22/09/2024
संभोग के प्रति औरत तब और अधिक उतारू हो जाती है जब उसका पति उसे समझने वाला मिलता है
एक औरत की शारीरिक जरूरतों से ज्यादा जरूरी उसकी मानसिक जरूरतें है, यदि वो मन से आप को अपना रही है तो अपना शरीर आप को सौंपने में उसे थोड़ा भी लज्जा नहीं आएगी
लेकिन अब समय बदल गया है आज कल की औरतों को। मानसिक जरूरत पूरा करने वाला लड़का नही चाहिए बल्कि ऐसा लड़का चाहिए को उसकी फिजिकल जरूरतों को भी पूरा कर सके और फिजिकल जरूरत से मेरा मतलब शरिरक संभोग से नही है मैं एक बड़े शहर के बड़े कॉलेज में पढ़ने वाली, लिबरल सोच रखने वाली लड़की थी। हर हफ्ते एक नई ड्रेस चाहिए होती थी, हर दो महीने में किसी नए डेस्टिनेशन पर जाना, और महीने में चार बार बाहर खाना मेरी आदत थी। मेरे पति पूरी कोशिश करते थे, लेकिन मेरे बढ़ते खर्चे उनकी क्षमता से बाहर थे। उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, लेकिन उनके भाव बताते थे कि वे इन खर्चों से असहज थे।
समय के साथ मुझे लगा कि मेरी ज़रूरतें पूरी नहीं हो रहीं। इसी दौरान मुझे कुछ ऐसे लोग मिले जो मेरी हर चाहत पूरी करने को तैयार थे—कोई मुझे शॉपिंग करवाता, कोई घूमने का ऑफर देता, तो कोई मेरी बातें सुनने के लिए उपलब्ध रहता था। लेकिन इन सबके बावजूद, एक परिवार वाली सच्ची भावना मुझे कहीं महसूस नहीं होती थी। धीरे-धीरे, पति से भी दूरियां बढ़ने लगीं। मेरी सारी बाहरी जरूरतें तो पूरी हो रही थीं, लेकिन दिल खाली होता जा रहा था।
कुछ समय के लिए मैं मायके चली गई। वहां मैंने देखा कि मेरे बुजुर्ग माता-पिता आज भी बेहद साधारण जीवन जी रहे हैं। मां ने कम पेंशन में घर का खर्चा आसानी से संभाला हुआ था। मैंने उनसे पूछा, "मां, तुम अपने ऊपर खर्च क्यों नहीं करतीं? क्या तुम्हें अच्छा दिखने का मन नहीं करता, नए कपड़े पहनने का?"
मां ने एक छोटा सा जवाब दिया, "किसे दिखाना है अच्छा? तुम्हारे पापा को? उन्हें अब फर्क नहीं पड़ता।"
मां की इस बात ने मुझे गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया। मैंने खुद से सवाल किया—मैं इतना खर्चा क्यों करती हूं? क्या सिर्फ सोशल मीडिया पर दिखावे के लिए? और इसके बदले में क्या मिल रहा है? सिर्फ पति से दूरी, और बाहरी लोगों का साथ, जिनकी नजरें मेरे शरीर पर ही टिकी रहती हैं, न कि मेरे व्यक्तित्व पर।
मां ने मेरी उदासी देखी और पूछा, "क्या हुआ?" मैंने बात को घुमाते हुए कहा, "पति मेरे साथ समय कम बिताते हैं।"
मां ने समझाया, "बेटा, वो तुम्हारे लिए जो भी समय निकालते हैं, उसमें भरपूर ध्यान रखना चाहिए। वो लड़का जब पैदा हुआ होगा, तो उसके घर में खुशियां मनाई गई होंगी। जैसे-जैसे बड़ा हुआ, उसे सिखाया गया कि रोना नहीं है, क्योंकि वह लड़का है। फिर जब वो और बड़ा हुआ, तो उसे परिवार चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसी में वह अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को भूल गया। तुम उससे प्यार से बात करो, उसे समझने की कोशिश करो।"
मां की बातों ने मुझे झकझोर दिया। मैंने सोचा, मेरे पति दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, बिना कुछ कहे मेरे लिए संघर्ष कर रहे हैं, और मैं अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए गैर मर्दों के साथ घूम रही थी, यह जानते हुए कि उनकी दिलचस्पी सिर्फ मेरे शरीर तक सीमित है।
यह सब समझने के बाद मैं अपने पति के पास वापस आई। सबसे पहले, मैंने बाहरी लोगों से सारे रिश्ते तोड़ दिए और अपनी जरूरतों को सीमित किया। जो खर्च फिजूल थे, उन्हें खत्म कर दिया।
आज हमारी शादी के सात साल पूरे हो चुके हैं। हमारे खर्च सीमित हैं, लेकिन हमारी कमाई बढ़ी है, क्योंकि हमने निवेश किया है, स्वास्थ्य बीमा लिया है, और घर का खाना खाने से सेहत भी अच्छी है। अब किसी बाहरी दिखावे की चिंता नहीं है। कम जरूरतों में ही असली सुकून और खुशी मिलती है।
आज की लड़कियों को अक्सर ऐसा जीवनसाथी चाहिए होता है, जो उनकी हर चाहत पूरी कर सके। लेकिन सच्चाई यह है कि जरूरतों की कोई सीमा नहीं होती। फिजूलखर्ची केवल हमें और हमारे परिवार को अंदर से खोखला करती है। इसलिए, अपने जीवनसाथी से यह कहने के बजाय कि वो आपकी जरूरतें पूरी नहीं कर रहे, अपनी जरूरतों को सीमित करें।
दोस्तों,,, अगर फिज़ूलखर्ची कम किया जाये तो बहुत खुशी रहती है परिवार में, आजकल औरतों को शॉपिंग करना, फ़िल्में देखना, बड़ा बड़ा रेस्टुरेंट मे जाना पसंद है ये सब दुसरी औरतों को जो पैसे वाली होती हैं उसको देख कर ही ऐसा करती हैं वो इतना अच्छा जेवर पहनी हैं कपड़ा पहनी हैं इत्यादि
इसलिए अपनों ख़र्चों को कम करें, जीतना है उतना मे खुश रहें,
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