17/07/2023
#कर्कसंक्रांति/हरियाली के प्रतीक उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला/दशाई पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
#देवभूमि उत्तराखंड शिवभूमि है यह सभी जानते हैं कि 12 वर्ष के अंतराल में यहां #नंदाराजजात यात्रा भी मनाई जाती है, नंदा जिनको हम पार्वती, शिवा, शिवशक्ति, शैलपुत्री, उमा , हिमसुता आदि नाम से जानते हैं नगाधिराज हिमालय की पुत्री भगवती पार्वती जो कि भगवान शिव की पत्नी हैं, जो उत्तराखंड वासियों की पुत्री हैं जिन्हें उनके मायके के लोग उत्तराखंडी #पहाड़ीजंन 12 वर्ष के अंतराल में उसके ससुराल पहुँचाकर आते हैं, इससे यह स्पष्ट होता है यह #शिवपरिवार की भूमि है, दूसरा प्रमाण #दक्षप्रजापति का क्षेत्र #कनखल जो आज भी हरिद्वार में विद्यमान है, #श्रीदक्षेश्वर महादेव #मातासती के सतीत्व तथा दक्ष प्रजापति के अहंकार के दमन का प्रतीक है, यह धार्मिक स्थल बताता है कि यह #शिवभूमि है, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में भगवान #श्रीकेदारनाथधाम #श्रीजागेश्वर- #श्रीबागेश्वरबागनाथ धाम या विश्व के पंच केदारों में प्रथम केदार #श्रीआदिकेदार #ॐपर्वत वहां विराजित पार्वतीकुंड #श्रीतुंगनाथ, #श्रीरुद्रनाथ, त्रिजुगीनारायण जहां तीन युगों से यज्ञकुंड में अग्नि प्रज्वलित हो रही है, इसी स्थान में शिवपार्वती का विवाह हुआ था, गौरीकुंड इन सभी तीर्थों के आधार पर तथा पुराणों में इसे शिवभूमि कहा गया है।
उत्तराखंड में सभी जानते हैं दो खण्ड हैं जिसमें गढ़वाल। को केदारखण्ड तथा कूर्मांचल कुमाऊँ को मानसखण्ड के नाम से जाना जाता है, मानसखण्ड कुमाऊँ में #कर्कसंक्रांति पर्व को #हरियाली के प्रतीक #हरेला #दशाई नामक त्योहार के नाम से मनाया जाता है, जिसमें प्रतिपदा के दिन इससे 10 दिन पूर्व एक बर्तन- थाली - रिंगाल की टोकरी मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर भिन्न-भिन्न प्रकार के अन्न को बोया जाता है,जिसे दशवे दिन भगवान शिव के विवाह के रूप में काटा जाता है, इसी दिन मिथुन राशि से भगवान सूर्य कर्क राशि में #संक्रमण करते हैं इसी दिन #कर्कसंक्रान्ति से पहाड़ियों का #श्रावणमास प्रारम्भ होता है इससे एक दिन पूर्व खेत से मिट्टी लाकर बिना उसे बिना पकाए कच्ची मिट्टी से #अव्यवसायी लोग श्रद्धापूर्वक #शिवपरिवार की मूर्तियों का निर्माण करते हैं, जिन्हें स्थानीय लोकभाषा में #डिकारे कहा जाता है,जिसमें शिव जी, पार्वती माता, श्रीगणेश जी, मुसक, नंदी , त्रिशूल ,डमरू बनाकर कर्क संक्रांति से एक दिन पूर्व रात्रि में शिवपरिवार की पूजा करते हैं, पकवान बनाकर प्रसादी का भोग शिवपरिवार को लगाकर उनका स्वागत भजन इत्यादि किया जाता है, दूसरे दिन प्रातःकाल उठकर स्नान ध्यान करके उस हरियाली के प्रतीक मिश्रित अन्न #हरेला का पूजन कर उसे पण्डित जी बुलाकर या स्वयं दराती से काटकर उसे शिवपरिवार को अर्पण कर पूजार्चना की जाती है। उस शिवपरिवार के वरदान स्वरूप आशीर्वाद रूपी #हरेले से बहिनें अपने भाइयों के सिर लेकर पैरों तक पूजती हैं, हर घर में उनके कुलपुरोहित आकर हरेला रूपी अन्न की कलियाँ पुष्प शिवपरिवार का आशीर्वाद देकर जाते हैं, यह त्योहार हम पर्तवतीयों के लिए रक्षाबंधन की तरह है, भाई अपनी बहिन को दक्षिणा या उपहार देता है, कुल की बहिने माताएं भाभी इत्यादि भी सभी के सिर को पूजकर अपने भाई पिता जी के दीर्घायु अभीष्ट की कामना करते हैं, लोक भाषा में आशीर्वाद स्वरूप अपने मुखारबिन्दु से दीर्घायु हेतु आशीर्वचन बोलती है-
🌺जी रया ,जागि रया ,🌺
🌺यो दिन बार, भेटने रया,🌺
🌺दुबक जस जड़ हैजो,🌺
🌺पात जस पौल हैजो,🌺
🌺स्यालक जस बुद्धि हैजो,🌺
🌺 बागो जस तराण है जो🌺
🌺हिमालय में ह्यू छन तक,🌺
🌺गंगा में पाणी छन तक,🌺
🌺हरेला त्यार मानते रया,🌺
🌺जी रया जागी रया।।🌺
विवाहित कन्याएं अपने ससुराल जाकर भी अपने इष्टमित्रों भाइयों की दीर्घायु के लिए हरेला लेकर जाती हैं, हजारों वर्षों से चली आ रही परम्परा में आज के दिन हर पहाड़ी अपने घर में एक वृक्ष लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश हजारों वर्षों पूर्व से देते आ रहा है, हर कृषक का शिवतत्त्व के आगे समर्पण #हरियाली पर्यावरण आपसी सौहार्द को जागृत करता यह पर्व, शिवपरिवार की पूजनपरम्परा सहित भाई बहिन के अटूट प्रेम को अखंडता देने वाला , धर्मसहित प्रकृति की रक्षा-सुरक्षा इस धरती माँ की गोद को हरा भरा पूर्णता- सिद्धता प्रदान करने वाला त्योहार उत्तराखंड का एकमात्र #लोकपर्व हरेला ही है।
सभी भाई बहिनों मित्रों को पुनः कर्क संक्रांति हरेला पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं
हर हर महादेव देवभूमि उत्तराखंड👏😊😊💐💐।