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₹ 23/- प्रति किलो की लागत आती है देसी घी बनाने में!चमड़ा सिटी के नाम से प्रसिद्ध कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे कि...
04/07/2024

₹ 23/- प्रति किलो की लागत आती है देसी घी बनाने में!
चमड़ा सिटी के नाम से प्रसिद्ध कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 कि.मी. के दायरे में आप घूमने जाओ तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी! यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं! इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता हैं!
इस चर्बी से मुख्यतः 3 ही वस्तुएं बनती हैं!
(1) एनामिल पेंट (जिसे अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं!)
(2) ग्लू (फेविकोल) इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं!)
(3) सबसे महत्वपूर्ण जो चीज बनती हैं वह है "देशी घी"

जी हाँ तथाकथित "शुध्द देशी घी"
यही देशी घी यहाँ थोक मण्डियों में 120 से 150 रूपए किलो तक खुलेआम बिकता हैं! इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता हैं!
इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भण्डारे कराने वाले भक्तजन ही करते हैं! लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके अद्भूत पुण्य कमा रहे हैं!

इस "शुध्द देशी घी" को आप बिलकुल नहीं पहचान सकते!
बढ़िया रवे दार दिखने वाला यह ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता हैं!

औधोगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं, गांव देहात में लोग इसी वनस्पति घी से बने लड्डू विवाह शादियों में मजे से खाते हैं! शादियों पार्टियों में इसी से सब्जी का तड़का लगता हैं! कुछ लोग जाने अनजाने खुद को शाकाहारी समझते हैं! जीवन भर मांस अंडा छूते भी नहीं, क्या जाने वो जिस शादी में चटपटी सब्जी का लुत्फ उठा रहे हैं उसमें आपके किसी पड़ोसी पशुपालक के कटड़े (भैंस का नर बच्चा) की ही चर्बी वाया कानपुर आपकी सब्जी तक आ पहुंची हो! शाकाहारी व व्रत करने वाले जीवन में कितना संभल पाते होंगे अनुमान सहज ही लगाया जा सकता हैं!
अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी आदि खाते हो उसमें क्या मिलता होगा!
कोई बड़ी बात नहीं कि देशी घी बेंचने का दावा करने वाली बड़ी बड़ी कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं!

इसलिए ये बहस बेमानी हैं कि कौन घी को कितने में बेच रहा हैं,
अगर शुध्द घी ही खाना है तो अपने घर में गाय पाल कर ही शुध्द खा सकते हो, या किसी गाय भैंस वाले के घर का घी लेकर खाएँ, यही बेहतर होगा!
आगे आपकी इच्छा..... विषमुक्त भारत🙏

हाथरस हादसे में मरने वालों की संख्या 121 पहुंच गई है। इस घटना के बाद से ही भोला बाबा फरार है। इस बीच बाबा के आश्रम में र...
03/07/2024

हाथरस हादसे में मरने वालों की संख्या 121 पहुंच गई है। इस घटना के बाद से ही भोला बाबा फरार है। इस बीच बाबा के आश्रम में रहने वाले रंजीत सिंह नाम के एक चश्मदीद ने भोले बाबा को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। रंजीत सिंह के अनुसार भोले बाबा के पास कोई विशेष शक्ति नहीं है वो सिर्फ अपने पास विशेष शक्ति होने का ढोंग करता है। रंजीत सिंह ने कहा कि मेरे पापा इनके आश्रम में 15 साल रहे हैं।भोले बाबा का जहां गांव है हम वहीं से हैं। मेरा बचपना उसी गांव में गुजरा है। बाबा के पिताजी नन्हें बाबू थे, जो किसान थे। पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद बाबा ने सत्संग का ढोंग रचाकर पहले अपने एजेंट तैयार किए। एजेंट इकट्ठा करने के बाद बाबा ने उनको पैस दिया। इसके बाद यहां लोग आने शुरू हुए। ये एजेंटों को पैसे देकर ये कहलवाता था कि उनको बाबा की ऊंगली पर चक्र दिख रहा है। जैसे बाबा बोलते थे उनके एजेंट वैसे ही बोलते थे। ऐजेंट बाबा के हाथ में बाबा चक्र तो कभी हाथ में त्रिशूल दिखने की बात करके जनता को भ्रमित करते थे।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

लद्दाख में एलएसी के पास टैंक हादसे में 05 जवानों की जान चली गई।लद्दाख के दौलत बेग ओल्ड इलाके में नदी पार करने के टैंक अभ...
30/06/2024

लद्दाख में एलएसी के पास टैंक हादसे में 05 जवानों की जान चली गई।

लद्दाख के दौलत बेग ओल्ड इलाके में नदी पार करने के टैंक अभ्यास के दौरान हुई दुखद घटना। जल स्तर में अचानक वृद्धि से एक टी-72 टैंक की दुर्घटना हुई, जिसके कारण एक जूनियर कमिशनड ऑफिसर (जेसीओ) सहित पांच भारतीय सेना के जवानों की जान जाने की आशंका है।

यह घटना वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास मंदिर मोड़ नामक क्षेत्र के पास सुबह लगभग 3 बजे की है। सभी पांचों शव बरामद किए गए हैं, और अधिक जानकारी की प्रतीक्षा है।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

प्ररेणादायक★◆★◆★◆★◆तस्वीर में आप एक टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर खाकर उसके बीज को ट्रेन से ...
29/06/2024

प्ररेणादायक★◆★◆★◆★◆
तस्वीर में आप एक टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर खाकर उसके बीज को ट्रेन से फेंक दिया होगा... ये पौधा मिट्टी की छाती फाड़कर नही बल्कि पत्थरों को चीरकर बाहर आया है।
जब ये और भी नन्हा सा होगा, तब शताब्दी ओर राजधानी जैसे तूफान से भी तेज दौड़ती ट्रेनों के बिल्कुल पास से गुजरते हुए भी इसने सिर्फ बढ़ना सीखा ओर बढ़ते बढ़ते आखिर कार इसने एक टमाटर को जन्म दे ही दिया।

न हाथ है, न पांव है, न ही दिमाग है, और तो और इसको जीवित रहने के लिए कम से कम मिट्टी और पानी तो मिलना चाहिए ही था, जो इसका हक भी था लेकिन इस पौधे ने बिना जल, बिना मिट्टी के, बिना सुविधा के अपने आपको बड़ा किया... फला फूला और जीवन का उद्देश्य इसने पूरा किया।

जिन लोगो को लगता है कि जीवन मे हम तो असफल हो गए हम तो जीवन मे कुछ कर ही नही सकते, हम तो बस अब बरबाद हो ही चुके है, तो उन्हें इस टमाटर के पौधे से कुछ सीख लेनी चाहिए।
असली जीवन का नाम ही लगातार संघर्षों की कहानी है।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

28/06/2024

दिल्ली पहुंचा मानसून, 24 घंटे की वर्षा ने तोड़ा 88 साल का रिकार्ड; अगले दो दिनों के लिए भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट

राजस्थान के चमत्कारी पत्थर से बने बर्तन दूध को बना देते हैं दही। यह जो पत्थर के बने बर्तन आप देख रहे हैं यह पत्थर सिर्फ ...
27/06/2024

राजस्थान के चमत्कारी पत्थर से बने बर्तन दूध को बना देते हैं दही। यह जो पत्थर के बने बर्तन आप देख रहे हैं यह पत्थर सिर्फ जैसलमेर के पास एक गांव में मिलते हैं और इस पत्थर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन पत्थर के बर्तनों में आप दूध गर्म करके डालेंगे तो अपने आप इन में दही जम जाती है।

जैसलमेर के हाबूर गांव में पहाड़ों से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज व अन्य जीवाश्मों की भरमार है। जिसकी वजह से इस पत्थर में यह विशेष गुण पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों के लिए यह पत्थर आज भी शोध का विषय बना हुआ है।

बताते चलें कि हाबूर पत्थर में दही जमाने वाले सारे कैमिकल मौजूद हैं। इस पत्थर के बारे में कहा जाता है कि इसमें एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन जैसे रसायन मौजूद हैं जो दही जमाने के लिए काफी हैं। इस पत्थर से बने बर्तन में केवल दूध डालकर छोड़ दीजिए यह दही की तरह जम जाएगा। इस हाबूर पत्थर के बर्तन में जमी दही त्वचा के साथ ही सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है। इस हाबूर पत्थर को स्वर्णगिरी भी कहा जाता है। बता दें कि अब आपको हाबूर गांव पूनमनगर के नाम से पहचान में आएगा। वहीं यहां के स्थानीय लोग इस पत्थर को 'हाबूरिया भाटा' कहकर पुकारते हैं।

असल में पहले के जैन लोग दूध में जामन डालकर दही नहीं बनाते थे क्योंकि उनका मानना था कि जामन में जीव होते हैं तो जैन लोग इन्हीं पत्थरों में दही बना कर खाते थे। ज्यादा महंगे होने के कारण हर कोई नही ले सकता हैं लेकिन जैन धर्म के अनुयायी खरीदने में जरूर रुचि दिखाते है।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

इडली★◆★◆★◆★◆★◆इडली खाने के बहुत फायदा होता है। इसे खाने से आप स्वथ्य रहेंगे। अगर आप इडली डेली खाते है। तो इस से आप का इम...
26/06/2024

इडली★◆★◆★◆★◆★◆

इडली खाने के बहुत फायदा होता है। इसे खाने से आप स्वथ्य रहेंगे। अगर आप इडली डेली खाते है। तो इस से आप का इम्युनिटी भी बूस्ट होगा।
आप को बता दे की इडली साउथ इंडिय का फेमस खाना है। इसे लोग खास कर सुबह के नाश्ता में खाते है। इसे नारियल के चटनी के साथ खाया जाता है।
सूजी के इडली खाने के अनोखे फायदे ।
ब्लड प्रेस कण्ट्रोल करता है ।
इडली में सोडियम की मात्रा बहुत कम होता है। जिस के कारण इडली स्वाथ्य के लिए काफी फायदे मंद होता है।
आप को बता दे की सोडियम कम होने वाले भोजन स्वाथ्य के लिए काफी लाभ दायक होता है ।और ब्लड प्रेशर को भी कम करता है । अगर आपको
एमिनो एसिड अच्छा ज्यादा होता है

इडली में एमिनो एसिड अच्छा होता है ।
जो स्वाथ्य के लिए काफी अच्छा होता है । ये दिमाग और शरीर के लिए अच्छा होता है । जब आप खाते है।

प्रोटीन का मात्रा अधिक होता है।

इडली में प्रोटीन का मात्रा अधिक होता है । जो स्वाथ्य के लिए काफी लाभ दायक होता है।
आप को बता दे की प्रोटीन स्वाथ्य के लिए काफी लाभ दायक होता है । इस में कार्बोहायड्रेट होता है जो स्वाथ्य के लिए काफी लाभ दायक होता है

पाचन शक्ति के लिए अच्छा होता है।

इस में कोई मसाला नहीं होता है इसलिए ये काफी लाभ दायक है और इस से पाचन शक्ति भी बना रहता है।

अगर आप उडद दाल का इडली खा रहे है तो ये काफी अच्छा होगा । क्योकि उड़द दाल में फाइबर होता है । और फाइबर आप के पाचन सकती को बढ़ाता है।

ऊर्जा का अच्छा सोर्स है ।
इडली ऊर्जा का अच्छा सोर्स माना जाता है । इसे खा कर आप ऊर्जा महसूस करते है क्यों की इस में प्रोटीन की मात्रा होता है।

इडली का प्रकार कितना होता है।
इडली दो प्रकार का होता।

1 चावल का इडली :

चावल का इडली होता है । जो खाना में काफी अच्छा लगता है । आप इसे चटनी के साथ भी खा सकते है । खास कर इसे नारयल के चटनी के साथ खाया जाता है । और इसे टमाटर और मिर्ची के बने चटनी के साथ भी खाया जाता है ।

2 सूजी का इडली :

सूजी या राबा का इडली हेल्थ के लिए काफी हेअल्थी होता है । इसी खा कर आप काफी तंदरुस्त रहेंगे।

सूजी का इडली कैसे बनाया जाता है ।
सूजी का इडली कैसे बनाया जाता है ।
इसे बनाना काफी आसान है । एक कप दही ले और 2 कप सूजी ले फिर इसे मिला दे ।
20 से 30 मिनट के लिए इसे छोर दे । फिर आप इडली के साचा में इसे डाल दे । इस के बाद 20 से 30 मिनट के लिए छोर दे । फिर ये पक जायेगा। फिर आप इसे नारियल के चटनी के साथ खाये।

3 वेगि टेबल इडली :

सूजी का इडली हो या चावल का इडली दोनों में आप वेगि टेबल मिला सकते है । इस से इडली ज्यादा हेअल्थी हो जायेगा । जो इम्युनिटी भी बूस्ट करने में मदद करेगा । जैसे की बिन्स गाजर चुकुंदरा मिला दे ।

4 उडद दाल के इडली :

उडद दाल स्वाथ्य के लिए काफी अच्छा होता है । इस में फाइबर होता है तो ये आप को और भी कई बीमारी से दूर रखेगा।

इडली किस प्रकार का भोजन है ।
इडली शाकाहरी भोजन है । ये भोजन साउथ इंडिया का फेमस भोजन है । इसे साउथ इंडिया में ज्यादा खाया जाता है । ये भोजन काफी हेअल्थी होता है । ये स्वाथ्य के लिए काफी फायदे मंद होता है । इसे उड़द दाल, सूजी ,और चावल से भी बनाया जाता है । जो आप के स्वाथ्य के लिए काफी अच्छा होता है।

इडली में कौन सा विटामिन होता है ।
इडली उडद दाल और चावल से बनता है । जिस के कारण इस में कार्बोहाइड्रेट्स और प्रोटीन की मात्रा होता है जो स्वाथ्य के लिए काफी फायदे मंद है।

इडली बनाने का बरतन ।
इडली आप इडली के कुकर में बना सकते है । इडली का बरतन आप ऑनलाइन खरीद सकते है । इडली बनाने वाले कुकर में इडली का साचा 6 से 12 का होता है । आप अपने परिवार के हिसाब से खरीद सकते है ।

सूजी और दही की इडली ।
सूजी और दही का इडली बना काफी आसान है । दही और सूजी को मिला कर । इडली बना जाता है । दही मिलाने से इडली काफी मुलायम हो जाता है ।

सामग्री :

२०० ग्राम दही

१०० ग्राम सूजी

स्वाद अनुसार नमक
डाल कर मिला ले फिर इडली सच्चा में दे कर इसे पका ले । इडली सच्चा में आप थोड़ा तेल डाले या कॉटन के साफ़ कपड़ा डाल कर भी आप पका सकते है ।

5 मिनट में इडली कैसे बनाये ।
इडली खाने में अच्छा लगा है । लेकिन इसका बनाने का प्रोसेस कुछ लोग को थोड़ा ज्यादा समय लेने वाला लगता है । तो आज आप को बतायेगे । इसे कम समय में कैसे बनाया जा सकता है ।

सामग्री :

इडली का पेस्ट

इडली का साचा

फ्रूट साल्ट

कॉटन का साफ कपड़ा या आयल इडली के साचा के लिए
बनाने के विधि :

1.इडली को किसी बरतन में निकल ले ।

2.फिर इसे अच्छे से नमक डाल मिला ले ।

3.फिर इस में कुछ कटा हुआ हरी सब्जी जैसे गाजर , चुकुंदरा डाल दे ।

4.फिर इसे सच्चा में डाले ।

5.इडली साचा पे कॉटन का साफ कपड़ा लगा दे ।

6.या फिर थोड़ा सा तेल जिस से आप को इडली निकले में आसान होगा ।

7.निकलने के बाद आप इसे नारियल के चटनी के साथ आराम से खा सकते है ।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

स्वास्थ्य का खजाना जामुन★◆★◆★◆★अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल, हरी काई नहीं जम...
25/06/2024

स्वास्थ्य का खजाना जामुन★◆★◆★◆

★अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल, हरी काई नहीं जमेगी और पानी सड़ेगा भी नहीं।

★जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।

★पहले के जमाने में गांवो में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था जिसे जमोट कहते है।

★दिल्ली की निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में हुए जीर्णोद्धार से ज्ञात हुआ 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ जल के स्तोत्र बंद नहीं हुए हैं।

★भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।

★स्वास्थ्य की दृष्टि से विटामिन सी और आयरन से भरपूर जामुन शरीर में न केवल हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता। पेट दर्द, डायबिटीज, गठिया, पेचिस, पाचन संबंधी कई अन्य समस्याओं को ठीक करने में अत्यंत उपयोगी है।

★एक रिसर्च के मुताबिक, जामुन के पत्तियों में एंटी डायबिटिक गुण पाए जाते हैं, जो रक्त शुगर को नियंत्रित करने करती है। ऐसे में जामुन की पत्तियों से तैयार चाय का सेवन करने से डायबिटीज के मरीजों को काफी लाभ मिलेगा।

★सबसे पहले आप एक कप पानी लें। अब इस पानी को तपेली में डालकर अच्छे से उबाल लें। इसके बाद इसमें जामुन की कुछ पत्तियों को धो कर डाल दें। अगर आपके पास जामुन की पत्तियों का पाउडर है, तो आप इस पाउडर को 1 चम्मच पानी में डालकर उबाल सकते हैं। जब पानी अच्छे से उबल जाए, तो इसे कप में छान लें। अब इसमें आप शहद या फिर नींबू के रस की कुछ बूंदे मिक्स करके पी सकते हैं।

★जामुन की पत्तियों में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इसका सेवन मसूड़ों से निकलने वाले खून को रोकने में और संक्रमण को फैलने से रोकता है। जामुन की पत्तियों को सुखाकर टूथ पाउडर के रूप में प्रयोग कर सकते हैं. इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण होते हैं जो मुंह के छालों को ठीक करने में मदद करते हैं। मुंह के छालों में जामुन की छाल के काढ़ा का इस्तेमाल करने से फायदा मिलता है। जामुन में मौजूद आयरन खून को शुद्ध करने में मदद करता है।

★भोजन करते समय यदि कोई बाल पेट में चला जाए तो वह कैंसर का कारण बन सकता है और उसे खत्म करने की ओर गलाने की कोई एक मात्र औषधि यदि कोई है तो वह सिर्फ और सिर्फ जामुन ही है।इसलिए वर्ष में एक बार इस फल का अवश्य ही प्रयोग करना चाहिए।

★जामुन की लकड़ी न केवल एक अच्छी दातुन है अपितु पानी चखने वाले (जलसूंघा) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं।

★हर व्यक्ति अपने घर की पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी का एक टुकड़ा जरूर रखें, एक रुपए का खर्चा भी नहीं और लाभ ही लाभ। आपको मात्र जामुन की लकड़ी को घर लाना है और अच्छी तरह से साफ सफाई करके पानी की टंकी में डाल देना है। इसके बाद आपको फिर पानी की टंकी की साफ सफाई करवानें की जरूरत नहीं पड़ेगी।

★क्या आप जानते हैं कि नाव की तली में जामुन की लकड़ी क्यों लगाते हैं, जबकि वह तो बहुत कमजोर होती है..?

★भारत की विभिन्न नदियों में यात्रियों को एक किनारे से दूसरे किनारे पर ले जाने वाली नाव की तली में जामुन की लकड़ी लगाई जाती है। सवाल यह है कि जो जामुन पेट के रोगियों के लिए एक घरेलू आयुर्वेदिक औषधि है, जिसकी लकड़ी से दांतो को कीटाणु रहित और मजबूत बनानें वाली दातुन बनती है, उसी जामुन की लकड़ी को नाव की निचली सतह पर क्यों लगाया जाता है। वह भी तब जबकि जामुन की लकड़ी बहुत कमजोर होती है। मोटी से मोटी लकड़ी को हाथ से तोड़ा जा सकता है। क्योंकि इसके प्रयोग से नदियों का पानी पीनें योग्य बना रहता है।

★बावड़ी की तलहटी में 700 साल बाद भी जामुन की लकड़ी खराब नहीं हुई…

★जामुन की लकड़ी के चमत्कारी परिणामों का प्रमाण हाल ही में मिला है। देश की राजधानी दिल्ली में स्थित निजामुद्दीन की बावड़ी की जब सफाई की गई तो उसकी तलहटी में जामुन की लकड़ी का एक स्ट्रक्चर मिला है। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के0 एन0 श्रीवास्तव जी नें बताया कि जामुन की लकड़ी के स्ट्रक्चर के ऊपर पूरी बावड़ी बनाई गई थी। शायद इसीलिए 700 साल बाद तक इस बावड़ी का पानी मीठा है और किसी भी प्रकार के कचरे और गंदगी के कारण बावड़ी के वाटर सोर्स बंद नहीं हुए। जबकि 700 साल तक इसकी किसी ने सफाई नहीं की थी।

★आपके घर में जामुन की लकड़ी का उपयोग…

★यदि आप अपनी छत पर पानी की टंकी में जामुन की लकड़ी डाल देते हैं तो आप के पानी में कभी काई नहीं जमेगी। 700 साल तक पानी का शुद्धिकरण होता रहेगा। आपके पानी में एक्स्ट्रा मिनरल्स मिलेंगे और उसका टीडीएस बैलेंस रहेगा। यानी कि जामुन हमारे खून को साफ करने के साथ-साथ नदी के पानी को भी साफ करता है और प्रकृति को भी साफ रखता है।

★कृपया हमेशा याद रखिए कि दुनियाभर के तमाम राजे रजवाड़े और वर्तमान में अरबपति रईस जो अपने स्वास्थ्य के प्रति चिंता करते हैं। जामुन की लकड़ी के बनें गिलास में पानी पीते है।

प्राकृतिक जीवन अपनाएं स्वस्थ जीवन पाएं।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथजी की पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा में भग...
23/06/2024

हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथजी की पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है। इस रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की थी। तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बिठाकर पूरे नगर का भ्रमण करवाया था और इसके बाद से इस रथयात्रा की शुरुआत हुई थी।

★जगन्नाथजी की रथ यात्रा के बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है। इसलिए हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

★800 साल पुराने इस मंदिर में भगवान कृष्ण को जगत के नाथ जगन्नाथजी के रूप में पूजा जाता है और इनके साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी विराजमान हैं। रथयात्रा में तीनों ही देवों के रथ निकलते हैं। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के लिए अलग-अलग रथ होते हैं और इन रथों को बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया से होती है। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम और बीच में बहन सुभद्रा का रथ रहता है। सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। सभी के रथ अलग-अलग रंग और ऊंचाई के होते हैं।

★भगवान बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहा जाता है और इसकी पहचान लाल और हरे रंग से होती है। वहीं सुभद्रा के रथ का नाम 'दर्पदलन' अथवा ‘पद्म रथ’ है। उनके रथ का रंग काला या नीले रंग को होता है, जिसमें लाल रंग भी होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष अथवा गरुड़ध्वज कहा जाता है, इनका रथ लाल और पीले रंग का होता है।

★रथ हमेशा नीम की लकड़ी से बनाया जाता है, क्योंकि ये औषधीय लकड़ी होने के साथ पवित्र भी मानी जाती है। हर साल बनने वाले ये रथ एक समान ऊंचाई के ही बनाए जाते हैं। इसमें भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम का रथ 45 फीट और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।

★भगवान के रथ में एक भी कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है।

★तीनों रथ के तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को 'छर पहनरा' नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और यात्रा वाले रास्ते को साफ किया जाता है।

★इस अद्भुत व दिव्य अलौकिक रथयात्रा ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ रथ को लोग खींचते हैं। जिसे रथ खींचने का सौभाग्य मिल जाता है, वह महाभाग्यशाली माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू होकर 3 कि.मी. दूर गुंडीचा मंदिर पहुँचती है। इस स्थान को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहीं पर विश्वकर्मा ने इन तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया था, अतः यह स्थान जगन्नाथ जी की जन्म स्थली भी है। यहां तीनों देव सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुनः मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वापसी की यह यात्रा बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ मंदिर पहुँचने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव-विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।

★स्कंद पुराण में वर्णित है कि जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर जगत के स्वामी जगन्नाथजी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो व्यक्ति जगन्नाथ को प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है और जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करता है उसे मोक्ष मिलता है।

★इस यात्रा के पावन पुण्य से आप सभी के जीवन में सुख, समृद्धि, सौभाग्य, यश और आरोग्य स्थापित हों।
जगन्नाथ रथ यात्रा की शुभकामनाएं💐🚩🙏

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

छुईमुई●◆●◆◆●◆एक बेहद ही शर्मीले और नाजुक पौधे छुईमुई के बारे में रोचक जानकारी......."छुईमुई" को शेम प्लांट, लाजवंती, संव...
23/06/2024

छुईमुई●◆●◆◆●◆एक बेहद ही शर्मीले और नाजुक पौधे छुईमुई के बारे में रोचक जानकारी.......

"छुईमुई" को शेम प्लांट, लाजवंती, संवेदनशील पौधा, टच मी नॉट प्लांट, स्लीपी प्लांट, एक्शन प्लांट जैसे कई नामो से जाना जाता हैं पुकारा जाता हैं। पौधे का वैज्ञानिक नाम मिमोसा पुडिका है। इसके फूल गुलाबी रंग के तथा छोटे होते हैं। पौधा परिपक्त होने पर आकार में 5 फीट की ऊँचाई तक लंबा हो सकता है।

★पौधा कब लगाये...
घर पर छुईमुई का पौधा लगाने का सबसे अच्छा समय वसंत ऋतु अर्थात फरवरी से अप्रैल माह के बीच का होता है, लेकिन यदि आप गर्म जलवायु वाले क्षेत्र में रहते हैं, तो आप अत्यधिक ठंड का मौसम छोड़कर, साल भर में इसे किसी भी समय लगा सकते हैं।

★पौधा कैसे तैयार करें....
पौधे को बीज से, कटिंग से या लेयरिंग विधि से आसानी से तैयार कियाजा सकता है। इसके बीज आप आसानी से किसी भी ई-कॉमर्स प्लेटफार्म से या पास की खाद बीज की दुकान से ले सकते हैं। आप तैयार पौधा भी किसी भी नर्सरी से लेकर आ सकते हैं।

★पौधे के लिए मिट्टी....
छुईमुई के पौधे को मिट्टी हल्की, नम और अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी चाहिए, जिसका PH 6 से 7 तक हो। आप घर पर ही बढ़िया उर्वरक वाली मिट्टी भी तैयार कर सकते हैं, इसके लिए 40% सामान्य मिट्टी, 30% वर्मी कम्पोस्ट, 20% रेत और 10% कोकोपीट को अच्छे से मिला कर मिश्रण बनायें, फिर इस पोटिंग साइल को ग्रो बैग में भरें और नमी के लिए पानी दें।

★सूर्य प्रकाश या रोशनी.....
छुईमुई का पौधा आंशिक इंडोर प्लांट है। पौधे को दिन की 8 घंटे की तेज उजाले वाली रोशनी मिलना जरूरी है। अगर कुछ घंटे धूप भी मिल जाता है तो कोई परेशानी नही है, पर अंधेरे या कम उजाले में रखने से पौधा फूल बिल्कुल भी नही देगा। छुईमुई के पौधे की अच्छी ग्रोथ के लिए 15 से 29 डिग्री सेल्सियस का तापमान आदर्श होता है।

★पानी.....
पौधे को प्रतिदिन पानी देने की आवश्यकता नही होती हैं। पर हल्की नमी पौधे को पसंद है। इस लिए नमी बनाकर रखे पर जलभराव से बचें। मिट्टी को कभी भी पूरा सूखने नहीं दे। सीमित मात्रा में ही वृद्धि के अनुसार ही पानी दे।

★खाद.....
पौधे को बढ़ने के लिए खाद की अधिक आवश्यकता नही होती हैं। इस लिए पौधा लगाने के बाद साल में 1 या 2 बार आप इसे वर्मीकम्पोस्ट या गाय के गोबर से तैयार खाद दे सकते है। बढ़ते मौसम में आप प्रत्येक 10-15 दिन के अंतर में कोई भी तरल खाद इस पौधे को दे सकतें है।

★मौसमी देखभाल.....
छुईमुई का पौधा ठंड के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। ठंडे मौसम में इसे घर के अंदर ही रखें। सर्दियों में अधिक पानी देने से बचें। तेज गर्मी से भी पौधे की रक्षा करें। पौधे की पत्तियां झुलस सकती है। पौधा सुख भी सकता है। पौधे की जड़ में महीने में 1 से 2 बार फंगीसाइड का प्रयोग जरूर करें।

★स्वास्थ लाभ.....
1) छुईमुई की जड़ स्वाद में अम्लिय तथा कठोर होती है। चरक संहिता के संधानीय एवं पुरीषसंग्रहणीय महाकषाय में तथा सुश्रुत संहिता के प्रियंग्वादि व अम्बष्ठादि गणों में इसकी गणना की गई है।

2) छुईमुई के पौधे में एंटीवायरल गुण होते हैं जो पेट के इंफेक्शन को कम करने के साथ ही पेट की कई बीमारियों से राहत देते हैं।

3) छुईमुई में एनाल्जेसिक गुण होता है, जो दर्द को कम करने का काम कर सकता है। पेट दर्द में इसके पत्तों और शहद के पेस्ट को खाली पेट उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

4) छुईमुई का पौधा डायरिया की समस्या में भी राहत पहुंचा सकता है।

5) छुईमुई के पौधे में डायबिटीज कंट्रोल करने वाले भी गुण होते हैं, जो ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करते हैं।

6) छुईमुई चेहरे पर दाने और मुंहासे से आराम देता है। पत्तियां खून को साफ करने के साथ ही पिंपल को कम करती है।

★वास्तु लाभ.....
वास्तु शास्त्र में छुईमुई के पौधे को बहुत शुभ माना जाता है। इस पौधे को अपने घर के पूर्व दिशा या ईशान कोण में लगाना सबसे ज्यादा शुभ होता है। इन दिशा में रखने से यह पौधा सौभाग्य, समृद्धि और सुरक्षा को आकर्षित करने में मदद करता है। आप इसे नियमित जल दें और इसे मुरझाने से बचाएं। पौधे की नियमित रूप से छंटाई करें और सूखी हुई पत्तियों को हटाते रहें। ऐसा करने से आपकी कुंडली से राहु दोष दूर होता है। ध्यान रखें इस पौधे के आसपास गंदगी ना रहे।

★शनि देव को प्रसन्न करने के लिए.....
छुईमुई का पौधा शनि देव को प्रिय माना जाता है। यह पौधा घर की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है। इस पौधे पर नीले रंग के फूल आते हैं और ऐसा माना जाता है शनि देव को नीला रंग बहुत प्रिय है, इसलिए छुईमुई के फूल से यदि आप शनिदेव की पूजा करते हैं तो आपके जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहती है और ये धन को आकर्षित करता है।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

नरपिशाच...और नालन्दा विश्वविद्यालय।तुर्की का सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। सारे हकीम हार गए पर...
19/06/2024

नरपिशाच...और नालन्दा विश्वविद्यालय।

तुर्की का सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। सारे हकीम हार गए परंतु बीमारी का पता नहीं चल पाया। खिलजी दिनों दिन कमजोर पड़ता गया और उसने बिस्तर पकड़ लिया। उसे लगा कि अब उसके आखिरी दिन आ गए हैं।

एक दिन उससे मिलने आए एक बुज़ुर्ग ने सलाह दी कि दूर भारत के मगध साम्राज्य में अवस्थित नालंदा महाविद्यालय के एक ज्ञानी शीलभद्र को एक बार दिखा लें, वे आपको ठीक कर देंगे। खिलजी तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मैं किसी काफ़िर के हाथ की दवा नहीं ले सकता हूँ, चाहे मर क्यों न जाऊं!!

मगर बीबी बच्चों की जिद के आगे झुक गया शीलभद्र जी तुर्की आए। खिलजी ने उनसे कहा कि दूर से ही देखो मुझे छूना मत क्योंकि तुम काफिर हो और दवा मैं लूंगा नहीं। शीलभद्र जी ने उसका चेहरा देखा, शरीर का मुआयना किया, बलगम से भरे बर्तन को देखा, सांसों के उतार चढ़ाव का अध्ययन किया और बाहर चले गए।

फिर लौटे और पूछा कि कुरान पढ़ते हैं?

खिलजी ने कहा दिन रात पढ़ते हैं!

पन्ने कैसे पलटते हैं?

उंगलियों से जीभ को छूकर सफे पलटते हैं!!

शीलभद्र जी ने खिलजी को एक कुरान भेंट किया और कहा कि आज से आप इसे पढ़ें और शीलभद्र जी वापस भारत लौट आए।

उधर दूसरे दिन से ही खिलजी की तबीयत ठीक होने लगी और एक हफ्ते में वह भला चंगा हो गया। दरअसल शीलभद्र जी ने कुरान के पन्नों पर दवा लगा दी थी जिसे उंगलियों से जीभ तक पढ़ने के दौरान पहुंचाने का अनोखा तरीका अपनाया गया था।

खिलजी अचंभित था मगर उससे भी ज्यादा ईर्ष्या और जलन से मरा जा रहा था कि आखिर एक काफिर ईमानवालों से ज्यादा काबिल कैसे हो गया?

अगले ही साल 1192 में मोहम्मद गोरी उसने सेना तैयार की और जा पहुंचा नालंदा महाविद्यालय मगध क्षेत्र। पूरी दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञान और विज्ञान का केंद्र। जहां 10000 छात्र और 1000 शिक्षक एक बड़े परिसर में रहते थे। जहां एक तीन मंजिला इमारत में विशालकाय पुस्तकालय था, जिसमें एक करोड़ पुस्तकें, पांडुलिपियां एवं ग्रंथ थे।

खिलजी जब वहां पहूँचा तो शिक्षक और छात्र उसके स्वागत में बाहर आए, क्योंकि उन्हें लगा कि वह कृतज्ञता व्यक्त करने आया है।

खिलजी ने उन्हें देखा और मुस्कुराया और तलवार से भिक्षु श्रेष्ठ की गर्दन काट दी (क्योंकि वह पूरी तैयारी के साथ आया था)। फिर हजारों छात्र और शिक्षक गाजर मूली की तरह काट डाले गए (क्योंकि कि वह सब अचानक हुए हमले से अनभिज्ञ थे)। खिलजी ने फिर ज्ञान विज्ञान के केंद्र पुस्तकालय में आग लगा दी। कहा जाता है कि पूरे तीन महीने तक पुस्तकें जलती रहीं।

खिलजी चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि तुम काफिरों की हिम्मत कैसे हुई इतनी पुस्तकें पांडुलिपियां इकट्ठा करने की? बस एक दीन रहेगा धरती पर बाकी सब को नष्ट कर दूंगा।

पूरे नालंदा को तहस नहस कर जब वह लौटा तो रास्ते में विक्रम शिला विश्वविद्यालय को भी जलाते हुए लौटा। मगध क्षेत्र के बाहर बंगाल में वह रूक गया और वहां खिलजी साम्राज्य की स्थापना की।

जब वह लद्दाख क्षेत्र होते हुए तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था तभी एक रात उसके एक कमांडर ने उसकी निद्रा में हत्या कर दी। आज भी बंगाल के पश्चिमी दिनाजपुर में उसकी कब्र है जहां उसे दफनाया गया था।

और सबसे हैरत की बात है कि उसी दुर्दांत हत्यारे के नाम पर बिहार में बख्तियारपुर नामक जगह है जहां रेलवे जंक्शन भी है जहां से नालंदा की ट्रेन जाती है।

यह थी एक भारतीय बौद्ध भिक्षु शीलभद्र की शीलता, जिन्होंने तुर्की तक जाकर तथा दुत्कारे जाने के पश्चात भी एक शत्रु की प्राण रक्षा अपने चिकित्सकीय ज्ञान व बुद्धि कौशल से की।

बदले में क्या मिला?

शांतिप्रिय समुदाय की एहसान फरामोशी, प्राण, समाज व संस्कृति पर घात!

दुर्भाग्यवश तबसे अब तक कुछ नहीं बदला। हम आज भी उस क्रूर विदेशी आक्रांता के नाम पर बसाये गये शहर का नाम तक नहीं बदल सके।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

*पत्तल,समाज और हमारा स्वास्थ्य*जिस पर विचार करना हमारा सामाजिक कर्तव्य है।एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर ...
18/06/2024

*पत्तल,समाज और हमारा स्वास्थ्य*

जिस पर विचार करना हमारा सामाजिक कर्तव्य है।

एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति, इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था एक समय तक रहा, कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर पूरे भारत वर्ष में परोसा जाता था।
ये प्रथा आज भी हमारे हिमाचल प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में आज भी जारी है, परंतु आज आधुनिकता ने इसे कई क्षेत्रों में खत्म करना शुरू कर दिया है और उसकी जगह पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभाव देने वाले लैमिनेटेड कागज तथा प्लास्टिक से बनी पत्तलों ने ले लिया है जो आज के समय में बहुत ज्यादा घातक है।
पत्तल जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी आधुनिकता के युग ने गुमनाम जैसी कर दी।
क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?
नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नहीं सकती थी।
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है? लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है।
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए। जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए। पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है। केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है तथा मां लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त करता है।
इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है।
हमारे हिमाचल प्रदेश में तूर नामक बेल के पत्तों से पत्तल बनाई जाती है, जो औषधीय गुणों के साथ अत्यंत शुभ मानी जाती है।
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है।
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है।
पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है|
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है।

अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा।
डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी, नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा।

जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।

सबसे बड़ी बात पत्तले, डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है।

ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई मुकाबला नही है।
हमारी वैदिक संस्कृति विश्व में सबसे सटीक शास्त्रोक्त एवं ज्ञान से परिपूर्ण है एतएव अपनी संस्कृति भी सुरक्षित रखें और अपने समाज का भी उत्थान करें।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

एस्टोनिया के बल्लेबाज साहिल चौहान ने टी20 इंटरनेशनल (T20I) में सबसे तेज शतक ठोकने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। इस बल्...
18/06/2024

एस्टोनिया के बल्लेबाज साहिल चौहान ने टी20 इंटरनेशनल (T20I) में सबसे तेज शतक ठोकने का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। इस बल्लेबाज ने सोमवार को साइप्रस के खिलाफ खेलते हुए महज 27 बॉल पर ही शतक ठोक दिया। उन्होंने यहां 41 बॉल की अपनी पारी में नाबाद 144 रन बनाए, जिसमें 18 छक्के और 6 चौके शामिल थे।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी केरल की वायनाड लोकसभा सीट से इस्तीफा दे सकते हैं और रायबरेली से सांसद बने रहेंगे। एबीपी न्यूज़...
17/06/2024

कांग्रेस नेता राहुल गांधी केरल की वायनाड लोकसभा सीट से इस्तीफा दे सकते हैं और रायबरेली से सांसद बने रहेंगे। एबीपी न्यूज़ को सूत्रों ने ये जानकारी सोमवार (17 जून, 2024) को दी। सूत्रों ने आगे बताया कि पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने को लेकर फिलहाल कोई चर्चा नहीं हुई है। दरअसल, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस लोकसभा चुनाव में वायनाड और रायबरेली सीट से जीत दर्ज की।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~माघ (जनवरी-फ़रवरी) – इस महीने में भी आप गरम और गरिष्ठ भोजन का ...
15/06/2024

आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार
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माघ (जनवरी-फ़रवरी) – इस महीने में भी आप गरम और गरिष्ठ भोजन का इस्तेमाल कर सकते है। घी, नए अन्न, गौंद के लड्डू आदि का प्रयोग कर सकते है।

चैत्र ( मार्च-अप्रैल) – इस महीने में गुड का सेवन करे क्योकि गुड आपके रक्त संचार और रक्त को शुद्ध करता है एवं कई बीमारियों से भी बचाता है। चैत्र के महीने में नित्य नीम की 4 – 5 कोमल पतियों का उपयोग भी करना चाहिए इससे आप इस महीने के सभी दोषों से बच सकते है। नीम की पतियों को चबाने से शरीर में स्थित दोष शरीर से हटते है।

वैशाख (अप्रैल – मई)- वैशाख महीने में गर्मी की शुरुआत हो जाती है। बेल पत्र का इस्तेमाल इस महीने में अवश्य करना चाहिए जो आपको स्वस्थ रखेगा। वैशाख के महीने में तेल का उपयोग बिल्कुल न करे क्योकि इससे आपका शरीर अस्वस्थ हो सकता है।

ज्येष्ठ (मई-जून) – भारत में इस महीने में सबसे अधिक गर्मी होती है। ज्येष्ठ के महीने में दोपहर में सोना स्वास्थ्य वर्द्धक होता है , ठंडी छाछ , लस्सी, ज्यूस और अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। बासी खाना, गरिष्ठ भोजन एवं गर्म चीजो का सेवन न करे। इनके प्रयोग से आपका शरीर रोग ग्रस्त हो सकता है।

अषाढ़ (जून-जुलाई) – आषाढ़ के महीने में आम , पुराने गेंहू, सत्तु , जौ, भात, खीर, ठन्डे पदार्थ , ककड़ी, पलवल, करेला, बथुआ आदि का उपयोग करे व आषाढ़ के महीने में भी गर्म प्रकृति की चीजों का प्रयोग करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

श्रावण (जूलाई-अगस्त) – श्रावण के महीने में हरड का इस्तेमाल करना चाहिए। श्रावण में हरी सब्जियों का त्याग करे एव दूध का इस्तेमाल भी कम करे। भोजन की मात्रा भी कम ले – पुराने चावल, पुराने गेंहू, खिचड़ी, दही एवं हलके सुपाच्य भोजन को अपनाएं।

भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) – इस महीने में हलके सुपाच्य भोजन का इस्तेमाल कर वर्षा का मौसम् होने के कारण आपकी जठराग्नि भी मंद होती है इसलिए भोजन सुपाच्य ग्रहण करे। इस महीने में चिता औषधि का सेवन करना चाहिए।

आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) – इस महीने में दूध , घी, गुड़ , नारियल, मुन्नका, गोभी आदि का सेवन कर सकते है। ये गरिष्ठ भोजन है लेकिन फिर भी इस महीने में पच जाते है क्योकि इस महीने में हमारी जठराग्नि तेज होती है।

कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) – कार्तिक महीने में गरम दूध, गुड, घी, शक्कर, मुली आदि का उपयोग करे। ठंडे पेय पदार्थो का प्रयोग छोड़ दे। छाछ, लस्सी, ठंडा दही, ठंडा फ्रूट ज्यूस आदि का सेवन न करे।

अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) – इस महीने में ठंडी और अधिक गरम वस्तुओ का प्रयोग न करे।

पौष (दिसम्बर-जनवरी) – इस ऋतू में दूध, खोया एवं खोये से बने पदार्थ, गौंद के लाडू, गुड़, तिल, घी, आलू, आंवला आदि का प्रयोग करे, ये पदार्थ आपके शरीर को स्वास्थ्य देंगे। ठन्डे पदार्थ, पुराना अन्न, मोठ, कटु और रुक्ष भोजन का उपयोग न करे।

फाल्गुन (फरवरी-मार्च) – इस महीने में गुड का उपयोग करे। सुबह के समय योग एवं स्नान का नियम बना ले। चने का उपयोग न करे।

@देवभूमि टाइम्स,हिमाचल प्रदेश।

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