Journalist Satyadev Bhardwaj

Journalist Satyadev Bhardwaj Emphasizing on social issues, delineating beauty of nature in best possible ways...

03/07/2024
19/06/2024

पानी चुप है

दुनिया भर में आग लगी है,
पानी चुप है।

मुँह पर पट्टी बाँधे हैं
ये सारी झीलें
झरनों के हाथों में
ठुकी हुई हैं कीलें
नदियाँ चुप हैं,
बादल-सा सैलानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।

जिसको कोहरा समझा
थी बारूदी आँधी
सर्द हवा ने भी
अगनी की गठरी बाँधी
सावन चुप है,
वर्षा की पटरानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।

बैठे हैं सब ताल-तलइयाँ
आँखें मूँदें
सूख गईं आँखों में भी
आँसू की बूँदें
और कहें क्या
सागर-सा भी दानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।

सारे जग में आग लगी है
जाने कब की
ऊँच-नीच की
पूरब-पश्चिम की, मज़हब की
फिर भी हर विज्ञानी
ज्ञानी-ध्यानी चुप है।
दुनिया भर में आग लगी है, पानी चुप है।।

(डॉ. कुँअर बेचैन)

भयावाह सूखे से लहराते सदाबहार दरख्तों के अस्तित्व पर संकट गहराया! फलदार पौधों की प्रजनन क्षमता लगी घटने, पर्यावरण का शुद...
13/06/2024

भयावाह सूखे से लहराते सदाबहार दरख्तों के अस्तित्व पर संकट गहराया!
फलदार पौधों की प्रजनन क्षमता लगी घटने, पर्यावरण का शुद्ध ढांचा लगा बिखरने, बरसात व बर्फबारी का दायरा लगा सिमटने, सरकार की अनिद्रा बनी बड़ा कारण, आमजन की सहभागिता ना होने से बढी चिंता।
सत्यदेव भारद्वाज, शिमला से विशेष रिपोर्ट के साथ।
प्रकृति प्रदत्त पर्यावरण अपनी सुचिता के मार्ग से भटक गया है। मलिनता के घेरे में शुद्ध पर्यावरण की परिभाषा बदल गई है मानव जनित जटिल परिस्थितियों ने सुखद स्थितियां भयावाह बना दी है। लहराते सदाबहार वृक्ष अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। फलदार पौधे अपनी प्रजनन क्षमता खोने लगे हैं। साल दर साल उत्पादन क्षमता में अप्रत्याशित गिरावट देखी जाने लगी है। अत्यधिक सूखे के कारण वातावरण में खौफनाक बदलाव देखने को मिल रहा है।
बर्फबारी व बरसात का दायरा सीमित होने से बंजर जमीन का कारवां बढने लगा है। उपजाऊ जमीन की क्षरण प्रवृत्ति से हरियाली की हरित क्रांति विलुप्त होने लगी है।
हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्य में इस तरह की जटिल परिस्थितियाँ परेशान करने वाली है। बारह मास सुगंधित व मंद-मंद बहने वाली बयार में अब वह ताजगी नहीं रही है। जिसकी तलाश व तरोताजा अहसास के चरम बिंदु तक पहुंचने के लिए देश-विदेश के सैलानी दौड़े चले आते थे।
लाखों की तादाद में सैलानी जरूर आ रहे हैं। मगर मायूस मनोस्थिति के साथ उल्टे पांव वापस जाने को बाध्य हो रहे हैं। पर्यटन कारोबार की आपधापी में करोड़ों की तादाद में आने वाले सैलानी अब स्थानीय निवासियों का बोझ बढाने लगे हैं। उसी संख्याबल व रफ्तार में गाड़ियों के काफिले गुजरने से शुद्ध पर्यावरण का ढांचा तहस नहस होकर रह गया है।कार्बनडाइऑक्साइड सहित अन्य घातक गैसों के उत्सर्जन से निर्धारित स्वच्छ पर्यावरण के मानक बिखर कर रह गए हैं।
सरकारों की असंवेदनशीलता के चलते जल, जंगल और जमीन के उपजाऊ रास्ते संकरे हो चले हैं। लॉलीपॉप के घोड़े पर सवार सरकार लोगों को लुभाने के लिए गैर-जिम्मेदार फैंसलों को लेने से बाज नहीं आ रही है। जिससे जमीन व लोगों से जुड़े बुनियादी मसले रसातल में पहुंच रहे हैं। हैरानी जनक पहलू यह भी है कि अधिकांश लोग इन गैर-जरूरी लॉलीपॉप की आड़ में प्रमुख मुद्दों से इतर अपनी पर्यावरण संबंधी जिम्मेदारी को बिसरा बैठे हैं और जब कभी प्रकृति बेरहम तांडव मचाने पर उतारू हो जाती है। तब खाली चिल्लाने के सिवाय हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के सिवाय इसके प्रति मुखर होने से पिछली पंक्ति में बैठी नजर आती है और सरकार व उनके छुटभैया नेता इन्हीं बातों का फायदा उठाकर लॉलीपॉप का सहारा लेकर ना केवल आम जनता को उल्लू बना रही है। बल्कि अपने दल के लिए वोट हथियाने का अपना उल्लू भी सीधा कर रही है।
बहरहाल आमजन स्वच्छ पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं है। उस पर हमारे द्वारा चुनी हुई सरकारें इस दिशा में अचेत है। सचेत और अचेत के इन्हीं दो शब्दों के बीच ग्लोबल वार्मिंग की वार्निंग अब डराने लगी है और हम सबको मिलकर इस ओर गहन चिंतन करने की जरूरत है। वहीं सरकार को भी इस दिशा में गंभीरता के साथ आगे बढने की नितांत आवश्यकता है। अन्यथा आने वाला समय बहुत सारे व बडे संकटों के साथ हम सब का स्वागत करने के लिए तैयार बैठा है।
प्रस्तुति एवं विशेष रिपोर्ट:- सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांक:-13-06-2024.

Hobby of traveling🌄
18/02/2024

Hobby of traveling🌄

Some glance of "Neev" utsav  (Jubbal Nawar kotkhai association) at historical Gaiety theatre, Shimla.
01/01/2024

Some glance of "Neev" utsav (Jubbal Nawar kotkhai association) at historical Gaiety theatre, Shimla.

Pic in beautiful garden.
03/12/2023

Pic in beautiful garden.

कुदरत की कारीगरी का भी जवाब नहीं। पल भर में ये जमीन पर ला पटकती है। फिर पल भर में ही ये फलक पर पहुंचा देती है। अगर ये दर...
14/09/2023

कुदरत की कारीगरी का भी जवाब नहीं। पल भर में ये जमीन पर ला पटकती है। फिर पल भर में ही ये फलक पर पहुंचा देती है। अगर ये दर्द भी देती है। तो मरहम का रास्ता भी यही दिखलाती है।
अथाह पीड़ा से इतर परिश्रम की बैसाखियों के सहारे जब परिणाम आते हैं। तो वह अपार हर्षवर्धक होते हैं। लाल सेब की यही लालिमा जब मंद पडने लगी थी। तो अनायास ही अंधकार का आवरण गहराने लगा था।
तब इसी अंधकार रूपी घेरे को चीरते हुए सेब के बागों में लाल-लाल रॉयल सेब के ऐसे सुखद दर्शन दिल को बाग बाग कर देते हैं।
अपने सेब के बाग की परिक्रमा के दौरान निकले सुर्ख लाल सेब की चमक के सुदंर चित्र।
प्रस्तुति:-सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांक:-14-09-2023.

प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर अर्थात पीजीआर ने सेब की व्यापक पैदावार को गर्त में धकेला!गुणवत्ता की प्राकृतिक आभा को मंद किया, बा...
17/08/2023

प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर अर्थात पीजीआर ने सेब की व्यापक पैदावार को गर्त में धकेला!
गुणवत्ता की प्राकृतिक आभा को मंद किया, बागीचों में कैंकर सरीखी बीमारी को जन्म दिया, असमय पतझड़ सहित अन्य गंभीर बीमारियों का हमला हुआ तेज, कोई भी प्रभावी रसायनिक काम नहीं आ रहा, इसके छिड़काव पर उठे सवालिया निशान, सरकार इसे बंद करने के जारी करें कड़े फरमान.
सत्यदेव भारद्वाज, शिमला से विशेष रिपोर्ट के साथ।
हिमाचल प्रदेश में सेब की लालिमा धीरे-धीरे मंद पडने लगी है। गलत कार्य पद्धति से बागवानी क्षेत्र सिकुड़ने लगा है। अंधाधुंध रसायनों के छिड़काव से परिस्थितियाँ बेहद ही जटिल हो चली है। प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक दबाव से इसकी उत्पादन क्षमता तक सिमटने लगी है। प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर यानी पीजीआर की काली नजर सेब की निम्न स्तरीय पैदावार में जिम्मेदार मानी जा रही है। जो सेब उत्पादन को निम्न स्तर तक ले जाने में अपनी अहम भूमिका निभा रही है।
बेहतर विपणन प्रबंधन से पीजीआर अब हर बागों में धड़ल्ले से उड़ेला जा रहा है। वैध या फिर अवैध पीजीआर ने एक दो सालों में तो बेहतर परिणाम दिए। मगर उसके बाद के सालों में सेब की स्वस्थ सांसे उखड़ने लगी है। सेब की उत्पादन क्षमता तो डांवाडोल हो चुकी है। उस पर इसकी गुणवत्ता पर भी सीधा असर देखने को मिल रहा है। लिहाजा पाँच हजार करोड़ की सेब अर्थव्यवस्था का एकाएक दम फूलने लगा है। इसकी अँधी आँधी ने पूरे बागवानी क्षेत्र को तहस-नहस करके रख दिया है।
अब जरा प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर यानी पीजीआर के गुण दोष पर बात की जाए। तो बागवानी विश्वविद्यालय नौणी और प्रदेश बागवानी विभाग सेब पर इसके छिड़काव की इजाजत कतई नहीं देता। एक अन्य केंद्रीय बोर्ड जो कि केंद्रीय इंसेंकटिसाइड बोर्ड के नाम से जाना जाता है। उसके पास भी ऐसा कोई उत्पाद पंजीकृत नहीं है। जाहिर सी बात है कि इसकी सिफारिश वही लोग करेंगे। जिन्हें कुछ बड़ी कंपनियां बड़ी रकम के तहत उनके उत्पाद के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी सौंपते हैं और इनमें से कई बड़े कथित प्रगतिशील बागवान भी हो सकते हैं। जो अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल कर बागवानों को कंगाली के द्वार पर पहुंचा रहे हैं और बागवानी क्षेत्र के भविष्य को भी गर्त में डाल रहे हैं।
पड़ताल की अगली कड़ी में विशेषज्ञों का स्पष्ट मत है कि इसका इस्तेमाल एक बार फसल देने के लिए होता है। उदाहरण के तौर पर सब्जी वगैरह में। जिसके पौधे हर साल तैयार करने पड़ते हैं। सीधे शब्दों में कहें। तो जो पौधा एक बार फसल देने के बाद एक साल के भीतर ही खत्म हो जाता है। उनमें पीजीआर का छिड़काव उपयोगी कहा जा सकता है। दूसरी तरफ सेब एक बहु वर्षीय पौधा है। उस सूरत में सेब पर पीजीआर का छिड़काव घातक माना गया है।
एक-दो साल में इस के छिड़काव को छोड़ दें। तो उसके बाद के सालों में यह नुकसान पहुंचाना आरंभ कर देता है। सिर्फ उत्पादन क्षमता ही प्रभावित नहीं करता। अलबत्ता गुणवत्ता भी पूरी तरह से निम्न स्तर तक पहुंच जाती है। हालांकि, बागवानी विभाग रसायन विक्रेताओं के खिलाफ कीटनाशक अधिनियम की धारा 29 के तहत कार्यवाही अमल में ला सकता है। जिसमें ऐसे रसायन विक्रेताओं के लाइसेंस तुरंत रद्द किए जा सकते हैं।
यह भी काबिले गौर है कि एक बागवान लॉबी ऐसी भी है। जो पीजीआर की सिफारिश बेझिझक कर रही है। उनका तर्क है कि गुलाबी कली अवस्था में सेब पर इसके छिड़काव से गुणवत्ता व उत्पादन दोनों में गजब की बढ़ोतरी होती है और सेब लंबोत्रा व पंचमुखी बनता है। जबकि, बागवानी विशेषज्ञ इसे सिरे से खारिज करते हैं। जो इसके छिड़काव को बहुत ही घातक मानते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो पीजीआर के खुले उपयोग से बागवानी क्षेत्र का बेड़ा गर्क होना तय है। जब यह लंबी अवधि के उपयोग में बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है और सेब के पौधे को कैंकर सरीखी बीमारी में लाने की क्षमता रखता है। उस सूरत में इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। अन्यथा, यह पूरे सेब बाहुल क्षेत्र को तहस-नहस करके रख देगा। जिसका खमियाजा सरकार को ही उठाना पड़ेगा।
इसलिए बिना देर किए आने वाले सालों में पीजीआर को सेब के बागों में पूरी तरह से प्रतिबंधत करने की जरूरत है। ताकि, हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती को समय रहते बचाया जा सके।
प्रस्तुति एवं विशेष रिपोर्टः- सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांकः-17-08-2023.

हिमाचल का लाल सेब सियासत की मंडी में औंधे मुंह गिरा! व्यापारियों की मनमानी पड़ी भारी, सरकारी कायदे नियम हुए धराशायी, कम ...
10/08/2023

हिमाचल का लाल सेब सियासत की मंडी में औंधे मुंह गिरा!
व्यापारियों की मनमानी पड़ी भारी, सरकारी कायदे नियम हुए धराशायी, कम पैदावार पर भी बडे सवाल उभरे, किलो की चक्की में सेब की रंगत फीकी, कई सवालों के घेरे में सेब के अस्तित्व पर सवाल.
सत्यदेव भारद्वाज शिमला से विशेष रिपोर्ट के साथ।
मौसम की प्रतिकूल मार के साथ आधुनिक बागवानी के सीधे प्रहार ने बागवानी क्षेत्र की चूलें हिला कर रख दी है। सेब उत्पादन में अप्रत्याशित गिरावट के घेरे में गुणवत्ता का ताना-बाना बिखर कर रह गया है। सैकड़ों सेब प्रजातियों के शोर में कई प्रजातियों के ढेर होने का खतरा भी मंडराने लगा है।
अस्तित्व के प्रश्नवाचक में सेब की खेती मौजूदा दौर में बड़े विकट संकट से गुजर रही है। उस पर सेब के पैरोकार राजनीति की ऊंची नीची भूल भुलैया में फँस कर रह गए हैं। बुलंद आवाज का दम भरने वाले अब ये लोग धरने, घेराव तक ही सीमित होकर रह गए हैं। हालांकि, प्रदेश के भीतर निजाम बदल चुका है। व्यवस्था परिवर्तन की सीधी सपाट लाइन में कांग्रेस की नई सरकार सत्ता के सिंहासन पर काबिज है। कुछ करने की चाह में सरकार ने बागवानी क्षेत्र में कई क्रांतिकारी कदम उठाने का साहस जरूर दिखाया था। मगर, व्यापारियों की चालबाजी सहित विपक्ष की नकारात्मक भूमिका ने बागवानों को बेसहारा बना कर छोड़ दिया है। आपदा की आफत में सेब पर किंतु परंतु का राग बौरा गया है। चिल्लम-पौ का आंदोलन केवल मात्र सोशल नेटवर्किंग साइटों पर ही दहाड़ मार रहा है। सभी शेखचिल्ली यहां पर चिल्लाकर-चिल्लाकर खुद को बागवान हितैषी होने का सर्टिफिकेट मुफ्त में ही बांट रहे हैं। असल में धरातल की धरा पर बड़े व कडे फैसले लेने से हर कोई बच रहा है।
खैर, इससे इतर अगर सेब बागवानी के कुछ आंकड़ों पर गौर करें। तो सन 1950-51 में सेब की खेती का क्षेत्र 450 हेक्टेयर के आसपास था। जो 2021-22 में बढ़कर 1,1,5016 हेक्टेयर हो गया है। मगर उस लिहाज से सेब की पैदावार में रिकॉर्ड इजाफा नहीं हो पाया है। यह दीगर है कि 2010-11 में 892 लाख मीट्रिक टन पैदावार से अधिक की वार्षिक वृद्धि जरूर हुई। मगर, इसके बाद के सालों में इन आंकड़ों से पार सेब की पैदावार कभी भी आगे नहीं जा पाई है। गौर करने वाली बात यह है कि राज्य में कुल फल उत्पादन का 50 फीसदी हिस्सा सेब का है। कुल मिलाकर आधे प्रदेश में इसकी खेती की जाती है।
अब जरा सेब के पिछले 13 सालों के सफर में इसकी सालाना पैदावार पर भी नजर डाली जाए। तो 2010 में 5.11 करोड, 2011 में 1.36 करोड़, 2012 में 1.84 करोड़, 2013 में 3.69 करोड, 2014 में 2.80 करोड़, 2015 में 3.88 करोड, 2016 में 2.40 करोड, 2017 में 2.8 करोड़, 2018 में 1.65 करोड, 2019 में 3.24 करोड, 2020 में 2.84 करोड, 2021 में 3.43 करोड़, 2022 में 3.36 करोड सेब की पैदावार हुई है। मगर बावजूद इसके अगर इन तमाम सालों पर गौर करें। तो अभी तक साल 2010-11 को छोड़कर बाकी उपरोक्त वर्षों में बंपर सेब का रिकॉर्ड उत्पादन नहीं हो पाया है। ना ही इससे आगे सेब पैदावार का आंकड़ा जा पाया है।
ऐसे में अगर मौसम की प्रतिकूलता को छोड़ दें, तो कई अन्य गंभीर कारणों से सेब की पैदावार अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। इसके लिए जहां तमाम सरकारें दोषी है। वहीं दूसरी पंक्ति में इसके पैरोकार व खुद बागवान भी उतने ही दोषी है। जो सार्वजनिक मंच पर सामूहिक गर्जना में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। सवाल इस संदर्भ में बड़े और गंभीर है। जिसका उत्तर तलाशना सभी की साझा जिम्मेदारी बनती है। अन्यथा, अगले कुछ सालों में सेब अपनी आन बान और शान का रुतबा हमेशा हमेशा के लिए खो देगा।
प्रस्तुति एवं विशेष रिपोर्ट:-सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांकः-10-08-2023.

दूर तक छाए थे बादल...!!बरसात के रौद्र रूप की अथाह पीड़ा में पूरा हिमाचल! काँपते लबों की खामोशी में गहरी घुटन का दर्द, अर...
26/07/2023

दूर तक छाए थे बादल...!!
बरसात के रौद्र रूप की अथाह पीड़ा में पूरा हिमाचल!
काँपते लबों की खामोशी में गहरी घुटन का दर्द, अरबों की चल-अचल संपत्ति हो गई खाक.
सत्यदेव भारद्वाज, शिमला से विशेष रिपोर्ट के साथ।
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया ना था। इस तरह बारिश का मौसम कभी आया ना था..। अनाम शायर की ये शायराना पंक्तियां अबकी मूसलाधार बरसात पर व्यवहारिक लगती है। भयावह बारिश थम नहीं रही। निरंतर भय दिखा रही है। नदी-नाले पूरे उफान पर है।
नदियाँ कुलांचे भर रही है और नाले रौद्र रूप दिखा रहे हैं। अनगिनत खेतों-खलियानों, दुकानों, मकानों पर बारिश अपना कहर बरपा रही है।
निजी संपत्ति के साथ-साथ सार्वजनिक संपदा जमींदोज हो रही है। हरे-भरे जंगलों में हजारों सदाबहार पेड़ धराशायी है। भू-धँसाव के अनेकों दृश्य दहला रहे हैं।
बाग-बगीचों में हजारों पौधे औंधे मुंह गिरे पड़े हैं। किसान-बागवान रुआँसे हैं। गरीब वर्ग गहरी पीड़ा में है। मध्यम तबका असमंजस की स्थिति में है और अमीर वर्ग मायूसी के घेरे में घिरा है।
हालांकि, शासन-प्रशासन पूरे प्रदेश भर में अपनी संपूर्ण ताकत के साथ मूलभूत सुविधाओं को बहाल करने की कोशिशों में लगा हुआ है। मगर बरसात है कि रह-रहकर सभी तरह के प्रयासों पर पानी फेर रही है।
बहराल मौसम के बिगड़ैल चक्र ने अरबों की चल,अचल संपत्ति के साथ-साथ प्रदेश में विकास की स्वप्निल उड़ान को एकाएक थाम सा लिया है। जिसकी भरपाई आने वाले कई सालों तक होनी मुश्किल दिख रही है। विशेष प्रस्तुति:-सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांक:-26-07-2023.

28/05/2023

सादगी के सफर में सुहाना सफरनामा हो। खुशनुमा मंजर में खुशी का तराना हो।
उस पर छुक-छुक करती रेलगाड़ी का अंदाज अल्हड़ मस्ताना हो। तो फिर क्या कहिएगा? जाहिर तौर पर कौतूहल तो पैदा होगा ही। अनायास ही रोमांच की सीमा भी बढ़ जाएगी। जब यही रोमांच रोमांचकारी सफर में कालका से शिमला के मध्य कुलाँचे मारे। तो सहज ही समझा जा सकता है कि ये शिमला से कालका के बीच चलने वाली छुक-छुक करती रेलगाड़ी की विस्मयकारी यात्रा है। जो सर्पिली डगर के साथ-साथ सुरम्य वादियों को पार करते हुए आगे बढ़ती जाती है और सही अर्थों में रोमांच के उस चरम पर ले जाती है। जहां से गुजरते हुए हर लम्हा यादगार बनकर यादों की गुड बुक में कैद होकर रह जाता है।
विशेष प्रस्तुति:-✍️सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांक:-28-05-2023.

सेब की हरियाली में पोषक तत्वों के छिडकाव ने दिखाई बदहाली! अच्छी फसल के नाम पर पीजीआर के बाद पोषक तत्वों की आई बाढ़, कई न...
14/04/2023

सेब की हरियाली में पोषक तत्वों के छिडकाव ने दिखाई बदहाली!
अच्छी फसल के नाम पर पीजीआर के बाद पोषक तत्वों की आई बाढ़, कई नामी-गिरामी कंपनियों के लालच ने बागवानों का किया हाल बेहाल, कुछ तथाकथित विशेषज्ञ बागवानों के आधारहीन नुस्खों से बढी मुसीबत, सरकार को ठोस पहल करने की जरूरत.
सत्यदेव भारद्वाज, शिमला से "विशेष रिपोर्ट" के साथ।
हिमाचल प्रदेश के लहलाते सेब के बागों में सुगंधित फूलों के आने-जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। हरियाली के दामन में सेब के पौधों पर सुगंधित फूल तमाम फिजा को महका रहे हैं। महकते-लहकते फूलों का श्रृंखलाबद्ध समाँ देखते ही बनता है। अब इन सफेद फूलों के दरमियां ऐसे कुछ तथाकथित विशेषज्ञ बागवान भी अपने आधारहीन तर्कों के साथ प्रकट हो गए हैं। जो अपनी उलूल-जलूल प्रेक्टिस के माध्यम से बागवानों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं और ज्यादातर बागवान इनके तर्कहीन ज्ञान को सही मानकर अपनी बागवानी को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। तकरीबन सभी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर ये तथाकथित विशेषज्ञ अपनी वाहियात प्रेक्टिस का हवाला देकर बागवानी क्षेत्र की चूले हिलाने में लगे हुए हैं।
सभी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर इनका ज्ञान चालू है। दो-चार प्रगतिशील बागवानों की प्रेक्टिस को छोड़ दें, तो ज्यादातर ज्ञान बांटने वाले स्वयंभू बागवान विशेषज्ञ पूरे पाँच हजार करोड़ की आर्थिकी को गर्त में धकेलने की कोशिशों में लगे हुए है। गौरतलब पहलू यह है कि अच्छी फसल के सब्जबाग दिखाकर पीजीआर के बाद अब पोषक तत्वों की आड में बागवानों को बेवकूफ बनाया जा रहा है और इसका गोरखधंधा बडी तेजी से चल निकला है। यह गोरखधंधा यूं ही नहीं पनपा है। अपितु इसके पीछे कई छोटी-बडी दवाईयाँ बनाने वालों की सीधी संलिप्तता भी सामने आई है। जो अपने ऐरे-गैरे उत्पाद बनाकर बागवानों की हालत पतली कर रही है और सेब पौधों की उत्पादन क्षमता पर भी विपरीत असर डाल रही हैं।
पोषक तत्वों की इस अँधी आँधी में बागवान बिना-सोचे समझे इन्हें अपने पौधों पर बराबर उडेल रहे हैं। छोटे से लेकर बड़े बागवान तक पोषक तत्वों की इस छिडकाव प्रणाली के चक्रव्यूह में घिर गए हैं। साथ ही खुद के बागीचों को बडे जोखिम में डाल रहे हैं। कुछ दवाईयाँ बनाने वाली कंपनियां कई बड़े बागवानों के साथ सांठगांठ करके पूरे बागवानी क्षेत्र को बर्बादी के द्वार पर ले जाने का कुकृत्य कर रही है। देखने में आया है कि कुछ साल पहले तक इन पोषक तत्वों को पेड़ों पर उड़ेलने का दायरा सीमित था। मगर अब सैकड़ों दवा कंपनियों की लालच भरी रणनीति के तहत इसका दायरा बडा व्यापक हो चला है। जिसमें कई बड़े बागवान इनकी इस मुहिम को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।
राज्य सरकार की अगवाई में नौणी स्थित उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय सहित हर जिले व ब्लॉक स्तर पर बागवानी विशेषज्ञों की बड़ी फौज कार्यरत हैं। जो सिर्फ और सिर्फ सेब व अन्य फलों से संबंधित विशेष डिग्री धारक है। जिनके पास लम्बे अनुसंधान का अनुभव प्राप्त है तथा जिनकी देखरेख में बागवानी क्षेत्र का व्यापक सुधार एवं प्रसार संभव है। मगर इन माहिर विशेषज्ञ से ऊपर जिस तरह से स्वयं कुछ तथाकथित बागवान विशेषज्ञ अपनी प्रेक्टिस के नाम पर बागवानों को गुमराह कर रहे हैं। वह बेहद ही चिंताजनक पहलू है।
इनके साथ ही ये कुछ कंपनियां हर साल बागवानी क्षेत्र को तहस-नहस करने के लिए कई तरह के उल्टे सीधे तरीके इजाद करने में लगी हुई है। जिनका मकसद खुद के लिए तगड़ा लाभ कमाना भर है। वैसे भी सरकार द्वारा इसके मानद डॉक्टर (विशेषज्ञ) सभी तरह के पोषक तत्वों को जमीन के माध्यम से ज्यादा कारगर मानते हैं। जबकि छिड़काव प्रणाली से लाभ कम नुकसान ज्यादा आँका गया है।
हालांकि प्रदेश के भीतर कांग्रेस की सुक्खू सरकार बागवानों के लिए कुछ बेहतर व प्रभावी कदम उठा रही है। इसलिए वे इस गंभीर विषय पर भी गंभीरता से चितन-मनन करे और ऐसी लूट-कसूट करने वाली कंपनियों सहित इनके साथ मिलीभगत में शामिल लोगों पर कड़ी कार्रवाई करें। इसके अलावा सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अनर्गल प्रलाप करने वालों पर भी तुरंत प्रभाव से रोक लगाएं। ताकि राज्य में फलते-फूलते बागवानी क्षेत्र के कारोबार को समय रहते इनके चंगुल में जाने से बचाया जा सके।
प्रस्तुति एवं विशेष रिपोर्ट:- सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांक:-14-04-2023.

31/12/2022

खट्टी मीठी यादों के साथ अलविदा 2022। सुनहरे साल की चाह में स्वागत 2023।

15/12/2022

जनता के दरबार में ख्वाहिशे बड़ी बेपरवाह है, परवान चढ़ने से पहले ही भूला दी जाती है।
अब आईना साथ लेकर चलना जनाब, क्या पता ये नजर उतारने के काम आ जाए? प्रस्तुति:-सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट।

03/12/2022

शादी है..।।
नाचिए, गाईए, धूम मचाईए। खुद भी नाचिए, उन्हें भी नचाएं। मन की चँचलता अगर ज्यादा ही उफान पर आ जाए। तो मेजबान बनकर मेहमानों को भी नचाईए। तब तक नाचईए, जब तक मन का तीव्र वेग शांत ना हो जाए।
सरूर में शामिल हो गए। तो फिर कहना ही क्या। फिर तो लगी सरूर पर उलूल-जलूल नाटी। कोई इधर घुमे। कोई उधर झूमे। घूमने झूमने के चक्कर में सब तरफ गोल-गोल नजर आए। फिर क्या डीजे की धुन। क्या ढोलक की थाप। हर थाप मिलकर गजब ढाने लगती है। शहनाई वादक मीठी-कड़वी तान पर क्या सूर छेडे। पर जो भी छेडे। वह कमाल की लचक पैदा करे। अब चाहे कमर लचक कर लटक जाए या फिर पैर अटक कर भटक जाए। नाचते रहिए। हुडदंग मचाते रहिए और भगदड़ में आगे बने रहिए।
हो सके, तो कानफोडू शोर के बीच कोलहाल मचाते रहिए। क्या फर्क पड़ता है। भाई शादी है। धमाल ना हो। तो कमाल तो नजर आएगा नहीं? इसलिए कमाल-धमाल के मिश्रण के साथ आगे बढिए और खूब थिरकिए। तब तक थिरकिए। जब तक पसीना-पसीना ना हो जाए।
विशेष प्रस्तुति:- सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, हिमाचल प्रदेश।
दिनांक:-03-12-2022.

बर्फ के सफेद फाहों से सफेदपोश की आगोश में है पहाड़,ओह व वाह के बीच बर्फ की दहाड़ सुनाई दे रही है बारबार।फिर से.. हाँ, फि...
07/11/2022

बर्फ के सफेद फाहों से सफेदपोश की आगोश में है पहाड़,

ओह व वाह के बीच बर्फ की दहाड़ सुनाई दे रही है बारबार।

फिर से.. हाँ, फिर से वही तेवर है इसके बरकरार।।

प्रस्तुति एवं विशेष शब्द रचना:- सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, शिमला।
दिनांक:-24-02-2022.

जन्नत की आगोश में अथाह आनंद लिए, देवधरा के पर्वत इतरा रहे हैं। चांदी सी आभा लिए, मखमली सा अंदाज लिए, ताजगी का अहसास लिए,...
07/11/2022

जन्नत की आगोश में अथाह आनंद लिए,
देवधरा के पर्वत इतरा रहे हैं।

चांदी सी आभा लिए, मखमली सा अंदाज लिए,
ताजगी का अहसास लिए, नए सवेरे का आभास लिए,
देवधरा के पर्वत इतरा रहे हैं।

बेहतर उपज का विश्वास लिए, नूतन धरा का आगाज लिए,
दमकते चेहरों की परवाज लिए, खुशियों से उत्पन्न नाज लिए,
देवधरा के पर्वत इतरा रहे हैं।

विशेष काव्य रचना:-✍️सत्यदेव भारद्वाज, सीनियर जर्नलिस्ट, कवि एवं लेखक, शिमला, हिमाचल प्रदेश।
दिनांक:-10-02-2022.

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