास हो.
लिख रहा हु ख़त, के मुझसे मिलने की तुम्हें आस हो.
बिना मिले तुमसे रेह नहीं पाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
यहा वक्त कुछ बदलता लग रहा है,
घने काले बादल आसमान में छा रहे हे,
लगता हे देश सेवा का समय पास आ रहा हे,
गुड़िया तेरे लिये खिलोने भी लाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
कन्धे से कन्धे मिला कर खड़े हम सब हे यहा,
इंतेज़ार हे के कब मिलेगा अवसर सोर्या दिखलाने का वहा.
याद हे तुम्हारी बातें, अपना ख़्याल रखता जाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
दिलो की अपनी धड़कन को तेज होने ना देना,
आँखों में जो आंसू आये उसे रोक लेना,
कुछ करने गुजरने का वक्त ये आया हे,
बहोत किशमत से हमने ये मौक़ा पाया हे.
तुम्हारे लिये फ़क़्र का एक मौक़ा बन जाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
गोले बारूद की अब आवाज़ कुछ सुनाई देती हे,
अपनी मंज़िल अब हमें क़रीब दिखाई देती हे.
दम भरने को अब हम तय्यार हे,
अब ना जायेगा ख़ाली मेरा एक भी वार हे.
दुश्मन के छक्के छुड़ा लाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
होसला अब हमारा बुलन्द हे,
खुद में जवानी का जोश हे.
वतन की शान को झुक ने ना देंगे,
हिम्मत बाक़ी हम में अभी बहोत हे.
दुश्मन को मिट्टी में मिला आऊँगा.
में लौट के जल्दी आऊँगा.
बहोत दूर अब निकल आया हु,
दुश्मन को दूर खदेड़ पाया हु.
आन ना मिटने दूँगा अपने देश की,
चाहे इस मिट्टी में ख़ाक हो जाऊँगा.
में लौट के फिर भी आऊँगा.
अलविदा अब लिख रहा हु,
में दूर नहीं यही तुम्हारे पास हु.
तुम्हें फिर मिले नहीं रेह पाऊँगा,
आप के और से देश को एक बलिदान दे जाऊँगा,
में लौट के फिर भी आऊँगा.
अबके यहा नहीं तो क्या हूवा,
मुलाक़ात फिर भी होगी.
इस जनम में नहीं तो क्या हूवा,
उस जनम में मिलने की आस होगी.
यादों को तुम्हारी, भूल नहीं पाऊँगा,
अब नहीं तो अगले जनम ही सही,
में लौट के फिर भी आऊँगा.
में लौट के जल्दी आऊँगा.........
Pradeep Tailor
@ copyrights reserved.
My most liked poem on Social Media.
Soldier on Duty.
लौट के जल्दी आऊँगा.
(Letter from Soldier to his family)
तुमसे दूर हु, पर तुम सब मेरे पास हो.
लिख रहा हु ख़त, के मुझसे मिलने की तुम्हें आस हो.
बिना मिले तुमसे रेह नहीं पाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
यहा वक्त कुछ बदलता लग रहा है,
घने काले बादल आसमान में छा रहे हे,
लगता हे देश सेवा का समय पास आ रहा हे,
गुड़िया तेरे लिये खिलोने भी लाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
कन्धे से कन्धे मिला कर खड़े हम सब हे यहा,
इंतेज़ार हे के कब मिलेगा अवसर सोर्या दिखलाने का वहा.
याद हे तुम्हारी बातें, अपना ख़्याल रखता जाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
दिलो की अपनी धड़कन को तेज होने ना देना,
आँखों में जो आंसू आये उसे रोक लेना,
कुछ करने गुजरने का वक्त ये आया हे,
बहोत किशमत से हमने ये मौक़ा पाया हे.
तुम्हारे लिये फ़क़्र का एक मौक़ा बन जाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
गोले बारूद की अब आवाज़ कुछ सुनाई देती हे,
अपनी मंज़िल अब हमें क़रीब दिखाई देती हे.
दम भरने को अब हम तय्यार हे,
अब ना जायेगा ख़ाली मेरा एक भी वार हे.
दुश्मन के छक्के छुड़ा लाऊँगा,
में लौट के जल्दी आऊँगा.
होसला अब हमारा बुलन्द हे,
खुद में जवानी का जोश हे.
वतन की शान को झुक ने ना देंगे,
हिम्मत बाक़ी हम में अभी बहोत हे.
दुश्मन को मिट्टी में मिला आऊँगा.
में लौट के जल्दी आऊँगा.
बहोत दूर अब निकल आया हु,
दुश्मन को दूर खदेड़ पाया हु.
आन ना मिटने दूँगा अपने देश की,
चाहे इस मिट्टी में ख़ाक हो जाऊँगा.
में लौट के फिर भी आऊँगा.
अलविदा अब लिख रहा हु,
में दूर नहीं यही तुम्हारे पास हु.
तुम्हें फिर मिले नहीं रेह पाऊँगा,
आप के और से देश को एक बलिदान दे जाऊँगा,
में लौट के फिर भी आऊँगा.
अबके यहा नहीं तो क्या हूवा,
मुलाक़ात फिर भी होगी.
इस जनम में नहीं तो क्या हूवा,
उस जनम में मिलने की आस होगी.
यादों को तुम्हारी, भूल नहीं पाऊँगा,
अब नहीं तो अगले जनम ही सही,
में लौट के फिर भी आऊँगा.
में लौट के जल्दी आऊँगा.........
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Thane
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Starting 2021 on musical notes. Presenting my latest poem “Khushboo” ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु ये आसमान ये हवा ओ में. तेरे साथ रहु, तेरे साथ चलु, इन वादियाँ ये घटाओ में. जब याद तुम्हें मेरी आयेगी. एक नज़र ज़रा देख लेना आसमान में. छूना मुझे जब चाहो तुम, छू लेना इन हवा ओ से. ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु ये आसमान ये हवा ओ में. मिलने को जो कभी दिल चाहे. आ जाना मिलने घटाओ से. कहीं दूर नहीं, यही पास हु में. तेरे दिल में, और दुवा ओ में. ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु ये आसमान ये हवा ओ में. तेरे सांसो की, हर धड़कन में, तेरे पास हु में, तेरी बाहों में. ख़ुशबू की तरह मेहेका में करु ये आसमान ये हवा ओ में. Pradeep Tailor @ copyrights reserved.