स्वतंत्र पत्रकार

स्वतंत्र पत्रकार स्वतंत्र विचार रखने का एकमात्र साधन I

04/05/2024

गजब टाइमिंग है
कोविशील्ड नैरेटिव का...... या फिर यूं कहें चुनावी प्रोपगेंडा तो यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी।

रोटी तो सभी खाते हैं.... गेहूं के आटे वाली रोटी. दिन में 4-8 रोटी तो खाते ही होंगे.

कितने सालों से खा ही रहे हैं... आगे भी खाते ही रहेंगे.

कभी सोचा है गेहूं के आटे से बनी रोटी खाने के क्या side effects होते हैं??

मै बताये देता हूँ

Nausea and vomiting
Indigestion
Diarrhea
Sneezing
Stuffy or runny nose
Headaches

एक खांसी की syrup... Cough Syrup के जानते हैं कितने Side Effects होते हैं??

- paranoia and confusion.
- excessive sweating.
- nausea and vomiting (large quantities of cough syrup almost always cause people to throw up)
belly pain.
- irregular heartbeat and high blood pressure.
- restlessness.
- dry, itchy skin and facial redness.

और आज side effects Rare नहीं हैं.... Large Sample of Population में हो सकते हैं.

लेकिन क्या आपने यह Side effects झेले हैं कभी??

Most cases में नहीं झेले होंगे.

Covishield में जो side effects बताये जा रहे हैं.. वह Rare category के हैं.... लाखों करोड़ों में किसी एक को वह हो सकता है... यह एक hit job है.. बेवजह का बवाल है और कुछ नहीं.

एस्ट्रोजेनिका ने 2021 में ही अपने रिसर्च पेपर में यह बताया था कि थ्रोमबोसिस इसका बहुत ही रेयर साइड इफ़ेक्ट हो सकता है। बाद में पता चला कि यह दस लाख लोगों में से किसी एक व्यक्ति को हो सकता है। अब जिसको थ्रोमबोसिस होगा, उसको इससे मृत्यु की संभावना भी केवल 1% है। अर्थात् इस वैक्सीन को यदि दस करोड़ लोगों को दिया जाय तो किसी एक व्यक्ति में मृत्यु की संभावना बनेगी। जबकि कोरोना से मृत्यु की संभावना अपने आप 2-3% थी अर्थात् 100 में से 2-3 व्यक्ति की।

अब आगे और महत्वपूर्ण बात यह है कि कोरोना में जो मौतें हुई उसमें से बहुतों का कारण यहीं थ्रामबोसिस ही था। अतः दस करोड़ में से एक घटने वाली घटना से डरकर, उस घटना को आमंत्रण देना जिससे 100 में से 2 लोगों की मृत्यु हो सकती है, स्पष्ट करता है कि यह बुद्धि का राहुल गांधीकरण है। कोविशिल्ड की इफ़ेक्टिविटी बाद में लगभग 90% साबित हुई। अतः अंध विरोध के चलते उस चीज का विरोध करना जिसने मानवता की इतनी बड़ी सेवा की, निकृष्टता है।

ब्लड कैंसर में बोन मैरो ट्रांस्प्लांट के दौरान ही 5-10% मरीज़ों की मृत्यु कैंसर के बजाय केवल उस प्रक्रिया से हो जाती है बावजूद इसके पिछले चार दशक से यह पहली चॉइस है। कभी किसी ने नहीं कहा कि यह इलाज लोगों को मार रहा है क्योंकि किसी भी दवा, इलाज और इंटरवेंशन को समग्रता से देखा जाता है। यह देखा जाता है कि नेट इससे मानवता बच रही है या नहीं।

इस हिसाब से मानवता को कोवीशील्ड के आविष्कारकों का धन्यवाद देना चाहिए।
साभार l

कायस्थ कुल गौरव स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका के शिकागो में 11 सितंबर सन 1893 ई. को आयोजित विश्व धर्म संसद में जो भाषण ...
11/09/2023

कायस्थ कुल गौरव स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका के शिकागो में 11 सितंबर सन 1893 ई. को आयोजित विश्व धर्म संसद में जो भाषण दिया था, उसकी प्रतिध्वनि युगों युगों तक सुनाई देती रहेगी।

शिकागो में दिए भाषण के मुख्य अंश -
मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों,
आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया है उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परंपरा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूं, धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं और सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूं।

मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूं जिन्होंने आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं।

मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी है, हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है।
मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता है कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था।

ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूं जिसने महान जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है।

भाइयों, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियां सुनाता हूं जिसकी आवृत्ति मैं बचपन से कर रहा हूं और जिसकी आवृत्ति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं -

रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम।
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।।

अर्थात् - जैसे विभिन्न नदियां भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अंत में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।

यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वत: ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है -

ये यथा मा प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम।
मम वत्मार्नुर्वतते मनुष्या: पार्थ सर्वश:।।

अर्थात - जो कोई मेरी ओर आता है - चाहे किसी प्रकार से हो, मैं उसको प्राप्त होता हूं। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अंत में मेरी ही ओर आते हैं।

सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मांधता इस सुंदर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारंबार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियां न होतीं तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता, पर अब उनका समय आ गया है और मैं आंतरिक रूप से आशा करता हूं कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घंटाध्वनि हुई है वह समस्त धर्मांधता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होने वाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्परिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।
साभार

मित्रों अपने बच्चों को यह अवश्य दिखाए और पढ़ाए।*चंद्रयान  और भरत कुमार*    कल शाम 6.03 बजे चंद्रयान 3 का लैंडर (विक्रम) ...
24/08/2023

मित्रों अपने बच्चों को यह अवश्य दिखाए और पढ़ाए।
*चंद्रयान और भरत कुमार*
कल शाम 6.03 बजे चंद्रयान 3 का लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) वाला एलएम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के पास उतर गया और चन्द्रमा में इस जगह उतरने वाला भारत पहला देश बन गया हैं। *यह भारतीय प्रतिभा का एक अनुपम उदाहरण है जो ISRO के माध्यम से साकार हो रहा हैं।*
अब तनिक धरती के एक कस्बे चरौदा (छत्तीसगढ़) पहुंचते हैं। *यहां एक लड़का था के. भरत कुमार।*
भरत के पिता बैंक में सुरक्षा गार्ड हैं और बच्चों को बेहतर शिक्षा देना चाहते थे। इसके लिए आर्थिक समस्या आड़े आती थी सो *भरत की माँ ने चरौदा में एक टपरी पर इडली चाय बेचने का काम शुरू किया।*
चरौदा में रेलवे का कोयला उतरता चढ़ता है। कोयले की इसी काली गर्द के बीच भरत *मां के साथ यहां चाय देकर, प्लेट्स धोकर परिवार की जीविका और अपनी पढ़ाई के लिए मेहनत कर रहा था।*
*भरत की स्कूली पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय चरौदा में होने लगी।*
जब भरत नौवीं में था, फीस की कमी से टीसी कटवाने की स्थिति आ गयी थी पर स्कूल ने फीस माफ की और शिक्षकों ने कॉपी किताब का खर्च उठाया।
*भरत ने 12 वीं मेरिट के साथ पास की और उसका IIT धनबाद के लिए चयन हुआ।*
फिर आर्थिक समस्या आड़े आई तो रायपुर के उद्यमी अरुण बाग और जिंदल ग्रुप ने भरत का सहयोग किया।
*यहाँ भी भरत ने अपनी प्रखर मेधा का परिचय दिया और 98% के साथ IIT धनबाद में गोल्ड मेडल प्राप्त किया।*
जब भरत *इंजीनियरिंग के 7 वें सेमेस्टर में था तब ISRO ने वहां अकेले भरत का प्लेसमेंट में चयन किया और आज भरत इस चंद्रयान 3 मिशन का अंग है।*
आज मात्र 23 साल का हमारा यह युवा चंद्रयान 3 की टीम के सदस्य के रूप में *गुदड़ी के लाल' कहावत को सही साबित कर रहा है।*
*भरत को बहुत बधाई और शुभकामनाएं और ISRO को प्रणाम !*
साभार

फाँसी के पहले का ठहाका 11 अगस्त 1908 को सुबह छह बजे खुदीराम बोस को फांसी के फंदे पर झुलाया जाने वाला था । रात को उनके पा...
12/08/2023

फाँसी के पहले का ठहाका

11 अगस्त 1908 को सुबह छह बजे खुदीराम बोस को फांसी के फंदे पर झुलाया जाने वाला था । रात को उनके पास जेलर पहुँचा । जेलर को खुदीराम से पुत्रवत् स्नेह हो गया था । वह 10 अगस्त की रात को चार रसीले आम लेकर उसके पास पहुँचा ओर बोला " खुदीराम , ये आम मैं तुम्हारे लिए लाया हूँ । तुम इन्हें चूस लो । मेरा एक छोटा सा उपहार स्वीकार करो । मुझे बड़ा संतोष होगा । " खुदीराम ने जेलर से वे आम लेकर अपनी कोठरी में रख लिये और कह दिया कि " थोड़ी देर बार मैं अवश्य इन आमों को चूस लूंगा । " 11 अगस्त को सुबह जेलर फाँसी के लिए खुदीराम बोस को लेने पहुंच गया । खुदीराम तो पहले से ही तैयार थे । जेलर ने देखा कि उसके द्वारा दिए गए आम वैसे - के - वैसे रखे हुए हैं । उसने खुदीराम से पूछा " क्यों खुदीराम ! तुमने ये आम चूसे नहीं । तुमने मेरा उपहार स्वीकार क्यों नहीं किया ? " खुदीराम ने बहुत भोलेपन से उत्तर दिया " अरे साहब ! जरा सोचिए तो कि सुबह ही जिसको फाँसी के फंदे पर झूलना हो , क्या उसे खाना - पीना सुहाएगा ? " जेलर ने कहा - " खैर , कोई बात नहीं , मैं ये आम खुद उठाए लेता हूँ और अब इन्हें तुम्हारा उपहार समझकर मैं चूस लूँगा । ' ' यह कहकर जेलर ने वे चारों आम उठा लिये । उठाते ही आम पिचक गए । खुदीराम बोस जोर से ठहाका मारकर हँसे और काफी देर तक हँसते रहे । उन्होंने जेलर साहब को बुद्धू बनाया था । वास्तव में उन्होंने उन आमों का रस चूस लिया था और हवा भरकर उन्हें फुलाकर रख दिया था । जेलर महोदय उसकी मस्ती को देखकर मुग्ध और आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सके । वे सोच रहे थे कि कुछ समय पश्चात् मृत्यु जिसको अपना ग्रास बना लेगी , वह अट्टहास करके किस प्रकार मृत्यु की उपेक्षा कर रहा है ।

वह कौन सी मस्ती थी कैसा उनका अद्भुत ज्ञान था वास्तव में आप जैसे महापुरुषों का जीवन चरित्र जानकर हृदय गदगद हो उठता है और बार बार एक ही प्रार्थना मां भारती से निकलती है कि मां यह मातृभूमि रत्नगर्भा है और खुदी राम जी जैसे लोग इस मातृभूमि के रत्न है ! ऐसे महापुरुष बार-बार हमारी मातृभूमि और संस्कृति में अवतरण ले ऐसी मंगल कामना है ! एक बार पुनः हृदय से नमन !
साभार

 #सेंगोल (राजदण्ड) चित्र 1बौद्धिक युग समाप्त होने के बाद ब्राह्मणी युग का उदय हुआ है।बौद्धिक युग में भगवान बुद्ध से जुड़ी...
29/05/2023

#सेंगोल (राजदण्ड) चित्र 1

बौद्धिक युग समाप्त होने के बाद ब्राह्मणी युग का उदय हुआ है।

बौद्धिक युग में भगवान बुद्ध से जुड़ी हर बातों का शिल्प बनना शुरू हो गया था,
जिसमें #सिरिपाद, #चक्र, #कमल का फूल, #सिंह, #घोड़ा, #सांड, #हाथी का निशान बहुत ही प्रमुख है।
आजादी बाद देश का राष्ट्रीय चिन्ह इन्हीं सब का (चक्र, कमल, सिंह, घोड़ा, सांड, हाथी) एकीकृत रूप है,
जिसे #अशोक_स्तंभ कहतें हैं।
चित्र 2

#सिरिपाद:-
सर्वप्रथम बौद्धिक युग में सिरिपाद का निर्माण भगवान बुद्ध की याद में हुई थी,
लेकिन
ब्राह्मणी युग में इस श्रीपाद को विष्णुपाद बना दिया गया।
जबकि विष्णु का पुरातात्विक प्रमाण बुद्ध के हजारो वर्ष बाद का है।

#चक्र- सर्वप्रथम बौद्धिक युग में चक्र का प्रयोग मिलता है,
लेकिन
ब्राह्मणी युग में इस चक्र पर विष्णु और कृष्ण का कब्जा हो गया है।
जबकि ये दोनों का पुरातात्विक अवशेष बुद्ध के हजारो वर्ष बाद का है।

#कमल फूल- सर्वप्रथम कमल आसान शिल्प का प्रयोग भगवान बुद्ध के आसन हेतु हुआ था,
लेकिन
ब्राह्मणी युग में कमल आसन का प्रयोग इनके सभी ईश्वरों हेतु होने लगा।
जबकि
इनके ईश्वर का निर्माण राजपूत मुगल काल में हुआ है।

#सिंह- सर्वप्रथम बौद्धिक व्यवस्था में भगवान बुद्ध के धर्म गर्जना को सिंह गर्जना से तुलना की गई है,
लेकिन
ब्राह्मणी युग में सिंह का प्रयोग दुर्गा जी के लिए हुआ है।
जबकि दुर्गा जी का उपस्थिति राजपूत मुगल काल में मिलता है।

#घोड़ा- सर्वप्रथम बौद्धिक व्यवस्था में भगवान बुद्ध की तत्परता और निद्रा का तुलना घोड़ा से की गई है।
जबकि
ब्राह्मणी युग में तत्परता और निद्रा की तुलना कुंम्भकर्ण से होती है।

#सांड- जिस प्रकार से सांड किसी अवरोधक से नही डरता है, उसी प्रकार बौद्धिक युग में भगवान बुद्ध का शोध व तर्क भी किसी अवरोधक से नहीं रुका था।
लेकिन
ब्राह्मणी युग में यह सांड (राजदण्ड) आसाराम और रविशंकर जैसे लोगों के कुतर्क पर टिक गया है।

#हाथी- हाथी मस्तमौला प्रवृति का होता है, कुत्तों के भूँकने का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता है। इसी वजह से बौद्धिक युग में भगवान बुद्ध की प्रवृति का तुलना भी हाथी से किया गया है
लेकिन
ब्राह्मणी युग में तो जितने भी अलौकिक ईश्वर हुए है वे सभी बात बात पर कटार और कृपाण चलाने वाले प्रवृति के हुए है।

#दक्षिण_भारत_का_बौद्धिक युग चोल वंश के समय #संगम_काल के नाम से भी जाना जाता है।

इस समय दक्षिण भारत में बोधिसत्व जैसे कई दार्शनिकों का उदय हो गया था।
जो भगवान बुद्ध के अनुयायी होने के बाद भी अलग-अलग मार्ग बनाकर गुरु-शिष्य परंपरा का निर्माण किये थे।

आगे यही भिन्न भिन्न मतों का मार्ग ब्राह्मणी परंपरा वाली गुरु-शिष्य की परंपरा बनी थी।

जिसमें प्रत्येक सम्प्रदाय का दार्शनिक अपने आपको दूसरे दार्शनिक को अवरोधक नहीं मानकर अपने पास सांड का प्रतीक चिन्ह राजदण्ड रखता था।
इसलिए प्रत्येक सम्प्रदाय का प्रमुख अपने पास राजदण्ड रखता था।
चित्र 3

आज भी ब्राह्मणी व्यवस्था में विभिन्न मतों का समावेश है और हर मत का गुरु राजदण्ड रखता है जो मृत्यु के समय अपने राजदण्ड को अपने प्रिय शिष्य को सौपता है।

#नोट- राजदण्ड और राष्ट्रचिन्ह दोनों दो विषय है।
साभार

ये सऊदी प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान हैं....अब इन्होंने अपनी ज़िंदगी से मुहम्मद को पूरी तरह से निकाल दिया है, अभी तक ये सिर्फ...
28/03/2023

ये सऊदी प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान हैं....अब इन्होंने अपनी ज़िंदगी से मुहम्मद को पूरी तरह से निकाल दिया है, अभी तक ये सिर्फ अरबी ट्रेडिशनल कपड़े पहनते थे, अब उसे भी लात मार के आम इंसानों वाली ड्रेस पहनने लगा है।

इसने मक्का में मुहम्मद साहब की बेटी फातिमा की कब्र को तुड़वा के वहां टॉयलेट बनवा दिया था, गैर मुस्लिम टूरिस्टों के लिए!
इसी रमज़ान में इन्होंने मज्जिदों से लाउड स्पीकर, चंदा, सार्वजनिक नमाज इत्यादि पर भी प्रतिबंध लगा दिया था!!

UAE में अब खूब सारे हिन्दू मंदिर बन रहे हैं, जिनमे खुद अरबी शेख हिन्दू भगवानों की इबादत करते हुए दिखते हैं, अरबी शेख आपको जय श्री राम बोलते हुए भी दिख जाएंगे!!

क्यों??
ये ऐसा क्यों कर रहा है???

क्योंकि ये अरबी लोग मुहम्मद साहब की सच्चाई जानते हैं, और जानते हैं कि मुहम्मद साहब की राह पर चलते हुए कोई आगे नही बढ़ सकता.....

आज की थोड़ी सी सभ्य हुई दुनिया मे अगर कोई मुहम्मद साहब और उनके सहाबियों की राह पे चलेगा तो उसे सिर्फ फांसी, उम्र कैद या पुलिस/आर्मी की गोली ही मिलेगी!
ओसामा और बगदादी की तरह!!

ये बात हमारे देश के लोग क्यों नही समझ पाते???
क्योंकि उनको अरबी नही आती है.... साथ ही वो क़ुरान, हदीस और सीरत अपनी भाषा मे भी नही पढ़ते....उन्हें मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में कुछ पता ही नही हैं!!

उनको आज भी ये फर्जी कहानी बताई जाती है कि "हमारे नबी के ऊपर एक यहूदी बुढ़िया कूड़ा फेंकती थी, फिर भी वो कभी उसके बारे में गलत नही सोचे, बल्कि बीमार होने पर उसकी मदद किये"

इसी लिए मैं बोलता हूं कि हमारे देश के मुसलमान भाइयों को भी क़ुरान, हदीस और सीरत हर दिन पढ़नी चाहिए!!

जैसे मुहम्मद बिन सलमान आज एक इंसान बन गया है....एक दिन आप लोग भी इंसान बन जाओगे!!
Copy

अंकिता!    एक सामान्य सपने ले कर जीने वाली लड़की। झारखंड के एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी, जिसने अभी जीना शुरू भी नहीं कि...
30/08/2022

अंकिता!
एक सामान्य सपने ले कर जीने वाली लड़की। झारखंड के एक मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी, जिसने अभी जीना शुरू भी नहीं किया था कि जला कर मार दी गयी। क्यों? क्योंकि किसी शाहरुख का दिल आ गया था उसपर! उसे बीवी बना कर अपनी झोपड़ी में ले जाना चाहता था। एक पढ़ी लिखी लड़की किसी जाहिल से विवाह का प्रस्ताव क्यों स्वीकार करती? सो मना कर दिया।
शाहरुख को चुभ गयी बात। वही बर्बर मुगलिया सोच! जो पसन्द आ गयी वह मेरी है। खिलजी से लेकर अकबर तक सबने यही तो सिखाया है। किसी अंकिता की इतनी औकात कि वह किसी शाहरुख की बात काट दे? शाहरुख घर में घुसे, पेट्रोल गिराया और जला दिया...
लड़की खुद दौड़ कर आंगन में आई, बाल्टी से पानी लेकर अपने ऊपर उड़ेला... अठारह वर्ष की बच्ची की जीने की लालसा! इस छोटी आयु में मरना कौन चाहता है? अस्पताल में वह हर मिलने वाले से एक ही बात पूछती थी- "मैं बच तो जाऊंगी न?"
पर नहीं बची। नब्बे फीसदी जल गई थी, कैसे बचती? जीवित जला दी गयी लड़की की पीड़ा कोई नहीं समझ सकता। कितना तड़पी होगी... और उसके तड़पने से कितना खुश हुआ होगा शाहरुख न! इसी लिए तो जलाया था। कहता था- मेरी न हुई तो तड़पा कर मारूंगा!
कोई नेता, पत्रकार उससे मिलने अस्पताल नहीं गया। क्यों जाता? राजनीति लायक मुद्दा नहीं था न! मर गयी तो मर गयी... यह राजनीति और पत्रकारिता की संवेदना का स्तर है।
आप सोच कर देखिये, शाहरुख भी तो जानता होगा कि इसके बाद पकड़ा जाएगा और जिंदगी जेल में सड़ते हुए कट जाएगी। पर नहीं! वह जानता है कि उसके जैसे दस शाहरुखों ने यदि दस अंकिताओं को जला दिया, तो ग्यारहवीं अंकिता किसी शाहरुख को मना नहीं कर पायेगी। वह अपने मिशन में सफल है। यही उसकी विजय है। पूरा खेल खौफ फैलाने का है...
वह यह भी जानता है कि उसके मुद्दे पर न कोई नेता विरोध करेगा, न किसी टीवी चैनल पर डिबेट होगा। उसको बचाने के लिए फंडिंग होगी और सम्भव है कि कुछ वर्षों में वह जेल से बाहर आ कर सुखी जीवन जीने लगे। इस देश में ऐसा होता रहा है।
शाहरुख अंकिता के पीछे बहुत दिनों से पड़ा था। वह कई बार उसके घर जा कर धमका चुका था। हर बार अंकिता के पिता उसे समझाने का प्रयास करते और छोड़ देते। यकीन कीजिये, उसके पिता की इसी अति-सहिष्णुता ने अंकिता की जान ली। यदि वह पिता उसी समय पुलिस के पास जाता, राजनैतिक संगठनों के पास जाता, तो सम्भव था कि आज लड़की जी रही होती। पर किसी भी तरह चुपचाप मामले को सुलटा लेने के भाव ने अंकिता को मार दिया। यह कठोर सच है कि हमारे देश में बेटियों से जुड़े मामले में इस तरह की निर्लज्ज चुप्पी आम है।
आप देखियेगा, केस चलेगा तब शाहरुख की माँ मीडिया में आ कर कहेगी- "हम बहुत गरीब हैं। मेरा बेटा ही कमाने वाला है। उसे छोड़ दिया जाय!" देश की बौद्धिकता उछलने लगेगी, आधी रात को कोर्ट खुलने लगेंगे। सब उसकी ओर खड़े हो जाएंगे। अंकिता की पीड़ा किसी को याद नहीं रहेगी।
जिस देश में कभी एक महारानी की प्रतिष्ठा पर पूरा राज्य बलिदान दे जाता था, वह देश अब बेटियों की सुरक्षा करना तक भूल गया है। इस देश का इससे अधिक दुर्भाग्य कुछ भी नहीं।
साभार

एवरी बेड थिंग कम्स टू एन एन्ड20 अगस्त को रॉय दंपत्ति निश्चिंत होकर सो गए और जब 21 अगस्त को ऑफिस पहुँचे तो अखबार से पता च...
28/08/2022

एवरी बेड थिंग कम्स टू एन एन्ड

20 अगस्त को रॉय दंपत्ति निश्चिंत होकर सो गए और जब 21 अगस्त को ऑफिस पहुँचे तो अखबार से पता चला कि उनकी कंपनी NDTV के 29% शेयर उनके सबसे बड़े दुश्मन गौतम अडानी को चले गए।

ये साम्यवाद पर पूंजीवाद की बहुत बड़ी विजय है जिसे हमें सेलिब्रेट करना चाहिए। NDTV का बिकना राष्ट्रहित में परम आवश्यक हो गया था क्योकि यही एक मात्र चैनल बचा था जो चीन के इन्फॉर्मेशन वॉर को आगे बढ़ा रहा था, लेनिन की साम्यवादी विचारधारा भारत मे घुसाने को प्रयासरत था और अरविंद केजरीवाल की फ्रीबीज की अनीति का समर्थन कर रहा था।

लेकिन गौतम अडानी ने इतनी बड़ी इन्वेजन कैसे कर दी? दरसल रॉय दंपत्ति ने NDTV की स्थापना करने के लिये एक कंपनी RRPR का गठन किया, इसमे 32% पैसा दोनो ने मिलकर लगाया शेष 68% मार्केट में शेयर बेचकर उठाया।

इस 68 मे से 29% शेयर VCPL नाम की कंपनी के पास थे, दरसल रॉय दंपत्ति ने ये 29% शेयर गिरवी रखकर 403 करोड़ रुपये का लोन लिया था। जिसे वे आजतक नही चुका सके और बाद में VCPL भी बिक गयी और उसे गौतम अडानी ने खरीद लिया। अब ये 29% शेयर भी अडानी के हो गए।

कानून के अनुसार यदि शेयर होल्डिंग 25% से ज्यादा हो जाती है तो आप अन्य शेयर होल्डर्स को 26% और खरीदने का ऑफर दे सकते है। NDTV की भागीदारी में अब रॉय दम्पत्ति और अडानी के अलावा 177 कंपनियां और है। अडानी ने इन कंपनियों को NDTV के 26% शेयर और खरीदने का ऑफर रख दिया है वो भी 282 रुपये में। जबकि शेयर की बाजार में कीमत 370 के आसपास है।

अडानी 100 रुपये कम में बेचने को ऑफर कर रहे है क्योकि इन 177 मे से कुछ कंपनियों की अडानी ग्रुप में भी हिस्सेदारी है। रॉय दम्पत्ति के पास बस यही एक विकल्प है कि वे अडानी से अच्छा ऑफर देकर खुद ही 26% शेयर खरीद ले और मैनेजमेंट पॉवर बचा ले लेकिन ये डील उन्हें 500 करोड़ से कम में नही बैठेगी और इतना पैसा उनके पास नही है।

कुल मिलाकर वे अपनी ही कंपनी को अडानी के हाथों में जाते हुए देखेंगे और कुछ नही कर सकते। जो कि अच्छा ही हुआ क्योकि यही एक अंतिम वामपंथी चैनल बचा था, अब बाहरी शक्तियों के लिये इन्फॉर्मेशन वॉर का अंतिम रास्ता बंद हो चुका होगा। आप देखेंगे कि बीजेपी को 2024 के चुनावों में इसका बड़ा फायदा मिलेगा और कोई बड़ी बात नही है कि इस बार जीत पहले से भी भव्य हो।

बहुत से लोग मानते है कि NDTV अच्छा आलोचक था सही पत्रकारिता करता था। ये बात सही भी है इस चैनल ने कभी कांग्रेस की निंदा भी की थी लेकिन विपक्षी पार्टी बीजेपी को भी घेरा था। सुप्रीम कोर्ट मोदीजी को 2002 के लिये निर्दोष कह चुका है लेकिन NDTV की अदालत में कुछ और है। 370 हटने पर एक NDTV ही था जो रो रहा था।

NDTV पूर्ण रूप से एक कम्युनिस्ट चैनल था और जनता को शासन के विरुद्ध भड़काकर वही कर रहा था जो 100 पहले रूस में लेनिन ने किया था। लेकिन भारत रूस नही है कोई बड़ा अनिष्ट होता उससे पहले पूंजीवाद का जहाज उसे रोकने आ गया। ग्रेट वर्क अडानी।
साभार :

मैं दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए अस्थाई ड्यूटी पर था। मुझे दिल्ली में दो रात रुकना था, इसलिए मैं होट...
10/07/2022

मैं दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए अस्थाई ड्यूटी पर था। मुझे दिल्ली में दो रात रुकना था, इसलिए मैं होटल TAJ में रहा। मैंने इस होटल को इसकी ख्याति के कारण विशेष रूप से चुना था।

शाम को, मैंने रिसेप्शन को काॅल किया और उनसे मेरी ड्रेस को इस्त्री करने का अनुरोध किया।

थोड़ी देर बाद रूम सर्विस बॉय मेरी ड्रेस लेने आया। मैंने उसे इस्त्री के लिए अपनी वर्दी सौंप दी। वह मेरी वर्दी को देखकर हैरान हो गया और विनम्रता से पूछा सर, आप आर्मी में हैं। मैंने जवाब दिया हाँ, उसने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और मेरे साथ सेल्फी ली और कहा सर, मैं पहली बार किसी आर्मी ऑफिसर को देख रहा हूँ। मैंने उन्हें फिल्मों में ही देखा है। उन्होंने तुरंत अपने पैरों को स्टेप्ड किया और सलामी दी। उन्होंने कहा जय हिंद सर और चला गया ।

कुछ देर बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैंने दरवाजा खोला और अपने को विस्मित करने के लिए दो खूबसूरत लड़कियाँ हाथ में अपने सेलफोन के साथ खड़ी थीं। उनमें से एक ने कहा सर, हम एक सेल्फी के लिए अनुरोध करते हैं। मुझे नहीं पता था कि कैसे प्रतिक्रिया दूं। मैं एक मूर्ख की तरह मुस्कुराया। मैंने उन्हें मिनी बार से चॉकलेट दी, जैसे कि वे बच्चे हों। लेकिन आप जानते हैं, घबराहट आपके लिए क्या कर सकती है। यह विचारों के तार्किक प्रवाह को रोक देता है।

लगभग 09 बजे, मुझे रिसेप्शन से एक फोन आया, मुझसे पूछा गया कि, मैं रात के खाने के लिए नीचे आ सकता हूं क्योंकि यह कमरे में, अत्यंत विनम्र तरीके से परोसा जा सकता है। मैं रात का खाना खाने के लिए नीचे गया, तब मैंने उस जगह की असली खूबसूरती पर ध्यान दिया, आश्चर्यजनक रूप से गजब का इंटीरियर। कश्मीर के जंगलों से उतरते हुए, मेरे लिए माहौल बहुत असहज था। जिस क्षण मैंने मुख्य एरीना में प्रवेश किया, मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही कि पूरा स्टाफ वहीं खड़ा था।

कर्मचारियों ने मुझसे प्रबंधक के साथ संपर्क किया, जो आकस्मिक रूप से अग्रणी था। मैनेजर ने कहा- हमारे होटल में आपका स्वागत है सर, हमारे होटल में आपका होना बहुत खुशी की बात है, मुझे खूबसूरत गुलदस्ता सौंप दिया। मैनेजर ने खुद मेरे साथ डिनर किया।

अगले दिन।

मेरे आश्चर्य के लिए, मुझे होटल से "राष्ट्रपति भवन" के लिए एक बीएमडब्ल्यू कार प्रदान की गई थी। सच कहूं, तो हम इस तरह के वीआईपी ट्रीटमेंट के अभ्यस्त नहीं हैं। हम अपनी जिप्सी में अधिक आरामदायक हैं।

चेक आउट का दिन।

मैं रिसेप्शन पर गया, कार्ड सौंपा।

रिसेप्शनिस्ट: आपके रहने के लिए धन्यवाद सर। आपका प्रवास कैसा था?

मैं : रुकना बहुत आराम था। मेरा बिल प्लीज।

रिसेप्शनिस्ट : आपके ठहरने को हमारे होटल द्वारा प्रायोजित किया गया है। आप हमारे राष्ट्र की रक्षा करें। तो यह आपके लिए कृतज्ञता का हमारा छोटा सा टोकन है। हम आपके संरक्षण का सम्मान करते हैं।

मैं सोचता हूँ कि मैं यह नहीं सोच रहा था कि चलो पैसे की बचत हो गयी जिससे मुझे अच्छा महसूस हुआ हो, लेकिन यह उन सम्मानों के बारे में था जो उन्होंने "ओलिव ब्लैक" के प्रति दिखाए थे।

मुझे इस कृतज्ञता से गहरा स्पर्श हुआ, हम किस महान राष्ट्र में रहते हैं।

उस घटना के बाद, मैंने TAJ समूह के होटलों के सीईओ को लिखा। मेरा मकसद यह नहीं कि घटना को बयान करना और TAJ दिल्ली के प्रबंधक द्वारा दिखाए गए सौजन्य की सराहना करना है।

मेरे आश्चर्य के का ठिकाना नहीं रहा, मुझे सीईओ से एक रिटर्न मेल मिला, जिसमें कहा गया था कि TAJ होटलों के समूह ने देश भर के TAJ होटलों में अपने ठहरने के लिए सेना के अधिकारियों को छूट देने का निर्णय लिया है।

वाह, सैनिकों को श्रद्धांजलि और सम्मान देने का एक शानदार तरीका है।

#टाटा में सबसे अच्छा काम नैतिकता का वातावरण है।

इसलिए वे अन्य कॉर्पोरेट्स के विपरीत सबसे अमीर नहीं हैं ....।
तो फिर अगर आपके पास नैतिकता के बिना पैसा है तो आप समाज के लिए अच्छे नहीं हैं…।

रतन टाटा (रत्न) जिंदाबाद,...आप हैं सही मायने में भारत रत्न...

जैसा कि एक आर्मी ऑफिसर द्वारा साझा किया गया।
प्रतिलिपि

🙏

फेसबुक पर इतना खंगाला लेकिन एक भी फेसबुकिया एक कायदे का तर्क नहीं दे पाया कि इस योजना में खामी क्या है। इस देश में चार श...
19/06/2022

फेसबुक पर इतना खंगाला लेकिन एक भी फेसबुकिया एक कायदे का तर्क नहीं दे पाया कि इस योजना में खामी क्या है।

इस देश में चार शब्द ऐसे हैं जिनका सबसे ज्यादा मिसयूज होता है- किसान, मजदूर, सेना और संत।

ऐसा माना जाता है कि ये इस धरती के सबसे निरीह व दानी तथा त्यागी व पवित्र हैं।

इनमें से प्रथम दो के नाम पर किये जाने वाले तांडव को हम विगत कुछ वर्षों में देख चुके हैं और अब सेना के नाम पर निहित स्वार्थी तत्व देश को आग में झोंकने पर उतर आए हैं।

कोरोना काल में मजदूरों को पलायन कर अफरा तफरी फैलाई, केजरीवाल जैसे नेताओं ने और तब भी कुछ लोग रो रोकर मजदूर की दुहाई दे रहे थे।

फिर किसानों के नाम पर खालिस्तानी आंदोलन और तब भी कुछ लोगों के थनों में 'किसान' शब्द को लेकर दूध उतर रहा था।

अब बारी है सेना की जिसका उपयोग कोचिंग माफिया से लेकर ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज कर रहे हैं। आर्मी जनरल से लेकर बड़े-बड़े विशेषज्ञ खां पैदा हो गए हैं जो इन्हें सपोर्ट कर रहे हैं जबकि इसके दो नजदीकी उद्देश्य साफ-साफ पंचरपुत्रों को भी नजर आ गये-

1) त्वरित रूप से दो या तीन वर्षों में डेढ़ लाख की अतिरिक्त फौज खड़ी करना।

2)हिंदुओं में अधिकतम को आवश्यक सैन्य प्रशिक्षण देना।

अब दूरस्थ प्रभाव देख लें-

1) सेना की औसत आयु कम करना।
2) सेना की आर्थिक क्षमता सुधारना क्योंकि 1.19+ लाख करोड़ पेंशन में ही चले जाते हैं।
3)कम आई क्यू और कम ब्रेन पॉवर वाले नौजवानों की एक संख्या के बेहतरीन चार वर्ष जो लड़कियां ताड़ने और सपने देखने में जाया हो जाते हैं उन्हें, आंशिक रोजगार के साथ, अनुशासन और पूँजी उपलब्ध कराना।

कम आई क्यू और कम ब्रेन पॉवर पर भडकने की जरूरत नहीं क्योंकि हर बच्चा न तो आई ए एस बन सकते हैं और न आईटियन या डॉक्टर लेकिन जीवन के शुरू में ही अनुशासन व पूंजी के साथ स्किल तथा प्रोत्साहन के साथ आसानी से जीवनयापन कर सकेंगे।

4)छंटनी वाले बाकी पचहत्तर प्रतिशत अग्निवीरों के लिए कम्पनशेसन क्यों दिया जाए? कल को मेडिकल, इंजीनियरिंग, सिविलसेवा के असफल अभ्यर्थी भी डिमांड करेंगे क्या? अगर 25% में सिलेक्ट नहीं हो पाए तो सरकार टैक्स पेयर्स का पैसा क्यों खर्च करे।

डार्विन का नियम सर्वत्र लागू होता है।

अब नेताओं पर जो इस नियम लागू करने का मूर्खतापूर्ण तर्क दे रहे हैं तो उन्हें बता दूँ कि वह ऑलरेडी लागू है क्योंकि हर पांच साल में उन्हें फिर प्रयास करना होता है।

और सबसे अंत में,

जिन्हें यह योजना पसंद नही वे न जाएं अग्निवीर बनने, कोई हाथ पकड़कर बुला रहा है क्या?

जिन्हें नेताओं की पेंशन लुभा रही है वे अपनी औलादों को नेता बनाएं।

जिन्हें शिक्षकों से ईर्ष्या है, वे अपनी औलादों को शिक्षक बनावें।

सेना को योद्धाओं की सेना रहने दें, पेंशनरों की भीड़ न बनावें।

और हाँ, ये योजना जिनके लिए लाई गई है, वे जुट चुके हैं, इसलिए ये योजना वापस नहीं होगी, नहीं होगी, नहीं होगी।

इस देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ अडानी व अम्बानी सभी बनना चाहते हैं पर जब औकात पता लग जाती है और नहीं बन पाते तो उन्हें अपने जैसा भिखारी बनाने की कोशिश में लग जाते हैं।

फेसबुक पर इतना खंगाला लेकिन एक भी फेसबुकिया एक कायदे का तर्क नहीं दे पाया कि इस योजना में खामी क्या है। इस देश में चार श...
19/06/2022

फेसबुक पर इतना खंगाला लेकिन एक भी फेसबुकिया एक कायदे का तर्क नहीं दे पाया कि इस योजना में खामी क्या है।

इस देश में चार शब्द ऐसे हैं जिनका सबसे ज्यादा मिसयूज होता है- किसान, मजदूर, सेना और संत।

ऐसा माना जाता है कि ये इस धरती के सबसे निरीह व दानी तथा त्यागी व पवित्र हैं।

इनमें से प्रथम दो के नाम पर किये जाने वाले तांडव को हम विगत कुछ वर्षों में देख चुके हैं और अब सेना के नाम पर निहित स्वार्थी तत्व देश को आग में झोंकने पर उतर आए हैं।

कोरोना काल में मजदूरों को पलायन कर अफरा तफरी फैलाई, केजरीवाल जैसे नेताओं ने और तब भी कुछ लोग रो रोकर मजदूर की दुहाई दे रहे थे।

फिर किसानों के नाम पर खालिस्तानी आंदोलन और तब भी कुछ लोगों के थनों में 'किसान' शब्द को लेकर दूध उतर रहा था।

अब बारी है सेना की जिसका उपयोग कोचिंग माफिया से लेकर ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज कर रहे हैं। आर्मी जनरल से लेकर बड़े-बड़े विशेषज्ञ खां पैदा हो गए हैं जो इन्हें सपोर्ट कर रहे हैं जबकि इसके दो नजदीकी उद्देश्य साफ-साफ पंचरपुत्रों को भी नजर आ गये-

1) त्वरित रूप से दो या तीन वर्षों में डेढ़ लाख की अतिरिक्त फौज खड़ी करना।

2)हिंदुओं में अधिकतम को आवश्यक सैन्य प्रशिक्षण देना।

अब दूरस्थ प्रभाव देख लें-

1) सेना की औसत आयु कम करना।
2) सेना की आर्थिक क्षमता सुधारना क्योंकि 1.19+ लाख करोड़ पेंशन में ही चले जाते हैं।
3)कम आई क्यू और कम ब्रेन पॉवर वाले नौजवानों की एक संख्या के बेहतरीन चार वर्ष जो लड़कियां ताड़ने और सपने देखने में जाया हो जाते हैं उन्हें, आंशिक रोजगार के साथ, अनुशासन और पूँजी उपलब्ध कराना।

कम आई क्यू और कम ब्रेन पॉवर पर भडकने की जरूरत नहीं क्योंकि हर बच्चा न तो आई ए एस बन सकते हैं और न आईटियन या डॉक्टर लेकिन जीवन के शुरू में ही अनुशासन व पूंजी के साथ स्किल तथा प्रोत्साहन के साथ आसानी से जीवनयापन कर सकेंगे।

4)छंटनी वाले बाकी पचहत्तर प्रतिशत अग्निवीरों के लिए कम्पनशेसन क्यों दिया जाए? कल को मेडिकल, इंजीनियरिंग, सिविलसेवा के असफल अभ्यर्थी भी डिमांड करेंगे क्या? अगर 25% में सिलेक्ट नहीं हो पाए तो सरकार टैक्स पेयर्स का पैसा क्यों खर्च करे।

डार्विन का नियम सर्वत्र लागू होता है।

अब नेताओं पर जो इस नियम लागू करने का मूर्खतापूर्ण तर्क दे रहे हैं तो उन्हें बता दूँ कि वह ऑलरेडी लागू है क्योंकि हर पांच साल में उन्हें फिर प्रयास करना होता है।

और सबसे अंत में,

जिन्हें यह योजना पसंद नही वे न जाएं अग्निवीर बनने, कोई हाथ पकड़कर बुला रहा है क्या?

जिन्हें नेताओं की पेंशन लुभा रही है वे अपनी औलादों को नेता बनाएं।

जिन्हें शिक्षकों से ईर्ष्या है, वे अपनी औलादों को शिक्षक बनावें।

सेना को योद्धाओं की सेना रहने दें, पेंशनरों की भीड़ न बनावें।

और हाँ, ये योजना जिनके लिए लाई गई है, वे जुट चुके हैं, इसलिए ये योजना वापस नहीं होगी, नहीं होगी, नहीं होगी।

इस देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ अडानी व अम्बानी सभी बनना चाहते हैं पर जब औकात पता लग जाती है और नहीं बन पाते तो उन्हें अपने जैसा भिखारी बनाने की कोशिश में लग जाते हैं।
साभार

जो बोया सो पायाक्या जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के छात्रों को पोलेंड बिना वीजा के क्यो आने दे रहा अपने देशमे??1989...
04/03/2022

जो बोया सो पाया

क्या जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के छात्रों को पोलेंड बिना वीजा के क्यो आने दे रहा अपने देशमे??

1989 में जब पोलैंड रूस से अलग हुआ तो यहां के लोगों ने आभार जताने के लिए पोलैंड की राजधानी में जाम साहेब के नाम पर एक चौक का नाम रखा.

पिछले कुछ दिनों से आपने पोलैंड का नाम खूब सुना होगा. कुछ लोगों ने इस देश की यात्रा भी की होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पोलैंड की राजधानी वॉरसॉ में जामनगर के महाराजा दिग्विजय सिंह के नाम पर एक चौक क्यों समर्पित किया गया है? ये कहानी भारत के वसुधैव कुटुंबकम की फिलॉस्फी से जुड़ी है. बात दूसरे विश्वयुद्ध की है, जब 1939 में जर्मनी और रूस की सेना ने पोलैंड पर कब्जा कर लिया. इस युद्ध में अपने देश को बचाने के लिए पोलैंड के हजारों सैनिक मारे गए और उनके बच्चे अनाथ हो गए.

1941 तक ये बच्चे पोलैंड के शिविरों में रहते रहे, लेकिन इसके बाद रूस ने बच्चों को वहां से भगाना शुरू कर दिया. तब 600 से ज्यादा बच्चे अकेले या अपनी मां के साथ एक नाव पर सवार होकर जान बचाने के लिए निकले थे, लेकिन दर्जनों देशों ने उन्हें शरण देने से इनकार कर दिया. जब उनकी नाव मुंबई पहुंची तो जामनगर के महाराजा दिग्विजय सिंह ने दरियादिली दिखाते हुए उन्हें शरण दी. तब भारत गुलाम था और अंग्रेजों ने भी बच्चों को आश्रय देने से इनकार कर दिया था.

दूसरे विश्व युद्ध के समय , पोलेंड पूरी तरह तबाह हो गया था , सिर्फ महिलाएं और बच्चे बचे थे बाकी सब वहां के पुरुष युद्ध मे मारे गए थे , पोलेंड की स्त्रियों ने पोलेंड छोड़ दिया क्योंकि वहां उनकी इज्जत को खतरा था , तो बचे खुचे लोग और बाकी सब महिलाए व बच्चे से भरा जहाज लेकर निकल गए , लेकिन किसी भी देश ने उनको शरण नहीं दी , फिर यह जहाज भारत की तरफ आया वहां गुजरात के जामनगर के तट पर जहाज़ रुका , तब वहां के राजा जाम दिग्विजयसिंह जाडेजा ने उनकी दिन-हीन हालत देखकर उन्हे आश्रय दिया ।।

जानते हो ये पोलेंड वाले जाम नगर के महाराजा दिग्विजयसिंह जाडेजा के नामपर क्यों शपथ ले रहे है ?

न केवल आश्रय दिया अपितु उनके बच्चों को आर्मी की ट्रेनिग दी , उनको पढ़ाया लिखाया ,बाद मे उन्हें हथियार देकर पोलेंड भेजा जहाँ उन्होंने जामनगर में मिली आर्मी की ट्रेनिग से देश को पुनः स्थापित किया , आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है , उनके संविधान के अनुसार जाम दिग्विजयसिंह उनके लिए ईश्वर के समान हे इसीलिए उनको साक्षी मानकर आज भी वहां के नेता संसद में शपथ लेते है , यदि भारत मे दिग्विजयसिंहजी का अपमान किया जाए तो यहां की कानून व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान नही लेकिन यही भूल पोलेंड में करने पर तोप के मुँह पर बांधकर उड़ा दिया जाता है ।।

आज भी पोलेंड जाम साहब के उस कर्म को नहीं भूला,इसलिए आज भारत के लोगो को बिना वीजा के आने दे रहा है उनकी सभी प्रकार से मदद कर रहा है ।।

क्या भारत के इतिहास की पुस्तकों में कभी पढ़ाया गया दिग्वजसिंहजी को ?? यदि कोई पोलेंड का नागरिक भारतीय को पूछ भी ले कि क्या आप जामनगर के महाराजा दिग्वजसिंहजी को जानते हो तो हमारे युक्रेन में डॉक्टर की पढ़ाई करने गए भारतीय छात्र कहेगे नो एक्च्युलिना No , we don't know who they were?
हाय रे अभागों...तुम्हें सहेजना भी नहीं आता.....इन वामियों और कामियों ने वो सब पढ़ाया जिससे हमारा मनोबल टूटे,हीनता महसूस करें। अच्छा है कि सोशल मीडिया है व्हाट्सएप यूनिवरसिटी और फेसबुक कॉलेज की पढ़ाई है ......
साभार

 #पुष्पापुष्पा के खास दोस्त का नाम "केशव" था । पुष्पा की मां का नाम "पार्वती" था । उसके पिता का नाम "वेंकटरमण" था । उसकी...
22/01/2022

#पुष्पा
पुष्पा के खास दोस्त का नाम "केशव" था । पुष्पा की मां का नाम "पार्वती" था । उसके पिता का नाम "वेंकटरमण" था । उसकी प्रेमिका का नाम "श्रीवल्ली" था । उसके ससुर का नाम "मुनिरत्नम" था ।

पुष्पा के मालिक का नाम "कोंडा रेड्डी" था । जिस डीएसपी ने पुष्पा को पकड़ा था उसका नाम "गोविंदम" था ।
जिस थानेदार ने पुष्पा के साथ इंट्रोगेशन किया उसका नाम "कुप्पाराज" था ।

पुष्पा के सबसे बड़े दुश्मन का नाम "मंगलम श्रीनू" था । जो पुष्पा को मारना चाहता था , श्रीनू का साला उसका नाम "मोगलिस" था ।
डॉन कोंडा रेड्डी के विधायक दोस्त मंत्री जी का नाम "भूमिरेड्डी सिडप्पा नायडू" था ।
लाल चंदन का सबसे बड़ा खरीददार "मुरुगन" था ।

फ़िल्म मुझे इसलिए भी अच्छी लगी क्योंकि इसमें कैरेक्टर वाइज कोई न सलीम था न कोई जावेद था । न रहम दिल अब्दुल चचा थे । न पांच वक्त का नमाजी सुलेमान था ।
न अली-अली था न मौला-मौला था । न दरगाह थी , न मस्जिद थी , न अजान थी । न सूफियाना सियापा था ।

बस माथों पर लाल चंदन के तिलक थे । मंदिर थे । मंत्र थे । संस्कृत के श्लोक थे ।
काम शुरू करने से पूर्व देवी की पूजा थी । नए दूल्हा-दुल्हन के चेक पोस्ट से गुजरने पर उन्हें भेंट देने की प्रथा थी । पत्तल में खाना था । देशज वेशभूषा थी । अपनी प्रथाओं , परंपराओं का सम्मान था ।

बस यही सब बातें थी जो मैं बॉलीवुड में बहुत मिस करता हूँ और मेरी तरह बहुत से लोग करते होंगे । साउथ सिनेमा की ओर बॉलीवुड के दर्शकों का झुकाव होने एक कारण यह भी है ।

ऐसी फिल्में देखने के बाद महसूस होता है कि हां हम अपने ही देश में है,

सनातनी भारत भूमि पर ही हैं!!

Address

Patiala
0175

Telephone

+19592958834

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when स्वतंत्र पत्रकार posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to स्वतंत्र पत्रकार:

Share

Category


Other Media in Patiala

Show All