Enlightened Masters

Enlightened Masters Onkar is God. Feel space, Live life, God is Love, Laugh on yourself, Listen Omkar, See Light of Omkar
(3)

ॐ नमः शिवायः

सात चीजें जो क्वांटम भौतिकी के दृष्टिकोण से आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करती हैं।

क्वांटम भौतिकी में कंपन का मतलब है कि सब कुछ ऊर्जा है। हम कुछ निश्चित आवृत्तियों पर जीवंत प्राणी हैं। प्रत्येक कंपन एक भावना के बराबर है और दुनिया में "कंपन", कंपन (Vibrations) की केवल दो प्रजातियां हैं, सकारात्मक और नकारात्मक। कोई भी भावना आपको एक कंपन को प्रसारित करती है जो सकारात्मक या नकारात्

मक हो सकती है।

🌺 1--विचार🌺
प्रत्येक विचार ब्रह्मांड के लिए एक आवृत्ति का उत्सर्जन करता है और यह आवृत्ति वापस मूल में जाती है, इसलिए यदि आपके पास नकारात्मक विचार, हतोत्साह, उदासी, क्रोध, भय है, तो यह सब आपके पास आता है। यही कारण है कि यह इतना महत्वपूर्ण है कि आप अपने विचारों की गुणवत्ता का ध्यान रखें और सीखें कि कैसे अधिक सकारात्मक विचारों की खेती करें।

🌺 2--संगति🌺

आपके आसपास के लोग आपकी कंपन आवृत्ति को सीधे प्रभावित करते हैं। यदि आप खुश, सकारात्मक और दृढ़ लोगों के साथ खुद को घेरते हैं, तो आप इस कंपन में भी प्रवेश करेंगे। अब, अगर आप शिकायत करने वाले, गपशप करने वाले और निराशावादी लोगों से घिरे हैं, तो सावधान हो जाइए! वास्तव में, वे आपकी आवृत्ति को कम कर सकते हैं और इसलिए आपको अपने पक्ष में आकर्षण के कानून का उपयोग करने से रोकते हैं। ( Law of attraction)।

🌺 3--संगीत 🌺
संगीत बहुत शक्तिशाली है। यदि आप केवल संगीत सुनते हैं जो मृत्यु, विश्वासघात, उदासी, परित्याग के बारे में बात करता है, तो यह सब उस चीज़ में हस्तक्षेप करेगा जो आप महसूस कर रहे हैं। आपके द्वारा सुने जाने वाले संगीत के बोलों पर ध्यान दें, यह आपकी कंपन आवृत्ति को कम कर सकता है। और याद रखें: आप अपने जीवन में जैसा महसूस करते हैं वैसा ही आकर्षित करते हैं।

🌺 4--जिन चीजों को आप देखते हैं 🌺
जब आप दुर्भाग्य, मृत, विश्वासघात आदि से निपटने वाले कार्यक्रमों को देखते हैं, तो आपका मस्तिष्क इसे एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार करता है और आपके शरीर में एक संपूर्ण रसायन विज्ञान जारी करता है, जो आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करता है। उन चीजों को देखें जो आपको अच्छा लगता है और आपको उच्च आवृत्ति पर कंपन करने में मदद करता है।

🌺 5--माहौल 🌺
चाहे वह घर पर हो या काम पर, अगर आप गंदे और गंदे माहौल में बहुत समय बिताते हैं, तो यह आपकी कंपन आवृत्ति को भी प्रभावित करेगा। अपने परिवेश को सुधारें, अपने परिवेश को व्यवस्थित करें और साफ करें। ब्रह्मांड दिखाओ कि आप अधिक प्राप्त करने के लिए फिट हैं। आपके पास जो पहले से है उसका ख्याल रखें!

🌺 6--शब्द 🌺
यदि आप चीजों और लोगों के बारे में गलत दावा करते हैं या बोलते हैं, तो यह आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करता है। अपनी आवृत्ति को उच्च रखने के लिए, दूसरों के बारे में शिकायत और बुरी बात करने की आदत को खत्म करना आवश्यक है। इसलिए नाटक और धमकाने से बचें। अपने जीवन के विकल्पों के लिए अपनी जिम्मेदारी मान लें!

🌺 7-- अहोभाव 🌺
आभार सकारात्मक रूप से आपकी कंपन आवृत्ति को प्रभावित करता है। यह एक ऐसी आदत है जिसे आपको अब अपने जीवन में एकीकृत करना चाहिए। हर चीज के लिए, अच्छी चीजों के लिए और जिसे आप बुरा मानते हैं, उसके लिए धन्यवाद देना शुरू करें, आपके द्वारा अनुभव किए गए सभी अनुभवों के लिए धन्यवाद। कृतज्ञता आपके जीवन में सकारात्मक चीजों के होने का द्वार खोलती है।

"Live in your heart. Seek the highest consciousness. Let go of winning and losing. Live in joy, in love, even among thos...
10/12/2023

"Live in your heart. Seek the highest consciousness. Let go of winning and losing. Live in joy, in love, even among those who hate. Look within. Be still. Free from fear and attachment, know the sweet joy of the way.

Follow the shining ones, the wise, the awakened, the loving, for they know how to forbear. Follow them as the moon follows the path of the stars."

~Buddha,
Dhammapada

Bravery does not mean being fearless. It means to be full of fear but still not being dominated by it.Oshoबहादुरी का मतल...
10/12/2023

Bravery does not mean being fearless. It means to be full of fear but still not being dominated by it.
Osho
बहादुरी का मतलब निडर होना नहीं है। इसका मतलब है डर से भरा हुआ लेकिन फिर भी उस पर हावी नहीं होना।
ओशो

साधना का यही प्रयोजन है कि तुम अच्छे और बुरे दोनो से मुक्त हो जाओ।💯🎯✔️जब भी चेतना नीचे उतरने लगे तो उसको रोकना और ऊपर की...
10/12/2023

साधना का यही प्रयोजन है कि
तुम अच्छे और बुरे दोनो से मुक्त हो जाओ।

💯🎯✔️

जब भी चेतना नीचे उतरने लगे
तो उसको रोकना और ऊपर की और दिशा देना।

💯🎯✔️

धर्म का निमन्त्रण सबके लिए है,
लेकिन विरले ही उसे स्वीकार करते हैं।

💯🎯✔️

हम सच बोलें या झूठ बोलें, हमारा प्रयोजन
दूसरे को चोट पहुंचाना न हो यही जीवन है।

💯🎯✔️

जो भी महत्त्वपूर्ण है !
वह चुपचाप घटित होता है।

💯🎯✔️

दुर्जन होना सुगम है,
लेकिन सन्त होने के लिए
बड़ी चेष्ठा करनी पड़ती है।

💯🎯✔️

ਦੂਜਿਆਂ ਦੇ ਦੁੱਖ ਦਾ ਮਜਾਕ
ਉਹ ਇਨਸਾਨ ਹੀ ਉਡਾਉਂਦਾ ਹੈ,
ਜਿਸਨੇ ਖੁਦ ਕਦੇ ਮਾੜਾ ਸਮਾਂ ਨਾ ਦੇਖਿਆ ਹੋਵੇ।

💯🎯✔️

ਉਹ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ
ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲੋਂ ਗੁਆਉਣ ਲਈ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਬੱਚਦਾ।

☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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🙏♥️198♥️1971♥️🙏Love.The way of meditation is above the self;its base is surrendering.Surrender the self to your own no-s...
10/12/2023

🙏♥️198♥️1971♥️🙏

Love.
The way of meditation is above the self;
its base is surrendering.
Surrender the self to your own no-self;
Be as if you are not.
Oh, the benediction
when one just leaves everything to the no-self !

Buddha called this phenomenon anatma or anatta (no-selfhood).

One must turn oneself into a puppet
in the hands of the no-self,
and then everything begins to flow naturally
and spontaneously
just like a river flowing to the sea
or like a cloud wandering in the sky.
Lao-tzu says this is doing by non-doing.

One ceases to be one’s own master
and becomes an instrument of the unknown –
and what nonsense it is to be one’s own master
because there is no one to be so !

Do not search & you will continue to believe in it.
Search and it is nowhere to be found.

The self exists only in ignorance.
It IS ignorance.
In knowing there is nos elf
because there is no knower.

Then knowing is enough unto itself.

🙏 ⛾ 🙏
A Cup of Tea, Year, 1971
❤❤ Letter No. 198 ❤❤
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Awareness is what the alchemists have been searching for — the elixir, the nectar, the magical formula that can help you...
10/12/2023

Awareness is what the alchemists have been searching for — the elixir, the nectar, the magical formula that can help you to become an immortal.
In fact everybody is immortal but we are living in a mortal body and we are so close to the body that the identity arises. There is no distance to see the body as separate. We are so immersed in the body, rooted in the body, that we start feeling we are the body — and then the problem arises: we start becoming afraid of death. Then all the fears, all the nightmares, come in its wake.

Awareness creates the distance between you and your body. It makes you watchful of both your own body and mind, because body and mind are not separate. Body-mind is one entity, the mind is the inside of the body. And when you become aware of body-mind you immediately know you are separate from both and the distance starts happening. Then you know you are immortal, you are not part of time, you are part of the eternal, that there is no birth for you and no death either, that you have always been here and you will always be here. You have been in many bodies because you desired so much.

Each desire brings you back into a body because without a body no desire car. be fulfilled. If one is very much attached to food one will need a body; without a body you cannot enjoy food — souls are not known to eat food. So a person who is too greedy for food is bound to come back in a body. Or the person who is too attached to sexual pleasures is bound to come back in a body, because nobody has ever heard... Except for one thing, that the holy ghost created Jesus Christ.... Otherwise no ghost has ever been able to do anything like that. And it is just a myth: ghosts cannot do it. Even if they want to do it they will have to possess somebody's body. Without a body there is no possibility of any pleasure, any fulfilment of any desire.

So when all desires disappear you will not come back into the body but you will remain in the universal consciousness as part of the infinity. That's what we in the East call nirvana, the ultimate state of consciousness, when there is no need for any body, no need to be imprisoned again. We call it the ultimate freedom, because to be in a body is a bo***ge. Of course it is a very limited thing and you are unlimited; it is forcing the unlimited into such a limited, small world of the body. That's why there is constant tension, uneasiness, and one goes on feeling crippled, one goes on feeling crushed, crowded, imprisoned, chained. One may not be exactly aware of it but vaguely everybody feels something is wrong. This is what is wrong: we are infinite and are trying to exist through the very small world of the body.

Awareness frees you from the body. And the moment you know you are not the body, in that very moment all desires that can be fulfilled through the body also disappear. It is like bringing light into a dark room — darkness disappears. Awareness functions like light and all desires are nothing but darkness. And it is nectar.

Sannyas is an alchemical phenomenon. Our search is for that ultimate transmutation in which the mortal experiences immortality.

Words of Beloved Rajnish
Just the Tip of the Iceberg
Ch--23 - Sept 1980

09/12/2023
🔶अपने आपको जानने के लिए अपने बारे में सोचें।सुदृढ़ मानसिकता वाले लोग सिद्धातों अथवा उद्देश्यों की चर्चा करते हैं, सामान्य...
09/12/2023

🔶
अपने आपको जानने के लिए अपने बारे में सोचें।
सुदृढ़ मानसिकता वाले लोग सिद्धातों अथवा उद्देश्यों की चर्चा करते हैं, सामान्य मानसिकता वाले लोग घटनाओं की चर्चा करते हैं तथा कमजोर मानसिकता वाले लोग लोगों की चर्चा करते हैं। शिक्षा अग्नि को प्रज्वलित करने जैसा है, बर्तन भरने जैसा नहीं।
☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,या वोह जगह बता जहां पर खुदा न हो।❤तुम जिस चीज से परमात्मा को जोड़ दोगे, वही रूपांतरित...
09/12/2023

जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वोह जगह बता जहां पर खुदा न हो।



तुम जिस चीज से परमात्मा को जोड़ दोगे,
वही रूपांतरित हो जाती है।
तुम अपना सब जोड़ दो,
तुम्हारा सब रूपांतरित हो जाएगा।



गुरु तुम्हें मार्ग तो देता ही है,
मार्ग की परख भी देता है।



जो जीवन को छोड़ने को स्वेच्छा से राज़ी है,
महाजीवन उसका हो जाता है।



नदी नियम है और जीवन नाव है,
नदी में नाव को छोड़ दो।



विज्ञान पदार्थों की खोज है
और धर्म परमात्मा की खोज है।



अपने आप को केन्द्र मान लेना
विक्षिप्तता का लक्षण है।



सब कुछ पा कर भी आत्मा खो जाए,
तो तुम भिखमंगे हो और
सब कुछ खो कर भी आत्मा बच जाए,
तो तुम सम्राट हो।



Education is not a name of any degree or certificate. Education is the name of our attitude, language & behaviour with others.

☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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64 कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण जी (भाग 3) 🔴 कौन है भगवान् श्रीकृष्ण....?जिसमें प्रभु के 64 गुणों और स्वरूपों की व्याख...
09/12/2023

64 कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण जी (भाग 3)

🔴 कौन है भगवान् श्रीकृष्ण....?
जिसमें प्रभु के 64 गुणों और स्वरूपों की व्याख्या....

1. सुन्दर स्वरूप
भगवान् श्रीकृष्ण के शरीर के विभिन्न अंगों की तुलना विविध भौतिक वस्तुओं से नहीं की जा सकती । सामन्य लोंगों को जिन्हें यह ज्ञान नहीं होता कि भगवान् का स्वरूप कितना उन्नत होता है , भौतिक तुलना के द्वारा समझने का अवसर प्रदान करता है । कहा जाता है कि भगवान् कृष्ण का मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है , उनकी जांघे हांथी की सूंड की तरह बलिष्ठ है, उनकी दोनों भुजायें मानो खम्भे हों ,उनकी हथेलियां मानों खुले कमल के फूल हों , उनका वक्षस्थल कपाट जैसा है, उनके नितम्ब, गुफा की तरह सटे हुए हैं , तथा उनका कटि प्रदेश खुली छत की भांति है ।

2. शुभ लक्षणों से युक्त......
शरीर के विभिन्न अंगों के कुछ ऐसे लक्षण हैं जिन्हें अत्यंत शुभ माना जाता है और वे सब भगवान् श्रीकृष्ण के शरीर में पूर्णतया विद्यमान रहते हैं । इस प्रसंग में नन्द महाराज के एक मित्र ने भगवान् कृष्ण के शुभ शारीरिक लक्षणों के विषय में कहा हैं " हे गोपराज ! मुझे आपके पुत्र के शरीर में बत्तीसों शुभ लक्षण दिखते हैं । मुझे आश्चर्य होता है कि इस बालक ने ग्वालों के परिवार में क्यों जन्म लिया है ? " सामान्यतया जब भगवान श्रीकृष्ण अवतार लेते हैं तो छत्रियों के कुल में अवतार लेते हैं जैसा कि भगवान् रामचन्द्र ने किया कभी-कभी वे ब्रह्मणों के कुल में जन्मते हैं । किंतु कृष्ण ने महाराज नन्द का पुत्र बनना स्वीकार किया , यद्यपि नन्द वैश्य जाती के थे । वैश्य जाती का कर्म व्यापार , कृषि तथा गोरक्षा है । अतएव नन्द के मित्र ने , जो सम्भवतया ब्राह्मण कुल का था , आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसा उन्नत बालक वैश्य कुल में किस तरह जन्मा ? जो भी हो , उसने कृष्ण के शरीर के शुभ चिन्हों का संकेत उसके पोषक पिता से कर दिया ।
उसने कहा , " इस बालक के सात स्थानों पर - उसकी आंखों हथेलियों ,तलवों ,तालू , होंठ, जीभ तथा नाखूनों पर लालिमा है । इन सात स्थानों की लालिमा शुभ मानी जाती है । उनके तीन अंग अत्यंत विस्तृत हैं - कमर ,मस्तक तथा वक्ष स्थल । इसी तरह शरीर के तीन अंग अत्यंत गहरे हैं - उनकी वाणी ,उनकी बुद्धि तथा उनकी नाभि । उनके पांच अंग उन्नत हैं - उनकी नाक , उनकी बाहें ,उनके कान ,उनके मस्तक तथा जांघे । उनके पांच अंगों में सुकोमलता है - उनकी त्वचा ,उनके शिर के बाल अन्य अंगों के बाल , उनके दांत तथा उनके अंगुलियों के पोर । इन समस्त स्वरुपों के समुच्चय महापुरुषों के ही शरीर में देखा जाता है । " हथेली की भग्य रेखाएं भी शुभ मानी जाती हैं । इस प्रसंग में एक गोप वृद्धा ने महाराज नन्द को बतलाया कि " आपके पुत्र की हथेली में अनेक अद्भुत रेखाएं हैं । उसके हथेली में कमल के फूल तथा चक्र के चिन्ह हैं और उसके पैरों के तलवों में ध्वजा ,वज्र ,मछली,अंकुश तथा कमल के चिन्ह हैं । देखिये न ! ये कितने शुभ हैं । "

3. रुचिर.....
नेत्रों को बरबस आकृष्ट करने वाले सुन्दर अंग रुचिर कहलाते हैं । कृष्ण के शारीरिक अंगों में यह आकर्षक रुचिर स्वरुप पाया जाता हैं । श्रीमद्भागवतम् में ( 3.2.13.) इस सम्बध में एक कथन मिलता है , " जहां राजा युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस स्थल में भगवान् मनोहर वेश धारण किये प्रकट हुए । इस यज्ञ स्थल में विश्वभर के विभिन्न भागों से सभी महत्वपूर्ण पुरूषों को आमंत्रित किया गया था । कृष्ण को देख कर इन सबों को लगा मानो स्रष्टा ने कृष्ण के इस शरीर की सृष्टि करने में अपना सारा कौशल लगा दिया हो ।"
कहा जाता है कि कृष्ण के दिव्य शरीर के आठ अंग कमल पुष्प से समानता रखते हैं - उनका मुख , उनके दोनों नेत्र , उनके दोनों हांथ , उनकी नाभि तथा उअंके दोनों पांव । गोपियां तथा वृन्दावन वासी सर्वत्र इन कमल पुष्पों की कांती देखते और ऐसे दृश्य से दृष्टि हटने को उनका जी नहीं चाहता था ।

4. तेजोमय.....
ब्रह्माण्ड में व्याप्त तेज को भगवान् की रश्मियां माना जाता है । कृष्ण धाम से सदैव ब्रह्मज्योति विकिर्ण होती रहती है और यह तेज उनके शरीर से निकलता है । भगवान् के वक्षस्थल पर सुशोभित मणियों की कांती सूर्य की कांती को भी मात कर देने वाली है ; फिर भी भगवान् श्रीकृष्ण की शारीरिक कांति की तुलना में ये मणियां आकाश के एक नक्षत्र जैसी चमकीली लगती हैं । अतएव क़ृष्ण का दिव्य तेज इतना अधिक है कि वह किसी को भी परास्त कर सकता है । जब कृष्ण अपने शत्रु राजा कंस के य़ज्ञ स्थल में गये तो वहां पर उपस्थित मल्लों ने कृष्ण के शरीर की सुकुमारता की प्रशंसा तो की , किंतु वे इंके साथ मलयुद्ध करने के विचार से भयभीत एवं उद्विग्न हो उठे ।

5.बलवान्....
अद्वितीय शारीरिक शक्तिवाला व्यक्ति बलियान् कहलाता है । जब कृष्ण ने अरिष्टासुर का वध कर दिया तो कुछ गोपियां कहने लगीं , " सखियों ! देखो न, कृष्ण ने किस तरह अरिष्टासुर को मार डाला ! यद्यपि यह असुर पर्वत से भी कठोर था , किंतु कृष्ण ने रूई की तरह उठाकर बिना किसी कठिनाई के दूर फेंक दिया ।" एक अन्य पद्य में कहा गया है , " हे कृष्ण भक्तों कन्दुक के समान गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले कृष्ण का बायां हांथ सारे संकटों से तुम्हारी रक्षा करे ।"
6. नित्य युवा......
श्रीकृष्ण विभिन्न अवस्थाओं में -अपनी शैशवास्था,कुमारावस्था तथा युवावस्था में सुन्दर हैं । इन तीनों अवस्थाओं उनकी युवावस्था समस्त आनन्दों का आगार है और यह वह अवस्था है जब अधिकाधिक प्रकार की भक्ति स्वीकार की जाती । इस आयु में कृष्ण समस्त दिव्य गुणों से ओत -प्रोत रहते हैं और अपनी दिव्य लीलाओं में व्यस्त रहते हैं । अतएव भक्तों ने उनकी युवाव्स्था के प्रारम्भ को भाव -प्रेम में सर्वाधिक आकर्षक स्वरूप स्वीकार किया है ।
इस आयु में कृष्ण का वर्णन इस प्रकार हुआ है ," कृष्ण की युवाव्स्था का बल उनकी सुन्दर मुस्कान से मिलकर पूर्ण चन्द्र के भी सौन्दर्य को परास्त करने वाला था । वे अच्छी तरह से वस्त्राभूषित थे और सुन्दरता में कामदेव से भी बढकर थे । वे गोपियों के मनों को सदैव आकृष्ट करते थे जिससे उन्हें सदैव आनन्द की अनुभूति होती थी । "

7. अद्भुत भाषाविद्........
श्रील रुप गोस्वामी कहते हैं कि जो पुरुष विभिन्न देशों की भाषाएं जानता है, विषेशतया देवभाषा संस्कृत तथा विश्व की अन्य भाषाएं जिनमें पशु भाषाएं शामिल हैं वह अद्भुत भाषाविद् कहलाता है । इस कथन से प्रतित होता है कि कृष्ण पशुओं की भषाएं भी बोल तथा समझ सकते थे । कृष्ण की लीलाओं के समय उपस्थित वृन्दावन की एक वृद्धा स्त्री ने आश्चर्य व्यक्त किया था ," ब्रजभूमि की तरुणियों का हृदय चुराने वाला वह कृष्ण इतना अद्भुत है कि गोपियों के साथ ब्रजभूमि की भषा बोलता है ,देवताओं से संस्कृत बोलता है ,और पशुओं की भाषा में गायों से और भैंसों से भी बात कर सकता है ! इसी प्रकार कश्मीर प्रांत की भाषा , सुगों तथा अन्य पक्षियों की भाषा एवं अधिकांश लोकभाषाओं में कृष्ण कितने दक्ष हैं ! " उसने गोपियों से पूछा कि विभिन्न प्रकार की भाषाएं बोलने में वह इतना दक्ष कैसे हुआ ?

8. सत्यवादी........
जिस व्यक्ति का वचन कभी भंग नही होता वह सत्यवादी कहलाता है । एक बार कृष्ण ने पाण्डवों की माता कुंती को यह वचन दिया था कि वे उनके पांचों पुत्रों को कुरुक्षेत्र -युद्ध स्थल से वापस लायेंगे । युद्ध समाप्त होने पर जब पांचों पाण्डव घर आये तो कुंती ने कृष्ण की प्रशंसा की , क्योंकि उन्होंने अपने वचन को पूरा किया था । वे बोलीं " भले ही किसी दिन सूर्य शीतल पड जाय और चन्द्रमा किसी दिन उष्ण बन जाय , किंतु तो भी आपका वचन असत्य नहीं होगा । " इसी प्रकार जब भीम तथा अर्जुन के साथ कृष्ण जरासंध को ललकारने गये तो उन्होंने जरासंध से स्पष्ट कह दिया था कि दोनों पाण्डवों के साथ उपस्थित वे साक्षात् कृष्ण हैं । कथा इस प्रकार है कि कृष्ण तथा पाण्डव ( भीम तथा अर्जुन ) दोनों क्षत्रिय थे । जरासंध भी क्षत्रिय था और वह ब्राह्मणों को खूब दान देता था । इसलिये जरासंध से युद्ध करने की योजना बनाकर कृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया और भीम तथा अर्जुन के साथ चल दिये । चूंकि जरासंध ब्राह्मणों को दान देता था , अतएव उसने कृष्ण से कहा कि " तुम क्या चाहते हो ? " और तब उन्होंने उससे युद्ध की इच्छा व्यक्त की । ब्राह्मण वेशधारी कृष्ण ने तब अपने को वही कृष्ण घोषित किया जो राजा का नित्य शत्रु था ।

9. मधुर भाषी.........
जो अपने शत्रु को भी शांत करने के लिए मीठे वचन बोलता है वह मधुर भाषी कहलाता है । कृष्ण ऐसे मधुर भाषी थे कि अपने शत्रु कालिय को यमुना नदी में परास्त करने के बाद उससे बोले , " हे नागराज! यद्यपि मैनें तुम्हें इतनी पीड़ा पहुंचाई है , किंतु मुझसे रुष्ट मत होवो । यह मेरा धर्म है कि देवताओं के भी पूज्य इन गायों की रक्षा करुं इनको तुम्हारे भय से बचाने के लिए ही मैंने तुम्हें इस स्थान से बाहर निकाला है । "
कालिय यमुना के जल के भीतर रहता था , अतएव नदी का पिछला भाग विषैला हो चुका था । इसलिए जिन गायों ने जल पिया था वे मर गयीं थीं । यद्यपि कृष्ण चार पांच वर्ष के थे , किंतु उन्होंने पानी में डुबकी लगा कर कालिय को कठोर दण्ड दिया और उससे उस स्थान को छोड़कर अन्यत्र जाने को कहा ।
कृष्ण ने उस समय कहा कि गौवें देवताओं द्वारा भी पूजित हैं और उन्होंने यह प्रत्यक्ष दिखला दिया कि किस तरह रक्षा की जाती है । कम से कम उन लोगों को जो कृष्ण भावना भावित हैं उनके चरण चिन्हों पर चल कर गायों की सुरक्षा प्रदान करनी चाहिये । गायें केवल देवताओं द्वारा ही पूजित नहीं हैं । कृष्ण ने भी अनेक अवसरों पर , विशेषतया गोपाष्टमी तथा गोवर्धन पूजा के समय , गायों की पूजा की थी ।

10. वाक्पटु (बावदूक)......
जो व्यक्ति समस्त विनय शीलता तथा उअत्तम गुणों के साथ सार्थक शब्द बोल सकता है वह बावदूक अथवा वाक्पटु कहलाता है । श्रीमद्भागवतम् में कृष्ण द्वारा विनय शीलता से बोलने का सुन्दर उदाहरण मिलता है । जब कृष्ण ने अपने पिता नन्द महाराज से वर्षा के देवता इन्द्र के सम्मान में अत्यंत शीष्टतापूर्वक किये जाने वाले यज्ञ को बन्द करने को कहा तो गांव की एक ग्वालिन उन पर मोहित हो गयी । बाद में वह कृष्ण के बोलने के विषय में अपनी सखियों से इस प्रकार बोली - " कृष्ण अपने पिता से इतनी शिष्टता तथा विनयशीलता से बोल रहे थे मानो वे वहां पर उपस्थित लोगों के कानों में अमृत उडेल रहे हों । कृष्ण के ऐसे मधुर शब्द सुनकर भला ऐसा कौन होगा जो उनकी ओर आकृष्ट न हो जाय ।
कृष्ण की वाणी ब्रह्माण्ड के समस्त उत्तम गुणों से युक्त है । उद्धव ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है , कृष्ण के वचन इतने आकर्षक होते हैं कि अपने विपक्षी के भी हृदय को तुरंत परिवर्तन कर देते हैं । उनके वचन विश्व के सारे प्रश्नों तथा सारी समास्याओं को तुरंत हल करने वाले हैं। वे अधिक नहीं बोलते । उनके मुख से निकला हर शब्द अर्थपूर्ण होता है । कृष्ण के ये वचन मेरे हृदय को अत्यंत सुहावने लगते हैं ।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
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🔴 Question: YOU SAID THAT IMITATION OF ANY KIND, EVEN IMITATION OF A BUDDHA, IS ALIEN TO PURE CONSCIOUSNESS. BUT WE SEE ...
09/12/2023

🔴 Question:
YOU SAID THAT IMITATION OF ANY KIND, EVEN IMITATION OF A BUDDHA, IS ALIEN TO PURE CONSCIOUSNESS. BUT WE SEE THAT ALL OUR CULTURAL LIFE IS NOTHING BUT IMITATION. IN THAT CASE, IS CULTURE ITSELF ALIEN TO RELIGION?
❤❤❤❤

Yes, culture, society, civilization, all are alien to religion. Religion is a revolution, a revolution in your cultural conditioning, a revolution in your social conditioning, a revolution in all the spheres that you have lived and you are living. Every society is against religion. I'm not talking about your temples and mosques and churches that society has created. Those are tricks. Those are things to befool you. Those are substitutes for religion, they are not religion. They are to misguide you. You need religion: they say, 'Yes, come to the temple, to the church, to the gurudwara. Here it is religion. You come and pray and the preacher is there who will teach you religion.'
This is a trick. Society has created false religions: those religions are Christianity, Hinduism, Jainism. But a Buddha, or a Mahavira, or a Jesus, or a Mohammed Azamed, always exist beyond society. And society always fights with them. When they are dead, then the society starts worshipping them, then the society creates temples. And then there is nothing; the reality is gone, the flame has disappeared. Buddha is no longer there in the statue of a Buddha. In the temples you will find the society, the culture, but not religion. But what is religion?

In the first place, religion is a personal thing. It is not a social phenomenon. You alone go into it, you cannot go into it with a group. How can you go into samadhi with somebody else? Not even your nearest, not even your closest will be with you. When you go inwards, everything will be left out: the society, the culture, the civilization, enemies, friends, lovers, beloveds, children, wife, husband — everything will be left, by and by. And a moment comes when you also will be left out. Then only, the flowering; then the transformation. Because you are also a part of the society, a member of society: a Hindu, a Mohammedan, a Christian, an Indian, a Chinese, a Japanese. First, others will be left; then, by and by, nearer ones will be left, closer ones will be left. Finally you will come to yourself, which is also a part of the society, trained by the society, conditioned by the society: your brain, your mind, your ego — given by the society. That too has to be left outside the temple. Then you enter in your absolute aloneness. Nobody is there, not even you.

Religion is personal. And religion is revolutionary. Religion is the only revolution in the world. All other revolutions are false, pseudo, games, not revolutions. In fact, because of those revolutions, the real revolution is always postponed. They are anti-revolutions.

A communist comes and he says, 'How can you change yourself unless the whole society is changed?' And you feel, 'Right. How can I change myself? How can I live a free life in an un-free society?' The logic seems relevant. How can you be happy in an unhappy society? How can you find bliss when everybody is miserable? The communist hits, he appeals.'Yes,' you say, 'unless the whole society is happy, how can I be?' Then the communist says, 'Come, let us first have a revolution in the society.' And then you start on a march, morcha, gherao, all types of nonsense. You have been caught in the trap. Now you are going to change the whole world.

But have you forgotten how long you are going to live? And when the whole world is changed, by that time you will not be here. You will have lost your life. Many stupid people are losing their whole lives marching against this and that, for this and that; trying to transform the whole world and postponing the only transformation which is possible, and that is self-transformation.

And I tell you, you can be free in an un-free society, you can be blissful in a miserable world. There is no hindrance from others; you can be transformed. Nobody is hindering you except you yourself. Nobody is creating any obstacle. Don't bother about the society and the world because the world will continue. And it has continued the same for ever and ever. Many revolutions come and go and the world remains the same.

If I change, I change the whole world in a way. The world will never be the same because one part -- one millionth, but still one part -- has changed, has become totally different, is no more of this world. Another world has penetrated through me. The eternity has penetrated into time. God has come to dwell in a human body; nothing can be the same, everything will change through me.

Remember this, and remember also that religion is not an imitation. You cannot imitate a religious person. If you imitate, it will be a pseudo-religion — false, insincere. How can you imitate me? And if you imitate, how can you be true to yourself ? You will become untrue to yourself. You are not here to be like me. You are here to be just like yourself. You are not here to be like me; you are here to be just like yourself, like you.

Be authentically yourself. You cannot imitate. Religion makes everybody unique. No Master who is really a Master will insist that you imitate him. He will help you to be yourself, he will not help you to be like him.

I'm here to help you to be yourself. When you become a disciple, when I initiate you, I am not initiating you to be imitators. I am just trying to help you to find your own being, your own authentic being — because you are so confused, you have so many faces that you have forgotten which is the original one. You don't know what your real urge is. The society has confused you completely, misguided you. Now you are not certain of who you are. When I initiate you, the only thing that I want to do is to help you come to your own home. Once you are centered in your own being, my work is finished. Then you can start. In fact, a Master has to undo what the society has done. A Master has to undo what the culture has done. He has to make you a clean sheet again.

That's the meaning of a Master giving you a rebirth: again you become a child, your past cleaned, your slate washed. How can you come to the first point where you had entered into this world, forty, fifty years ago? And the society got hold of you, trapped you, led you astray. For fifty years you have wandered and now suddenly you have come to me. I have to do only one thing: to wash clean whatsoever has been done to you, to bring you back to your childhood, to the initial stage from where you started the journey, and to help you to start the journey again.

Words of Beloved Rajnish
Yoga: The Alpha and the Omega,
Vol 4, Ch--4 / Fri, 24 April 1975 am in Buddha Hall

Money comes and showers itself upon one, who does not care for it; so does fame come in abundance, until it is a trouble...
08/12/2023

Money comes and showers itself upon one, who does not care for it; so does fame come in abundance, until it is a trouble and a burden. They always come to the Master. The slave never gets anything. The Master is he, who can live in spite of them, whose life does not depend upon the little, foolish things of the world. Live for an ideal, and that one ideal alone. Let it be so great, so strong, that there may be nothing else left in the mind; no place for anything else, no time for anything else.

Swami Vivekananda
(CW/Volume 5/Notes from Lectures and Discourses/Sadhanas or Preparations for Higher Life)

"Eat and Drink Consciously...!We eat very unconsciously, automatically, robot like! If the taste is not lived, you are j...
08/12/2023

"Eat and Drink Consciously...!

We eat very unconsciously, automatically, robot like!
If the taste is not lived, you are just stuffing...
Go slow, and be aware of the taste.
Do not just go on swallowing things.

Whatsoever you are eating, feel the taste and become 'the taste'.
When you feel sweetness, become that sweetness.
And then it can be felt all over the body —
not just in the mouth, not just on the tongue,
it can be felt all over the body spreading in ripples.

With no taste, your senses will be deadened.
They will become less and less sensitive.
And with less sensitivity, you will not be able to feel your body,
you will not be able to feel your feelings.
Then you will just remain centered in the head.

When drinking water, feel the coolness.
Close your eyes, drink it slowly, taste it...
Feel the coolness and feel that you have become that coolness,
because the coolness is being transferred to you from the water;
it is becoming a part of your body.

Your mouth is touching, your tongue is touching,
and the coolness is transferred....
Allow it to happen to the whole of your body.
Allow its ripples to spread, and you will feel
a coolness all over your body...

In this way your sensitivity can grow,
and you can become more alive and more filled."

☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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☮️ मन की शांति के लिए संतुष्टि जरूरी है, पढ़िए ये कथा 👇🏻एक समय की बात है । एक राजा दान-पुण्य करते थे, लेकिन उन्हें अपने ...
08/12/2023

☮️ मन की शांति के लिए संतुष्टि जरूरी है, पढ़िए ये कथा 👇🏻

एक समय की बात है । एक राजा दान-पुण्य करते थे, लेकिन उन्हें अपने अच्छे कामों पर घमंड भी था। राजा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। रोज सुबह महल के बाहर जरूरतमंद लोगों की लाइन लगी रहती थी। एक दिन राजा के पास एक संत पहुंचे।

राजा ने संत से कहा कि गुरुदेव आप जो चाहें मुझसे मांग सकते हैं। मैं आपकी सभी इच्छाएं पूरी कर सकता हूं। संत को समझ आ गया कि राजा को अहंकार हो गया है। उन्होंने कहा कि मेरे इस कमंडल को स्वर्ण मुद्राओं से भर दो।

राजा ने कमंडल देखा तो वह छोटा दिख रहा था। राजा ने कहा कि ये तो बहुत छोटा सा काम है। मैं अभी इसे भर देता हूं। राजा ने अपने पास से मुद्राओं की थैली निकाली और कमंडल में डाल दी। लेकिन, मुद्राएं कमंडल में जाते ही गायब हो गईं।

राजा ने कोषाध्यक्ष से और मुद्राएं मंगवाकर उस कमंडल में डालीं तो वे भी गायब हो गईं। ये देखकर राजा हैरान था। राजा को अपना वचन पूरा करना था, इसलिए उसने अपने खजाने से और मुद्राएं मंगवाईं।

राजा जैसे-जैसे स्वर्ण मुद्राएं उस कमंडल में डाल रहा था। मुद्राएं गायब हो रही थीं, वह कमंडल खाली ही था। राजा ने हाथ जोड़कर हार मान ली और कहा कि कृपया इस कमंडल का रहस्य समझाएं। इतना धन डालने के बाद भी ये भरा क्यों नहीं?

संत बोलें कि राजन् ये कमंडल मन का प्रतीक है। जिस तरह हमारा मन सुख-सुविधाएं, धन, पद और ज्ञान से कभी भरता नहीं है, ठीक उसी तरह ये कमंडल भी कभी भर नहीं सकता। मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती हैं। मन शांति के लिए हमें हर हाल में संतुष्ट रहना चाहिए। कभी भी घमंड न करें। इच्छाओं और घमंड का त्याग करेंगे तो मन शांत रहेगा।

☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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🔶मैं किसी को कुछ भी नहीं पढ़ा सकता; मैं केवल उन्हें सोचने पर मजबूर कर सकता हूँ।आश्चर्य ही बुद्धिमानी की शुरुआत है।हर एक व...
08/12/2023

🔶
मैं किसी को कुछ भी नहीं पढ़ा सकता;
मैं केवल उन्हें सोचने पर मजबूर कर सकता हूँ।
आश्चर्य ही बुद्धिमानी की शुरुआत है।
हर एक व्यक्ति के प्रति दयालु बने क्योंकि
हर व्यक्ति एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है।
☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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WHATEVER IS HAPPENING TO YOU, JUST FOLLOW IT, VERY NATURALLY. Don't be in a hurry, don't bring your knowledge to improve...
08/12/2023

WHATEVER IS HAPPENING TO YOU, JUST FOLLOW IT, VERY NATURALLY. Don't be in a hurry, don't bring your knowledge to improve upon it.

Nobody can improve upon nature:
WHEN THE SPRING COMES, THE FLOWERS WILL COME ALSO -- and there is no way to bring the spring, and without the spring the flowers won't come.

So you go on the way you are moving.

It is the right path, the easy path in your naturalness and spontaneity, and you will not be going astray. You will reach to the ultimate ocean where one merges with the eternal life.

The Hidden Splendor Ch 8:
The taste of your being
☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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सत्व की श्रद्धा हो तो पहुंच जाओगे,आलस्य की श्रद्धा हो तो चूक जाओगे।💯🎯✔️बुद्ध पुरुष शरीर छूटने के बाद भी उपलब्ध हो सकते ह...
08/12/2023

सत्व की श्रद्धा हो तो पहुंच जाओगे,
आलस्य की श्रद्धा हो तो चूक जाओगे।

💯🎯✔️

बुद्ध पुरुष शरीर छूटने के बाद भी उपलब्ध हो सकते हैं।

💯🎯✔️

प्रेम की प्रगाढ़ता ही एक दिन प्रार्थना बनती है।

💯🎯✔️

पूजा और प्रार्थना चित्त की दशाएं है,
इनका परमात्मा से कुछ भी लेना देना नहीं है।

💯🎯✔️

जीवेषणा को छोडेंगे तो ही मृत्य से छुटकारा होगा।

💯🎯✔️

गीता एक व्यक्ति से कही गई है
लेकिन एक के बहाने सभी से कही गई है।

💯🎯✔️

पंडित कहता है मान लो परमात्मा ऐसा है वैसा है।
संत कहता है,जान लो परमात्मा एक ओंकार सतनाम स्वरुप है।

💯🎯✔️

ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਨਫਰਤ ਨਾ ਕਰੋ, ਜੋ ਤੁਹਾਡੇ ਤੋਂ ਸੜਦੇ ਹਨ,ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸੜਨ ਦੀ ਵੀ ਕਦਰ ਕਰੋ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਉਹ ਲੋਕ ਹਨ, ਜੋ ਸੋਚਦੇ ਨੇ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਉਹਨਾਂ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਹੋ।

💯🎯✔️

ਮਿੱਠਾ ਬੋਲਣ ਵਾਲੇ ਦੀਆਂ ਮਿਰਚਾਂ' ਵੀ ਵਿੱਕ ਜਾਂਦੀਆ ਹਨ।
ਅਤੇ ਕੌੜਾ ਬੋਲਣ ਵਾਲੇ ਦਾ ਸ਼ਹਿਦ ਵੀ ਨਹੀਂ ਵਿਕਦਾ।

☀️☀️☀️OG☀️☀️☀️
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🔴64 कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण जी (भाग 2) 🔴 श्री कृष्ण 64 कलाएं...... धर्म शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण 64 कलाओं म...
08/12/2023

🔴64 कला सम्पूर्ण भगवान् श्री कृष्ण जी (भाग 2)
🔴 श्री कृष्ण 64 कलाएं......

धर्म शास्त्रों के अनुसार श्री कृष्ण 64 कलाओं में निपुण थे वो चाहे गीत संगीत से जुड़ी हो या नृत्य से। भगवान श्री कृष्ण ने इन 64 कलाओं का ज्ञान मात्र 64 दिन में ही लिया था।

श्री कृष्ण ने यहां से लिया था 64 कलाओं का ज्ञान
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं का ज्ञान था। भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सम्पूर्ण शिक्षा और ज्ञान उज्जैन के संदीपनि आश्रम में ही गुरू संदीपनि से प्राप्त किया था। श्री कृष्ण के साथ उज्जैन विद्या प्राप्त करने मित्र सुदामा व भाई बलराम भी आए थे। ऐसा माना जाता है कि विश्व का सबसे पहला गुरुकुल यही था। श्रीकृष्ण जब उज्जैन में गुरु सांदीपनि से शिक्षा प्राप्त करने गए तो मात्र 64 दिनों में ही 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया।

क्या हैं वो 64 कलाएं
श्रीमदभागवतपुराण के दशम स्कन्द के 45 वें अध्याय के अनुसार श्री कृष्ण निम्न 64 कलाओं में पारंगत थे-

1- नृत्य – नाचना
2- वाद्य- तरह-तरह के बाजे बजाना
3- गायन विद्या – गायकी।
4- नाट्य – तरह-तरह के हाव-भाव व अभिनय
5- इंद्रजाल- जादूगरी
6- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना
7- सुगंधित चीजें- इत्र, तेल आदि बनाना
8- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना

9- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या
10- बच्चों के खेल
11- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या
12- मन्त्रविद्या
13- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना
14- रत्नों को अलग-अलग प्रकार के आकारों में काटना
15- कई प्रकार के मातृका यन्त्र बनाना
16- सांकेतिक भाषा बनाना

17- जल को बांधना।
18- बेल-बूटे बनाना
19- चावल और फूलों से पूजा के उपहार की रचना करना। (देव पूजन या अन्य शुभ मौकों पर कई रंगों से रंगे चावल, जौ आदि चीजों और फूलों को तरह-तरह से सजाना)
20- फूलों की सेज बनाना।
21- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना – इस कला के जरिए तोता-मैना की तरह बोलना या उनको बोल सिखाए जाते हैं।
22- वृक्षों की चिकित्सा
23- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति
24- उच्चाटन की विधि

25- घर आदि बनाने की कारीगरी
26- गलीचे, दरी आदि बनाना
27- बढ़ई की कारीगरी
28- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना यानी आसन, कुर्सी, पलंग आदि को बेंत आदि चीजों से बनाना।
29- तरह-तरह खाने की चीजें बनाना यानी कई तरह सब्जी, रस, मीठे पकवान, कड़ी आदि बनाने की कला।
30- हाथ की फूर्ती के काम
31- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना
32- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना

33- द्यू्त क्रीड़ा
34- समस्त छन्दों का ज्ञान
35- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या
36- दूर के मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण
37- कपड़े और गहने बनाना
38- हार-माला आदि बनाना
39- विचित्र सिद्धियां दिखलाना यानी ऐसे मंत्रों का प्रयोग
40-कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना – स्त्रियों की चोटी पर सजाने के लिए गहनों का रूप देकर फूलों को गूंथना।

41- कठपुतली बनाना, नाचना
42- प्रतिमा आदि बनाना
43- पहेलियां बूझना
44- सूई का काम यानी कपड़ों की सिलाई, रफू, कसीदाकारी करना।
45 – बालों की सफाई का कौशल
46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना
47- कई देशों की भाषा का ज्ञान
48 – मलेच्छ-काव्यों का समझ लेना – ऐसे संकेतों को लिखने व समझने की कला जो उसे जानने वाला ही समझ सके।

49 – सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा
50 – सोना-चांदी आदि बना लेना
51 – मणियों के रंग को पहचानना
52- खानों की पहचान
53- चित्रकारी
54- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना
55- शय्या-रचना
56- मणियों की फर्श बनाना यानी घर के फर्श के कुछ हिस्से में मोती, रत्नों से जड़ना।

57- कूटनीति #शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
58- ग्रंथों को पढ़ाने की चातुराई
59- नई-नई बातें निकालना
60- समस्यापूर्ति करना
61- समस्त कोशों का ज्ञान
62- मन में कटक रचना करना यानी किसी श्लोक आदि में छूटे पद या चरण को मन से पूरा करना।
63-छल से काम निकालना
64- शंख, हाथीदांत सहित कई तरह के कान के गहने तैयार करना।

"भगवान श्रीमन्नारायण में 60 दिव्य गुण होते हैं, यह समस्त 60 दिव्य गुण श्रीकृष्ण में भी विद्यमान हैं, किन्तु इनके अलावा 4 अन्य दिव्य गुण भी श्रीकृष्ण में विद्यमान हैं, जो श्रीनारायण में नहीं हैं।

श्रीकृष्ण में वह 4 अतिरिक्त गुण इस प्रकार हैं -

1. लीला माधुर्य - समुद्र के तुल्य उनकी अद्भुत लीलाएं।

2. प्रेम माधुर्य - सदा अपने प्रेमी भक्तों के बीच घिरा रहना।

3- वेणु माधुर्य - तीनों लोकों को आकर्षित करने वाली वंशी धारण करते हैं।

4. रूप माधुर्य - तीनों लोकों में उनके रूप सौंदर्य की कोई तुलना नहीं है।

इन चार अतिरिक्त गुणों को धारण करने से श्रीकृष्ण 64 कलाओं से परिपूर्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान कहलाते हैं। जब वह केवल 60 गुणों का प्रदर्शन करते हैं, वही श्रीकृष्ण श्रीमन्नारायण कहलाते हैं।"

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
🙏🌷🌹🌷🌹🌷🌹🙏
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