Ram Dayal Chopra

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19/01/2024
19/01/2024

रामपुर बुशैहर के 15/20 के सरपारा गाँव के नो नागों का इतिहास अपने आप मैं बहुत ही स्वर्णिम है ।

महाकाव्यों तथा पुराणों में नागो का उल्लेख मिलता है।नाग देवताओं का इतिहास रहस्यों से भरा होता है।प्राकृतिक सौंदर्य के बीच बसा एक गांव सरपारा स्तिथ है।यह क्षेत्र जलनाग देवता का निवास स्थान है। यहां पर जलनाग देवता का मंदिर भी स्थित है।इसके अलावा जल नाग देवता का पवित्र और सुंदर सरोवर (सौर) भी है।यह क्षेत्र नौ नागों की पवित्र जन्मभूमि भी है।दंत कथा के अनुसार एक समय की बात है सरपारा गांव के रायपाल्टू परिवार की अविवाहित युवती जल नाग के सरोवर (सौर) के पास पशु चरा रही थी।सरोवर में अनेक प्रकार के पुष्प खिले हुए थे।वहां पर खिले एक लाल रंग के सुंदर फूल को देखकर युवती उस फूल की और मोहित हुई।और उसने वो फूल तोड़ डाला और अपने घर ले गई।कुछ महीनो बाद वो महिला गर्भवती हो गई।युवती का स्थानीय नाम लामदूधी था। गर्भ धारण करने के कुछ समय के बाद उस युवती ने नौ नाग पुत्रों को जन्म दिया।लोक लाज के कारण उस युवती ने उन छोटे छोटे नागों को एक टोकरे (छाबडू) में बंद करके पशुशाला (खूड़) में छिपा कर रख दिया।जब वो युवती गाय का दूध निकालने जाती तब चोरी छिपे वो उन छोटे नागों के बचो को दूध पिलाती।ऐसा वो युवती रोज करने लगी।दूध की मात्रा में कमी होने के कारण उसके परिवार वालो को शक हो गया।परिवार वालों ने सोचा वो कच्चा दूध किसको पिलाती है।एक दिन उस युवती की मां पशुशाला (खूड़) में गई उसी समय परिवार की एक सदस्य गेंहू के कच्चे दाने (मौड़ी) भून रही थी।पशुशाला में टोकरे के भीतर नागों को देखकर युवती की मां आगबबूला हो गई।और उसने वो टोकरी गेहूं भूनने वाले बर्तन के उपर उड़ेल दिया।बर्तन गर्म होने के कारण नागों के छोटे-छोटे बच्चे अलग अलग दिशाओं में भागे।कुछ नागों ने साथ लगती जिला कुल्लू की सीमाओं में प्रवेश किया। उनमें से एक नाग धारा सरगा दूसरा खरगा तीसरा देथवा गए।
।एक नाग धुंए के रूप में सुंगरी बहाली होते हुए खाबल रोहड़ू गए।बाकी बचे नाग दूसरी दिशा में गए एक नाग जाघोरी गए उन्होंने जघोरी को ही अपना निवास स्थान चुना। सबसे छोटे नाग अधिक आग में जलने के कारण अपने पिता जलनाग के पास ही शरण ले ली।नाग में से सबसे बड़े भाई वर्तमान में बोंडा (सराहन) क्षेत्र के आराध्य देवता है।उनके अनुज भाई अपनी माता लाम्बदुधी को लेकर काओबिल की और चल पड़े।छोटे भाई ने काओबिल को अपना निवास चुना और वहीं रुक गए।वर्तमान में उन्हें काओबिल के स्थानीय नाग देवता के रूप में जाना जाता है। जलनाग देवता के सबसे बड़े पुत्र बोंडा नाग ने अपनी माता को अपने साथ ले जाने की जिद्द की नाग माता का वो सबसे प्रिय पुत्र था।अपने प्रिय पुत्र के आग्रह पर नाग माता उसके साथ सराहन की ओर चल पड़ी। काओबिल से नीचे उतरने के बाद वे सतलुज नदी के निकट आ पहुंचे।उस समय नदी पर कोई पुल नही था।नागमाता ने जल के स्तर को देख कर नदी पार जाने से इंकार कर दिया।अपनी माता को अपने बोंडा ले जाने की इच्छा पूरी करने के लिए नदी के आर पार एक विशालकाय नाग का रूप धारण नदी के आर पार अपना शरीर फैलाकर पुल का निर्माण किया।लेकिन नाग माता ने अपने प्रिय पुत्र की पीठ पर जाकर नदी पार करने से मना कर दिया।इस बात का साक्ष्य आज भी वह मौजूद है जहां नाग साहब ने पुल का निर्माण किया था आज वहां सीधा मैदान है। माता ने अपने बड़े बेटे से विनम्र निवेदन किया और काओबिल में रहने की इच्छा जताई।बड़े बेटे ने अपनी माता की आज्ञा का पालन किया और माता से विदा लेकर स्वयं सराहन क्षेत्र की ओर चल पड़े। नाग माता लाम्बदुधी जो उस वक्त मानव के रूप में थी ने काओबिल की ओर चढ़ाई चढ़ना शुरू की चलते चलते नाग माता थक गए और कुकीधार नामक जगह पर नीचे बैठ कर पसीना पोछने लगी।पसीने की कुछ बूंद जमीन पर गिरी।जिस स्थान पर पसीने की बूंद गिरी आज भी वहां पर जल का स्त्रोत मौजूद है।उसके पश्चात वो अपने प्रिय पुत्र को वहां से देखने लगी।लेकिन उसकी नजरे पुत्र को ढूंढ़ नही पाई।कुछ कदम दूर चलने के बाद नाग माता के स्तनों से दुग्ध की धारा बहने लगी।अब नाग माता को अपने पुत्र की याद सताने लगी।अपने पुत्र की याद में नाग माता ने कुकीधार के समीप अपना दूध निकल कर रखा।आज उस स्थान पर एक छोटा सा कुआं है जो इस बात का जीवंत प्रमाण है पूरे इलाके में सुखा होने के बावजूद भी वो नही सूखता।90 वर्ष के बुजुर्ग श्री भगत राम वर्मा के अनुसार जब वो युवावस्था में भेड़ बकरियां चुगाया करते थे।जब उनकी भेड़ बकरियां उस कुएं से पानी पीती थी तो उनके मुंह से पानी की जगह दूध की झाग निकलती थी।उसके पश्चात नाग माता ने चलते चलते कुकीधार में विश्राम किया।विश्राम करते करते उनकी नजर एक खुबसुरत झरने पर पड़ी।झरने की खूबसूरती को देखकर नाग माता की सारी थकान दूर हो गई।और नागमाता ने ये निश्चय किया की वे इस झरने के नीचे निवास करेगी।नाग माता ने अपना मानव का रूप छोड़ कर नागिन का रूप धारण किया।वर्तमान में इस झरने को काओछौ (झरना) के नाम से जाना जाता है।ऐसी मान्यता है जब सूर्य की किरणे इस झरने पर पड़ती है तो ये सात रंगों में बदल जाता है। ऐसा भी माना जाता है नाग माता उस समय झरने के नीचे स्नान करती थी।झरना विशाल चट्टान को चीरता हुआ बहता है।यह स्थान अत्यंत पवित्र एवम् दर्शनीय है।आज भी जब कभी किसी नाग देवता का आगमन काओबिल में होता है तो नाग अपनी माता की विधिवत पूजा अर्चना करके अपनी शीश नवाते है।और देवता के बजंत्री पारंपरिक तरीके से नाग माता का स्वागत करते है।

जय हो जल नाग जी की🙏🙏
जय हो नाग माता लाम्बदुधी की🙏
जय हो नौ नागों की 🙏🙏

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