21/05/2021
म्यूकरमायकोसिस: कोरोना के मरीजों में जानलेवा बन रहा 'ब्लैक फंगस’ संक्रमण
मुंबई में रहने वाले आंखों के सर्जन, डॉक्टर अक्षय नायर शनिवार सुबह 25 साल की एक महिला का ऑपरेशन करने का इंतज़ार कर रहे थे.
जिन महिला का ऑपरेशन था उन्हें वो तीन हफ़्ते पहले कोविड-19 से ठीक हो चुकी हैं और उन्हें डायबिटीज़ है.
इस सर्जरी में डॉक्टर अक्षय नायर के साथ कान, नाक और गले (ईएनटी) के विशेषज्ञ भी शामिल थे.
ईएनटी डॉक्टर ने महिला की नाक में एक ट्यूब डाली और म्यूकरमायकोसिस (ब्लैक फंगस या काली फफूंद) से संक्रमित टिशूज़ को हटाने लगे. ये ख़तरनाक संक्रमण नाक, आंख और कभी-कभी दिमाग़ में भी फैल जाता है.
ईएनटी डॉक्टर का काम पूरा होने के बाद डॉक्टर नायर को मरीज़ की आंख निकालने के लिए तीन घंटे की सर्जरी करनी पड़ी.
डॉक्टर ने मुझे बताया, "महिला की जान बचाने के लिए मैं उनकी आंख निकाल रहा हूं. संक्रमण को फैलने से रोकने का यही तरीका है."
भारत में जहां कोरोना वायरस की दूसरी लहर घातक साबित हो रही है वहीं, कोविड-19 से ठीक हो चुके लोगों में एक और तरह का संक्रमण सामने आया है.
डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे कई मरीज़ सामने आ रहे हैं जिन्हें 'काले फंगस' का संक्रमण हुआ है. इस संक्रमण को म्यूकरमायकोसिस कहते हैं और ये कोरोना वायरस से ठीक हो रहे या ठीक हो चुके मरीज़ों को अपनी चपेट में ले रहा है.
म्यूकरमायकोसिस क्या है?
म्यूकरमायकोसिस एक बेहद दुर्लभ संक्रमण है. ये म्यूकर फफूंद के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है.
डॉक्टर नायर कहते हैं, "ये फंगस हर जगह होती है. मिट्टी में और हवा में. यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी ये फंगस पाई जाती है."
ये फंगस साइनस, दिमाग़ और फेफड़ों को प्रभावित करती है और डायबिटीज़ के मरीज़ों या बेहद कमज़ोर इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों जैसे कैंसर या एचआईवी/एड्स के मरीज़ों में ये जानलेवा भी हो सकती है.
म्यूकरमायकोसिस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है. डॉक्टरों का कहना है कि कोविड-19 के गंभीर मरीज़ों को बचाने के लिए स्टेरॉइड्स के इस्तेमाल से ये संक्रमण शुरू हो रहा है.
स्टेरॉइड्स के इस्तेमाल से कोविड-19 में फेफड़ों में सूजन को कम किया जाता है और जब शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (इम्यून सिस्टम) कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अतिसक्रिय हो जाती है तो उस दौरान शरीर को कोई नुक़सान होने से रोकने में मदद करते हैं.
लेकिन, ये इम्यूनिटी कम करते हैं और डायबिटीज़ या बिना डायबिटीज़ वाले मरीज़ों में शुगर का स्तर बढ़ा देते हैं. माना जा रहा है कि ऐसे में इम्यूनिटी कमज़ोर पड़ने के कारण म्यूकरमायकोसिस संक्रमण हो रहा है.
डॉक्टर नायर कहते हैं, "डायबिटीज़ शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को कमज़ोर करता है, कोरोना वायरस इसे तेज़ काम करने के लिए बाध्य कर देता है और तब कोविड-19 के इलाज में मदद करने वाले स्टेरॉइड्स आग में घी का काम करते हैं."
बढ़ गई मरीज़ों की संख्या
मुंबई के तीन अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर नायर बताते हैं कि वो अप्रैल में म्यूकरमायकोसिस के 40 मरीज़ों को देख चुके हैं. इनमें से कई लोगों को डायबिटीज़ थी और वो घर पर ही रह कर कोविड-19 से ठीक हुए थे. इनमें से 11 मरीज़ों की जान बचाने के लिए उन्हें उनकी एक आंख निकालनी पड़ी.
दिसंबर और फरवरी के बीच उनके छह सहकर्मियों ने पांच शहरों मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद, दिल्ली और पुणे में ऐसे 58 मामले देखे हैं. अधिकतर मरीज़ों में कोविड-19 ठीक होने के 12 से 15 दिनों बाद म्यूकरमायकोसिस संक्रमण शुरू हुआ.
मुंबई के सायन अस्पताल में ईएनटी विभाग की प्रमुख डॉक्टर रेणुका बरादू बताती हैं कि अस्पताल में पिछले दो महीनों में म्यूकरमायकोसिस के 24 मामले आए हैं जबकि हर साल ऐसे अमूमन छह मामले आते थे.
इनमें से 11 मरीज़ों को अपनी एक आंख खोनी पड़ी और छह मरीज़ों की जान चली गई. इनमें से अधिकतर मध्यम आयु वर्ग के थे और डायबिटीज़ के मरीज़ थे. उन्हें कोविड-19 ठीक होने के दो हफ़्तों बाद म्यूकरमायकोसिस हुआ था.
डॉक्टर रेणुका कहती हैं, "हम हर हफ़्ते म्यूकरमायकोसिस के दो या तीन मामले देख रहे हैं. ये महामारी के बीच एक बुरे सपने जैसा है."
वहीं दक्षिण भारतीय शहर बैंगलुरू में आई सर्जन डॉक्टर रघुराज हेगड़े भी ऐसी ही कहानी बताते हैं. उनके पास भी पिछले दो हफ़्तों में म्यूकरमायकोसिस के 19 मामले आ चुके हैं. इनमें से अधिकतर मरीज़ नौजवान हैं.
डॉक्टर बताते हैं, "कुछ मरीज़ तो इतने बीमार थे कि हम उनका ऑपरेशन भी नहीं कर सकते थे."
डॉक्टरों का कहना है कि वो कोरोना की पहली लहर के मुक़ाबले दूसरी लहर में इस फंगल इंफेक्शन की गंभीरता और मामले देखकर हैरान हैं.
डॉक्टर नायर बताते हैं कि उन्होंने पिछले दो सालों में मुंबई में म्यूकरमायकोसिस के 10 से ज़्यादा मामले नहीं देखे थे लेकिन ये साल कुछ अलग है.
वहीं, डॉक्टर हेगड़े के पास पिछले एक दशक में हर साल म्यूकरमायकोसिस के एक या दो मरीज़ों से ज़्यादा नहीं आए हैं
म्यूकरमायकोसिस के लक्षण
म्यूकरमायकोसिस में ये लक्षण पाए जाते हैं - नाक बंद हो जाना, नाक से ख़ून या काला तरल पदार्थ निकलना, आंखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना और आख़िर में अंधापन होना. मरीज़ के नाक के आसपास काले धब्बे भी हो सकते हैं.
डॉक्टर्स बताते हैं कि अधिकतर मरीज़ उनके पास देर से आते हैं, तब तक ये संक्रमण घातक हो चुका होता है और उनकी आंखों की रोशनी जा चुकी होती है. ऐसे में डॉक्टर्स को संक्रमण को दिमाग़ तक पहुंचने से रोकने के लिए उनकी आंख निकालनी पड़ती है.
कुछ मामलों में मरीज़ों की दोनों आंखों की रोशनी चली जाती है. कुछ दुर्लभ मामलों में डॉक्टरों को मरीज़ का जबड़ा भी निकालना पड़ता है ताकि संक्रमण को और फैलने से रोका जा सके.
इसके इलाज़ के लिए एंटी-फंगल इंजेक्शन की ज़रूरत होती है जिसकी एक खुराक़ की कीमत 3500 रुपये है. ये इंजेक्शन आठ हफ्तों तक हर रोज़ देना पड़ता है. ये इंजेक्शन ही इस बीमारी की एकमात्र दवा है.
मुंबई आधारित डायबेटोलोजिस्ट डॉक्टर राहुल बक्शी बताते हैं कि म्यूकरमायकोसिस संक्रमण से बचने के लिए ज़रूरी है कि कोविड-19 का इलाज करा रहे या ठीक हो चुके लोगों को स्टेरॉइड्स की सही खुराक सही अवधि के लिए दी जाए.
वह कहते हैं कि उन्होंने पिछले साल कोरोना वायरस के 800 डायबिटिक मरीज़ों का इलाज किया है और उनमें से किसी को म्यूकरमायकोसिस नहीं हुआ. उनका कहना है कि डॉक्टर्स को मरीज़ के डिस्चार्ज होने के बाद उनके शुगर लेवल का ध्यान रखना चाहिए.
नौजवानों में भी संक्रमण
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी का कहना है कि इस संक्रमण का कोई "बड़ा प्रकोप" नहीं है. हालांकि ये कहना मुश्किल है कि पूरे देश में म्यूकरमायकोसिस के इतने अधिक मामले क्यों आ रहे हैं.
डॉक्टर हेगड़े कहते हैं, "कोरोना वायरस का स्ट्रेन बहुत संक्रामक है जो ब्लड शुगर को बढ़ाकार बहुत ज़्यादा कर देता है. हैरानी वाली बात ये भी है कि नौजवानों में भी म्यूकरमायकोसिस संक्रमण काफी पाया जा रहा है."
डॉक्टर हेगड़े के पास म्यूकरमायकोसिस का इलाज करवाने के लिए आने वाले वाले सबसे युवा मरीज़ 27 साल के थे. उन्हें डायबिटीज़ नहीं थी. डॉक्टर हेगड़े कहते हैं, "उनके कोरोना संक्रमण के दूसरे हफ़्ते में हमें उनकी एक आंख निकालनी पड़ी. ये बहुत भयानक है."
आईसीएमआर ने जारी की एडवाइज़री
आईसीएमआर ने म्यूकरमायकोसिस की टेस्टिंग और इलाज के लिए एक एडवाइज़री जारी की है और कहा है कि यदि इसे नज़रअंदाज़ किया तो ये जानलेवा भी हो सकता है.
एडवाइज़री में कहा गया है कि ये एक तरह की फंगस या फफूंद है जो उन लोगों पर हमला करता है जो किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण दवाएं ले रहे हैं और इस कारण बीमारी से लड़ने के लिए उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो गई है.
म्यूकरमायकोसिस के लक्षण- व्यक्ति को आंखों और नाक में दर्द होने, उसके आसपास की जगह लाल होने, बुख़ार, सिरदर्द, खांसी और सांस लेने में दिक्कत आ सकती है. संक्रमित व्यक्ति को ख़ून की उल्टियां भी हो सकती हैं.
बचने के उपाय - आईसीएमआर की एडवायज़री के अनुसार इससे बचने के लिए धूल भरी जगह पर जाने से पहले मास्क ज़रूर लगाएं. जूते, शरीर को पूरी तरह ढकने वाले कपड़े पहनें, मिट्टी या खाद का काम करने से पहले हाथों में ग्लव्स पहनें और घिस कर नहाने जैसे पर्सनल हाइजीन का पालन करें.
म्यूकरमायकोसिस से कौन हो सकता है संक्रमित - आईसीएमआर के अनुसार जिन्हें अनियंत्रित डायबीटीज़ हो (शरीर ज़रूरी मात्रा में इन्सुलिन न बना पाता हो), स्टेरॉइड लेने के कारण जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई हो, जो अधिक वक़्त तक आईसीयू में रहे हों, ट्रांसप्लांट या फिर किसी और स्वास्थ्य समस्या के कारण जो कोमॉर्बिड हों.
कैसे जानें कि म्यूकरमायकोसिस है - इस फंगस से संक्रमित होने पर व्यक्ति को साइनोसाइटिस की समस्या होगी, जैसे कि नाक बंद होना, नाक से काले रंग का पानी या फिर ख़ून निकलना, जबड़ों में दर्द होगा.
साथ ही आधा चेहरा सुन्न पड़ जाना, आधे चेहरे पर सूजन आ जाना, दांतों में दर्द होना और दांत गिरना जैसी मुश्किलें हो सकती हैं. इसके अलावा बुख़ार, दर्द, त्वचा में दाने आने, थ्रॉम्बोसिस के साथ-साथ आंखों को धुंधला दिखना या दो-दो दिखना भी हो सकता है. छाती में दर्द और सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है.
संक्रमित हों तो क्या करें - आईसीएमआर के अनुसार अगर कोई म्यूकरमायकोसिस संक्रमित हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने की कोशिश करनी चाहिए और अगर व्यक्ति कोविड-19 से ठीक हो गया है तब भी लगातार ब्लड शुगर की जांच करते रहें.
ऑक्सीजन ले रहे हों तो ह्यूमीडिफ़ायर के लिए साफ पानी (स्टेराइल वॉटर) का इस्तेंमाल करें. एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल दवा और स्टरॉयड का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के न करें.