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मित्रों नमस्कारआज हम आप लोगों के समक्ष एक ऐसी कहानी लेकर प्रस्तुत हुए हैं जो आप लोगों के दिल को छू जाएगीअनमोल हीरेरामदीन...
11/03/2022

मित्रों नमस्कार
आज हम आप लोगों के समक्ष एक ऐसी कहानी लेकर प्रस्तुत हुए हैं जो आप लोगों के दिल को छू जाएगी
अनमोल हीरे

रामदीन ने इतना शानदार शोरूम पहले कभी नहीं देखा था जो वो इस वक्त देख रहा था। चुंधियाई हुई आंखे फाड़ कर वो चम चम चमकते कांच के लगभग चालीस फुट लंबे दरवाजे वाले शोरूम को देखता ही जा रहा था। गांव से इस बड़े शहर वो अपनी बिटिया के लिए एक पेटी खरीदने आया हुआ था। बिटिया की शादी के लिए उसने जो कपड़े, साड़ी और बर्तन बरसों से सहेज के रखे थे, उन्हें वो एक अच्छी सी पेटी में भर कर अपनी बिटिया को विदाई के वक्त देना चाहता था। परसों ही तो उसकी बिटिया विदा होने वाली थी। पिछले तीन दिन से मजदूरी कर उसने जो पैसे कमाए थे उनसे एक बढ़िया सी पेटी खरीदने वो शहर आया हुआ था। शोरूम के सामने की सड़क पर उसने कितनी ही महंगी कारों को फर्राटे से दौड़ते देखा। बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स, इमारत, ऑफ़िस और शोरूम देख कर वो सोचने लगा कि दुनिया कितने अमीर लोगों से भरी पड़ी हैं और एक वो है जो दिहाड़ी मजदूरी करता है और अभी हज़ार बारह सौ की पेटी खरीदने आया हुआ है।

कितनी ही देर वो शोरूम के सामने ठिठका फ़टी फटी आंखों से शोरूम को देखता रहा। उसके कदम अंदर की तरफ बढ़ ही नहीं रहे थे। वो सोच रहा था कि पता नहीं इतने बड़े शोरूम में पेटी कितने की मिलेगी ? उसके पास इतने पैसे हैं भी या नहीं? इस शोरूम में आने से पहले वो चार शोरूम और देख चुका था पर उनमें उसे पेटी पसंद नहीं आयी थी। उसकी बिटिया ने कहा था, बाबा, पेटी अच्छी वाली लाना। वो अपनी बिटिया के लिए अच्छी वाली ही पेटी लेना चाहता था। शोरूम के सेल्समैन ने उसे बहुत देर तक बाहर खड़ा देखा तो अंदर बुला लिया और उसे शोरूम के उस भाग में ले गया जहां पेटियां ही पेटियां भरी पड़ी थीं। रामदीन कितनी ही देर पेटियां उलटता पलटता रहा। फ़िर उसने एक पेटी पसंद कर ली। सेल्समैन ने जब रामदीन की पसंद की गई पेटी देखी तो वो कुछ देर अपलक रामदीन को देखता रहा। फिर वो पेटी और रामदीन को लेकर शोरूम के मालिक के पास आ गया।

मालिक ने मुस्कुरा कर पेटी पैक कर दी और रामदीन से बोला, ये पेटी मेरी सबसे पसंदीदा पेटी है, इसलिए थोड़ी महंगी है। इसके दाम 1500 रुपये हैं। रामदीन मायूस हो गया। उसके पास 1500 रुपये तो थे मगर उसे वापिस गांव भी जाना था, और लगभग 300 रुपये तो उसे वापसी के किराए के लिए ही चाहिए थे। मालिक ने जब उसकी बात सुनी तो मुस्कुराने लगा। फ़िर पता नहीं क्या सोच कर उसने वो पेटी उसे 1200 रुपये में दे दी। रामदीन खुश हो गया। उसने शोरूम के मालिक को हज़ार हज़ार धन्यवाद दिया और अपनी बिटिया के लिए सबसे अच्छी पेटी लेकर गांव वापिस लौट आया।

अगले दिन रामदीन की पत्नी जब पेटी में बिटिया का सामान रख रही थी तो उसे पेटी के अंदर बने एक छोटे से खाने में एक शनील की थैली अटकी नज़र आई। उसने निकाल कर उस थैली को खोला तो उसकी आंखें फटी कि फटी रह गयी। उस थैली में जगमगाते झिलमिलाते खूब सारे हीरे थे। रामदीन की पत्नी के हाथ कांपने लगे। उसने कंप कंपाती आवाज़ में अपने पति को आवाज़ दी। रामदीन ने भी ढेर सारे हीरे पत्नी के हाथ मे देखे तो स्तब्ध रह गया। उसकी बिटिया भी जहां खड़ी थी वहीं खड़ी रह गयी। तीन दिन की मजदूरी कर 1500 रुपये कमाने वाले रामदीन की 1200 रुपये की पेटी में करोड़ों रुपये के हीरे छुपे हुए थे।

कुछ ही देर में पूरा मोहल्ला रामदीन के घर इकट्ठा हो गया। रामदीन की किस्मत पर सब रश्क कर रहे थे। बोल रहे थे अब तो रामदीन के दिन फिर गए। बिटिया के भाग्य से लक्ष्मी टूट पड़ी घर पर। सात पुश्तों का इंतजाम हो गया। अब तो बंगला गाड़ी बैंक बैलेंस सब होगा रामदीन के पास। कोई उन्हें बताने लगा कि ऐसे एक हीरे की कीमत ही लाखों रुपये होती है। मतलब अब तो तुम्हारे पास दौलत का भंडार हो गया। इस थैली ने किस्मत पलट दी तुम्हारी। रामदीन, उसकी पत्नी और बिटिया अभी भी स्तब्ध से हीरों को देख रहे थे। फिर रामदीन की बिटिया ने अपनी माँ के हाथ से हीरे लिए और उन्हें वापिस थैली में रख दिये। थैली रामदीन को देते हुए उसने कहा, हमने ये पेटी खरीदी है बाबा, ये थैली नहीं। ये हमारी नहीं है। ये तो उस शोरूम वाले की है। रामदीन ने अपनी बिटिया के सर पर हाथ फेरा और बोला, हां बिटिया, ये पेटी ही हमारी है, ये थैली नहीं। मोहल्ले वाले कहने लगे कि रामदीन पागल हो गया। हाथ आयी दौलत को ठुकरा रहा है। अरे पेटी के साथ आये हीरे तो भगवान के द्वारा भेजा गया सौभाग्य है। सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदलना बेवकूफी है। ये हीरे किस्मत ने तुम्हारे लिए ही छुपा रखे थे रामदीन। पर रामदीन का मन तो बस यही कह रहा था कि मैंने पेटी खरीदी है, हीरे नहीं, इसलिए ये हीरे मेरे नहीं हैं। शोरूम वाले ने पेटी बेची है, हीरे नहीं, इसलिए ये हीरे उसी के हैं।

बिटिया की विदाई से एक दिन पहले रामदीन फिर से शहर गया और उस शो रूम के मालिक को हीरे लौटा दिए। बोला, पेटी के साथ ये आपकी अमानत भी मेरे घर चली गयी थी साहब। ये मैं लौटाने आया हूँ। शोरूम का मालिक बहुत देर तक हाथ में पकड़े हीरे देखता रहा। फिर मुस्कुराया और सेल्समैन से बोला देखना रे इसमें उतने ही हीरे हैं जितने थे या उससे कम हैं ? सेल्समैन ने मालिक के हाथ से हीरे की थैली ली और हीरे गिनने लगा। रामदीन हाथ जोड़े अपने धाड़ धाड़ बजते दिल को काबू करता सामने खड़ा रहा। उसे डर लग रहा था कि कहीं उससे या पत्नी से या बिटिया से एक आद हीरा इधर उधर न गिर गया हो। सेल्समैन ने हीरे गिने, उन्हें वापिस थैली में बंद किये और अपलक रामदीन को देखने लगा। फ़िर मालिक से बोला, इसमें दो हीरे ज़्यादा हैं, सर। हमने रखे थे तब 30 थे, अब 32 हैं। रामदीन चोंका। ये कैसे हो सकता है ? शोरूम के मालिक ने पूछा, कीमत कितनी ? सेल्समैन बोला, हमने हीरे रखे थे तब तो 3 करोड़ थी पर अब कितनी है अनुमान ही नहीं। क्योंकि वो दो हीरे जो इसने थैली में डाले वो बहुत ही ज़्यादा कीमती हैं। रामदीन को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो हकबकाया सा कभी शोरूम के मालिक को तो कभी सेल्समैन को देख रहा था। वो मालिक से बोला, लेकिन साहब मैने तो इस थैली में कुछ भी नहीं डाला। मैं तो इसको ऐसे का ऐसा वापिस लाया हूँ जैसी ये पेटी में मिली थी।

शोरूम का मालिक रामदीन के पास आया। अपने दोनों हाथों से उसके कंधे थामता बोला, तुमने दो हीरे इस थैली में डाले हैं रामदीन। जब तुम अपने मोहल्ले के लोगों से कह रहे थे कि तुमने सिर्फ पेटी खरीदी है, ये थैली नहीं, तब तुमने खुद्दारी का एक हीरा इसमें डाला था। अभी अभी तुमने ये थैली मेरी बता कर मुझे ज्यों की त्यों वापिस सौंपी तो तुमने ईमानदारी का हीरा भी इसमें डाला था। ये हीरे बहुत अनमोल हैं रामदीन। ये अब मिलते कहाँ है ? जिनके पास ये हीरे होते हैं वो अद्भुद लोग होते हैं। उन्हें बड़ी मुश्किल से ढूंढना पड़ता है। मुझे ही देख लो, मैने अपने 3 करोड़ के हीरे दाव पे लगा कर तुम्हे ढूंढा है। मुझे मेरी कंपनी के लिए मैनेजर की ज़रूरत है। मेरे मैनेजर बनोगे रामदीन ? रामदीन कुछ बोल नहीं पाया। उसके होंठ फड़फड़ाने लगे। उसकी आंखे डबडबाने लगीं। आंसू के कारण धुंधली हुई आंखों में उसे अपने पिता की सूरत दिखने लगी। उनके पास तो ऐसे अनगिनत हीरे थे। ईमानदारी और खुद्दारी का सबक उन्होंने ही तो सिखाया था रामदीन को। वो कभी कभी अपने पिता से कह ज़रूर देता था कि इस ईमानदारी और खुद्दारी में रखा क्या है ? इन्हें बाज़ार में बेच कर दो रोटी भी नहीं खरीदी जा सकती। पर आज उसे समझ आ गया कि ईमानदारी और खुद्दारी तो प्राइस लैस होती है, इसीलिए तो बाज़ार में नहीं बिकती। रामदीन की डबडबायी आंखों से आंसू अब झार झार बहने लगे थे। उसे लगने लगा कि उसके पिता और ऐसे और लोग जिनके पास आज भी ऐसे अनमोल हीरे हैं, वो होने को भले ही दिहाड़ी मजदूर हों मगर वो दुनिया के तमाम अमीरों से कहीं ज़्यादा अमीर हैं।

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