महायोगी गुरु गोरखनाथ जी

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महायोगी गुरु गोरखनाथ जी * सावधान !*

कुएं ठण्डा जल पीने के लिए बनाए जाते हैं यदि कोई मन्द मति कुएं में डूबकर आत्म-हत्या करले तो इसमें कुआं बनवाने वाले का क्या दोष !

11/01/2025
18/12/2024

Aj main live aauga kus time k lai

बिंदु त्राटक
15/12/2024

बिंदु त्राटक

30/10/2024

गोरख वाणी

बसती न सुन्यम , सुन्यम न बसती अगम अगोचर ऐसा !
गगन सिषर महिं बालक बोलै ताका नाँव धरहुगे कैसा !! १ !!

परमतत्व तक किसी की पहुँच नहीं है वह अगम है ! वह इन्द्रियों का विषय नहीं , वह तो अगोचर है ! वह ऐसा है कि उसे हम न बस्ती कह सकते हैं और न ही शुन्य ! न यह कह सकते हैं की वह कुछ है और न यह की वह कुछ नहीं है ! वह भाव और अभाव, सत और असत दोनों से परे है ! वह तो आकाश मंडल में बोलने वाला बालक है , आकाश मंडल में बोलने वाला इसलिए कहा गया है क्यूंकि आकाशमंडल को शुन्य , आकाश या ब्रह्मरंध्र कहा गया है और यही ब्रह्म का निवास माना जाता है , वही पहुँचने पर ब्रह्म का साक्षात्कार हो सकता है ! बालक इसलिए कहा गया है क्यूंकि जिस प्रकार बालक पाप और पुण्य से रहता है ठीक उसकी प्रकार परमात्मा भी निर्लेप है !

अदेषी देषिबा देषि बिचारिबा अदि सिटि राषिबा चीया !
पाताल की गंगा ब्रह्मंड चढ़ाइबा , तहां बिमल बिमल जल पीया !!२ !!

न देखे जा सकने वाले परब्रम्ह को देखना चाहिए और देखकर उस पर विचार करना चाहिए ! जो आँखों से देखा नहीं जा सकता उसे चित्त में रखना चाहिए ! पाताल जो मूलाधार चक्र हैं वहाँ की गंगा अर्थात कुण्डलिनी शक्ति को ब्रम्हाण्ड ( सहस्त्रार ) में प्रेरित करना चाहिए , वहीँ पहुँच कर योगी साक्षात्कार करता है अर्थात अमृत पान करता है !

इहाँ ही आछै इहाँ ही आलोप ! इहाँ ही रचिलै तीनि त्रिलोक !
आछै संगै रहै जू वा ! ता कारणी अनन्त सिधा जोगेस्वर हूवा !!३!!

परब्रम्ह सहस्त्रार या ब्रम्हरन्ध्र में ही है , यही वह अलोप है ! तीनो लोको की रचना यहीं से हुई ! यह ब्रम्हाण्ड ब्रह्म का ही व्यक्त स्वरुप है , ब्रम्हरंध्र से ही उसने अपना सर्वाधिक पसारा किया है , ऐसा अक्षय परब्रहम जो सर्वदा हमारे साथ रहता है , उसी के कारण उसी को प्राप्त करने के लिए अनंत सिद्ध योग मार्ग में प्रवेश कर योगेश्वर हो जाते हैं !

वेद कतेब न षानी बाणी ! सब ढंकी तलि आणी !
गगनि सिषर महि सबद प्रकास्या ! तहं बूझै अलष बिनाणी !!४!!

वेद आदि भी परब्रम्ह का ठीक ठीक निर्वचन नहीं कर पाए हैं, न किताबी धर्मो की पुस्तकें और न ही चार खानि की वाणी , बल्कि इन्होने तो सत्य को प्रकट करने के बदले उसके ऊपर आवरण डाल दिया ! यदि ब्रम्ह स्वरुप का यथार्थ ज्ञान अभीष्ट हो तो ब्रम्ह्रंध्र यानी गगन शिखर में समाधि द्वारा जो शब्द प्रकाश में आता है, उसमे विज्ञान रूप अलक्ष्य का ज्ञान प्राप्त करो!

अलश बिनाणी दोई दीपक रचिलै तीन भवन इक जोती !
तास बिचारत त्रिभवन सूझै चूनिल्यो माणिक मोती !!५!!

उस अलक्ष्यपुरुष परब्रम्ह ने ही दो दीपकों की रचन की है जो सविकल्प और निर्विकल्प समाधि है , उन दोनों दीपकों में उस अलक्ष्य का ही प्रकाश है ! उसी एक ज्योति से तीनो लोक व्याप्त हैं ! उस ज्योति पर विचार करने से तीनो लोक सूझने लगते हैं अर्थात त्रिलोकदर्शिता आती है और हंस स्वरूपी आत्मा ज्ञान रुपी मोतियों को चुगने लगता है तथा उसे माणिक्य रूप कैवल्य की अनुभूति प्राप्त करता है !

30/10/2024

चिंतामणि लक्ष्मी साधना

जीवन में धन का स्थान कोई नहीं नकार सकता और धन के अभाव में आज के समय में जीवन
मृत्यु से भी बुरा है!ज्योतिष के आधार पर देखा जाये तो दूसरा भाव धन से सम्बन्ध रखता है और
एकादश भाव लाभ का होता है!जिनका दूसरा और एकादश भाव या इन भावों का मालिक मजबूत
स्तिथि में बैठा होता है तो व्यक्ति को धन की कोई कमी नहीं होती पर कई बार ऐसी जन्म कुंडली
वाले जातक भी दुखी होते है क्योंकि उन पर किसी

प्रकार का बुरा प्रयोग हो जाता है या किसी द्वारा
करवा दिया जाता है!ऐसे में ज्योतिष तो कहता है कि आप धनवान होंगे पर आप पैसे पैसे के लिए मुहताज होते है!इसके फलस्वरूप आपका विश्वास ज्योतिष से उठ जाता है!हमारे समाज में एक से एक ऐसे तांत्रिक भरे पड़े है जो पैसा लेकर किसी का भी बुरा कर देते है और ऐसे ही तांत्रिक कई बार
धन के लालच में किसी के भी घर कि लक्ष्मी बांध देते है!जिसके फलस्वरूप धन कब आता है कब चला जाता है पता ही नहीं चलता सारी मेहनत की कमाई बीमारी के इलाज में लग जाती है!आज इसी समस्या के समाधान के लिए चिंतामणि लक्ष्मी साधना प्रस्तुत है!इस साधना को संम्पन करने के बाद आपको जीवन में कभी धन की कमी नहीं होगी!आपकी मदन के स्त्रोत खुल जायेगे और आपके व्यपार आदि में हो रहे घाटे लाभ में बदल जायेगे!यह साधना अपने आप में एक अनोखी साधना है!जो धन सम्बन्धी चिंता समाप्त ही करदे उसे चिंतामणि कहते है!

साधना मन्त्र::::-
ॐ ह्रीं श्रीम भगवती चिंतामणि सर्वार्थसिद्धिम देहि देहि स्वाहा!


८ १ ६
ॐ ३ ५ ७ ॐ
४ ९ २


साधना विधि ::-

किसी शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिन इस यन्त्र को रोली से कागज़ पर बनाये और विधि
से एक पीला कपडा बिछाकर स्थापित करे घी का दीपक जलाये और सबसे पहले गुरु पूजन फिर गणेश
पूजन फिर माँ लक्ष्मी और विष्णु जी का पूजन करे और प्राथना करे हे लक्ष्मी नारायण मेरी धन सम्बन्धी
सभी समस्यों का नाश कीजिये मै आपकी शरण में हूँ मेरी रक्षा कीजिये और ३१ माला इस मन्त्र की जपे!
यह जप आपको सुबह और शाम दोनों समय करना है अंतिम दिन १००८ आहुति साधारण हवन सामग्री में
कमलगट्टे और पञ्च मेवा मिलाकर दे!यह २१ दिन की साधना है अंतिम दिन सभी सामग्री को बहते पानी
में वहादे!गुरुकृपा से आपकी सभी समस्याओ का नाश हो जाये ऐसी मेरी कामना है!

30/10/2024

अष्टलक्ष्मी साधना

जीवन में धन के महत्व को कोई नहीं नकार सकता और धन से सम्बंधित साधनाओ को करने के लिए दिवाली से उत्तम कोई और त्योहार हो ही नहीं सकता क्योंकि इस दिन स्वयं महालक्ष्मी धरती पर आती है और सबकी मनोकामना पूर्ण करती है ! मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी समस्या हैं निर्धनता. धन के अभाव में मनुष्य मान सन्मान प्रतिष्ठा से भी वंचित रहता है , चाहे वह कितना भी बड़ा ज्ञानी क्यों ना हो..कही मैंने सुना था की पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं..आज के युग में यह बात शत प्रतिशत मुझे योग्य लगती हैं......जिनके जीवन में धन का अभाव हैं...जिनका व्यापार अच्छे से नहीं चल रहा हैं जो कर्जे के चक्रव्यूह में फस गए हैं...जो लोग धन के अभाव के कारण बार बार अच्छे मोके गवा देते हैं स्वयं भी दुखी होते हैं और परिवार भी दुखी रहता हैं ..यह साधना उन सब को तो समर्पित है ही , साथ मे हमारे प्रिय साधक भाईयो को भी समर्पित है, क्योंकि धन के अभाव में साधन उपलब्ध नहीं होता और बिना साधन, साधना नहीं होती...अब आगे मैं क्या कहूं ?? पर आप स्वयं यह साधना करे फिर आपका हृदय स्वयं बोलेगा...!

|| सामग्री ||

१. सिद्ध श्रीयंत्र , पीला वस्त्र ,ताम्बे की थाली, गौ घृत के ९(नौ) दीपक , गुलाब अगरबत्ती, पीले फूलो की माला
पीली बर्फी , शुद्ध अष्टगंध
२. माला : स्फटिक या कमलगट्टा
जप संख्या : १,२५०००
३. आसन : पीला,---- वस्त्र : पीले
समय : शुक्रवार रात नौ बजे के बाद या दिवाली की रात से भी कर सकते है !
४. दिशा : उतराभिमुख
५. २१ दिन में साधना पूर्ण करे !

|| मंत्र ||
ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीये ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा

|| विधान ||
बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर उस पर सिद्ध श्री यन्त्र स्थापित करे, पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर बैठे श्री यन्त्र पर अष्टगंध का छिडकाव कर खुद अष्टगंध का तिलक करे उसके बाद ताम्बे की थाली में गाय के घी से नौ दीपक जलाये,गुलाब अगरबत्ती लगाये,प्रस्साद में पीली बर्फी रखे श्री यन्त्र पर फूल माला चढ़ाये उसके बाद मन्त्र जप करे.और माँ की कृपा को प्राप्त करे .....संकल्प करना ना भूले...माँ भगवती आप सभी को सुख समृद्धि से पूर्ण करे......!

09/10/2024

ज्योतिष संजीवनी 7
आप लोगो ने अक्सर एक शब्द सुना होगा काल सर्पयोग!इस काल सर्पयोग ने उजड़े हुए पंडितो को
करोड़पति बना दिया!पंडितजी हर किसी को डरा देते है आपकी कुंडली में तो काल सर्पयोग है!इस योग
का नाम सुनते ही अच्छे भले व्यक्ति का जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है!इस पर पंडितजी कह देते है
भाई इसके उपाय पर तो २५००० रुपये का खर्चा होगा!यह सुनकर तो व्यक्ति के होश उड़ जाते है!जो
समर्थ होता है वो इसका उपाय करवा लेता है पर जो असमर्थ होता है वो अंदर ही अंदर मन मसोस कर
रह जाता है!काल सर्पयोग से जितना लोग डरते है उतना डरने की कोई बात नहीं क्योंकि काल सर्पयोग
सदैव बुरा फल नहीं देता!सबसे पहले यह जानते है की काल सर्पयोग है क्या?काल सर्पयोग 12 प्रकार का होता है!

1.अनंत कालसर्पयोग :- यदि राहू प्रथम भाव में हो और केतु सातवे भाव में और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो
अनंत काल सर्पयोग होता है!
2.कूलिक काल सर्पयोग:-यदि राहू दुसरे भाव में हो और केतु अष्टम भाव में हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो कूलिक काल सर्पयोग होता है!
3.वासुकी काल सर्पयोग:-यदि राहू तीसरे भाव में हो और केतु नवम भाव में हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो वासुकी काल सर्पयोग होता है!

4.शंखपाल काल सर्पयोग:-यदि राहू चौथे और केतु अष्टम भाव में हो हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो शंखपाल काल सर्पयोग होता है!
5.पदम् काल सर्पयोग:-यदि पंचम स्थान में राहू और एकादश भाव में केतु हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो पदम् काल सर्प योग होता है!
6.महापद्म काल सर्पयोग:-यदि छठे भाव में राहू और बारवे भाव में केतु हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो महापद्म काल सर्पयोग होता है!

7.तक्षक काल सर्पयोग:-यदि सातवे भाव में राहू और लगन में केतु हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो तक्षक काल सर्पयोग होता है!
8.कर्कोटक काल सर्पयोग:-यदि अष्टम भाव में राहू और दुसरे भाव में केतु हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो कर्कोटक काल सर्पयोग होता है!
9.शंखचूड़ काल सर्पयोग:-यदि राहू नवम भाव में और केतु तीसरे भाव में हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो शंखचूड़ काल सर्पयोग होता है!

10.घातक काल सर्पयोग:-यदि राहू दशम भाव में हो और केतु चौथे भाव में हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो घातक काल सर्पयोग होता है!
11.विषधर काल सर्पयोग:-यदि एकादश भाव में राहू और पंचम भाव में केतु हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो विषधर काल सर्पयोग होता है!
12.शेषनाग काल सर्पयोग:-यदि बारवे भाव में राहू और छठे भाव में केतु हो और सभी ग्रह उनके वीच में हो तो शेषनाग काल सर्पयोग होता है!

प्रत्येक काल सर्पयोग के अपने लाभ और नुकसान है!यहाँ पर पूरा विवरण देना बात को लम्बा खींचना होगा,सीधी बात यह है कि काल सर्पयोग का प्रयोग करके अनपढ़ पंडित भी प्रसिद्द हो गए है!काल सर्पयोग से किसी का भला हो या न हो पर पाखंडी ब्राह्मणों के आलिशान मकान जरूर खड़े हो गए है!काल सर्पयोग का उपाय बहुत सरल है!मान लीजिये पहले घर में राहू और सातवे घर में केतु है और बाकि सभी ग्रह दुसरे से लेकर पंचम भाव में बैठे है तो यह अनंत काल सर्पयोग है!अब यदि किसी ग्रह जैसे मंगल या शनि की स्थापना दशम भाव में कर दी जाये तो काल सर्पयोग खंडित हो जाता है,पर यह उपाय बहुत लम्बा है
इसलिए आपको सरल उपाय बता रहा हूँ!

उपाय:-
एक कांसे की कटोरी ले उसमे देसी घी में बना हलवा डाल दे और दो चांदी के सांप डाल दे और सरसों का तेल भी डाल दे और अपने सिर से सात बार उसार ले और किसी शनि मंदिर में रख आये!यह उपाय आपको तीन महीने में तीन बार करना है! मतलब महीने में एक बार इससे किसी भी प्रकार का काल सर्पयोग हो शांत हो जाता है और शुभ फल की प्राप्ति होती है! मैंने इस उपाय को कई बार आजमाया है!आप भी इसका लाभ उठाये!उपाय करते वक़्त एक ध्यान रखे शनिदेव के चरणों की तरफ देखे आँखों की तरफ भूल कर भी न देखे!

09/10/2024

ज्योतिष संजीवनी 6
क्या यह Valentines day आपका अच्छा नहीं गुजरा?क्या आप किसी प्रेमिका की तलाश में है?
क्या बार-बार आपके प्रेम सम्बन्ध ख़राब हो जाते है?अगर आप इन समस्याओं से पीड़ित है तो
कीजिये ज्योतिष के यह उपाय और पाएं एक अच्छा प्रियतम!
प्रेम का सम्बन्ध शुक्र ग्रह से होता है!ज्योतिष ने शुक्र को चौथे और सातवें घर का कारक माना है!
शुक्र कन्या राशि में नीच और मीन राशि में उच्च का होता है,यदि आप प्रेम संबंधों में बार बार असफल
हो रहे है तो निश्चित तौर पर आपका शुक्र ख़राब है!शुक्र ग्रह भोग का कारक है!

यदि किसी तरह शुक्र की स्थापना पांचवे,छठे,आठवे और बारवें घर में कर दी जाये तो आपको प्रेम
सम्बन्धी सुख मिलना संभव है क्योंकि

१.पंचम भाव प्रेम संबंधों का होता है और प्रेम के कारक शुक्र पंचम भाव में बैठ गए!
२.छठे भाव में बैठ कर शुक्र दवादश भाव को देखता है दवादश भाव रति सुख का होता है!
३.अष्टम भाव गुप्त अंगो और गुप्त संबंधों का होता है!
४.दवादश भाव में शुक्र रति के कारक होकर रति स्थान में ही बैठ जाते है!

उपाय:-
१.यदि आप शुक्र को पांचवें भाव में पहुचाना चाहते है तो पांचवें भाव का सम्बन्ध उच्च शिक्षा से होता है!
यदि पचास ग्राम मिश्री को लगातार ४३ दिन किसी कॉलेज या उच्च शिक्षा संस्थान में फेंक दिया जाये
तो शुक्र पंचम भाव में चले जाते है!
२.यदि आप शुक्र को छठे भाव में पहुचाना चाहते है तो शुक्र पोटली बनाकर उस पोटली को कुएं में डाल
दे ऐसा लगातार ४३ दिन करे शुक्र छठे भाव में पहुच जायेगा!

३.अष्टम भाव का सम्बन्ध शमशान घाट से होता है यदि ४३ दिन लगातार शुक्र पोटली बनाकर शमशान
घाट में फेंक दी जाये तो शुक्र अष्टम स्थान में पहुँच जाते है!
४.बारवें भाव का सम्बन्ध मकान की छत से होता है जन्मकुंडली में बारवें भाव में जो ग्रह बैठा होता है
उस ग्रह से सम्बंधित सामान छत पर पड़ा होता है यदि थोडा सा पनीर छोटे छोटे टुकड़े कर के ४३ दिन

तक लगातार छत पर डाल दिया जाये तो शुक्र बारवें भाव में पहुँच जाते है!

कुछ विशेष तथ्य :-
१.जिस भाव में आप शुक्र को भेज रहे है वो भाव खाली होना चाहिए वरना उस स्थान पर बैठे हुए ग्रह के साथ
शुक्र का मिश्रित फल मिलेगा!
२.छठे भाव और अष्टम भाव में शुक्र पहुंचाते हुए इस बात का ख्याल रखें कि लगन खाली होना चाहिए नहीं तो
शुक्र के साथ लगन में बैठे हुए ग्रह का ६ और ८ का योग बन जायेगा!

शुक्र पोटली :-
एक सफ़ेद कपडा ले छोटा सा उसमे सफ़ेद चन्दन डाले थोडा सा,सात सफ़ेद फूल डाले,सात दाने मिश्री के डालें
एक सफ़ेद कागज़ पर शुक्र यन्त्र केसर से लिखकर रख दे और सफ़ेद कपडे को रेशमी सफ़ेद धागे से अच्छी तरह
बांध दे!

गौ माता को शुक्र कि कारक माना जाता है,गौ माता की पूजा करने से भी शुक्र अच्छा होता है!
दही से नहाने से भी शुक्र अच्छा होता है!
हररोज नाभि जुबान और मस्तक पर सफ़ेद चन्दन का तिलक लगाने से भी शुक्र ग्रह अच्छा होता है!

07/10/2024

ज्योतिष संजीवनी 5
महापंडित रावण जैसे ज्ञानी कौन हो सकते है?यहाँ उन्हें चार वेदों का ज्ञान था वहीँ उन्हें ज्योतिष का भी बहुत अच्छा ज्ञान था!उनकी विद्या महान थी,उनकी महान विद्या से ही लाल किताब की रचना हुयी!हवाई ज्योतिष और नाड़ी ज्योतिष उनकी विद्या का एक अंश मात्र है!मै यह मान सकता हूँ कि उन्होंने जीवन भर साधू संतो और ब्राह्मणों को तंग किया,किन्तु महापंडित रावण जी के बैकुण्ठ जाने के बाद उनकी यह विद्या इन सबका कल्याण कर रही है!यहाँ वैदिक ज्योतिष में बड़े बड़े हवन आदि करने पड़ते है वहीँ रावण जी के तांत्रिक टोटके उस समस्या को कुछ ही दिनों में नष्ट कर देते है!हमारे ज्योतिष शास्त्रों ने चंद्रमा को चौथे घर का कारक माना है!यह कर्क राशी का स्वामी है!चन्द्र ग्रह से वाहन का सुख सम्पति का सुख विशेष रूप से माता और दादी का सुख और घर का रूपया पैसा और मकान आदि सुख देखा जाता है!चंद्रमा दुसरे भाव में शुभ फल देता है और अष्टम भाव में अशुभ फल देता है!चन्द्र ग्रह वृषव राशी में उच्च और वृश्चक राशी में नीच का होता है!जन्म कुंडली में यदि चन्द्र राहू या केतु के साथ आ जाये तो वे शुभ फल नहीं देता! ज्योतिष ने इसे चन्द्र ग्रहण माना है,यदि जन्म कुंडली में ऐसा योग हो तो चंद्रमा से सम्बंधित सभी फल नष्ट हो जाते है माता को कष्ट मिलता है घर में शांति का वातावरण नहीं रहता जमीन और मकान सम्बन्धी समस्या आती है!मै यहाँ चन्द्र ग्रहण का एक आसान उपाय बता रहा हूँ इसे ग्रहण काल के मध्य में करे!

उपाय :::- 1 किलो जौ दूध में धोकर और एक सुखा नारियल चलते पानी में वहाये और 1 किलो चावल मंदिर में चढ़ादे! अगर चन्द्र राहू के साथ है और यदि चन्द्र केतु के साथ है तो चूना पत्थर ले उसे एक भूरे कपडे में बांध कर पानी में वहादे और एक लाल तिकोना झंडा किसी मंदिर में चढ़ादे!

ईश्वर कि कृपा से यह दोष नष्ट हो जायेगा!

07/10/2024

ज्योतिष संजीवनी 4
ज्योतिष कोई जादू की छड़ी नहीं है!ज्योतिष एक विज्ञानं है!ज्योतिष में जो ग्रह आपको नुकसान करते है, उनके प्रभाव को कम कर दिया जाता है और जो ग्रह शुभ फल देता है,उनके प्रभाव को बढ़ा दिया जाता है! आज के इस युग में हर मोड़ पर ज्योतिष की दूकान मिल जाएगी पर दुःख की बात यह है आजकल ज्योतिष किताबी ज्ञान रखते है वास्तविकता से कोसो दूर है!किसी ज़माने में ज्योतिष का काम बहुत पवित्र होता था पर आज के ज्योतिष तो बस यजमान को ठगने में लगे है!हमारे ज्योतिष आचार्यो ने शनि को छेवे आठवे दशवे और बारवे भाव का पक्का कारक माना है जबकि राहु एक छाया ग्रह है!एक मान्यता के अनुसार राहु और केतु का फल देखने के लिए पहले शनि को देखा जाता है क्योंकि यदि शनि शुभ फल दे रहे हो तो राहु और केतु अशुभ फल नहीं दे सकते और यह भी माना जाता है कि शनि का शुभ फल देखने के लिए चंद्रमा को देखा जाता है!कहने का भाव यह है कि प्रत्येक ग्रह एक दुसरे पर निर्भर है!इन सभी ग्रहों में शनि का विशेष स्थान है!शनि से मकान और वाहन का सुख देखा जाता है साथ ही इसे कर्म स्थान का कारक भी माना जाता है,यह चाचा और ताऊ का भी कारक है!राहु को आकस्मिक लाभ का कारक माना गया है!राहु से कबाड़ का और बिजली द्वारा किये जाने वाले काम को देखा जाता है!राहु का सम्बन्ध ससुराल से होता है अगर ससुराल से दुखी है तो राहु ख़राब चल रहा है
ज्योतिष का मानना है कि राहु और केतु जिस भी ग्रह के साथ आ जाते है वो ग्रह दुषित हो जाता है और शुभ फल छोड़ देता है!ऐसे कई योग है आज हम राहु और शनि की बात करेगे माना जाता है यदि शनि और राहु एक साथ एक ही भाव में आ जाये तो व्यक्ति को प्रेत बाधा आदि टोने टोटके बहुत जल्दी असर करते है क्योंकि शनि को प्रेत भी माना जाता है और राहु छाया है!इसे प्रेत छाया योग भी कहा जाता है पर सामान्य व्यक्ति इसे पितृदोष कहता है!एक कथा के अनुसार जब हनुमान जी ने राहु और केतु को हाथो में पकड़ लिया था और शनि को पूँछ में तब शनि महाराज ने कहा था आज जो हमें इस बालक से छुड़ा देगा उसे हम जीवन में कभी परेशान नहीं करेगे यदि किसी की कुंडली में यह तीनो ग्रह परेशान कर रहे हो तो एक साबर विधि से इन्हें हनुमान जी से छूडवा दिया जाता है!फिर यह जीवन भर परेशान नहीं करते आने वाले समय में इस विधि पर भी चर्चा करेगे,यदि राहु की बात की जाये तो राहु जब भी मुशकिल में होता है तो शनि के पास भागता है!राहु सांप को माना गया है और शनि पाताल मतलब धरती के नीचे सांप धरती के नीचे ही अधीक निवास करता है!इसका एक उदहारण यह भी है कि यदि किसी चोर या मुजरिम राजनेता रुपी राहु पर मंगल रुपी पुलीस या सूर्य रुपी सरकार का पंजा पड़ता है तो वे अपने वकील रुपी शनि के पास भागते है!सीधी बात है राहु सदैव शनि पर निर्भर करता है पर जब शनि के साथ बैठ जाता है तो शनि के फल का नाश कर देता है!यह सब पुलीस वकील आदि किसी न किसी ग्रह के कारक है!शनि उस व्यक्ति को कभी बुरा फल नहीं देते जो मजदूरों और फोर्थ क्लास लोगो का सम्मान करता है क्योंकि मजदूर शनि के कारक है!जो छोटे दर्जे के लोगो का सम्मान नहीं करता उसे शनि सदैव बुरा फल ही देते है!आप अपनी कुंडली ध्यान से देखे अगर आपकी कुंडली में भी राहु और शनि एक साथ बैठे है तो यह उपाय करे!हररोज मजदूरों को तम्बाकु की पुडिया दान दे!ऐसा ४३ दिन करे आपको कभी यह योग बुरा फल नहीं देगा क्योंकि मजदूर रुपी शनि है और तम्बाकु राहु है,जब मजदूर रुपी शनि तम्बाकु को खायेगा तो अच्छा तम्बाकु ग्रहण कर लेगा और बुरा राहु बाहर थुक देगा! सीधी बात है शनि अच्छा राहु ग्रहण कर लेगा और बुरा राहु बाहर थुक देगा!आप यह उपाय जरूर कीजिये मैने हजारो लोगो पर इस उपाय को आजमाया है आगे गुरु कृपा !

Jai mata di
05/10/2024

Jai mata di

मंथन 3मै जब छोटा था तो सदगुरुदेव सिद्ध रक्खा रामजी मुझे कहानियाँ सुनाकर समझाया करते थे! एक बार मैने एक आदमी जो गंदे कपड़ो...
03/10/2024

मंथन 3

मै जब छोटा था तो सदगुरुदेव सिद्ध रक्खा रामजी मुझे कहानियाँ सुनाकर समझाया करते थे! एक बार मैने एक आदमी जो गंदे कपड़ो में था उसे देखकर थूक दिया! जब मै सदगुरुदेव के पास पंहुचा तो सदगुरुदेव ने कहा बहुत बड़ा हो गया है तू अब संतो को देखकर थूकने लगा! मै मन में सोचने लगा कि मैने ऐसे किस संत को देखकर थूक दिया! सिद्ध रक्खा रामजी ने कहा उस अघोरी को देख कर थूका था जिसने गंदे कपडे पहने थे! मै मन में सोचने लगा मुझसे तो महापाप हो गया!

उस वक़्त गुरुदेव ने कहा एक बार की बात है दुर्योधन ने दरोनाचार्य से कहा आप युधिष्ठर को धर्मराज कहते है मुझे धर्मराज क्यों नहीं कहते? यह सुनकर द्रोणाचार्य ने युधिष्ठर को बुलाया और कहा जाओ सारे नगर में घूमकर आओ और कोई ऐसा इन्सान ढूँढकर लाओ जिसमे कोई गुण ही न हो! फिर द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा तुम भी जाओ और कोई ऐसा इन्सान ढूँढकर लाओ जिसमे कोई अवगुण न हो! यह सुनकर दोनों अपने अपने रस्ते चले गए! कुछ समय बाद दोनों खाली हाथ लौट आये! द्रोणाचार्य ने पहले दुर्योधन से पूछा कोई ऐसा इन्सान मिला जिसमे कोई अवगुण न हो दुर्योधन ने कहा नहीं गुरुदेव सब में कोई न कोई अवगुण है! फिर द्रोणाचार्य ने युधिष्ठर से पूछा कोई ऐसा इंसान मिला जिसमे कोई गुण ही न हो युधिष्ठर ने कहा गुरुदेव इंसान तो क्या प्रत्येक जानवर और पेड़ पौधों में भी कोई न कोई गुण है! प्रत्येक बुरी वस्तु में कोई न कोई अच्छा गुण है! यह सुनकर द्रोणाचार्य ने कहा यह फर्क है दुर्योधन तुम केवल अवगुण देखते हो और युधिष्ठर केवल गुण देखता है इसलिए मै युधिष्ठर को धर्मराज कहता हूँ! मै परम सिद्ध रक्खा रामजी का अर्थ समझ गया और इस कथा को जीवन में उतारने लगा! इसी प्रकार कुछ लोग केवल महापंडित रावण के अवगुण देखते है पर वो बहुत बड़े तपस्वी थे वेदों के ज्ञाता थे और ज्योतिष और तंत्र के भी बहुत बड़े आचार्य थे पर लोग केवल उनके अवगुण देखते है! उनकी रावण सहिंता का ही एक रूप लाल किताब है जिसके द्वारा आप अपनी जन्म कुंडली के इलाज बड़ी आसानी से कर सकते हो!
मै किसी ज्योतिष पद्दति के खिलाफ नहीं हूँ पर लाल किताब के उपाय बहुत सरल और चमत्कारी है! लाल किताब के द्वारा आप किसी भी ग्रह को किसी दुसरे भाव में पंहुचा सकते है!उदहारण के लिए जब रामचंद्र जी सीता माता के स्वयंवर में गए तो वहां रावण भी था! रावण धनुष नहीं उठा पाया था! रावण ने रामजी को देखते ही पहचान लिया था! रावण ने सोचा मैने तो आत्मा का साक्षात्कार किया है पर यह तो आत्मा की भी आत्मा है यह तो परमात्मा है! रावण ने रामजी से कहा आप मेरी लंका में दर्शन देने जरूर आना पर परमात्मा रामचंद्र जी ने कहा मै विश्वामित्र जी की सेवा में रहता हूँ नहीं आ सकता! यह सुनकर रावण ने राम जी से कहा अच्छा तू तो मुझे दर दर खोजेगा और पेड़ पत्तो से भी मेरा पता पूछेगा! इतना कह कर लंकापति रावण चले गए और परमात्मा रामचंद्र जी के सातवे भाव में बैठे उच्च के मंगल को ख़राब कर दिया! सातवाँ भाव पत्नी का होता है! रामचंद्र जी की पत्नी सीता माता ने विवाह के बाद सुख नहीं भोगा! पहले रामजी के साथ बनवास भोगा फिर धोबी के कहने से वाल्मीकि जी के आश्रम में रही!
एक बार लंकापति रावण सूर्य से मिलने गए उस समय सूर्य देव के सारथी ने उन्हें एक किताब दी जो आगे चलकर लाल किताब के रूप में मशहूर हुयी! आज रावण की विद्या से लाखो लोगो का भला हो रहा है! फिर भी कुछ लोग रावण की निंदा ही करते है क्योंकि उन्हें दुर्योधन की तरह केवल रावण के अवगुण ही नजर आते है!जिसकी बुद्धि गधे जैसी होती है उसे सारा संसार गधा नजर आता है, क्योंकि उनके मन और मस्तिष्क में गधा ही निवास करता है! इस संसार में कोई भी चीज़ बुरी नहीं होती इसलिए कबीर जी लिखते है:-
बुरा जो खोजन मै चला बुरा न लब्या कोए
जब मन अपना खोजया तो मुझसे बुरा न कोय!

इसी बात को बाबा नानक जी कुछ इस प्रकार लिखते है:-

'हम नहीं चंगे बुरा नहीं कोई'

जब हम बुरे होते है तो हमें सारा संसार बुरा नज़र आता है और जब हम गधे होते है तो हमें सारा संसार गधा नज़र आता है!रावण महान थे और उनकी विद्या भी महान है जो जन कल्याण के लिए उत्तम है! पर कुछ लोग धन कमाने के लिए इस विद्या का दुरूपयोग करते है और लाल किताब के नाम पर दुकान चलाते है! ऐसे लोगो का मानना है:-

यदि कौआ मोर के पंख लगा ले तो मोर नहीं बन जाता
और यदि मोर के पंख झड जाये तो भी मोर ही रहता है!

इस प्रकार के मोरो की वजह से ही वेद का तीसरा नेत्र कहे जाने वाले ज्योतिष और तंत्र की निन्दा होती है! ऐसे मोर लोगो को भ्रमित करने के सिवा और कुछ नहीं जानते! मै सदगुरुदेव सिद्ध श्री रक्खा रामजी की सिखाई हुई विद्या को जनकल्याण के लिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ और मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस विद्या से आप सबका कल्याण होगा! आने वाली पोस्ट में हम यह चर्चा करेंगे किस प्रकार होता है कालसर्प योग का इलाज एक आसान टोटके से किस प्रकार होता है गंडमूल का इलाज! उदहारण के लिए एक जन्म कुंडली में बुध ग्रह चंद्रमा के मिल जाने से ख़राब हो गए थे! इसका असर उस व्यक्ति के व्यापार पर पड़ रहा था! मैने उस व्यक्ति से कहा चांदी की बिलकुल छोटी सी कटोरी में पारा डालकर अच्छे से हिलाओ और धीरे से बहते हुए पानी में छोड़ दो! उस व्यक्ति ने यह उपाय किया! इस उपाय से उसका व्यापार चलने लगा! मैंने केवल बुध और चंद्रमा की लड़ाई करवा दी मतलब बुध रुपी पारा और चन्द्र रुपी चांदी को मिला दिया! इसी प्रकार बहुत सरल इलाज है जो निश्चित तौर पर जनकल्याण के काम आएंगे!

जय सदगुरुदेव!

03/10/2024

ज्योतिष संजीवनी 2

ज्योतिष के अनुसार गुरु ग्रह दुसरे भाव का, पांचवे भाव का, नौवे भाव का, ग्यारवे भाव का पक्का कारक है!गुरु ग्रह से अध्यातम,धर्म,लाभ,पुत्र,दादा,गु रु,भाग्य,आकस्मिक लाभ आदि को देखा जाता है!कुटुम्ब के सुख का विचार भी गुरु ग्रह से किया जाता है!ज्योतिष के अनुसार गुरु स्त्री की कुंडली में पति का कारक होता है इसलिए यदि गुरु अस्त हो जाये तो विवाह आदि शुभ कर्म तब तक नहीं किये जाते जब तक गुरु महाराज का उदय न हो जाये!गुरु ग्रह को ज्ञान का कारक माना जाता है और गुरु महाराज देवताओ के गुरु है उनसे ज्ञानी नवग्रहों में कोई भी नहीं है!एक बार ब्रह्मा जी ने गुरु ग्रह और शुक्र ग्रह को बुलाया और कहा आप दोनों ही महाज्ञानी है मै जानना चाहता हूँ आप दोनों में अधिक ज्ञानी कौन है? उसी समय एक स्त्री कुए में पानी भर रही थी!उस पानी भरती हुई स्त्री को देखकर शुक्र ग्रह ने अपना ज्योतिष लगा दिया!
उसी समय उस स्त्री के हाथ से बाल्टी नीचे कुए में गिर गयी!गुरु महाराज ने उस बाल्टी के गिरने से अपना ज्योतिष लगा दिया!यह देख ब्रह्मा जी ने कहा हे गुरु महाराज आप सर्वज्ञानी है आप ही श्रेष्ठ है!गुरु ग्रह कभी किसी से शत्रुता नहीं रखते पर राहु, बुध और शुक्र इन्हें अपना शत्रु मानते है!गुरु ग्रह यदि राहु के साथ आ जाये तो जन्म कुंडली में गुरु चंडाल योग का निर्माण हो जाता है!गुरु यदि बुध ग्रह के साथ आ जाये तो व्यक्ति को खाली घड़ा बना देते है ऐसी कुंडली वाला व्यक्ति बिना मांगे राय दे देता है!उसकी राय से अनेको लोगो का भला होता है पर जब वे स्वयं कोई कार्य करता है तो उसे कोई लाभ नहीं होता!गुरु ग्रह के साथ यदि शुक्र आ जाये या शुक्र किसी प्रकार गुरु के सामने आ जाये तो शुक्र काणा हो जाता है!इस विषय में एक पौराणिक कथा है,एक बार राजा बलि ने यज्ञ का आयोजन किया!
यज्ञ में राजा बलि ने याचको को मुह माँगा दान दिया!उस यज्ञ में भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर एक याचक के रूप में आए और दान के लिए याचना की, राजा बलि ने उनसे दान मांगने के लिए कहा तो भगवान वामन ने तीन पग धरती मांगी और जब राजा बलि दान देने के लिए संकल्प ले रहे थे तभी दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें पहचान लिया और राजा बलि को दान देने से रोकने लगे, परन्तु राजा बलि नहीं माने और संकल्प लेने के लिए जलपात्र हाथ में लिया तो शुक्राचार्य जी एक कीड़े का रूप बनाकर उस जलपात्र की नली में बैठ गए!इस कारण पात्र में से जल नहीं निकल पाया पर भगवान विष्णु तो सब जानते थे उन्होंने कुशा को पात्र की नली में घुसा दिया, कुशा कीड़े का रूप धारकर बैठे शुक्राचार्य की आँख में जा लगी और मृत संजीवनी के जानकर आचार्य शुक्र काणे हो गए!इस कारण जब भी शुक्र गुरु ग्रह के साथ आये तो वे काणे हो जाते है और यदि गुरु शुक्र जन्म कुंडली में एक साथ हो या शुक्र बुरा फल दे रहे हो तो किसी काणे ब्राह्मण की सेवा करे शुक्र बुरा फल त्याग देंगे! गुरु यदि जन्म कुंडली में मजबूत हो तो उन घरो के फल में वृद्धि करते है जिनके वे कारक है! केतु को गुरु का सेवक माना जाता है और केतु मोक्ष का कारक है!केतु का निशान झंडे को माना जाता है यदि केतु शुभ हो तो व्यक्ति को बहुत उच्चाई पर लेकर जाता है! गुरु ग्रह यदि जन्म कुंडली में अच्छे हो तो केतु के बुरे फल में कमी आती है पर यदि गुरु ग्रह स्वयं केतु के साथ बैठ जाये तो गुरु दुषित हो जाते है!इस योग के कारण गुरु और केतु दोनों अपना शुभ फल त्याग देते है!ऐसे में हमारे विद्वान पंडित हमें डराते है पर इस योग से डरने की कोई जरूरत नहीं, यदि आपकी कुंडली में भी ऐसा ही योग है तो आप इस उपाय को करे! एक पीला बेदाग़ निम्बू ले और उसे थोडा काट दे यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि निम्बू के दो टुकड़े न हो और इस निम्बू को चलते पानी में बहा दे! आप ऐसा 43 दिन लगातार करे आपका योग भंग हो जायेगा!
आप कहेगे निम्बू को पानी में बहाने से यह योग कैसे भंग हो जायेगा!आइये इस उपाय के पीछे छिपे सिद्धांत को समझे!पीले रंग को गुरु ग्रह का सूचक माना जाता है और खट्टा स्वाद केतु का सूचक है!निम्बू का रंग पीला होता है और स्वाद खट्टा जब निम्बू को थोडा सा काटकर पानी में बहा दिया जाता है तो खट्टा स्वाद अलग हो जाता है और पीला भाग अलग इस प्रकार चन्द्र अर्थात पानी की मदद से गुरु और केतु को अलग कर दिया जाता है!इस उपाय का प्रयोग मैंने कई बार किया है आप भी आजमाए और इस उपाय से जनकल्याण करे

02/10/2024

ज्योतिष संजीवनी 1
ज्योतिष के नाम पर बहुत से लोक आम जनता को मूरख बनाते है मतलब उन्हें ग्रहों से इतना डरा देते है कि व्यक्ति कुछ भी करने को तयार हो जाता है!ज्योतिष हमें जीना सिखाता है न कि ग्रहों से डरना!हम लोगो का मानना है कि ज्योतिष भविष्य जानने कि कला है पर सदगुरुदेव सिद्ध रक्खा रामजी का मानना था कि ज्योतिष भविष्य जानने की कला नहीं है,ज्योतिष भविष्य सवारने
की कला है पर हम लोग इन धूर्त पण्डितो के द्वारा इतने डर जाते है कि हमें हर समय ग्रहों की चिंता लगी रहती है!हमारे द्वारा बड़े बड़े अनुष्ठान करवाने से हमारा भला हो चाहे न हो पर इन ज्योतिष का धंधा चलाने वाले लोगो का भला अवश्य हो जाता है!ज्योतिष विद्या वेद का तीसरा नेत्र कही जाती है!एक बात जान लीजिये कुंडली में कैसा भी योग क्यों न हो?हमें उस योग से डरना नहीं

है क्योंकि ग्रह सदैव कर्मो के आधार पर फल देते है!हम लोग ज्योतिषी को हजारो रुपये देकर अनुष्ठान करवाते है

पर लाभ नहीं होता क्योंकि ज्यादातर ज्योतिषी तो नियम से गुरुमंत्र और गायत्री का जप भी नहीं करते!एक बार हिमाचल प्रदेश में मै एक संत से मिलने गया वे संत ज्योतिष का बहुत अच्छा ज्ञान रखते थे!संतजी से मैंने कहा संत जी मुझे भी थोडा ज्योतिष सिखा दीजिये!संत बोले थोडा क्यों सारा ज्योतिष सिखा दूंगा यह तो एक गणित है पर तुम्हारी कही भविष्यवाणी तभी सत्य होगी जब ईश्वर की तुम पर कृपा होगी!मै समझ गया संत जी क्या कहना चाहते थे!मैंने दोबारा कभी संत जी से ज्योतिष सिखाने के लिए नहीं कहा और जितना ज्योतिष गुरुदेव से सिखा था उसी के आधार पर कुंडली देखने लगा,कहने का मतलब है गुरुदेव का दिया हुआ गुरुमंत्र ही ज्योतिष का आधार है! ज्योतिष जैसे ही कुंडली खोलता है कह देता है आपकी कुंडली में तो गण्डमूल है और कह देता है पांच हज़ार लगेगे!ज्योतिष पैसे लेकर उपाय नहीं करते और जो करते है उनमे से अधिकतर ज्योतिषियो का उच्चारण सही नहीं होता इसलिए हमें लाभ नहीं होता और हम ज्योतिष विद्या को दोष देते है! आज मै आपको एक सरल उपाय बता रहा हूँ इस उपाय से कैसा भी गण्डमूल क्यों न हो शांत हो जाता है!मुझे इस बात का पता है कि इस उपाय को लिखने के बाद बहुत से ज्योतिषी मुझे बुरा भला कहेंगे और यह भी कहेंगे कि हमारे पेट पर लात मारने वाले तू कभी चैन से न बैठे पर मुझे इस बात कि कोई चिंता नहीं है!पहले आप यह जान लीजिये कि गण्डमूल क्या है?ज्योतिष के अनुसार २७ नक्षत्र है!इन २७ नक्षत्रो में से ६ नक्षत्र ऐसे है जिनमे यदि किसी का जन्म हो जाये तो उसे गण्डमूल कहा जाता है!इनमे से तीन नक्षत्र केतु के प्रभाव में आते है और तीन नक्षत्र बुध के प्रभाव में आते है!मघा,मूल,ज्येष्ठा,अश्वनी,अश् लेशा,रेवती इन नक्षत्रो में जन्म लेने वाला गण्डमूल से पीड़ित होता है!जैसे ही गण्डमूल में बच्चा पैदा हो आप बच्चे के पिता को उसका मुख न देखने दे और पिता कि जेब में फिटकड़ी का टुकड़ा रखवा दे!अब २७ दिन तक प्रतिदिन २७ मूली पत्तो वाली बच्चे के सिर कि
तरफ रख दे और दुसरे दिन चलते पानी में वहा दे!इस प्रयोग से कैसा भी गण्डमूल हो शांत हो जायेगा पर बच्चे के पिता को २७ दिन मुख न देखने दे!एक बात समझ ले मूली के पत्ते बुध होते है क्योंकि उनका रंग हरा होता है और मूली का स्वाद कसैला होता है जो केतु का प्रतीक है!इस उपाय को लगातार २७ दिन कीजिये आशा करता हूँ इस उपाय से आप सबको लाभ होगा!मैंने यह उपाय बहुत बार आजमाया है यदि गुरुदेव ने चाहा तो भविष्य में कालसर्प योग और पितृ दोष के उपाय भी आपके सामने रखूंगा!

भगवान आय्य्पा साधना  एक कथा के अनुसार जब देवताओ और दानवो ने समुद्र मंथन किया और अमृत निकला तो उनमे युद्ध हो गया! भगवान व...
22/09/2024

भगवान आय्य्पा साधना
एक कथा के अनुसार जब देवताओ और दानवो ने समुद्र मंथन किया और अमृत निकला तो उनमे युद्ध हो गया! भगवान विष्णु ने तब मोहिनी अवतार लिया और एक बहुत सुंदर कन्या के रूप में प्रकट हुए!उन्हें देखकर देव दानव सभी उनपर मोहित हो गए!मोहिनी ने अपनी चतुराई से देवताओ को अमृत पिला दिया पर बेचारे दानव अमृत से वंचित रह गए!जिस समय यह सारी लीला भगवान विष्णु ने की उस समय भगवन शिव ने विष का घड़ा पिया था और वो उस विष को पीकर राम मन्त्र का जप कर रहे थे!भगवान शिव जब ध्यान से जागे तो उनके मन में भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखने की इच्छा हुई!भगवान विष्णु ने कहा हे शिव

आप तो महायोगी है सुंदर कन्या का दर्शन आप क्यों करना चाहते है?भगवान शिव ने कहा मैंने आपके सभी अवतारों के दर्शन किये है इस अवतार के भी दर्शन करने की इच्छा है!यह सुनकर भगवान विष्णु ने कहा हे शिव आपका योग भंग न हो जाये शिव ने कहा जो मर्जी हो जाये मुझे आपके मोहिनी अवतार के दर्शन करने है!भगवान विष्णु वहां से अंतर्ध्यान हो गए और कुछ समय बाद एक बहुत ही सुंदर कन्या शिव को नज़र आई!उस कन्या में गज़ब का आकर्षण था शिव उन्हें देखने के लिए उनके निकट गए तो वो पत्तो के पीछे छिप गयी!शिव उन्हें खोजने लगे तभी वो दोबारा शिव को नज़र आई और शिव ने उन्हें करीब से देखा और उनके रूप पर मोहित हो गए!भगवान शिव को देखकर वो कन्या भागने लगी जब भगवान शिव ने उसे अपने से दूर जाते देखा तो उसे पकड़ने के लिए उनके पीछे भागे इतनी सुंदर कन्या शिव ने पहले कभी नहीं देखी थी!भगवान शिव ने जैसे ही उन्हें स्पर्श किया वो अंतर्ध्यान हो गयी!

मोहिनी तो चली गयी पर भगवान शिव उनके ध्यान से बाहर न आ पाए और भगवान शिव का वीर्यपात हो गया! उनके वीर्य को पारद कहा गया और उनके वीर्य से भगवान आय्य्पा का जन्म हुआ!भगवान आय्य्पा की माता मोहिनी और पिता भगवान शिव है इसलिए उन्हें हरिहर पुत्र आय्य्पा कहा जाता है!इनकी पूजा दक्षिण भारत में अधिक होती है! जो फल शिव और विष्णु की पूजा से मिलता है वो फल भगवान आय्य्पा की पूजा से मिलता है!आज के समय में धन एक बहुत बड़ी समस्या है पर भगवान आय्य्पा के पूजन से धन लाभ मिलता है और आय के नए रास्ते खुलते है! धन लाभ में चाहे कोई भी समस्या हो ग्रह दोष हो या किसी द्वारा कोई किया गया तंत्र प्रयोग हो या व्यपार में बार बार घाटा पड़ रहा हो समस्या कोई भी हो इन सभी समस्याओ को भगवान आय्य्पा की कृपा से दूर किया जा सकता है!केवल धन लाभ ही नहीं इस साधना से आपकी अनेको मनोकामनाए पूर्ण हो सकती है!यह साधना बहुत शीघ्र प्रभाव देती है!
इस साधना से आपमें मोहिनी के गुण आ जायेगे और आप दुसरो को आकर्षित कर लेगे!इस साधना के सभी गुणों का वर्णन करना संभव नहीं यह साधना अद्भुत है!

साधना मन्त्र::-
स्वामी शरणम् आय्य्पा!

साधना विधि::-
आप एक आम की लकड़ी का पट्टा बनाये उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाए उस पर तीन ढेरिया चावल की लगाये और प्रत्येक ढेरी पर एक एक सुपारी रखे और बीच वाली ढेरी को भगवान आय्य्पा माने और दाहिनी ढेरी को भगवान शिव और बाए तरफ की ढेरी को विष्णु मानले!पूर्व की तरफ मुख कर बैठ जाये और आपके कपडे लाल होने चाहिए आसन भी लाल होना चाहिए!तीनो ढेरियो के सामने घी का दीपक जलाये और सबसे पहले गुरु पूजन करे और गुरुमंत्र जपे फिर गणेश पूजनकरे फिर भैरव पूजन करे फिर भगवान शिव का पूजन करे और भगवान विष्णु का पूजन करे और तीनो ढेरियो पर दो दो लौंगऔर कपूर रख दे!तीनो ढेरियो को दो दो बतासे का भोग लगाये!अब भगवान आय्य्पा से प्रार्थना करे कि मै 31 दिन तक प्रतिदिन51 माला आपके इस मन्त्र की जपूंगा कृपा कर आप मेरी धन सम्बन्धी सभी समस्याए दूर करे!आपको इस मन्त्र की 31 दिन प्रतिदिन 51 माला जपनी है!साधना समाप्त होने पर आप सारी सामग्री लाल कपडे में बांध कर चलते पानी में बहादे!इस साधना में आप रुद्राक्ष या स्फटिक की माला इस्तेमाल कर सकते है!

एक बात मै यहाँ स्पष्ट रूप से लिखना चाहता हूँ!मै यह साधना पोस्ट नहीं करना चाहता था क्योंकि बस कुछ लोग पोस्ट को लाइक करके छोड़ देते है साधना तो कोई करता भी नहीं तो इतनी अच्छी साधना पोस्ट करने से क्या लाभ!मुझे झूठे कमेन्ट्सनहीं चाहिए और न ही झूठी प्रशंसा आप सब लोगो के बार बार कहने पर विशेष तौर पर संतोष निखिल गुप्ता के कहने पर यह साधना पोस्ट करदी अब देखना यह है आपमें से कितने लोग इस साधना को करते है!जिस प्रकार आप लोग हमसे अच्छी साधनाओ की उम्मीद रखते है उसी तरह हम लोग भी आपसे उम्मीद रखते है!इस साधना पर मुझे इतना विश्वास है कि इस साधना कि गारंटी मै कोरे कागज़ पर दस्तखत कर देने को भी तयार हूँ बाकी सबका अपना अपना विश्वास है!

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