वेदवाणी

वेदवाणी वेदवाणी मासिक पत्रिका है, जो अन्ताराष?

26/12/2023
07/03/2023

पाणिनि महाविद्यालय रेवली और पाणिनि महाविद्यालय रेवली में मनाया गया वार्षिकोत्सव ५ मार्च २०२३ रविवार को । मैं भी इसमें सम्मिलित हुआ योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

वरिष्ठ विद्वान् आचार्य विजयपाल जी विद्यावारिधि द्वारा कनिष्ठ गुरु-बन्धु विद्वद्वर डॉ. सुद्युम्न आचार्य का अभिनन्दन व शुभ...
09/01/2023

वरिष्ठ विद्वान् आचार्य विजयपाल जी विद्यावारिधि द्वारा कनिष्ठ गुरु-बन्धु विद्वद्वर डॉ. सुद्युम्न आचार्य का अभिनन्दन व शुभाशंसन

अमृत जन्मोत्सव = ७५ वाँ जन्मदिन
प्राच्य विद्या के प्रख्यात विद्वान्, राष्ट्रपति सम्मानित डॉ. सुद्युम्न आचार्य जी

९ जनवरी २०२० के दिन डॉ. सुद्युम्न जी ७४ वर्ष पूर्ण करके ७५वाँ वसन्त देखेंगे

डॉ. सुद्युम्न आचार्य बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली, विनम्र और सतत अध्यवसायी व्यक्ति हैं, बहु-आयामी प्रतिभा के धनी हैं, दृढ़-संकल्पी हैं और वैदिक-संस्कृत – लौकिक संस्कृत laukik sanskrit वाङ्ग्मय – वेद-वेदाङ्ग-उपाङ्ग Ved शास्त्रों के विशेषज्ञ एवं मर्मज्ञ अनूचान हैं | आधुनिक भाषा विज्ञान आपके प्रियतम विषयों में से एक है | अपने सतत स्वाध्यायः , अनुसन्धान – स्वभाव और ऊह के बल पर आपने गणित शास्त्र के विकास की भारतीय परम्परा और “दर्शन और विज्ञान” जैसे विषयों पर प्रौढ़ ग्रन्थों का प्रणयन किया है | उनके द्वारा प्रणीत महाभाष्य की व्याख्या से उनके ज्ञान-गौरव और चिन्तन अनुशीलन का बोध सहज ही हो जाता है | मेरा शुभाशंसन सदा उनके प्रति रहा है, रहेगा ।

(पूज्य विजयपाल जी विद्यावारिधि द्वारा महाभाष्य चतुर्थ भाग के प्राक्कथन में लिखित शुभाशंसन)

सादर प्रस्तोता
विदुषामनुचर
विश्वप्रिय वेदानुरागी

योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

ऋषियों ने सीधा सरल वेदभाष्य क्यों नहीं किया?================================पाणिनि महाविद्यालय रेवली यह प्रश्न उठना स्वा...
20/11/2022

ऋषियों ने सीधा सरल वेदभाष्य क्यों नहीं किया?
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पाणिनि महाविद्यालय रेवली

यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ऋषि लोगों ने वेदमन्त्रों का सीधा सरल अर्थ वा दूसरे शब्दों में वेदभाष्य क्यों न कर दिया, जिससे प्रत्येक जिज्ञासु को वेदार्थ का यथार्थ बोध हो जाता और किसी प्रकार की कोई बाधा उपस्थित न होती । पाणिनि महाविद्यालय रेवली

हमारा इसमें यह कहना है कि ऋषि लोग वेदभाष्य कर सकते थे और एक से एक उत्कृष्ट भाष्य करते, पर उन्हें तो वेदभाष्य करना अभीष्ट ही न था। इसका मुख्य कारण यह है कि वेद 'सर्वज्ञानमयो हि स: ' सम्पूर्ण ज्ञान का भण्डार है, वेद में सब सत्य विद्यायें हैं, यह ऋषि लोगों की निश्चित धारणा थी। किसी भी व्यक्ति को सम्पूर्ण विद्याओं का ज्ञान नहीं हो सकता। हां ज्ञान वा विद्या के अधिक से अधिक विभागों का विशेषज्ञ एक ऋषि वा प्राचार्य हो सकता है। भाषाणां जननी संस्कृत भाषा

हमारी इस बात का प्रमाण इसी से मिल जाता है कि यास्क पाणिनि-पतञ्जलि व्यास- जैमिनि ग्रादि ऋषियों ने विद्या के एक-एक विभाग को लेकर साक्षात् ज्ञान द्वारा संसार का उपदेश किया। एक ही ऋषि ने सब विद्याओं का पूर्ण ज्ञाता होने का दावा नहीं किया। जब एक व्यक्ति चाहे वह ऋषि हो या मुनि, आचार्य हो या बड़े से बड़ा विद्वान्, सब विषयों का ज्ञाता कदापि नहीं हो सकता, तो भला वह वेद का सम्पूर्ण अर्थ कैसे कर सकता है। चाणक्य नीति के अनमोल सुविचार

इसीलिये ऋषि-मुनि वेदों के भाष्य नहीं कर गये, क्योंकि वे समझते थे कि वेद के ज्ञान की इयत्ता नहीं हो सकती। यद्यपि वेद की इयत्ता ( चार विभागों में ) नियत है, पर उसके अर्थ की इयत्ता का अवधारण नहीं हो सकता। जैसे ईश्वरीय पदार्थ वायु-जल-अग्नि-विद्युत् को मनुष्य के मस्तिष्क ने बहुत कुछ वश में किया है और उनसे अपनी इच्छानुसार काम ले रहा है । पर ये पदार्थ सम्पूर्णतया मानव मस्तिष्क में कभी नहीं आ सकते, क्योंकि ये ईश्वरीय हैं। जब भौतिक पदार्थों का यह हाल है तो भला ईश्वरीय ज्ञान का तो कहना ही क्या, वह वश में कैसे आ सकता है? जैसे हमारा शरीर परिमित है, इयत्ता वाला है, पर उसके अंग, मस्तिष्क में आनेवाले विचार वा ज्ञान की इयत्ता का निर्धारण नहीं हो सकता। वेदवाणी मासिकी

(पं० ब्रह्मदत्त जिज्ञासु । जिज्ञासु रचना मञ्जरी )

योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

पाणिनि महाविद्यालय रेवली पाणिनि महाविद्यालय रेवली
06/03/2022

पाणिनि महाविद्यालय रेवली
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