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PenKiller सामाजिक चेतना का संचार

29/04/2023

इस सच को देश के सामने लाने के लिए धन्यवाद

छठ/सुनापन/और पलायन।----------------------------------                  छठी मैया ग ई।उनकेजाने के बाद गाँव की गलियां वीरान...
07/11/2022

छठ/सुनापन/और पलायन।
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छठी मैया ग ई।उनके
जाने के बाद गाँव की गलियां वीरान हैं।घर का आँगन सुना है।मुनिया काकी कह रही है कि-" एह से बढिया त अईबे ना करतू ए छठी मैया!" भाषा वैज्ञानिकों की बात नहीं जानता मगर संजीदा और भावुक लोगों के लिए मुनिया की बात में समाज का दर्द छलकता है।छठ के बाद पसरा सन्नाटा वैसा ही है जैसे बेटी की बिदाई हुई हो।छठी मैया आई तो सब आए,ग ई तो सब चले ग ए यह कहकर कि--"तो ले सलामी ऐ मेरा गाँव, अगर जिन्दगी सलामत रही तो फिर आएंगे अगले छठ में"।इस वाक्य में जो वेदना है वह शायद "पलायन" का है।आए,खुशी मनाई और रोजी-रोटी के चक्कर में चले ग ए।"कदाचित रोजी-रोटी पलायन पर मजबूर करती है।

"पलायन" बहुत विवादित
शब्द है।मेरी दृष्टि में पलायन का शाब्दिक अर्थ है-"भागना, या भाग जाना"।परन्तु आमतौर पर जब कोई सिर्फ़ अपनी रोजी-रोटी के लिए अपना क्षेत्र,जिला,राज्य या देश छोड़कर कहीं जाता है तो उसे भी पलायन ही कहते हैं।पलायन भाववाचक है।इस शब्द के भाव में जो मार्मिक पीडा और बेबसी है उसे यदि ठीक से अनुभव किया जाए तो कलेजा फट जाएगा।सिर्फ़ घर छोड़कर रोटी कमाना ही पलायन नहीं है।सच तो यह है कि पलायन हमेशा मजबूरी में होता है।वरना घर तो सतयुग में हरिश्चन्द्र,त्रेता में राम,द्वापर में कृष्ण और कलियुग में बुद्ध और महावीर ने भी छोड़ा था।परन्तु वह उनकी मजबूरी नहीं अपितु अपनी आत्मा की आन्तरिक सहमति थी।सारांश यह कि जिस स्थान पर हैं वहां यदि जीवन बोझ लगने लगे,आदमी जब अनचाहे परिस्थितियों में जीने को मजबूर हो जाए,जिन्दगी कराहने लगे तो उसे मुस्कुराहट(रोजी-रोटी)देने के लिए विकल्प के तौर पर स्थान-परिवर्तन करना ही पलायन है।शौक,देशाटन या मानवता के कल्याणार्थ घुमने के क्रम में स्थान-परिवर्तन करना पलायन नहीं बल्कि मानव-कल्याणार्थ जीवन की योजना है।

पलायन के वैसे तो क ई कारण हैं परन्तु मेरी दृष्टि में सरकारों द्वारा कल्याणकारी योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन में घोर विफलता सबसे प्रमुख है।अभी तक की सारी सरकारें सिर्फ़ सत्ता पर काबिज रहने के लिए social engineering में व्यस्त रहीं जिसके कारण जातिवाद बढा,अपराध बढा और सामाजिक ताना-बाना टुट गया।इन सामाजिक बदलावों और सरकारी उदासीनता के कारण न ए रोजगार सृजित नहीं हुए,पूंजी-निवेश नहीं हुआ,मिलें बंद हैं,रिश्वतखोरी और अफसर-शाही हावी है,नौकरी नहीं है,मजदूरों का अभाव है,कारखाने बंद हैं,जन-प्रतिनिधियों की सामाजिक उदासीनता और योजनाओं में भयंकर लूट,पूंजी का अभाव,मुद्रा-लोन की विफलता आदि अनेक कारणों से किसी भी सामान्य आदमी के लिए रोजी-रोटी की व्यवस्था करना रेगिस्तान में पानी निकालने जैसा है।ऐसी परिस्थिति में पलायन मजबूरी हो जाती है।पलायन आम आदमी की मानसिकता बनते जा रही है।
मैं स्पष्ट आकड़े तो नहीं जानता न आकडो पर विश्वास है।क्योंकि जिन्दगी आकडो का खेल नहीं बल्कि आँखो की चमक और होठों की मुस्कान है।परन्तु पलायन करने वालों के चेहरे की झुर्रिया और उनके जीवन के संघर्ष की जीवंत तस्वीरें सरकारों पर पैशाचिक अट्टहास करते हुए उसके विफलता की पोल तो खोल ही रही है।

ऐसे में उन सभी भाई
-बन्धुवों से निवेदन है कि अगर आप सिर्फ़ रोजी-रोटी के लिए ही पलायन किए हैं तो वह तो यहां भी है।आइए! और अपने सरकार पर अपने रोजगार के लिए दबाव बनाइए वरना आपकी पलायनवादिता वंशानुगत हो जाएगी।इसलिए अभी भी वक्त है।लौट आओ अपने गाँव!डीह बाबा तुम्हें बुला रहे हैं।खेतों के मचान और विरहा के तान तुम्हें बुला रहे हैं।गाँव का पीपल, पनवाड़ी की दुकान और लाला जी का बथान बुला रहे हैं।तुम्हारे बिना खेत-खलिहान सुने हैं, गाँव का चौपाल सुना है,ब्रम्ह बाबा का चबूतरा रो रहा है,साँझ का क ऊडा(अलाव) की खैनी-बीडी भी खत्म,रामलीला-नाटक सब खत्म।साँझ का हाट सुना, गलियां सुनी हैं।रिश्ते-नाते टूटने के कगार पर हैं।इस रोजी-रोटी के चक्कर में नेवता-हंकारी सब छुट रहे हैं, परिवार टुट रहे हैं।ऐसी रोजी जो हमारे रिश्तों और संस्कारों को ही खा जाए उस रोजी से पैदा हुई रोटी को हम नहीं खा सकते।यह रोटी बहुत जहरीली है मेरे भाई!
इसलिए अब आ जा!
आ जा उम्र बहुत है छोटी,अपने घर में भी है रोटी।हम यहीं साथ जिएंगे, साथ मरेगे।कम से कम "पलायनवादी" का कलंक तो नहीं लगेगा।बाकी ईश्वर है।

अब समझ में आया कि मुनिया काकी की नाराजगी छठी-मैया से नहीं बल्कि छठ में आकर फिर पलायन करने वाले अपनों से हीं है।वाह काकी शाबास! आखिर तुमने "पलायन का नारियल" छठी-मैया के सिर पर ही फोड दिया।
जय छठी-मैया!🙏🙏
(विनोद-वाणी)

रावण vs रामरावण vs आदि पुरूष!-----------------------------                    आमतौर पर विवादित मुद्दों से बचना चाहता हूँ...
12/10/2022

रावण vs राम
रावण vs आदि पुरूष!
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आमतौर पर विवादित मुद्दों से बचना चाहता हूँ।परन्तु क ई दिनों से कुछ मित्र मुँह में ऊँगली डाले थे।सो देर से ही सही मगर मुद्दा प्रासंगिक है।
मुद्दा यह है कि पिछले
दशहरा से ही दुर्गा,राम और रामलीला से ज्यादा चर्चा कदाचित रावण और आदि पुरूष की हो रही है।
हम आगे बढे उसके पहले यह तय कर ले कि सचमुच यह मुद्दा है भी या नहीं?मेरे अनुसार मुद्दा रावण हो सकता है पर रावण की चर्चा मुद्दा नहीं हो सकती।कुछ मित्र रावण को महान् सिद्ध करने पर तुले हुए हैं।उसका "विशेष कारण" है जो आप भी समझ रहे होंगे।रावण मुद्दा है बल का,सामर्थ्य का,ग्यान का,भक्ति का,दु:साहस का परन्तु जब हम रावण की चर्चा करेंगे तो उसी मुद्दे में उसका अहंकार,अत्याचार,चोरी और "एको अहम् द्वितीयोनास्ति
"वाली प्रवृत्ति को भी कहना पडेगा।मगर अफसोस कि जो लोग रावण को महान् सिद्ध करने पर तुले हुए हैं उसके दुसरे पक्ष को दरकिनार कर देते हैं।अरे भाई!रावण ज्ञानी हो सकता है,बलशाली हो सकता है,भक्त हो सकता है परन्तु इन गुणों के बावजूद भी अपने दंभ और अहंकार के कारण वह हमारे लिए नकारात्मक चरित्र है।इसलिए समाज को वह स्वीकार्य नहीं हो सकता।कुछ बौद्धिक लोग तर्क दे रहे हैं कि-"सीता जीवित मिली यह राम का पौरूष था परन्तु वह पवित्र मिली वह रावण की मर्यादा थी"। वाह जी वाह!भाई साहब!रावण यदि मर्यादित और बलशाली होता तो नाक के बदले नाक काटता(सूर्पनखा प्रकरण)या राम से युद्ध करके सीता को जीतता।परन्तु नाक काटने या युद्ध करने के बदले परस्त्री को चोर की तरह हरण करना न पुरुषत्व है न मर्यादा।वह तो सीता "लक्ष्मण-रेखा" की मर्यादा से बंधी हुई थी वरना फैसला तो वहीं पर हो जाता "आन द स्पाप"। और यह भी जान ले कि सीता को गलत निगाह से छुने की हिम्मत रावण तो क्या उसके भगवान् शंकर में भी नहीं थी क्योंकि वो भी सीता को "माता" कहते थे।सीता को छुने का अंजाम पता था रावण को।अपने शाप के कारण सशरीर भस्म हो जाता आन स्पाट।इसलिए भ्रम में न रहें कि वह मर्यादित था।सारे गुणों के बावजूद भी उसका चरित्र ठीक वैसा ही है जैसे किसी को सोने की थाली में छप्पनो भोग-व्यंजन परोस कर उसी थाली में थोड़ा विष्टा रख दिया जाए।उसके गुणी चरित्र को अहंकार रूपी विष्टा ने इतना बदबूदार कर दिया कि उसकी बदबू अभी तक व्याप्त है।इसीलिए वह ज्ञानी तो है,बलशाली भी मगर अनुकरणीय और आदर्श मानने योग्य तो कदापि नहीं हो सकता।उस परिस्थिति में तो बिलकुल भी नहीं जब राम के उपर रावण को थोपने की कोशिश हो।

जो लोग रावण को
अपना आदर्श मानते हो उन्हें खुली चुनौती है कि अगर रावण आपके लिए आदर्श है तो कृपया अपने पुत्र, भाई या रिश्तेदार का नाम "रावण" रखकर दिखाएं।दुसरा ईश्वर से प्रार्थना भी करता हूँ कि वैसे लोगों को रावण जैसा ही बेटा,भाई या रिश्तेदार मिलें।
दुसरा मुद्दा-"रावण-दहन!"
मैं इसके खिलाफ हूँ।क्योंकि प्रभू श्री राम ने रावण का वध किया था दहन नहीं।आप सोचिए!किसी की मृत्यु के उपरांत उसका दहन(दाह-संस्कार) उसके भाई-बन्धु,या रिश्तेदार करते हैं।लिहाजा जो तथाकथित महानुभाव (कोई भी हो) रावण को बाण मारकर रावण-दहन करते हैं वो पहले सरेआम घोषणा करें कि-"हाँ मैं रावण का वंशज हूँ उसके खानदान का हूँ।"
अंतिम बात!मुझे ऐसा लगता है कि शायद हम एक खतरनाक मानसिकता से घिर रहे हैं।हर जाति का अपना-अपना भगवान?क्षत्रियों के राम,ब्राह्मणों के रावण,यादवों के कृष्ण,दलितों के अम्बेडकर।यह कैसा पागलपन है?ब्राह्मण सदैव हमारे पूजनीय थे, हैं और रहेंगे।मगर रावण को ब्राह्मण के देव के रूप में स्थापित करने की चाह निश्चित रूप से उन्हें अन्य जातियों से अलग कर देगी।क्षत्रियों द्वारा राम को क्षत्रीय के रूप में स्थापित करना भी गलत है।ऐसा ही सभी जातियों के साथ है।रामायण और रामचरितमानस पढें।राम-रावण युद्ध के समय स्वयं रावण ने क ई बार अपने आप को राक्षस जाति का बताया है।उसके अनुसार राम-रावण युद्ध राक्षस-जाति के लिए "करो या मरो " का सवाल था।अगर वह ब्राह्मण भी था तब भी अत्याचारी था।तो क्या एक अत्याचारी को आदर्श माना जाए?फिर परशुराम और वशिष्ठ का क्या होगा?
ऐसे तो हिन्दू टुटकर
बिखर जाएगा हुजूर।हर जाति के भगवान और राक्षसों के चक्कर में इन्सान मिट जाएगा।भगवान की कोई जाति नहीं होती।इसलिए हम सब विचार करें कि कहीं हम किसी अन्तर्राष्ट्रीय साज़िश का शिकार तो नहीं हो रहे?कदाचित यह सम्भव है ।इसीलिए समय रहते चेतिए! वरना हर जाति के भगवान आपको न ब्राह्मण रहने देंगे न क्षत्रिय न वैश्य न शुद्र।इन्सान तो बनने से रहे।बेहतरी इसी में है कि हम हिन्दू होकर इन्सान बनें तब हमें रावण vsब्राह्मण,राम vs क्षत्रिय,रावण vs राक्षस और देवvsराम का मर्म समझ में आ जाएगा।वरना मरने के लिए तो हम पैदा ही हुए हैं।
जय राम जी की!
🙏🙏
(विनोद-वाणी)
नोट-किसी की भावनाओं
को ठेस पहुंचा हो तो खेद
है।🙏

01/10/2022

सुनिये के इस सुंदर गीत जो की आज के परिदृश्य पर आधारित है अच्छा लगे तो उनके इस पेज को लाइक करिए

  के इतिहास के सबसे भावनात्मक पल।   में    के खिलाफ अपना आखिरी मैच खेलते हुए   ने दी विदाई।
24/09/2022

के इतिहास के सबसे भावनात्मक पल।

में
के खिलाफ अपना आखिरी मैच खेलते हुए ने दी विदाई।

बरसात में... क्या आपने इसपर नोट सुखाया है? कृपया इसको राजनीति से जोड़कर ना देखें। छवि साभार: इंटरनेट।PenKiller सामाजिक च...
24/09/2022

बरसात में... क्या आपने इसपर नोट सुखाया है? कृपया इसको राजनीति से जोड़कर ना देखें।
छवि साभार: इंटरनेट।
PenKiller सामाजिक चेतना मंच

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23/09/2022

ये तस्वीर उन युवाओं को औक़ात दिखाने के लिए काफ़ी है, जो 40-50 हज़ार की तनख़्वाह उठाकर cool बनने के चक्कर में पूजा पाठ करने में शर्म महसूस करते हैं या खुद को पिछड़ा समझने लगते हैं याद रखो सनातन धर्म ही आपका धन है!

आज आप पुरा पृथ्वीलोक उदास करके मिर्तुलोक को हसा रहे होंगे विनम्र श्रद्धांजलि
21/09/2022

आज आप पुरा पृथ्वीलोक उदास करके मिर्तुलोक को हसा रहे होंगे विनम्र श्रद्धांजलि

आईल चार दिन के कनिया बिया लाजात नइखे सुनी आ शेयर करी🙏😍😍https://youtu.be/bYhWAJhpRfk
21/09/2022

आईल चार दिन के कनिया बिया लाजात नइखे सुनी आ शेयर करी
🙏😍😍
https://youtu.be/bYhWAJhpRfk

आईल चार दिन के कनिआ बिआ लाजात नइखेगीत/संगीत:विनोद सिंह, बडुआ सिवान, बिहारआईल चार दिन के कनिआ बिआ लाजात नइखेआईल चार द...

21/09/2022
20/09/2022
18/09/2022

आ गया है, एक बहुत सुंदर भोजपुरी गीत😍
चैनल लिंक पर click कर सुनिये चैनल को subscribe करे 🙏
https://youtu.be/0mtaQ-z0pMc

18/09/2022

60 लड़कियों में से किसी का MMS दिखे तो बिना फॉरवर्ड किए डिलीट कर देना.... 🙏

एक सच्चा सनातनी मासूमों का अपमान नही होने देगा विश्वास है मेरा....ये अजमेर पार्ट2 करने का चक्कर है ….🙏🙏

इतना तो हम और आप कर ही सकते हैं उन बच्चियों के लिए....

😔

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