Sewa Publicity

Sewa Publicity Read & Listen Brahmakumaris Daily Murli Pune Property made easy to search residential / commercial properties in Pune.

Buy, Sell and Rent Best Residential Properties in Pune by Real Property owners, Dealers, Builders and Real Estate Agents.

Amazing Rakhi Collection
18/08/2024

Amazing Rakhi Collection

Designer rakhi - a touch of modernity into the traditional and sacred thread of rakhi. The rakhi thread is introduced for the celebration of the festival of rakhi that is also known as ‘raksha bandhan’. It is the sacred thread that every sister ties on the wrist of their brother, while praying t...

“आज गुरुपौर्णिमा”ज्यांनी मला घडवलं,या जीवनात मला जगायला शिकवलं, लढायला शिकवलं,अशा प्रत्येकाचा मी ऋणी आहे… असेच माझ्या पा...
21/07/2024

“आज गुरुपौर्णिमा”
ज्यांनी मला घडवलं,
या जीवनात मला जगायला शिकवलं, लढायला शिकवलं,
अशा प्रत्येकाचा मी ऋणी आहे… असेच माझ्या पाठीशी उभे रहा,
माझ्यासाठी प्रत्येक व्यक्ती गुरु आहे. मग तो लहान असो व मोठा..
मी प्रत्येकाकडून नकळत खुप काही शिकत असतो..
अशा आपल्या सारख्या लहान मोठ्या थोर व्यक्तींना माझा हृदयापासून धन्यवाद…!

गुरु पौर्णिमेच्या हार्दिक शुभेच्छा.. 💐💐

Ranjan Kolambe sir's Economics New updated edition available now
05/03/2024

Ranjan Kolambe sir's Economics
New updated edition available now

Ranjan Kolambe - UPSC/MPSC Bharatiya Arthavyavastha - Bhagirath Ptrakashan - 15vi Avrutti/2024-25

📱OnePlus 12R 📣Sale today, 12 PM⚡️Starting Rs 38,999 #-Free OnePlus Buds Z2*-₹1,000 Instant Discount* with ICICI / One...
06/02/2024

📱OnePlus 12R 📣Sale today, 12 PM

⚡️Starting Rs 38,999 #
-Free OnePlus Buds Z2*
-₹1,000 Instant Discount* with ICICI / OneCard Banks Credit Cards & Credit Card EMI
-*T&C Apply | Bank Offer
👉Buy Now
https://amzn.to/42sx08W

02/02/2024
30-01-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन“मीठे बच्चे - अब तुम्हारी सुनवाई होती है, बाप तुम्हें दु:ख से निकाल सुख...
30/01/2024

30-01-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - अब तुम्हारी सुनवाई होती है, बाप तुम्हें दु:ख से निकाल सुख में ले जाते हैं, अभी तुम सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, वापस घर जाना है''

प्रश्नः-
सदा योगयुक्त रहने तथा श्रीमत पर चलने की आज्ञा बार-बार हर बच्चे को क्यों मिलती है?

उत्तर:-
क्योंकि अभी अन्तिम विनाश का दृश्य सामने है। करोड़ों मनुष्य मरेंगे, नैचुरल कैलेमिटीज होंगी। उस समय स्थिति एकरस रहे, सब दृश्य देखते भी मिरूआ मौत मलूका शिकार..ऐसा अनुभव हो, उसके लिए योगयुक्त बनना पड़े। श्रीमत पर चलने वाले योगी बच्चे ही मौज में रहेंगे। उनकी बुद्धि में रहेगा कि हम तो पुराना शरीर छोड़ अपने स्वीट होम में जायेंगे।

ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों से रूहरिहान करते हैं अथवा रूहों को समझाते हैं क्योंकि रूहों ने भक्ति मार्ग में बहुत याद किया है। सब आशिक हैं एक माशूक के। उस माशूक शिवबाबा का चित्र बना हुआ है। उनको बैठ पूजते हैं। उनसे क्या मांगने चाहते हैं, वह पता नहीं है। पूजते तो सब हैं, शंकराचार्य भी पूजा करते हैं। सब उनको बड़ा समझते हैं। भल धर्म स्थापक हैं, परन्तु वह भी पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते हैं। अभी सब पिछाड़ी के जन्म में आकर पहुँचे हैं। बाबा कहते हैं तुम छोटे बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। मैं तुम सबको वापिस ले जाता हूँ। मुझे बुलाते ही हैं कि पतित दुनिया में आओ। कितना रिगॉर्ड रखते हैं। पतित दुनिया पराये राज्य में आओ। ज़रूर दु:खी होंगे तब तो बुलायेंगे। गाया जाता है दु:ख हर्ता सुख कर्ता तो ज़रूर छी-छी पुरानी दुनिया, पुराने शरीर में आना पड़े। वह भी तमोप्रधान शरीर में। सतोप्रधान दुनिया में मुझे कोई याद भी नहीं करता। ड्रामा अनुसार सबको मैं सुखी बना लेता हूँ। बुद्धि से काम लेना है कि सतयुग में ज़रूर आदि सनातन देवी देवता धर्म होगा और सतसंगों में तो सिर्फ शास्त्र पढ़ते-पढ़ते नीचे उतरते जाते हैं। दलदल में पड़ने वाले दु:खी होते हैं। यह है ही दु:खधाम। वह है सुखधाम। बाप कितना सहज करके समझाते हैं क्योंकि बिचारी अबलायें कुछ भी नहीं जानती हैं। कोई को भी यह पता नहीं है कि फिर वापिस भी जाना है या सदैव पुनर्जन्म लेते ही रहना है। अभी तो सब धर्म वाले हैं। पहले-पहले स्वर्ग था तो एक ही धर्म था। सारा चक्र तुम्हारी बुद्धि में है। कोई और की बुद्धि में यह बातें रह न सके। वह तो क

♦️मंत्री संपर्क क्रमांकClick here https://t.me/GR_GoM/8👉 राज्य मंत्रिमंडळ १४.०७.२०२३    👉 सर्व कॅबिनेट मंत्री व त्यांचे ...
18/07/2023

♦️मंत्री संपर्क क्रमांक
Click here https://t.me/GR_GoM/8

👉 राज्य मंत्रिमंडळ १४.०७.२०२३

👉 सर्व कॅबिनेट मंत्री व त्यांचे कार्यालयामध्ये असणाऱ्या स्वीय सहाय्यक व विशेष कार्य अधिकारी यांच्या संपर्काची यादी..
☎️☎️📞📞
➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️
स्पर्धा परीक्षेच्या जाहिराती, अपडेट तसेच अभ्यास साहित्य करता आमचे टेलिग्राम चैनल Join करा
➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️➖️
Join

25-06-2023     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 19.01.95 "बापदादा"    मधुबनब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख आज्ञाकारी और सर्वन्श त्या...
25/06/2023

25-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 19.01.95 "बापदादा" मधुबन

ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख आज्ञाकारी और सर्वन्श त्यागी बनो

LG 1.5 Ton 2 Star DUAL Inverter Split AC (Copper, Convertible 4-in-1 Cooling, HD Filter with Anti-virus Protection, 2023 Model, RS-Q18ZNVE, White)
https://amzn.to/3NoMSlU


आज बेहद का बापदादा अपने बेहद के सेवा साथियों को देख रहे हैं। दो प्रकार के साथी हैं - एक हैं स्नेह सम्बन्ध का साथ निभाने वाले और दूसरे हैं स्नेह, सम्बन्ध और सेवा का साथ निभाने वाले। दोनों प्रकार के साथियों को देख रहे हैं। चाहे विश्व के लास्ट कोने में भी हैं लेकिन बापदादा के सामने हैं। बापदादा और बच्चों का वायदा है कि कहाँ भी रहेंगे, जहाँ भी हैं लेकिन सदा साथ हैं। ये ब्राह्मण जीवन आदि से अन्त तक बाप और बच्चों का अविनाशी साथ है। चाहे बच्चे साकार में हैं और बापदादा आकार निराकार हैं लेकिन अलग हैं क्या? नहीं है ना! तो दूर हो या समीप हो? ये दिल की समीपता साकार में भी समीपता अनुभव कराती है। चाहे किसी भी देश में हैं लेकिन दिल की समीपता साथ का अनुभव कराती है। अलग हो नहीं सकते, असम्भव है। परमात्म वायदा कभी टल नहीं सकता। परमात्म वायदा भावी बन जाता है तो भावी टाली नहीं टलेश् इसलिये सदा समीप हैं, सदा साथी हैं और साथी बन हाथ में हाथ, साथ लेते हुए कितने मौज से चल रहे हैं। मौज है कि मेहनत है? थोड़ी-थोड़ी मेहनत है? जब कोई बात आ जाती है तो बाप किनारे हो जाता है। कोई बात को नहीं लाओ तो बाप नहीं जायेगा। बात बाप को किनारे करती है। जैसे बीच में कोई पर्दा आ जाये, तो पर्दा आने से किनारा हो जाता है ना! तो ये बात रूपी पर्दा बीच-बीच में आ जाता है। लेकिन लाने वाला कौन? पर्दे का काम है आना और आपका काम क्या है? हटाना या थोड़ा-थोड़ा मजा लेना? बापदादा देखते हैं, बच्चे कभी-कभी बातों में बड़े मजे लेते हैं।

Brahmakumaris Songs https://youtu.be/_QevQkd_VZ8

जिससे प्यार होता है, प्यार की निशानी है साथ रहना। साथ रहने का मतलब यह नहीं है कि आबू में रहना। आबू में तो देखो अभी थोड़ी भी संख्या ज्यादा है तो पानी की मुश्किल हो गई है ना! तो साकार में साथ रहना नहीं लेकिन दिल से साथ निभाना। अगर दिल से साथ नहीं निभाते तो मधुबन में होते भी दूर हैं और लास्ट देश में रहते भी दिल से समीप हैं तो वो साथ हैं, इसीलिये बापदादा को दिलाराम कहते हैं, शरीर राम नहीं कहते। तो दिल बाप में है ना? बाप के दिल में आपका दिल है और आपके दिल में बाप का दिल है। तो दिल जाने इस रूहानी साथ को। अनुभवी हो ना? कि यहाँ से जायेंगे तो कहेंगे दूर हो गये? नहीं। सदा साथ निभाना - यह कोई भी आत्मा, आत्मा से नहीं निभा सकती। एक ही परम आत्मा आत्माओं से साथ निभा सकता है। और ये परमात्म साथ निभाने का भाग्य आप सभी बच्चों को ही है ना?

(आज पूरे हॉल में सभी भाई-बहिनें पट पर बैठे हुए हैं) बहुत अच्छी सीन है। बापदादा को आज की सभा का दृश्य देख करके यादगार याद आ रहा है। यादगार में रूद्र माला दिखाते हैं, उसमें सिर्फ फेस दिखाई देते हैं, शरीर नहीं दिखाई देते। तो यहाँ से भी सिर्फ फेस ही दिखाई दे रहे हैं, बाकी कुछ नहीं दिखाई देता। तो रूद्र माला का यादगार दिखाई दे रहा है। एक के पीछे एक बैठे हैं ना तो शरीर छिप गये हैं, फेस दिखाई दे रहे हैं।

ये है स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप - ब्रह्मा बाप से सभी का स्नेह है तब तो आये हो ना! और कहलाते भी सभी ब्रह्माकुमार और ब्रह्मा-कुमारी हो, शिवकुमार, शिवकुमारी नहीं कहते। तो ब्रह्मा बाप से ज्यादा प्यार है ना! और ब्रह्मा बाप का भी सदा बच्चों से प्यार है। तभी तो अव्यक्त होते भी अव्यक्त पालना कर रहे हैं। अव्यक्त पालना मिल रही है ना? या आप कहेंगे कि हमने ब्रह्मा बाबा का अनुभव नहीं किया है? ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी कहलाते हो तो क्या बिना बाप की पालना के पैदा हो गये! अगर ब्रह्मा बाप की पालना नहीं होती तो आज सिर्फ निराकार बाप की पालना से यज्ञ की रचना और यज्ञ की वृद्धि नहीं होती। डबल फॉरेनर्स को ब्रह्मा बाप की पालना मिलती है ना? (हाँ जी) देखो, फॉरेन में बाप जाता है, तो इण्डिया में नहीं करता है क्या! तो उलहना तो नहीं देते कि बाबा हमने देखा ही नहीं! सदा मिलते, सदा देखते, सदा साथ रहते हैं। साकार शरीर में, साकार रूप में तो सदा साथ नहीं दे सकते लेकिन अव्यक्त रूप में सभी को साथ दे सकते हैं। जब चाहो मिलन के दरवाजे खुले हुए हैं। अव्यक्त वतन में नहीं कहेंगे कि अभी जगह नहीं है, अभी टाइम नहीं है, नहीं। देह में देह के बंधन हैं और अव्यक्त में न देह का बंधन है, न देह की दुनिया के कायदों का बंधन है। यहाँ तो कायदे रखने पड़ते हैं ना - आगे बैठो, पीछे बैठो। अभी भी समय प्रमाण बहुत-बहुत-बहुत भाग्यवान हो! फिर भी बैठने की जगह तो मिली है ना! फिर तो खड़े रहने की भी जगह मुश्किल होगी क्योंकि आप सभी को औरों को चांस देना पड़ेगा। अभी तो आप लोगों को चांस मिला है। जैसे अभी देखो मधुबन वालों को चांस देना पड़ा ना! (सभी मधुबन निवासी तथा आबू निवासी पाण्डव भवन में मुरली सुन रहे हैं) ये भी परिवार का प्यार है।

ब्रह्मा बाप से प्यार अर्थात् बाप समान बनना। निराकार के समान बनना, वो थोड़े समय का अनुभव करते हो। लेकिन ब्राह्मण अर्थात् सदा ब्रह्मा समान ब्रह्माचारी। जो ब्रह्मा बाप का आचरण वो ही सर्व ब्राह्मणों का आचरण अर्थात् कर्म। उच्चारण भी ब्रह्मा बाप समान है, आचरण भी ब्रह्मा बाप समान है, जिसको कहते हो फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप के हर कदम पर कदम रखना इसको कहा जाता है फॉलो फादर। तो ब्रह्मा बाप ने बाप के श्रीमत पर पहला कदम क्या उठाया?

पहला कदम आज्ञाकारी बने। जो आज्ञा मिली उसी आज्ञा को प्रत्यक्ष स्वरूप में लाया। तो चेक करो कि आज्ञाकारी के पहले कदम में फॉलो फादर हैं? अमृतवेले से लेकर रात तक मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्बन्ध, सम्पर्क में जो आज्ञा मिली हुई है उसी आज्ञा प्रमाण चलते हैं? कि कोई आज्ञा पालन होती है और कोई नहीं होती है? संकल्प भी आज्ञा प्रमाण है कि मिक्स है? अगर मिक्स है तो फुल आज्ञाकारी हैं या अधूरे आज्ञाकारी? हर समय के संकल्प की आज्ञा स्पष्ट मिली हुई है। अमृतवेले क्या संकल्प करना है ये भी स्पष्ट है ना! तो फॉलो करते हो कि कभी परमधाम में चले जाते हो और कभी निद्रालोक में चले जाते हो? हर कर्म में, हर समय कदम पर कदम है? बाप का कदम एक और बच्चे का कदम दूसरा हो तो उसे आज्ञाकारी नहीं कहेंगे ना! चाहे परमार्थ में, चाहे व्यवहार में, दोनों में जो जैसी आज्ञा है वैसे आज्ञा को पालन करना - इसकी परसेन्टेज़ चेक करो। चेक करना आता है? तो पहला कदम आज्ञाकारी बने, इसलिये आज्ञाकारी को सदा बाप की दुआएं स्वत: मिलती हैं और साथ-साथ ब्राह्मण परिवार की भी दुआएं हैं। तो चेक करो कि जो भी संकल्प किया, चाहे स्व प्रति, चाहे सेवा के प्रति, चाहे स्थूल कर्म के प्रति या अन्य आत्माओं के प्रति उसमें सबकी दुआयें मिली? क्योंकि आज्ञाकारी बनने से सर्व की दुआयें मिलती हैं और यदि दुआयें मिल रही हैं तो उसकी निशानी है कि दुआओं के प्रभाव से दिल सदा सन्तुष्ट रहेगी, मन सन्तुष्ट रहेगा। बाहर की सन्तुष्टता नहीं लेकिन मन की सन्तुष्टता। और मन की सन्तुष्टता यथार्थ है वा मियाँ मिट्ठू हैं - इसकी निशानी, अगर यथार्थ रीति से यथार्थ आज्ञाकारी हैं, दुआएं हैं तो सदा स्वयं और सर्व डबल लाइट रहेंगे। अगर डबल लाइट नहीं रहते तो समझो मन की सन्तुष्टता नहीं। बाप की वा परिवार की दुआएं भी नहीं मिल रही हैं। परिवार की भी दुआएं आवश्यक हैं। ऐसे नहीं समझो कि बाप से हमारा कनेक्शन है, बाप की तो दुआएं हैं, परिवार से नहीं बनता कोई हर्जा नहीं। पहले भी सुनाया कि माला में सिर्फ युगल दाना नहीं है, उससे माला नहीं बनती। तो माला में आना है इसलिए पूरा लक्ष्य रखो कि हरेक आत्मा मुझे देखकर खुश रहे, देख करके हल्के हो जायें, बोझ खत्म हो जाए। तो दिल की सन्तुष्टता वा आज्ञाकारी की दुआएं स्वयं को भी लाइट और दूसरे को भी लाइट बनायेंगी। इससे समझो कि आज्ञाकारी कहाँ तक हैं? जैसे ब्रह्मा बाप को देखा हर एक छोटा-बड़ा सन्तुष्ट होकर खुशी में नाचता। नाचने के टाइम तो हल्के होंगे ना तभी तो नाचेंगे ना। चाहे कोई मोटा है लेकिन मन से हल्का है तो भी नाचता है और पतला है लेकिन भारी है तो नहीं नाचेगा। तो बोल ऐसे हों जो स्वयं भी अपने आपसे सन्तुष्ट हो और दूसरे भी सन्तुष्ट रहें। ऐसे नहीं, हमारा तो भाव नहीं था, हमारी तो भावना नहीं थी, लेकिन भाव और भावना पहुँचती क्यों नहीं? अगर सही है तो दूसरे तक वायब्रेशन्स क्यों नहीं जाता है? कोई तो कारण होगा ना? तो चेक करो दुआओं के पात्र कहाँ तक बने हैं?

जितना अभी बाप और ब्राह्मण आत्माओं की दुआओं के पात्र बनेंगे उतना ही राज्य के पात्र बनेंगे। अगर अभी ब्राह्मण परिवार को सन्तुष्ट नहीं कर सकते, तो राज्य क्या चलायेंगे! राज्य को क्या सन्तुष्ट करेंगे! क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें आपकी रॉयल फैमिली बनेंगे तो जो फैमिली को सन्तुष्ट नहीं कर सकते वो प्रजा को क्या करेंगे? संस्कार तो यहाँ भरना है ना! कि वहाँ योग करके भरेंगे! यहाँ ही भरना है। अगर वर्तमान ब्राह्मण परिवार में कारण का निवारण नहीं कर सकते, कारण-कारण ही कहते रहते हैं, तो जहाँ कारण है वहाँ निवारण शक्ति नहीं है। अगर परिवार में निवारण शक्ति नहीं तो विश्व के राज्य को क्या निवारण करेंगे! क्योंकि आपके राज्य में हर आत्मा सदा निवारण स्वरूप है। वहाँ कारण होंगे क्या? जैसे अभी राज्य सभा में कारण बताते हैं - ये कारण है, ये कारण है, ये कारण है... वहाँ ऐसे राज्य दरबार होगी क्या? वहाँ तो सिर्फ खुश ख़ैऱाफत पूछेंगे। सिर्फ दरबार नहीं है लेकिन बहुत अच्छा मिलन है। तो कारण कहकर अपने को दुआओं से वंचित नहीं करो। ब्रह्मा बाप ने कारण को निवारण किया इसीलिये नम्बरवन हुआ। बापदादा के पास सभी के कारणों के फाइल ही इकट्ठे होते हैं। सभी के फाइल हैं - किसका छोटा, किसका बड़ा फाइल है। तो अभी भी फाइलें रखनी है, फाइल बढ़ाते रहना है या रिफाइन होना है? तो आज से फाइल सब खत्म कर दें? फिर दूसरा नया फाइल तो नहीं रखना पड़ेगा। अगर नया फाइल रखा तो फाइन पड़ेगा। सोच लो! बोलो - खत्म करें कि थोड़ा दिन रखें? शिव रात्रि तक रखें! जो समझते हैं शिवरात्रि तक थोड़ी मार्जिन मिलनी चाहिये, तब तक पुरुषार्थ करके रिफाइन हो जायेंगे, वो हाथ उठाओ। अच्छा है, हिम्मत रखना भी अच्छी बात है। लेकिन सिर्फ अभी हिम्मत नहीं रखना। ऐसे तो नहीं बापदादा के सामने थे तो हिम्मत थी, नीचे उतरे तो थोड़ी हिम्मत कम हो गई और अपने देशों में गये तो और कम हो गई। कोई बात आई तो और कम हो गई। ऐसे तो नहीं करेंगे? देखो जब कोई भी कारण सामने आता है और कारण के कारण हिम्मत कम होती है, कमजोरी आती है और जब वो बात समाप्त हो जाती है तो अपने ऊपर शर्म आती है ना! अपने ऊपर ही संकोच होता है कि ये अच्छा नहीं किया, ये अच्छा नहीं हुआ। करके और फिर पश्चाताप् करे... ये तो आपकी प्रजा का काम है या आपका है? पश्चाताप् वाले क्या राजा बनेंगे? तो सोचो साक्षी स्थिति के सिंहासन पर बैठ जाओ और अपने आपको ही जज करो। अपना जज बनना, दूसरे का जज नहीं बनना। दूसरे का जज बनना सभी को आता है, दूसरे का जज बहुत जल्दी बन जाते हैं और अपना वकील बन जाते हैं। तो साक्षीपन के सिंहासन पर अपने आपका निर्णय बहुत अच्छा होगा। सिंहासन के नीचे रहकर जज करते हो तो निर्णय अच्छा नहीं होता। सेकेण्ड में तख्तनशीन बन जाओ। ये स्थिति आपका तख्त है। यथार्थ सहज निर्णय का तख्त ये साक्षीपन की स्थिति है। साक्षी नहीं होते हैं तो दूसरे की बात, दूसरे की चलन वो ज्यादा सामने आती है, अपनी नहीं आती। अगर साक्षी होकर देखेंगे तो अपनी भी नज़र आयेगी, दूसरे की भी नज़र आयेगी। फिर जजमेन्ट जो होगी वो यथार्थ होगी, नहीं तो यथार्थ नहीं होती।

बापदादा ने पहले भी सुनाया था कि ड्रामा में जो भी बातें आती हैं, उन बातों में बहुत अच्छा अक्ल है लेकिन कभी-कभी ब्राह्मण बच्चों में अक्ल थोड़ा कम हो जाता है। बात आती है और चली जाती है, लेकिन ब्राह्मण बच्चे बात को पकड़कर बैठते हैं। बात रूकती नहीं, चली जाती है लेकिन स्वयं बात को नहीं छोड़ते। तो बातों में अक्ल ज्यादा हुआ या ब्राह्मणों में? बातें अक्ल वाली हुई ना! कई बच्चे कहते हैं दो दिन से ये बात चल रही है, दो घण्टे ये बात चली और दो घण्टे में गँवाया कितना? दो दिन में गँवाया कितना? तो अक्ल वाले बनो। अच्छा।

चारों ओर के सर्व बापदादा के स्नेह को प्रत्यक्ष करने वाले, फॉलो फादर करने वाले श्रेष्ठ आत्मायें, सदा बापदादा के कदम पर कदम रखने वाले आज्ञाकारी श्रेष्ठ आत्मायें, सदा दृढ़ संकल्प द्वारा ब्रह्मा बाप समान सर्वंश त्यागी विशेष आत्मायें, सदा सपूत बन हर समय सबूत देने वाले सुपात्र आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

वरदान:-
ब्रह्मा बाप के कदम पर कदम रख हद को बेहद में समाने वाले बेहद के बादशाह भव

फालो फादर करना अर्थात् मेरे को तेरे में समाना, हद को बेहद में समाना, अभी इस कदम पर कदम रखने की आवश्यकता है। सबके संकल्प, बोल, सेवा की विधि बेहद की अनुभव हो। स्व-परिवर्तन के लिए हद को सर्व वंश सहित समाप्त करो, जिसको भी देखो वा जो भी आपको देखे - बेहद के बादशाह का नशा अनुभव हो। सेवा भी हो, सेन्टर्स भी हों लेकिन हद का नाम निशान न हो तब विश्व के राज्य का तख्त प्राप्त होगा।

स्लोगन:-
अपने ख्यालात आलीशान बना लो तो छोटी-छोटी बातों में टाइम वेस्ट नहीं जायेगा।

24-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबनजगदम्बा माँ के स्मृति दिवस पर प्रात:क्लास में सुनाने के लिए - अनमोल महा...
24/06/2023

24-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

जगदम्बा माँ के स्मृति दिवस पर प्रात:क्लास में सुनाने के लिए - अनमोल महावाक्य
FACES CANADA Banana Compact Powder 9g | 8HR Oil Control Complexion Enhancer | Smooth Matte HD Finish | Lightweight Translucent Powder Sets Makeup | Blurs & Conceals | Radiant Flawless Skin | Vitamin C
BuyNow https://amzn.to/3NMRm7k

“माया के अनेक प्रकार के विघ्नों से पार होना है, तो चेकिंग पॉवर से अपने आपको सावधान रखो, सम्भलकर चलो''
(मीठी माँ की मधुर लोरी https://youtu.be/hxiy8qMPUUw )

ओम् शान्ति। अभी चारों ओर माया का ज़ोर है क्योंकि उसका राज्य है और पिछाड़ी के समय उसमें जितनी भी ताकत है वह अभी अपनी पूरी ताकत लगायेगी, इसलिये जितना आगे बढ़ते जायेंगे उतना माया भी फोर्स देकर लड़ेगी। पहले तो माया का पता ही नहीं था। माया के वश में थे। अभी पता चला है तो हमसे ही लड़ेगी। दुश्मन बनेंगी। प्यार भी करेगी तो अन्दर दुश्मनी रख करके करेगी। जबकि जानते हो कि माया हमारी दुश्मन है तो किसम-किसम की सभी बातें सामने आयेंगी। कोई बन्धन नहीं है फिर भी मन के फालतू विकल्प तंग करेंगे। पहले शरीर में कभी रोग नहीं हुआ होगा, अभी वह भी होगा, कहेंगे इतना समय तो हम कभी बीमार नहीं पड़े, अभी बीमार पड़ गये हैं। धन की भी कमी पड़ेगी, बिजनेस में घाटा पड़ जायेगा, ऐसे और भी कई बातें होगी। दोस्त दुश्मन बन जायेंगे, मित्र-सम्बन्धी नहीं पूछेंगे, कई ऐसी उलट-पुलट बातें आ सकती हैं और आयेंगी क्योंकि अभी अपना पिछला हिसाब सब चुक्तू होना है।

अभी यह सब जो रावण का खाता था, उसको हम खत्म कर रहे हैं। देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों से अपनी बुद्धि हटाते हैं तो फिर वह सामना भी होगा, इसलिये ऐसी-ऐसी बातों में सम्भलना है। कई तो सोचते हैं भगवान के बने तो और ही मुसीबतें आ गई। जब मैं परमात्मा का बना हूँ, एक उसका ही सहारा लिया है तो मेरा सब अच्छा हो जाना चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं है। कई ऐसे ख्याल करते हैं कि हमारे पास कोई तकलीफ नहीं आनी चाहिए। परन्तु परीक्षायें जरूर होंगी, तरह-तरह की बहुत बातें आयेंगी। तो ऐसा ख्याल नहीं करना कि शायद मुझे भगवान ही नहीं मिला है। यह भगवान है या नहीं, पता नहीं हम कहीं उल्टे रास्ते पर तो नहीं हैं, जो भगवान नाराज़ हुआ है। ऐसे कई संकल्प आयेंगे...। ऐसे-ऐसे विघ्नों के कारण कई टूट जाते

Brahmakumaris meditation songs
23/06/2023

Brahmakumaris meditation songs

Kismat Ka Sh*tara 01. Aap Se Kismat Ka Sitara - BK Bhanu - Vijaya Ravat 02. Aapni Karuna Kirno Ko - BK Bhanu 03. Jab Tufan Se Man Ghabraye - Vijaya Ravat ...

BK Top 10 Meditation Songs
23/06/2023

BK Top 10 Meditation Songs

Kismat Ka Sh*tara 01. Aap Se Kismat Ka Sitara - BK Bhanu - Vijaya Ravat 02. Aapni Karuna Kirno Ko - BK Bhanu 03. Jab Tufan Se Man Ghabraye - Vijaya Ravat ...

23-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन“मीठे बच्चे - तुम सबका प्राण आधार आया है तुम्हें जमघटों के दु:खों की पी...
23/06/2023

23-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम सबका प्राण आधार आया है तुम्हें जमघटों के दु:खों की पीड़ा से छुड़ाने, वह तुम्हें स्वर्ग का वर्सा देता, वह सर्वव्यापी नहीं है''

प्रश्नः-
इस राजयोग में कौन-सा योग सदा कम्बाइण्ड है?

🎹 WORLD MUSIC FEST ⚡️ Up to 70% Off

– Headphones, party speakers and soundbars
– Up to 9 months No Cost EMI
– Up to 6 months spotify premium for free

👉 Shop Now
https://amzn.to/3XfqRdv

उत्तर:-
इस राजयोग में प्रजायोग सदा ही कम्बाइण्ड है क्योंकि राजा-रानी के साथ-साथ प्रजा भी चाहिए। अगर सब राजा बन जायें तो किस पर राज्य करेंगे? सब कहते हैं हम महाराजा-महारानी बनेंगे, हम राजयोग सीखने आये हैं। परन्तु राजा-रानी बनने के लिए तो बहुत हिम्मत चाहिए। पूरा बल होना चाहिए। बाप पर पूरा-पूरा बलि चढ़े तब राजाई में जा सकें।

गीत:-
प्रीतम आन मिलो...
Click Here to Listen Song https://youtu.be/hxiy8qMPUUw

ओम् शान्ति। प्रीतम को कौन बुलाते हैं? प्रीतमा को सजनी वा भक्ति कहा जाता है। बुलाते हैं साजन को, भगवान को अथवा बाप को। इसमें सर्वव्यापी का ज्ञान तो ठहरता नहीं। प्रीतम को बुलाते हैं कि आन मिलो। जीव-आत्मायें अपने परमपिता परमात्मा को बुलाती हैं - ओ परमपिता परमात्मा आओ, रहम करो। स्वर्ग में तो ऐसे नहीं बुलायेंगे। बरोबर यह दु:खधाम है तो प्रीतम को बुलाते हैं। प्रीतम भगवान एक है। क्रियेटर एक है। विश्व अथवा सृष्टि का चक्र भी एक है। बच्चे जानते हैं कि कलियुग से फिर सतयुग होगा। सतयुग में फिर से एक आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य होगा। यह नॉलेज है ना। तुम बच्चे जानते हो प्रीतम कैसे आये हैं। शिव तो है निराकार। तुम सब निराकारी आत्मायें हो। यहाँ आये हो पार्ट बजाने। अब निराकार बाप कैसे आया? राजयोग किसने सिखलाया? श्रीकृष्ण तो सतयुग स्थापन करने वाला नहीं है, उनको रचयिता नहीं कहेंगे। सभी जीव आत्माओं का प्रीतम एक परमपिता परमात्मा क्रियेटर, निराकार को कहेंगे। कहते हैं - मेरा जन्म शिव जयन्ति मनाते हैं। मेरा जन्म कोई श्रीकृष्ण सदृश्य नहीं होता। श्रीकृष्ण माँ के गर्भ से कैसे जन्म लेते हैं - वह भी बच्चों को साक्षात्कार कराया हुआ है। बाप कहते हैं मेरा नाम रुद्र भी है। गीता में भी है - यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ अर्थात् शिव का रचा हुआ यज्ञ। तो जरूर निराकार शिव को साकार में आना पड़े। बाप बैठ समझाते हैं - इस गीत के दो अक्षर से ही सर्वव्यापी का ज्ञान निकल जाता है। प्रीतम को श्रीकृष्ण नहीं कहेंगे। कहते ही हैं - ओ गॉड फादर। ओ प्राण आधार क्योंकि यह सबका प्राण आधार है। सभी को जमघटों के दु:ख की पीड़ा से छुड़ाते हैं, तो जरूर उनको आना पड़े। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प कल्प के संगमयुगे आता हूँ। यही कल्याणकारी संगमयुग है। सतयुग के बाद तो फिर दो कला कम हो जाती हैं। यही संगमयुग चढ़ती कला का युग है, इसमें बुद्धि से काम लेना चाहिए। नये के लिए तो बहुत सहज समझाते हैं। तुम्हारा बाप निराकार परमपिता परमात्मा शिव है। उनको याद करो, बस। और गुरू गोसाई आदि के मंत्र सब हैं भक्ति मार्ग के। भक्ति आधा-कल्प चलती है फिर ज्ञान का वर्सा आधा-कल्प चलता है। ज्ञान वहाँ नहीं रहेगा। ज्ञान दिया जाता है दुर्गति से सद्गति में ले जाने के लिए। गुरू का काम है शिष्य अथवा फालोअर्स की गति-सद्गति करना। परन्तु वह जानते नहीं कि गति-सद्गति क्या होती है। गाते भी हैं सर्व का सद्गति दाता राम। पतित-पावन सर्व सीताओं का राम। बच्चे जानते हैं कि सतयुग में एक ही धर्म रहता है। सूर्यवंशी राज्य चलता है। फिर राम राज्य त्रेता में दो कला कम हो जाती हैं। वहाँ रावण आदि होते नहीं। कोई उपद्रव की बात नहीं। यह सारी दुनिया लंका है, रावण का राज्य है। इस समय सब मनुष्य बन्दर से बदतर हैं क्योंकि सभी में 5 विकार प्रवेश हैं। कितना मनुष्यों में क्रोध है। एक दो को कैसे मारते हैं। मरने-मारने की तैयारी करते हैं। तुम सब विकारी थे। अब बाबा आकर रावण पर जीत पहनाते हैं। शास्त्रों में क्या-क्या बातें लिख दी हैं। ऐसे थोड़ेही पूंछ को आग लगी और सारी लंका जल गई। वास्तव में लंका यह सारी दुनिया है। तुम ब्राह्मण कुल भूषण बच्चे भी पहले पतित थे। अभी तुम माया रावण पर जीत पाते हो। बाप ने आकर बुद्धि का ताला खोला है। बुद्धिवानों की बुद्धि बाप है ना। मनुष्य तो क्या-क्या बातें सुनाकर माथा ही खराब कर देते हैं। बाप कहते हैं यह फिर भी होना ही है। सर्वव्यापी का ज्ञान पहले नहीं था। कहते थे परमात्मा बेअन्त है। बेअन्त कह फिर उनको सर्वव्यापी कहना कितनी बड़ी भूल है। शिवोहम् ततत्वम् कह देते हैं। कभी शिवोहम्, कभी फिर ब्रह्मोहम् भी कह देते। यह फिर राँग हो जाता है। ब्रह्म तो रहने का स्थान है। शिव बाबा ब्रह्म तत्व में रहते हैं इसलिए उनका नाम ब्रह्माण्ड है। हम आत्मायें भी वहाँ की रहने वाली हैं। वे लोग फिर शिव को नाम-रूप से न्यारा कह देते हैं, यह सब समझाने की बातें हैं ना। सो भी जब एक हफ्ता रेगुलर समझें तब ज्ञान से चोली रंग जाये। समझाना है तुम्हारा बेहद का बाप भी है, जिससे भारत को जीवन्मुक्ति का वर्सा मिलता है। बाकी सबको मुक्ति का वर्सा मिलता है।

बाप कहते हैं - बच्चे, अभी नाटक पूरा हुआ। तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए हैं। इतना समय पार्ट बजाया है, अब फिर वापस जाना है। बाप आकर हमारे लिए राजधानी स्थापन करते हैं तो जरूर संगम पर स्थापन हो, तब तो सतयुग में तुम वर्सा लो। तुमको कितना अच्छा कर्म सिखलाते हैं। लक्ष्मी-नारायण ने क्या किया जो ऐसे ऊंच बनें? अभी तुम जानते हो बाबा राजयोग सिखलाते हैं। सतयुग में थोड़ेही सिखलायेंगे। वहाँ तो है ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य। यह है कल्याणकारी संगमयुग, इसमें अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है। बाप कहते हैं यह देह का भान छोड़ अपने को आत्मा निश्चय कर मुझ बाप को याद करो। तुम धक्के खाकर थक गये हो। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ ही त्रिकालदर्शी बनते हैं। बनाने वाला है बाप।

स्वदर्शन-चक्र भी तुम फिराते हो। विष्णु कोई त्रिकालदर्शी नहीं है। उन्होंने फिर विष्णु को अलंकार दे दिये हैं। वास्तव में त्रिकालदर्शी तुम ब्राह्मण बनते हो। वर्णों का भी समझाया है। चोटी है ब्राह्मण वर्ण। भारतवासी चित्र बनाते हैं। चोटी देते नहीं। ब्राह्मण वर्ण गुम कर दिया है। प्रजापिता ब्रह्मा है ना। तो पहले ब्राह्मणों की चोटी होनी चाहिए। अभी तुम मुख वंशावली ब्राह्मण बने हो।

गीत में भी सुना - प्रीतम आन मिलो... सर्वव्यापी की बात नहीं। अभी तुम प्रीतमायें प्रीतम के सम्मुख बैठी हुई हो। प्रीतम अपना स्वर्ग का वर्सा दे रहे हैं। कितना अच्छा प्रीतम है! कहते हैं श्रीकृष्ण ने भगाया पटरानी बनाने। परन्तु समझते नहीं - पटरानी क्या चीज़ होती है। अभी तुम जानते हो और स्वर्ग का महाराजा-महारानी बनने लिए पुरुषार्थ करते हो। यह राजयोग है, इसमें प्रजायोग कम्बाइण्ड है। सिर्फ राजा-रानी थोड़ेही बनेंगे। सब कहते हैं महाराजा-महारानी बनेंगे। हम आये हैं राजयोग सीखने, परन्तु सब थोड़ेही महाराजा-महारानी बनेंगे। हिम्मत चाहिए। पूरा बल होना चाहिए। भक्ति मार्ग में जब नौधा भक्ति करते हैं तब साक्षात्कार होता है। शिव पर बलि चढ़ते हैं। वास्तव में बलि चढ़ना भी यहाँ की बात है। यह भी समझाया है - गीता, भागवत, रामायण, वेद आदि सतयुग-त्रेता में होते नहीं। ऐसे नहीं परम्परा से यह कोई चले आते हैं। यह तो द्वापर से चले हैं। फिर द्वापर में ही बनेंगे। मुसलमानों ने आकर राज्य लिया, मुहम्मद गजनवी ने लूटा - यह सब बातें तुम जान गये हो। हमने ही पूज्य से पुजारी बन अपना मन्दिर बनाया। तो कितनी हमको मिलकियत होगी! पाँच हजार वर्ष की बात है। सो भी शुरुआत में। फिर भक्ति मार्ग में भी तुमको कितना धन रहता है! जिसने हीरों-जवाहरों का मन्दिर बनाया, उनका अपना महल क्या होगा। नाम कितना ऊंच है। लक्ष्मी-नारायण कितने श्रृंगारे हुए देखते हो। अभी तो बिचारों के पास पैसा नहीं है। आगे तो लक्ष्मी-नारायण के लिए हीरों का सब कुछ बनाते थे। बाद में सब लूट फूट ले गये। वहाँ तो सोने की ईटें होती हैं, तुम उनसे महल बनाते हो। अक्ल भी अच्छा रहता है। अभी तो बेअक्ल हैं, तब तो कंगाल हुए हैं ना। शिवबाबा पर वा देवताओं पर कितने कलंक लगाये हैं इसलिए बाबा कहते हैं यदा यदाहि.... जब इसमें प्रवेश करूँ तब तो ब्राह्मणों को रचूँ। ब्रह्मा मुख से भारत में ही आकर ब्राह्मण रचते हैं। विलायत जाऊंगा क्या। जो नम्बरवन पावन पूज्य था, अब पुजारी बना है, उनके ही पतित शरीर में आता हूँ। त्रिमूर्ति कहते हैं, शिव को निकाल दिया है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा का तो अर्थ ही नहीं निकलता। बाबा कहते हैं कल्प-कल्प संगम पर इस तन में आकर तुम ब्राह्मणों को रचता हूँ। तुम ब्राह्मण-ब्राह्मणियों का यह सर्वोत्तम युग है। अभी तुम ईश्वरीय गोद में हो। ईश्वर बाबा से बेहद का वर्सा लेते हो। जानते हो उनको ही याद करते-करते हम उनके पास पहुँच जायेंगे। कहते हैं ना अन्त काल जो स्त्री सुमिरे.... जैसा सुमिरन वैसा जन्म मिलता है। यह है अन्तकाल का समय। तुमको बाप बैठ समझाते हैं। इस समय मुझ बाप को ही याद करना है। देही-अभिमानी भव, अशरीरी भव। अपने को आत्मा निश्चय कर मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। एक जगह नेष्ठा में नहीं बैठना है। बच्चे तो चलते-फिरते, उठते-बैठते बाप को याद करते हैं ना।

बेहद का बाप कहते हैं - और सभी से बुद्धि निकाल मामेकम् याद करो। इसी में मेहनत है। 84 जन्म लिए, अब यह अन्तिम जन्म है। तुम बाप के बने हो तो उसने ही कितने मीठे नाम दिये हैं। बाबा ने सन्देशी द्वारा नाम भेजे। वहाँ बहुत अच्छे-अच्छे नाम होते हैं। फिर भी वही नाम पड़ेंगे जो कल्प पहले पड़े होंगे। सर्वव्यापी का अर्थ भी समझाना चाहिए ना। सब भक्त भगवान हैं तो फिर उनको मिलेगा क्या। कुछ भी नहीं। अभी तुम ईश्वरीय गोद में हो। ईश्वरीय गोद से तुम ब्राह्मण बनते हो। शूद्र वर्ण खत्म हुआ। यह वर्ण है ही तुम भारतवासियों के लिए। तुम जानते हो हम शूद्र वर्ण से ट्रान्सफर हो ब्राह्मण धर्म में आये हैं। ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ वही बनेंगे जो कल्प पहले बने थे। झाड़ वृद्धि को पाता जाता है। कितनी अच्छी-अच्छी बातें बच्चों को सुनाते हैं। परन्तु माया का तूफान लगने से अच्छे-अच्छे बच्चे भी गिर पड़ते हैं। युद्ध तो है ना। तुम सर्वशक्तिमान के बच्चे हो तो माया भी कम नहीं है। आधा-कल्प रावण का राज्य है। इस समय माया भी जोर से पछाड़ेगी, इसको तूफान कहा जाता है। हनूमान का मिसाल है ना। तुमको माया के कितने भी तूफान आयें परन्तु हिलना नहीं है। सदैव हर्षित रहना है। जितना रुस्तम बनेंगे उतना माया जोर से वार करेगी। देखेगी - लायक है वा नहीं? कहते हैं - बाबा, हमने तो काला मुंह कर दिया। काला मुंह हुआ, बस, बुद्धि को ताला लग जायेगा। धारणा होगी नहीं क्योंकि बाबा को कलंक लगाया ना। लौकिक बाप भी कहते हैं ना तुम कुल-कलंकित हो। बाबा समझाते हैं - तुम कभी भी कुल कलंकित नहीं बनना। बाप परमधाम से आये हैं तुमको पढ़ाने। भगवानुवाच - मैं राजाओं का राजा बनाने आया हूँ। राजाई जरूर स्थापन होगी। इस समय तुम जितने ब्राह्मण बने हो उतने ही बने थे और बनते रहेंगे।

बच्चों को याद रखना है कि उस पारलौकिक बाबा का कोई बाप नहीं है। वह है ही सुप्रीम नॉलेजफुल, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप चैतन्य, पतित-पावन, रहमदिल, नॉलेजफुल, ब्लिसफुल। उन पर कोई ब्लिस करने वाला नहीं है। वह खुद ही बाप, टीचर, सतगुरू है। बेहद बाप के घर में तुम सम्मुख बैठे हो। यह है ईश्वरीय कुटुम्ब। वृद्धि को पाते जायेंगे। 84 का चक्र भी बुद्धि में याद है। हम सो देवता इतने जन्म, हम सो क्षत्रिय इतने जन्म.... फिर हम सो देवता बनेंगे। माया दु:खधाम बनाती है। बाप आकर सुखधाम बनाते हैं। कितना सहज है। खूब पुरुषार्थ करना चाहिए। अब का पुरुषार्थ कल्प-कल्प के लिए तुम्हारा पुरुषार्थ बन जायेगा। कहेंगे कल्प कल्पान्तर हम ऐसा पुरुषार्थ करते आये हैं। मम्मा-बाबा भी पुरुषार्थ करते हैं। यही फिर पूज्य सो देवी-देवता लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। श्रीमत पर हम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद, प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अन्तकाल के समय में एक बाप को ही याद करने का अभ्यास करना है। अशरीरी बनना है।

2) कभी भी कुल कलंकित नहीं बनना है, माया के तूफानों में हिलना नहीं है। सदा हर्षित रहना है।

वरदान:-
अपने चेहरे रूपी दर्पण द्वारा मन की शक्तियों का साक्षात्कार कराने वाले योगी तू आत्मा भव

जो मन में होता है उसकी झलक मस्तक पर जरूर आती है। ऐसे नहीं समझना कि मन में तो हमारे बहुत कुछ है। लेकिन मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। कितना भी आप कहो हमारा योग तो बहुत अच्छा है, हम सदा खुशी में नाचते हैं लेकिन चेहरा उदास देख कोई नहीं मानेगा। “पा लिया'' इस खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे, तब कहेंगे योगी तू आत्मा।

स्लोगन:-
जब सरल स्वभाव, सरल बोल, सरलता सम्पन्न कर्म हों तब बाप का नाम बाला कर सकेंगे।

Fire-Pods BEP 402 Black Red

📱 5G Revolution Sale ⚡️ Starting Rs 1,250/month– Upgrade to bestselling 5G smartphones– Additional exchange bonus up to ...
22/06/2023

📱 5G Revolution Sale ⚡️ Starting Rs 1,250/month
– Upgrade to bestselling 5G smartphones
– Additional exchange bonus up to Rs 10,000
– Up to 24 months No Cost EMI
👉 Shop Now
https://amzn.to/3NfxR5I

🔥  BLOCKBUSTER DEALS OF THE DAY 🔥📱 5G Revolution Sale ⚡️ Starting Rs 1,250/month– Upgrade to bestselling 5G smartphones–...
22/06/2023

🔥 BLOCKBUSTER DEALS OF THE DAY 🔥

📱 5G Revolution Sale ⚡️ Starting Rs 1,250/month
– Upgrade to bestselling 5G smartphones
– Additional exchange bonus up to Rs 10,000
– Up to 24 months No Cost EMI
👉 Shop Now
https://amzn.to/3NfxR5I

Baba ke madhur Geet
22/06/2023

Baba ke madhur Geet

Aao Prabhu Sharan Aao 001 Kar Lo Anubhav Prabhu Pyaar Ka 002 Madhur Ragini Sa Tera Pyaar 003 Tapte Man Ko Mere 004 Khushiya Se Bhar Di 005 Mere Parampita Pa...

22-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन“मीठे बच्चे - दिल से बाबा-बाबा कहते रहो तो अपार खुशी रहेगी, यह मुख से क...
22/06/2023

22-06-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - दिल से बाबा-बाबा कहते रहो तो अपार खुशी रहेगी, यह मुख से कहने की बात नहीं, अन्दर में सिमरण चलता रहे तो सब कलह-क्लेष मिट जायेंगे''

प्रश्नः-
कई बच्चे कहते - बाबा, मेरा मन मूँझता है, उलझन रहती है, तो बाबा उन्हें कौनसी शिक्षा देते हुए खुशी में रहने की युक्ति बताते हैं?
Brahmakumaris meditation songs https://youtube.com/watch?v=v7YRHFhONI8&feature=share7
उत्तर:-
बाबा कहते - बच्चे, तुम यह शब्द ही राँग बोलते हो। ‘मन मूँझता है'- यह कहना ही ग़लत है। बाप से बुद्धियोग टूटता है तब बुद्धि भटक जाती है। उदासी आ जाती है इसलिए बाबा युक्ति बताते - अपना चार्ट रखो, अन्दर में बाबा-बाबा सिमरण करते रहो। हर कदम पर श्रीमत लो तो उलझन समाप्त हो जायेगी।

गीत:-
बनवारी रे, जीने का सहारा......

ओम् शान्ति। निराकार भगवानुवाच, निराकार बच्चों प्रति। निराकार भगवानुवाच किस द्वारा? इस लोन लिए हुए तन द्वारा। समझाया गया है - निराकार परमपिता परमात्मा का कोई शारीरिक नाम नहीं है। बाकी जो भी मनुष्यमात्र हैं उनका शारीरिक नाम पड़ता है। उस नाम से बुलाया जाता है। यहाँ फिर निराकार बाप निराकार बच्चों को कहते हैं कि इस शरीर को भूल जाओ। तुम आत्माओं को यह शरीर छोड़ मेरे पास आना है। अभी तुमको इस मृत्युलोक में जन्म नहीं लेना है। वह लौकिक माँ-बाप शारीरिक सम्बन्ध में लाते हैं - यह तुम्हारा फलाना है... और पारलौकिक बाप कहते हैं - हम निराकार हैं, जिसको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। तुम भी निराकार आत्मा हो। इस शरीर का आधार लिया है। तुम्हारा अपना शरीर है। हमारा यह शरीर उधार लिया हुआ है। अभी तुम मुझ बाप को याद करो। मैं तुम आत्माओं का निराकार बाप हूँ। ‘बाबा-बाबा' अक्षर बोलो। कभी-कभी कोई बच्चे कहते हैं - हमारा मन मूँझता है, मन को खुशी नहीं है। अरे, मन अक्षर क्यों कहते हो? बोलो - बाबा, हमको क्यों भूल जाता है! बाबा जो हमको स्वर्ग के लिए लायक बनाते हैं, उनको हम क्यों भूलते हैं! शरीर का भान छोड़ देही-अभिमानी बनो। बाबा कहते हैं - अब तुमको वापिस आना है, मुझे याद करो। निराकार बाबा निराकार आत्माओं को कहते हैं - ‘बाबा-बाबा' करते रहो। यह बाप है और माता फिर है गुप्त। फादर के साथ माता तो जरूर चाहिए ना। दुनिया में कोई को पता नहीं - बाप इनके द्वारा मुख वंशावली बनाते हैं, तब उनको फादर कहते हैं। फिर मदर कहाँ? जगत अम्बा को नहीं कहेंगे। जगत अम्बा तो निमित्त है सम्भालने लिए क्योंकि यह मेल होने के कारण सम्भाल न सके इसलिए जगत अम्बा है। उनकी भी माँ यह है। ब्रह्मा बड़ी माँ है। यह सब हैं - ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। वह कहते हैं मात-पिता। तो यह बाप बैठ समझाते हैं। यह कोई साधू-सन्त का काम नहीं।

बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। माया रावण नर्क बनाने लग पड़ती है। बाप सुख देते हैं, माया दु:ख देती है। यह है ही सुख-दु:ख का खेल और है भारत के लिए। भारत हीरे जैसा था। अब कौड़ी जैसा बन पड़ा है। भारत में पवित्र गृहस्थ धर्म था, जिन्हों के चित्र हैं। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था परन्तु वह कब स्थापन हुआ - यह कोई जानते नहीं। कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। तुम बच्चों को समझाया जाता है - 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। फिर लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड चलते हैं। आठ गद्दियाँ चलती हैं। फिर चन्द्रवंशी में 12 चलती हैं। डिनायस्टी होती है ना। मुगलों की डिनायस्टी, सिक्खों की डिनायस्टी....। बच्चों को समझाया जाता है - 5000 वर्ष पहले भारत में एक ही लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी गवर्मेन्ट थी। वह बाप ही बनाते हैं। भारतवासी माँगते भी यह हैं। अभी तो राजाई है नहीं, न किंग-क्वीन हैं। यह है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य, क्षण-भंगुर का, इनमें कोई सुख नहीं। जितना समय पास होता जाता, दु:ख जास्ती होता जायेगा, इनको मृगतृष्णा समान सुख कहा जाता है। शास्त्रों में द्रोपदी और दुर्योधन का एक मिसाल भी है। वास्तव में ऐसे है नहीं। यह सब बातें बैठ बनाई हैं। है यह रूण्य (मरुस्थल) के पानी मिसल राज्य। राज्य मिला है तो और ही दु:खी होते जाते हैं। ब्रिटिश गवर्मेन्ट के समय इतना दु:ख नहीं था। बहुत सस्ताई थी। अभी तो हर चीज़ की कितनी महंगाई हो गई है! फैमन (अकाल), मूसलाधार बरसात, अर्थ-क्वेक आदि यह सब सामने आयेंगे। मनुष्य पानी के लिए हैरान होंगे। अभी तुम बच्चे अपना तन-मन-धन भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में स्वाहा करते हो। बाप को मदद करते हो। बाप फिर वर्ल्ड ऑलमाइटी अथॉरिटी, वन गवर्मेन्ट, वन राज्य स्थापन करते हैं। हाहाकार के बाद फिर जयजयकार होना है। जो विनाश का साक्षात्कार किया है, वह प्रैक्टिकल इन आंखों से देखना है। तो बाप बैठ समझाते हैं - तुम अपने को आत्मा समझो। बाबा के बच्चे हैं, बाबा-बाबा करते रहो। मन मूँझता है, मन में खुशी नहीं है, यह ‘मन' अक्षर निकाल दो। बाबा को याद नहीं करेंगे तो फिर खुशी कैसे होगी? अपने आपको न जानने के कारण ही दु:खी होते हैं। तुम ‘मन' अक्षर क्यों कहते हो? अरे, तुमको बाप याद नहीं पड़ता! बाप को भूल जाते हो क्या! लौकिक बाप के लिए कभी कहते हो क्या - हमको याद नहीं पड़ता है? छोटे बच्चे को भी सिखलाया जाता है - यह माँ-बाप है। यह बेहद का बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो मैं तुमको स्वर्ग में ले जाऊंगा। सिर्फ बाबा का बनना है। बाप कहते हैं मेरी मत पर चलते रहो। बाप को तो पोतामेल भी बताना पड़े ना। बाप को अपने बच्चों का पता रहता है ना - यह कितनी कमाई करता है? तो बाप को जब बतायेंगे तब तो पता पड़े। बाप तो झट बताते हैं - तुमको वैकुण्ठ का मालिक बनाता हूँ।

बाबा कहते हैं - मैं तो दाता हूँ, तुमको देने लिए आया हूँ। तुम भी अपना सब कुछ सफल करने वाले हो इसलिए भविष्य के लिए अब बनाना है। जो जितना सफल करेंगे उन्हें उतनी बड़ी वैकुण्ठ की बादशाही भी मिलेगी। लेन-देन का हिसाब है। एक्सचेन्ज करते हैं। पुराने के बदले सब नया देते हैं। यह तो फर्स्ट क्लास ग्राहक है। एक हाथ दो, दूसरे हाथ लो। एक कहावत है ना - सुबह का सांई.... बाप तो एकदम विश्व का मालिक बनाने आते हैं। बाप कहते हैं - यह सब कुछ धन माल आदि धूल में मिल जाना है। इनको छोड़ो। देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूलो, अपने को ट्रस्टी समझो। यह सब ईश्वर का दिया हुआ है। उनका ही है। बाकी शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना ही है। बाबा को मालूम होगा तो राय देते रहेंगे। कहते हैं - बाबा मोटर लूँ? अच्छा, पैसा है तो भल मोटर लो। मकान बनाना है? अच्छा, भल बनाओ। राय देते रहेंगे। पैसा है तो खूब मकान बनाओ, एरोप्लेन में घूमो, भल सुख लो। बच्चों को ही मत देंगे ना। कन्या की शादी के लिए पूछते हैं। अगर ज्ञान में नहीं चल सकती तो भल करा दो। बाप (ब्रह्मा) हमेशा राइट डायरेक्शन देंगे। अगर राँग दिया तो रेस्पान्सिबुल बाबा (शिवबाबा) है। वह तो फिर धर्मराज भी है ना। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। गॉड फादरली युनिवर्सिटी है। बाप राय देते हैं - बच्चे स्वर्ग के मालिक बनो, श्रीमत पर चलो, देही-अभिमानी बनो। वहाँ के नाम भी कितने सुन्दर होते हैं! बसरमल आदि नाम वहाँ होते नहीं। वहाँ रामचन्द्र, कृष्णचन्द्र आदि नाम होते हैं। श्री का टाइटिल भी मिलता है क्योंकि श्रेष्ठ हैं ना! यहाँ तो कुत्ते-बिल्ली सबको श्री-श्री का टाइटिल देते रहते हैं। तो बाप समझाते हैं - यह पुरानी छी-छी दुनिया है। यह सब खत्म हो जाना है। अभी तुम मेरी श्रीमत पर चलो। श्रीमत भगवत गीता है मुख्य। बाकी वेद-शास्त्र आदि तो अनेक हैं।

बाप ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय - तीनों धर्म स्थापन करते है। फिर इब्राहिम अपना धर्म स्थापन करते हैं। उनका शास्त्र फलाना। अच्छा, वेद किस धर्म का शास्त्र है? कुछ भी पता नहीं! संन्यास धर्म का शास्त्र कोई वेद नहीं है। अगर वेद शास्त्र है तो वही पढ़ें। फिर गीता क्यों उठाते? क्रिश्चियन लोग सयाने हैं। दूसरे धर्म का शास्त्र कभी नहीं लेंगे। भारतवासी तो सबको गुरू करते रहेंगे। बाबा ने समझाया था - जब कोई 4-5 इकट्ठे आयें तो हरेक को अलग-अलग समझाना चाहिए। जैसे पहले तुम अलग-अलग बैठकर समझाते थे, ऐसे अभी भी समझायेंगे तो उनकी नब्ज का पता पड़ेगा। फार्म भराना है क्योंकि हरेक की बीमारी अलग-अलग है। वैद्य लोग एक-एक को बुलाकर नब्ज देखकर दवा देते हैं।

निश्चय करना है हम आत्मा हैं। आत्मा ही सुनती है। आत्मा ही पतित बनती है। आत्मा को निर्लेप कहना - यह तो झूठ बात है। आत्मा जैसा कर्म करती है, वैसा फल मिलता है। कहते हैं ना - इनके कर्म ऐसे किये हुए हैं। अभी बाबा हमको कर्म ऐसा अच्छा सिखलाते हैं जो 21 जन्म हम सुखी रहेंगे। कर्मों की गति है ना। सतयुग में तो कर्म अकर्म हो जाता है। विकर्म कोई होता नहीं। विकर्म कराने वाली माया ही नहीं होती। राजधानी स्थापन होती है तो जरूर तुम वर्सा तो पायेंगे। कर्मातीत अवस्था को पाना है। जन्म-जन्मान्तर के पाप सिर पर हैं। गंगा स्नान वा जप-तप आदि करने से विकर्म विनाश नहीं हो सकते। विकर्म विनाश योग अग्नि से ही होते हैं। अन्त में सबका हिसाब-किताब चुक्तू होगा, नम्बरवार। चुक्तू नहीं होगा तो सजा खानी पड़ेगी। चुक्तू करना है बाप की याद से। याद नहीं करते हैं, तब आत्मा मुरझाती है। बाप कहते हैं - मेरे को याद नहीं करेंगे तो माया वार करेगी। जितना हो सके याद करो। कम से कम 8 घण्टे तक याद रहेगी तो तुम पास हो जायेंगे। चार्ट रखो। तूफान तब आते हैं जब अपने को आत्मा समझ बाप को याद नहीं करते हो। गाते भी हैं - सिमर-सिमर सुख पाओ। अन्दर सिमरना है। चुप रहना है। राम-राम वा शिव-शिव कहना नहीं है। याद से तुम्हारे कलह-क्लेष मिट जायेंगे। तुम निरोगी बन जायेंगे। सीधी बात है। बाप को भूलने से ही माया का थप्पड़ लगता है। बाप कहते हैं - रहो भी भल गृहस्थ व्यवहार में। कदम-कदम पर बाबा से राय पूछते रहो। कहाँ पाप का काम न हो जाये। कन्या ज्ञान में नहीं आती है तो उनको देना ही पड़े। बच्चा अगर पवित्र नहीं रह सकता तो अपना कमा सकते हैं। वो जाकर शादी करें। कई फिर बाप की मिलकियत पर बड़ा झगड़ा करते हैं। पूरा समाचार नहीं देते हैं। वह हुए सौतेले। मातेले जरूर बतायेंगे। बाप को समाचार नहीं देंगे तो बाप कैसे जानें?

यहाँ तुम्हारा चेहरा हर्षितमुख होगा तब वहाँ भी तुम सदा हर्षितमुख रहेंगे। बिरला मन्दिर में लक्ष्मी-नारायण का कितना फर्स्ट-क्लास चित्र है! परन्तु जानते नहीं कि यह कब आये थे? अभी वह भारत का राज्य कहाँ गया? तुम जाकर समझा सकते हो। पहले थी सतोप्रधान अव्यभिचारी भक्ति। फिर बाद में व्यभिचारी रजो, तमोप्रधान भक्ति होती है। आगे तो परमात्मा को बेअन्त कहते थे। अभी कहते हैं सब ईश्वर ही ईश्वर हैं, इसको तमो बुद्धि कहा जाता है।

तो ऐसे नहीं कहना चाहिए कि हमारा मन नहीं लगता। यह तुम क्या कहते हो! बाप को भूलने से ही यह हाल होता है। बाप को याद करो तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। बाप को याद करने से बड़ी भारी कमाई है। सारी रात बाप को याद करो। नींद को जीतने वाले बनो। गाते आये हो - बलिहार जाऊं। अब कहते हैं - मैं आया हूँ, तो मामेकम् याद करो ना। मुझ आत्मा का बाप वह है, उनको याद करना है। इनसे ममत्व मिट जाना चाहिए। नष्टोमोहा बन एक के साथ बुद्धि लगानी है तो पक्के हो जायेंगे। मुझे अब नये घर जाना है। पुराने घर से क्या ममत्व रखें। नया मकान बनाया जाता है तो फिर पुराने से दिल हट जाती है ना। बाप कहते हैं - देह सहित सब कुछ यह पुराना है। अब बाप और वर्से को याद करो। इस पढ़ाई से हम प्रिन्स-प्रिन्सेज जाकर बनेंगे सतयुग में। सेकेण्ड में बाबा प्रत्यक्षफल देते हैं। यह है प्रिन्स प्रिन्सेज बनने का कॉलेज। प्रिन्स-प्रिन्सेज का कॉलेज नहीं। यहाँ बनना है। फिर प्रिन्स के बाद राजा तो जरूर बनेंगे। अच्छा!

बापदादा, मीठी-मीठी मम्मा का सिकीलधे बच्चों को याद, प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में अपना तन-मन-धन स्वाहा करना है। बाप का पूरा पूरा मददगार बनना है।

2) यहाँ हर्षितमुख रहना है। किसी भी बात में मुरझाना नहीं है, बाप की याद से सब कलह-क्लेष मिटा देने हैं।

वरदान:-
अथॉरिटी के आसन पर स्थित रह सहजयोगी जीवन का अनुभव करने वाले महान आत्मा भव

जैसे स्पीकर की सीट सहज ही ले लेते हो ऐसे अभी सर्व अनुभवों के अथॉरिटी का आसन लो। अथॉरिटी के आसन पर सदा स्थित रहो तो सहजयोगी, सदा के योगी, स्वत: योगी बन जायेंगे। ऐसे अथॉरिटी वालों के आगे माया झुकेगी न कि झुकायेगी। जैसे हद की अथॉरिटी वाले विशेष व्यक्तियों के आगे सब झुकते हैं। अथॉरिटी की महानता सबको झुकाती है। ऐसे आप महान आत्मायें अनुभवों की अथॉरिटी में रहो तो सब आपेही झुकेंगे।

स्लोगन:-
सदा खुश रहना, खुशी का खजाना बांटना और सबमें खुशी की लहर फैलाना यही श्रेष्ठ सेवा है।

Shiv Pujan Shiv bhola bhandari - Rupesh, Anita Lado Mandir masjid girija - Tanish Dadi baba se - Anita Lado Atma anant hai - Pritam Shivbaba aaya h...

Address

Shivajinagar
Pune
411005

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Sewa Publicity posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Videos

Share

आज कि मुरली

प्यारे प्यारे बच्चे अपने दिनकी सुरुवात बाबा की ज्ञान मुरली से करे

https://madhuban-murli.blogspot.com