09/10/2023
एक सुबह उठते ही लगता है
मेरा विश्वास
जो मेरी परछाईं की तरह
मेरे संग था
कल मुझको सोते में
छोड़कर चला गया—
मैं बूढ़ा हो गया हूँ।
छूटा जा रहा मेरा प्रेम। मैं बिल्कुल
अकेला हो जाऊँगा
क्या होगा!
किसको पुकारूँगा?
सारा दिन कैसे गुज़ारूँगा?
सोने के पहले अपने वस्त्र
क्या आईने में
अपना अकेलापन देखने के लिए उतारूँगा?
स्त्रियाँ जो प्रेमिका नहीं थीं न वेश्याएँ
बिस्तर पर
छाप की तरह
दूसरे सवेरे धुल जाती हैं।
केवल एक स्त्री की साड़ी की गंध
और चूड़ियों से
झरता हुआ दिन (या उसके साथ
पड़ा हुआ मैं
और पलंग से
उतरता हुआ दिन)
एक सुबह उठते ही लगता है
वह मुझको
छोड़कर चली गई। मैं अचानक
बूढ़ा हो गया हूँ...
क्या होगा? कैसे गुज़ारूँगा?
क्या मैं अपने गुज़रे जीवन को
एक काग़ज़ पर लिखी हुई
कविता की तरह
दूसरे काग़ज़ पर
उतारूँगा?