Raju Negi Vlogs

Raju Negi Vlogs पहाड़ों से हूं, वहीं का जीवन दिखाता हूं 😊

youtube - Raju Negi Vlogs

10/11/2022

दोस्तो पहाड़ों के खानपान में बड़ी की सब्जी और झोली का महत्व खूब है, झोली को कहीं पयो भी कहते हैं।

बड़ियां भी कई तरह की होती हैं, ककड़ी की, लौकी, भुज, मूली और पिनालू के गाब आदि की बड़ियां... बड़ियों को सबसे ज्यादा मजा गांव से दूर परदेस में खाने में आता है। इसलिए तो हमारी बुआ, मौसी, दीदी लोग जो भी शहरों में रहते हैं गांव वाले रिश्तेदारों से बड़ियां मंगाना नहीं भूलते।

कल मैंने भी इस साल की पहली बड़ियां बनाईं, बड़ियों के साथ साथ इनको बनाने का पूरा vlog भी बनाया।

"ननिहाल की सबसे अच्छी बात ये है कि वहां सब आपको मां के नाम से जानते है.."ये पंक्तियां जब मैंने पढ़ीं तो मुझे बहुत ज्यादा...
17/10/2022

"ननिहाल की सबसे अच्छी बात ये है कि वहां सब आपको मां के नाम से जानते है.."

ये पंक्तियां जब मैंने पढ़ीं तो मुझे बहुत ज्यादा सटीक लगीं, और पढ़ते ही मैंने हिंदिनामा या हिंदी पंक्तियां में पोस्ट कर दी। किसकी लिखी थी याद नहीं आ रहा पर लिखा क्या था वो याद है।

कल मैं भी बहुत समय बाद अपने ननिहाल गया, उनकी धान मनाई पिछड़ रही थी तो सोचा एक दिन वहां हो आया जाए... कुल मिलाकर मुकोट (ननिहाल) जाकर ऐसा लगता है कि बचपन वापस आ गया, एक अजीब फीलिंग 🥰🥰

Aaj ke vlog me miliye meri Nani se 🥰

मेरे गांव की कहानी
20/09/2022

मेरे गांव की कहानी

17/09/2022

हमारे जंगल में एक बेशकीमती लकड़ी को जंगल से भारी मात्रा में उठाया जा रहा है... लेकिन क्यों..? 👉 https://appopener.com/yt/9g8mauwss

14/09/2022
12/09/2022

प्रकृति बहुत सुन्दर है दोस्तो, इसे महसूस करो 😍😍

08/09/2022

पहाड़ के बच्चे उम्र से पहले ही जिम्मेदार हो जाते हैं, या यूं कहें जिम्मेदार होना ही पड़ता है..... पूरी वीडियो के लिए लिंक पर क्लिक करें -- https://appopener.com/yt/s9809rscz

03/09/2022

मैं vlogs बनाता हूं क्योंकि... मैं चाहता हूं दुनिया मेरे छोटे से गांव के बारे में जाने, आपको लगे कि ये आपका ही गांव है...

पूरा वीडियो - https://appopener.com/yt/zxgw3aabx

https://youtu.be/jSI0lSJjDbo
01/09/2022

https://youtu.be/jSI0lSJjDbo

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जानवरों को डाल के लगभग आठ महीने सूखी घास खानी होती है, तो वह सूखी घास कैसे स्टोर की ज.....

कल एक नई बछिया का नामकरण किया, वीडियो लिंक क्लिक करके देखें
24/08/2022

कल एक नई बछिया का नामकरण किया, वीडियो लिंक क्लिक करके देखें

देवभूमि उत्तराखंड में जब गाय का बछड़ा होता है तो कुछ इस तरह उसका नामकरण किया जाता है। कुमाऊनी में हम इसे बौधाण पुजै ...

22/08/2022

पांच हजार का चालान हो गया 😭 अब बिना लाइसेंस के नहीं घूमेंगे 😔

21/08/2022

हमारे पहाड़ के होनहार बच्चे, आज मिलिए पीहू और नितिन से... Raju Negi vlogs 🔥❤️

20/08/2022

चलिए आपको अपने गांव घूमाता हूं 🔥❤️

https://youtu.be/gxBp2APjJIU
20/08/2022

https://youtu.be/gxBp2APjJIU

पहली बार वीडियो बनाने के चक्कर में बवाल हुआ, vlog बनाना भी आसान काम नहीं है... आज बारिश ने मेरा पूरा प्लान चौपट कर दिया। ...

17/08/2022

अपने गांव को छोड़कर परदेश जाने का दुख, बच्चो का उदास चेहरा देखकर भी शहर को जाने की मजबूरी आज की नहीं, बहुत पुरानी है... काश पहाड़ का हर पिता अपने बच्चों को बड़ा होता देख पाता 🙂😌

YouTube channel -- https://appopener.com/yt/md4z6lhnh
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16/08/2022

कल मैंने अपने स्कूल राजकीय इंटर कॉलेज सलोंज में स्कूली बच्चों के साथ बड़े धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया...🥰😍

पूरा वीडियो https://appopener.com/yt/mfevqxik7
https://appopener.com/yt/mfevqxik7

https://youtu.be/oloKbhWQVzM
13/08/2022

https://youtu.be/oloKbhWQVzM

रक्षाबंधन के दिन ऐड़ाद्यो के मंदिर में जबरदस्त मेला लगता है, इस साल मैं भी इस मेले में शामिल हुआ।

10/08/2022

लाल सिंह चड्डा मेरे गांव में पहले से ही फ्लॉप है, एक रुपया नहीं कमा पाएंगे आमिर खान

https://appopener.com/yt/sjdt7k0bk

https://youtu.be/ZeKeEQYdSo4
10/08/2022

https://youtu.be/ZeKeEQYdSo4

laal Singh Chaddha के बारे में जब मैंने गांवों में पूछा तो देखिए क्या कहा लोगों ने

09/08/2022

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के बाघ रूप में इस स्थान में निवास करने से इसे 'व्याघ्रेश्वर' नाम से जाना गया. बाद में यही नाम बागेश्वर हो गया. बहुत पहले भगवान शिव के व्याघ्रेश्वर रूप का प्रतीक 'देवालय' इस स्थान पर स्थापित था. जब इसे भव्य रूप दिया गया तो फिर इसका नाम बागनाथ मंदिर हो गया.

मेरे यूट्यूब चैनल से भी जरूर जुडें-- https://appopener.com/yt/1et9cf3mv
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17/07/2022
आपने सुना..?
30/03/2022

आपने सुना..?

सुना कि नहीं ?

04/03/2022

❤️

01/03/2022

शिव ख़ास हैं
क्योंकि सरल हैं

वे सिखाते हैं
बहुत सरलता व सहजता से
प्रेम करना
प्रेम में सम्मान करना
समर्पित होना

खुद को खाली कर देते हैं
शक्ति के प्रेम में
पार्वती के लिए करते हैं नृत्य
हिमालय के सामने

इसलिए आज भी स्त्रियां
राम सा बेटा, कृष्ण सा प्रेमी
और शिव जैसा पति चाहती हैं।

~ राजेन्द्र नेगी

हर किसी के जाने की ख़बर से आहत होने वाले लोग मुझे पसन्द नहीं हैं। और मैं समझ भी नहीं पाता हूँ कि ये वाकई आहत होते भी हैं!...
06/02/2022

हर किसी के जाने की ख़बर से आहत होने वाले लोग मुझे पसन्द नहीं हैं। और मैं समझ भी नहीं पाता हूँ कि ये वाकई आहत होते भी हैं! क्योंकि आहत होने वाले चुपचाप आहत होते हैं। (नेताओं को छोड़कर)

लता जी ने भरपूर जीवन जिया है और अपने क्षेत्र में इतना कुछ किया है कि सबको ऐसा सौभाग्य नहीं मिलता। इसलिए इनके परलोक सिधारने से मैं आहत नहीं हूँ। एक दिन सबको ही जाना है, और कोई ऐसे जीकर जाए तो उसके जाने को भी सेलिब्रेट करना चाहिए।

पहले मेरे गाँव में किसी के निधन पर मिठाई बाँटी जाती थी। लेकिन कुछ साल पहले यह बन्द हो गया है, तब मुझे। भी बड़ा अजीब लगता था कि कोई गुज़र ग़या और गांव में मिठाई बंट रही है। पर अब लगता है कि वह गलत नहीं था, बल्कि गांव के पुराने लोग दुनियावी चीज़ों को लेकर अधिक स्पष्ट थे। जैसे किसी के आने को सेलिब्रेट किया जाता है, वैसे ही किसी के जाने को भी सेलिब्रेट करने की कोशिश करते थे। आखिर कोई आया, इस मोहमाया से भरी दुनिया में अपना किरदार निभाकर चला गया, कुछ कम है क्या?

लता जी के गीत, सुनने वालों के सुख दुःख के साथी बने रहेंगे....❤️🌸

धन्यवाद Hindinama
04/02/2022

धन्यवाद Hindinama

आज करीब हफ्ते भर बाद गाज़ियाबाद में धूप खिली है। यहाँ आकर मैंने किसी की कमी महसूस की तो वह धूप ही है, ठंडे दिनों में पहाड़ों की नरम धूप का कोई सानी नहीं।

इंदिरापुरम में जहाँ में इन दिनों रह रहा हूँ वहाँ ज़्यादातर उत्तराखण्डी ही रहते हैं। छत पर गया तो एक अमा-बूबू(दादी-दादा) धूप सेकते दिखे। उनका चेहरा बता रहा था कि कोई अपने ही हैं, पहाड़ियों को उनके नैन-नक्स से पहचानना कोई बड़ी बात नहीं। मैं उन्हीं के पास खड़ा हो गया, घर से बहुत दूर कोई अपना सा दिख जाए तो दो बात किये बिना रह पाना बड़ा मुश्किल होता है। कम से कम आप इतना तो पूछ ही लेते हो कि पहाड़ में कहाँ से हो?

मैंने आमा जो कुर्सी पर बैठी थीं उनसे कहा "आमा आज घाम आ गया, मस्त घाम तापो!" वो मुस्कुराकर बस इतना ही बोलीं - "हाँ.." उनके हाथों की पीतल की पीली चूड़ियाँ देखकर मुझे ईजा की याद आई, पहले-पहले ईजा लोग भी ऐसी ही चूड़ियाँ पहनती थीं, ज़्यादा नहीं तो दो कम से कम लेकिन पिछले कुछ सालों में सभी औरतें केवल काँच की ही पहनने लगीं हैं। परिवर्तन संसार का नियम है, पर विलुप्त होती चीज़ों और संस्कारों को देखकर मन में थोड़ी उदासी सी आती है।

मैंने आमा से पूछा - "पहाड़ में कहाँ से हुए?"
~ सतपुली से..(बगल में बैठे बुबू ने जवाब दिया)
~ सतपुली में सात पुल हुए क्या?
~ नहीं, नहीं... (हँसते हुए) सतपुली नहीं सुना क्या कभी?
~ सुना तो है, देखा नहीं... एक गाना है ना "सतपुली कौ मेला मेरी बांन सुषमा.." इसमें ही सुना है, इससे ज़्यादा कुछ पता नहीं..
~ अच्छया... तुम कहाँ के हुए?
~ मैं सोमेश्वर, अल्मोड़ा से..
~ अच्छया कुमाऊँ से...
~ हाँ... वहीं से...
~ यहाँ अच्छा लगता है क्या आपको...? घर की याद नहीं आती? (मैंने पूछा)
~ यहाँ क्या अच्छा लगता है... घर घर ही हुआ, सबकुछ है वहाँ.. लेकिन इसका पैर टूट गया तो वहाँ न इलाज ना डॉक्टर, इसलिए दिल्ली लाए.... बच्चे दोनों यहीं हैं, घर हम दो ही हुए इसलिए.... ज़रा रुककर फिर बोले– "दो महीने अस्पताल में रहकर आई है..." दादाजी ने कहा तो मैंने दादी को देखा, कुर्सी पर बैठीं दादी के सामने सपोर्टर था.. मुझे लगा ही था कि चलने फिरने में कोई दिक्कत होगी.... पहाड़ों की स्थिति पता नहीं होती तो मैं ज़रूर पूछता, क्यों वहाँ अस्पताल नहीं हैं क्या? पर जानबूझकर क्या पूछना... मैंने पूछा– खेती बाड़ी के क्या हाल हैं फिर उस तरफ...?
~ दा.. कौन कररा खेती अब, हमारे बच्चे यहाँ आ गए, हमसे भी कबतक होगी.. जिसे खेत दिए हैं वो भी कैरे कि अब हमसे भी नीं होता बल.. एक गाय बांधी थी यहाँ आते समय वो भी रिश्तेदारों के वहाँ पहुंचा दी है... कोई नहीं कररा अब खेतीबाड़ी भी, गुणी-बानर सुंवर कुछ नहीं रखते..!
~ तुम्हारे वहाँ तो होती होगी, सोमेश्वर में बढ़िया खेती होती है ना..? (दादाजी ने पूछा)
~ हाँ हमारे वहाँ अभी तो हो ही रही, लेकिन बानर वहाँ भी कम नही हैं।
~ दा.. हमारे वहाँ तो बाहर लैटिंग भी जाओ तो कुंडी लगाके जाना पड़ता है... चोरी चकारी के डर से कभी किसी ने कुंडी नहीं लगाई लेकिन बानरो के डर से लगानी पड़ रही.. जैसे ये डिश लगे है ना छत में, वैसे ही बंदर भी बैठे रहते हैं..... पुराने पत्थर वाले मकानों को तो बर्बाद कर दिया इन्होंने इसलिए मजबूरी में सब लैंटर डाल रहे....
~ तो यहाँ मन थोड़ी लगता होगा?
~ कैसे..? जीवन भर जहाँ रहे बुढ़ापे में वहाँ से जाना क्या अच्छा लगेगा... मजबूरी हो गई... जरा सी गिरी और डॉक्टर ने इतने में ही कह दिया कि पैर टूट गया बल... दो महीने पैर नहीं लगा पाई अब चल रही हूँ इसके सहारे... जीवन भर क्या कुछ नहीं किया, धुर-धार लड़की-घास सब किया ठैरा भगवान की दया से कभी कुछ नहीं हुआ लेकिन बुढ़ापे में आंगन में पैर टूट गया.... अभी क्या-क्या देखना है क्या पता....
~ अब यहीं रहोगे फिर? (मैंने दादी से पूछा)
~ ना ना.. यहाँ मन नहीं लगता, न अड़ोस न पड़ोस.. गाँव में कभी इसके घर चाय कभी उसके घर चाय... यहाँ न कोई फ़सक मारने वाला न चाय पिलाने वाला... मौसम ऐसा हुआ, आज कितने दिनों बाद आ रहा घाम देख ही रहे हो...

मैं युवावस्था में ही गाँव से आने के बाद भी कई बार बड़ी मुश्किल से यहाँ मन लगा पाता हूँ, इसलिए आसानी से समझ सकता हूँ कि पूरी ज़िंदगी पहाड़ में रही ये आमा यहाँ कभी एडजेस्ट नहीं हो पाएँगी...! दादा जी शायद पहले भी घर से बाहर रहें हों क्या पता।

थोड़ी देर गप्पे लड़ाकर में अलग हो गया, कभी-कभी लगता है कि बड़े-बूढ़ों के पास कहने के लिए बहुत कुछ है, पर सुनने वाला कोई नहीं... दिनभर मोबाइल में घुसी रहने वाली हमारी जनरेशन की वजह से एक पीढ़ी ऐसी है जिनके अनुभव ज़ाया हो रहे हैं...

इसके अलावा उत्तराखण्ड में अभी चुनाव चल रहे हैं लेकिन इस आमा के मुद्दे कहाँ हैं..? न कोई जंगली जानवरों, विशेषकर बंदरों और सुंवरों की बात कर रहा न स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति कोई गम्भीरता है! बंदरों, सुंवरों, लगूरों ने खेती बर्बाद कर दी है और शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार की मूलभूत कमी ने लोगों को मजबूरन गाँव छोड़ने पर विवश किया है।

~ राजेंद्र सिंह नेगी

#हिन्दीनामा_तरंग

आज घर मे फिर बर्फ गिरी है, हम खुशकिस्मत हैं कि साल में एक दो बार बर्फ गिरते देख लेते हैं। किसी साल कम तो किसी साल ठीकठाक...
03/02/2022

आज घर मे फिर बर्फ गिरी है, हम खुशकिस्मत हैं कि साल में एक दो बार बर्फ गिरते देख लेते हैं। किसी साल कम तो किसी साल ठीकठाक बर्फ़।

बर्फ़बारी की फ़ोटो देखकर बचपन के दिनों की एक बात हमेशा याद आ जाती है। आज के दिन भी यदि मैं अगर घर होता तो ईजा के मुंह से यह सुनने को ज़रूर मिल जाता, "आ ह्यूं पड़नों, रात भ्यार झन निकलिया, ह्युं पड़ी भूत घुमनी बलि रातम, लट्ठी और चनड़ी.."

यानी "आज बर्फ गिर रही है, रात बाहर मत निकलना, बर्फ वाले भूत आते हैं बल जिनका नाम लट्ठी और चंनड़ी है।"

ये बात माँ हर बार बतातीं, जब भी बर्फ गिरती... तब बड़ा अजीब सा डर लगता था... लेकिन अब नहीं लगता, हालांकि मम्मी ने आज भी ये बात बोली होगी बहन लोगों से।(पक्का बोली होगी।)

(नाईट फ़ोटो हमारी सोमेश्वर घाटी के एक गांव की, कैमरा में कैद की है Mukesh भाई ने..)

03/02/2022

हम पहाड़ियों से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता कि नशा समाज के लिए कितना बुरा है, परिवार के लिए कितना बुरा है। आज हर गांव में कई परिवार ऐसे मिल जाएंगे जो शराब से उजड़े हैं। हर गांव में कितने ही उदाहरण होंगे जिनकी बातें कुछ ऐसे शुरू होती हैं– "आदिम तो उ भल छू, पै कि करछा शराबल..."

यह कहना ग़लत नहीं होगा कि शराब के चलते हमारे रीति रिवाज़ भी बेहद प्रभावित हुए हैं, आज पहाड़ों में रात की शादियां नहीं हो रहीं इसका सबसे बड़ा कारण शराब है। कई गांवों में शराब पीकर होने वाले झगड़ों के चलते खड़ी होलियों का चलन बन्द हो गया है। कुमाऊं की पारंपरिक होली सिकुड़ती जा रही है। जिन गांवों में देर रात तक होलियां गाईं जाती थीं वहां सांझ होते होते होलियां सिमट जाती हैं।

ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जिनसे हम जान सकते हैं कि नशे ने पहाड़ में व्यक्तिगत रूप से लेकर सामाजिक और सांस्कृतिक रूप तक में बुरा असर डाला है। इस सब के बावजूद आज चुनावों में शराब का बोलबाला है, पैसों का बोलबाला है।

एक उम्र होती है, जब हमें सही गलत का पता नहीं होता। उस उम्र में हमारे अंदाज़ में मस्ती होती है। हनिकारक तत्वों की ओर तीव्र आकर्षण होता है। बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज लगभग पूरे उत्तराखण्ड में नेताओं ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए इस उम्र के युवाओं को ही चुना है। लगभग हर विधानसभा में ऐसे नेता हैं जो खुल्ला शराब बांट रहे हैं, खुद नहीं बांट रहे पर उनके लोग बांट रहे हैं। स्कूल-कॉलेज लगभग बन्द हैं, पढ़ाई लिखाई गोल है, सबका ध्यान ऐसे बच्चों/युवाओं को चुनाव प्रचार में लगा लेने की ओर है।

ऐसे में महिलाओं की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। वैसे भी महिलाओं से ज्यादा कौन शराब के दंश को झेलता है। महिलाओं को सोचना चाहिए कि जो नेता जीतने के लिए शराब बंटवा रहे हैं उनकी सोच क्या है, इरादे कैसे हैं? इसलिए पहाड़ों में प्रत्याशी के जीत हार का अंतर तय करने वाली सभी माताओं बहनों से मेरा अनुरोध है कि आप निर्दलीय उम्मीदवार को वोट दे आइये, वो भी शराब बांट रहा है तो नोटा दबा आइये लेकिन शराब बाँटने वालों को वोट मत दीजिए।

ऐसा करने से क्या होगा मुझे नहीं पता, लेकिन शायद कोई तो समझे कि जिस शराब ने पहाड़ों को बर्बादी की ओर धकेला है उसे चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल करना किसी अक्षम्य अपराध से कम नहीं।

~ राजेंद्र नेगी

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