Satish Yogi Seenk

Satish Yogi Seenk मेरा उद्देश्य योग आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा से भारत के हर एक व्यक्ति को आरोग्य जीवन देने में सहयोग

#सोशल मीडिया को अपनी ताकत बनाए और जमीन सत्तर की खबरों को शेयर करे #अगर आप ठान लो तो हर समस्या का समाधान है
योग से मिलता है आरोग्य जीवन
योग एक जीवन जीने की कला है
करो योग रहो निरोग

14/01/2025
14/01/2025

रोज करो योग करो

शंखपुष्पी के लाभ सभी तक पहुंचायेंआप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचायेंजानें शंखपुष्पी ...
14/01/2025

शंखपुष्पी के लाभ सभी तक पहुंचायें
आप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचायें
जानें शंखपुष्पी के अदभुत लाभ

1 शंखपुष्पी का परिचय
2 शंखपुष्पी क्या है?
3 अन्य भाषाओं में शंखपुष्पी के नाम
4 शंखपुष्पी के फायदे
4.1 सिरदर्द में फायदेमंद शंखपुष्पी
4.2 सर्दी-खांसी में असरदार शंखपुष्पी के फायदे
4.3 उल्टी में दिलाये आराम शंखपुष्पी
4.4 खून की उल्टी में फायदेमंद शंखपुष्पी
4.5 मधुमेह या डायबिटीज में शंखपुष्पी के फायदे
4.6 मूत्रकृच्छ्र या मूत्र रोग में फायदेमंद शंखपुष्पी
4.7 याददाश्त बढ़ाने में शंखपुष्पी के फायदे
4.8 मिरगी से राहत दिलाये शंखपुष्पी
4.9 उन्माद या पागलपन में फायदेमंद शंखपुष्पी
4.10 लू लगने पर शंखपुष्पी के फायदे
4.11 रक्तस्राव या ब्लीडिंग करे कम शंखपुष्पी
4.12 उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर को करे नियंत्रण शंखपुष्पी
4.13 बुद्धि को तेज करने में शंखपुष्पी के फायदे
4.14 शरीर के रसायन या केमिकल को संतुलित करने में फायदेमंद शंखपुष्पी
4.15 शिशु के दंतरोग में फायदेमंद शंखपुष्पी
4.16 रात को बिस्तर में पेशाब करने की बीमारी में शंखपुष्पी के फायदे
5 शंखपुष्पी का उपयोगी भाग
5.1 शंखपुष्पी का सेवन कैसे करना चाहिए?
5.2 शंखपुष्पी कहां पाई और उगाई जाती है
शंखपुष्पी का परिचय
शंखपुष्पी का नाम सुनते ही पहली बात जो दिमाग में आती है वह ये है कि शंखपूष्पी के फूल और शंखपूष्प के पौधे यादाश्त बढ़ाने में बहुत फायदेमंद होते हैं। वैसे तो शंखपुष्पी के फूल कई तरह के रंगों के होते हैं लेकिन आयुर्वेद में सफेद रंग के शंखपुष्पी का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। चलिये शंखपुष्पी के फायदे और गुणों बारे में विस्तार से जानते हैं कि कैसे ये बीमारियों के उपचार में काम आती है।

शंखपुष्पी के फायदे |
शंखपुष्पी क्या है?
शंखपुष्पी एक प्रकार का फूल है तो आयुर्वेद के औषधि के क्षेत्र में अहम् भूमिका निभाती है। शंखपुष्पी फूलों के रंग के अनुसार दो प्रकार के होते हैं -(1) श्वेत (Convolvulus pluricaulis choisy), (2) नील (Evolvulus alsinoides (L.)। लेकिन औषधि में सफेद रंग के फूल का ही व्यवहार करना चाहिए।

(शंखपुष्पी)- यह जमीन पर फैलने वाला मुलायम तथा रोम वाला पौधा होता है। इसकी शाखाएं लम्बी तथा फैली हुई होती हैं। इसके फूल हल्के सफेद या गुलाबी रंग के, बाहर से रोमयुक्त तथा कुप्पी के आकार के होते हैं। ऊपर जिस प्रजाति की बात की गई उसमें मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रजाति का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।
(हिरणखुरी)- पूरे भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 3000 मी की ऊँचाई तक तथा बेकार पड़ी हुई भूमि और सड़कों के किनारों, झाड़ियों में इसकी बेलें चढ़ी हुई पाई जाती हैं। इसकी लम्बी लतायें होती हैं। इसके पत्ते चिकने, रेखाकार, नोंकदार, तीर के समान होते हैं। इसके फूल सफेद रंग के या गुलाबी रंग की आभा से युक्त सफेद रंग के होते हैं। इसके जड़ के सेवन से पेट से अवांछित पदार्थ मल के द्वारा निकलने में मदद मिलती है। शंखपुष्पी में इसकी मिलावट की जाती है। इसका प्रयोग सांप के विष का असर कम करने तथा सांस संबंधी बीमारी के चिकित्सा में किया जाता है।

चरकसंहिता के ब्रह्मरसायन में तथा मिर्गी के चिकित्सा में शंखपुष्पी का प्रयोग का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त खांसी की चिकित्सा के लिए अगस्तयहरीतकी योग में और द्विपंचमूलादिघृत में शंखपुष्पी का वर्णन मिलता है। आचार्य सुश्रुत ने भी तिक्त गण में शंखपुष्पी के बारे में चर्चा की है तथा सुवर्णादि के साथ बच्चों में शंखपुष्पी के सूक्ष्म चूर्ण के प्रयोग का तरीका भी बताया है।

शंखपुष्पी कड़वा और ठंडे तासीर का होता है। आयुर्वेद के अनुसार शंखपुष्पी एक ऐसी जड़ी बूटी है जो दिमाग को स्वस्थ रखने के साथ-साथ अनेक तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में काम करती है। कहने का मतलब ये है कि शंखपुष्पी की खास बात ये है कि यह मानसिक रोगों के लिए बहुत ही लाभादायक होती है। यह कुष्ठ, कृमि और विष का असर कम करने में भी मदद करती है। शंखपुष्पी सिर्फ यादाश्त बढ़ाने में ही मदद नहीं करती बल्कि सेक्स संबंधी समस्याओं में भी लाभकारी होती है।

अन्य भाषाओं में शंखपुष्पी के नाम
शंखपुष्पी का वानास्पतिक नाम (कान्वाल्वुलस माइक्रोफिलस) Syn-Convolvulus pluricaulis Choisy
शंखपुष्पी Convolvulaceae (कान्वाल्वुलेसी) कुल का है।
शंखपुष्पी को अंग्रेजी में: Bindweed (बाइण्डवीड) कहते हैं।
शंखपुष्पी भारत के हर प्रांत में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। जैसे-

Sanskrit – शङ्खपुष्पी, विष्णुगन्धी, क्षीरपुष्पी, मांगल्यकुसुमा, मेध्या, सुपुष्पी, कम्बुमालिनी, सूक्ष्मपत्रा, सितपुष्पी, श्वेतकुसुमा, शङ्खाह्वा;
– शङ्खपुष्पी;
Kannada – विष्णुक्रान्ती (Vishnukranti)
Marathi – शंखवल्ली (Shankhvalli)
Tamil – विष्णुकरन्दी (Vishnukrandi)
Telugu – विष्णुक्रान्ता (Vishnukranta)
Name of Shankhpushpi in Gujrati – शंखावली (Shankhavali), शंखपुष्पी (Shankhpushpi)
Name of Shankhpushpi in Malayalam – शंखुपुष्पम (Sankhupuspam)
in English – व्हाईट ग्राउण्ड ग्लोरी (White ground glory)
शंखपुष्पी के फायदे
वैसे तो आम तौर पर शंखपुष्पी को मस्तिष्क का टॉनिक कहा जाता है लेकिन इसके अलावा भी शंखपुष्पी अनेक तरह के बीमारियों के लिए औषधि के रूप में काम करती है। चलिये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

सिरदर्द में फायदेमंद शंखपुष्पी
आजकल के जीवनशैली में सिरदर्द आम बीमारी बन गई है। 1 ग्राम शंखपुष्पी तथा 250 मिग्रा खुरासानी अजवायन चूर्ण को मिलाकर गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सिर दर्द में तुरन्त फायदा मिलता है।

सर्दी-खांसी में असरदार शंखपुष्पी के फायदे
सर्दी-खांसी के परेशानी से आराम पाने के लिए शंखपुष्पी का प्रयोग ऐसा करना चाहिए। शंखपुष्पी के पत्तों को जलाकर उसका धूम्रपान करने से सांस लेने में आसानी होती है।

उल्टी में दिलाये आराम शंखपुष्पी
उल्टी से अगर हाल बेहाल है तो शंखपुष्पी को इस तरह से लेने पर आराम मिलता है। शंखपुष्पी पञ्चाङ्ग के दो चम्मच रस में एक चुटकी काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर मधु के साथ बार-बार पिलाने से उल्टी होना कम हो जाता है।

खून की उल्टी में फायदेमंद शंखपुष्पी
अगर उल्टी करने पर खून निकल रहा है तो तुरन्त राहत पाने के लिए 5-10 मिली शंखपुष्पी का रस पियें। इसके सेवन से आराम मिलता है।
मधुमेह या डायबिटीज में शंखपुष्पी के फायदे
डायबिटीज को नियंत्रण में करने के लिए शंखपुष्पी के 6 ग्राम चूर्ण को सुबह-शाम गाय के मक्खन के साथ या पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में बहुत लाभ होता है।
इसके अलावा मधुमेह की कमजोरी को दूर करने के लिए 2-4 ग्राम शंखपुष्पी चूर्ण अथवा 10-20 मिली स्वरस का सेवन लाभप्रद होता है।
2-4 ग्राम शंखपुष्पी पञ्चाङ्ग चूर्ण को मक्खन के साथ मिलाकर सेवन कराने से मधुमेह में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ्र या मूत्र रोग में फायदेमंद शंखपुष्पी
मूत्र रोग या मूत्रकृच्छ्र वह रोग है जिसमें पेशाब करते समय जलन या दर्द होना या रूक-रूक कर पेशाब होने जैसी समस्याएं होती है। ऐसे रोगों से राहत पाने के लिए 10-30 मिली शंखपुष्पी के काढ़े में दूध मिलाकर पिलाने से इस रोग फायदा मिलता है।

याददाश्त बढ़ाने में शंखपुष्पी के फायदे
अक्सर उम्र होने पर यादाश्त कमजोर होने लगती है तो शंखपुष्पी का सेवन इस तरह से करें। इससे याद रखने की शक्ति बढ़ती है।

3 से 6 ग्राम शंखपुष्पी चूर्ण को सुबह शक्कर और दूध के साथ सेवन करने से स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
2-4 ग्राम शंखपुष्पी एवं 1 ग्राम मीठी बच चूर्ण को बच्चों को देते रहने से वह बहुत बुद्धिशाली एवं चतुर होते हैं।
10-20 मिली शंखपुष्पी रस अथवा 2-4 ग्राम शंखपुष्पी चूर्ण में मधु, घी एवं शक्कर मिलाकर 6 मास तक सुबह सेवन करने से उम्र बढ़ने पर झुर्रियों की समस्या, यादाश्त कमजोर होने और कमजोर महसूस होने की समस्या में लाभ मिलता है।
3-6 ग्राम शंखपुष्पी चूर्ण में, शहद मिलाकर सेवन करें तथा बाद में दूध पीयें। इसके सेवन से बुद्धि बढ़ती है।
मिरगी से राहत दिलाये शंखपुष्पी
मिर्गी के मरीज को अगर बार-बार दौरा पड़ता है तो शंखपुष्पी का सेवन इस तरह कराने से लाभ मिलता है –

2-5 मिली शंखपुष्पी रस में शहद मिलाकर सुबह शाम पिलाने से अपस्मार रोग या मिर्गी में लाभ मिलता है।
शंखपुष्पी, वच और ब्राह्मी को समान मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार देने से अपस्मार, हिस्टीरिया और उन्माद रोग में लाभ होता है।
छाया में सुखाई हुई 1 किलोग्राम शंखपुष्पी तथा 2 किलोग्राम शर्करा दोनों को पीसकर छान लें। उसके बाद उस मिश्रण को बोतलों में भरकर रख लें। इस चूर्ण को 5-10 ग्राम तक की मात्रा में दूध के साथ लेने से मस्तिष्क बेहतर तरीके से काम करता है।
10-20 मिली शंखपुष्पी रस में 500 मिग्रा कूठ का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करते रहने से उन्माद व अपस्मार में लाभ होता है।
10-20 मिग्रा शंखपुष्पी रस को मधु के साथ सेवन करने से सब प्रकार के उन्माद में लाभ होता है।

उन्माद या पागलपन में फायदेमंद शंखपुष्पी
उन्माद अवस्था में मरीज को 5-10 मिली शंखपुष्पी पञ्चाङ्ग का रस पिलाने से मन शांत होता है।

लू लगने पर शंखपुष्पी के फायदे
अगर लू लगने से बुखार हुआ है और उस अवस्था में मरीज बेमतलब की बात कर रहा है तो उस समय नींद लाने के लिए 5-10 ग्राम शंखपुष्पी चूर्ण को दूध एवं मधु के साथ देने से बहुत लाभ होता है।

रक्तस्राव या ब्लीडिंग करे कम शंखपुष्पी
अगर कहीं चोट लगने से रक्तस्राव हो रहा है तो 10-20 मिली शंखपुष्पी के रस को मधु के साथ देने से रक्त का बहना तुरन्त बन्द हो जाता है ।

उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर को करे नियंत्रण शंखपुष्पी
आजकल तनाव भरी जिंदगी में ब्लड प्रेशर हाई होना आम बात हो गया है। हाई ब्लडप्रेशर को निंयत्रण में करने के लिए ताजी शंखपुष्पी के 10-20 मिली के रस को सुबह, दोपहर तथा शाम, कुछ दिनों तक सेवन करने से उच्चरक्त चाप में लाभ होता है।

बुद्धि को तेज करने में शंखपुष्पी के फायदे
अगर मानसिक दुर्बलता या बुद्धि कम है तो शंखपुष्पी का सेवन करने से लाभ मिलेगा। इसके लिए शंखपुष्पी पञ्चाङ्ग को पीसकर पेस्ट या कल्क बना लें । 1-2 ग्राम पेस्ट का सेवन गाय के दूध के साथ करने से शक्ति, रंग, एनर्जी, आयु तथा बुद्धि की वृद्धि होती है।

शरीर के रसायन या केमिकल को संतुलित करने में फायदेमंद शंखपुष्पी
शरीर को नवजीवन प्रदान करने के लिए समान मात्रा में खस तथा कुटकी के कल्क या पेस्ट (1-3 ग्राम) में ठीन गुना मात्रा में शंखपुष्पी का रस तथा चार-चार गुना गाय का दूध और गाय का घी मिलाकर पकायें और मिश्रण को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से बोलने और सुनने की शक्ति बढ़ती है।

शिशु के दंतरोग में फायदेमंद शंखपुष्पी
शिशुओं के लिए पहली बार दांत निकलना बहुत बड़ी समस्या होती है, क्योंकि इस दौरान उन्हें तरह-तरह के सेहत संबंधित समस्याएं होती हैं। शिशुओं को दांत निकलते समय जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उस समय शंखपुष्पी की जड़, जवासे की जड़ तथा दुद्धी की जड़ को शुभ नक्षत्र में शिशु की भुजा पर बांधने से दांत निकलने के समय के समस्याओं से राहत मिलती है।

रात को बिस्तर में पेशाब करने की बीमारी में शंखपुष्पी के फायदे
अक्सर बच्चे रात में सोते समय बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं। इसके बीमारी में भी शंखपुष्पी का चूर्ण काम आता है। उन बच्चों को रात में सोते समय 2 ग्राम शंखपुष्पी चूर्ण और 1 ग्राम काला तिल मिलाकर दूध के साथ सेवन कराने से इस बीमारी से राहत मिलती है।

शंखपुष्पी का उपयोगी भाग
आयुर्वेद में शंखपुष्पी के जड़, फूल और रस का प्रयोग औषधि के तौर पर ज्यादा होता है।

शंखपुष्पी का सेवन कैसे करना चाहिए?
रोगों के उपचार के लिए शंखपुष्पी का सेवन कैसे करेंगे ये ऊपर बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए शंखपुष्पी का उपयोग कर रहें हैं आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

– 3-6 ग्राम शंखपुष्पी का सेवन चिकित्सक के सलाह अनुसार कर सकते हैं।

शंखपुष्पी कहां पाई और उगाई जाती है
बारिश के मौसम में पथरीली एवं परती भूमि में प्राकृतिक तरीके से शंखपुष्पी के छोटे-छोटे घास के समान पौधे उगते हैं। बहुत से स्थानों पर यह बारह मास देखी जा सकती है।
#सदा_स्वस्थ_रहें

बथुआ (बाथू) के लाभ सभी तक पहुंचायेंआप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचायें  #विटामिन ए व...
11/01/2025

बथुआ (बाथू) के लाभ सभी तक पहुंचायें
आप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचायें
#विटामिन ए व #आयरन से भरपूर

बथुआ एक वनस्पति है जो खरीफ के फसलों के साथ उगता है। इसका शाक बनाकर खाने के काम आता है।

#औषधीय गुणों से भरपूर बथुआ-
बथुआ एक ऐसी सब्जी है जिसके गुणों से ज्यादातर लोग अपरिचित हैं। ये छोटा-सा दिखने वाला #हराभरा पौधा काफी फायदेमंद है, सर्दियों में इसका सेवन कई #बीमारियों को दूर रखने में मदद करता है। बथुए में आयरन प्रचुर मात्रा में होता है, बथुआ न सिर्फ #पाचनशक्ति बढ़ाता बल्कि अन्य कई बीमारियों से भी छुटकारा दिलाता है। बथुआ एक ऐसी सब्जी या साग है, जो गुणों की खान होने पर भी बिना किसी विशेष परिश्रम और देखभाल के खेतों में स्वत: ही उग जाता है। एक डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा कितने ही गुणों से भरपूर है। बथुआ के #परांठे और रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते हैं, लेकिन वे इसके औषधीय गुणों से ज्यादा परिचित नहीं है, इसकी पत्तियों में सुगंधित तैल, #पोटाश तथा #अलवयुमिनॉयड पाये जाते हैं। दोष कर्म की दृष्टि से यह त्रिदोष (वात, पित, कफ) को शांत करने वाला है। #आयुर्वेदिक विद्वानों ने बथुआ को भूख बढ़ाने वाला पित्तशामक #मलमूत्र को साफ और शुद्ध करने वाला माना है। यह आंखों के लिए उपयोगी तथा पेट के #कीड़ों का नाश करने वाला है। यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला #कब्ज दूर करने वाला है गुणों में हरे से ज्यादा लाल बथुआ अधिक उपयोगी होता है। इसके सेवन से वात, पित्त, कफ के प्रकोप का नाश होता है और बल-बुद्धि बढ़ती है। लाल बथुआ के सेवन से बूंद-बूंद #पेशाब आने की तकलीफ में लाभ होता है। #टीबी की खांसी में इसको बादाम के तेल में पकाकर खाने से लाभ होता है। यही पानी गुर्दे तथा मसाने के लिए भी लाभकारी है। इस पानी से #तिल्ली की सूजन में लाभ होता है। सूजन अधिक हो तो उबले पत्तों को पीसकर तिल्ली पर लेप लगाएं। #लाल बथुआ #हृदय को बल देने वाला, #फोड़े-फुंसी, मिटाकर खून साफ करने में भी मददगार है। बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर की शिथिलता मिटाता है। #लिवर के आसपास की जगह सख्त हो, उसके कारण #पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम बथुआ के #बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ होता है। बीजों को सिल पर पीस कर उबटन की तरह लगाने से शरीर का मैल साफ होता है, चेहरे के #दाग धब्बे दूर होते हैं। तिल्ली की बीमारी और #पित्त के प्रकोप में इसका साग खाना उपयोगी है। इसका रस जरा-सा नमक मिलाकर दो-दो चम्मच दिन में दो बार पिलाने से पेट के कीड़ों से छुटकारा मिलता है। पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब खुल कर आता है। इसका साग खाने से #बवासीर में लाभ होता है।दर्द में आराम मिलता है। इसके काढ़े से रंगीन तथा रेशमी कपड़े धोने से दाग धब्बे छूट जाते हैं और रंग सुरक्षित रहते हैं। भूख की कमी, कब्ज, लिवर की बीमारी पीलिया में इसका साग खाना बहुत #लाभकारी है। सामान्य दुर्बलता #बुखार के बाद की अरुचि और कमजोरी में इसका साग खाना हितकारी है। #धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग खाना लाभकारी है।
#सदा_स्वस्थ_रहें

ठंड के मौसम में खाएं मूंगफली गजक, जानिए इससे जुड़े लाभमूंगफली गजक भारत में एक लोकप्रिय शीतकालीन स्नैक है, जिसे आमतौर पर ...
06/01/2025

ठंड के मौसम में खाएं मूंगफली गजक, जानिए इससे जुड़े लाभ

मूंगफली गजक भारत में एक लोकप्रिय शीतकालीन स्नैक है, जिसे आमतौर पर मूंगफली को भूनकर और उन्हें गुड़, तिल और अन्य मसालों के साथ मिलाकर बनाया जाता है। गर्म और मीठे स्वाद का संयोजन इसे ठंड के मौसम में आनंद लेने के लिए एक आदर्श उपचार बनाता है। लेकिन यह न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं जो इसे स्नैकिंग के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाते हैं। यहाँ कुछ कारण बताए गए हैं कि क्यों आपको ठंड के मौसम में मूंगफली गजक खाने पर विचार करना चाहिए।

ठंड के मौसम में खाएं मूंगफली गजक, जानिए इससे जुड़े लाभ

1. ऊर्जा से भरपूर : मूंगफली स्वस्थ वसा, प्रोटीन और जटिल कार्बोहाइड्रेट का एक अच्छा स्रोत है, जो पूरे दिन ऊर्जा का एक निरंतर स्रोत प्रदान करते हैं। मूंगफली गजक खाने से आप ठंड के मौसम में गर्म और ऊर्जावान बने रह सकते हैं।

2. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है मूंगफली गजक एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने और संक्रमण से लड़ने में मदद करती है। इसमें मौजूद गुड़ में जिंक, सेलेनियम और मैग्नीशियम जैसे कुछ आवश्यक खनिज भी होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए जाने जाते हैं।

3. हृदय स्वास्थ्य के लिए अच्छा मूंगफली मोनोअनसैचुरेटेड वसा का एक अच्छा स्रोत है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है। मूंगफली गजक में पाए जाने वाले मैग्नीशियम और पोटेशियम रक्तचाप को नियंत्रित करने और हृदय स्वास्थ्य में सुधार करने में भी मदद कर सकते हैं।

4. प्रोटीन से भरपूर : मूंगफली गजक प्रोटीन का अच्छा स्रोत है, जो मांसपेशियों और हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। प्रोटीन आपको पूर्ण और संतुष्ट महसूस करने में भी मदद करता है, जिससे यह वजन प्रबंधन के लिए एक बढ़िया स्नैक विकल्प बन जाता है।

5. वजन घटाने में मदद कर सकता है : मूंगफली गजक में कैलोरी अपेक्षाकृत कम होती है, और इसमें मौजूद फाइबर और प्रोटीन आपको भरा हुआ महसूस कराने में मदद कर सकते हैं, जिससे यह वजन प्रबंधन के लिए एक बढ़िया विकल्प बन जाता है। गुड़ की उपस्थिति रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करती है, जिससे मीठे स्नैक्स की लालसा कम हो जाती है।

6. पाचन के लिए अच्छा : मूंगफली में फाइबर होता है, जो नियमित मल त्याग को बढ़ावा देने और कब्ज को रोकने में मदद करता है। मूंगफली गजक में तिल के बीज में लिग्नांस भी होते हैं, जो पाचन में सुधार के लिए दिखाए गए हैं।

7. आवश्यक खनिजों से भरपूर : मूंगफली गजक मैग्नीशियम, पोटेशियम, जिंक और सेलेनियम जैसे आवश्यक खनिजों से भरपूर है जो समग्र स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

8. त्वचा और बालों के लिए अच्छा : मूंगफली में बायोटिन होता है, जिसे विटामिन H भी कहा जाता है, जो स्वस्थ त्वचा और बालों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। मूंगफली गजक में जिंक और सेलेनियम भी त्वचा और बालों की उपस्थिति में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
9. मूड बूस्ट कर सकता है : मूंगफली गजक एक मीठा इलाज है, और इसका सेवन एंडोर्फिन के रिलीज को बढ़ावा दे सकता है, जिससे मूड में सुधार हो सकता है और तनाव कम हो सकता है।अंत में, मूंगफली गजक एक स्वादिष्ट और पौष्टिक स्नैक है जो ठंड के मौसम के लिए एकदम सही है। यह ऊर्जा से भरपूर है, प्रतिरक्षा को बढ़ाता है, हृदय स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, प्रोटीन से भरपूर है, वजन घटाने में मदद कर सकता है, पाचन के लिए अच्छा है, आवश्यक खनिजों से भरपूर है, त्वचा और बालों के लिए अच्छा है और मूड को बढ़ा सकता है। तो, अगली बार जब तापमान गिरे, तो मूंगफली गजक का एक टुकड़ा लेना न भूलें। आप इसे एक स्टैंडअलोन स्नैक के रूप में भी आनंद ले सकते हैं या अधिक विविध स्वाद के लिए अपने नाश्ते के अनाज में शामिल कर सकते हैं।
#सदा_स्वस्थ_रहें

कफ दोष, लक्षण और उपाय  की जानकारी सभी तक पहुंचायेंआप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचाये...
04/01/2025

कफ दोष, लक्षण और उपाय की जानकारी सभी तक पहुंचायें
आप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचायें
कफ दोष क्या है : असंतुलित कफ से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय
आयुर्वेद में बताया गया है कि हर एक इंसान की एक ख़ास प्रकृति होती है। अधिकांश लोगों को अपनी प्रकृति के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं होता है जबकि आप अपनी आदतों और स्वभाव के आधार पर बहुत आसानी से अपनी प्रकृति जान सकते हैं। जैसे कि किसी काम को शुरु करने में आप बहुत देरी करते हैं या आप चाल बहुत धीमी और गंभीर है तो यह दर्शाता है कि आप कफ प्रकृति के हैं। इस लेख में हम आपको कफ प्रकृति के लक्षणों, इससे जुड़े रोगों और उपायों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

1 कफ दोष क्या है?
2 कफ दोष के प्रकार :
3 कफ के गुण :
4 कफ प्रकृति की विशेषताएं :
5 कफ बढ़ने के कारण :
6 कफ बढ़ जाने के लक्षण :
7 कफ को संतुलित करने के उपाय :
8 कफ को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :
9 कफ प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
10 जीवनशैली में बदलाव :
11 कफ की कमी के लक्षण :
12 कफ की कमी का उपचार :
13 साम और निराम कफ :
कफ दोष क्या है?
कफ दोष, ‘पृथ्वी’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। ‘पृथ्वी’ के कारण कफ दोष में स्थिरता और भारीपन और ‘जल’ के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं।

कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों (वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है। इसकी कमी होने पर ये दोनों दोष अपने आप ही बढ़ जाते हैं। इसलिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बहुत ज़रूरी है।

कफ दोष के प्रकार :
शरीर में अलग स्थानों और कार्यों के आधार पर आयुर्वेद में कफ को पांच भागों में बांटा गया है।

क्लेदक
अवलम्बक
बोधक
तर्पक
श्लेषक
आयुर्वेद में कफ दोष से होने वाले रोगों की संख्या करीब 20 मानी गयी है।

कफ के गुण :
कफ भारी, ठंडा, चिकना, मीठा, स्थिर और चिपचिपा होता है। यही इसके स्वाभाविक गुण हैं। इसके अलावा कफ धीमा और गीला होता है। रंगों की बात करें तो कफ का रंग सफ़ेद और स्वाद मीठा होता है। किसी भी दोष में जो गुण पाए जाते हैं उनका शरीर पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है और उसी से प्रकृति का पता चलता है।

कफ प्रकृति की विशेषताएं :
कफ दोष के गुणों के आधार पर ही कफ प्रकृति के लक्षण नजर आते हैं। हर एक दोष का अपना एक विशिष्ट प्रभाव है। जैसे कि भारीपन के कारण ही कफ प्रकृति वाले लोगों की चाल धीमी होती है। शीतलता गुण के कारण उन्हें भूख, प्यास, गर्मी कम लगती है और पसीना कम निकलता है। कोमलता और चिकनाई के कारण पित्त प्रकृति वाले लोग गोरे और सुन्दर होते हैं। किसी भी काम को शुरू करने में देरी या आलस आना, स्थिरता वाले गुण के कारण होता है।

कफ प्रकृति वाले लोगों का शरीर मांसल और सुडौल होता है। इसके अलावा वीर्य की अधिकता भी कफ प्रकृति वाले लोगों का लक्षण है।

कफ बढ़ने के कारण :
मार्च-अप्रैल के महीने में, सुबह के समय, खाना खाने के बाद और छोटे बच्चों में कफ स्वाभाविक रुप से ही बढ़ा हुआ रहता है। इसलिए इन समयों में विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा खानपान, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ असंतुलित हो जाता है। आइये जानते हैं कि शरीर में कफ दोष बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं।

मीठे, खट्टे और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन
मांस-मछली का अधिक सेवन
तिल से बनी चीजें, गन्ना, दूध, नमक का अधिक सेवन
फ्रिज का ठंडा पानी पीना
आलसी स्वभाव और रोजाना व्यायाम ना करना
दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दू आदि का सेवन
कफ बढ़ जाने के लक्षण :
शरीर में कफ दोष बढ़ जाने पर कुछ ख़ास तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। आइये कुछ प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।

हमेशा सुस्ती रहना, ज्यादा नींद आना
शरीर में भारीपन
मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन
शरीर में गीलापन महसूस होना
शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होना
आंखों और नाक से अधिक गंदगी का स्राव
अंगों में ढीलापन
सांस की तकलीफ और खांसी
डिप्रेशन
कफ को संतुलित करने के उपाय :
इसके लिए सबसे पहले उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से शरीर में कफ बढ़ गया है। कफ को संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव करने होंगे। आइये सबसे पहले खानपान से जुड़े बदलावों के बारे में बात करते हैं।

कफ को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :
कफ प्रकृति वाले लोगों को इन चीजों का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।

बाजरा, मक्का, गेंहूं, किनोवा ब्राउन राइस ,राई आदि अनाजों का सेवन करें।
सब्जियों में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर आदि का सेवन करें।
जैतून के तेल और सरसों के तेल का उपयोग करें।
छाछ और पनीर का सेवन करें।
तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं।
नमक का सेवन कम करें।
पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें।
कफ प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
मैदे और इससे बनी चीजों का सेवन ना करें।
एवोकैड़ो, खीरा, टमाटर, शकरकंद के सेवन से परहेज करें।
केला, खजूर, अंजीर, आम, तरबूज के सेवन से परहेज करें।
जीवनशैली में बदलाव :
खानपान में बदलाव के साथ साथ कफ को कम करने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना भी जरूरी है। आइये जाने हैं बढे हुए कफ दोष को कम करने के लिए क्या करना चाहिए।

पाउडर से सूखी मालिश या तेल से शरीर की मसाज करें
गुनगुने पानी से नहायें।
रोजाना कुछ देर धूप में टहलें।
रोजाना व्यायाम करें जैसे कि : दौड़ना, ऊँची व लम्बी कूद, कुश्ती, तेजी से टहलना, तैरना आदि।
गर्म कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।
बहुत अधिक चिंता ना करें।
देर रात तक जागें
रोजाना की दिनचर्या में बदलाव लायें
ज्यादा आराम पसंद जिंदगी ना बिताएं बल्कि कुछ ना कुछ करते रहें।
कफ बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर उल्टी करवाना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा तीखे और गर्म प्रभाव वाले औषधियों की मदद से उल्टी कराई जाती है। असल में हमारे शरीर में कफ आमाशय और छाती में सबसे ज्यादा होता है, उल्टी (वमन क्रिया) करवाने से इन अंगों से कफ पूरी तरह बाहर निकल जाता है।

कफ की कमी के लक्षण :
कफ बढ़ जाने से तो समस्याएं होना आम बात है लेकिन क्या आपको पता है कि कफ की कमी से भी कुछ समस्याएं हो सकती हैं। जी हाँ, यदि शरीर में कफ की मात्रा कम हो जाए तो निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं।

शरीर में रूखापन :
शरीर में अंदर से जलन महसूस होना
फेफड़ों, हड्डियों, ह्रदय और सिर में खालीपन महसूस होना
बहुत प्यास लगना
कमजोरी महसूस होना और नींद की कमी
कफ की कमी का उपचार :
कफ की कमी होने पर उन चीजों का सेवन करें जो कफ को बढ़ाते हो जैसे कि दूध, चावल। गर्मियों के मौसम में दिन में सोने से भी कफ बढ़ता है इसलिए कफ की कमी होने पर आप दिन में कुछ देर ज़रूर सोएं।

साम और निराम कफ :
पाचक अग्नि कमजोर होने पर हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पच नहीं पाता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है। यह दोषों के साथ मिलकर कई रोग उत्पन्न करता है।

जब कफ ‘आम’ से मिला होता है तो यह अस्वच्छ, तार की तरह आपस में मुड़ा हुआ गले में चिपकने वाला गाढ़ा और बदबूदार होता है। ऐसा कफ डकार को रोकता है और भूख को कम करता है।
जबकि निराम कफ झाग वाला जमा हुआ, हल्का और दुर्गंध रहित होता है। निराम कफ गले में नहीं चिपकता है और मुंह को साफ़ रखता है।
अगर आप कफ प्रकृति के हैं और अक्सर कफ के असंतुलित होने से परेशान रहते हैं तो ऊपर बताए गए नियमों का पालन करें। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें
#सदा_स्वस्थ_रहें

03/01/2025

पित्त दोष, लक्षण और उपाय की जानकारी सभी तक पहुंचायें
आप स्वस्थ हों देश स्वस्थ हो और साथ ही अपना व देश का करोड़ों रुपये बचायें
पित्त दोष क्या है : असंतुलित पित्त से होने वाले रोग, लक्षण और उपाय
क्या आपके शरीर से भी बहुत तेज दुर्गंध आती है? या आप बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं तो जान लें कि ये सारे लक्षण पित्त प्रकृति के हैं। ऐसे लोग जिनमें पित्त दोष ज्यादा पाया जाता है वे पित्त प्रकृति वाले माने जाते हैं। इस लेख में हम आपको पित्त प्रकृति के गुण, लक्षण और इसे संतुलित करने के उपायों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

Pitta Dosha

Contents

1 पित्त दोष क्या है?
2 पित्त के प्रकार :
3 पित्त के गुण :
4 पित्त प्रकृति की विशेषताएं :
5 पित्त बढ़ने के कारण:
6 पित्त बढ़ जाने के लक्षण :
7 पित्त को शांत करने के उपाय :
7.1 विरेचन :
8 पित्त को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :
9 पित्त प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
10 जीवनशैली में बदलाव :
11 पित्त की कमी के लक्षण और उपचार :
12 साम और निराम पित्त :
पित्त दोष क्या है?
पित्त दोष ‘अग्नि’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। यह हमारे शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइम को नियंत्रित करता है। शरीर की गर्मी जैसे कि शरीर का तापमान, पाचक अग्नि जैसी चीजें पित्त द्वारा ही नियंत्रित होती हैं। पित्त का संतुलित अवस्था में होना अच्छी सेहत के लिए बहुत ज़रूरी है। शरीर में पेट और छोटी आंत में पित्त प्रमुखता से पाया जाता है।

ऐसे लोग पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे कि कब्ज़, अपच, एसिडिटी आदि से पीड़ित रहते हैं। पित्त दोष के असंतुलित होते ही पाचक अग्नि कमजोर पड़ने लगती है और खाया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं पाता है। पित्त दोष के कारण उत्साह में कमी होने लगती है साथ ही ह्रदय और फेफड़ों में कफ इकठ्ठा होने लगता है। इस लेख में हम आपको पित्त दोष के लक्षण, प्रकृति, गुण और इसे संतुलित रखने के उपाय बता रहे हैं।

पित्त के प्रकार :
शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर पित्त को पांच भांगों में बांटा गया है.

पाचक पित्त
रज्जक पित्त
साधक पित्त
आलोचक पित्त
भ्राजक पित्त
केवल पित्त के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या 40 मानी गई है।

पित्त के गुण :
चिकनाई, गर्मी, तरल, अम्ल और कड़वा पित्त के लक्षण हैं। पित्त पाचन और गर्मी पैदा करने वाला व कच्चे मांस जैसी बदबू वाला होता है। निराम दशा में पित्त रस कडवे स्वाद वाला पीले रंग का होता है। जबकि साम दशा में यह स्वाद में खट्टा और रंग में नीला होता है। किसी भी दोष में जो गुण पाए जाते हैं उनका शरीर पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है और उसी से प्रकृति के लक्षणों और विशेषताओं का पता चलता है.

पित्त प्रकृति की विशेषताएं :
पित्त प्रकृति वाले लोगों में कुछ ख़ास तरह की विशेषताओं पाई जाती हैं जिनके आधार पर आसानी से उन्हें पहचाना जा सकता है। अगर शारीरिक विशेषताओं की बात करें तो मध्यम कद का शरीर, मांसपेशियों व हड्डियों में कोमलता, त्वचा का साफ़ रंग और उस पर तिल, मस्से होना पित्त प्रकृति के लक्षण हैं। इसके अलावा बालों का सफ़ेद होना, शरीर के अंगों जैसे कि नाख़ून, आंखें, पैर के तलवे हथेलियों का काला होना भी पित्त प्रकृति की विशेषताएं हैं।

पित्त प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में भी कई विशेषताए होती हैं। बहुत जल्दी गुस्सा हो जाना, याददाश्त कमजोर होना, कठिनाइयों से मुकाबला ना कर पाना व सेक्स की इच्छा में कमी इनके प्रमुख लक्षण हैं। ऐसे लोग बहुत नकारात्मक होते हैं और इनमें मानसिक रोग होने की संभावना ज्यादा रहती है।

पित्त बढ़ने के कारण:
जाड़ों के शुरूआती मौसम में और युवावस्था में पित्त के बढ़ने की संभावना ज्यादा रहती है। अगर आप पित्त प्रकृति के हैं तो आपके लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि आखिर किन वजहों से पित्त बढ़ रहा है। आइये कुछ प्रमुख कारणों पर एक नजर डालते हैं।

चटपटे, नमकीन, मसालेदार और तीखे खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन
ज्यादा मेहनत करना, हमेशा मानसिक तनाव और गुस्से में रहना
अधिक मात्रा में शराब का सेवन
सही समय पर खाना ना खाने से या बिना भूख के ही भोजन करना
ज्यादा सेक्स करना
तिल का तेल,सरसों, दही, छाछ खट्टा सिरका आदि का अधिक सेवन
गोह, मछली, भेड़ व बकरी के मांस का अधिक सेवन
ऊपर बताए गए इन सभी कारणों की वजह से पित्त दोष बढ़ जाता है। पित्त प्रकृति वाले युवाओं को खासतौर पर अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए और इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

पित्त बढ़ जाने के लक्षण :
जब किसी व्यक्ति के शरीर में पित्त दोष बढ़ जाता है तो कई तरह के शारीरिक और मानसिक लक्षण नजर आने लगते हैं। पित्त दोष बढ़ने के कुछ प्रमुख लक्षण निम्न हैं।

बहुत अधिक थकावट, नींद में कमी
शरीर में तेज जलन, गर्मी लगना और ज्यादा पसीना आना
त्वचा का रंग पहले की तुलना में गाढ़ा हो जाना
अंगों से दुर्गंध आना
मुंह, गला आदि का पकना
ज्यादा गुस्सा आना
बेहोशी और चक्कर आना
मुंह का कड़वा और खट्टा स्वाद
ठंडी चीजें ज्यादा खाने का मन करना
त्वचा, मल-मूत्र, नाखूनों और आंखों का रंग पीला पड़ना
अगर आपमें ऊपर बताए गये लक्षणों में से दो या तीन लक्षण भी नजर आते हैं तो इसका मतलब है कि पित्त दोष बढ़ गया है। ऐसे में नजदीकी चिकित्सक के पास जाएं और अपना इलाज करवाएं।

पित्त को शांत करने के उपाय :
बढे हुए पित्त को संतुलित करने के लिए सबसे पहले तो उन कारणों से दूर रहिये जिनकी वजह से पित्त दोष बढ़ा हुआ है। खानपान और जीवनशैली में बदलाव के अलावा कुछ चिकित्सकीय प्रक्रियाओं की मदद से भी पित्त को दूर किया जाता है।

विरेचन :
बढे हुए पित्त को शांत करने के लिए विरेचन (पेट साफ़ करने वाली औषधि) सबसे अच्छा उपाय है। वास्तव में शुरुआत में पित्त आमाशय और ग्रहणी (Duodenum) में ही इकठ्ठा रहता है। ये पेट साफ़ करने वाली औषधियां इन अंगों में पहुंचकर वहां जमा पित्त को पूरी तरह से बाहर निकाल देती हैं।

पित्त को संतुलित करने के लिए क्या खाएं :
अपनी डाइट में बदलाव लाकर आसानी से बढे हुए पित्त को शांत किया जा सकता है. आइये जानते हैं कि पित्त के प्रकोप से बचने के लिए किन चीजों का सेवन अधिक करना चाहिए.

घी का सेवन सबसे ज्यादा ज़रुरी है।
गोभी, खीरा, गाजर, आलू, शिमला मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें।
सभी तरह की दालों का सेवन करें।
एलोवेरा जूस, अंकुरित अनाज, सलाद और दलिया का सेवन करें।
और पढ़े: पित्त मे चीकू के फायदे

पित्त प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए :
खाने-पीने की कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनके सेवन से पित्त दोष और बढ़ता है। इसलिए पित्त प्रकृति वाले लोगों को इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

मूली, काली मिर्च और कच्चे टमाटर खाने से परहेज करें।
तिल के तेल, सरसों के तेल से परहेज करें।
काजू, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट और बिना छिले हुए बादाम से परहेज करें।
संतरे के जूस, टमाटर के जूस, कॉफ़ी और शराब से परहेज करें।
जीवनशैली में बदलाव :
सिर्फ खानपान ही नहीं बल्कि पित्त दोष को कम करने के लिए जीवनशैली में भी कुछ बदलाव लाने ज़रूरी हैं। जैसे कि

ठंडे तेलों से शरीर की मसाज करें।
तैराकी करें।
रोजाना कुछ देर छायें में टहलें, धूप में टहलने से बचें।
ठंडे पानी से नियमित स्नान करें।
पित्त की कमी के लक्षण और उपचार :
पित्त में बढ़ोतरी होने पर समस्याएँ होना आम बात है लेकिन क्या आपको पता है कि पित्त की कमी से भी कई शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं? शरीर में पित्त की कमी होने से शरीर के तापमान में कमी, मुंह की चमक में कमी और ठंड लगने जैसी समस्याएं होती हैं। कमी होने पर पित्त के जो स्वाभाविक गुण हैं वे भी अपना काम ठीक से नहीं करते हैं। ऐसी अवस्था में पित्त बढ़ाने वाले आहारों का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा ऐसे खाद्य पदार्थों और औषधियों का सेवन करना चाहिए जिनमें अग्नि तत्व अधिक हो।

साम और निराम पित्त :
हम जो भी खाना खाते हैं उसका कुछ भाग ठीक से पच नहीं पता है और वह हिस्सा मल के रुप में बाहर निकलने की बजाय शरीर में ही पड़ा रहता है। भोजन के इस अधपके अंश को आयुर्वेद में “आम रस’ या ‘आम दोष’ कहा गया है।

जब पित्त, आम दोष से मिल जाता है तो उसे साम पित्त कहते हैं। साम पित्त दुर्गन्धयुक्त खट्टा, स्थिर, भारी और हरे या काले रंग का होता है। साम पित्त होने पर खट्टी डकारें आती हैं और इससे छाती व गले में जलन होती है। इससे आराम पाने के लिए कड़वे स्वाद वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

जब पित्त, आम दोष से नहीं मिलता है तो उसे निराम पित्त कहते हैं। निराम पित्त बहुत ही गर्म, तीखा, कडवे स्वाद वाला, लाल पीले रंग का होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है। इससे आराम पाने के लिए मीठे और कसैले पदार्थों का सेवन करें।

पित्त प्रकृति के लोगों को पित्त को बढ़ने से रोकने के लिए ऊपर बताए गए नियमों का पालन करना चाहिए। यदि समस्या ठीक ना हो रही हो या गंभीर हो तो किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क करें।
#सदा_स्वस्थ_रहें

Address

Panipat
132103

Telephone

+919996407336

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Satish Yogi Seenk posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to Satish Yogi Seenk:

Videos

Share